तेजस्वी सत्ता, संगठन और विचारधारा के बीच इस तरह उलझता जा रहा है कि वो तय नहीं कर पा रहा है कि करना क्या है और इस वजह से उनके पार्टी के अंदर भी और बाहर भी ऐसे लोग जिनको किसी से किसी विषय को लेकर व्यक्तिगत खुंदक रहा है वो साधना शुरु कर दिये हैं। और इसका असर यह हो रहा है कि सरकार अस्थिर होने वाली है ऐसा इमेज लगातार बढ़ता जा रहा है ऐसे में तेजस्वी को पार्टी के तमाम बड़े नेता और विधायक सांसद से मिल बैठ कर बात करनी चाहिए।
यही स्थिति रही तो आने वाले समय में विवाद कम ने के बजाय बढ़ेगा और इसका असर पार्टी के जनाधार पर भी पड़ेगा,क्योंकि सरकार चलाने का जो नीतीश फार्मूला है उससे ना तो राजद के मंत्री संतुष्ट है और ना ही विधायक और ना ही गांव में मौजूद पार्टी का कार्यकर्ता। ऐसे में मिशन 2024 के सहारे लोकसभा चुनाव में बहुत बड़े बदलाव की जो बात महागठबंधन सोच रही है उसकी हवा निकल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि गवर्नेंस को लेकर गांव स्तर पर नाराजगी बढ़ती जा रही है जिसमें शराबबंदी कानून एक बड़ी वजह है बिहार के लगभग हर गांव में आठ से दस परिवार इस कानून से किसी ना किसी रूप में प्रभावित है जो वोट में परिणत होगा ये साफ दिख रहा है । वही ब्लांक और थाना स्तर पर जो खेल चल रहा है उससे सबसे अधिक प्रभावित लालू और नीतीश का ही वोटर है।
गठबंधन बदलने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है ऐसे में सरकार गठन के पांच माह ही हुए हैं राजद सहित महागठबंधन के तमाम विधायक ,मंत्री और कार्यकर्ताओं में आक्रोश बढ़ना शुरु हो गया है मंत्री को सचिव चलने नहीं देता है, विधायक का कोई सुनने वाला नहीं है, पार्टी कार्यकर्ताओं का हाल तो और भी बुरा है विपक्ष में था तो धरना प्रदर्शन भी कर लेता था अब तो कुछ कर भी नहीं पा रहा है।
संकट इतना ही नहीं है तेजस्वी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि जदयू राजद नहीं है और फिर योजनाओं के सहारे सत्ता में बने रहने का थ्योरी पूरे देश में एक समय बाद फेल हुआ है यह भी सत्य है ।
क्यों कि बीजेपी,वामपंथी और कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का एक अपना तरीका रहा है समय समय पर कार्यक्रमों के सहारे उसको मजबूती देता रहता है लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ यह बड़ी समस्या है ।
आज जदयू का क्या हश्र है पोलिंग एजेंट नहीं मिल रहा है कई गांव ऐसा मिल जाएगा जहां जदयू का कार्यकर्ता बचा ही नहीं है। स्थिति तो यह है कि पार्टी चलाने के लिए प्रखंड अध्यक्ष नहीं मिल रहा है समता पार्टी के समय के जो लोग बचे हुए है काम चलाने के लिए उनको पार्टी की जिम्मेवारी दे दी जा रही है हाल यह है कि कई जिलों में तो जिला अध्यक्ष विधायक या पूर्व सांसद है। यू कहे तो जदयू का पार्टी संगठन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है सरकार में रहने के कारण कही कही टिमटिमा रहा है। वजह नीतीश कुमार कि यह सोच योजनाओं और गवर्नेंस के सहारे पार्टी चला लेंगे । तेजस्वी राजद का जो टीम दिल्ली है उसके झांसे में आ गये हैं कि बस सरकार में बने रहना है और चुनाव के दौरान जो वादा किये थे उसको पूरा करते हुए दिखना है इसी के सहारे चुनाव निकाल लेगे।
आज की राजनीति यही है इस टीम दिल्ली को यह भी देखना चाहिए कि 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान जो जीत हुई है उसमें चिराग की पार्टी का क्या योगदान रहा है क्यों कि लोकसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने वाली पार्टी रातो रात कैसे बिहार का नम्बर वन पार्टी बन गया।
संगठन की बात करे तो राजद की स्थिति बिहार में इस वक्त कुल मतदान केन्द्रों में मात्र 40 प्रतिशत मतदान केन्द्र तक ही सीमित है यह सच्चाई है ऐसे मेंं बिना विचार के सहारे मोदी को परास्त करना दिन में सपने देखने जैसा है क्यों कि विचार ही एक ऐसी कड़ी है जो जाति धर्म,मजहब और पार्टी सबके दायरे को तोड़ कर लोग मतदान केन्द्रों पर पहुंचते ही नहीं है लोगों को प्रेरित भी करते हैं, और उसमें सरकार की योजना अंतिम व्यक्ति तक पहुंच गयी तो जीत का राह और आसान हो जाता है।
ऐसे में सिर्फ सत्ता में बने रहने से मोदी को हराना संभव नहीं है राहुल की तरह विचार के साथ सड़क पर उतरना होगा लोगों के बीच जाना होगा तेजस्वी इस दुविधा में फँस गये हैं करे तो करे क्या संगठन का अलग मांग है ,विचारधारा एक अलग तरह का तनाव दे रहा है विधायक और पार्टी के नेता एक अलग समस्या है वैसे राजनीति में जो विवादों का बेहतर समन्वय करता है वही आगे बढ़ता है ।