भारतीय लोकतंत्र में नीतीश कुमार को सबसे क्रूर और सिद्धांत विहीन शासक के रूप में याद किया जाएगा । उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में एक-एक भरोसेमंद लोगों को राजनीति में मौत मुकर्रर किया है। वही हाल उनके राजनीतिक शैली की भी रही कभी कोई सिद्धांत नहीं बस सत्ता में बने रहने के लिए जो सिद्धांत रास आया उसको अमल में लाया।
ताजा उदाहरण उपेन्द्र कुशवाहा का है,ज्यादा दिन नहीं हुआ है जब उपेन्द्र कुशवाहा अपनी पार्टी का विलय कर नीतीश के साथ आए थे और नीतीश कुमार ने इन्हें पार्टी को मजबूत करने के लिए बिहार यात्रा पर निकलने को कहां था उस समय आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे ।
उपेन्द्र कुशवाहा वाल्मीकि नगर से यात्रा की शुरुआत किये थे और लगभग दो माह तक पूरे बिहार के दौरे पर रहे इस दौरान उपेन्द्र कुशवाहा जिस जिले में गये वहां के जदयू के विधायक,पार्टी कार्यकर्ता के साथ साथ जिले के सीनियर अधिकारी उनके स्वागत में खड़े रहते थे जैसे नीतीश ही यात्रा में निकले हो । ऐसा भी नहीं है कि उपेन्द्र कुशवाहा के स्वागत में पार्टी के विधायक और कार्यकर्ता वैसे ही खड़े रहते थे बाजाब्ता जदयू के प्रदेश कार्यालय के साथ साथ सीएम हाउस से विधायक और जिले के वरिष्ठ नेता को फोन जाता था ।
यात्रा के दौरान यह साफ हो गया था कि उपेन्द्र कुशवाहा आरसीपी की जगह ले सकते हैं हुआ भी ऐसा ही जब आरसीपी सिंह को पार्टी से बाहर निकालने की रणनीति पर अमल करने का समय आया तो उपेन्द्र कुशवाहा को सामने खड़ा किया इस दौरान आये दिन ललन सिंह उपेंद्र कुशवाहा के घर मिलने जाते थे। उस समय आरसीपी सिंह जिस हैसियत में थे उस स्थिति में आरसीपी सिंह को हटाना ललन सिंह के बस में नहीं था लेकिन जैसे ही मिशन आरसीपी सिंह पूरा हुआ उपेन्द्र कुशवाहा को ठिकाने पर पहुंचाने का खेला शुरू हो गया। मुझे अच्छी तरह से याद है जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री के रूप में पूरे फर्म में थे नीतीश कुमार का हाल यह हो गया था कि विधायक की कौन कहे अधिकारी भी छुप छुपा कर मिलने आते थे संयोग से किसी बात को लेकर इनसे मुझे मिलना पड़ा ।
इतना निराश, उदास और हताश मैंने कभी नीतीश कुमार को नहीं दिखा और जहां तक मुझे याद है शरद यादव और लालू प्रसाद नहीं होते तो इनसे जीतन राम मांझी हटने वाले नहीं थे ।
इसी तरह आरसीपी सिंह को हटाने के लिए एक वर्ष से कोशिश कर रहे थे उपेन्द्र कुशवाहा नहीं होते तो आरसीपी सिंह को भी निकालना इनके लिए आसान नहीं होता।
नीतीश के राजनीतिक जीवन में उपेंद्र कुशवाहा कोई पहला व्यक्ति नहीं है जिसके साथ नीतीश का ये व्यवहार रहा है लम्बी सूची है दिग्विजय सिंह,प्रभुनाथ सिंह,जार्ज ,शरद,आरसीपी ,लालू प्रसाद।
लेकिन इन सबसे इतर जो बड़ा सवाल है इस बार नीतीश बीजेपी का साथ क्यों छोड़े क्या कह कर के छोड़े थे और चार माह बाद वो कहां खड़े हैं। बिहार की राजनीति का ककहरा समझने वाला भी जानता है कि ललन सिंह ,संजय झा और विजय चौधरी से कही अधिक मजबूत और वोट को प्रभावित करने की क्षमता उपेन्द्र कुशवाहा रखते हैं लेकिन उनको आप बाहर निकलने को मजबूर कर रहे हैं ।
ऐसा नहीं है आरसीपी सिंह के जाने से जदयू कमजोर नहीं हुआ है कमजोर हुआ है और जो खबर आ रही है कि फरवरी में नालंदा में ही अमित शाह के मौजूदगी में आरसीपी सिंह भाजपा का दामन थाम सकते हैं मतलब बीजेपी इनको नालंदा में ही घेरने की रणनीति पर काम शुरु कर दिया है इतना ही नहीं आज भी आरसीपी सिंह का जदयू से जुड़े हुए अति पिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं में पकड़ बनी हुई है और आरसीपी मजबूत हुए तो नीतीश के कोर वोटर में भी सेंधमारी होगी ये तय है लेकिन आप बीजेपी का एजेंट घोषित करके उसे पार्टी से निकाल दिए लेकिन जिस व्यक्ति को लेकर घूम रहे हैं उनकी छवि तो सर्वविदित है कि वो बीजेपी के साथ ज्यादा कम्फर्ट महसूस करते हैं ।
देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन नीतीश जिस राह पर जा रहे हैं उससे उनका मिशन 2024 कमजोर पड़ रहा है ये अब साफ दिखने लगा है ।