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जातीय जनगणना से पिछड़ी जाति का सच आ जाता सामने; रोक से बिहार के राजनीतिक बदलाव पर फिर लगा ब्रेक

पूर्व मंत्री नरेन्द्र बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन जब भी मुलाकात होती थी तो मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलने को लेकर बहस हो ही जाती थी ।

मैं कहता था आप लोग सही नहीं किए बिहार की राजनीति का एक चक्र पूरा हो रहा था उसको आप लोगों ने बीच रास्ते में ही ब्रेक लगा दिया। जिस वजह से बिहार की राजनीति फिर उसी चक्र में वापस आ गया जिससे नीतीश कुमार थोड़ा बाहर निकाले थे। मतलब सत्ता की मलाई खाते खाते समाज में जो नये सामंती वर्ग पैदा लिये हैं उसके शोषण और अत्याचार के खिलाफ जैसे जैसे आक्रोश बढ़ा अन्य पिछड़ी जातियों उनके खिलाफ गोलबंद होने लगे इसी का लाभ नीतीश उठा रहे थे वही मांझी मुख्यमंत्री बने रह जाते तो बिहार की राजनीति से हमेशा हमेशा के लिए दबंग पिछड़ी जातियां राजनीति से बाहर हो जाती लेकिन आप लोग इस चक्र को पूरा नहीं होने दिए हालांकि नरेंद्र बाबू का कुछ और तर्क था लेकिन अंत में वो कहते थे संतोष जो बात गयी वो बीत गयी आगे फिर मौका आयेगा मिल बैठ कर बात करेंगे।

शायद आज वो जिंदा होते तो जातीय जनगणना को लेकर मेरे विचार से सहमत होते, बिहार में प्रभावशाली दबंग पिछड़ी जाति और दबंग दलित की कितनी संख्या है और उसका व्यापार ,संसाधन,नौकरी और जमीन पर उसका कितना कब्जा है यह डाटा जिस दिन सामने आ जाता बिहार की राजनीति दस वर्षो में पूरी तरह से बदल जाता। क्यों कि समाज में सवर्णो को लेकर जो घृणा था आक्रोश था वह अब दबंग पिछड़ी और दलित जाति में शिफ्ट कर गया है । वही पंचायत चुनाव इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया जिस वजह से गांव का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तौर पर बदल गया है ।

जातीय जनगणना जैसे ही प्रकाशित होता तीन चार पिछड़ी जाति और एक दो दलित जाति जिसका 90 प्रतिशत हिस्सेदारी व्यापार,नौकरी .जमीन और राजनीति में है वो सामने आ जाता । और जैसे ही सामने आता उसके खिलाफ एक अलग तरह का माहौल तैयार होने लगता जैसे किसी दौर में सवर्ण को लेकर था जिसके पास व्यापार नौकरी,जमीन और सत्ता सब कुछ था । उसी को दिखा दिखा कर लोहिया जैसे नेता पिछड़ा पावे सौ में साठ जैसे नारे का ईजाद किये थे ।

आज साठ क्या 90 प्रतिशत हिस्सेदारी जो सवर्ण से ट्रांसफर हुआ है उस पर चार पाच पिछड़ी और एक दो दलित जाति का आज कब्जा है। ये डाटा जैसे ही सामने आता वैसे ही पूरे बिहार का नैरेटिव ही बदल जाता ।सच यही है जातीय जनगणना के पक्ष में ना नीतीश हैं ना लालू हैं ना बीजेपी है। क्यों कि उन्हें पता है जैसे ही जाति जनगणना प्रकाशित होता बिहार की राजनीति से दबंग पिछड़ी जाति की पकड़ उसी दिन से कमजोर होनी शुरु हो जायेंगी । ये लोग सिर्फ नैरेटिव बनाये रखना चाहते हैं जैसे बीजेपी को हिन्दू के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है बस हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव कैसे बना रहे इसके जुगत में लगा रहता है ।

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