राजनीति का अपराधीकरण पर खुब चर्चा होती है लेकिन आज हम आपको पुलिस का अपराधीकरण पर चर्चा करने जा रहे हैं और यह चर्चा इतनी गंभीर है कि आज यह मसला किसी नेता या मंत्री से जुड़ा रहता तो अभी तक इस्तीफा हो गया रहता ।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनकर डीजीपी से बात करने वाले उस फर्जी व्यक्ति के बारे में जिसने गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार को बचाने के लिए डीजीपी को ही फोन नहीं किया मुख्यमंत्री को भी फोन किया था और जब मुख्यमंत्री सचिवालय को जब संदेह हुआ तो इसकी जांच आर्थिक अपराध इकाई द्वारा करायी गयी और फिर पूरे मामले का खुलासा हुआ।
लेकिन सवाल यह है कि अभिषेक अग्रवाल जिसने एसएसपी गया को बचाने के लिए इस स्तर का फर्जीवाड़ा किया वो पहले भी देश का गृहमंत्री बन कर फर्जीवाड़ा करने के एक मामले में दिल्ली पुलिस गिरफ्तार चुका है,इसी तरह के एक मामले में कोलकत्ता पुलिस इसको गिरफ्तार कर चुका है बिहार के आईपीएस अधिकारी सौरभ शाह के पिता से ठगी करने के मामले में भागलपुर में केस दर्ज है वहां की पुलिस इसे गिरफ्तार कर जेल भेजा है ,चार्जशीटेड है किसी भी समय इसे सज मिल सकती है।
इतने बड़े अपराधी होने का बावजूद पुलिस मुख्यालय जहां आम जन को छोड़िए पत्रकार को भी जाने की अनुमति नहीं है ।
वहां इस व्यक्ति को डीजीपी की और से छूट मिली हुई थी कि पुलिस मुख्लालय के अंदर आने के लिए किसी भी तरह के परिचय पत्र लेने कि जरुरत नहीं है ।आप समझ सकते हैं देश के गृहमंत्री के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाला व्यक्ति को इस तरह का छुट पुलिस का अपराधीकरण नहीं है।
इतना ही नहीं अभिषेक अग्रवाल के फेसबुक पेज को जब आप देखेंगे तो इसके व्यक्तिगत कार्यक्रम में बिहार के दो दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारी नियमित आते जाते रहे हैं क्या उन्हें पता नहीं था कि यह व्यक्ति देश के गृहमंत्री के नाम पर फर्जीवाड़ा करने के आरोप में महीनों तेहाड़ जेल में बंद रहा है इसे क्या कहेंगे आप यह पुलिस का अपराधीकरण नहीं है।
6 जून 2022 को अभिषेक अग्रवाल के बेटे का जन्मदिन था इस अवसर पर पटना के एक बड़े होटल में जन्मदिन समारोह का आयोजन किया गया जिसमें बिहार के कई आईपीएस अधिकारी मस्ती करते हुए दिख रहे हैं,बिहार के डीजीपी के साथ कई ऐसी तस्वीरे हैं जिसे देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता है।
31 मार्च 2022 को इन्होंने एक तस्वीर लगायी है जिसमें कई जिले के एसपी इसके साथ होटल में खाना खा रहा है एक आईपीएस अधिकारी जो महाराष्ट्र से पटना लौटता है उसके स्वागत में आईपीएस मेस में गुलदस्ता के साथ ये उपस्थित है क्या ऐसे सीनियर पुलिस अधिकारी को पता नहीं था कि इतने संगीन मामले में यह जेल जा चुका है और अगर नहीं पता था तो फिर ऐसे अधिकारियों के पुलिस में बने रहने का मतलब क्या है।
क्यों कि पुलिस एक ऐसी संस्था है जहां अधिकारियों का व्यक्तिगत चरित्र भी पूरे महकमा को प्रभावित करता है क्यों कि पुलिस राज्य के कानून का प्रमुख होता है जिसको कानून व्यवस्था बनाये रखने और कानून के राज को स्थापित करने की जिम्मेवारी होती है और वही जब अपराधियों से इस तरह गलबहियां करते दिखेंगे तो फिर क्या होगा कानून के राज का ।
इतनी तस्वीर आज किसी मंत्री और नेता के साथ इस तरह के गंभीर आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति के साथ होता तो अभी तक सरकारे हिल गयी होती राजनीतिक दल जगह जगह आन्दोलन शुरु कर दिया रहता है ऐसे में इन अधिकारियों पर कार्यवाही करने में सरकार कितना वक्त लगाती है सबकी नजर इस आ टिकी है।