Press "Enter" to skip to content

Posts tagged as “#Journalism”

प्रजातंत्र को जीवित रखने के लिए पत्रकारों का दायित्व महत्वपूर्ण है।

दरभंगा 13 अक्टूबर। पत्रकारों को सत्य आधारित पत्रकारिता करनी चाहिए। प्रजातंत्र को जीवित रखने के लिए पत्रकारों का यह दायित्व महत्वपूर्ण है।

वरिष्ठ राजनीति चिंतक एवं विश्लेषक और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ जितेन्द्र नारायण ने ख्यातिलब्ध पत्रकार सह समाजसेवी स्व.रामगोविंद प्रसाद गुप्ता की 86वीं जयंती के अवसर पर “नोबेल शांति पुरस्कार और निर्भीक पत्रकारिता” विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि सत्ता का सामान्यतः चरित्र पक्षपात पूर्ण एवं दलहित में होता है ऐसे में पत्रकारों की पैनी निगाह हमेशा बनी रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्ता के समर्थन एवं विरोध की प्रवृत्ति की पत्रकारिता ने प्रजातंत्र का सबसे ज्यादा नुकसान किया है उन्होंने कहा कि सत्य आधारित पत्रकारिता के लिए पत्रकारों का निर्भीक होना एवं पक्षपात रहित होना पत्रकारिता जगत की प्राथमिक प्रवेश की प्राथमिक शर्त होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार प्राप्त दोनों पत्रकारों ने साबित कर दिया है कि स्वतंत्र संस्थान का निर्माण पत्रकारों को स्वंय करना चाहिए ताकि उनकी कलम पर किसी दूसरे संस्थान का प्रभाव नहीं पड़े। डॉ नारायण ने कहा कि आज पाश्चात्य के पत्रकारिता का इतिहास पाश्चात्य जगत में उभरते हुए पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के समर्थन से जुड़ा हुआ रहा है जबकि भारत के पत्रकारिता का इतिहास निरंकुश सत्ता के विरोध एवं स्वतंत्र आंदोलन से जुड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की पत्रकारिता मूल्यों पर आधारित रही है पर पश्चिमी पत्रकारिता का मूल ध्येय इससे इतर रहा है। उन्होंने अपना हित साधने के लिए पत्रकारिता को साधन की तरह इस्तेमाल किया है और हमने सत्य को स्थापित करने, जुल्म और जुल्मी का प्रतिकार करने के लिए पत्रकारिता का प्रयोग किया है।

इस वर्ष शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए दो पत्रकारों का चयन हुआ है जिसके चलते एकबार फिर पत्रकारिता और पत्रकार के दायित्वों का विश्लेषण आरंभ हो गया है।

डॉ जितेन्द्र नारायण ने नोबेल पुरस्कारों का गहराई से विवरण देते हुए बताया कि पत्रकारिता निर्भीक ही होती है, समझौता करनेवाला और दबाव में सत्य को दबाना पत्रकारिता की रवायत नहीं है। इसकी उत्पत्ति तो बाजारवाद से हुई है। बाजार ने मूल्यों पर आघात किया है। हर तरफ स्वार्थ हावी हो गया। कोई संस्था ऐसी नजर नहीं आती जहाँ भ्रष्टाचार ना हो। इस स्थिति में बदलाव निर्भीक पत्रकारिता ही ला सकती है। देश, समाज को पुष्ट करना ही पत्रकारिता का उद्देश्य रहा है पर बाजार ने इसमें बाधा उत्पन्न कर दी है। फिर भी स्व.रामगोविंद प्रसाद गुप्ता सरीखे पत्रकारों की टोली आज भी जीवंत है और यही कारण है कि देर से ही सही पर सत्य को उजागर करने की जिम्मेदारी का वहन आज भी पत्रकारिता कर रही है।

उन्होंने कहा कि इस साल शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए दो पत्रकारों के नाम चुने गए हैं। फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेसा और रूस के पत्रकार दिमित्री मुरातोव को अपने देश में अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करने के लिए यह सम्मान दिया जाना है। जहां रेसा ने फिलीपींस में राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतर्ते की सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ अपने मीडिया ग्रुप ‘रैप्लर’ (Rappler) के जरिए पत्रकारिता को धार दी, तो वहीं रूस में पुतिन सरकार के खिलाफ मुरातोव ने भी ऐसा ही किया।

समारोह के मुख्य अतिथि समाजशास्त्री एवं पूर्व विधान पार्षद डॉ विनोद चौधरी ने कहा कि सत्ता, अधिकारी और समाज को सजग करने की जिम्मेवारी का वहन आज भी मीडिया कर रही है। शायद यही कारण है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में नोबेल नहीं दिया जाता है फिर भी पत्रकारों को उनके कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार मिलता आ रहा है। उन्होंने कहा कि विश्व के देश में मीडिया प्रतिष्ठान है पर भारत में जितनी निर्भीक मीडिया है वैसी स्वतंत्रता विश्व के अन्य देशों में पत्रकारिता को नहीं मिली हुई है।उन्होंने दरभंगा की पत्रकारिता की चर्चा करते हुए बताया कि स्व.रामगोविंद प्रसाद गुप्ता ने यहाँ की पत्रकारिता को दधीचि की भांति पल्लवित किया है। आज भी उनके द्वारा तैयार पत्रकारों की टोली जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक निर्भीकता से कलम चला रही है।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए पत्रकार से जननेता बने बेनीपुर के विधायक डॉ विनय कुमार चौधरी ने कहा कि निर्भीकता के बगैर पत्रकारिता अस्तित्व हीन है। बिना सत्य के इसका कोई मोल नहीं है। यह निर्भीकता ही है जिसके बल पर आज भी पत्रकार स्व.रामगोविन्द प्रसाद गुप्ता के कार्यों की चर्चा होती है पर बाजारू प्रवृत्तियों ने पत्रकारिता पर गहरा आघात किया है जिसके कारण मीडिया की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। इस स्थिति में जब इस क्षेत्र के लोग नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए है तो उम्मीद की जा सकती है कि फिर नैतिक मूल्यों ने प्रति पत्रकार सजग होगें।नोबेल शांति पुरस्कार ही नहीं अपितु नोबेल पुरस्कार की जो घोषणा की जाती है उसमें निर्भीक पत्रकारिता का अहम योगदान होता है। प्रेस की स्वतंत्रता और निर्भीक पत्रकारिता एक दूसरे के पर्याय है।

इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए वरीय पत्रकार डॉ विष्णु कुमार झा ने बताया कि यह नोबेल पुरस्कार सांकेतिक है और अगर आज कहीं भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कायम है तो उसका श्रेय मीडिया को ही दिया जाना चाहिए। रसायनशास्त्री डॉ प्रेम मोहन मिश्र ने कहा कि पत्रकार शांति के दूत है और सामाजिक सौहार्द के साथ-साथ कुरीतियों का प्रतिकार करना उनकी प्राथमिकता होती है।नोबेल पुरस्कार ने पत्रकारिता की इसी प्राथमिकता को सशक्ता दी है। प्रोफेसर और पत्रकार डॉ कृष्ण कुमार ने कहा कि नोबेल पुरस्कार से विश्व क्षितिज पर पत्रकारिता गौरवान्वित हुई। सच्चे पत्रकार हदय की आवाज पर लिखते है। कलम के सिपाहियों की निर्भीकता के बल पर ही मीडिया का वजूद टिका है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रखर पत्रकार डॉ हरिनारायण सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी के पत्रकारों को पूर्व के पत्रकारों से कुछ सीख लेनी चाहिए और समाज और देश के विकास के लिए आज उन्हें नए संचार क्रांति का लाभ उठाते हुए हर संभव प्रयास पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करनी चाहिए।
संगोष्ठी का संचालन डॉ एडीएन सिंह ने किया। जबकि स्वागत प्रोफेसर रामचंद्र सिंह चंद्रेश ने किया और धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद कुमार गुप्ता ने दिया। मौके पर पत्रकार और बुद्धिजीवी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इसके पूर्व स्वर्गीय गुप्ता के तैल चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

आज के युवा पीढ़ी के लिए सिटिजन जर्नलिज्म एक सुनहरा मौका है।

अनिता गौतम
सिटिज़न जर्नलिज़्म, यह सिर्फ शब्द भर नहीं बल्कि व्यक्ति समाज, देश और दुनिया की जरूरत है। इस अंग्रेजी शब्द का मूल अनुवाद संभवतः नागरिक पत्रकारिता हो परंतु अलग अलग आयाम में फिट बैठता यह शब्द आम अवाम की मजबूत आवाज बन चुका है। देश दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और भौगोलिक बदलाव को तकनीक के सहारे अति शीघ्र बहुत बड़े समूह तक पहुचाने का सशक्त माध्यम है यह सिटिज़न जर्नलिज्म।

समय के साथ इस वर्चुअल वर्ल्ड इन्फॉर्मेशन तकनीक में अभी और बदलाव आएंगे परंतु वर्तमान में इस माध्यम की सार्थक भूमिका को हम अपने आस पड़ोस में अनुभव कर सकते हैं।

मीडिया का शुरुआती दौर, जब प्रिंट मीडिया के माध्यम से ख़बरें लोगों तक घटना के अगले दिन या कई दिनों बाद पहुंच पाती थीं। फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आयी और खबरें संकलित और संपादित होकर तस्वीरों और ट्रेंड एंकरों द्वारा कुछ लोगों तक पहुंचने लगीं।

दूरदर्शन से अपना सफर शुरू कर क्रमशः इस खबरों की दुनिया के निरंतर बदलाव का गवाह आज भी एक बहुत बड़ा वर्ग है। टेलीविजन केबल से डेटा केबल तक घूमते हुए आज इस नागरिक पत्रकारिता ने “कर लो दुनिया मुट्ठी में” के तर्ज पर हर किसी को अपने हुनर दिखाने का मंच दे दिया है।

कल तक खबरों के लिए टेलीविजन और अखबार की मोहताज आम आवाम आज खुद खबर बना और परोस रहा है। हर क्षेत्र, राजनीति, अपराध, सिने वर्ल्ड , टेलीविजन की दुनिया या समाज से जुड़ी छोटी बड़ी घटना की जानकारी पलक झपकते लोगों तक पहुँच रही है।

बात चाहे सरकार बनाने की हो, गिराने की हो , चुनावी समीकरण की हो या मत ध्रुवीकरण की, एक क्लिक और खबर पूरी दुनियां में संचारित। जाहिर सी बात है आगे जैसे-जैसे नागरिक पत्रकारिता का दायरा बढ़ेगा इसकी विश्वसनीयता दाव पर लगेगी। सीधे शब्दों में समझे तो बिना किसी तकनीकी पढ़ाई किये स्मार्ट फोन के साथ स्मार्ट बनने की प्रक्रिया में जितनी तेजी से सच फैलेगा उस से कई गुना रफ्तार से झूठ दौड़ेगा। वैसे भी एक पुरानी कहावत है जब तक सत्य बाहर निकलने के लिए अपने जूते तलाशता है, झूठ पूरी दुनिया घूम आता है।

मतलब बिल्कुल सीधा और साफ है कि हर चीज जिसमें अच्छाई होती है उसी में बुराई भी होती है, तो हमें तय करना होगा कि इसके निगेटिव पॉजिटिव प्रभाव को समझने की समझ कैसे विकसित करें?
वर्चुअल मीडिया, सोशल मीडिया के इस वर्ल्ड वाइड वेव ने सिटीजन जर्नलिज्म को एक मंच तो दे दिया है पर इसकी उपयोगिता की जिम्मेवारी हमें तय करनी होगी। इसके बेहतर प्रयोग से समाज और देश सुधार की न सिर्फ दिशा तय करनी होगी बल्कि उसके सकारात्मक प्रभाव पर भी गंभीरता से मंथन करना होगा।

निश्चित रूप से नागरिक पत्रकारिता , किसी भी मीडिया संस्थान से न जुड़कर भी खबरें संचालित करने का अद्भुत मंच है, शर्त यह है कि पत्रकारिता के लिए बने पंच लाइन ‘पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं मिशन है।’ को इसमें अपने स्तर से बहाल रखा जाए।
सिक्के के दो पहलू की तरह सिटीजन जर्नलिज्म की भी अपनी ताकत के दो रूप है अच्छाई और बुराई। अगर कभी खबरों की सत्यता तय करने में मुश्किल आये तो हम न सिर्फ निष्पक्ष भाव से समाचार का सृजन करें बल्कि पत्रकारिता के मूल उद्देश्य, जनहित को प्राथमिकता देने का प्रयास करें।

ज्ञातव्य है कि समय के साथ मुख्य धारा की मीडिया में चंद लोगों की मोनोपोली कायम हो रही थी। दिशा निर्देश सत्तारूढ़ पार्टी या खास व्यक्ति के द्वारा प्राप्त होने लगे थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में नागरिक पत्रकारिता ने मीडिया के कुछ मुट्ठी भर लोगों के गुरुर को न सिर्फ तोड़ा है बल्कि उनके पूरे किले को ही ध्वस्त कर दिया है। आज इस नागरिक पत्रकारिता की ताकत को ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई सारी खबरें सोशल मीडिया पर पहले आती हैं और बाद में सत्यापित और संपादित होकर मुख्य धारा की मीडिया में आती है।

इसके साथ ही अगर बेहतर तरीके से इसके पूरे दिशा निर्देशों का पालन किया जाए और किसी तरह की विवादास्पद सामग्री न परोसी जाए तो इसमें मुद्रीकरण की प्रक्रिया भी है। अर्थात पूरी शर्त के साथ इस मंच को संचालित करने पर पैसे कमाने का साधन भी यहां उपलब्ध है।

इस तरह से देखा जाए तो सही मायने में यह सिटिज़न जर्नलिज्म हर आम और खास को एक बराबर अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है। खास लोगों की जिंदगी से प्रेरणा देने एवं उनकी कहानियों के लिए कई प्लेटफॉर्म हैं पर आम अवाम के पास जो अनुभव का खजाना है, उसे साझा करने में मददगार साबित हो रहा है यह मंच।
खाना खजाना, महिला जगत से लेकर बाल विकास तक के पन्नों को अपने में समेटे हुए, यह मंच न सिर्फ किताब बल्कि पूरी लाइब्रेरी है।

नाली गली से लेकर व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने का सबसे प्रभावी जरिया है यह। तस्वीरों, वीडियो और ग्राफिक्स जैसे साक्ष्यों के साथ खबरों की अनोखी दुनिया। अपने पसंद की चीजों को यथा समय खोजने से लेकर फुरसत में खबरों से रूबरू होना, सब संभव हुआ है इस साधन से।

इसकी सबसे बड़ी खामियों में नागरिक पत्रकारिता के नाम पर पीत पत्रकारिता की संभावना बन जाती है। किसी के निजी जीवन की बातें, व्यक्तिगत पहलू या असंसदीय शब्दों का प्रयोग या फिर किसी की मर्यादा भंग करने वाली कहानियों को प्रकाशित करना। साथ ही इस माध्यम का दुरुपयोग सामूहिक रूप से पैसे उगाहने में भी लोग कर रहे हैं। क्राउड फंडिंग के नाम पर तकरीबन भीख मांगने की परंपरा को बढ़ावा मिल रहा है।

इसका सबसे डरावना और वीभत्स प्रयोग है पोर्नोग्राफी। स्त्री से लेकर बच्चों तक के शोषण के रास्ते तैयार करता है। वैसे कुछ कड़े कानून से इस पर रोक लग सकती है। पहले से भी देश में इस तरह के आपत्तिजनक सामग्री को रोकने के लिए कई कानून हैं। धार्मिक उन्माद , धर्मान्ध सामग्री और एक पक्षीय विश्लेषण से भी बचने की आवश्यकता है।

ब्लॉग, वेब पेज, गूगल, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप, वी चैट, टिकटाक, सोशल साइट्स और भी न जाने कितने तरीके से अब संचार संभव हो गया है। बहुत हद तक सूचना के अधिकार का विस्तार भी है नागरिक पत्रकारिता, बस जरूरत है भाषा की शुद्धता, तस्वीरों, वीडियो या ग्राफिक्स की प्रामाणिकता और उकसाने वाली खबरों से बचाव के तरीके तलाशने की।
बहरहाल इन सब चुनौतियों के बावजूद सिटिज़न जर्नलिज्म में असीम संभावनाएं है।

सुपर तकनीक के माध्यम से होने वाली इस पत्रकारिता में जरूरत है, थोड़े प्रशिक्षण और कुछ कानूनी दायरे बनाने की। सही मायने में लोकतांत्रिक तरीके से आम आदमी की अभिव्यक्ति का माध्यम बना नागरिक पत्रकारिता का यह मंच अपने आप में अनूठा है।

मुख्य धारा की मीडिया को चुनौती देते इस सिटिज़न जर्नलिज्म यानी नागरिक पत्रकारिता का भविष्य आगे अभी और उज्ज्वल है।

-लेखिका का नाम अनिता गौतम पत्रकार है