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मिशन 2024 की सफलता के लिए नीतीश को अपनी छवि बनाए रखनी होगी

मिशन 2024 की सफलता बिहार के कानून व्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करेगा ।
—–बेगूसराय की घटना सरकार के साख पर सवाल है—–

बेगूसराय फायरिंग मामले की जांच के दौरान बिहार पुलिस मेंं प्रोफेशनलिज्म की कमी साफ देखने को मिला,ऐसे में मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जो बिहार की पुलिसिंग पर खास नजर रखती है बेहद चिंता का विषय है।इस घटना के जांच के दौरान पुलिस की जो प्रवृत्ति देखी गयी है उससे आने वाले समय में अब हर घटना को जाति के चश्मे से देखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और इसका प्रभाव राज्य के कानून व्यवस्था पर पड़ेगा यह तय है।

बेगूसराय फायरिंग मामले मेंं गिरफ्तार अपराधियों के खिलाफ साक्ष्य है लेकिन उस साक्ष्य को लेकर जिस स्तर तक पुलिस को काम करने कि जरुरत थी उसमें साफ कमी देखने को मिल रही है और इसका असर यह हुआ कि पुलिस बेगुनाह लोगों को जेल भेज दिया है ऐसी बात चर्चा में आनी शुरु हो गयी है और इस घटना में जो अपराधी शामिल है उसको पुलिस बचा रही है।

घटना 13 तारीख के शाम की है बेगूसराय पुलिस का हाल यह था कि 24 घंटे तक वो अंधेरे में ही तीर चला रहा था ,14 तारीख की शाम को पुलिस ने दो तस्वीर जारी किया और कहा कि यही वो चार अपराधी जो दो मोटरसाइकिल पर सवार होकर इस घटना को अंजाम दिया है। इतने महत्वपूर्ण केस में 15 तारीख की शाम मीडिया में खबर आने लगी कि इस कांड में शामिल अपराधी पकड़े गये और इस घटना में शामिल अपराधियों का नाम क्या है यह भी मीडिया में चलने लगा जबकि उस समय तक सभी कि गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी उन अपराधियों का नाम कैसे बाहर आ गया बड़ा सवाल है।

फिर 16 तारीख के अहले सुबह बेगूसराय पुलिस के इनपुट पर झाझा रेलवे स्टेशन पर तैनात जीआरपी ने केशव उर्फ नागा को पकड़ा जो इस मामले की सबसे बड़ी गिरफ्तारी थी क्यों कि उससे पूछताछ के दौरान इस घटना के पीछे का खेल सामने आ सकता था लेकिन हुआ क्या जीआरपी थाना के प्रभारी फोटो खिंचवा कर 5 बजे सुबह में ही मीडिया को तस्वीर के साथ उसके गिरफ्तारी को सार्वजनिक कर दिया और मीडिया को फोनिंग देने लगा इसका असर यह हुआ कि 10 बजे नागा गैंग से जुड़े लोग बिहट चौक पर स्थित कुणाल लाइन होटल के सीसीटीव का फुटेज जारी कर बेगूसराय पुलिस की पूरी कार्रवाई पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

देखिए जिसको पुलिस सूटर बता रही है वो घटना के समय लाइन होटल पर बैठा हुआ है जैसे ही यह खबर मीडिया में आयी बेगूसराय पुलिस सकते में आ गया और फिर पूछताछ छोड़ कर कितनी जल्दी इसको जेल भेजा जाए इस पर काम करना शुरू कर दिया ।

इसका असर यह हुआ कि केस का पूरी तौर पर खुलासा नहीं हो पाया बहुत सारी बाते सामने नहीं आ सकी और इस वजह से एसपी के सामने प्रेस रिलीज पढ़ने के अलावे को दूसरा चारा नहीं था । क्यों कि उनके पास क्रॉस क्यूसचन का जवाब नहीं था यही स्थिति एडीजीपी मुख्यालय का रहा मीडिया वाले सवाल करते रहे गिरफ्तार अपराधियों में गोली चलाने वाला कौन था नाम तक बताने कि स्थिति में वो नहीं थे ,केशव उर्फ नागा के होटल में बैठे होने कि बात सीसीटीवी में कैद होने पर सवाल किया गया तो कहां गया ये सब घटना की साजिश में शामिल थे, साजिश क्या है तो यह अनुसंधान का मसला है इस तरह से सवाल जवाब ने पुलिस के कार्रवाई को और भी संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया और सुशील मोदी और गिरिराज सिंह जैसे नेताओं को इस मामले की सीबीआई और एनआईए से जांच की मांग करने का मौका मिल गया।

इतने संवेदनशील मामले में इससे पहले कभी भी इस तरह की बाते देखने को नहीं मिली है पुलिस वाले सूचना लीक कर रहे थे और झाझा जीआरपी ने तो हद कर दी तस्वीर तक जारी कर दिया जो दिखाता है कि बिहार पुलिस की कार्य प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है।

याद करिए 1995 से 2005 का दौर राज्य में जो भी आपराधिक घटना घटित होता था सरकार उसको जाति से जोड़ देता था इस वजह से बिहार की पुलिसिंग धीरे धीरे कमजोर होती चली गयी वही सरकार के इस प्रवृत्ति का लाभ उठाते हुए अपराधियों ने भी अपने अपराध को छुपाने के लिए पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए जाति से जोड़ना शुरू कर दिया और धीरे धीरे पूरी व्यवस्था जाति के आधार पर एक दूसरे के साथ खड़े होने लगी और उसी का असर था कि बिहार की कानून व्यवस्था पटरी से उतर गया।

नीतीश कुमार इसी व्यवस्था पर चोट करके राज्य में कानून का राज्य स्थापित करने में कामयाब रहे थे लेकिन पहली बार वो किसी घटना को जातिवादी आधार से जोड़ते हुए बयान दिया और इसका असर बेगूसराय फायरिंग मामले में पुलिस के कार्यशैली पर साफ दिखाई दिया है।

हालांकि इसके लिए सिर्फ लालू प्रसाद या नीतीश कुमार ही जिम्मेवार नहीं है सुशील मोदी और गिरिराज सिंह जैसे नेता के साथ साथ यहां के सवर्णवादी मानसिकता वाले जो लोग है वो भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि उनको भी इसी तरह की राजनीति सूट करता है ।

बेगूसराय की घटना पूरी तरह से अपराधिक घटना है और सरकार या फिर किसी जिले में एसपी बदलने के बाद अपराधियों की यह प्रवृत्ति रही है कि इस तरह की घटना करके वह देखना चाहता है कि सरकार और पुलिस प्रशासन की सोच क्या है ।
याद करिए नीतीश कुमार 2005 में जब सत्ता में आये थे तो शुरुआती एक वर्ष तक किस तरीके से अपराधी सरकार को लगातार चुनौती दे रहे थे लेकिन जैसे ही अपराधियों को यह समझ में आ गया कि सरकार,कोर्ट और सत्ता में बैठे अपनी जाति वाले अधिकारियों से अब मदद मिलने वाली नहीं है स्थिति धीरे धीरे सुधरने लगी।

लेकिन बेगूसराय की घटना के बाद अपराधी और असामाजिक तत्व एक बार फिर से सिस्टम में बैठे अधिकारियों और नेताओं पर दबाव बनाना शुरु कर सकते हैं इस उदाहरण के साथ की मेरे साथ जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है हालांकि इस सोच को कितना बल मिलेगा यह कहना मुश्किल है लेकिन इन नेताओं की यही कोशिश होगी कि इस आधार पर समाज को बांटा जाये।

समस्तीपुर पुलिस बलात्कारी बाप के साथ खड़ा है

एसपी ,समस्तीपुर
आप यंग हैं ऊर्जावान है ये अलग बात है कि आपको मनपसंद कैडर नहीं मिला लेकिन आईएस से बड़ी जिम्मेवारी आपको मिला है ,आपकी पोस्टिंग समस्तीपुर कैसे हुई है मुझे पता है।

कभी मौका मिले तो आपके पीछे आप से पूर्व जो भी एसपी बने है उस सूची पर गौर करेगें 1991 से लेकर 2021 के दौरान गिनती के चार पाँच डाइरेक्ट आईपीएस अधिकारी की पोस्टिंग हुई है उसमें आप सौभाग्यशाली है कि एसपी के रूप में आपका दूसरा पोस्टिंग समस्तीपुर है बहुत टफ टास्क आपको मिला है ।

अब विषय पर आते हैं रोसड़ा रेप मामले की जानकारी आपको है ही मुझे नहीं पता क्यों लेकिन आपकी रोसड़ा पुलिस पीड़ित लड़की को सहयोग करने वाले के खिलाफ हाथ धोकर पीछा पड़ गया है और पुलिस उसको भी अभियुक्त बना दिया है ।

आप उस पीड़िता की मन:स्थिति को समझ सकते हैं छह वर्ष से उसका बाप उसको हवस का शिकार बना रहा है इसकी जानकारी माँ ,नाते रिश्तेदार सबको था लेकिन किसी ने लड़की का साथ नहीं दिया अंत में लड़की महिला हेल्प लाइन में शिकायत की रोसड़ा पुलिस कार्यवाही करने के बजाय उसके बाप से ही मिल गया ऐसे में लड़की वो कदम उठायी जो कोई सोच नहीं सकता है ।

Editorial

बाप द्वारा रेप करने का वीडियो खुद बनाती है कैमरा छुपा कर और फिर उस वीडियो को अपने ममेरा भाई को भेजती है और मदद की गुहार लगाती है , उसका भाई पोर्टल में काम करने वाले पत्रकार से मदद मांगता है ।

पोर्टल वालो को जो समझ में आया उस तरीके से खबर को चलाया ये अलग बात है कि रोसड़ा पुलिस के संज्ञाण में आने के बावजूद तीन दिनों तक रोसड़ा पुलिस पीड़िता से सम्पर्क करने के बजाय उसके बाप से सौदाबाजी करता रहा ।

मामला जब पटना के मीडिया के पास आयी उसके बाद पुलिस एक्सन में आयी ।

लेकिन सवाल यह है कि लड़की के भाई को पोस्को एक्ट में कैसे जेल भेज दिए लड़की अभी बालिक है वीडियो एक सप्ताह पहले बना है उसका बाप छह वर्ष से रेप कर रहा था उस समय लड़की नबालिक थी तो बाप पर पोस्को एक्ट लगा लेकिन लड़की के भाई पर पोस्को एक्ट लगा समझ से पड़े है।

फिर जो पत्रकार खबर चलाया उस पर रंगदारी मांगने का मुकदमा कर दिया पुलिस का यह एक्सन दिखता है कि पुलिस अभी भी अपराधी के साथ खड़ा है ,पुलिस इस मामले में लड़की को सहयोग करने वाले लोगों को डरा रही है ताकी कोई न्याय के साथ खड़ा ना हो।

हो सकता है लड़की कल कोर्ट में अपना बयान भी बदल दे क्यों कि समाज और परिवार का एक बड़ा तबका लड़की के बाप को बचाने में लगा है फिर भी एक पुलिस अधिकारी की जिम्मेवारी बनती है कि न्याय में सहयोग करने वाले के साथ खड़े हो वैसे भी अब लोग इस तरह के मामले में बचता है ।

नफरत फैलाने वाले एक दिन वो खुद उसका शिकार बन जाता है

नफरत कैसे हमारी आपकी जिंदगी को तबाह कर रहा है उसकी एक बानगी आपको सूनाते हैं कोई छह वर्ष पहले शाम के समय एक कॉल आया उस समय मैं बस में था आवाज सही से नहीं आ रहा था मैंने यह कहते हुए फोन रख दिया कि आवाज नहीं आ रही है नेटवर्क में आते ही फोन करते हैं।

घर पहुंचने के बाद उस नम्बर पर काॅल किये बात हुई तो पता चला फोन करने वाली उस इलाके से आती थी जहां आज भी नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती है और आये दिन नक्सली हमला भी होता रहता था किसी और को लगा रही थी गलती से मेरे नम्बर पर काॅल कर दी। बात आयी चली गयी लेकिन कुछ ही दिनों बाद उस इलाके में एक बड़ी नक्सली घटना घटी घटना के चंद मिनट बाद है उसका फोन आया उस समय रात के कोई एक बज रहे होगा संतोष सर अभी अभी बड़ी घटना घटी है नक्सली तीन लोगों को मार दिया है और कई लोगों का साथ लेकर चला गया।वैसे मेरे इलाके में ये समान्य घटना है लेकिन आपके लिए खबर है इस घटना के बाद उससे हमारी बातचीत होने लगी और यू कहे तो नक्सली से जुड़ी खबर के लिए मेरा वो सबसे बड़ा सूत्र बन गयी। एक दिन उसका फोन आया सर पटना आये हैं मुलाकात होगी क्यों नहीं आओं ऑफिस में है काफी देर बातचीत हुई और पटना आने का प्रयोजन पूछा तो पता चला ये पटना में ही रहते थे दो वर्ष पहले बेबी हुई थी इसलिए अपने मायके में रह रही थी, पति अमेरिका में आईटी फील्ड से जुड़ा है बेटी दो वर्ष की हो गयी है अब फिर से पटना रहने आ रहे हैं बेटी बड़ी हो रही है ।

कुछ दिनों के बाद वो अपनी बेबी के साथ पटना सिफ्ट कर गयी पटना में ही पढ़ाई लिखाई हुई थी इसलिए पटना से उसका पुराना रिश्ता था एक दिन उसका फोन आया सर बच्चा का कोई बढ़िया डॉक्टर जो हो उससे जरा दिखवा देते बेबी का तबियत बहुत खराब है बोरिंग रोड में बच्चों का अच्छा डॉक्टर है उसके यहां नम्बर लगवा दिये और फिर जिस समय डॉक्टर समय दिये थे मैं भी पहुंच गया बेबी को देख कर मैं हैरान रह गया क्या हो गया खैर डॉक्टर पूछना शुरु किये क्या हुआ क्या क्या दवा दिए हैं पता चला इनके पति देव वही से पतंजलि का दवा बता रहे थे और वही दवा खिला रही थी स्थिति यह हो गया कि बेबी निमोनिया से इतनी संक्रमित हो गयी थी कि डाँक्टर परेशान हो गया इसी दौरान उसका घर जाना हुआ घर में प्रवेश करने के बाद मुझे पता नहीं क्यों बड़ा अटपटा लगा। अजीब अजीब सी आकृति उसके घर के अलग अलग हिस्से में बना हुआ था पहली बार मुझे एहसास हुआ कि इसका व्यवहार सामान्य नहीं है दो घंटे उसके घर पर रहे होंगे इस दौरान कई बात उसके पति का फोन आया और वो बार बार बेबी को डॉक्टर से दिखाने वाली बात छुपाती रही मैं हैरान था बेबी का हाल इतना बूरा है और ये डॉक्टर के पास ले जाने कि बात क्यों छुपा रही । बाद के दिनों मेंं उससे खुलकर बातचीत होने लगी एक दिन वो बताया कि मेरा पति का गजब का सोच है बेबी को डाँ से मत दिखाओं पटना में ये वैद्य है उससे दिखाओं पतंजलि के दवा का इस्तेमाल करो ।

Editorial
Editorial

महिलाओं को लेकर अजीब तरह का सोच है इस तरह का कपड़ा मत पहनो वो मत करो शाम होते होते कमरे पर आ जाओ हर समय विडियो काॅल करता है जैसे मुझ पर उसे भरोसा ही नहीं है।मैं खुद नौकरी करता था इतना तंग किया कि नौकरी छोड़ना पड़ा ये सब बताती रहती थी फिर बेबी के स्कूल में नाम लिखाने की बात हुई तो पति का आदेश हुआ कि बेबी का नाम ऐसे स्कूल में लिखाना जहां सिर्फ लड़किया पढ़ती हो पटना के सबसे बेस्ट स्कूल में नाम लिखाई एक दिन पता चला कि बेबी के नाम लिखाने को लेकर बड़ा बवाल हुआ है क्यों कि जिस स्कूल में नाम लिखाई है वहां क्रिस्चन शिक्षिका है और उसका प्रबंधक भी क्रिस्चन है इसलिए आज के आज उसे वहां से हटाओं मेरी बेबी का संस्कार खराब हो जाएगा इतना हंगामा किया कि अंत में उसको बेबी को स्कूल जाना बंद करना पड़ा और फिर उसे कहा कि देखो पटना में कही सरस्वती शिशु मंदिर है वहां बेबी का नाम लिखाओं वो ढूढती रही एक स्कूल मिला भी तो वो उसको पसंद नहीं आया फिर एक स्कूल में नाम लिखायी हालांकि उसका नाम भी क्रिस्चन जैसा ही था फिर वो वीडिओ कांल से पहले स्कूल को देखा स्कूल में क्या क्या है पत्नी उसको दिखायी की देखिए सरस्वती वंदना लिखा है ये देखिए माँ सरस्वती का फोटो लगा हुआ है ये देखिए शिक्षिका के मांग में सिंदूर लगा है गले में मंगल सूत्र है नाम भेल ही क्रिस्चन वाला है लेकिन यहां एक भी शिक्षिका क्रिस्चन नहीं है तब ठीक है यहां नाम लिखा लो ।

एक सप्ताह पहले उसका फोन आया संंतोष सर एक गांड़ी लेना है लेकिन जो गाड़ी मुझे पसंद है वो कह रहा है कि एक माह बाद देंगे एजेंसी वाले को फोन करवाये तो बड़ी मुश्किल है तैयार हुआ तीन अगस्त को अक्षय तृतीया उस दिन गाड़ी लेगे सारा पैसा भुगतान भी कर दिया अभी थोड़ी देर पहले उसका फोन आया संतोष सर गाड़ी आज नहीं दे देगा मैंने पुंछा क्यों रात में उसका फोन आया था कह रहा था तीन मई को ईद भी है इसलिए उस दिन गाड़ी मत निकालो। हद है तीन मई को तो अक्षय तृतीया है उस दिन शुभ माना जाता है ईद है तो क्या हुआ अपना शुभ दिन लोग छोड़ दे संतोष सर आप तो समझते ही किस दिमाग का है आज ही गाड़ी दे दे बोल दीजिए ना गाड़ी आ गया है आज कल खामखां विवाद से मैं बचना चाहता हूं उसको तो कुछ नहीं होगा मेरा तबियत खराब हो जाएगा प्लीज सर आप बोल दीजिएगा तो गांड़ी दे देगा ।


सॉरी सर एक और बात गाड़ी का नम्बर अपने पसंद का मिल सकता है कह रहा था ऐसा नंबर लो जो जोड़ने पर 18 आये शुभ होता है। मैं चुपचाप उसकी बातों को सुनता रहा और मुस्कुराता रहा घृणा और नफरत कभी भी एकतरफा नहीं होता है उसका असर अपने परिवार और आस पास के लोगों को भी होता है पता है वो अपने बेबी को क्या पढ़ता है नानी नाना मौसी पराई होती है वो हमेशा गलत बात समझती है उससे दूरी रखो। दादा दादी जो कहे वो करो मम्मा पूरे दिन किस किस से फोन पर बात करती है कहां कहां जाती है उस पर नजर रखा करो और चुपके से मुझको बताया करो आ रहे हैं अक्टूबर में इस बार साथ लेकर आयेंगे पासपोर्ट अप्लाई कर दिये हैं।

मुसलमानों से नफरत क्यों?

मैं रोसड़ा का रहने वाला हूं मेरा मोहल्ला नागपुर का रेशिमबाग है मतलब संघ का दूसरा मुख्यालय हालांकि अब पहले वाली बात नहीं रही फिर भी संघ और भाजपा को लेकर वैसा ही जुनून है।

दो दिन पहले भाई की शादी में जाने का मौका मिला सबके सब वही थे दरबाजा लग गया था हम सब लोग वरमाला का इन्तजार कर रहे थे मेरे चारों ओर हाफ पेंट तभी हमारे मधु चाचा चिल्लाते हैं टुनटुन योगी तो कमाल कर दिया क्या हुआ  लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगा दिया है ठीक बगल में दया चाचा बैठे हुए थे धीरे से बोलते हैं टूनटून योगा तो कमाल कर दिया मैंने कहा ठीक तो किया है लेकिन आप लोग जो रात के बारह बजने को है धमाल मचाये हुए हैं दो दो डीजे बज रहा है महफिल सजा है यहां गीत चल रहा है कानून बना है तो आप पर भी लागू होना चाहिए मुसलमान नहीं बजाये और आप नवाह करिए और 24 घंटे लोगों का जीना हराम किये रहिए ये कहां तक सही है इतना कहना था कि चचा जान फर्म में आ गये । खैर चचा जान मुझसे इतना प्यार करते हैं कि छोड़ो बेटा  ये धोती कुर्ता तुम पर बहुत जच रहा है कभी टीवी पर भी इस ड्रेस में आओ बहुत अच्छा लगेगा ।            

चाचा जी आपके पार्टी को मेरा चेहरा पसंद नहीं है,आपका पार्टी चाहता है कि मैं पत्रकारिता छोड़ दूं नहीं बेटा ऐसा क्या है तुम सही हो लड़ते रहना है हिम्मत नहीं हारना अरे ऐसा क्या है विचार अलग अलग नहीं हुआ तो फिर समाज मर जायेंगा लेकिन चचा जान हालात अब पहले जैसा नहीं रहा पत्रकारिता लोगो को पसंद नहीं है उन्हें बस तारीफ सुनना पसंद है चाचा जी आप लोग तो देश बटवारा के तीन चार वर्ष बाद ही पैदा लिए होंगे कहां आप लोगों को कभी हिन्दू मुसलमान करते हुए देखे बताइए।                     

भारत पाकिस्तान  बंटवारे के समय ना जाना कितने लोग बेघर हुए थे , कितने लोग मारे गये ,कितनी महिलाओं का अस्मत लूटा गया, कितने लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया ।धर्म के नाम पर देश को दो टुकड़े मे बटा गया ,गांधी की हत्या हुई हत्या के बाद पूरे देश में संघ से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी हुई  बाबा दो वर्ष तक जेल में रहे। 

संघ का शाखा लगता था जिसका नाम था अभिमन्यु शाखा नागपुर से संघ के जो भी बड़े पदाधिकारी बिहार आते थे उनका प्रवास  यहां पहले से तय रहता था रज्जू भैया जो बाद में संघ के सरसंघचालक बने दो वर्ष तक मेरे यहां ही उनका रहना होता था फिर भी दादा जी का सबसे जिगरी दोस्त मुसलमान था वो किसी गांव का मुखिया था याद है ना वो अक्सर सुबह सुबह आते थे और घंटों दोनों दोस्त में बातचीत होती थी और साथ पहलवानी भी करते थे ।

Editorial

चाचा जी जो संघ से सबसे तेज तर्रार स्वयंसेवक माने जाते थे 1983 -84 में जहां तक मुझे याद है  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा कश्मीर के लाल चौक पर झंडा फहराने वालों में एक थे उनका सबसे अंतरंग मित्र मुसलमान है ,पहली बार इन्ही के घर सेवई खाने का मौका मिला था महताव चाचा की पत्नी से मिले तो पता ही नहीं चला ये अपनी नहीं है हां एक बात अटपटा लगा था चाची का मायके सड़क के उस पार आमने सामने ही था बार बार मैं यही सवाल कर रहा था ये कैसे हो सकता है।

याद करिए हर वर्ष दरवाजे पर  दुर्गा जी का प्रतिमा आता था पूरे सम्मान के साथ रखा जाता था दादी और माँ दुर्गा जी का खोइछा भरती थी फिर जयकारा के साथ नदी की और चल जाता था, ठीक उसी तरह मोहर्रम मेंं मुस्लिम युवा नाचते गाते हथियार लहराते हुए दरवाजा पर आता था दादी या फिर माँ चावल और पैसा उसी श्रद्धा के साथ चढ़ाती थी ।रोसड़ा से पांच किलोमीटर दूर दरगाह पर हर वर्ष  मेला लगता है कितनी बार सब भाई बहन कंधे पर बैठ कर गये होगे याद नही है आप भी मिल जाते थे।                 

प्रख्यात गांधीवादी बलदेव नारायण दादा जी के अच्छे मित्र थे और रोसड़ा में मुसहर को समाज में जगह मिले इस आंदोलन में  दादा जी बलदेव नारायण जी के साथ खड़े थे जबकि उस इलाके के अधिकांश ब्राह्मणउनके खिलाफ थे बलदेव नारायण लाहौर में भगत सिंंह के साथ पढ़ते थे आजादी के आन्दोलन में बड़ी भूमिका रही है गांधी जी इन्हें दलितों में भी महादलित मुसहर जाति को पढ़ाने और समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए इन्हें रोसड़ा भेजे थे और रोसड़ा आने के बाद डाँ राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर मुसहर जाति के लिए इन्होंने स्कूल खोला ।               

दादा जी संघ के होने के बावजूद पूरी तौर पर इनके साथ रहे जबकि वो उस समय संघ के बड़े चेहरे थे पूरा नागपुर रोसड़ा में ही बसता था फिर भी कभी भी गांधी और मुसलमान को लेकर नफरत नहीं देखा इतना ही नहीं उस समय के लोहियावादी और समाजवादी नेताओं का भी परिवार पर उतना ही अधिकार था। मेरी दादी भले ही कर्पूरी ठाकुर को गाली देती रहती थी फिर भी जब वो आते थे सबसे पहले करैला का रस निकाल कर देती थी शायद उनको शुगर की बीमारी थी । कर्पूरी ठाकुर मेरे बड़े दादा जी के ससुराल के रहने वाले थे इसलिए हम लोगों के परिवार से उनका साला जीजा वाला ही  रिश्ता था। कहां हमारे दादा संघ के बड़े अधिकारी थे और जनसंघ के लिए पूरी तौर पर समर्पित थे ।जो सुनते हैं उस समय जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीया छाप होता था और बिहार में पहली बार जनसंघ जहां से चुनाव जीता 1972 में उसमें रोसड़ा विधानसभा भी था ।आपको लोगों को तो खुब याद होगा फिर भी सभी विचारधाराओं के लोगों के लिए दरवाजे खुले रहते थे ।              

व्यक्तिगत रिश्ते इतने मधुर थे कि आप लोग जो गवाह रहे हैं सोच नहीं सकते हैं धर्म और जाति के नाम पर कभी  विभेद देखा ही नहीं जबकि भारत से पाकिस्तान का अलग हुए 25 वर्ष हुए होंगे धर्म के नाम पर दंगा होने वाले राज्यों में बिहार सबसे आगे था फिर भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच आज जो दिख रहा है वो उस समय नहीं दिख रहा था  ऐसा क्यों कभी सोचे हैं सोचिए हम लोग कहां जा रहे हैं यहां तो कभी भी मुसलमान और हिन्दू जैसा कभी नहीं रहा आज ऐसा क्या हुआ जो आप योगी के इस निर्णय से खुश हैं ।रोसड़ा में मुसलमान को आबादी तो ना के बराबर है हां तीन वर्ष पहले  चैती दुर्गा पूजा में बवाल हुआ एक तरफा  मस्जिद पर आप लोग तिरंगा फहराये मस्जिद में रखे धार्मिक ग्रंथ को जला दिये इतना गुस्सा किस बात का आज तक  यहां हिंदू मुसलमान के नाम पर इससे पहले एक ईट भी नहीं चला था सोचिए कहां जा रहे हैं या फिर आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ जो हमारे आपके दिल में इतना नफरत भर गया है ।

क्रमशः– – —

बिहार बीजेपी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है

नरेन्द्र मोदी 2014में देश के प्रधानमंत्री बने और साथ में अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष इसके बावजूद भी बिहार बीजेपी मोदी और शाह के एजेंडे के साथ खड़ा नहीं था।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी और शाह पूरी ताकत लगा दिये बिहार बीजेपी पर कब्जा करने के लिए लेकिन इतनी बूरी हार हुई की दोनों को समझ में आ गया कि बिहार को साधना इनके बस में नहीं है,और फिर सुशील मोदी के हाथ बिहार बीजेपी का कमान सौप दोनों शांत बैठ गये।

सुशील मोदी अरुण जेटली के साथ मिलकर 2017 में नीतीश कुमार को फिर से अपने साथ लाने में कामयाब हो गये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 के लोकसभा में जीती हुई पाँच सीट देकर नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने को मजबूर हुए ।
मतलब भारत की राजनीति में आप दोनों की जोड़ी भले ही महानायक वाली क्यों ना हो बिहार में चलेगी तो नीतीश और सुशील मोदी की ही चलेगी ।

ऐसा ही 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी हुआ नीतीश बिहार में मोदी और शाह किस लाइन पर बोलेगे ये भी नीतीश तय किये।
चिराग के साथ गठबंधन टूटने की वजह नीतीश खुद थे या फिर चिराग के पीछे बीजेपी खड़ी थी इसलिए गठबंधन नहीं हो सका यह अभी भी स्पष्ट नहीं है ।

लेकिन गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी जिस तरीके से चिराग को मदद कर रहा था उससे यह संदेश जाने लगा था कि जदयू को कमजोर करने में बीजेपी शामिल है। हालांकि दूसरे चरण के बाद बीजेपी को लगा की यह दाव उलटा पड़ सकता है और राजद की सरकार बन जायेंगी तो फिर तीसरे चरण में चिराग को जो मदद मिल रहा था वह बंद हुआ और फिर पीएम मोदी चिराग के खिलाफ पहली बार दरभंगा की सभा में बोले तब तक बहुत देर हो चुकी थी,और फिर जो परिणाम आया उसमें पहली बार नीतीश बिहार में तीसरे नम्बर पर पहुँच गये ।

मोदी और शाह को जैसे ही मौका मिला सबसे पहले सुशील मोदी को बिहार से बाहर का रास्ता दिखाया, संगठन मंत्री नागेन्द्र जी को बिहार से बाहर किया और ऐसे विधायक को मंत्री बनाया जो नीतीश और सुशील मोदी के गुड बुक में नहीं थे और समय आने पर इन दोनों पर हमला भी कर सके ,उसी कड़ी में नितिन नवीन,सम्राट चौधरी और शहनवाज जैसे को मंत्री बनाया और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को नीतीश के खिलाफ बयान देने की खुली छुट दी गयी ।

बिहार विधानसभा के अध्यक्ष को सरकार को नीचे दिखाने को लेकर प्रेरित किया गया और संघ के एजेंडे को लागू करने को लेकर नीतीश पर दबाव बनाने को कहॉ गया।
पहली बार विधानसभा सत्र के दौरान जन गन मन की जगह वंदे मातरम गाया गया,विधानसभा के स्मृति स्तम्भ से अशोक चक्र को हटाया गया, इस तरह के कई काम हुए जो नीतीश को पसंद नहीं था।
2021में यानी 7 वर्ष बाद मोदी और शाह का बिहार भाजपा पर पूरी तरह कब्जा हो गया ।

वही नीतीश मोदी और शाह के रणनीति को भाप गये और चुनाव परिणाम आने के एक माह बाद ही वो चुपचाप पार्टी को मजबूत करने में लग गये गाँव गाँव तक संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरु हुई ,उपेन्द्र कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर कुर्मी कोयरी गठजोड़ को मजबूत किया फिर नाराज सवर्ण नेता को मिलाना शुरु किया।

दोनों उप चुनाव जीते फिर विधान परिषद के सीट बटवारे में भी बड़े भाई की भूमिका में बने रहे विधान परिषद चुनाव में मधुबनी में बीजेपी वाले साथ नहीं दिये तो बेगूसराय में बदला ले लिये और बोचहा का रिजल्ट तो बता दिया कि बिहार में मोदी शाह की जोड़ी चलने वाला नहीं है।

यह बात जैसे ही सामने आया सुशील मोदी अपने अंदाज में हमला शुरु कर दिये और संकेत भी दे दिये कि नीतीश कमजोर होगे तो फिर 2024 का लोकसभा चुनाव में बिहार में हाल बूरा हो सकता है ।

ऐसे में आने वाले समय में नीतीश गठबंधन का साथ कब छोड़ते हैं ये तो नीतीश तय करेंगे लेकिन बिहार बीजेपी मोदी और शाह के नीति के साथ सहज नहीं है ये साफ दिखने लगा है और 60 से अधिक ऐसे बीजेपी विधायक है जो किसी भी समय चुनौती दे सकते हैं,ऐसे में वीर कुंवर सिंह के विज्योउत्सव कार्यक्रम की सफलता से मोदी और शाह के चेहते खुश हैं लेकिन सुशील मोदी की ट्टीट ने पलीता लगाने का काम कर दिया है यह साफ दिखने लगा है ।

पटेल की तरह वीर कुंवर सिंह के सहारे राजपूत नेताओं को साधने की तैयारी में तो नहीं जुटा है बीजेपी

आरा में वीर कुंवर सिंह की जयंती के मौके पर 78 हजार 25 लोगों ने तिरंगा फहराकर पाकिस्तान के एक साथ 75 हजार लोगों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया है और अब जल्द ही यह रिकॉर्ड ग्रीनिज बुक में भारत के नाम दर्ज होगा ।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस आयोजन के सहारे बीजेपी राजनीति के किस नैरेटिव का साधना चाह रही है। हालांकि जो नैरेटिव दिख रहा है वो यह था कि वीर कुंवर सिंह को जाति से बाहर निकाला जाये और उन्हें राष्ट्रवाद के नैरेटिव में फिट किया जाये।

इसके पीछे मोदी और शाह की यह सोच है कि पटेल की तरह ही वीर कुंवर सिंह ऐसे स्वतंत्रता सेनानी है जिनका जातीय आधार राष्ट्रीय फलक पर काफी मजबूत है लेकिन इनके जाति के कई ऐसे नेता है जो उन्हें आने वाले समय में चुनौती दे सकते हैं ऐसे में वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व को राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से स्थापित किया जाये जिससे उनके विरादरी के नेता का प्रभाव कम हो ।

इसके लिए आने वाले समय बाबू साहब अंग्रेज के साथ लड़ाई के दौरान 22 अप्रैल 1858 को जब बलिया के शिवपुर घाट पर गंगा पार कर रहे थे तब उनकी भुजा में गोली लगी जिसे काटकर गंगा में फेंक दिया था उस स्थान पर पटेल से भी बड़ी मूर्ति और शौर्य पार्क बनाने की योजना है जिसकी चर्चा आज अमित शाह अपने भाषण के दौरान किये हैं ।

साथ ही वीर कुंवर सिंह के 80 वर्ष मे हथियार उठाने और अंग्रेज का हराने का जो शौर्यगाथा रहा है उसका इस्तमाल मोदी के लिए आने वाले समय में किया जा सका ये भी रणनीति का हिस्सा है ताकी मोदी ने मार्गदर्शक मंडल के सहारे जिस तरीके आडवाणी सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं को एक साथ साध दिये थे वैसे कोई मोदी को ना साधे।

क्यों कि वीर कुंवर सिंह की जो छवि रही है वो कही से भी बीजेपी के नैरेटिव में फिट नहीं बैठता है ये अलग बात है कि आजादी के आन्दोलन के दौरान सावरकर कई बार वीर कुंवर सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ हिन्दू चेहरा के रूप में स्थापित कोशिश की जरूर किया था लेकिन उस तरीके से आगे नहीं बढ़ पाया था वैसे आज शाह कह गये हैं कि वीर कुंवर सिंह के बारे में सही इतिहास नहीं लिखा गया है ऐसे में आने वाले समय में वीर कुंवर सिंह की अलग छवि देखने को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी देखिए आगे आगे होता है क्यों कि जाति इस देश का यथार्थ है और पटेल की तरह राजपूतों का शहरीकरण नहीं हो पाया है अभी भी बड़ी आबादी गांव में रहता है कृषि उसका मुख्य पेशा है ।

ऐसे में मोदी और शाह इस खेल में कहां तक कामयाब होते हैं कहना मुश्किल है लेकिन देश की राजनीति को बदलने की एक बड़ी कोशिश जरुर है।

वीर कुंवर सिंह की जंयती पर खास

कालिदास तुम सही थे ! तुम्हारा वह कथानक चित्र जिसमें तुम पेड़ के एक डाल पर बैठे हो और उसी डाल को काट रहे हो यह बिना सोचे कि डाली जब कट के गिरेगी तो तुम भी उसी डाली के साथ गिर जाओगे।

कालिदास तुम अलग नहीं हो । सदियों से मनुष्य जाति यही तो करती आई है ।
आज बुलडोजर चलाने पर जो खुश है वो तुम्हारे कथानक चित्र को वो पात्र है, जिसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि कानून है तो तुम हो, संविधान है तो तुम हो ।शासन और सत्ता तो चाहती ही है कि कानून और संविधान पर से लोगों का भरोसा उठ जाये ।
आज जिस रहमान के घर बुलडोजर चलने पर खुश हो, वह सिर्फ रहमान का घर नहीं है वह घर भारतीय संविधान और न्याय संहिता का घर है जिसके बुनियाद पर भारत बसा हुआ है ।सत्ता और सरकार तो चाहती ही कि कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर कानून और संविधान को धत्ता बताते रहे । कल तुम रहमान का घर टूटने पर खुशी मना रहे थे आज रमन झा और विवेक गुप्ता के घर बुलडोजर चला तो कागज दिखा रहे हो ।

तेरी हंसी कब तरे घर मातम लेकर पहुंच जाये किसी ने नहीं देखा है सत्ता और सरकार को इतनी छूट दिये तो फिर बहु बेटी को घर से उठा कर ले जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।

Editorial

देखो सत्ता का चरित्र आज जरुरत पड़ी तो वीर कुंउर सिंह के परिवार वाले की हत्या मामले में एक माह बाद डाँक्टर पर कार्यवाही हो रही है ।इससे पहले सूना था बिहार में इलाज में लापरवाही बरतने पर किसी डाँक्टर पर कार्यवाही हुई हो ।वैसे 23 अप्रैल के बाद डाँक्टर साहब को मनचाही जगह मिल जायेंगी ये भी तय है काली हो सकता है इस कथा में तुम्हारे नाम को जोड़कर उस ज़माने के तुझे नापसंद करने वालों ने तेरी फिरकी ली हो ।फिर भी एक बात तो है, तुम मिथक कथा के पात्र ही सही पर जीवंत बिंब हो मनुष्य जाति के एक पहलू के ।

भाई भाई को लड़ा रहा है सत्ता के लिए और ससुरे को समझ में नहीं आ रहा है नौकरी और रोजगार हाथ से जा रहा है शहर दर शहर उजर रहा है 35 रुपया का पेट्रोल 120 रुपया में बेच रहा है अपनी ऐयाशी के लिए फिर भी समझ में नहीं आ रहा है।
काली मेरा मानना है कि तुम ये कहानी मनुष्य को संचेत करने के लिए गढ़ा था लेकिन दुर्भाग्य है काली 1500 सौ वर्ष बाद भी समझ में नहीं आया है क्या करोगे मनुष्य समझदार ही हो जाता तो फिर ऐसे लोगों की दुकाने कैसे चलती है।

संघ को अब भंग कर देना चाहिए – संघ का पूर्व प्रचारक

हाल ही में संघ के एक पूर्व प्रचारक से मुलाकात हो गयी आज कल वो विधायक भी हैंं लम्बे अवधि तक इनका मेरे यहां आना जाना रहा है इसलिए मुलाकात के साथ ही पुरानी यादें ताजी हो गयी । कोई चार घंटा का साथ रहा ऐसे में स्वाभाविक था कि संघ और बीजेपी को लेकर इनसे लम्बी बातचीत हुई अभी जो देश में चल रहा है उसको लेकर ये काफी दुखी है,एक बात है संघ का प्रचारक अभी भी लाग लपेट में विश्वास नहीं करता है और जो सच है उस सच को स्वीकार करने में तनिक भी देर भी नहीं करता है ।

1–संघ को अब भंग कर देना चाहिए बातचीत को लब्बोलुआब यही था कि संघ का सौ वर्ष पूरे होने वाला है अब इस संस्था को भंग कर देना चाहिए संतोष बाबू जिस समय मैं प्रचारक बना था उस समय पूरे देश में 3487 प्रचारक हुआ करता था(अविवाहित फुल टाइम संघ के लिए काम करने वाले ) पिछले वर्ष मैं बाहर निकला हूं उस समय मात्र 709 प्रचारक बच गये और हाल यह है कि नये लोग अब संघ के प्रचारक के रूप में काम करने नहीं आ रहे हैं यही स्थिति रही तो दो तीन वर्ष में सौ के नीचे हो जायेगा और आप जानते ही है कि संघ जो यहां तक पहुंचा है उसके पीछे हजारों प्रचारक का 24 घंटे का श्रम है वैसे भी संघ का लक्ष्य क्या था राम मंदिर ,धारा 370 और कॉमन सिविल कोड।

राम मंदिर और धारा 370 हो ही गया और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कॉमन सिविल कोड लागू हो ही जाएगा उसके बाद संघ के पास बचेगा क्या ।वैसे भी जब से सरकार में बीजेपी आयी है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हाल देख लीजिए अब पहले वाला तेज रहा है ,मजदूर संगठन.स्वदेशी जागरण मंच, और सरस्वती शिशु मंदिर का अब कोई मतलब रह गया संघ के सभी अनुषांगिक संस्थान का यही हाल है कोई भी संगठन कार्यक्रम और आन्दोलन से चलता है ।

सरकार में आने के बाद अब ये सब करने का गुंजाइश ही नहीं रह गया है ऐसे में संगठन कमजोर पड़ेगा संतोष बाबू विवेकानंद भी कहे थे किसी भी संस्था पर उर्म सौ वर्ष होता है और अभी जो देश मेंं हो रहा है वो संघ को स्वीकार्य नहीं है हिन्दु जागरण का यह मतलब नहीं है कि मुसलमान को तंग करे इससे संगठन को और नुकसान ही हो रहा बताइए संतोष बाबू आप तो देखे हैं ना एक साइकिल और साथ में झौला सुबह का नास्ता किसी के यहां दोपहर का भोजना किसी और के यहां,शाम का नास्ता मिला तो ठीक नहीं तो रात का भोजन किसी स्वयंसेवक के यहां होता था कोई डर भय नहीं आज ना भाजपा सत्ता में है बीस वर्ष पहले गांव में भाजपा और संघ कहां था फिर भी जो संघ का स्वयंसेवक नहीं भी था उसके दरवाजे पर भी चले जाते थे तो सम्मान के साथ बैठाते थे हमलोग को देख कर गांव की महिलाए भी हिन्दी में बात करने लगती थी हाफ पेंट वाला सर जी नाम ही था हम लोगों का लेकिन अब जो स्थिति बनते जा रहा है कोई प्रचारक सोच भी सकता है कि दूसरे विचार धारा वाले के यहां बैठ भी सकता है।

Editorial
Editorial

बताइए ना संतोष बाबू हम ठहरे प्रचारक मोटरसाइकिल से चलते हैं तो पार्टी वाला हल्ला करने लगता है आप विधायक है मोटरसाइकिल से चलिएगा बताइए तीन चार लोगों के यहां चले गये हजार रुपया का तेल लग जाता है गाड़ी रखिए तो ड्राइवर रखिए कहां से उसको पैसा देंगे विधायक फंड है तो कार्यकर्ता सबका अलगे हिसाब है संतोष बाबू यहां हमको मन नहीं लग रहा है बताइए कहता है भीड़ जुटाइए कहां से जुटाए और अगर जुट भी गया तो उसको लाने ले जाने में जो खर्च होगा कहां से लायेंगे ये सब जब पार्टी में सवाल करते हैं तो ऐसे देखता है जैसे मैं इस दुनिया के इंसान ही नहीं है बहुत मुश्किल है इसके लिए थोड़े ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिये हैं संघ में अब लौट सकते नहीं है और राजनीति हम लोगों से होने वाला नहीं है दिन भर झूठ बोलिए क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।

चलिए बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई और चाचा जी लोग ठीक है ना माँ कुशल हैं बच्चा सबका पढ़ाई लिखाई चल रहा है एक बात संतोष बाबू आपका पूरा परिवार संघ का स्तम्भ रहा है आप ऐसे मत लिखा करिए सीधा हमला बोल देते हैं तो फिर विधायक जी क्या चाहते हैं कलम गिरवी लगा दे ना ना संतोष बाबू कांलेज जीवन से ही इंडिया टुडे नियमित पढ़ते थे उसमें भी तवलीन सिंह का लेख जरुर पढ़ते थे पत्रकार को स्वतंत्र जो जरुर होना। तभी जिनके कार्यक्रम में हम दोनों पहुंचे थे वो दौरे दौरे आये और बोले विधायक भी संतोष जी से क्या बतिया रहे हैं सब बात मीडिया में आ जाएगा, नहीं नहीं हम लोग इनके घर में पले बढ़े हैं पता है अपने मिजाज से पत्रकारिता करते हैं वैसे संघ को अब भंग कर देना चाहिए ये मैं अब मंच से भी बोलने वाला हूं ।

अनुपम खैर कब से मौका परस्त हो गये

अक्सर मेरी दादी कहती थी कि जो जितना पढ़ा है वो उतना भ्रष्ट है ।दादी से मैं अक्सर भ्रष्ट का मतलब समझना चाहते थे वैसे उनकी नजर में पढ़ा लिखा लोग(व्यक्ति) में लोक लज्जा नहीं होता है सही को सही और गलत को गलत कहने की ताकत नहीं होती है साथ ही मौका परस्त होता । तो फिर मेरा सवाल होता था कि हम लोगों को क्यों पढ़ा रही हो,दादी पूरे विश्वास के साथ कहती थी तुम लोग भी पढ़ के यही करेगा फिर भी पढ़ा रहे हैं लोक(मनुष्य) तो बन जायेगा ।

आज एक बार फिर मुझे दादी की कही वो बात याद आ गयी द कश्मीर फाइल्स फिल्म के मुख्य किरदार अनुपम खेर ने कश्मीर समस्या को लेकर 2010–2011-2012 और 2013 में ट्वीट किया है उस ट्वीट में क्या लिखा है जरा आप भी पढ़ लीजिए –
1—2010 में कश्मीर के मसले पर अनुपम खेर ने एक ट्वीट किया था, इसमें वो लिखते हैं-
”कश्मीर के लिए मेरा दिल रोता है. राजनीति और आतंकवाद ने वहां के लोगों के लिए इस जन्नत को जहन्नुम बनाकर छोड़ दिया है. हिंदु और मुस्लिम दोनों के लिए.”

2——2011 में अनुपम खेर ने एक इमाद नजीर नाम के एक ट्विटर यूजर को जवाब देते हुए लिखा-
”समस्या कश्मीरी पंडितों और मुस्लिमों के साथ नहीं है. हम सालों तक शांति से एक-दूसरे के साथ रहे हैं. ये सब पॉलिटिशियन का किया धरा है दोस्त.”


3————-2012 में अनुपम खेर का कश्मीर, कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों पर किया एक ट्वीट नीचे पढ़िए-
”न भूलिए. न माफ करिए. हमें कश्मीरी मुस्लिमों के साथ पंडित महिलाओं के बारे में नहीं भूलना चाहिए. दोनों कमोबेश एक समान दुख से गुज़रे हैं.”


4———2013 में किया अनुपम खेर का ये ट्वीट ‘द कश्मीर फाइल्स’ की रिलीज के बाद सबसे ज्यादा वायरल हो रहा है. इसके पीछे की वजह आप ये ट्वीट पढ़कर समझ जाएंगे-
”मैं देख रहा हूं कि कुछ लोग विस्थापन को लेकर कश्मीरी पंडितों के हाहाकार को धार्मिक रंग दे रहे हैं. ये धर्म के बारे में नहीं है. मानवीय पीड़ा के बारे में है, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों गुज़रे.”

5—-द कश्मीर फाइल्स की रिलीज के बाद अनुपम खेर ने लिखा-
”लोगों का प्यार, कश्मीरी हिंदुओं के आंसू, विवेक अग्निहोत्री का धैर्य/साहस, द कश्मीर फाइल्स की पूरी टीम की मेहनत और सबसे ऊपर बाबा भोलेनाथ का आशीर्वाद. सच की जीत कभी ना कभी तो होनी थी. 32 साल बाद ही सही. कश्मीर को लेकर अनुपम खेर या तो पहले झूठ बोल रहे थे या फिर अब झूठ बोल रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अनुपम खेर जैसी शख्सियत को ये करने कि जरूरत क्यों पड़ी जिसके अभिनय ने देश के यूथ को ईमानदारी और राष्ट्र प्रेम के लिए प्रेरित किया लेकिन इस ट्वीट के पढ़ने के बाद तो यही लगता है कि अनुपम खेर कर्मा वाला डॉक्टर डैंग ही हैं बाकी सब ढोंग है ।

बीजेपी को कोर वोटर का साथ छुटना बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ा कर सकती है

भारतीय राजनीति को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह से पत्रकारों ने सवाल किया तो वीपी सिंह ने कहा था कि भारत विविधताओं का देश है यहां जाति ,धर्म ,क्षेत्रवाद ,और सामाजिक मान्यताओं को लेकर व्यापक स्तर पर विरोधाभास है ।ऐसे में जो राजनीतिक दल जाति,धर्म,क्षेत्रवाद और सामाजिक मान्यताओं को लेकर व्याप्त विरोधाभास का बेहतर समन्वय करेंगा वही पार्टी भारतीय राजनीति में सफल हो सकता है ।भारतीय राजनीति को समझना है तो इससे बेहतर कोई दूसरा सूत्र नहीं है ।

            यूपी चुनाव के परिणाम को लेकर कल मैंने एक पोस्ट लिखा था कि बीजेपी भेले ही चुनाव जीत रहा है लेकिन बीजेपी का जो आधार वोट रहा है सवर्ण ,बनिया के साथ साथ मीडिल क्लास और पढ़ा लिखा तबका चुनाव दर चुनाव उससे दूर होता जा रहा है और आज भी अति पिछड़ा और दलित लाभकारी योजनाओं के साथ साथ क्षेत्रीय दल की वजह से भले ही बीजेपी को वोट मिल जा रहा है लेकिन इस वर्ग में अभी भी बीजेपी का प्रवेश नहीं हो सका है ।यूपी चुनाव में बीजेपी के जीत को लेकर महिला वोटर और मुफ्त अनाज योजना को लेकर बड़ी बड़ी बातें हो रही है लेकिन चुनाव का परिणाम इसके ठीक उलट में यूपी के जिस इलाके में पुरुष की तुलना में महिला वोटर सबसे अधिक वोट किया वहां बीजेपी का खासा नुकसान हुआ है उसी तरीके से जिस इलाके में मुफ्त अनाज योजना का लाभ सबसे अधिक लोगों ने उठाया उस इलाके में भी बीजेपी को खासा नुकसान उठाना पड़ा।                        

इतना ही नहीं जिस इलाके में बीजेपी का परम्परागत वोट सबसे अधिक प्रभावी था उस इलाके में भी बीजेपी के बड़ा नुकसान हुआ है जी है हम बात कर रहे हैं पांचवां, छठा और सातवां चरण के चुनाव का जहां सबसे अधिक महिला वोट किया ,मुफ्त अनाज योजना को सबसे अधिक लाभ इसी इलाके के लोगों ने उठाया है और परिणाम पर गौर करे तो अंबेडकर नगर, आजमगढ़ और गाजीपुर जिले में भाजपा का खाता तक नहीं खुला।   

इतना ही नहीं जौनपुर जिला के 9 सीटें में (6 सपा गठबंधन & 3 भाजपा गठबंधन)जीत दर्ज किया है।भदोही जिले में  3 सीट है जिसमें  (2 सपा गठबंधन & 1 भाजपा गठबंधन)मऊ जिले में  4 सीटें है जिसमें (3 सपा गठबंधन & 1 भाजपा गठबंधन),बलिया जिला जहां  7 सीट है वहां (4 सपा गठबंधन, 2 भाजपा गठबंधन & 1 बसपा)को जीत मिली है ।बनारस और गोरखपुर के कमीश्नरी में सभी 17 और 28 में 27 सीटों पर जीत नहीं मिलती तो बहुमत को लेकर समस्या खड़ी हो जाती ये वही इलाके से जहाँ राजभर और पल्लवी पटेल ने बीजेपी के अतिपिछड़ा वाले वोट में सेंध लगा दी वही सवर्ण और बनिया के साथ साथ बीजेपी का जो परंपरागत वोटर था वो या तो वोट गिराने मतदान केन्द्रों नहीं पहुंचे या फिर जिस पार्टी से जिस बिरादरी का उम्मीदवार था उसको वोट कर दिया बलिया में राजपूत,गाजीपुर में भूमिहार वोटर बीजेपी के साथ पूरी तौर पर खड़ा नहीं रहा है जबकि एक मुख्यमंत्री के उम्मीदवार है और दूसरा के पास मनोज सिन्हा जैसा नेता है फिर भी अन्य फेज की तरह वोट नहीं किया मतलब सपा जिन इलाकों में जो विरोधाभास था उसका बेहतर समन्वय करने में कामयाब रही वहीं सपा सफल रहा।

                             ऐसे में संदेश साफ है कि बिहार और यूपी जैसे राज्यों में जो क्षेत्रीय दल है उनकी वापसी तभी संभव है जब वो अपने चरित्र में बदलाव लाये मुस्लिम और यादव में जो अपराधी प्रवृत्ति से नेता है उससे दूरी बनानी पड़ेगी क्यों कि बिहार और इस बार यूपी में भी राजद और सपा के हार के पीछे एक बड़ी वजह मुलायम,अखिलेश और लालू राबड़ी राज्य में कानून व्यवस्था का जो हाल था उसको लेकर आज भी वोटर इन दोनों पार्टियों से स्वाभाविक दोस्ती बनाने से परहेज करते हैं और इसी का  लाभ बिहार में नीतीश और यूपी में बीजेपी उठा रहा है।जीती हुई टीम की क्या कमजोरी है इस पर चर्चा होती नहीं है लेकिन इतना तय है कि बीजेपी को अपना का साथ छूट रहा है ये साफ दिख रहा और जो पार्टी बीजेपी के कोर वोटर को साधने में कामयाब होगे आने वाला कल उसका होगा यह बिहार के बाद यूपी का चुनाव परिणाम भी चीख चीख कर कह रहा है ।

    

बिहार के शेखपुरा में बच्ची के साथ हुए गैंगरेप ने खड़े किये कई सवाल

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सुबह से ही महिलाओं के बुलंद हौसला से जुड़ी खबरें लगातार आ रही थी इसी दौरान शाम तीन बजे के करीब जिला शेखपुरा से ब्रेकिंग फॉर्मेट में एक खबर आयी…

दो बच्चियों के साथ गांव के ही छह लड़के ने किया सामूहिक बलात्कार, मोबाइल पर ब्लू फिल्म देख कर घटना को दिया अंजाम, आरोपी का उम्र12 से 13 वर्ष और पीड़ित लड़की का उम्र 9 से 10 वर्ष है ।

खेत में साग तोड़ रही थी दोनों लड़की उसी दौरान इन लड़कों ने घटना को दिया अंंजाम, अपराध छुपाने के लिए लड़कों ने पीड़िता को दिया पांच रुपया, एक लड़की की स्थिति बिगड़ने पर मामला आया प्रकाश में ।।

खबर पढ़ने के बाद मन मेंं कई तरह के सवाल उठने लगे, गांव की पृष्ठ भूमि कैसा है ,लड़का का पृष्ठ भूमि क्या है, जाति क्या .आरोपी का परिवारिक बैकग्राउंड कैसा है ।लगातार इस तरह का सवाल मुझे परेशान किये जा रहा था ।

शेखपुरा रिपोर्टर से बात करना चाह रहे थे लेकिन जिस तरीके से मैं सोच रहा हूं मेरा रिपोर्टर पता नहीं इस खबर को लेकर क्या सोच रहा है, मन ही मन में यह निर्णय लिया कि पहले पूरी खबर आने दिया जाये फिर इस पर अपने रिपोर्टर और शेखपुरा पुलिस से बात किया जायेंगा क्यों कि मुझे पता था कि पुलिस का नजरिया अपराध के बाद अपराधी के गिरफ्तारी से ज्यादा रहता नहीं है।

खैर कल साहस नहीं जुटा पाये कि इस खबर को कैसे लिया जाये आज सुबह से इसको लेकर अपने रिपोर्टर ,शेखपुर जिले के पुलिस पदाधिकारी और कुछ ऐसे लोगों से बात किये जो इस तरह के कृत्य करने वाले के मनोदशा पर प्रकाश डाल सके ।
लड़की और लड़का दोनों का पृष्ठ भूमि मजदूर का परिवार के लोग रोज कमाता है रोज खाता है ,घटना को अंजाम देने वाले लड़कों में एक लड़के का पिता बाहर काम करता है और अपनी पत्नी और परिवार वालों से बात करने के लिए एक एनरोइड मोबाइल पत्नी को दिये हुए है ।

पत्नी अक्सर रात को अपने पति से लाइव चेट करती रहती है उस दौरान दोनों के बीच मोबाइल पर ही सेक्सुअल एक्टिविटी भी चलता रहता है जिसको पास में ही सोया बेटा देखता रहता था। फिर मोबाइल में ही ब्लू फिल्म कैसे चलता है पापा मां को क्या बोलने के लिए कहते हैं जिसके बाद ब्लू फिल्म आ जाता है वह सब पूरी रात मां के पास सोये सोये देखता रहता था।बाद में वो लड़का मोबाइल से अपने साथ खेलने वाले मित्रों को दिखाना शुरु किया और धीरे धीरे छह लड़को की एक टोली बन गयी, इस घटना से पहले भी लड़कों का यह टोली साथ स्कूल जाने और साथ बकरी चराने जाने वाली लड़कियो के साथ अक्सर इस तरह का काम करता रहता है और लड़की विरोध ना करे इसके लिए पांच से दस रुपया दे दिया करता था।

पुलिस दो बच्चों को गिरफ्तार किया है उनसे पुछताछ के दौरान ये सारी बाते सामने आयी है मोबाइल पुलिस ने जप्त कर लिया है मोबाइल के मेमोरी कार्ड में ब्लू फिल्म का कई क्लिप मिला है फिर गुगल पर ब्लू फिल्म का आईकोन मिला है।
पुलिस इस घटना से जुड़ी जो भी साक्ष्य है वो संग्रह कर लिया है लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि यह प्रवृति जो बच्चों में पैदा हो रहा है उसका असर समाज पर क्या पड़ेगा ।

क्यों कि आये दिन बिहार में या देश के अन्य हिस्सों से बलात्कार की जो खबरें आती है उस पर गौर करेंगे तो अधिकांश बलात्कारी का पृष्ठ भूमि प्रवासी मजदूर का ही रहता है, निर्भया कांड को ही देख ले इस घटना को अंजाम देने वालों में अधिकांश ऐसे युवक थे जो अपने परिवार और पत्नी से दूर दिल्ली में नौकरी कर रहा था इतना ही नहीं देश में आये दिन बलात्कार के दौरान जो हिंसक घटना घटती है उसमें कही ना कही एक दो आरोपी नबालिक रहता है और लड़कियों के साथ जानवर की तरह व्यवहार करने में सबसे आगे वही रहता है।

शेखपुरा की घटना रोजगार के लिए पलायन और मां के साथ गांव ने रह रहे बच्चों के मनोदशा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है वो समझने के लिए काफी है ।ऐसा नहीं है कि मोबाइल आने से पहले इस तरह की घटनाए नहीं घटती थी तब भी जिस महिला का पति बाहर काम करता था उसके साथ उसके देवर या फिर ससुर द्वारा जबरन रिश्ता बनाने की घटना घटती रही है ।

लेकिन ये भी सही है कि मोबाइल फोन के गांव गांव तक पहुंचने के बाद इस तरह की घटनाओं में काफी तेजी आयी है ,ऐसे में पलायन और उसके कुप्रभाव के साथ साथ मोबाइल क्रांति का समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इस पर विमर्श की जरुरत है ।
कोरोना काल के बाद जिस तरीके से आंन लाइन पढ़ाई को लेकर क्रेज बढ़ा है उसका बच्चों पर क्या असर पड़ा है ये भी समझने कि जरुरत है ऐसे इस विषय को लेकर कई लोगोंं से जो हमारी बात हुई है उनका मानना है कि आंन लाइन पढ़ाई की वजह से बच्चों का इस तरह के फिल्म तक पहुंचना आसान हो गया है और अभिभावक भी पढ़ाई के चक्कर मेंं ध्यान नहीं दे पा रहे हैं ।
ऐसे में वक्त आ गया है कि इस ओर गंभीरता से सोचा जाये क्यों कि इस तरह के प्रवृति के बढ़ने से लड़कियों के स्वछंदता पर बूरा प्रभाव पड़ सकता है और एक अलग तरह के अभिसाप के डर से लड़कियों का स्वभाविक विकास रूक सकता है ।

मीडिया का साम्प्रदायिकरण

कल एक राष्ट्रवादी चैनल के सीनियर पत्रकार का दिल्ली से फोन आया संतोष जी ये जो भागलपुर में जो घटना घटी है क्या उस इलाके में मुसलमान भी मंडल लिखता है क्या, मैंने कहा नहीं जिसके यहां धमाका हुआ है उसके यहां 1999, 2002 और 2007 में भी धमाका हुआ चुका है,भागलपुर में  गंगौता एक जाति है जो इस तरह के काम में वर्षो से लगा हुआ है।आंफिस पहुंचते पहुंचते मरने वालो की संख्या बढ़कर 14 हो गयी थी विधानसभा पहुंचे तो देखते हैं रिजनल और राष्ट्रीय चैनल का ओबी वैन और बैकपैक यही है बात हुई तो पता चला कि जाने को लेकर आंफिस से अभी तक कोई आदेश नहीं आया है विधानसभा में भी इस घटना को लेकर कोई हलचल नहीं था ।                  

मैं हैरान था इतनी बड़ी घटना हो गयी है और चारों और खामोशी छाई हुई है शाम चार बजे डीजीपी इस घटना को लेकर पीसी किये वहां भी मौजूद पत्रकारों में कोई हलचल नहीं था डीजीपी भी रुटीन घटना की तरह आये और मीडिया को संबोधित करके चले गये कोई उस तरह का सवाल नहीं इतनी बड़ी घटना और डीजीपी के पास कहने के लिए इतना ही था कि थाना अध्यक्ष को निलंबित कर दिया गया है एफएसएल की टीम को भागलपुर भेजा गया और जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है ।

इसी दौरान खबर आयी की मोदी जी इस घटना को लेकर नीतीश जी से बात किये हैं हालांकि उससे पहले पीएम का इस घटना को लेकर ट्वीट भी आ गया था। देर शाम फिर दिल्ली से फोन आया संतोष जी ये तो समझ में आया कि पटाखा बनाने वाला हिन्दू था लेकिन जो इलाका है वो इलाका तो पूरी तौर पर मुसलमानों का इलाका है  उस इलाके में एक मात्र यही हिन्दू परिवार वहां  रहता था और जिस मकान में किराया पर रहता था वो भी मुसलमान का ही है मैंने कहा आपकी जानकारी सही है लेकिन यह परिवार पुराना पटाखा कारोबारी है लेकिन एक बड़ा सवाल है आप लोग दिल्ली में है उठाना चाहिए था इतना बड़ा विस्फोट हुआ है एनआईए अभी तक नहीं पहुंचा है जबकि भागलपुर में आये दिन इस तरह की घटनाएं घटती रहती है पहले भी यहां हिन्दू मुसलमान के बीच बड़ा दंगा हो चुका है।    

पटाखा बनाने में बारूद का इस्तेमाल होता है लेकिन विस्फोट बता रहा है कि बारूद के साथ कोई ना कोई ऐसा शक्तिशाली पदार्थ मिलाया गया जिसके कारण इतना बड़ा नुकसान हुआ है ठीक है संतोष फिर बात करते हैं और उसके बाद वो फोन रख दिये सुबह अखबार में भी ऐसा नहीं लग रहा है कि बिहार में 14 लोगों की मौत हो गयी है ।सोशल मीडिया का भी यही हाल था लग ही नहीं रहा था कि बिहार में 14 लोगों की मौत हुई है।जबकि भागलपुर में इससे पहले टिफिन बम बरामद हो चुका है ,केमिकल बम बरामद हो चुका है आये दिन अलग अलग तरह का बम बरामद होता रहता है जिससे बड़ा नुकसान हो सकता है ।           

मतलब घटना के पीछे अगर हिन्दू मुसलमान का एंगल है तो खबर है नहीं है तो खबर नहीं है चाहे कितनी भी बड़ी घटना क्यों नहीं घट जाये ।यह मानसिकता 2014 के बाद मीडिया में काफी तेजी से पनपा है वजह जो भी हो लेकिन यह साफ है कि मीडिया के इस मानसिकता का नुकसान आम लोगों को ही उठाना पड़ेगा।

सत्ता और सरकार से सवाल करने से देश मजबूत होता है

बात कोई 15 वर्ष पुरानी है मेरा भगिना अमेरिका से आया हुआ था बच्चों का जो टीकाकरण होता है उसका समय हो गया था लेकिन अमेरिका में बच्चों को जो टीका दिया जाता था वो यहां उपलब्ध नहीं था, भगिना मेरा अमेरिकन नागरिक था जहां तक मुझे याद है भारत में अमेरिका का जो दूतावास है वो भगिना के हर गतिविधि की जानकारी रखता था ।            

टीकाकरण की बात हुई तो जानकारी दी गयी कि पटना के एग्जीबिशन रोड में बच्चों के टीकाकरण से जुड़ा कोई डॉक्टर है जिनके यहां वो टीका उपलब्ध है ये सारी जानकारी दूतावास के माध्यम से मिल रहा था डॉक्टर के पास पहुंचे तो उसको पहले से जानकारी था टीकाकरण के बाद बच्चों को कोई परेशानी तो नहीं हुई इस स्तर तक दूतावास खबर रखता था अपने नागरिक का वैसे यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।                            

वैसे अमेरिका अपने नागरिक के प्रति कितना सजग है ये मीडिया रिपोर्ट से समझा जा सकता है वहीं एक अमेरिकन सेना या नागरिक के मौत होने पर वहां की जनता किस स्तर पर सवाल करती है वो भी कई मौके पर देखने को मिला है लेकिन आज यूक्रेन क्राइसिस के दौरान भारतीय छात्रों के साथ दूतावास का क्या व्यवहार है वो छात्रों के जुबानी समझा जा सकता है ।

भारत सरकार के मंत्री  प्रह्लाद जोशी (Pralhad Joshi) कहते हैं कि  विदेश में पढ़ने वाले 90% मेडिकल स्टूडेंट नीट एग्जाम पास नहीं कर पाते हैं इस बयान का यूक्रेन में फंसे छात्रों से क्या सम्बन्ध है क्या वो इस देश का नागरिक नहीं है यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने जाना देशद्रोही है क्या । 

लेकिन दूतावास का गैर जिम्मेदाराना रवैया और मंत्री का बेतुका बयान इसलिए आ रहा है कि इस देश की जनता सवाल करना भुल गया है  उलटे जो सवाल कर रहा है  उनसे पूछा जा रहा है कि झारखंड में छात्र पांडेय को मुसलमान मार दिया उस वक्त कहां थे ,कर्नाटक में हिन्दू छात्र को मुसलमान मार दिया उस वक्त चुप क्यों थे ऐसा सवाल करने लोगों  को ट्रोल कर रहे हैं।

इस संकट की घड़ी में भी जहां हजारों बच्चे जिंदगी और मौत से जूझ रहा है  इस समय भी सरकार पर दबाव बनाने के बजाय पूरी ट्रोल सेना  मामले को भटकाने में  लगा है। हालांकि अब पहले जैसी बात नहीं रही घर में विद्रोह शुरू हो गया है ।ऐसे लोग अब अपना प्रोफाइल लॉक करके रखता है फेक आईडी से अब यह खेल हो रहा है  लेकिन सवाल यह है कि यह कब तक चलेगा वैसे  यूक्रेन में जो छात्र फंसे हुए हैं उनमें से 95 प्रतिशत दास(भक्त) परिवार से ही आते हैं और उन्हें मोदी में अपार श्रद्धा है और इन्ही के जानने वाले मोदी का ट्रोल आर्मी भी है ये जानते हुए भी सवाल करने वाले सवाल कर रहे हैं।

आप तटस्थ है सही है मेरा देश शांति के साथ हमेशा खड़ा रहा है लेकिन इस तटस्थता का क्या मतलब है जब हमारे नागरिक की जिंदगी दाव पर है कही कोई खबर तो नहीं आयी है कि रूस से भारत की बात हुई हो कि हमारे नागरिक को सुरक्षित बाहर निकालने का रास्ता दिया जाये ।रुस हमारा मित्र देश हैं संकट के खड़ी में तटस्थ रह कर साथ ही दिये हैं ऐसे में रुस से सहयोग की अपील करनी चाहिए कि नहीं  अभी एक छात्र की मौत हुई है और  ये हाल है कि पीएम को खुद बात करनी पड़ रही है।

वैसे इन बच्चों को लाने  में जो खर्च हो रहा है वो पैसा बच्चा देश छोड़ने से पहले ही सरकार के खाते में जमा कर दिया है उस खाते में अभी भी 400 करोड़ रुपया देश के ऐसे नागरिक का जमा है जिसका इस्तेमाल ऐसे में समय में सरकार कर सकती है ,इसलिए सरकार इन बच्चों को लाकर कोई एहसान नहीं कर रहा है।          

वैसे यूक्रेन में फसे बच्चों के परिजनों से डीएम का मिलना अच्छी पहल है और यही होना चाहिए ऐसी घड़ी में परेशान परिवार को हमेशा यह लगना चाहिए कि पूरा सिस्टम और देश उनके साथ खड़ा है तभी तो देश के प्रति सम्मान का भाव रहेगा क्यों कि इसका असर हर नागरिक  पर पड़ता है ।

आपदा को अवसर में बदलने का वक्त नहीं है मिल कर यूक्रेन में फंसे भारतीय को निकालने पर सोचे

आत्ममुग्धता और अपने पूर्वजों के सर ठीकरा फोड़ने की प्रवृति कमजोरी की निशानी है, इस समय भारत इसी दौर से गुजर रहा है। जो भी गड़बड़ हुआ उसके लिए गांधी और नेहरू जिम्मेदार है और जो अच्छा हो रहा है उसके लिए मैं और सिर्फ मैं ही हूं।

कल से अचानक यूक्रेन में फंसे छात्रों का परेशानी भरा मैसेज और फोन कॉल आना तेज हो गया इधर अभिभावक का हाल और बूरा हो गया है और जब से रूसी सेना द्वारा भारतीय लड़की को अगवा करने की खबर आयी है लोग और परेशान हो गये हैं ।

यूक्रेन में 15 हजार से अधिक भारतीय छात्र और छात्राएं फंसी हुई है पिछले दो दिनों के दौरान दो सौ तीन सौ करके चार पाच फ्लाइट भारत पहुंचा है एयरपोर्ट पर आत्ममुग्धता की यह स्थिति दिख रही थी जैसे जंग जीत करके आ रहे हैं मंत्री से लेकर संतरी तक पहुंचे हुए थे लेकिन रात से खबर आ रही है कि रूसी सेना भारतीय लड़की को अगवा कर लिया है मीडिया से लेकर मंत्री संतरी तक चुप्पी साध लिए हैं सरकार हेल्पलाइन नम्बर जारी कर दी है एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए रेड कारपेट और गुलाब छात्र छात्राओं के आने का इन्तजार कर रहा है वही यूक्रेन में जो छात्र फंसे हुए हैं वो कह रहे हैं कि दूतावास फोन नहीं उठा रहा है ,देश स्तर पर जो हेल्पलाइन जारी किया गया है वो कोई रिस्पांस नहीं ले रहा है ।

ukraine

बिहार की बात करे तो अभी तक 51 लौटे है जबकि बिहार के 1200 सौ अधिक छात्र वहाँ मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है ।
पटना डीएम से बात हुई इन्होंने कहा कि बिहार के कितने छात्र यूक्रेन में फंसे हुए हैं इसकी कोई सूची नहीं है बस जो दिल्ली और मुंबई पहुंच रहा है उसके घर तक पहुंचाने कि जिम्मेदारी सरकार ने दी है वही हो रहा है ।

बिहार सरकार के श्रम मंत्रालय के अधिकारी और मंत्री का भी यही हाल है बिहार के कितने बच्चे यूक्रेन में पढ़ रहे हैं कोई जानकारी नहीं है हां एक खगड़िया के डीएम है जो सूची जारी किया है कि उनके जिले के 11 बच्चे यूक्रेन में फंसा हुआ है अभी थोड़ी देर पहले खगड़िया डीएम का एक मैसेज आया है कि एक छात्र थोड़ी देर में मुंबई पहुंचने वाला है।

कल देर शाम बिहार के मुख्यसचिव बिहार के सभी डीएम से सूची उपलब्ध कराने को कहाँ है वैसे देश स्तर पर सूची जारी होनी चाहिए थी कि कितने छात्र और नागरिक यूक्रेन में फसा हुआ है ।

मंत्री जी भेजे गये हैं तो क्या हो रहा है छात्र उनसे कैसे सम्पर्क करे कहां से निकाला जा रहा है क्यों कि इस समय मीडिया ही एक ताकत है जो भारतीय नागरिक तक सूचना पहुंचा सकता है यूक्रेन के दूतावास को मजबूत बनाने कि जरूरत है और इस सब के लिए रूस क्या मदद कर सकता है इस पर बात होनी चाहिए सीधे वोट में शामिल नहीं होंगे इसका कोई मतलब नहीं है हर सहयोग के लिए रूस से सौदा होना चाहिए की हमारे नागरिक को सुरक्षित निकालने का मौका दीजिए ।

क्यों कि युद्ध विनाशकारी होगा ऐसा दिखने लगा है रूस यूक्रेन पर कब्जा करने को लेकर किसी भी हद तक जाने का मन बना लिया है वही यूक्रेन भी झुकने को तैयार नहीं है ऐसे में अब जो युद्ध होगा वो बेहद भयानक होगा और इस दौरान मानवता के सारे रिश्ते खत्म हो जाएंगे ऐसे में भारत सरकार को पहले लड़कियों को वहां से बाहर निकाले क्यों कि जो सोशल मीडिया का जमाना है और जो खबरें आ रही है वो परेशान करने वाली है ।

आपदा में अवसर की तलाश छोड़ के इस समय सब मिल के काम करने की जरूरत है ।

संघ सम्राट अशोक को औरंगजेब क्यों मानता है

संघ सम्राट अशोक को लेकर असहज क्यों है इस सवाल का जवाब तलाशने कि कोशिश में मैं पिछले कई दिनों से संघ से जुड़े लोगों से बातचीत कर रहा हूँ, इतना ही नहीं अशोक की तुलना औरंगजेब से करने वाले नौकरशाह दया प्रकाश सिन्हा से भी मेरी बात हुई लेकिन सम्राट अशोक को लेकर संघ की ऐसा सोच क्यों है उसको लेकर स्पष्टता नहीं हो पायी ।

फिर दिल्ली विश्वविधालय और जेएनयू से जुड़े मित्रों से इस सम्बन्ध में लंबी बातचीत हुई और इस दौरान इस विषय से जुड़े कई आलेख को भी पढ़ने का मौका मिला ।

मोटा मोटी तौर पर जो मेरी समझ में आयी है वो बौद्ध धर्म को लेकर संघ की जो सोच रही है सम्राट अशोक के विरोध की वजह यही है ऐसा प्रतीत होता है।

गोलवलकर अपनी पुस्तक ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता की परिभाषा’ में बुद्ध और बौद्ध धर्म को लेकर विस्तृत चर्चा किये हैं ।
जिसमें उनका मानना था कि ‘बुद्ध के बाद उनके अनुयायी पतित हो गए. उन्होंने इस देश की युगों प्राचीन परंपराओं का उन्मूलन आरंभ कर दिया. हमारे समाज में पोषित महान सांस्कृतिक सद्गुणों का विनाश किया जाने लगा. अतीत के साथ के संबंध-सूत्रों को भंग कर दिया गया. धर्म की दुर्गति हो गई. संपूर्ण समाज-व्यवस्था छिन्न-विच्छिन्न हो गयी ।

भारत माँ के प्रति श्रद्धा इतने निम्न तल तक पहुंच गई कि धर्मांध बौद्धों ने बौद्ध धर्म का चेहरा लगाए हुए विदेशी आक्रांताओं को आमंत्रित किया तथा उनकी सहायता की उनका आचरण देशद्रोही जैसा हो गया था ।

वही बौद्ध धर्म के अहिंसा का पाठ ने भारतवंशी को कायर बना दिया ।
क्यों कि अशोक धम्म के सहारे बौद्ध धर्म को पूरे विश्व में फैलाये इसलिए माना जा रहा है कि संघ अशोक का इसलिए विरोध कर रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सम्राट अशोक के बाद भारत गुलामी के दास्ता से बाहर क्यों नहीं निकल पाया ,सम्राट अशोक भारतवंशी को अहिंसा का पाठ पढ़ा कर कायर बना दिया ये संघ का मानना है। अगर ऐसा था तो बाद के दिनों में शंकराचार्य के नेतृत्व में हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान हुआ फिर भी भारतवंशी गुलामी की दास्ता से बाहर क्यों नहीं निकल पायी जब कि इस देश पर सबसे ज्यादा हमला शंकराचार्य के हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान काल के बाद ही शुरू है ।

इस सवाल पर संघ के विचारक स्पष्टता के साथ कुछ भी नहीं लिखे हैं और ना ही इस विषय पर संघ स्पष्टता के साथ बोलता है ।
इसकी वजह है संघ हमेशा भारत को एक राष्ट्र के रूप में देखता है जबकि भारत अशोक के काल को छोड़ दे तो राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से कभी एक राष्ट्र नहीं रहा है हां सांस्कृतिक रूप से आज जो भारत है वो जरूर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहा है, ऐसा नहीं होता तो दक्षिण का एक संत पूरे भारत में चार पीठ स्थापित नहीं कर पाते।

दूसरी बात राष्ट्र आधुनिक विचार है इस विचार के सहारे भारत के इतिहास को ना देखा जा सकता है ना समझा जा सकता है । यू कहे तो 1947 में भारत का उदय एक राष्ट्र के रूप में हुआ जिसके निर्माण में कई ऐसी बुनियादी बाते निहित है जो राष्ट्र के आधुनिक विचार से मेल नहीं खाता है ।

इसलिए हमारे पुरखों ने भारत को यूनियन ऑफ स्टेट कहा जहां तमाम तरह के विवादित मसले का एक हल निकालने कि कोशिश हुई। जिसको लेकर आज संघ और भाजपा ताना मार रही है।

संघ और भाजपा जिस दिशा में भारत को ले जाना चाह रही है संभव है आने वाले समय में भारत एक बार फिर ऐसी समस्याओं में घिरने लगा है जिसके समाधान को लेकर गांधी को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी।

इंदिरा गांधी भी इसी तरह की छेड़छाड़ की कोशिश शुरू की थी देश को क्या नुकसान हुआ समाने हैं सच यही है कि भारत को राष्ट्र के रूप में नहीं संस्कृति के रूप में देखने कि जरूरत है ।

लोकतंत्र खतरे में है

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने ‘देश में लोकतंत्र को कैसे काम करना चाहिए’ विषय पर आयोजित बहस पर चर्चा करते हुए कहां कि ‘ज्यादातर देश उच्च आदर्शों और महान मूल्यों के आधार पर स्थापित होते हैं और शुरू होते हैं, लेकिन अक्सर संस्थापक नेताओं और अग्रणी पीढ़ी के बाद दशकों और पीढ़ियों में धीरे-धीरे चीजें बदल जाती हैं।

‘स्वतंत्रता के लिए लड़ने और जीतने वाले नेता अक्सर महान साहस, अपार संस्कृति और उत्कृष्ट क्षमता वाले असाधारण व्यक्ति होते हैं। वे आग में तपकर आए और लोगों और राष्ट्रों के नेताओं के रूप में उभरे। वे डेविड बेन-गुरियन्स हैं, जवाहरलाल नेहरू हैं, और हमारे अपने भी हैं।

‘लेकिन आज नेहरू के भारत की बात करे तो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लोकसभा में लगभग आधे सांसदों के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या के आरोपों सहित आपराधिक मामले लंबित हैं। हालांकि यह भी कहा जाता है कि इनमें से कई आरोप राजनीति से प्रेरित हैं।’ लेकिन सवाल तो है ऐसे में लोकतंत्र कैसे बचेगा जब चुन कर आने वाले प्रतिनिधियों का चरित्र दागदार हो भ्रष्ट हो ।

वही दूसरी और आज बिहार विधानसभा के स्थापना दिवस के अवसर पर विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए आज प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर बिहार सरकार के संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़े किये जाने पर कहा कि आज हर कोई हमलोग पर अंगुली उठाने के लिए तैयार बैठा रहता है। मौका मिला नहीं कि हम लोगों पर उंगली उठा दी जाती है। आज शराबबंदी पर एक संस्था की तरफ से अंगुली उठाई जा रही है।

बिहार विधानसभा स्थापना दिवस
Bihar Assembly Foundation Day

मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष पूरे देश के विधायिका के कस्टोडियन हैं। आज बिहार की शऱाबबंदी कानून पर सवाल खड़े किये गये और कहा गया कि बिना समझ के कानून बना दिया गया। जबकि भारत का संविधान इसी विधायिका ने बनाया है ऐसे में आप विधायिका को बचाने के लिए आगे आयें। उन्होंने कहा कि गाहे-बगाहे शराबबंदी कानून को उदाहरण के तौर पर बताया गया और कहा गया कि विधायिका ने बिना सोचे-समझे कानून बना दिया। विजय चौधरी ने इस पर गहरी आपत्ति जताई और लोकसभा अध्यक्ष को आगे आने को कहा।

बिहार विधानसभा

मुझे लगता है विजय चौधरी के सवाल का जवाब सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग के भाषण में निहित है और आने वाले समय में खास करके भारत में जिस तरीके के प्रतिनिधि चुनाव जीत कर आ रहे हैं क्या होगा भारतीय लोकतंत्र कर सोच कर मन सिहर जाता है इसके लिए कोई और नहीं राजनीतिक दल ही जिम्मेदार है जो सत्ता में बने रहने के लिए हर क्षण अलोकतांत्रिक निर्णय लेते रहते हैं और ऐसे ऐसे लोगों को सांसद और विधायक का टिकट देते हैं जिन्हें लोकतंत्र से कोई वास्ता नहीं है ना समझदारी है ये सब पहले जाति के नाम पर चला और अब राष्ट्रवाद के आड़ में चल रहा है गौर से सोचिए आजादी के आन्दोलन वाली पीढ़ी के जाने के बाद भारतीय लोकतंत्र राजनीतिक दल किसी दिशा में ले गये हैं कैसे लोगों को वो टिकट दे रहे हैं ।

यह तर्क कि अपराधी को जनता वोट देती है तो पार्टी मजबूरी हो जाती है ऐसे लोगों को टिकट दे सही है लेकिन ऐसे लोगों के सदन में आने से लोकतांत्रिक मूल्य कैसे स्थापित होगा ये कौन सोचेंगा बिहार में विधान परिषद का चुनाव होने वाला है पार्टियां कैसे कैसे लोगों को टिकट दे रही है ऐसे में सवाल उठना लाजमी है खुद सरकार नहीं चाहती है कि सदन चले जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस हो ।नारों और व्यक्तिगत लाभ से जुड़ी योजनाओं के सहारे कब तक लोकतंत्र के पहिया को खींच सकते हैं

पुलवामा अटैक का मुख्य आरोपी अभी पकड़ से बाहर है

आज 14 फरवरी है प्यार को पाने का दिन वो प्यार जिसमें घृणा की कोई जगह नहीं है और इंसान अपने प्यार को पाने के लिए सब कुछ दाव पर लगा देता है । वही दूसरी और आज पुलवामा अटैक की तीसरी पुण्यतिथि भी है जो जताता है कि इंसान किस हद तक पागल हो गया है धर्म के नाम पर ,कौम के नाम ,और छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर।

कल से सोशल मीडिया पर  एक मीम चल रहा है  सेना की वर्दी में खड़ा एक नौजवान वैलेंटाइन डे के मौके पर गिफ्ट खरीद रही लड़कियों से पूछ रहा है आज क्या है लड़की कह रही है वैलेंटाइन डे, सैनिक उदास हो जाता है बहना याद करो आज क्या हुआ था ,इस मीम के सहारे क्या याद दिलाना चाह रहे हैं यही ना कि आज हमारे  40 सपूत शहीद हो गये लेकिन अच्छा होता कि आप यह मीम बनाते कि पुलवामा अटैक  के पीछे कौन है , किसने रची थी ये साजिश, कहां से आया था आरडीएक्स अगर मास्टरमाइंड मौलाना मसूद अजहर  ही था तो पुलवामा अटैक के तीन वर्ष हो गये मौलाना मसूद अजहर को इसकी सजा मिले इसके लिए तीन वर्ष के दौरान क्या कार्रवाई हुई है जो कौम सवाल करना करना छोड़ देता है उस कौम के होने का कोई मतलब नहीं है ।

 आज भेल ही सुबह से हमारे उन 40 शहीद जवानों के मंजार पर आसू बहाने लोग पहुंच रहे हैं लेकिन सच्चाई यही है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पुलवामा आतंकी अटैक केस में जो 13,500 पन्नों का जो चार्जशीट दायर किया गया है वो सिर्फ कोरी कहानी है ,उस पन्ने में अटैक से जुड़ी कई सवालों का जवाब नहीं है मसलन इतनी बड़ी साजिश के पीछे देश में कौन बैठा हुआ था जम्मू से जब हमारे जवान का काफिला श्रीनगर के लिए चला तो पल पल की जानकारी आतंकी को कौन मुहैया करा रहा था ,छोटे मोटे दुकान चलाने वाले ,कार मिस्त्री देहारी का काम करने वाला इतनी बड़ी साजिश को अंजाम कैसे दे सकता है ।

आरडीएक्स कहां से आया, गाड़ियों के काफिला को सुरक्षित ले जाने को लेकर जो रणनीति बनायी गयी उस रणनीति में कहां चूक हुई और फिर इतनी बड़ी साजिश बिना विभीषण  के सम्भव है क्या। 

ऐसे कई सवाल है इस मामले एनआईए ने 19 आरोपी को बनाया है इनमें से 6 आतंकियों की मौत हो चुकी है इस आतंकी हमले को आदिल अहमद डार नाम के आत्मघाती आतंकी ने अंजाम दिया था. जो मारा गया था. आदिल के साथ मिलकर हमले के लिए आईईडी बनाने वाला उमर फारूक भी मारा गया है

1—-सात  पाकिस्तानी को भी आरोपी बनाया गया है

जैश-ए मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को एनआईए ने अपनी चार्जशीट में सबसे पहला आरोपी बनाया है. मसूद के अलावा  उसके भाई अब्दुल राउफ और मौलाना अम्मार को भी आरोपी बनाया गया है. मौलाना अम्मार बालाकोट में जैश के आतंकियों को ट्रेनिंग देता है,इनके अलावा इस्माइल, उमर फारूक, कामरान अली और कारी यासिर के नाम भी चार्जशीट में हैं. ये चारों भी पाकिस्तानी हैं. इनमें से उमर, यासिर और कामरान  मारे जा चुके हैं।

12 कश्मीरी हैं. कश्मीरी आतंकियों में आदिल डार, सज्जाद अहमद भट्ट और मुदस्सिर अहमद खान मारे जा चुके हैं.

 शाकिर ने हमले के लिए कार उपलब्ध कराई थी, साथ ही विस्फोटक, आईईडी भी उपलब्ध कराया था. अब्बास राथर ने ऑनलाइन शॉपिंग के जरिए हमले में मदद की थी बस इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने वालो की यही सूची है घटना के पीछे जो भी वजह हो सकती है वह सब पाकिस्तान में बैठे मसूद अजहर पर थोप दिया गया है मसलन आरडीएक्स मसूद ने उपलब्ध कराया ,ट्रेनिंग मसूद ने ही करवाया ।

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध ।

जब से यूपी सहित पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा हुई है उसके बाद से देश में क्या चल रहा है उस पर जरा गौर करिए बहुत कुछ समझ में आ जायेगा ।कर्नाटक में जो कुछ भी हो रहा है ऐसा तो नहीं है कि नये सत्र का शुभारंभ हुआ है और कॉलेज में नये छात्र-छात्राएं आयी है इसलिए ड्रेस को लेकर विवाद शुरू हो गया । या फिर मुस्लिम लड़कियाँ अचानक हिजाब पहनकर कॉलेज जाना शुरु कर दी है जिसे देख छात्र भड़क गये ।

ऐसा कुछ भी नहीं है तो फिर यह मुद्दा अचानक उठा क्यों यह समझने की जरूरत है ,यूपी के कैराना में दूसरे चरण में चुनाव है लेकिन अमित शाह प्रचार अभियान की शुरुआत कैराना से करते हैं ।लेकिन कैराना के बाद जो माहौल बनना चाहिए था वो नहीं बन पाया, फिर ओवैसी पर हमला होता है इससे भी जो बात बननी चाहिए थी वो नहीं बन पाई ,फिर शाहरुख खान का मामला उछाला गया लता दी पर थूक फेका बहुत कोशिश हुई रंग देने कि लेकिन इसकी हवा तो चंद घंटों में ही निकल गयी ।

हिजाब पर विवाद उसी की अगली कड़ी है कर्नाटक के एक कांलेज में इस तरह घटना घटी और मीडिया इसको ऐसे हवा दिया कि यह मामला पूरे कर्नाटक में फेल गया , इसके पीछे का खेल यही है कि इसकी आग यूपी में कैसे फैले।

यह सियासत है और इस सियासत को समझने कि जरूरत है 2014– 2015 में लव जिहाद और गौ रक्षा के नाम पर पूरे देश में खूब खेला हुआ और फिर एक दिन अचानक चर्चा से गायब हो गया, क्या यह सब अब देश में नहीं हो रहा है, ऐसा नहीं है ना यही सियासत है लेकिन इस तरह के सियासत का क्या नुकसान हो रहा है शायद आज आपको समझ में नहीं आ रहा है ।

हिजाब का विरोध करने वाले कौन है जो कल तक वेलेंटाइन डे का विरोध कर रहे थे ,जिन्हें लड़कियों के जींस पहने पर आपत्ति है,जिनको लड़कियों के उच्च शिक्षा ग्रहण करने पर आपत्ति है, जो महिलाओं को घर की चारदीवारी में देखना चाहते हैं।

इसलिए हिजाब का मसला सिर्फ मुस्लिम लड़कियों से जुड़ा हुआ नहीं है यह मुद्दा उस सोच से जुड़ा हुआ है जो संघ का नजरिया है लड़कियों को लेकर, आज भले ही सियासी जरुरतों के अनुसार मुस्लिम लड़कियां इसकी शिकार हो रही है कल आप भी इसके शिकार होंगी यह तय मानिए।

क्यों कि सरकार किसी की भी रहे अब लोक लज्जा भी नहीं रह गया वोट के लिए ये किसी का भी सौदा कर सकता है मासूम लड़कियों के बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे राम रहीम को 21 दिन छुट्टी दिया है ये स्थिति है इसलिए जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध ।

ये कैसा लोकतंत्र जहां वोटर की खुल्लम खुल्ला लग रही है बोली

बिहार विधान परिषद के 24 सीटों के मतदान की तिथि इस माह के अंत तक घोषित हो जायेगी मतदाता सूची को  अंतिम रूप दिया जा रहा है और इस बार चुनाव आयोग मतदान के दौरान बाहुबल और धनबल को रोकने के लिए मतदाता सूची  बनाने के दौरान ही वोटर साक्षर है या निरक्षर है यह अंकित करने का आदेश जिला निर्वाचन पदाधिकारी को दिया है।            

पिछले चुनाव तक हो यह रहा था कि वोटर जिस उम्मीदवार से पैसा लेता था उसके आदमी के साथ वोट गिराने जाता था यह कह कर के की मैं साक्षर नहीं हूं और मुझे वोटिंग करने के लिए एक सहयोगी की जरूरत है इस आड़ में बड़ा खेल होता था जो प्रत्याशी जिस वोटर का वोट खरीदता था उसके साथ अपने एक सहयोगी को लगा देता था और वो सहयोगी वोट पर  वरीयता  के अनुसार चिन्ह लगाकर  डाल देता था लेकिन इस बार आयोग पहले ही सतर्क है। 

1—बिहार विधान परिषद के स्थानीय निकाय प्राधिकार निर्वाचन चुनाव में कौन कौन होते हैं वोटर हालांकि इस बार स्थानीय निकाय प्राधिकार निर्वाचन चुनाव के वोटर के रूप में पंच और सरपंच को भी जोड़ने की वकालत राजनीतिक दलों द्वारा किया गया लेकिन अब लगता नहीं है कि उनका नाम शामिल किया जाएगा क्योंकि आयोग मतदाता सूची को अंतिम रूप देने जा रही है।इस तरह इस बार भी मुखिया, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य सदस्य ही स्थानीय निकाय प्राधिकरण के उम्मीदवार को वोट करेंगे राज्य में मुखिया 8387, वार्ड सदस्य के 1,14,667और पंचायत समिति सदस्य 11,491 और जिला परिषद सदस्य के 1161 है सदस्य है जो 24 स्थानीय निकाय प्राधिकरण के द्वारा विधान परिषद सदस्य का चुनाव करेंगे।

2—दस हजार दे एक वोट ले
इस बार के चुनाव में जो भी पंचायत प्रतिनिधि चुनाव जीत कर आये हैं उनमें से अधिकांश लाखों में खर्च किये हैं पिछले चुनाव तक वार्ड सदस्य के पद पर चुनाव लड़ने वाला दूर दूर तक दिखायी नहीं दे रहे थे, मुखिया ढूंढ ढूंढ कर प्रत्याशी लाते थे फिर भी वार्ड सदस्यों का हजारों पद रिक्त रह जाता था ।

लेकिन हर घर जल योजना को वार्ड सदस्य के साथ जोड़ने के कारण इस बार मुखिया से ज्यादा वार्ड सदस्य के लिए मारामारी रहा है  एक एक वार्ड सदस्य चुनाव जीतने के लिए लाखों में खर्च किये हैं और यही वजह है कि विधान परिषद  चुनाव की घोषणा से पहले ही वार्ड सदस्य अपनी कीमत घोषित कर दिया है दूसरी वजह यह है कि इस बार हर जिले में शराब माफिया ,जमीन का अवैध कारोबारी और ठेकेदार जैसे मिडिल ऑर्डर के उम्मीदवार पहले से मैदान में मौजूद हैं जो शुरुआत में ही एक वोट की कीमत पांच हजार से सात हजार रुपया तक  तय कर दिया है उत्तर बिहार के एक जिले में तो एक वोट की कीमत पचास हजार रुपया तक चला गया है वही समस्तीपुर में एक उम्मीदवार ऐसा है  पत्नी मुखिया है बहन प्रखंड प्रमुख भाभी जिला परिषद अध्यक्ष और खुद विधान परिषद का चुनाव लड़ने जा रहा है ये स्थिति है ।                            

 पंचायत चुनाव लिमिटेड कंपनी की तरह काम कर रहा है कितना निवेश करना है और कितना आ सकता है इसको लेकर जिला की योजनाओं पर काम करने वाला ठेकेदार सलाहकार बना हुआ है ।             

 बिहार के राजनीतिक दल भी इस चुनाव को एक तरह का लॉटरी ही मान रहा है और वो भी तय नहीं कर पा रहा है कि एक टिकट के बदले उम्मीदवारों से कितना पैसा लिया जाये अभी तक तीन करोड़ रुपया अधिकतम बोली सूबे के एक बाहुबली द्वारा लगाया गया है हालांकि पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि बाहुबली और धनबली के मैदान में आने से राजनीतिक दल पेशोपेश में है वही कई पूर्व विधान पार्षद चुनाव लड़ने से हाथ खड़ा कर दिया है  2015 के चुनाव में औरंगाबाद स्थानीय प्राधिकार से विधान परिषद के लिए चुने गए राजन कुमार सिंह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे बातचीत में स्वीकार किया कि जिस तरीके से वोटिंग ट्रेंड दिख रहा है ऐसे में चुनाव लड़ना मुश्किल है,वही बातचीत में कई पूर्व विधान पार्षद भी चुनाव लड़ने के मूड में नहीं दिख रहा है ।

मीडिया का शाख लगा है दाव पर

आज तक पर यूपी चुनाव को लेकर आयोजित एक  कार्यक्रम के दौरान अंजना ओम कश्यप और अखिलेश यादव के बीच जिस अंदाज में संवाद हुआ उसे आप क्या कहेंगे, याद करिए किसान आन्दोलन के दौरान चित्रा त्रिपाठी के साथ जो कुछ भी हुआ उसे आप क्या कहेंगे ।क्या यह माना जाये कि पत्रकारिता संकट में है या फिर हम पत्रकार जिस तरीके से सत्ता के साथ खड़े दिख रहे हैं या फिर सत्ता से सवाल करना छोड़ दिये हैं उसका प्रतिफल है ।                                  

 बिहार में भी इस तरह का एक दौर आया था जब सीएम की कुर्सी पर लालू प्रसाद काबिज थे लालू प्रसाद सार्वजनिक मंच से मीडिया की आलोचना करते थे किसी विषय पर प्रतिक्रिया लेना रहता था तो घंटो घर के बाहर खड़े कर देते थे और आये दिन सार्वजनिक रूप से अपमानित भी करते रहते थे। फिर भी एक रिश्ता बना रहा ।            

जहां तक मेरा अनुभव रहा है अखबार में संपादक से लेकर प्रखंड के संवाददाता तक और चैनल के चैनल हेड से लेकर जिला रिपोर्टर तक पर सवर्णों का कब्जा होने के बावजूद कभी भी कभी सुबह के मीटिंग में यह एजेंडा तय नहीं होता था कि लालू प्रसाद की सरकार को घेराबंदी करने के लिए खबर को प्लांट करो या फिर उस नजरिए से खबर बनाओं जिससे लालू प्रसाद के शासन काल घेरे में आ सके।            

मुझे लगता है जब तक हम मीडिया वाले इस सोच के साथ काम करते रहे है कि जो खबर है चलेगा एजेंडा नहीं चलेगा तब तक ठीक रहा लेकिन जैसे ही हम लोग ऐजेंडे पर खबर करने लगे लोगों का भरोसा उठने लगा जो पहले नहीं था लोगों का मीडिया पर बहुत भरोसा था। और यही वजह थी कि गांव में रहने वाले लोग हो या फिर शहर में रहने वाले लोग हो उन्हें हमेशा लगता था कि मीडिया हमारे साथ खड़ी है हर दिन आम जनता का फोन आता था पुलिस के जुल्म को लेकर या फिर भ्रष्टाचार को लेकर। लेकिन जैसे जैसे मीडिया से आम लोगों के सरोकार से जुड़ी खबरें चलनी कम होती गयी लोग भी हम लोगों से दूर होते चले गये ।

अब पहले जैसे आम लोगों का कहां फोन काँल आता है बहुत कम अब कांल आता है हिन्दू मुसलमान के बीच विवाद को लेकर कही कोई घटना हो जाये एक घंटे में चालीस से अधिक कांल आ जाता है हर स्तर के लोग फोन करने लगते हैं हाल ही पटना में एक मुसलमान दुकानदार खरीदारी के दौरान हुए विवाद के क्रम किसी लड़की पर हाथ चला दिया इतना फोन कांल आया जैसे लगा नरसंहार हो गया हो और पुलिस नहीं पहुंच रही है और फिर क्या हुआ थोड़ी देर में सारे चैनल का हेड लाइन खबर बन गयी जबकि पहले हम मीडिया धार्मिक ,सम्प्रदायिक और जाति आधारित हिंसा से जुड़ी खबरो को लिखने में और दिखाने में बहुत सावधानी बरतते थे हम मीडिया वालों की पहली जिम्मेवारी यही होती थी कि ऐसा खबर ना चले जिससे समाज में तनाब बढ़ जाये लेकिन आज क्या हो रहा है हम लोग तनाब और घृणा पैदा करने वाली खबर ही नहीं चला रहे हैं बल्कि खबर प्लांट भी कर रहे हैं इससे हुआ क्या आम लोग जो मीडिया और मीडियाकर्मियोंं की ताकत हुआ करती थी वो हम मीडिया वालों से दूर चल गया और जैसे ही इसका आभाव सत्ता और सिस्टम को हुआ पूरी मीडिया को हासिया पर पहुंचा दिया
संकट की वजह यही है ऐसे में मीडिया से जुड़े लोग एक बार फिर से आम लोगों का भरोसा कैसे जीते इस पर सोचने कि जरूरत है क्यों कि जैसे ही आम लोग हम लोगों के साथ जुड़ने लगेगी बहुत सारी चीजें बदल जाएंगी । मेरा तो अनुभव यही रहा है कि सत्ता से सवाल करने वाले पत्रकारों से भले ही सरकार नराज रहे लेकिन जनता हमेशा सर आंखो पर बिठा कर रखती हैं। वक्त आ गया है आत्ममंथन करने का नहीं तो फिर इस संस्था का कोई मतलब नहीं रह जायेगा ।