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इतिहास मिटाने की प्रवृति हर तानाशाह का रहा है

दिल्ली को आज से पहले मैंने कभी भी इतना निराश उदास और यथास्थितिवादी नहीं देखा है दिल्ली तो दिल वालो का शहर था, हर किसी को अपने अंदाज में जीने का अवसर देता था, हमेशा नयी सोच के साथ हर बदलाव का स्वागत करता था ।

लेकिन इस बार पता नहीं क्यों दिल्ली में एक अजीब तरह का ठहराव दिख रहा था चेहरे पर एक अजीब सी उदासी दिख रही थी लग ही नहीं रहा था कि मैं दिल्ली के मेट्रो में सफर कर रहा हूं,जनपथ का भी हाल कुछ ऐसा ही था, मालवीय नगर और सरोजनी नगर मानो किसी उजाड़ वाले इलाके में आ गया हूं।

वसंत कुंज जैसे पाँस इलाके का हाल शब्दों में बया नहीं कर सकते प्रिया सिनेमा हॉल ,जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय लगता ही नहीं था कि ये वही जगह है जहां एक अलग तरह की खूबसूरती और स्वच्छंदता देखने को मिलती थी सब गायब है ।
ऐसे ही एक निराश हताश और यथावादी समूह द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मुझे भी आमंत्रित किया गया था संतोष दिल्ली हो तो आओ आज साथ बैठते हैं पहुंचे तो वही पत्रकार ,वकील और सिविल सोसाइटी के लोग जिसे वर्षो बरस से झेल रहे हैं ,लेकिन पहली बार में इन सबों से मिलकर घबरा गया वो जज्बा ही नहीं रहा मैं खुद इतना घबरा गया कि सोचा किसी बहाने निकल चले लेकिन इसी बीच एक महिला मित्र की ओर से प्रस्ताव आया कि संतोष भी आज के हालात पर अपनी राय रखे जमीन पर क्या हो रहा है यह बेहतर महसूस करता है ।ऐसे निराश और हताश लोगों के सामने कहां से शुरु करु मुझे समझ में नहीं आ रहा था फिर मैंने अपनी ही कहानी शुरू किया ,मित्रों पारिवारिक बटवारे के बाद मुझे जो घर मिला उस घर में मेरे तमाम भाई बहन रिश्तेदार नातेदार का आना जाना रहा था मेरा खुद का बचपन उसी घर में गुजरा था हर एक जगह से कुछ ना कुछ यादें जुड़ी हुई थी अंधेरे में भी कहां बिजली का स्विच है कहां निकलने का रास्ता है कहां बाथरूम है सब कुछ मन की आंखों से दिख जाता था।कहां दादी बैठकर खाती थी कहां मुझे स्नान कराती थी छठ कहां होता था रसोई कहाँ बनती थी।

लेकिन मकान का हालत इतना जर्जर हो गया था कि उसे बनाये बगैर रहना मुश्किल था तय हुआ घर बनाया जाए ।निर्माण का कार्य शुरु हुआ तो मेरी कोशिश रही कि जो यादें इस मकान से जुड़ी है उसको अधिक से अधिक कैसे बनाये रखा जाए इस वजह से खर्च भी ज्यादा हुआ लेकिन पुराने ढांचा को बचाने में कामयाब हो गया ।

संयोग से एक घर का बिजली का बोर्ड का जगह बदल गया पांच वर्ष से अधिक समय हो गया मकान बने लेकिन जब कभी रहते हैं और पंखा या लाइट जलानी रहती है सबसे पहले बिजली का बोर्ड जिस पूरानी जगह लगी हुई थी वहीं पहले पहुंच जाते हैं अभी भी नहीं भूल पाए हैं । अब आप कहेंगे देश के हलाता का मेरे घर से क्या वास्ता मित्रों वास्ता है आज हमारे सामने जितने भी लोग बैठे हैं जहां तक मुझे याद है सारे के सारे घोर कांग्रेस विरोधी रहे हैं बात बात पर क्रांति करने निकलते जाते थे जिसके बाप और नाना के नाम पर बने विश्वविद्यालय में मुफ्त में पढ़ते थे उसी का खा कर दिन भर उसी को गाली देते थे और ये वंदना ,सरोज अमित कुछ हुआ नहीं कैंडल मार्च लेकर चल देते थे याद है ना ।

याद करिए यही देश है ना ज्यादा वक्त भी नहीं गुजरा है हम तमाम साथी उस समय कॉलेज मेंं आ गये थे विज्ञान भवन में अस्थायी जेल बना था याद है अमित हम लोग देखने भी गये थे कैसा बना है अस्थायी जेल । कितना आनंद ले रहे थे देश का पीएम नरसिम्हा राव भ्रष्टाचार के मामले में जेल जा रहा है पानी पी पी कर हम लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचारी होने पर कोश रहे थे और आज सत्ताधारी दल के प्रवक्ता की गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के तल्ख टिप्पणी के बावजूद नहीं हो पा रही है जूबैर की गिरफ्तारी पर इतना विचलित क्यों हो भाई ।

मोदी ने आठ वर्षो के अपने शासन काल में क्या किया है जनता की लड़ाई लड़ने वाली एक एक संस्था को प्रभावहीन कर दिया है चाहे वो आरटीआई हो ,मानवाधिकार आयोग हो ,लोकायुक्त हो या फिर मीडिया हो और अब सुप्रीम कोर्ट भी कुछ उसी दिशा की और बढ़ चला है।

इन संस्थानों के पास कौन जाता है सत्ता और सरकार के गलत निर्णय या जुल्म के खिलाफ जनता ही जाती है ना अगर ये तमाम संस्थान न्याय करना बंद कर दे तो किसका नुकसान होगा ।

इसलिए आप लोग परेशान ना हो आज देश कांग्रेस के हाथों में नहीं है ,एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में है जिसे रातो रात मुख्यमंत्री बन दिया गया और फिर देश का पीएम बन गया उन्हें संवैधानिक संस्थाओं का महत्व का क्या पता है लोकतंत्र में लोक लज्जा भी होता है इसे कहां पता है।

भाई ये देश को ही नहीं मिटा रहा है जिस पार्टी और संगठन ने इसे सीएम और पीएम बनने में सहयोग किया उसको भी मिटा रहा है ।

कभी आप लोगों ने सोचा कि बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यालय को क्यों नये भवन में शिफ्ट किया गया ,इस पर जब आप गौर करेंगे तो आप समझ जायेंगे कि मोदी और शाह का नजरिया क्या है हर वैसे इतिहास को बदल डालों जहां मोदी और शाह से अलग कोई इतिहास रहा है दिल्ली क्या देश के हर जिला मुख्यालय में बीजेपी और संघ का नया दफ्तर बन गया है जहां अब कोई ये बात नहीं करता है कि ये वही जगह है जहां वाजपेयी जी रात में रुके थे ये वही जगह है जहां आडवाणी रथ यात्रा के दौरान कुछ देर के लिए आये थे ये वहीं कमरा है जहां संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया और मोहन भागवत बिहार में जब प्रचारक थे तो रहते थे ।
मतलब उन तमाम इतिहास को मिटा दो जो मोदी और शाह के सिवा दूसरा कुछ भी चर्चा करने और सोचने का स्पेस देता हो। देश के साथ भी यही कर रहा है, संसद भवन बदल दिया ।मैं अभी इंडिया गेट होकर ही आ रहा हूं सैकड़ों लोग बाहर खड़े होकर देख रहे थे इंडिया गेट के पास जाना मना है ।

याद है शाम से लेकर आंधी रात तक पूरी दिल्ली इंडिया गेट पर अपने परिवार के साथ मौज मस्ती करता था देखिए उस इतिहास को भी ये खत्म कर दिया। अब मैं जहां से बात की शुरुआत की थी उस पर आते हैं जिसका बचपन चाय की दुकान पर गुजरा हो( ये खुद कहते हैं) जिसने कभी स्कूल कॉलेज नहीं देखा है शादी किया पत्नी को छोड़ दिया मतलब जिसे परिवार चलाने के जिम्मेवारी का भी एहसास नहीं है उससे आप क्या उम्मीद करते हैं देश के निर्माण की प्रक्रिया में कोई योगदान रहता तब तो ।

इन्हें कौन समझाये कि मीडिया ,न्यायपालिका, मानवाधिकार आयोग ,आरटीआई और सिविल सोसाइटी जैसी संस्था लोकतंत्र के प्रति जनता की आस्था को बचा कर रखती है।कालीदास कोई कहानी थोड़े ही है उस दौर के समाज का चित्रण है।
ऐसी स्थिति में निराश होने कि जरूरत नहीं है आपके सामने ऐसा व्यक्ति खड़ा है जिसे संवैधानिक मूल्यों से देश के कानून से कोई वास्ता नहीं है ,आपके सामने ऐसा व्यक्ति खड़ा है जिसको देश के संस्कृति और इतिहास से कोई वास्ता नहीं है ऐसे लोगों से आप कैसे लड़ सकते हैं इस पर सोचिए ।

आज गांधी भी होते तो सफल नहीं होते यह मुझे लगता है ऐसे में भारत पाकिस्तान और इराक ना बने इस पर सोचने कि जरूरत है क्यों कि देश को जिस दिशा में ले जाया जा रहा है कोई रोक नहीं सकता है इराक और पाकिस्तान बनने में।
धन्यवाद बहुत हुआ उम्मीद है आप तनाव मुक्त हुए होंगे और उम्मीद है निराशा के उस दौर से बाहर निकलने में मेरी ये बातें आपको मदद करेंगी ।

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