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सरकारी मानदेय पाने वाले नहीं लड़ सकते है पंचायत चुनाव ,नेपाल की बेटी को नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ

बिहार में पंचायत चुनाव की उलटी गिनती शुरु हो गयी है 24 अगस्त को चुनाव की अधिसूचना जारी होने वाली है। इससे पहले आयोग ने पंचायत चुनाव लड़ने वालो को लेकर एक अर्हता (योग्यता)जारी किया है जिसमें सरकार ने मानदेय पर काम करने वाले कर्मी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।

साथ ही वैसी लड़किया जिसकी शादी भारत में हुई है और वो नेपाल की रहने वाली है ऐसी लड़कियों को नेपााल के जाति प्रमाण पत्र के आधार पर आरंक्षण का लाभ नहीं मिलेगा ।राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी पत्र के अनुसार विशेष शिक्षा परियोजना, साक्षरता अभियान, शिक्षा केंद्रों पर मानदेय पर कार्यरत अनुदेशक, पंचायत के अधिन मानदेय व अनुबंध पर कार्यरत शिक्षा मित्र, न्याय मित्र, विकास मित्र, टोला सेवक व दलपति केंद्र व राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकार से वित्तीय सहायता पाने वाले शैक्षणिक-गैर शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत कर्मचारी, रसोइया व मानदेय पर कार्यरत कर्मी, गृहरक्षक एवं सरकारी वकील भी पंचायत चुनाव नहीं लड सकेंगे और ना ही किसी भी पद के लिए किसी व्यक्ति का प्रस्तावक ही बन सकते हैं।इतना ही नहीं आंगनबाडी केंद्र पर तैनात सेविका व सहायिका भी किसी भी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकेगी और ना ही वे चुनाव मैदान में उतरने वाले अभ्यर्थी की प्रस्तावक ही बन सकेगी।

कौन कौन प्रस्तावक बन सकता है —-

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में किसी पद के प्रस्तावक होने के लिए संबंधित प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के वोटर लिस्ट में नाम होना जरूरी है। वहीं, 21 वर्ष से कम आयु वर्ग वाले किसी का प्रस्तावक नहीं बन सकेंगे। प्रस्तावक बनने के लिए भारत का नागरीक होना जरूरी है। केंद्र व राज्य सरकार सहित किसी स्थानीय प्राधिकार की सेवा में रहने वाले व्यक्ति भी प्रस्तावक नहीं बनेंगे। सक्ष्म न्यायालय द्वारा विकृतचित घोषित व्यक्ति एवं कोर्ट से राजनीतिक अपराध से अलग किसी भी अपराध के लिए छह महिने के कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति किसी का प्रस्तावक नहीं होंगे। वहीं, एक सक्षम व्यक्ति एक ही अभ्यर्थी का प्रस्तावक बन सकेंगे।

चुनाव में ये उतर सकते हैं —-
राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से तय की गई अर्हता के मुताबिक सेवा निवृत सरकारी कर्मी, जनवितरण प्रणाली के लाइसेंसी विक्रेता, कमीशन के आधार पर काम करने वाले अभिकर्ता एवं अकार्यरत गृहरक्षक पंचायत चुनाव के मैदान उतर सकते हैं।

वही मधुवनी के डीएम के पत्र के आलोक में राज्यनिर्वाचन आयोग ने कहा है कि नेपाल की जो भी लड़किया भारत में बिहायी गयी है उसको आरक्षंण का लाभ नहीं मिलेगा

चिराग को बुझाने वाले मेरे पिता जी को भी बुझाना चाहते थे,नीतीश जी राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार और लूट को रोकिए ना जनता खुद सर आँखों पर बिठा लेगा।

चिराग बुझेगा या जलेगा, ये आरसीपी सिंह या फिर नीतीश कुमार के हाथों में नहीं है। उनका वश चलता तो वो मुझे और मेरे पिताजी को कबका बुझा दिए होते ।ये कहना है लोजपा सांसद चिराग पासवान का हाल ही केन्द्रीयमंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह जब जमुई पहुंचे थे तो पत्रकार ने उनके चिराग पासवान को लेकर सवाल किया था तो उस सवाल के जबाव में आरसीपी ने कहा कि जो बुझ चुका है, उसपर क्या बोलना?

हलाकि आरसीपी के बयान पर चिराग इतना पर ही चुप नहीं हुआ आरसीपी और नीतीश कुमार पर चुटकी लेते हुए कहा कि आप मंत्री बन कर आये थे, यह पैसा बाढ़ पीड़ितों पर लगा देते, विकास में लगा देते। जगह-जगह पर होडिंग-पोस्टर लगवाए थे, इतनी ही मेहनत बिहार के विकास में करते तो बेहतर रहता।बिना घूस लिये कोई काम नहीं होता है यही करवाता देते जनता गदगद हो जाती है।

उन्होंने कहा कि सड़क की गुणवत्ता में कमी और कमीशनखोरी जैसी समस्या जमुई ही नहीं पूरे प्रदेश की है। इसलिए इसकी मिसाल हम जमुई से कायम करना चाहते हैं। किसी भी सड़क के निर्माण में कोई समझौता किए बिना गुणवत्तापूर्ण निर्माण हो इसके लिए पदाधिकारियों को भी इमानदारी पूर्वक निष्ठा के साथ कार्य करने के लिए कहा गया है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए फायदा हो।

उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण सड़क का निर्माण नहीं होने की वजह से गुणवत्ता में समझौता करने की वजह से आज जो सड़क बनी उसके पहले का हिस्सा टूटने लगता है। पहली बरसात में ही सड़क की हालत जर्जर हो जाती है। बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट के माध्यम से भी मैंने इस समस्या को बिहार सरकार के संज्ञान में देने का काम किया।बिहार की सबसे बड़ी समस्या है कि बिना घूस दिए कोई कार्य नहीं होता इन तमाम चीजों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी राज्य सरकार और जिला प्रशासन क्यों खामोश है ये मेरे समझ से परे है।

नाम का डबल इंजन की सरकार है

बहरहाल अपने समझ से जितना होता है मैं जिला प्रशासन व मुख्यमंत्री के संज्ञान में देने का कार्य करता हूँ। मैंने सभी अधिकारियों से आग्रह किया है कि हमलोग पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ कार्य करें। डबल इंजन की सरकार हैं तो आपकी पास पूरी ताकत है न केंद्र का पूरा सहयोग है। कौन सी ऐसी योजना है जिसमें दोनों का सहयोग नहीं है।उसके बाद भी इंफ्रास्ट्रक्चर की ऐसी स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन राज्य सरकार से हमारी यह शिकायत रही है कि केंद्र सरकार की योजनाएं प्रदेश में पूर्णतः धरातल पर नहीं उतर पाई है। डबल इंजन की सरकार होने का मतलब यही है न की दोनों का तालमेल इतना खूबसूरत हो कि राज्य सरकार की कोई योजना केंद्र में लंबित न हो और केंद्र सरकार की कोई योजना राज्य में लंबित न हो। उसके बाद भी कहीं न कहीं अड़चन आती है तो डबल इंजन की सरकार पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगता है।

कोविड टीकाकरण में पटना राप्ट्रीय स्तर पर 10 स्थान बरकरार

कोविड-19 टीकाकरण में पटना जिला ने न केवल बिहार प्रदेश में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल कर नया रिकॉर्ड कायम किया है। जिसका चरणबद्ध विवरण निम्नवत है-

1/ पूरे देश के 754 जिलों में पटना जिला का सर्वाधिक टीकाकरण में दसवां स्थान बरकरार है।
1/ मुंबई 8628757
2/बृहद मंगलूर 8326267
3/पुणे7111246
4/कोलकाता5288244
5/चेन्नई 4501791
6/अहमदाबाद4418468
7/थाणे 4176939
8/24 परगना3619551
9/हैदराबाद3538561
10/पटना3509731

2/ बिहार राज्य में टीकाकरण की सर्वाधिक प्रतिशतता (पहला एवं दूसरा दोनों डोज में) पटना नंबर वन जिला

पहला डोज
पटना 59.7%, भागलपुर 43.7%, पूर्णियां 40.9% शिवहर 40.2% नालंदा 39.5%

दूसरा डोज में भी सर्वाधिक प्रतिशतता
पटना 21%
शिवहर9.1%
नालंदा 8.8%
पूर्णिया 8.5%
भागलपुर 8.5%

टीकाकरण के पहला एवं दूसरा डोज की प्रतिशतता में पटना जिला की प्रतिशतता राज्य की प्रतिशतता से भी आगे।
पहला डोज
राज्य का 37.2%
पटना जिला का 59.7%
दूसरा डोज
राज्य का 7.3%
पटना जिला का 21%

3/ * 45 प्लस के टीकाकरण के पहले एवं दूसरे डोज में पटना जिला का राज्य स्तर पर पहला स्थान*

पहला डोज
पटना 66%
शिवहर 58.1%
नालंदा 53.6%
भागलपुर 17.3%
पूर्णिया 17.3%

45 प्लस के टीकाकरण के दूसरे डोज मे भी पटना जिला का पहला स्थान
पटना 32.2%
शिवहर 20.5%
नालंदा 17.8%
भागलपुर 17.3%
पूर्णिया17.3%

45 प्लस के टीकाकरण के पहला एवं दूसरा डोज मैं पटना जिला की प्रतिशतता राज्य से भी अधिक।
पहला डोज
राज्य का 46%
पटना जिला का 66%
45 प्लस का दूसरा डोज में
राज्य का 14%
पटना जिला का 32.2%

4/ 18 से 45 आयु वर्ग के व्यक्तियों के टीकाकरण के पहला एवं दूसरा दोनों ही डोज में राज्य स्तर पर पटना जिला का पहला स्थान

पहला डोज
पटना 51.2%
भागलपुर 36.73
सारण 32.2
पूर्णियां 31.06
पूर्वी चंपारण 30.88
18 से 45 आयु वर्ग के दूसरे डोज में पटना जिला का पहला स्थान
पटना 11.10%
पूर्वी चंपारण2.87%
पूर्णिया 2.61%
सारण2.57%
भागलपुर2.51%
18 से 45 आयु वर्ग के टीकाकरण के पहले एवं दूसरे डोज में पटना जिला की प्रतिशतता राज्य की प्रतिशतता से भी अधिक
पहला डोज
राज्य का 30.22%
पटना जिला का51.20%
द्वितीय डोज में
राज्य का 2.11%
पटना जिला का11.10%

5/ पटना शहर में शत प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त किया गया है। इसके तहत कूलर 1440613 व्यक्तियों का टीकाकरण किया गया जो लक्ष्य का 100.23% है।

जिला की महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए जिला अधिकारी डॉ चंद्रशेखर सिंह ने कर्मियों तथा जिला वासियों को बधाई दी है तथा दोगुने उत्साह से कार्य कर जिला को टीकाकरण से शत प्रतिशत आच्छादित करने को कहा है।

उक्त तमाम उपलब्धियों को प्राप्त करने हेतु जिलाधिकारी द्वारा लोगों की जरूरत एवं सुविधा को ध्यान में रखकर दूरदर्शी पहल करते हुए विशेष टीकाकरण केंद्र, 24×7 केंद्र की स्थापना, टीका एक्सप्रेस आदि शुरू किए गए तथा जिला वासियों एवं कर्मियों के समन्वित प्रयास से पटना जिला ने राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अद्वितीय एवं अविस्मरणीय कीर्तिमान स्थापित किया है।

6/ विशेष टीकाकरण केंद्र
केंद्र की संख्या 17
टीकाकृत व्यक्ति 1004049
पहला डोज 729955
दूसरा डोज274094

7/24×7 केंद्र की स्थापना
ऐसे तीन केंद्र की स्थापना 6 जून को किया गया जिसका पटना वासी ने भरपूर फायदा उठाया तथा जिला प्रशासन की सुविधा एवं व्यवस्था की सराहना की।
24×7 के रूप में कार्यरत तीनों केंद्रों पर कुल 446700 व्यक्तियों को टीकाकृत किया गया जिसने फर्स्ट डोज 295 110 तथा सेकंड डोज 151590 है।
पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कंपलेक्स 187233
पाटलिपुत्रा अशोक 154324
पॉलिटेक्निक कॉलेज पाटलिपुत्रा 105143 है।

रेशम नगरी भागलपुर पुराने गौरव को प्राप्त करेगा, बनेगा आत्मनिर्भर…उपमुख्यमंत्री

भागलपुर का अतीत और वर्तमान गौरवशाली रहा है। रेशम नगरी भागलपुर अपने पुराने गौरव को प्राप्त करेगा और आत्मनिर्भर बनेगा। बिहार सरकार अपनी योजनाओं के माध्यम से यहां के लोगों की अपेक्षाओं पर खड़ा उतरेगी। उक्त बातें भागलपुर के लाजपत पार्क में आयोजित “आत्मनिर्भर बिहार- भागलपुर की बात” कार्यक्रम में बिहार के उपमुख्यमंत्री श्री तारकिशोर प्रसाद ने कहे।

उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर बिहार के सात निश्चय पार्ट-2 के अंतर्गत बिहार सरकार द्वारा कई महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिसके तहत काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की वैश्विक चुनौती के बीच बिहार ही नहीं समूचे देश में आर्थिक प्रवाह बाधित हुआ है, परंतु इन चुनौतियों के बीच केंद्र सरकार और बिहार सरकार ने मानव जीवन की रक्षा हेतु यथासंभव बेहतर प्रबंध किए। केंद्र सरकार ने लोगों के लिए नि:शुल्क कोरोना टीकाकरण की व्यवस्था सुनिश्चित की, वहीं बिहार सरकार छ: माह में छ: करोड़ लोगों को टीकाकरण करने लक्ष्य के तहत काम कर रही है। उन्होंने कहा कि कोराना की संभावित तीसरी लहर से निपटने के लिए बिहार सरकार तैयार है।

कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि भागलपुर जिले को हवाई अड्डे की सुविधा एवं भोलानाथ पुल के निर्माण हेतु केंद्र सरकार से बातचीत की जाएगी। उन्होंने कहा कि भागलपुर में स्मार्ट सिटी के विभिन्न अवयवों के क्रियान्वयन की तकनीकी बाधाओं को दूर किया गया है। सैंडिस कंपाउंड में स्मार्ट सिटी के सभी कंपोनेंट पर काम हो रहा है। स्मार्ट रोड नेटवर्किंग के तहत कुल 34 सड़कों का पुनर्विकास एवं पुन:संयोजन किया जा रहा है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 30 किलोमीटर है। सड़क जाम से मुक्ति हेतु घंटाघर चौक से आदमपुर चौक, बड़ी खंजरपुर, मायागंज अस्पताल पथ को बाईपास के लिए चयनित किया गया है। भागलपुर शहर में चार वाहन पार्किंग बनाने की कार्रवाई चल रही है। उन्होंने कहा कि विगत 15 वर्षों में सरकार ने बिहार के चतुर्दिक विकास के लिए बेहतर काम किए हैं, जिसके परिणाम धरातल पर दिख रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। गांवों की समृद्धि एवं स्वालंबन के लिए केंद्र सरकार एवं बिहार सरकार ने महत्वपूर्ण योजनाओं को संचालित किया है। उज्जवला योजना, जलापूर्ति योजना, गली-नाली पक्की सड़क योजना सहित विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से गांवों की खुशहाली और समृद्धि के लिए सकारात्मक कदम उठाए गए हैं।

उप मुख्यमंत्री ने कहा कि रेशम नगरी भागलपुर उद्योग और कृषि उत्पादों के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। भागलपुर के प्राचीन गौरव को पुर्नस्थापित करते हुए आत्मनिर्भर बिहार के संकल्पों को हम सबके सहयोग से पूरा करेंगे।

बाढ़ पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करों।

किसानों को बाढ़ में नष्ट फसलों एवं घरों के धराषाई होनें के एवज में आर्थिक मुआवज दो। बाढ़ से निबटने की दीर्घकालीन योजना पर अमल करों। बिहार के बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुँचाने में सरकार पूरी तरह विफल रही है। बेगुसराय, भागलपुर, कटिहार दरभंगा, पुर्वी, पष्चिमी चम्पारण जिलों से जो वीडियों एवं अन्य श्रोतो से सुचनाएँ प्राप्त हो रही हैं, वे मानवीय संवेदनाओं को विचलित करने वाली है।

बिहार सरकार की ओर से बाढ़ से निबटने एवं बाढ़ प्रभावित लोगों को अवासीयी सुविधाओं के साथ – साथ भोजन, शुद्ध पेयजल बीमारों को दबा, बच्चों को दूध उपलब्ध कराने के जो बड़े – बडे़ दावे किये जाते है, वह जमीनी स्तर पर कहीं दिखाई नहीं पड़ता है। बाढ़ पीड़ितों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है। खुद भाजपा के पटना से सांसद रामकृपाल यादव राहत सामग्रियों के बंदर बांट की बात कह रहे है।

एक तो राहत बाढ़ पीड़ितों तक पहुँच नही रहा है और जो पहुँच रहा है, वह भी भ्रष्टाचार की भेट चढ़ जाय तो इस तरह का प्रषासन किस काम का।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मॉ0) की बिहार राज्य कमिटी बिहार के तमाम पार्टी इकाइयों जिला कमिटीयों से बाढ़ पीड़ितों के हक में आवज उठाने एवं अपने स्तर से सम्भव सहायता प्रदान करने का आह्ावान करती है। पार्टी उन तमाम जिला इकाईयों का अभिन्दन करती है जिन्होनें बाढ़ पीड़ितों की दुर्दसा को सरकार के सामने लाया है और अपने स्तर से राहत प्रदान कर रहे है।

ऑनलाइन पोर्टल से आशा एवं आशा फैसिलिटेटर को ससमय भुगतान करने में बिहार को मिल रही सफलता

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने शुक्रवार को यहां बताया कि अब बिहार भी आशा एवं आशा फैसिलिटेटर की प्रोत्साहन राशि ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्रदान करने वाले राज्यों में शामिल हो गया है। पहले आशा एवं आशा फैसिलिटेटर को अपने भुगतान के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था, जिससे कई बार उन्हें कुछ महीने तक अपने भुगतान के लिए इंतजार करना पड़ता था। आशा कार्यकर्ताओं की इस समस्या को दूर करने के लिए बिहार सरकार ने दिसम्बर, 2020 से आश्विन पोर्टल की शुरुआत की। इस पोर्टल के माध्यम से अब आशा एवं आशा फैसिलिटेटर को न सिर्फ ससमय भुगतान हो रहा है, बल्कि वह अपने द्वारा की जा रही गतिविधियों का ब्यौरा भी पोर्टल पर फीड भी कर रही है।

श्री पांडेय ने बताया कि पहले आशा पिछले माह की 26 तारीख से वर्तमान माह की 25 तारीख तक किए गए कार्यों की प्रोत्साहन राशि का ब्यौरा भरती हैं। इसके बाद इसे आशा फैसिलिटेटर हस्ताक्षरित करती है। फिर सम्पूर्ण ब्यौरा माह के अंतिम कार्य दिवस यानी 30 या 31 तारीख तक आशा द्वारा आश्विन पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। आशा दो तरह के कार्य करती हैं। पहला समुदाय आधारित एवं दूसरा संस्थान आधारित. दोनों स्तर पर अधिकतम 63 तरह की गतिविधियां होती हैं, जिसे एक आशा कर सकती है। यदि आशा द्वारा अपलोड की गई गतिविधियां सामुदायिक आधारित होती हैं, तो इसे संबंधित एएनएम 5 तारीख तक सत्यापित करती हैं। यदि गतिविधियां ब्लॉक या अनुमंडलीय फैसिलिटी स्तर की होती हैं तो इसे प्रखंड सामुदायिक उत्प्रेरक( बीसीएम) एवं जिला स्तरीय फैसिलिटी स्तर की गतिविधियां होने पर जिला सामुदायिक उत्प्रेरक(डीसीएम) सत्यापित करते हैं। इसके बाद संबंधित प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी आश्विन पोर्टल पर भरी गयी प्रोत्साहन राशि को सत्यापित कर राज्य स्तर पर भेज देते हैं। इस तरह प्रत्येक महीने के 12 तारीख तक पिछले माह में आशा एवं आशा फैसिलिटेटर द्वारा किए गए कार्यों का भुगतान सुनिश्चित हो जाता है।

श्री पांडेय ने बताया कि दिसम्बर, 2020 से अभी तक अश्विन पोर्टल से आशा एवं आशा फैसिलिटेटर को विगत माह तक 150 करोड़ रुपये से अधिक की प्रोत्साहन राशि की भुगतान की गई है, जो कि कुल देय प्रोत्साहन राशि का लगभग 94 फीसदी हैं। बिहार में फिलहाल 87699 आशा एवं 4261 आशा फैसिलिटेटर हैं। दिसम्बर, 2020 से पहले आशा को भुगतान मैन्युली किया जाता था, लेकिन आशा एवं आशा फैसिलिटेटर की इतनी बड़ी संख्या होने के कारण उनकी गतिविधियों का मैन्युली सत्यापन करने में कठिनाई होती थी, जिसके कारण उनका ससमय भुगतान नहीं हो पाता था, लेकिन आश्विन पोर्टल की शुरुआत होने से आशा एवं आशा फैसिलिटेटर की सभी गतिविधियों का पोर्टल के माध्यम से कम समय में सत्यापन हो रहा है। इससे भुगतान में आसानी हो रही है। आशा कार्यकर्ता उत्साहित हो अपने कार्य को और बेहतर तरीके से कर रही हैं।

पटना हाईकोर्ट ने राज्य के विभिन्न विभागों में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर नियुक्ति को लेकर बीपीएससी के फैसले को किया रद्द

पटना हाईकोर्ट ने राज्य के विभिन्न विभागों में असिस्टेंट इंजीनियर (सिविल इंजीनियरिंग) के पद पर नियुक्ति को लेकर बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा अर्हता प्राप्त उम्मीदवारों की उम्मीदवारी को रद्द किये जाने के मामले पर सुनवाई की। अनामिका आशना व अन्य की याचिकाओं पर जस्टिस चक्रधारी एस सिंह ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि इनकी उम्मीदवारी इस आधार पर रद्द नहीं की जा सकती है कि ये यूनिवर्सिटी द्वारा जारी सर्टीफिकेट प्रस्तुत नहीं कर सके।

कोर्ट ने कहा है कि जैसा कि साक्षात्कार पत्र कहा गया है कि साक्षात्कार के बाद भी यह निर्णय लेने का अधिकार आयोग के पास सुरक्षित है कि कोई उम्मीदवार अपेक्षित शैक्षणिक योग्यता रखता है या नहीं।ऐसी स्थिति में आयोग यह निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होगा कि याचिकाकर्ता बी टेक (सिविल इंजीनियरिंग) की योग्यता आवेदन की अंतिम तिथि को रखते हैं या नहीं।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि आयोग द्वारा 2017 मे जारी विज्ञापन में याचिकाकर्ताओं से इस पद पर बहाली के लिए आवेदन आमंत्रित किया था। तीनों उम्मीदवारों ने पी टी और मेंस की लिखित परीक्षा को पास करने के बाद साक्षात्कार में भाग लिया।

लेकिन बाद में आयोग ने यह कहते हुए इनकी उम्मीदवारी को रद्द कर दिया कि बी टेक का प्रोविजनल सर्टिफिकेट बी आई टी सिंदरी द्वारा जारी किया गया है ,न कि विनोबा भावे यूनिवर्सिटी द्वारा।

आयोग ने साक्षात्कार में सफल उम्मीदवारों की भी उम्मीदवारी को रद्द कर दिया।याचिकाकर्ता का कहना था कि यह भी आश्चर्य की बात है कि विनोबा भावे विश्विद्यालय से पास बहुत से अन्य उम्मीदवार जो कि सिर्फ प्रोविजनल सर्टिफिकेट प्रस्तुत किये थे, उन्हें इस विज्ञापन संख्या – 02/ 2017 में सफल घोषित किया गया था।

हालांकि जब याचिकाकर्ता ने इस बात को अपने रिट याचिका में इस बात की जानकारी दी, तो बी पी एस सी ने उन सभी सफल उम्मीदवारों की भी उम्मीदवारी रद्द कर दी थी। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों के दलीले सुनने के बाद ऐसे सभी उम्मीदवारों के संदर्भ में बी पी एस सी द्वारा उम्मीदवारी निरस्त करने के निर्णय को रद्द कर दिया।

तेज प्रताप परिवार में अलग थलग पड़े लालू का सीधा संदेश अनुशासन तोड़े तो होगी कारवाई ।जगतानंद सिंह को मिली खुली छुट अनुशासन से नहीं करना है समझौता चाहे मेरा बेटा ही क्यों ना हो ।

तेज प्रताप अपने ही जाल में इस तरह से उलझते चले जा रहे हैं कि अब उनके सलाहकार भी उस जाल से बाहर कैसे निकले इसको लेकर हाथ खड़े कर दिये हैं ।भाई तेजस्वी से मुलाकात बेनतीजा रहा तेजस्वी ने तेजप्रताप को किसी भी तरह के स्पेस देने से साफ मना कर दिया है। साथ ही चेतावनी भी दे डाला है कि पार्टी में अनुशासन बनाये रखे नहीं तो आप पर भी कारवाई होगी ।

इस बयान के बाद तेज प्रताप आपा खो दिये और फिर अपने अंदाज में संजय यादव और तेजस्वी को देख लेने की धमकी देते हुए तेजस्वी के आवास से बाहर निकल गये ।

हलाकि इस मामले में सुबह में ही बहन रोहिणी आचार्य ने ट्वीट के सहारे तेज प्रताप को परिवार की क्या इक्छा है ये जता दिया था , सफलता की मंजिल पानी है, अनुशासन और संयम को अपनाना है।फिर भी तेज प्रताप अपने व्यवहारा में सुधार लाने को तैयार नहीं है।

वही लालू प्रसाद सहित परिवार के अधिकांश सदस्य तो ये समझ में आ गया है कि इस खेल में मुख्यमंत्री आवास में तैनात के सीनियर अधिकारी शामिल है जो तेज प्रताप के हर पैरवी को एंटरटेन भी करता है और उसके कहने पर तेज प्रताप के साथ रहने वाले लोगों को ठीकेदारी दिलाने में भी मदद कर रहा है।

हलाकि यह खेल 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले से चल रहा है लेकिन लालू प्रसाद परिवार में टूट को लेकर कोई संदेश ना जाये इसका ख्याल रखा और तेज प्रताप के हर जायज नजायज बात को मानता रहा हलाकि अब लालू प्रसाद मन बना चूंके हैं कि तेज प्रताप की जो राजनैतिक शैली है उससे तेजस्वी को खासा नुकसान हो सकता है इसलिए तेज प्रताप को लेकर निर्णय लेने का वक्त आ गया है क्यों कि अभी हाल फिलहाल में कोई चुनाव भी होने वाला नहीं है और फिर अनुसाशन को लेकर लालू यह संदेश भी देना चाहते हैं कि मेरा बेटा ही क्यों ना हो बर्दास्त नहीं करेंगे ।

इस संदेश से आने वाले समय में तेजस्वी को बिहार की राजनीति में अलग पहचान बनाने में मदद मिलेगी क्यों कि परिवार को पता है कि कभी तेज प्रताप जैसी शैली साधू और सुभाष का भी रहा करता था जिसके नुकसान से आज भी राजद बाहर निकल नहीं पाया है ।

नीतीश कुमार के गुगली में बिहार बीजेपी बोल्ड , जनसंख्या नियंत्रण कानून के सहारे नीतीश को घेरने की तैयारी शुरु बीजेपी नेता सीएम और राज्यपाल से मिलने की बनायी रणनीति

जातीय जनगणना मामले में बिहार बीजेपी नीतीश कुमार के गुगली में फंस गया 23 अगस्त को जातीय जगगणना मामले में पीएम से मिलने जा रहे प्रतिनिधि मंडल में अब बीजेपी भी शामिल होगी ।मीडिया से बात करते हुए बिहार प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायासवाल ने कहा कि PM नरेंद्र मोदी से 23 अगस्त CM नीतीश कुमार के साथ जा रहे प्रतिनिधिमंडल में भाजपा कोटे के मंत्री भी शामिल होंगे ।

हलाकि जातीय जनगणना को लेकर बिहार बीजेपी के तमाम बड़े नेता विरोध करते रहे हैं लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के इस बयान के बाद यह तय हो गया कि बिहार बीजेपी बिहार में जातीय राजनीति के जाल में बाहर निकलने में नाकामयाब रहा हलाकि इसको लेकर बीजेपी के अंदर घमासान मच गया है और केन्द्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करने को कहा है कल आर्शीवाद यात्रा की शुरुआत करने गया पहुंचे केन्द्रीयमंत्री आरके सिंह ने कहा था कि जातिगत राजनीति’ करने वाले ही ‘जातीय जनगणना’ की कर रहे हैं मांग केन्द्रीयगृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय तो पहले ही लोकसभा में जातीय जनगणना के विरोध में बयान दे चुके हैं वैसे इस मामले में सहकारिता मंत्री सुभाष सिंह ने कहा था- ‘इससे सामाजिक तनाव होगा।’ इसी तरह मंत्री नीरज सिंह बबलू ने भी जातीय जनगणना से पहले जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की मांग की थी। हलाकि नीतीश कुमार के इस गुगली पर भेल ही बीजेपी बोल्ड हो गया है लेकिन अब बिहार में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर नीतीश पर दबाव बढ़ाने कि कोशिश बीजेपी आज से शुरु कर दी और जल्द ही बिहार बीजेपी का एक प्रतिनिधिमंडल सीएम और राज्यपाल से मिलने जा रहा है ।

एक गांव ऐसा जहां हिन्दू भी मुहर्रम मनाते हैं

बिहार के बांका जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां एक भी घर मुस्लिम नहीं है फिर भी पूरा गांव बुराई पर अच्छाई की जीत , शहादत और कुर्बानी की प्रतीक #मुहर्रम पर्व पूरे धूमधाम से मनाता है हम बात कर रहे हैं बांका जिले के अमरपुर प्रखंड स्थित तारडीह गांव का जहां आज सुबह से ही पूरे गांव का नराजा बदला बदला सा दिख रहा है । पूरे गाँव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहने के बाबजूद वहाँ रह रहे हिन्दू परिवार पिछले कई वर्षों से मुहर्रम धूमधाम से मना रहे हैं l इस पर्व को मानाने की शुरुआत 1990 में अमरपुर विधानसभा से विधायक रहे स्व. माधो मण्डल के पिता ने की थी। तब से उनके बंशज इसे आज तक मनाते आ रहे हैं। माधो मण्डल के पुत्र शंकर मण्डल ने बताया कि उनके दादा जी को कोई संतान नहीं हो रही थी, तब उन्होंने मजार पर जाकर मन्नत मांगी और मन्नत पूरा होने पर इस पर्व की शुरुआत की गयी l इसमें ग्रामीणों का काफ़ी सहयोग मिलता है l इस पर्व में स्थानीय लोग मुस्लिम रीतिरिवाज के लिये गाँव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहने के कारण दूसरे गाँव से मौलवी को बुलाकर परम्परा का निर्वहन करते हैं l

सुबह से ही तारडीह वाले गाँव से पांच किलोमीटर दूर मुस्लिम आबादी बाले गाँव में जाकर पहलाम करते हैं एवं आपस में भाईचारा का संदेश देते हैं l हालांकि इस बार कोविड नियमों की वजह से जुलूस का आदेश नहीं मिलने के कारण शांतिपूर्ण तरीके से गाँव में ही पहलाम करेंगे lहलाकि बिहार के कई इलाकों में मुस्लिम इसी तरीके से गांव के गांव छठ पर्व करते हैं ।

तेज प्रताप के आचरण से लालू नराज, तेजस्वी को बुलाया दिल्ली, तेज प्रताप पर हो सकती है कारवाई ।

राजद से अंदर सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है पिछले 24 घंटों के दौरान जिस तरीके से तेज प्रताप तेजस्वी के निजी सहायक संजय यादव और प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह को निशाने पर ले रहे हैं ऐसे में यह तय हो गया है कि अब पार्टी में तेज प्रताप बहुत कम दिन के मेहमान रह गये हैं ।

क्यों कि तेज प्रताप के आचरण से लगातार पार्टी को नुकसान हो रहा है और इस बात को लालू प्रसाद और तेजस्वी भी पूरी तौर पर समझ रहे हैं तेज प्रताप के कारण है पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में राजद को कई सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था ऐसे में तेज प्रताप के कार्यशैली पर रोक नहीं लगाया गया तो पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है ।वही खबर ये आ रही है कि तेज प्रताप मीडिया से बात करते हुए जिस अंदाज में जगतानंद सिंह और संजय यादव को लेकर सार्वजनिक रुप से टिप्पणी किया है उससे लालू प्रसाद खासे नराज है और कल तेजस्वी को दिल्ली बुलाया है ।

इस बीच खबर ये आ रही है कि मनोज झा सहित पार्टी के तमाम बड़े नेता की कल रात एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी जिसमें यह तय हुआ है कि तेज प्रताप को लेकर अब पार्टी नरम रुख अख्तियार नहीं करेंगी क्यों कि तेज प्रताप के व्यवहार से कांग्रेस सहित महागठबंधन के तमाम सहयोगी दल नराज है और परिवार के अंदर भी मीसा भारती को छोड़ दे तो पूरा परिवार तेज प्रताप के व्यवहार से नाखुस है ऐसे में परिवार पूरी तौर पर तेजस्वी के साथ खड़ा है ।

वैसे आज रात या फिर कल सुबह तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच बातचीत हो सकती है हलाकि बातचीत के सहारे बहुत कुछ बदलने वाली है लालू परिवार लगभग तय कर लिया है कि तेज प्रताप को राजनीति से साइड कर दिया जाये वैसे राबड़ी इस फैसले को लेकर सहज नहीं है फिर भी सवाल तेजस्वी के राजनैतिक भविष्य से जुड़ा हुआ है ।

जिस तरीके का आचरण तेज प्रताप का है ऐसे में पार्टी के साथ साथ तेजस्वी का राजनैतिक भविष्य अब दाव पर लग गया है । लालू प्रसाद के पास अब कोई विकल्प नहीं बच गया है पार्टी के तमाम बड़े नेता तेज प्रताप के व्यवहार से नराज है अब तो यहां तक चर्चा होने लगी है कि जगतानंद सिंह पार्टी के लिए जब अपने बेटा के खिलाफ खड़े हो गये थे तो लालू प्रसाद खड़े क्यों नहीं हो रहे हैं ऐसे में तेज प्रताप को लेकर पार्टी कोई कठोर निर्णय ले ले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।

नागेन्द्र जी की छुट्टी सुशील मोदी युग का अंत माना जा रहा है, 2020 में एनडीए सरकार गठन के बाद नागेन्द्र जी सबसे मजबूत केन्द्र के रुप में उभरे थे।

बिहार प्रदेश बीजेपी के संगठन महामंत्री नागेन्द्र जी का बिहार से छुट्टी बिहार बीजेपी में सुशील मोदी युग के समापन के रुप में देखा जा रहा है । 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरीके से बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने नंद किशोर यादव, प्रेम कुमार और सुशील मोदी को मंत्री पद से बाहर का रास्ता दिखाया, उसी दिन से यह कयास लगाये जाने लगा था कि भाजपा अब बिहार में सुशील मोदी के प्रभा-मंडल से बाहर निकलना चाहता है। लेकिन सुशील मोदी की पार्टी ,संगठन और विधायक पर इतनी मजबूत पकड़ है कि चाह करके भी केन्द्रीय नेतृत्व बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है।

इस बात को लेकर सुशील मोदी के खिलाफ जो एक गुट तैयार किया जा रहा है, वो नागेन्द्र जी से खासे नराज चल रहे थे क्योंकि नागेन्द्र जी संघ और बीजेपी के बीच सेतू के पद पर थे। इसलिए बिहार बीजेपी के नेता बहुत कुछ कर नहीं पा रहे थे क्योंकि नागेन्द्र जी 2011 से प्रदेश के संगठन महामंत्री हैं और आज बीजेपी की केन्द्रीय नेतृत्व पार्टी के जिस नेता को मोदी के खिलाफ खड़ा करना चाह रही है, वो नागेन्द्र जी के प्रभामंडल के सामने टिक नहीं पा रहे थे ।

ऐसे में केन्द्रीय नेतृत्व नागेन्द्र जी को बिहार से बाहर किये बगैर सुशील मोदी युग को खत्म नहीं कर पा रहा थे, वहीं नागेन्द्र जी की संघ के अंदर ऐसी छवि थी कि सीधे सीधे इनको हटाया भी नहीं जा सकता था। इसलिए इन्हें बिहार और झारखंड का क्षेत्रीय महामंत्री नियुक्त किया गया और इनका मुख्यालय पटना से रांची बना दिया गया। फिर इनके जगह पर जिन्हें लाया गया है, वो नरेन्द्र मोदी के करीबी हैं और गुजरात से हैं। ऐसे में नागेन्द्र जी उंचे ओहदे पर होने के बावजूद बहुत कुछ कर नहीं पायेंगे।

मतलब, बिहार में बीजेपी सभी स्तर पर ऐसे पदाधिकारी और नेता का कद छोटा करने में लगी है, जिनका रिश्ता सुशील मोदी और नीतीश कुमार से है। ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि बीजेपी बिहार में चाहती क्या है? नीतीश के साथ सरकार में है और वहीं नीतीश सहजता से सरकार ना चला सकें, ये भी खेल हो रहा है। देखिए, आगे आगे होता है क्या, लेकिन इतना तय है कि अब बीजेपी नीतीश को शासन व्यवस्था चलाने में खुली छुट देने के मूड में नहीं है।

अब घर बैठे जान सकते हैं खून की उपलब्धता, ब्लड बैंकों का हुआ डिजिटलीकरण

पटना, 19 अगस्त। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने गुरुवार को यहां बताया कि राज्यवासी अब घर बैठे खून की उपलब्धता जान सकते हैं। इसके लिए राज्य के 89 ब्लड बैंकों का डिजिटलीकरण किया गया है, ताकि लोगों को ब्लड मिलने में आसानी हो सके। स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस दिशा में पहल करते हुये राज्य के कुल 94 ब्लड बैंकों के 89 ब्लड बैंकों को ई-रक्तकोष से जोड़कर इनका डिजिटलीकरण किया गया है। दूसरी ओर राज्य के 10 जिलों में 10 नए ब्लड बैंक भी बनाये जा रहे हैं, ताकि खून की उपलब्धता में कमी न हो।

श्री पांडेय ने कहा कि ब्लड कलेक्शन को बढ़ाने के लिए नए ब्लड कलेक्शन स्टोरेज यूनिट भी स्थापित किए जा रहे हैं। ब्लड स्टोरेज यूनिट के मामले में राज्य सरकार ने काफ़ी प्रगति की है। वर्ष 2016-17 में राज्य में केवल 8 ब्लड स्टोरेज यूनिट थे, जो अब बढ़कर 68 हो गए हैं। वहीं, राज्य में वर्ष 2017-18 में 46, 2018-19 में 54 एवं 2019-20 में 58 ब्लड स्टोरेज यूनिट थे। इस तरह पांच सालों में कुल 60 नए ब्लड स्टोरेज यूनिट की शुरुआत हुई है। आने वाले समय में इसकी संख्या 108 तक बढ़ाने की कार्ययोजना है। अभी राज्य में कुल 94 ब्लड बैंक क्रियाशील है। इसमें जिला अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज सहित कुल 38 सरकारी ब्लड बैंक तथा 5 रेड क्रॉस समर्थित एवं 51 निजी ब्लड बैंक हैं। अब राज्य के 10 जिलों में 10 नए ब्लड बैंक की शुरुआत होगी। इसमें अररिया, अरवल, सुपौल, पूर्वी चंपारण, शिवहर, बांका एवं भागलपुर के जिला अस्पतालों में नए ब्लड बैंक स्थापित किये जाएंगे। पटना के गुरु गोविन्द सिंह अस्पताल, गया के जेपीएन अस्पताल एवं दरभंगा के बेनीपुर अनुमंडलीय अस्पताल में भी नए ब्लड बैंक का निर्माण पूरा किया जाएगा। अररिया, अरवल, बांका एवं भागलपुर जिले में ब्लड बैंक का निर्माण अंतिम चरण में है।

श्री पांडेय ने कहा कि ई-रक्तकोष ब्लड बैंकों के कार्य प्रवाह को जोड़ने, डिजिटलीकरण और सुव्यवस्थित करने की एक पहल है। खून की आकस्मिक जरूरत होने पर ब्लड बैंकों पर लोगों की निर्भरता बढ़ जाती है। ऐसे में ब्लड बैंकों की खून की पर्याप्त उपलब्धता कई मरीजों के लिए जीवनदायनी साबित होती है। ब्लड बैंकों में खून की उपलब्धता अधिक से अधिक रक्तदान करने से सुनिश्चित होती है। इसलिए लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए जरूर आगे आना चाहिए। नियमित रक्तदान करने से ह्ृदय रोगों से भी बचाव होता है। रक्तदान करने से एक व्यक्ति लगभग 3 से 4 मरीजों की जान बचा सकता है।

खेलो को बढ़ावा देना जरूरी कहा मंत्री सुमित कुमार सिंह ने

खेलो को बढ़ावा देना जरूरी कहा सुमित कुमार सिंह ने। चकाई सोनो प्रखंड अंतर्गत उच्च विद्यालय व उत्क्रमित उच्च विद्यालयों में विद्यालय प्रबंध समिति के गठन को लेकर बुधवार को प्लसटू उच्च विद्यालय सोनो के सभागार में आयोजित बैठक में राज्य के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री सह स्थानिय विधायक सुमित कुमार सिंह ने हिस्सा लिया। विद्यालयों में अब तक किए गए कार्यों और आगे के कार्य योजना की जानकारी लिया एवं प्रबंध समिति गठन को लेकर आवश्यक निर्देश दिया।

इस दौरान विद्यालय के विकास हेतु विद्यालय को क्या चाहिए ? इस संबंध में छात्रों से उनके सुझाव मांगे। साथ ही उन्हें खेल कूद में भी हिस्सा लेने हेतु प्रोत्साहित किया।सुमित कुमार सिंह ने कहा की मेरी इच्छा है कि खेल कूद में भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर यहां के छात्र पहचान बनाएं और देश के लिए मेडल ले कर आएं। इसके लिए जो भी कमी है उसे दूर किया जाएगा। जल्द ही विद्यालय के खेल मैदान के सामने बने मंच पर छत बनाया जाएगा ताकि धूप व बारिश से बचा जा सके।उच्च विद्यालय सोनो में वाई-फाई लगाया जाएगा तथा कंप्यूटर लैब को अपडेट करके छात्रों के उपयोग में लाया जाएगा। इसको लेकर प्रभारी प्रधानाध्यापक प्रशांत कुमार जी को निर्देशित किया कि सभी छात्रों को कम्प्यूटर की शिक्षा के साथ जोड़ना अनिवार्य करें। जो कम्प्यूटर खराब है उसे जल्द से जल्द ठीक करवाएं। बैठक में पंचानंद सिंह जी, चन्द्रशेखर सिंहजी, प्रशांत कुमार जी, रणजीत कुमार जी, कुशेष कुमार शर्मा जी, राजेश कुमार सिंह जी, निरंजन कुमार सिंह जी, सहित कई उच्च विद्यालय व उत्क्रमित उच्च विद्यालयों के प्रभारी प्रधानाध्यापक उपस्थित थे।

भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर के परिवार भीख मांगने को हुए मजबूर

दुनिया जिसे जानती है भोजपुरी के शेक्सपियर के रूप में आज भी उसके परिजन बने हुए हैं _भिखारी भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर के नाम पर हजारों लोग अमीर बन गए आज भी भिखारी ठाकुर के परिजन फटेहाल स्थिति में किसी तरह अपना गुजर-बसर कर रहे हैं उनकी सुध लेने की फुर्सत ना राज्य सरकार को है और ना ही उन संस्थाओं को जो भिखारी ठाकुर के नाम पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ों के अनुदान प्राप्त करते हैं.

लोक संस्कृति के वाहक कवि व भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने वाले भिखारी ठाकुर का जयंती 18 दिसंबर को मनाई जाती है ।लेकिन क्या कोई यकीन कर सकता है कि भक्तिकालीन भक्त कवियों व रीत कालीन कवियों के संधि स्थल पर कैथी लिपि में कलम चलाकर फिर रामलीला, कृष्णलीला, विदेशिया, बेटी-बेचवा, गबरघिचोरहा, गीति नाट्य को अभिनीत करने वाले लोक कवि भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर के परिवार चीथड़ो में जी रहा हो। देश ही नहीं विदेशों में भोजपुरी के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करने वाले मल्लिक जी के परिवार गरीबी का दंश झेल रहा है। यह सच है कि उनके जयंति व पुण्यतिथि पर कुछ गणमान्य पहुंचते हैं, कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, लेकिन यह सब मात्र श्रद्धांजलि की औपचारिकता तक सिमट कर रह जाते हैं। न तो ऐसे किसी आयोजन में भिखरी ठाकुर के गांववासियों का दर्द सुना जाता है न ही उनके दर्द की दवा की प्रबंध की बात होती है।कुतुबपुर दियारा स्थित मल्लिक जी का खपरैल व छप्पर निर्मित जीर्ण-शीर्ण घर आज भी अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है? यही से भिखारी ठाकुर ने काव्य सरिता प्रवाहित की थी और उनकी प्रसिद्धि की गूंज आज भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर सुनाई पड़ रही है।

भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील आज भी अदद चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए भटक रहा,कोई सुधी तक नहीं लेने वाला.भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र सुशील कुमार आज एक अदद चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के लिए मारा-मारा फिर रहा है। दर्द भरी जुबान से सुशील बतातें हैं कि अगर फुआ और फुफा नहीं रहते तो शायद मैं एमए तक पढ़ाई नहीं कर पाता। रोटी की लड़ाई में मेरी पढ़ाई नेपथ्य में चली गई रहती। समहरणालय में चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी की नौकरी के लिए वे आवेदन किये हैं। पैनल सूची में नाम भी है, लेकिन एक साल बीत गए, भगवान जाने नौकरी कब मिलेगी। हाल यह है कि विभिन्न कार्यक्रमों में उन्हें एवं उनके परिजन को मंच तक नहीं बुलाया जाता है।जिस दीपक की लौ से समाज में व्याप्त कुरीतियों और सामयिक संमस्याओं को उजागर करने का महती प्रयास भिखारी ठाकुर ने किया उनकी लौ में आज कई लोग रोटियां सेंक रहे हैं, लेकिन दीपक तले अंधेरे की कहावत चरितार्थ है। दबी जुबान से दिल की बात बाहर आती है कि भिखारी ठाकुर के नाम पर कई लोग वृद्धा पेंशन एवं सुख सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। परिवार को हरेक जरूरत की दरकार है। एक ओर जहां सुशील जीवकोपार्जन के लिए दर-दर भटक रहे हैं वहीं, उनकी पुत्रवधू व सुशील की मां गरीबी का दंश झेल रही है।

भिखरी ठाकुर के इकलौते पुत्र शीलानाथा ठाकुर थे। वे भिखारी ठाकुर के नाट्य मंडली व उनके कार्यक्रमों से कोई रूची नहीं थी। उनके तीन पुत्र राजेन्द्र ठाकुर, हीरालाल ठाकुर व दीनदयाल ठाकुर भिखारी की कला को जिन्दा रखे। नाटक मंडली बनाकर जगह-जगह कार्यक्रम करने लगे। लेकिन इसी बीच उनके बाबू जी गुजर गये। फिर पेट की आग तले वह संस्कार दब गई।अब तो राजेन्द्र ठाकुर भी नहीं रहे। फिलवक्त भिखारी ठाकुर के परिवार में उनके प्रपौत्र सुशील ठाकुर, राकेश ठाकुर, मुन्ना ठाकुर एवं इनकी पत्नी रहती है। जीर्ण-शीर्ण हालात में किसी तरह सत्ता व सरकार को कोसते जिंदगी जिये जा रहे हैं उनके परिजन.लोक साहित्य व संस्कृति के पुरोधा, भोजपुरी के शेक्सपीयर के गांव कुतुबपुर काश, स्थानीय सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे राजीव प्रताप रूढी के सांसद ग्राम योजना के तहत गोद में होता तो शायद पुरोधा के गांव को तारणहार की प्रतिक्षा नहीं होती। गंगा नदी नाव से उस पर छपरा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित कुतुबपुर गांव आज भी अंधेरे तले है। कार्यक्रमों की रोशनी व राजनेताओं का आश्वासन उस गांव को रोशन नहीं कर सका। शायद श्रद्धांजलि सभा और सांस्कृतिक समारोह भी कुछ लोगों तक सीमट कर है। वरन्, सरकार दो फूल चढ़ाने में भी भिखारी ही रहा है। आस-पास दर्जनों गांव, हजारों की बस्ती, तीन पंचायतों में एक मात्र अपग्रेड हाईस्कूल। वह भी प्राथमिक विद्यालय से अपग्रेड हुआ है। प्रारंभिक शिक्षक और पढ़ाई हाईस्कूल तक। आगे की पढ़ाई के लिए नदी इस पर आना होता है। कुछ बच्चे तो आ जाते हैं, बच्चियां कहाँ जाये।

कुतुबपुर से सटे कोट्वापट्टी रामपुर, रायपुरा, बिंदगोवा व बड़हरा महाजी अन्य पंचायतें हैं। लोगों की जीविका का मुख्य आधार कृषि है। अब नदी इनके खेतों को निगलने लगी है। 75 फीसद भूमिखंड में सरयू, गंगा नदी का राग है। टापू सदृश गांव है। 2010 से निर्माणाधीन छपरा आरा पुल से कुछ उम्मीद जगी है, लेकिन फिलहाल नाव से आने-जाने की व्यवस्था है। अस्पताल है ही नहीं। बाढ़ की तबाही अलग से झेलना पड़ता है। प्रत्येक साल किसानों को परवल की खेती में बाढ़ आने पर लाखों-करोड़ों रूपयों का घाटा सहना पड़ता है। सुविधा के नाम पर इस गांव में पक्की सड़क तक नहीं है।छपरा- लोक कलाकार भिखारी ठाकुर जो समाज के न्यूनतम नाई वर्ग में पैदा हुए थे, वे अपनी नाटकों, गीतों एवं अन्य कला माध्यमों से समाज के हाशिये पर रहने वाले आम लोगों की व्यथा कथा का वर्णन किया है। अपनी प्रसिद्ध रचना विदेशिया में जिस नारी की विरह वर्णन एवं सामाजिक प्रताड़ना का उन्होंने सजीव चित्रण किया है। वही नारी आज साहित्यकारों एवं समाज विज्ञानियों के लिए स्त्री-विमर्श के रूप में चिन्तन एवं अध्यन का केन्द्र-बिन्दु बनी हुई है। भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, विषमता, भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। इस तरह उन्होंने देश के विशाल भेजपुरी क्षेत्र में नवजागरण का संदेश फैलाया। बेमेल-विवाह, नशापान, स्त्रियों का शोषण एवं दमन, संयुक्त परिवार के विघटन एवं गरीबी के खिलाफ वे जीवनपर्यन्त विभिन्न कला माध्यमों के द्वारा संघर्ष करते रहे। यही कारण है कि इस महान कलाकार की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। कभी महापंडित राहुल सांकृत्यायन के जिन्हें साहित्य का अनगढ़ हीरा एवं भोजपुरी का शेक्सपीयर कहा था उस भिखारी ठाकुर का जन्म सरण जिले के छपरा जिले के सदर प्रखंड के कुतुबपुर दियारा में 18 दिसंबर 1887 को हुआ को हुआ था। उनके पिता का नाम दलश्रृंगार ठाकुर एवं माता का नाम शिवकली देवी था। भिखारी ठाकुर निरक्षर थे, परंतु उनकी साहित्य-साधना बेमिसाल थी। रोजी-रोटी कमने के लिए वे पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर नामक स्थान पर गये जहां बंगाल के जातरा पाटियों के द्वारा किये जा रहे रामलीला के मंचन से वे काफी प्रभावित हुए, और उससे प्रेरणा पाकर उन्होंने नाच पार्टी का गठन किया।लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के समस्त साहित्य का संकलन अब तक पूरा नहीं हो सका है। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना के पूर्व निदेशक प्रो0 डॉ0 वीरेन्द्र नारायण यादव के प्रयास से परिषद ने रचनाओं का एक संकलन भिखारी ठाकुर ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित किया है, परंतु अभी भी उनके लिए बहुत कुछ किये जाना बाकी है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में उनपर शोध-कार्य चल रहे हैं। कई पुस्तकें भी उनसे प्रकाशित हुई है।

जदयू के प्रदेश कार्यालय में प्रत्येक सप्ताह के 4 दिन विभिन्न विभागों के मंत्री गण करेंगे जनसुनवाई…उमेश सिंह कुशवाहा

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने एक बयान जारी कर कहा है कि नीतीश सरकार के विकास कार्यक्रमों को तेज गति से लागू करने और जनसमस्याओं को त्वरित समाधान करने के लिए पार्टी के प्रदेश कार्यालय में अगले सप्ताह से विभिन्न विभागों के मंत्री गण पार्टी कार्यालय में उपस्थित होकर जन समस्याओं की सुनवाई करेंगे इसके तहत प्रत्येक महीने के प्रत्येक सप्ताह में 4 दिन बिहार सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्री गण जदयू के प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रहेंगे और इस दौरान प्रत्येक सप्ताह के मंगलवार बुधवार गुरुवार और शुक्रवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं अन्य लोगों से संवाद स्थापित करने एवं उनकी समस्याओं को सुनकर उनके निराकरण हेतु बिहार सरकार के विभिन्न विभागों के मंत्रीगण निर्धारित तिथि और समय पर उपस्थित रहेंगे।

इसके लिए बिहार सरकार के सभी माननीय मंत्रियों को पत्र लिखकर सूचित कर दिया गया है ताकि निर्धारित तिथि और समय पर सभी माननीय गण प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रह सकें उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि इस कार्यक्रम के तहत निर्धारित तिथि के दिन 11:30 बजे से तीन विभागों के माननीय मंत्री पार्टी के प्रदेश कार्यालय में उपस्थित रहेंगे उन्होंने बताया कि इसको लेकर माननीय मंत्रियों की कार्यक्रमों की सूची जारी कर दी गई है इसके तहत प्रत्येक मंगलवार को दिन के 11:30 बजे से शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी खान एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के मंत्री लेसी सिंह और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खाँ उपस्थित रहेंगे वही बुधवार को दिन के 11:30 बजे दिन से ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार मध निषेध उत्पाद एवं निबंधन विभाग के मंत्री सुनील कुमार और ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री जयंत राज उपस्थित रहेंगे जबकि गुरुवार को दिन के 11:00 बजे से ऊर्जा विभाग तथा योजना एवं विकास विभाग के मंत्री विजेंद्र यादव परिवहन मंत्री श्रीमती शीला कुमारी और समाज कल्याण विभाग के मंत्री मदन सहनी उपस्थित रहेंगे उसके बाद सप्ताह के शुक्रवार को दिन के 11:30 बजे से भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी जल संसाधन विभाग तथा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मंत्री संजय कुमार झा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के मंत्री सुमित कुमार उपस्थित रहेंगे।

जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि बिहार सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति में जन समस्याओं की सुनवाई की जाएगी उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ आम आदमी अपनी जन समस्याओं को माननीय मंत्री के समक्ष रख सकेंगे ताकि जन समस्याओं का त्वरित गति समाधान की जा सके इसके साथ ही माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जो बिहार में विकास कार्यक्रमों को चलाया जा रहा है उसका लाभ जन-जन तक पहुंचाई जा सके उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि जदयू के प्रदेश कार्यालय में माननीय मंत्रियों की उपस्थिति से बिहार में विकास की गति को तेज करने में सफलता मिलेगी इसी उद्देश्य से इस कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है उन्होंने बताया कि माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिशा निर्देश में पार्टी कार्यालय में विभिन्न विभाग के माननीय मंत्रियों उपस्थिति को सुनिश्चित करने का फैसला किया गया है और इस कार्यक्रम के जरिए बिहार के विकास में तेजी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

तालिबान: दोराहे पर अफ़ग़ानिस्तान और भारत की दुविधा

अफ़ग़ानिस्तान में घड़ी की सुई रिवर्स डायरेक्शन में मुड़ चुकी है। अफ़ग़ानी समाज का उदारवादी प्रगतिशील तबका, जो धार्मिक रूप से सहिष्णु है, नागरिक अधिकारों का हिमायती है, लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखता है और महिलाओं एवं उनके अधिकारों को लेकर प्रगतिशील सोच रखता है, अपने अस्तित्व को लेकर सशंकित है। और, तालिबान को लेकर सशंकित केवल अफ़ग़ानी समाज ही नहीं है, वरन् पूरी-की-पूरी दुनिया डरी और सहमी हुई है। कारण यह कि तालिबान कोई संस्था नहीं है, वरन् सोच और मानसिकता है, ऐसी सोच और मानसिकता, जो आधुनिक काल की तमाम प्रगतियों को नकारती हुई आधुनिकता पर मध्ययुगीनता की जीत सुनिश्चित रहना चाहती है। अफ़ग़ानिस्तान में उदारवादी लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था और उसके मूल्यों को नकारता हुआ तालिबान उसे इस्लामिक धर्म और धर्मतंत्र की गिरफ़्त में लाना चाहता है।

तालिबान के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान का ‘इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफ़ग़ानिस्तान’ में तब्दील होना इसी को पुष्ट करता है। यह प्रतीक है अफ़ग़ानिस्तान में उदारवादी लोकतांत्रिक मूल्यों के अन्त का, महिला अधिकारों एवं मानवाधिकारों की त्रासदी का, अल्पसंख्यक जनजातियों की पहचान के साथ-साथ व्यवस्था में उनके समुचित एवं पर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी की शुरू हो चुकी प्रक्रिया के अवरुद्ध होने का और समावेशी अफ़ग़ानिस्तान के सपनों के धूल-धूसरित होने का।

स्पष्ट है कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान का सच है, ऐसा सच जो अफ़ग़ानिस्तान ही नहीं, वरन् भारत सहित शेष दुनिया के लिए ख़ौफ़नाक और भयावह साबित हो सकता है। तालिबान को लेकर मुसलमानों के एक तबके में उत्साह है, जो और भी भयावह और ख़तरनाक है क्योंकि उन्हें यह लगता है कि तालिबान इस्लामीकरण की प्रक्रिया के ज़रिए मुसलमानों के धार्मिक वर्चस्व को सुनिश्चित करेगा और पूरी दुनिया में शरीयत को लागू करेगा। उनकी आँखें तब भी नहीं खुल रही हैं जब वे देख रहे हैं कि राजधानी काबुल पर क़ब्ज़े के बाद वहाँ से भागने वाले लोगों में ग़ैर-मुस्लिमों की तुलना में मुसलमान कहीं अधिक हैं। और, ऐसा नहीं कि यह सब अनपेक्षित है। फ़रवरी,2020 में अफ़ग़ानिस्तान सरकार को दरकिनार करते हुए जिन शर्तों पर अमेरिका और तालिबान के बीच शान्ति समझौता सम्पन्न हुआ, उसके बाद ऐसा ही होना था। बस, प्रतीक्षा थी अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों की वापसी की। फिर, यह सब महज़ समय की बात रह गयी, लेकिन, यह सब इतनी जल्दी होगा, इसकी भी उम्मीद शायद किसी को नहीं रही होगी।

जहाँ तक भारत के संदर्भ में इन बदलावों के निहितार्थों का प्रश्न है, तो भारत गहरे संकट में है और भारतीय कूटनीति की असफलता से उपजे इस संकट के मूल में मौजूद है भारत की विदेश-नीति की त्रासदी। ऐसा नहीं है कि पिछले तीन दशकों के दौराजहाँ तक भारत के संदर्भ में इन बदलावों के निहितार्थों का प्रश्न है, तो भारत गहरे संकट में है और भारतीय कूटनीति की असफलता से उपजे इस संकट के मूल में मौजूद है भारत की विदेश-नीति की त्रासदी। ऐसा नहीं है कि पिछले तीन दशकों के दौरान भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति और तालिबान को लेकर उसका नज़रिया कभी आश्वस्त करने वाला रहा हो, पर पिछले क़रीब सवा सात वर्षों के दौरान भारत की विदेश-नीति ने चेक एंड बैलेंसेज की उपेक्षा करते हुए अमेरिकोन्मुखी नज़रिया अपनाया। इसी नज़रिए के कारण इसने क्षेत्रीय समीकरणों और अफ़ग़ान समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रीय स्तरों पर चल रहे प्रयासों को अपेक्षित महत्व नहीं दिया और आज उसे इसकी क़ीमत चुकानी पड़ रही है।

अब दिक़्क़त यह है कि काबुल और अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़े के बाद आज भी भारत में अफ़ग़ानिस्तान संकट को हिन्दू-मुसलमान की बाइनरी में रखकर देखा जा रहा है जो दु:खद एवं त्रासद है। भारतीय समाज का एक हिस्सा अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से इसे मुस्लिम समाज के साथ-साथ भारतीय समाज और राजनीति के उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और वामपंथी तबके को बदनाम करने के अवसर के रूप में देख रहा है और इस अवसर को भुनाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। और, इसका एक त्रासद पहलू यह भी है कि मुस्लिम समाज का एक हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान के मोर्चे पर होने वाले इन बदलावों से उत्साहित है। उसे न तो अपनी त्रासद स्थिति चिन्तित करती है, और न ही अफ़ग़ानियों का दु:ख, उनकी पीड़ा एवं उनकी बेचैनियाँ ही विचलित करती हैं। वह तो इस्लामी सत्ता की पुनर्स्थापना और इस्लामी वर्चस्व की संभावना मात्र से उत्साहित एवं पुलकित है।

अब सवाल यह उठता है कि जब वर्तमान में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के सच के रूप में सामने आ चुका है और उसे पाकिस्तान एवं चीन सहित तमाम भारत-विरोधी शक्तियों का समर्थन मिल रहा है, अमेरिका सहित दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह से परहेज़ कर रही हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? दरअसल, अब भारत बैकफ़ुट पर है, वह रिसीविंग इंड पर है और उसके सामने सीमित विकल्प हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि भारत वेट एंड वाच की रणनीति अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश करे, बैक चैनल से तालिबान के साथ डील करते हुए उसके भारत-विरोधी रवैये को कम करने की कोशिश करें और अफगानिस्तान में अपने अब सवाल यह उठता है कि जब वर्तमान में तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के सच के रूप में सामने आ चुका है और उसे पाकिस्तान एवं चीन सहित तमाम भारत-विरोधी शक्तियों का समर्थन मिल रहा है, अमेरिका सहित दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियाँ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह से परहेज़ कर रही हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए? दरअसल, अब भारत बैकफ़ुट पर है, वह रिसीविंग इंड पर है और उसके सामने सीमित विकल्प हैं, ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि भारत वेट एंड वाच की रणनीति अपनाते हुए अफ़ग़ानिस्तान में फँसे भारतीयों को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की कोशिश करे, बैक चैनल से तालिबान के साथ डील करते हुए उसके भारत-विरोधी रवैये को कम करने की कोशिश करें और अफगानिस्तान में अपने सामरिक हितों को साधने के साथ-साथ अपने निवेश को सुरक्षित करने की यथासंभव कोशिश करे। साथ ही, जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया देने की बजाय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अगले कदम की प्रतीक्षा करे और उनके साथ मिलकर तालिबान पर अंतर्रा्ष्ट्रीय दबाव निर्मित करने की कोशिश करे। उपयुक्त अवसर और अपने लिए अनुकूल माहौल की प्रतीक्षा करने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है। और, हाँ, तालिबान के बहाने मुस्लिम समुदाय और भारतीय समाज के लिबरल-सेक्यूलर तबके को बदनाम करने की कोशिश तथा अफ़ग़ान संकट का राजनीतिकरण भारत के लिए आत्मघाती साबित होगा, और निकट भविष्य में भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। भारत को यह समझना होगा कि अफ़ग़ानियों को भी अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी और उसे भी अपने सामरिक हित खुद सुनिश्चित करने होंगे। इसके लिए न तो अमेरिका सहित अन्य वैश्विक शक्तियाँ सामने आयेंगी और न ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय। भारत अगर संयम एवं धैर्य से काम लेता है, तो वह गृहयुद्ध की ओर बढ़ते अफ़ग़ानिस्तान में ताजिक, उज़्बेक और हज़ारा जनजातियों के साथ-साथ अफ़ग़ानी पश्तून समाज के उदारवादी, लिबरल, डेमोक्रेटिक एवं सेक्यूलर तबके बीच अपने गुडविल की बदौलत इस क्षति की कुछ हद तक भरपायी कर सकता है। इसके लिए आवश्यकता है खुद के प्रति भरोसे की और सटीक रणनीति की। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत सरकार इसी रणनीति पर विचार कर रही है, पर समस्या है हिन्दू-मुस्लिम बाइनरी की।

-लेखक कुमार सर्वेस

(लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं और सिविल सेवा परीक्षा हेतु तैयारी कर रहे छात्रों के मेंटरिंग कर रहे हैं।)

#अफगानिस्तानसंकट #तालिबान

सेंसेक्स 163 अंक नीचे, निफ्टी 16,569 पर हुआ बंद

सेंसेक्स 162.78 अंक नीचे 55,629.49 पर, जबकि निफ्टी 45.75 अंक गिरकर 16,568.85 पर बंद हुआ। धातु और रियल्टी शीर्ष गिरे; एफएमसीजी, आईटी और फार्मा हरे निशान में बंद हुए।

साप्ताहिक एफ एंड ओ समाप्ति के दिन बुधवार को दिनभर के उतार-चढ़ाव के बाद शेयर बाजार गिरावट के साथ बंद हुआ। सेंसेक्स 162.78 अंक नीचे 55,629.49 पर, जबकि निफ्टी 16,701.85 तक बढ़ने के बावजूद 45.75 अंक गिरकर 16,568.85 पर बंद हुआ।

निफ्टी बैंक और निफ्टी मेटल में गिरावट के चलते निफ्टी के ज्यादातर सेक्टोरल इंडेक्स लाल निशान में बंद हुए। इसके विपरीत निफ्टी एफएमसीजी, निफ्टी फार्मा और निफ्टी पीएसयू बैंक हरे निशान में बंद हुए।

निफ्टी के प्रमुख शेयरों के टॉप गेनर और लूजर का हाल

पंचायत चुनाव में प्रत्याशी आंन लाइन कर सकते हैं नांमकन

कोरोना को देखते हुए आयोग ने लिया निर्णय 24 सितंबर को है पहले चरण का मतदान, पंचायत चुनाव में प्रत्याशी आंन लाइन कर सकते हैं नांमकन

पंचायत चुनाव की घोषणा हो गई है। इसबार 11 चरणों में चुनाव होंगे। पहली बार पंचायत चुनाव के दौरान नामांकन प्रक्रिया पर विशेष जोर दिया गया और चुनाव में पहली बार आनलाइन आवेदन भी स्वीकार किया जायेगा । इसके लिए http://sec.bihar.gov.in साइट का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस बार छह पदों के लिए चुनाव होगा। इसमें से चार पद का चुनाव ईवीएम तथा दो पद का चुनाव बैलेट पेपर से होगा। इवीएम से जिला परिषद, ग्राम पंचायत मुखिया, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्य का चुनाव होगा। बैलेट पेपर से सरपंच और पंच का चुनाव होगा।

इसबार 11 चरणों में होगा चुनाव मंगलवार को कैबिनेट ने बिहार पंचायत चुनाव का ऐलान कर दिया। इसबार 11 चरणों में वोट डाले जाएंगे। 24 सितंबर को पहले चरण का चुनाव होगा। इसके बाद 29 सितंबर, 8 अक्टूबर, 20 अक्टूबर, 24 अक्टूबर, 3 नवंबर, 15 नवंबर, 24 नवंबर, 8 दिसंबर और 12 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। बाढ़ को लेकर पंचायत चुनाव टलने की आशंका जताई जा रही थी। पहले चरण में उन जिलों में वोटिंग होगी जहां बाढ़ का असर कम है। इसके बाद अन्य जिलों में चुनाव कराए जाएंगे।

राज्य सरकार का बड़ा फैसला बीपीएससी से बहाल होंगे 45892 प्रधान शिक्षक व प्रधानाध्यापक, प्रभारी प्रिसपल युग का होगा अंत

राज्य के प्राथमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में 45 हजार 892 हेडमास्टरों की कमीशन से सीधी नियुक्ति होगी। इनमें 40558 पद प्राथमिक स्कूलों के प्रधान शिक्षकों की जबकि 5334 प्रधानाध्यापक के पद उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालयों के होंगे। शिक्षा विभाग के प्रधान शिक्षक व प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति व सेवाशर्त नियमावली-2021 के दो अलग-अलग प्रस्तावों को मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में मंजूरी दी गई। शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) इन पदों पर नियुक्ति के लिए सीधी भर्ती की प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करेगा। खास बात यह है कि प्राथमिक स्कूलों में पहली बार प्रधान शिक्षक नियुक्त किये जायेंगे। अबतक ऐसे स्कूलों में सबसे वरीय शिक्षक विद्यालय का संचालन करते थे।