Press "Enter" to skip to content

Bihar News in Hindi: The BiharNews Post - Bihar No.1 News Portal

50 लाख मोदी की तस्वीर वाली झोला के सहारे सियासत साधने मैंदान में उतरी बीजेपी सांसद और विधायक को दी गयी जिम्मेवारी

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के प्रचार प्रसार के लिए भाजपा ने आज से झोला बांटने के अभियान की शुरूआत कर दी है। प्रदेश कार्यालय में केन्द्रीय गृहमंत्री नित्यानंद राय ने इस शुभारंभ किया। प्रदेश कार्यालय से शुरू हुए इस अभियान के पहले चरण में पार्टी के विधायक और सांसद पूरे प्रदेश में 50 लाख झोला बांटेगे। पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज देने की योजना केन्द्र सरकार चला रही है।
अब भाजपा बिहार के लोगों को झोला बांटकर ये बतायेगी की उनके घरों तक जो अनाज पहुंच रहा है, वो असल में मोदी सरकार की देन है। भाजपा के कार्यकर्ता बूथ लेवल तक कार्यक्रम आयोजित कर झोला वितरित करेंगे। झोला पर पीएम मोदी की तस्वीर, भाजपा का कमल निशान, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना छपा है।पीएम के साथ ही क्षेत्रवार सांसद व विधायक की तस्वीर भी इसपर छपी होगी। भाजपा कार्यकर्ता49 हजार 780 जनवितरण दुकानों पर PM मोदी का बैनर लगा कर लाभुकों के बीच यह झोला वितरित करेगा।
विधायक 20 हजार तो सांसदों को बनवाना होगा 1 लाख झोला
सांसद ,विधायक और विधानपरिषद सदस्यों को विशेष जिम्मेवारी दी गयी है जिसके तहत प्रत्येक सांसद को 1 लाख झोला, 1 हजार फ्लैक्स तो विधायक को 20 हजार झोला, 200 फ्लैक्स बांटने की जिम्मेवारी दी गयी है। प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत राज्य के गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवार को 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल नबंबर तक मुफ्त में मिलेगा
नीतीश कुमार को इस योजना से रखा गया है दूर

भाजपा के इस झोला अभियान का असल मकसद, आमलोगों तक ये बात पहुंचाना है कि गरीबों को जो अनाज मिल रहा है वो असल में मोदी सरकार का दिया है।और यही वजह है कि यूपी में इस योजना के शुभआरम्भ के दौरान जो झोला बाटा गया था उसमें योगी की तस्वीर थी लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की तस्वीर झोला पर नहीं है ।
यहां संसदीय क्षेत्रों के लिहाज से भाजपा के सांसदों का चेहरा होगा। जहां विधायक हैं वहां विधायक का। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार के काम का क्रेडिट नीतीश कुमार ना ले पाएं, इसकी पूरी कोशिश की गई है।राजद ने इस झोला राजनीति पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री अन्न योजना मोदी की योजना नहीं है जो सिर्फ बीजेपी के विधायक और सांसद का फोटो झोला पर रहेगा तत्तकाल पीएम मोदी इस प्रवृति पर रोक लगाये नहीं तो राजद इसको लेकर जनता के बीच जायेंगी ।

भोजपुरी अश्लील क्यों बन गई ?

वो साठ का दशक था,तब मनोरंजन के इतने साधन नहीं थे। ले-देकर दशहरा के समय दरभंगा और अयोध्या से आने वाली रामलीला मण्डली का आसरा था। कहीं से गाँव के खेलावन बाबा को पता चलता कि इस महीने गाँव में होने वाली यज्ञ में वृन्दावन से रासलीला मण्डली आ रही है,फिर तो उनके चेहरे की ख़ुशी देखते बनती थी।

इधर लोगो को यशादी-ब्याह के मौसम में आने वाली नाच और मेले-ठेले में होने वाली नौटकी का बड़ी जोर-शोर से इंतजार रहता था।

उधर गाँव के कुछ उत्साही सनूआ-मनूआ द्वारा दशहरा-
दीपावली में ड्रामा भी किया जाता था।

हां, गाँव-जवार में बिजली अभी ठीक से आई नहीं थी।

दूरदर्शन के दर्शन की कल्पना भी बेमानी थी। किसी गाँव में डेढ़ मीटर लम्बी रेडियो आ जाए तो आस-पास गाँव वाले साइकिल से सुनने पहुंच जाते थे।

तब भोजपुरी के पहले सुपरपस्टार भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता आसमान छू रही थी। छपरा से लेकर बंगाल और आसाम से लेकर आसनसोल तक वो जहाँ भी,जिस मौके पर जाते,वहाँ खुद-ब-खुद मेला लग जाता था।

उनके इंतजार में लोग ऊँगली पर दिन गिनना शुरू कर देते थे। उनका नाटक गबरघिचोर हो या गंगा स्नान, विदेसिया हो या बेटीबेचवा लोग हंसते-हंसते कब रोने लगते,किसी को कुछ पता नहीं चलता था।

“करी के गवनवा भवनवा में छोड़ी करs
अपने परइलs पुरूबवा बलमुआ..”

ये बच्चे-बच्चे को जबानी याद था। क्योंकि इन नाटकों के गीत महज गीत नहीं थे। इन नाटकों के संवाद महज संवाद नहीं थे।

वो मनोरंजन भी केवल मनोरंजन नहीं था,बल्कि वो मनोरंजन का सबसे उदात्त स्वरूप था, जहाँ भक्ति, प्रेम और वात्सल्य के साथ हास्य-व्यंग्य का उच्चस्तरीय स्तर मौजूद था।

जहाँ स्त्री विमर्श की गहन पड़ताल थी, तो सामाजिक- आर्थिक विसंगतियों पर एक साथ चोट की जा रही थी। कुल मिलाकर तब भिखारी सिर्फ एक कलाकार न होकर एक समाज-सुधारक की भूमिका में थे।

वही दौर था भिखारी के समकालीन छपरा के महेंदर मिसिर का। दोनों में खूब दोस्ती थी।

बच्चा-बच्चा जानता कि भिखारी खाली समय में अगर कुतुबपुर में नहीं हैं,तो वो पक्का मिश्रौलिया में होंगे। अपने समय के दो महान कलाकारों की इस गाढ़ी मित्रता की कल्पना मेरे जैसे कई संगीत के विद्यार्थियों के चित्त आनंदित करती है…

“अंगूरी के डसले बिया नगिनिया रे ए ननदी संइयाँ के बोला द..”

“भला कौन पूरबिया होगा भला जिसे इतना याद न होगा..” ?

लेकिन साहेब भिखारी-महेंदर मिसिर के बाद एक झटके में जमाना बदला। तब सिनेमा जवान हो रहा था। भोजपुरी में भी तमाम फिल्में बननें लगीं थी।

गाजीपुर के नाजिर हुसैन और गोपलगंज के चित्रगुप्त नें चित्रपट में ऐसा जादू उतारा कि आज भी वो फ़िल्में, वो संगीत मील का पत्थर हैं।

लेकिन हम इस लेख में मुम्बई और सिनेमा की बात नही करेंगे..क्योंकि तब गाँव में धड़ल्ले से नांच पार्टी खुल रहीं थीं।

हर जिले में ढोलक के साथ बीस जोड़ी झाल लेकर गवनई पार्टी वाले व्यास जी लोग आ गए थे। ये व्यास जी लोग “मोटकी गायकी” के व्यास कहे जाते थे।

ये व्यास लोग रात भर रामायण महाभारत की कथा को वर्तमान सन्दर्भों के साथ जोड़कर सुनाते। सवाल-जबाब का लम्बा-लम्बा प्रसङ्ग चलता। बिहार के गायत्री ठाकुर जब हवा में झाल लहरा के गाते…

“चलत डहरिया पीरा जाला पाँव रे
जोन्हीयो से दूर बा बलमुआ के गाँव रे…”

तो श्रोताओं के हाथ अपने आप जुड़ जाते थे, क्योंकि इस गीत में बलमुआ का मतलब उनके पतिदेव से नहीं, बल्कि ईश्वर से था।

इधर उनके जोड़ीदार बलिया यूपी के बिरेन्द्र सिंह ‘धुरान’ भी माथे पर पगड़ी बांध,मूँछों पर ताव देकर ललकारते…तो अस्सी साल के बूढों की बन्द पड़ी धमनियों का रक्त संचरण अपने आप बढ़ जाता।

ये जोड़ी पुरे भोजपुरिया जगत में प्रसिद्ध थी। इन दोनों के चाहने वालों की लिस्ट में टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार भी शामिल थे।

और इन गायत्री-धुरान नामक दो घरानों नें भोजपुरी को सैकड़ों गायक दिए..ये परम्परा आज वटवृक्ष का आकार ले चुकी है।

फिर आते हैं..भोजपुरी की मेहीनी परम्परा में..धीरे-धीरे समय बदला.. अस्सी का दशक आया…मुन्ना सिंह और नथुनी सिंह का,

भला कौन होगा,जिसे ये गाना याद न होगा ?

“जबसे सिपाही से भइले हवलदार हो
नथुनिए पर गोली मारे संइयाँ हमार हो..”

तब तब टेपरिकार्डर और आडियो कैसेट मार्किट में आ गए थे।
शहरों से निकलकर गाँव-गाँव इनकी पहुंच आसान हो गई थी।

उस समय कैसेट गायकों को बड़े ही सम्मान के साथ देखा जाता था। क्योंकि गायक बनना आसान नहीं था और कैसेट कलाकार बनना तो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी।

तब वीनस और टी-सीरीज जैसी म्यूजिक कम्पनियाँ कलाकारों को बुलाकर रिकॉर्डिंग करातीं थीं.

और ये म्यूजिक कम्पनियां उन्ही गायकों का कैसेट बनातीं थीं जिनकी आवाज में कुछ ख़ास होता था।

जिनको दो-चार हजार लोग जानते-पहचानते थे। शायद इसी वजह से जिस गायक का बाजार में कैसेट होता था, उसका मार्किट टाइट हो जाता था।

उसे फटाफट दूर-दूर से प्रोग्राम के ऑफर आने लगते थे। बाकी लोग उससे हड़कते थे, “अरेs मरदे कैसेट के कलाकार हवन…दूर रहा…”
.
उसी समय कुछ अच्छे गाने वाले हुए..बिहार में शारदा सिन्हा जी का गाना..

“पटना से बैदा बोलाई दs हो, नज़रा गइली गुईयाँ”

जब कुसुमावती चाची सुनतीं तो उनका चेहरा ऐसा खिल जाता,मानों किसी ने उनके दिल की बात कह दी हो…उसी दौर में भरत शर्मा व्यास जब गाते…

“कबले फिंची गवना के छाड़ी,हमके साड़ी चाहीं.”

तो छपरा जिला के रेवती गाँव में गवना करा के आई मनोहर बो अपने मनोहर को याद करके चार दिन तक खाना-पीना छोड़ देतीं।

वहीं नया-नया दहेज हीरो होंडा पाया सिमंगल का रजेसवा जब गांजा के बाद ताड़ी पीने में महारत हासिल कर लेता तो कहीं दूर हार्न से भरत शर्मा की आवाज आती..

“बन्हकी धराइल होंडा गाड़ी
हमार पिया मिलले जुआड़ी.”

फिर इन्हीं भरत शर्मा की ऊँगली थामकर निकले कुछ और गायक…जिनमे हमारे बलिया की शान मदन राय,गोपाल राय और रविन्द्र राजू जैसे गायक हैं…आज भी मेरे प्रिय गायक गोपाल राय गाते हैं…

“झुमका झुलनी चूड़ी कंगन हार बनववनी
उपरा से निचवा से तहके सजवनी
सोनरा के सगरो दोकान लेबु का हो
काहें खिसियाईल बाड़ू जान लेबू का हो..”

तो मन करता है कि इसी खरमास में कोई बढ़िया दिन देखकर बियाह कर ले और तब इस गाने की अगली लाइन सुनें…!

इसमें कोई शक नही है कि..आज भी भरत शर्मा के साथ-साथ मदन राय, गोपाल राय,विष्णु ओझा भोजपुरी के सर्वकालिक लोकप्रिय गायक हैं…कोई स्टार बने या बिगड़े..न इनका महत्व कभी कम हुआ,न ही होगा…आज भोजपुरी संगीत में जो कुछ भी सुंदर हैं..इन्हीं जैसे गायकों की देन है।

लेकिन आइये इधर..नब्बे का दशक बीत रहा था। ठीक उसी उसी समय एकदम लीक से हटकर एक और गायक कम नेता जी आ गए।

वो थे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीपीएड की पढ़ाई कर रहे मनोज तिवारी ‘मृदुल’..दो शैली यहाँ हो गयी भोजपुरी में…एक भरत शर्मा व्यास वाली शैली थी…दूसरी थी मनोज तिवारी वाली शैली.

शर्मा जी वाली शैली में अभी भी गायत्री ठाकुर और व्यास शैली का प्रभाव था.लेकिन मनोज तिवारी ने लीक बदल दिया…

“लल्लन संगे खीरा खाली सुनें प्रभुनाथ गाली
घायल मनोज से बुझाली बगलवाली जान मारेली..”

गायकी के इस नए अंदाज नें युवाओं के बीच धूम ही मचा दिया। धीरे-धीरे इसमें स्टेज पर लेडिज डांसर के संग नृत्य का तड़का भी दिया जाने लगा। और ये क्रम लम्बा चला।

फिर साहेब आ जातें है सीधे 2002 में… मार्केट में आडियो और वीसीआर को चुनौती देने के लिए आ गया सीडी कैसेट। अब हाल ये हुआ कि टाउन डिग्री कालेज से मेलेट्री साइंस में बीए करके गाँव के मनोजवा,करिमना चट्टी-चौराहे पर सीडी की दुकानें खोलने लगे।

यहां तक कि चट्टी के गुप्त रोग स्पेशलिस्ट सुखारी डाक्टर के मेडिकल स्टोर पर भी फ़िल्म सीडी मिलने लगी। जहाँ सुविधानुसार हर तरह की फिल्में यानी लाल,पिली,नीली किस्म की फिल्में आसानी से मिल जातीं थीं।

मुझे याद नहीं कि नानी का गेंहू बेचकर भाड़े पर मिथुन चक्रवर्तीया और सनी देवला की कितनी फिल्में देखीं होंगी।

तब जिनके यहाँ गाँव में पहली दफा सीडी आई थी, उनके यहाँ बिजली आते ही मेला लग जाता था। इस माहौल को ध्यान रखते हुए उस समय भोजपुरी की म्यूजिक कम्पनियों ने एक नया ट्रेंड निकाला…वो था भोजपुरी म्यूजिक वीडियो सीडी…!

टी सीरीज तब भी इस मामले में नम्बर एक थी।

उसने मनोज तिवारी के सुपरहिट एल्बम बगल वाली,सामने वाली, ऊपर वाली, नीचे वाली, पूरब के बेटा, सबका वीडियो बना डाला..!

फिर हुआ क्या कि लोग जिसे आज तक आडियो में सुनते थे..और कैसेट के रैपर पर छपे गायक को बड़े ध्यान से देर तक देखते थे.. लोग उसे वीडियो में नाँचते-और झूमते देखने लगे।

इसी चक्कर में टी-सीरीज ने भरत शर्मा और मदन राय के तमाम पुराने गीतों का इतना घटिया फिल्मांकन कर दिया,जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते हैं.. वो घटिया इस मामले में कि गाने का भाव कुछ और तो वीडियो में कुछ और दिखाया जाने लगा।

तब तक आँधी की तरह असम से आ गई कल्पना..

“एगो चुम्मा ले लs राजाजी.. बन जाई जतरा..”

बिहार के भूतपूर्व संस्कृति मंत्री बिनय बिहारी जी के इस गीत ने मार्केट में तहलका मचा दिया और करीब एक साल तक इस गीत का जबरदस्त प्रभाव रहा।

इसी क्रम में…डायमंड स्टार गुडडू रंगीला,सुपर स्टार राधेश्याम रसिया और सुनील छैला “बिहारी” को याद करने के लिये मुझे अलग से लिखना पड़ेगा।

लेकिन आतें हैं..जिला गाजीपुर के दिनेश लाल यादव “निरहुआ..” पर….

“बुढ़वा मलाई खाला बुढ़िया खाले लपसी
केहू से कम ना पतोहिया पिए पेपसी “

दिनेश लाल के इस खांटी नए अंदाज को जनता नें हाथो-हाथ लिया। फिर क्या था ? टी-सीरिज ने झट से इस मौके को लपका और मार्किट में आ गया उनका अगला एल्बम….
“निरहुआ सटल रहे”

इस कैसेट के आते ही समूचे भोजपुरिया जगत में धूम मच गई..और हाल ये हुआ कि कुछ दिन पहले महज कुछ हजार लेकर घूम-घूम बिरहा गाने वाले दिनेश लाल यादव रातों-रात स्टार हो गए।

ठीक उसी समय कुलांचे भरने लगा आरा जिला का एक और सीधा-साधा सा गायक। आज दुनिया उसको पवन सिंह के नाम से भले जानती है,लेकिन पवन अपने शुरुवाती दिनों में सबसे खास किस्म के गायक हुआ करते थे।

शायद ईश्वर की कृपा..कुछ ही सालों में पवन की आवाज में निखार और भाव आना शुरू हुआ और वो मार्किट में टी सीरिज से वीडियो सीडी लेकर आ गए..

“खा गइलs ओठलाली”..

एकदम आर्केस्ट्रा के अंदाज में.. मूंछो वाले दुबले-पतले पवन सिंह एक्टिंग और डांस के नाम पर दाएं और बाएं हाथ को हिलाते हुए..गाते कि..

“रहेलाs ओहि फेरा में बहुते बाड़ा बवाली..”

तो हम जैसे सात में पढ़ने वाले लड़कों को भी इस बेचारे गायक पर तरस आता.. लेकिन “निरहुआ सटल रहे” की ऊब के बाद पवन ने मार्केट में एक नए किस्म का टेस्ट दे दिया..उनका एल्बम तब बजाया जाता,जब लोग “निरहुआ सटल रहे” दो-चार बार सुनकर ऊब जाते..

उधर समय बदला निरहुआ स्टार होकर फिल्मों में चले गए मनोज तिवारी स्टार हो चुके थे.. एक के बाद एक उनकी फिल्में सुपरहिट हो रहीं थीं..तब तक पवन सिंह फिर आ गए..

“कमरिया करे लपालप लॉलीपॉप लागेलू”

ज़ाहिद अख़्तर के लिखे इस एक गीत ने मार्केट में धूम मचा ही दिया…सिर्फ राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये आज भी भोजपुरी का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है, जिस पर हमें समझ नहीं आता कि गर्व करें या शर्म करें…!

लेकिन ठीक इसी गीत से शुरु हुआ भोजपुरी संगीत का “पवन सिंह युग उर्फ़ लॉलीपॉप युग”….जो लगातार पांच साल तक अनवरत चला।

देखते ही देखते पवन ने म्यूजिक का ट्रेंड ही बदल दिया।

एकदम बम्बइया सालिड डीजे टाइप का म्यूजिक…और हर एल्बम में हर वर्ग के लिए हर किस्म के गाने गाए..

ये दौर ऐसा चला कि नवरात्र हो या सावन,होली हो या चैता। जहाँ भी जाइए बस पवन सिंह,नही तो पवन सिंह टाइप के गानें….

हाल ये हुआ कि भोजपुरी मने पवन सिंह हो गया।

पवन ने कुछ साल तक एकक्षत्र राज किया और झट से फिल्मों में मनोज तिवारी, निरहुआ के बाद तीसरे गायक अभिनेता हो गए औऱ उनकी फ़िल्म आई..

“रंगली चुनरिया तोहरे नाम”

इसके बाद पवन की स्टाइल में कुछ बाल गायक भी पैदा हुआ…जैसे कल्लू और सनिया….

“लगाई दिही चोलिया में हुक राजा जी…और ओही रे जगहिया दांते काट लिहले राजा जी”.. ये एक साल तक खूब बजा..!

जिसका असर ये हुआ कि बड़े-बड़े लोग अपने बेटे-बेटी को पढ़ाई छुड़ा के अश्लील गायक बनाने लगे। खेत बेचके एल्बम की शूटिंग होने लगी।

क्योंकि लोगों के दिलो में ये बात समा गयी कि एक बार बेटा चमक गया तो हम जीवन भर बैठकर खाएंगे।

इधर पवन के फिल्मों की तरफ जानें के बाद कुछ ही साल में आ गए सिवान के खेसारी लाल यादव…एकदम देशी अंदाज.. शादी ब्याह में औरतों के गाए जाने वाले गीतों की धुन…उन्हीं के अंदाज में।

बस जरा अश्लीलता की छौंक और गवनई का तड़का..

अब जो पवन सिंह ने भोजपुरी को धूम-धड़ाका और डीजे में बदल दिया था..उसे खेसारी लाल ने एकदम देहाती संगीत यानी झाल, ढोलक, बैंजो,क्लीयोरनेट वाले युग की तरफ़ मोड़ दिया..

इस मुड़ाव के बाद हुआ क्या कि पांच साल से रस-परिवर्तन खोज रही जनता ने इसे भी हाथों-हाथ ले लिया.

कौन ऐसा भोजपुरिया कोना होगा “संइयाँ अरब गइले ना” नहीं बजा होगा..”

कौन ऐसा रिक्शा, ठेला, जीप, बस, ट्रक वाला नही होगा जो खेसारी के गीतों से अपनी मेमोरी को फूल न कर लिया होगा..

इधर कुछ सालों में फिर समय बदला है..मनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह के बाद खेसारी लाल यादव,राकेश मिश्रा,रितेश पांडेय,कलुआ सब फिल्मी दुनिया के हीरो हो गए हैं।

और इस ट्रेंड नें स्ट्रगल कर रहे भोजपुरिया गायकों के दिमाग एक बात भर दिया कि “गायकी में हीट तो फिलिम में फीट” अब हर भोजपुरी गायक खुद को गायक नहीं हीरो मानने लगा है।

इधर आडियो गयावीडियो सीडी गया.. हाथों-हाथ आ गया स्मार्ट फोन.. पेनड्राइव, लैपटाप, डाऊनलोड और डिलीट।पन्द्रह सेकेंड के शॉर्ट्स वीडियोज और रील का जमाना..

इसी चक्कर में भोजपुरी की म्यूजिक इंडस्ट्री भी एकदम से बदल गयी है। कई छोटी म्यूजिक कम्पनियां बिक गयीं।

कारण बस ये कि आज हर जिले में एक दर्जन म्यूजिक कम्पनी हैं तो डेढ़ दर्जन रिकॉर्डिंग स्टूडियोम जिनमें हर जिले के हज़ारों भोजपुरी गायक गा रहे हैं, तो क़रीब लाख अभी रियाज कर रहें हैं।

हर गांव में पच्चीस गायक अभिनेता हैं.. जो एक घण्टे में हिट होकर मनोज,निरहुआ, पवन और खेसारी की तरह मोनालिसा के कमर में हाथ डालना चाहतें हैं।

इस हीरो बनने के चक्कर में इनके गाने सुनिए तो वो सीधे सम्भोग से शुरू होते हैं और सम्भोग पर ही आकर खत्म हो जातें हैं.. यानी “तेल लगा के मारम, त पीछे से फॉर देम, त तहरा चूल्हि में लवना लगा देम, त सकेत बा ए राजा अब ना जाइ.त खोलs की ढुकाइ….!

ये छोटी सी बानगी भर है…. यू ट्यूब खोलिये तब आपको पता चले कि जो जितना नीचे गिर सकता है.. उतना ही वो सुपरहिट है..

इसका बस एक ही कारण है..वो है “व्यूज”

आज भोजपुरी में सफलता का मानक मिलियन व्यूज बन गया है। किसका कौन सा गाना कितनी देर यू ट्यूब इंडिया की टाइम लाइन पर ट्रेडिंग में हैं.. ये तय कर रहा है।

किस गीत पर कितने मिलियन शॉर्ट्स वीडियोज और रील बन रहे हैं… ये कर रहा है।

और इस मिलियन व्यूज की सत्ता उन लोगों के हाथ मे चली गई है जो सामान्यतः अनपढ़ हैं..

इन्हें न भोजपुरी की लोक संस्कृति का ज्ञान है,न ही संस्कारों का…न ही अपने घर से डर है,न ही समाज से।

इनके लिए हर हाल में व्यूज महत्वपूर्ण है।

इस खेल में पहले सिर्फ टी सीरीज और वीनस थी,अब बड़े बड़े कारपोरेट इसमें कूद पड़े हैं। सबको हर हाल में व्यूज चाहिए।

इनको हर हफ़्ते गाने बनाने हैं…हर हफ्ते चैनल के इंगेजमेंट बढाने हैं..

तो हर हफ़्ते नया मसाला चाहिए…

इसलिए अब सारी बड़ी कंपनीयाँ उसी गीत-संगीत में पैसा लगाना चाहतीं हैं जो इंटरनेट पर जल्दी-जल्दी पापुलर हो जाए। जिसको अपना यू टयूब चैनल बड़ा करना है..उसकी जरूरत ये भोजपुरी स्टार पूरी करते हैं..

आज एक-एक गीत गाने के तीन से पाँच लाख रुपये मिल रहे हैं..

म्यूजिक कम्पनियो की चांदी का समय अब आया है।

इस कम्पटीशन में एक-एक गाने ने दस-दस लाख रुपये खर्च हो रहें हैं…

यू ट्यूब पर ताजा आया खेसारी का गीत “चाची के बाची” और “खेसरिया के बेटी” इसी व्यूज के भेड़ियाधसान से निकली एक घटना है।

भोजपुरी के एक लाख गायक जो स्टार बनने का सपना पाले हुए हैं.. वो यही काम कर रहें हैं..

व्यूज लाने के लिए कुछ भी गाने का काम..

जिसे सुनकर आप कहेंगे कि हाय ! ये महेंद्र मिसिर, भिखारी ठाकुर.. भरत शर्मा और शारदा सिन्हा मदन राय और गोपाल राय की भोजपुरी को क्या हो गया ?

लेकिन समाधान कैसे होगा ?

जी समाधान तो तब होगा,जब इन्हीं के अंदाज में इन्हीं के हथियारों से इन्हीं के खिलाफ इनसे लड़ा जाएगा..लेकिन लड़ाई होगी तो कैसे.. महज दो-चार लोग.. इन लाखों का सामना कैसे करेंगे..?

ये भी हो सकता था।

लेकिन कौन समझाने जाए,हर जनपद में बने उन भोजपुरी अस्मिता के तथाकथित संगठनों को,जिनमें दूर-दूर तक कहीं एकता नहीं है। कोई किसी के प्रयास को बर्दास्त नहीं कर सकता है।

दरअसल इनकी गलती भी नहीं है। भोजपुरी के नाम पर बने ये संगठन छठ घाट पर भोजपुरी की अस्मिता से ज्यादा व्यक्तिगत राजनीति चमकाने वाली दूकान बनकर रह गए हैं।

भोजपुरी बुद्धिजीवियों और भोजपुरीया अनपढ़ गायकों की संयुक्त मार से आहत है।

बुद्धिजीवी ये समझते हैं कि समस्त भोजपुरी बेल्ट की जनता उनकी तरह ही बुद्धिजीवी हैं..ये अनपढ़ ये समझते हैं..की सब लोग मूर्ख हैं… चाची के बाची में क्या बुराई है ?

अब चाची के बाची वालों ने अपनी बर्बादी की तरफ कदम रख दिया है।

लेकिन उनको रिप्लेस कौन करेगा… कैसे होगा ?

किसी को पता नहीं… ये अलग विषय है,जिस पर एक अलग से लेख लिखूँगा…

बस आपको और हमको..सबको मिलकर बेहतर और साफ़-सुथरा कंटेंट प्रमोट करना पड़ेगा..क्योंकि आज भी अच्छा सुनने वालों की कमी नहीं है…

वरना भोजपुरी तो अश्लीलता का पर्याय बन ही चुकी है…

आज नही तो कल, संविधान की आठवी अनुसूची में भी शामिल हो हो जाएगी,लेकिन फायदा क्या होगा जब भोजपुरी में भोजपुरी गायब हो जाएगी।शरीर से आत्मा ही निकल जाएगी.और रह जायेगा मृतक शरीर के रूप में अश्लीलता.सिर्फ अश्लीलता…!

( लेखक अनूप नारायण सिंह वरिष्ठ फिल्म पत्रकार व फिल्म सेंसर बोर्ड कोलकाता रीजन एडवाइजरी कमिटी के सदस्य हैं)

बिहार में एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ 11 शिवलिंग विराजमान है।

#एकादशरूद्र_शिव
बिहार का एक एेसा अनोखा शिवालय है जहां एक साथ ग्यारह शिवलिंग की पूजा की जाती है। यहां ग्यारह शिवलिंग एक साथ विराजमान है। जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर राजनगर प्रखंड क्षेत्र का मंगरौनी गांव प्राचीन काल से तंत्र विद्या के साधकों लिए प्रसिद्ध रहा है। इस गांव में प्राचीन शक्तिपीठ बूढ़ी माई मंदिर, भुवनेश्वरी देवी मंदिर अवस्थित हैं। माता भुवनेश्वरी मंदिर के बगल में ही अपने आप में अद्भुत एकादशरूद्र शिव विराजमान हैं।लगभग आठ फुट लंबे व पांच फुट चौड़ाई में बनी एक ही पीठिका (जलढरी) पर शिव के 11 रूपों के रूप में11 शिवलिंग स्थापित हैं। पड़ोसी देश नेपाल सहित राज्य व राज्य के बाहर से शिवभक्त एक ही पीठिका पर विराजमान इन 11 अद्भुत शिवलिंगों के दर्शन, पूजन को पुहंचते हैं। सावन माह में तो यहां की छटा ही निराली हो उठती है। इनके दर्शन मात्र से मन को पूर्ण शांति मिल जाती है।यह शिवालय श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा का केंद्र है। इसकी स्थापना 1954 ई. में बाबूसाहेब जगदीश नंदन चौधरी ने की थी। यहां कांची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती व पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती भी आकर पूजा कर चुके हैं। इन शंकराचार्यों ने भी यहां की महिमा का भरपूर बखान किया था। मंदिर गुंबदनुमा है। परिसर में नेपाल के एक शिवभक्त द्वारा लकड़ी का बनाया दो मंजिला भवन है। हालांकि अब यह जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। कहा जाता है कि पूर्व में इसमें तंत्र विद्या, ज्योतिष के शिक्षार्थी रहते थे। मंदिर से पूरब चातुश्चरण यज्ञ किया तालाब है।

11 Shivling Temple in Bihar

तालाब के पश्चिमी घाट के पीछे श्राद्ध स्थली है। ऐसी मान्यता है कि बहुत से गरीब लोग अपने पितरों का गया में श्राद्ध करने की इच्छा रहने के बाद भी नहीं जा पाते थे। उनके लिए यहां तंत्र विद्या से अभिसंचित श्राद्ध स्थली बनाई गई। यहां पिंडदान करने पर गया जाने जैसा फल मिलता है। शिवमंदिर के सामने पंडित मुनेश्वर झा जो तंत्र साधक थे द्वारा स्थापित भगवती भुवनेश्वरी एक मंदिर में विराजमान हैं।सावन में यहां हजारों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। यहां बाबूबरही के पिपराघाट स्थित कमला, बलान व सोनी के संगम से जल लेकर कांवरिए आते हैं। कांवरियों की सुविधा के लिए सावन की प्रत्येक सोमवारीको चार बजे दिन तक जलाभिषेक की व्यवस्था रहती है। चार से साढ़े छह बजे तक षोडषोपचार पूजा की जाती है। बाबा भोलेनाथ का श्रृंगार नयनाभिराम होता है।

11 Shivling Temple in Bihar

ऐसे पहुंचें मंगरौनी

मधुबनी जिला मुख्यालय से लगभग पांच किमी की दूरी पर यह शिवालय है। आप मधुबनी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से रिक्शा, ऑटो या निजी वाहन से मंदिर परिसर तक पहुंच सकते हैं। कहा-पुजारी आत्माराम ने ‘यहां आने वाले भक्तों की हरेक मनोकामना बाबा एकादशरूद्र पूरी करते हैं। इन शिवलिंगों के स्पर्श मात्र से मन को अद्भुत शांति मिलती है। महाशविरात्रि में मिथिला पंरपरा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह का आयोजन होता है। यहां की परंपरा के अनुसार चार दिन तक विशेष विवाह श्रृंगार कादर्शन शिवभक्त करते हैं।चौथे दिन यह श्रृंगार हटा कर शिवलिंग की विशेषपूजा की जाती है। प्रत्येक सोमवार को होने वाले यहां के भंडारा में जो भोजन करता है वह पेट रोग से मुक्त हो जाता है। यहां एक साथ शिव के विभिन्न रूपों का दर्शन शिवभक्तों को अलौकिक आनंद देता है।’

बिहार में खुल गया 8 वीं तक का स्कूल

आज बिहार में कक्षा 1 से 8 तक का स्कूल खुल गया है
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्य सरकार ने प्राथमिक विधालय से लेकर कॉलेज तक को बंद कर दिया था ।
कोरोना का लहर कमजोर पड़ने पर जुलाई में राज्य सरकार ने कॉलेज और 11 वीं तक की कक्षा को खोल दिया था और आज से कक्षा 1 से 8 वीं तक का स्कूल आज यानी 16 अगस्त से खुल गया । छोटे बच्चों के स्कूलों को लेकर सरकार ने सुरक्षा को लेकर विशेष सावधानी के निर्देश दिए हैं। नए आदेश के तहत बच्चों से शिक्षक की दूरी पर भी विशेष ध्यान देने को कहा गया है। बुक से लेकर बच्चों की अन्य पाठ्य सामग्री को हाथ लगाने से पहले शिक्षक को हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना होगा।
जो भी स्कूल इस आदेश का अनुपालन नहीं करेगा उस पर कठोर कारवाई की जायेगी ।

संसद की कार्यशैली जिम्मेवार

संसद के कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायधीश ने उठाया सवाल कहा मुकदमे को लेकर कोर्ट पर दवाब संसद के कार्यशैली की वजह से बढ़ा है।

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सीजेआई एनवी रमना ने आज कहा है कि ‘ऐसा लगता है कि आज संसद में कानून बनाते समय गुणवत्ता वाली बहस का अभाव होता है। इससे बहुत सारी मुकदमेबाजी होती है और अदालतें गुणवत्तापूर्ण बहस के अभाव में नए कानून के पीछे की मंशा और उद्देश्य को समझ पाने में असमर्थ रहते हैं।’ जस्टिस रमना के मुताबिक ‘कानूनों में बहुत अस्पष्टता’ की वजह से मुकदमेबाजी को बढ़ावा मिला है, जिससे नागरिकों के साथ-साथ अदालतों और दूसरे संबंधित लोगों के लिए भी परेशानियां पैदा हुईं।

चीफ जस्टिस ने साफ शब्दों में कहा कि, ‘कानूनों में कोई स्पष्टता नहीं है। हम नहीं जानते कि कानूनों को किस उद्देश्य से बनाया गया है। इसके चलते ढेर सारी मुकदमेबाजी होती है, सरकार को परेशानी और नुकासन होता है, साथ ही साथ लोगों को भी परेशानी होती है। अगर सदनों में बुद्धिजीवी और वकील जैसे पेशेवर न हों तो यही होता है।’ जस्टिस रमना ने कहा कि आजादी के बाद संसद में बड़ी संख्या में वकील मौजूद होते थे और शायद इसी वजह से गुणवत्तापूर्ण बहस होते थे। उन्होंने कहा है कि ‘वकील समुदाय को फिर से सार्वजनिक जीवन में समर्पित होना चाहिए और संसदीय बहसों में बदलाव लाना चाहिए।’

२१वीं सदी में कहाँ खड़ा है बिहार ।

90 का वो दशक था जब मैं बड़ी हो रही थी और सक्रियता से अपने आस-पास के माहौल का अवलोकन कर रही थी। सरकारी उच्च विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में ना के बराबर कक्षाएं चल रही थी। इसलिए ‘अच्छे’ बच्चे उसमें जाना नहीं चाहते थे। आर्थिक वातावरण भी मंदा था। उच्च मध्यमवर्गीय एवं उच्चवर्गीय बच्चे उभरते हुए अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों (जिसमें काम चलाने योग्य शिक्षक कम वेतन पर पढ़ाते थे) में जाते थे। जो परिवार कर सकते थे, वो बच्चों के चलते किसी तरह आर्थिक जुगाड़ करके राज्य से बाहर भेजने की कोशिश में रहते थें। अपहरण के उस दौर में ऐसा करना उनके लिए मजबूरी भी थी जो भी थोड़ा बहुत कमाते थे। और इस तरह घर छूटने की शुरुआत हो जाती थी। हालांकि उस समय इसे स्टेटस सिंबल माना जाता था (लेकिन, बाद में समझ में आया कि अपने ही राज्य में अवसर क्यों नहीं उपलब्ध थे, चाहे अच्छी शिक्षा के लिए हो या काम के लिए)!


और, इस मामले में भी लड़का व लड़की में अंतर किया जाता था। सामान्यतः लड़कियां लड़कों से कमतर समझी जाती थीं। बेटा न हुआ तो उस परिवार को बेचारगी की दृष्टि से देखा जाता था। गुंडे-मवालियों का मन बढ़ जाता था और ऐसे परिवार (अगर तथाकथित पिछड़ी जाति के हों तो और मुश्किल) इजी टारगेट होते थे, चाहे वह आय का मामला हो या संपत्ति का।पुलिस-प्रशासन से भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं थी।
खैर बात हो रही थी अवसर की, बाहर भेजे जाने के मामले में भी लड़कियों को पीछे रखा जाता था क्योंकि लड़की को पराया धन माना जाता था और दहेज के लिए पैसे बचा कर रखने की प्रवृत्ति थी जो काफी हद तक अभी भी है। अगर कोई मध्यमवर्गीय परिवार असाधारण रूप से अपनी बेटी को बाहर पढ़ने के लिए भेजने की सोचता तो समाज के लोग कई तरह से समझाने लगते थे जैसे, बाहर जाएगी तो बिगड़ जाएगी, ज्यादा पढ़ लेगी तो उस योग्य वर मिलना मुश्किल हो जाएगा इत्यादि।

लड़का और लड़की में दूरी रखने को कहा जाता था अर्थात लड़के का दोस्त लड़का तथा लड़की की दोस्त लड़की होनी चाहिए। लड़कों से मेल-जोल पर परिवार की भौंहे चढ़े न चढ़े, पड़ोसियों की चढ़ जाती थी। जैसे जैसे लड़की बड़ी होती थी, घर के काम की ट्रेनिंग बढ़ती जाती थी। और हर बात में कहा जाता था कि ससुराल से ताना न सुनना पड़े। लड़कों के लिए अमूमन ऐसा ना था। कपड़ों के मामले में भी लड़कियों को अधिक से अधिक ढका हुआ अच्छा माना जाता था। मुझे खुद याद है कि इन सब चीजों से चिढ़कर मैंने अचानक एक दिन ब्वॉय-कट बाल कटवा लिए थे। फिर जींस का मुझे पता चला तो पापा से इजाजत लेने के लिए बहुत तरीके से प्रयास करने पड़े थे।

लगभग एक दशक बाद कुछ परिवर्तन तो अवश्य हुए हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम तो हुआ है, भले ही काफी हद तक प्रतीकात्मक ही सही। इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है, स्कूली पोशाक में लड़कियों का (झुंड के झुंड में) साइकिल से पढ़ने जाना। पहले के प्रावधानों के अलावा अभी हाल में मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना आदि का प्रावधान किया गया है जिसके पीछे मंशा तो सकारात्मक हो सकती है, लेकिन असल सशक्तिकरण नहीं हो पा रहा है। अगर हम ईमानदारी से यह पूछे कि क्या हमारी आधी आबादी सशक्त होने की राह पर है, उत्तर पता चल जाएगा? और प्रतीकात्मक मैंने इसीलिए कहा क्योंकि असल उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना होना चाहिए, पर ऐसा हो नहीं रहा है। कक्षा में बच्चों का न होना बहुत कुछ कहता है। शिक्षकों की कमी सभी जानते हैं।


बच्चों में किताब पढ़ने का रुझान कम हो रहा है। पुस्तकालय बुरी स्थिति में है या यों कहें कि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। बच्चें पढ़ाई के लिए काफी हद तक निजी कोचिंग संस्थानों/ट्यूशन पर आश्रित हो गए हैं जो कि अच्छा संकेत नहीं है, जैसे यह असमानता को बढ़ाता है। अभी भी अच्छा टैलेंट राज्य से बाहर चला जाता है, जो कि ब्रेन ड्रेन समस्या का परिचायक है। उद्यमिता के अनुकूल माहौल नहीं होने से सरकारी नौकरी पर दबाव बढ़ जाता है और उसके भी अवसर कम हैं।

कुल मिलाकर कहे तो दुनिया जिस गति से आगे बढ़ रही है, बिहार उस मामले में काफी पीछे है। मानव विकास सूचकांक पर हम कहां हैं, सब जानते हैं। एक-डेढ़ दशक में कुछ तो बदलाव बिहार में हुए हैं, लेकिन वह काफी नहीं है। बिहार वर्तमान में देश का सबसे युवा राज्य है, लेकिन कमियों के चलते जनसांख्यिकीय लाभांश उठाने में काफी हद तक असफल हैं।


लेखिका प्रो० लक्ष्मी कुमारी
राजीतिक विज्ञान ,आरा विश्वविधालय

बिहार में बड़ा हादसा हाईटेंशन तार से टकराई नाव ,करंट लगने के 25 लोग झुलसे कई लोग लापता

घटना पटना जिले के कच्ची घाट से जुड़ा हुआ है जहां देर रात रोजमर्रा का काम करके नाव से लौट रहे लोग उस वक्त सकते में आ गये जब गंगा के मझधार में पास कर रहे हाईटेंशन तार से नाव टकरा गयी ।

देखते देखते पूरे नाव में करंट प्रभाव करने लगा जिस वजह से 25 लोग झुलस गये हैं जिसमें दो की हालत गम्भीर है । प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक रात करीब साढ़े नौ बजे एक नाव कच्ची दरगाह से वैशाली के रुस्तमपुर राघोपुर के लिए खुली। उस नाव पर करीब पचास से अधिक लोग सवार थे। गंगा के ऊपर से हाईटेंशन लाइन गुजरी है। गंगा में ऊफान के चलते हाईटेंशन लाइन की ऊंचाई बेहद कम हो गई है। नाव जैसे ही वैशाली सीमा के मझधार में पहुंची, अंधेरा होने के कारण नाविक को पता नहीं चला और नाव की पतवार ऊपर से गुजर रही हाईटेंशन तार से टकरा गई।


हादसे की सूचना मिलते स्थानीय लोगों ने दूसरी नाव से लोगों को मदद पहुंचानी शुरू की। गंगा में कूदे लोगों और करंट से घायल लोगों को किनारे लाकर घायलों को विभिन्न निजी नर्सिंग होम में इलाज के लिए भर्ती कराया।
बचाव एवं राहत कार्य में बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी जुट गए। डीएसपी फतुहा  के अनुसार, घायलों का इलाज पटना के कच्ची दरगाह स्थित अलग-अलग नर्सिंग होम में चल रहा है। गंभीर रूप से घायलों का एनएमसीएच में भी इलाज चल रहा है। घटनास्थल पर पटना सिटी और वैशाली के एसडीओ और एसडीपीओ 4 अधिकारी दल बल के साथ मौजूद हैं। लापता यात्रियों की खोजबीन SDRF की टीम मदद से की जा रही है।

बिहार इस बार भी वीरता पदक से चूका

हर वर्ष की भाती स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के जांबाज पुलिस पदाधिकारियों को दी जाने वाली विरता पुरस्कार( गैलेंट्री पुलिस पदक)में इस बार भी बिहार का नाम नहीं है जबकि विराता पुरस्कार के इतिहास की बात करे तो बिहार हमेशा दो तीन पदक लेता रहा है।

 गृह मंत्रालय हर साल स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश के सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेश की पुलिस सेवा से जुड़े पदाधिकारियों व कर्मियों के लिए पदक की घोषणा करती है। यह पदक चार श्रेणी में दिए जाते हैं। राष्ट्रपति का गैलेंट्री पुलिस पदक, गैलेंट्री पुलिस पदक, राष्ट्रपति का विशिष्ट सेवा पदक व सराहनीय सेवा पदक।

स्वतंत्रता दिवस पर इस वर्ष बिहार के 23 पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों को गृह मंत्रालय की ओर से सेवा पदक के लिए चुना गया है। दो पुलिस पदाधिकारियों को विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक जबकि डीएसपी सुबोध कुमार समेत 21 को सराहनीय पुलिस सेवा पदक दिया जाएगा। आर्थिक अपराध इकाई, पटना में पुलिस निरीक्षक विपिन कुमार सिंह और पटना जिला बल में पुलिस अवर निरीक्षक राम कुमार सिंह को विशिष्ट सेवा पदक के लिए चुना गया है। बिहार के डीजीपी एसके सिंघल ने विशिष्ट व सराहनीय सेवा पदक पाने वाले पुलिस पदाधिकारियों व कर्मियों को बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य

इन्हें मिला सराहनीय सेवा पदक
– सुबोध कुमार, डीएसपी मद्यनिषेध,
– आनंद कुमार सिंह एसआइ सहरसा,
– राज नारायण यादव एएसआइ पटना,
– सुधाकर सिंह, एसआइ पूर्णिया,
– अर्जुन बेसरा एसआइ, रेल कटिहार,
– शत्रुघ्न पटेल, एसआइ कैमूर,
– अरुण कुमार झा, एसआइ दरभंगा,
– कुमार अजीत सिंह, एएसआइ सीआइडी,
– संजय कुमार यादव, एएसआइ सीआइडी,
– उमेश पासवान, एएसआइ एसटीएफ,
– अजय कुमार द्विवेदी, एएसआइ पुलिस मुख्यालय,
– अमेंद्र कुमार गुप्ता, एएसआइ मद्यनिषेध इकाई,
– अनिल कुमार सिंह, हवलदार एटीएस,
– अरुण कुमार सिंह, चालक हवलदार एटीएस,
– मो. रिजवान अहमद, हवलदार बीएसएपी-10,
– विनय कुमार सिंह, हवलदार सिवान,
– लालबाबू सिंह हवलदार बीएसएपी-14,
– बलराम सिंह, चालक सिपाही बीएसएपी-10,
– हरेंद्र कुमार चौधरी, सिपाही नालंदा,
– रामकुमार शर्मा, सिपाही सीआइडी,
– संजय कुमार सिपाही गोपालगंज।

गैलेंट्री पुलिस पदक नहीं मिलने को लेकर जब राज्य के डीजीपी से सवाल किया गया तो कहां कि हमारे राज्य में जांबाज पुलिस अधिकारियों की कोई कमी है कभी कभी ऐसा होता है वैसे विरता पदक का एक अलग ही महत्व है ।

भारत का 75वां स्वतंत्रता दिवस खास होगा , करेंगे दो हेलिकॉप्टर्स पुष्पवर्षा लाल किले पर

रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को जानकारी दी है कि जैसे ही स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा, भारतीय वायु सेना (IAF) के दो Mi-17 1V हेलिकॉप्टर कार्यक्रम स्थल पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा करेंगे

रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को जानकारी दी है कि जैसे ही स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाएगा, भारतीय वायु सेना (IAF) के दो Mi-17 1V हेलिकॉप्टर कार्यक्रम स्थल पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा करेंगे. स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार ऐसा होगा. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पहले हेलिकॉप्टर के कैप्टन विंग कमांडर बलदेव सिंह बिष्ट होंगे, जबकि दूसरे हेलिकॉप्टर की कमान विंग कमांडर निखिल मेहरोत्रा के हाथ में होगी.

स्वतंत्रता दिवस पर राजधानी पटना में हाई अलर्ट: सुरक्षा चाक-चौबंद

राजधानी पटना में 15 अगस्त पर अशांति का खतरा है। इंटेलिजेंस से मिले इनपुट के बाद पटना में हाई अलर्ट कर दिया गया है। झंडोत्तोलन कार्याक्रम के दौरान गांधी मैदान के अंदर से लेकर बाहर तक खुफियां निगरानी कराई जाएगी। चप्पे-चप्पे पर मजिस्ट्रेट, पुलिस पदाधिकारी और पुलिस बल को तैनात किया गया है। ताकि स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन शांतिपूर्ण हो सके। DM और SSP ने संयुक्त आदेश जारी कर सुरक्षा को लेकर विशेष अलर्ट किया है।

पटना के आयुक्त संजय कुमार अग्रवाल का कहना है- ‘किसी भी दशा में अफवाह फैलाने वालों और अशांति पैदा करने वालों का मंसूबा सफल नहीं होगा’। आयुक्त ने तैनात सभी दंडाधिकारी और पुलिस पदाधिकारी को अपने दायित्व का शत-प्रतिशत पालन करने का निर्देश दिया है। साथ ही विशेष रूप से अफवाह फैलाने वाले, शांति भंग करने वाले व्यक्तियों पर पैनी नजर रखने को कहा है।

बोकारो में युवक ने ‘हीर-रांझा’ को छोड़ा पीछे, पत्नी से जुदाई के दर्द में दी जान, जाने क्या है पूरा मामला

Bokaro: बोकारो के सेक्टर 12 थाना क्षेत्र के सतनपुर गांव में युवक (27) आस्तिक महादानी ने अपने ही घर में पंखे के सहारे रस्सी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. घटना के संबंध में बताया जा रहा है कि युवक अपनी पत्नी से जुदा होने का दर्द सह नहीं पाया और आत्महत्या करने पर मजबूर हो गया. दरअसल, मृतक की पत्नी 7 माह की प्रेग्नेंट है. हाल ही में उसकी शादी हुई थी और 4 दिन पहले ही मायके वाले उसे अपने घर ले गए. पत्नी के मायके चले जाने के गम में युवक घुलता रहा, अंत में वह पत्नी वियोग में इस कदर तड़पा कि कुछ और ना सोचते हुए मौत को गले लगा लिया.

सिवान में त्योहार

सिवान जिले में त्योहारों को बहुत उत्साह और उत्साह से मनाया जाता है सभी त्योहार बहुत रंगीन होते हैं और भाईचारे और सामाजिक एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। “छठ पूजा” सिवान का एक बड़ा त्योहार है, जो लोगों के बीच असीम विश्वास से मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से एक हिंदू त्योहार है जिसे साल में दो बार मनाया जाता है। यह एक बार चैत्र के महीने में मिलता है, जो गर्मियों में है, और एक बार कार्तिक के महीने में, यह सर्दियों की शुरुआत के दौरान है। यह त्योहार सूर्य भगवान को खुश करने के लिए किया जाता है, जिसे स्थानीय तौर पर सूर्य षस्ठी कहा जाता है।

विरासत, कला और संस्कृति बिहार की पूंजीः नीतीश

बिहार के दरभंगा, मधुबनी और मुजफ्फरपुर समेत करीब 17 जिलों के किसानों के दिन अच्छे आने वाले हैं। क्योंकि अब इन जिलों में उत्पादित होने वाला मगही पान का निर्यात (Magahi Paan Exports) दूसरे देशों में भी होगा। बिहार के मगही पान की डिमांड ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में होने लगी है। बिहार का मगही पान (Magahi Paan of Bihar) अभी तक देश के अन्य राज्यों के लोगों के मुंह का जायका ही बनता रहा है।

अंग्रेजों के मुंह का जायका भी बनेगा बिहार का ये पान, अब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी होगा निर्यात

बिहार के दरभंगा, मधुबनी और मुजफ्फरपुर समेत करीब 17 जिलों के किसानों के दिन अच्छे आने वाले हैं। क्योंकि अब इन जिलों में उत्पादित होने वाला मगही पान का निर्यात (Magahi Paan Exports) दूसरे देशों में भी होगा। बिहार के मगही पान की डिमांड ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में होने लगी है। बिहार का मगही पान (Magahi Paan of Bihar) अभी तक देश के अन्य राज्यों के लोगों के मुंह का जायका ही बनता रहा है।

JEE मेन- 2021:चौथे सेशन की परीक्षा के लिए NTA ने फिर ओपन की एप्लीकेशन विंडो, अब 11 अगस्त तक कर सकेंगे आवेदन

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने JEE मेन- 2021 के चौथे फेज की परीक्षा के लिए ऑनलाइन एप्लीकेशन विंडो को दोबारा ओपन कर दी है। एजेंसी ने कैंडिडेट्स की मांगों को ध्यान में रखते हुए JEE मेन 2021 की मई सेशन की परीक्षा के लिए आवेदन वापस लेने या आवेदन करने का एक और मौका देने का फैसला किया।

IPL अपडेट:टीमें कर रही हैं मंजूरी मिलने का इंतजार, अलग-अलग जत्थे में UAE रवाना होंगी टीमें, चेन्नई पहुंचे धोनी

PL-14 फेज 2 के शुरु होने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। धीरे-धीरे सभी टीमें यूएई रवाना होने के लिए अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रही है। आईपीएल-14 के दूसरे फेज के मुकाबले 19 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच यूएई में खेले जाएंगे।

सोना खरीदने का शानदार मौका:46 हजार पर आया सोना, बीते 1 साल में 10 हजार रुपए सस्ता हुआ; चांदी भी 64 हजार के नीचे आई

सोने और चांदी की कीमतों में आज बढ़ी गिरावट देखी जा रही है। वायदा बाजार में आज सोना MCX पर सुबह 11 बजे 556 रुपए कम होकर 46,084 रुपए पर ट्रेड कर रहा है। MCX पर सोना 1.2% गिरकर 4 महीने के निचले स्तर पर आ गया है। वहीं सर्राफा बाजार की बात करें तो इंडियन बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (IBJA) की वेबसाइट के अनुसार आज सोना 1,091 रुपए सस्ता होकर 46,556 रुपए प्रति 10 ग्राम पर आ गया है।

माननीयों के क्रिमिनल केस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त:MP-MLA के क्रिमिनल केस वापस नहीं ले सकेंगी राज्य सरकारें, वापस लिए गए पुराने मामले भी दोबारा खुलेंगे

अब राज्य सरकारें सांसदों और विधायकों पर चल रहे क्रिमिनल केस वापस नहीं ले सकेंगी। इसके लिए संबंधित राज्य के हाईकोर्ट की मंजूरी जरूरी होगी। आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोकने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही। कोर्ट ने सितंबर 2020 के बाद सांसदों-विधायकों के वापस लिए गए केस दोबारा खोलने को भी कहा है।

स्कूल जाने से पहले सबसे जरूरी पाठ:बच्चों! मास्क पहने रहना, किसी से न कुछ लेना न देना, तबीयत जरा भी बिगड़े तो घर पर ही रहना; पेरेंट्स-टीचर्स के लिए भी जरूरी सलाह

देश में कोरोना की दूसरी लहर अब लगभग थम गई है। स्थिति सामान्य होती देख कई राज्यों ने स्कूलों को खोलने का फैसला कर लिया है। कोविड की मौजूदा स्थिति की बात करें तो फिलहाल रोजाना के मामले 40 हजार के आसपास बने हुए हैं। पंजाब और छत्तीसगढ़ ने स्कूल खोल दिए हैं, वहीं उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश 16 अगस्त से स्कूलों को फिर से खोलने की तैयारी में हैं। कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच यह फैसला कितना सही और चुनौतीपूर्ण हो सकता है, इसे लेकर चर्चा जारी है। इन सबके बीच पेरेंट्स के लिए बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा दोनों ही चिंता का विषय बनी हुई है।

विरासत, कला और संस्कृति बिहार की पूंजीः नीतीश

बिहार के दरभंगा, मधुबनी और मुजफ्फरपुर समेत करीब 17 जिलों के किसानों के दिन अच्छे आने वाले हैं। क्योंकि अब इन जिलों में उत्पादित होने वाला मगही पान का निर्यात (Magahi Paan Exports) दूसरे देशों में भी होगा। बिहार के मगही पान की डिमांड ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में होने लगी है। बिहार का मगही पान (Magahi Paan of Bihar) अभी तक देश के अन्य राज्यों के लोगों के मुंह का जायका ही बनता रहा है। लेकिन अब बिहार का यह मगही पान अंग्रेजों (The british) के मुंह का जायका भी बनने जा रहा है। दूसरे देशों में भी पान के शौकीनों (Paan lovers) के बीच बिहार के मगही पान को पहुंचाए जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। मगही पान के निर्यात (Magahi Paan Exports) में कई कम्पनियों ने आगे बढ़कर रुचि दिखाई है। बिहार के मगही पान को जीआई टैग (GI Tag) मिल गया है। जिसके बाद से ही दुनिया भर के देशों में मगही पान की डिमांड (Magahi Paan demand) तेजी से बढ़ गई है।