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ये कैसा लोकतंत्र जहां वोटर की खुल्लम खुल्ला लग रही है बोली

बिहार विधान परिषद के 24 सीटों के मतदान की तिथि इस माह के अंत तक घोषित हो जायेगी मतदाता सूची को  अंतिम रूप दिया जा रहा है और इस बार चुनाव आयोग मतदान के दौरान बाहुबल और धनबल को रोकने के लिए मतदाता सूची  बनाने के दौरान ही वोटर साक्षर है या निरक्षर है यह अंकित करने का आदेश जिला निर्वाचन पदाधिकारी को दिया है।            

पिछले चुनाव तक हो यह रहा था कि वोटर जिस उम्मीदवार से पैसा लेता था उसके आदमी के साथ वोट गिराने जाता था यह कह कर के की मैं साक्षर नहीं हूं और मुझे वोटिंग करने के लिए एक सहयोगी की जरूरत है इस आड़ में बड़ा खेल होता था जो प्रत्याशी जिस वोटर का वोट खरीदता था उसके साथ अपने एक सहयोगी को लगा देता था और वो सहयोगी वोट पर  वरीयता  के अनुसार चिन्ह लगाकर  डाल देता था लेकिन इस बार आयोग पहले ही सतर्क है। 

1—बिहार विधान परिषद के स्थानीय निकाय प्राधिकार निर्वाचन चुनाव में कौन कौन होते हैं वोटर हालांकि इस बार स्थानीय निकाय प्राधिकार निर्वाचन चुनाव के वोटर के रूप में पंच और सरपंच को भी जोड़ने की वकालत राजनीतिक दलों द्वारा किया गया लेकिन अब लगता नहीं है कि उनका नाम शामिल किया जाएगा क्योंकि आयोग मतदाता सूची को अंतिम रूप देने जा रही है।इस तरह इस बार भी मुखिया, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य सदस्य ही स्थानीय निकाय प्राधिकरण के उम्मीदवार को वोट करेंगे राज्य में मुखिया 8387, वार्ड सदस्य के 1,14,667और पंचायत समिति सदस्य 11,491 और जिला परिषद सदस्य के 1161 है सदस्य है जो 24 स्थानीय निकाय प्राधिकरण के द्वारा विधान परिषद सदस्य का चुनाव करेंगे।

2—दस हजार दे एक वोट ले
इस बार के चुनाव में जो भी पंचायत प्रतिनिधि चुनाव जीत कर आये हैं उनमें से अधिकांश लाखों में खर्च किये हैं पिछले चुनाव तक वार्ड सदस्य के पद पर चुनाव लड़ने वाला दूर दूर तक दिखायी नहीं दे रहे थे, मुखिया ढूंढ ढूंढ कर प्रत्याशी लाते थे फिर भी वार्ड सदस्यों का हजारों पद रिक्त रह जाता था ।

लेकिन हर घर जल योजना को वार्ड सदस्य के साथ जोड़ने के कारण इस बार मुखिया से ज्यादा वार्ड सदस्य के लिए मारामारी रहा है  एक एक वार्ड सदस्य चुनाव जीतने के लिए लाखों में खर्च किये हैं और यही वजह है कि विधान परिषद  चुनाव की घोषणा से पहले ही वार्ड सदस्य अपनी कीमत घोषित कर दिया है दूसरी वजह यह है कि इस बार हर जिले में शराब माफिया ,जमीन का अवैध कारोबारी और ठेकेदार जैसे मिडिल ऑर्डर के उम्मीदवार पहले से मैदान में मौजूद हैं जो शुरुआत में ही एक वोट की कीमत पांच हजार से सात हजार रुपया तक  तय कर दिया है उत्तर बिहार के एक जिले में तो एक वोट की कीमत पचास हजार रुपया तक चला गया है वही समस्तीपुर में एक उम्मीदवार ऐसा है  पत्नी मुखिया है बहन प्रखंड प्रमुख भाभी जिला परिषद अध्यक्ष और खुद विधान परिषद का चुनाव लड़ने जा रहा है ये स्थिति है ।                            

 पंचायत चुनाव लिमिटेड कंपनी की तरह काम कर रहा है कितना निवेश करना है और कितना आ सकता है इसको लेकर जिला की योजनाओं पर काम करने वाला ठेकेदार सलाहकार बना हुआ है ।             

 बिहार के राजनीतिक दल भी इस चुनाव को एक तरह का लॉटरी ही मान रहा है और वो भी तय नहीं कर पा रहा है कि एक टिकट के बदले उम्मीदवारों से कितना पैसा लिया जाये अभी तक तीन करोड़ रुपया अधिकतम बोली सूबे के एक बाहुबली द्वारा लगाया गया है हालांकि पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि बाहुबली और धनबली के मैदान में आने से राजनीतिक दल पेशोपेश में है वही कई पूर्व विधान पार्षद चुनाव लड़ने से हाथ खड़ा कर दिया है  2015 के चुनाव में औरंगाबाद स्थानीय प्राधिकार से विधान परिषद के लिए चुने गए राजन कुमार सिंह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे बातचीत में स्वीकार किया कि जिस तरीके से वोटिंग ट्रेंड दिख रहा है ऐसे में चुनाव लड़ना मुश्किल है,वही बातचीत में कई पूर्व विधान पार्षद भी चुनाव लड़ने के मूड में नहीं दिख रहा है ।

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