बिहार की राजनीति में दिग्विजय सिंह ‘दादा’ और नरेन्द्र सिंह दो ऐसे शख्सियत हुए हैं जो अपनी राजनीतिक शैली के सहारे लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को सीधी चुनौती ही नहीं दी उनके मांद में घुसकर उन्हें हराया है।
दादा तो कई वर्ष पहले इस दुनिया से चले गये और नरेन्द्र सिंह भी अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन बिहार के ऐसे युवा जो राजनीति में कदम रखना चाहते हैं उनके लिए बिहार की राजनीति का ये दो चाणक्य एक ऐसा मूल मंत्र छोड़ कर गये हैं ,जिसके सहारे बिहार जैसे राज्य में भी जहां जाति और समाजिक समीकरण के मजबूत राजनीतिक ताना बाना के बावजूद भी सुचिता के साथ सत्ता में हिस्सेदारी कैसे प्राप्त किया जा सकता है इनके राजनीतिक शैली से आप सीख सकते हैं ।
संयोग ऐसा रहा है कि इन दोनों शख्सियत की राजनीति को नुझे करीब से देखने और समझने का मौका मिला है 2009 के लोकसभा चुनाव में दादा बांका से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन नीतीश कुमार उनका टिकट काट दिया याद करिए नीतीश कुमार की छवि उस समय बिहार में मिस्टर क्लीन और सुशासन बाबू के रूप में था और नीतीश कुमार की राजनीति परवान पर था ऐसी स्थिति में एक तरफ नीतीश कुमार का उम्मीदवार तो दूसरी तरफ लालू प्रसाद का उम्मीदवार चुनावी मैदान में था,और उस स्थिति में दादा नीतीश कुमार की चुनौती को स्वीकार करते हुए नीतीश कुमार को बांका लोकसभा चुनाव में ऐसी पटखनी दिया कि उस हार से फिर नीतीश कुमार उबर नहीं पाये और जदयू का जुमई और बांका में जो गढ़ 2009 में टूटा उस पर आज जदयू की वापसी नहीं हो पाई है।
क्यों कि नीतीश कुमार इन इलाकों में बड़ी मजबूती के साथ यादव राजनीति के खिलाफ अति पिछड़ों की राजनीति को खड़ा किया था और उसके सहारे लालू प्रसाद के गढ़ को पूरी तरह से तबाह कर दिया था लेकिन नीतीश की इसी राजनीति के सहारे दादा ने नीतीश कुमार द्वारा अति पिछड़ा उम्मीदवार देने के बावजूद भी जदयू को भी और राजद के उम्मीदवार को भी हरा दिया । मुझे याद है बिहार में लोकसभा 2009 के चुनाव में जदयू और भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बावजूद भी नीतीश कुमार बांका के हार से इतने विचलित थे कि मीडिया से बात करने तक के लिए बाहर नहीं निकले।
2009 का लोकसभा चुनाव दादा कैसे जीते यह समझने कि जरूरत है नीतीश कुमार दादा के खिलाफ उनके ही सबसे करीबी अति पिछड़ा समाज से आने वाले दामोदर राउत को चुनावी मैदान में उतारा था और प्रदेश के सारे मंत्री को बांका में उतार दिया लेकिन दादा का साफ-सुथरी छवि के साथ साथ अपनी राजनीति शैली की वजह से नीतीश कुमार के पूरी ताकत लगाने के बावजूद अति पिछड़ा, महादलित,सवर्ण और बड़ी संख्या में मुसलमान वोटर मजबूती के साथ दादा के साथ खड़ा रहा और दादा ने राजद और जदयू को के प्रत्याशी को लाखों वोट से हरा दिया ।मतलब आपकी छवि साफ-सुथरी है और बिहार के सामाजिक और जातिगत राजनीति की समझ है तो आपके पास अपनी जाति का वोट हो या ना हो आप बिहार में राजनीति भी कर सकते हैं और विधायक सांसद भी बन सकते हैं। इसी तरह 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नरेन्द्र सिंह भले ही नीतीश के साथ आ गये थे लेकिन विधानसभा चुनाव में चकाई विधानसभा क्षेत्र से उनके बेटे का नीतीश कुमार ने टिकट काट दिया और नरेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत खत्म हो जाये इसके लिए सुशील मोदी के साथ मिल कर दादा की बेटी श्रेयसी सिंह को जमुई से टिकट दे दिलवा दिया ताकी राजपूत वोटर नरेन्द्र सिंह के परिवार का टिकट काटने से एग्रेसिव ना हो ।
नीतीश के इस फैसले के पीछे भी वही सोच थी कि इस बार दादा की तरह नरेंद्र सिंह के राजनीतिक विरासत को भी खत्म कर देना है ।इसी चुनाव के दौरान नरेन्द्र सिंह से प्रचार अभियान के दौरान एक गाँव में मुलाकात हो गयी जबकि पहले से कोई तय नहीं था लेकिन मुलाकात हो गयी तो तीन घंटा उसी गाँव में रुक गये वो गाँव मुसलमान और अति पिछड़ा वोटर का था ।
गांव के ही एक दरवाजे पर मुसलमान और अति पिछड़ा दोनों वर्ग के वोटर साथ बैठे थे मेरा परिचय उन मतदाताओं से कराया गया ये संतोष जी है बिहार के प्रखंर पत्रकार हैं मुजफ्फरपुर बालिकागृह वाला मामला यही निकाले थे । ऐ मौलाना सुनो बिहार के एक मात्र यही पत्रकार हैं जो तुम्हारे साथ हमेशा खड़े रहते हैं इन्हें लोग बिहार का रवीश कुमार कहते हैं रवीश कुमार इनके बहुत अच्छे मित्र है । मैं असहज महसूस कर रहा था कि ये मेरा राजनीतिक इस्तमाल करे रहे है मैं निकलना चाह रहा था लेकिन नरेन्द्र सिंह छोड़ने को तैयार नहीं थे तभी वो अपने बॉडीगार्ड से मोबाइल मंगवाये ये देखो संतोष जी का हर खबर पढ़ते हैं देखो कैसे लिखते हैं तुम लोगों के बारे में । ये मेरी तारीफ नहीं कर रहे थे मेरे सहारे ही अपने वोटर को संदेश देना चाहते थे कि मैं धर्मनिरपेक्षता वाली राजनीति में विश्वास करते हैं और परिणाम क्या हुआ नरेंद्र सिंह के पुत्र निर्दलीय चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचा और नीतीश को मंत्री भी बनाना पड़ा इतना ही नहीं हाल ही में विधान परिषद का जो चुनाव हुआ उसमें ललन सिंह के उम्मीदवार को जमानत जब्त करवा कर संदेश दे दिया कि इस इलाके का चाणाक्य मैं ही हूं । दादा से तो उस तरह बातचीत करने का मौका नहीं मिला लेकिन नरेन्द्र सिंह से तो तीन चार दिन में एक बार बातचीत हो ही जाती थी बिहार की राजनीति को लेकर उनका स्पष्ट राय था संतोष जी बिहार का सर्वण का हाल और भी बुरा होने वाला है देखते रहिएगा गिनती का विधायक सांसद आने वाले दिनों में नहीं मिलेगा ।
ये जो बीजेपी है ना जिसको लेकर सब छोरा सब पगलाया हुआ है संतोष जी बीजेपी जो राजनीति करती है वो धर्म और धंधा (बनिया)की राजनीति करती है जो बिहार के सवर्ण के लिए बहुत ही घातक है। बिहार का सवर्ण समाज खेतिहर समाज है मेहनत करने वाला समाज है जिसके कारण उसका रोजना का सम्बन्ध गांव के दलित.अति पिछड़ा और मुसलमानों के साथ रहता है और ये सम्बन्ध पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही है इसके सहारे राजनीति करना सर्वण को सूट भी करेगा और यही समाजवाद का मूल मंत्र भी है ।देखिए लालू प्रसाद के शासन काल में बिहार में सवर्ण राजनीति कहां खड़ा था और नीतीश और सुशील मोदी के साथ जब से आया है कहां चला गया सारे स्थापित नेताओं को नीतीश और मोदी चुन चुन कर समाप्त कर दिया है ।
कोई बचा है देखिए मुझे कम तबाह किया है वजह क्या है बिहार का सर्वण वोटर हिन्दू मुसलमान में इस तरह उलझ गया कि वो राजनीति ही भूल गया बताइए संतोष जी रघुवंश बाबू जैसे लोगों को वैशाली में राजपूत वोट नहीं दिया इससे बड़ा अनर्थ और क्या हो सकता है । दो घंटे से हम लोग साथ बैठे हैं देख ही रहे हैं पदाधिकारी और समाज के लोग क्या क्या फरियाद लेकर आ रहे है इन मूर्खों को कौन समझाये बिहार में पदाधिकारियों का तबादला और पोस्टिंग कैसे होता है संतोष जी आपसे छुपा है । दिन भर ऑफिस में बैठकर हिन्दू मुसलमान करेंगा और शाम में मेरे पास पहुंच जायेंगा सर चार वर्ष से सचिवालय में सड़ रहे हैं देखिए सीओ परेशान किये हुए है देखिए थाना प्रभारी परेशान किये हैं कौन इसको समझाये कि जब आपको अपने नेता को ताकत देना का समय रहता है तो आप देश की बात करने लगते हैं हिन्दू मुसलमान की बात करने लगते हैं । संतोष जी हम लोग तो पूरी मजबूती के साथ अपनी पारी खेल लिये कोई अफसोस नहीं है आने दीजिए समय यही समझदारी रही ना तो विधायक और सांसद की कौन कहे ये लोग मुखिया तक बन नहीं पाएगा ।