इन दिनों भीमराव आंबेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर द्वारा पढ़ाने के लिए बच्चे नहीं मिलने पर अपनी पूरी सैलरी यूनिवर्सिटी को लौटाने से जुड़ी खबर को सुर्खियो में है ।वैसे खबर यह है कि नीतीश्वर कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार ने अपनी तीन साल की पूरी सैलरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपए यूनिवर्सिटी को लौटा दी क्यों कि इस दौरान छात्र पढ़ने नहीं आ रहे थे।
हालांकि बिहार में विरोध का यह तरीका नया है इसलिए इस विरोध को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों मत सामने आ रहे है। वैसे इस बहाली प्रक्रिया को मैं 2014 से ही फॉलो कर रहा हूं इसलिए बहुत सारा अपडेट मिलता रहता है।अभी भी बहाली की प्रक्रिया जारी ही है 3300 पद पर बहाली होनी थी और अभी भी 41 विषय में मात्र 29 विषय से जुड़े छात्रों की ही बहाली हो पायी है ।
विरोध का तरीका जो भी हो लेकिन ललन कुमार के इस कदम से बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर से नये नजरिए से सोचने की जरूरत जरूर आन पड़ी है । जहां तक मुझे याद है बिहार सरकार द्वारा 2014 में 41 विषय में प्रोफेसर की बहाली को लेकर वैकेंसी निकाली थी।वैकेंसी में योग्यता का निर्धारण इस तरह किया गया था कि बिहार के विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले एक भी छात्र इस वैकेंसी के लिए योग्य नहीं रहा ।
हुआ क्या इस वैकेंसी में 50 प्रतिशत से अधिक वैसे छात्र प्रोफेसर बने हैं जो बिहार के रहने वाले नहीं है जो बने भी हैं उनकी पढ़ाई बिहार के बाहर हुई है।
बहाल तो हो गये लेकिन सरकार और राजभवन नव नियुक्ति प्रोफेसर को कैसे पोस्ट किया जाये कहां पोस्ट किया जाये इसको लेकर कोई गाइडलाइन नहीं बनाया।
चयनित छात्रों को बस वैकेंसी के अनुसार बिहार के विभिन्न विश्वविद्यालय में भेज दिया गया ।
हुआ ऐसा कि जैसे ही ये नव चयनित प्रोफेसर पहुंचे कुलपति को लाँटरी लग गयी हर कोई मुख्यालय या उसके आस पास के कॉलेज में रहना चाहता था जो जेब गर्म किया उसको तो बढ़िया कॉलेज और विश्वविद्यालय में स्थान मिल गया लेकिन जो जेब गर्म करने कि स्थिति में नहीं था उन्हें ऐसे कॉलेज में भेज दिया गया जहां सिर्फ कॉलेज का मकान था छात्र और शिक्षक माह में एक बार आते थे ।
इसका असर यह हुआ कि बड़ी संख्या में ऐसे छात्र जिन्हें दूसरी जगह नौकरी मिली वो छोड़ कर चल गये जो रह गये वो इस व्यवस्था से लड़ रहे हैं ।ललन कुमार भी उसी व्यवस्था का शिकार है यह अलग बात है कि इस समस्या की और ध्यान आकृष्ट करने को लेकर ये ऐसा तरीका अख्तियार किया है कि सबके सब हैरान है और अब ललन कुमार के चरित्र हनन के सिवा कोई रास्ता इनके पास नहीं है ।
वैसे राज भवन को विश्वविलालय के पोस्टिंग प्रक्रिया पर एक बार विचार करनी चाहिए क्यों कि यह हकीकत है कि इस बहाली प्रक्रिया में बहुत ऐसे छात्रों का भी चयन हुआ है जिसकी योग्यता अंतरराष्ट्रीय मानक पर खड़ा उतरता है।
ऐसे शिक्षक को राज्य के जो पूर्व के नामी गरामी कॉलेज रहा है ऐसे कांलेजों में इनकी नियुक्ति होनी चाहिए थी इससे एक बार फिर से उस कॉलेज का नाम स्थापित हो जाता और छात्र पढ़ने भी आने लगते ।
मैं व्यक्तिगत रुप से जानता हूं एक छात्र आईसर कोलकता से पीएचडी है उनकी पोस्टिंग मधेपुरा जिले के किसी ग्रामीण कांलेज में कर दिया गया है इसी तरह एक छात्र जिसकी पूरी पढ़ाई देश के सबसे अच्छे विश्वविधायल में हुआ बेहतर रिजल्ट भी रहा लेकिन उसकी पोस्टिंग समस्तीपुर जिले के ताजपुर कांलेज में कर दिया गया है जहां ना शिक्षक है और ना ही छात्र है विरोध किया किसी ने नहीं सूना तो आजकल दिल्ली पटना मित्रों के साथ घूम रहता है ।
ऐसे बहुत सारे प्रोफेसर मिल जायेंगा जिसका उम्र खत्म हो गया और बेहतर कांलेज में पोस्टिंग नहीं हुई है तो वो भी उसी रंग में रंग गया और अब वो भी कांलेज छोड़कर या तो राजनीति शुरु कर दिया है या फिर घूम फिर रहा है
एक ऐसा बहाली जिसके सहारे बिहार का गौरव लौटाया जा सकता है उसको किस तरह से बर्वाद किया जा रहा है किसी एक नये बहाल प्रोफेसर से मिल ने समझ में आ जायेगा ।