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बजट 2022-23 नौजवानों और किसानों के लिए अत्यंत लाभदायकः मंगल पांडेय

बजट 2022-23 नौजवानों और किसानों के लिए अत्यंत लाभदायकः मंगल पांडेय
केंद्र सरकार की दूरदर्शी पहल देश के विकास में मील का पत्थर साबित होगा

पटना। स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडेय ने आम बजट को दूरदर्शी बताते हुए समाज के हर तबके, खासकर नौजवानों और किसानों के लिए अत्यंत लाभदायक बताया है। इसके लिए प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी, माननीय गृह मंत्री अमित शाह और माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बधाई देते हुए कहा कि एनडीए सरकार ने सभी क्षेत्रों का खयाल रखा है। बजट में कृषि, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की केंद्र सरकार की यह पहल देश के विकास में मील का पत्थर साबित होगा।
श्री पांडेय ने कहा कि ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिलेगा और किसानों के खातों में 2.37 लाख करोड़ रुपये की एमएसपी सीधे ट्रांसफर की जाएगी। कृषि विश्वविद्यालय को बढ़ावा दिया जायेगा और ड्रोन के जरिये कृषि क्षेत्र को बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा। कृषि से जुड़े उपकरण सस्ते होने पर किसानों को खेती करने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। नाबार्ड के जरिए कृषि से जुड़े स्टार्टअप्स को वित्तीय सुविधा प्रदान करने की योजना किसानों की आर्थिक दशा सुधारेगी।
श्री पांडेय ने कहा कि युवाओं के लिए 60 लाख नौकरी देने का लक्ष्य और 80 लाख बेघरों को पक्का मकान देने की केंद्र सरकार की घोषणा से लोगों में नई उम्मीद जगी है। देश में ई-शिक्षा को बढ़ावा और गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने के साथ-साथ हर घर नल का जल मुहैया कराने की केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी सोच देश और राज्य को आत्मनिर्भर बनाने में मजबूती प्रदान करेगा।

केन्द्रीय बजट है सकारात्मक एवं स्वागत योग्य : मुख्यमंत्री

पटना: 01/02/2022
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केन्द्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि पिछले दो वर्षों से देश का विकास कोरोना के कारण प्रभावित रहा है। इन विषम परिस्थितियों से निकलने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा अपने बजट के माध्यम से देश के विकास की गति को बढ़ाने के लिये कई कदम उठाये गये हैं, जो सराहनीय हैं।

संतुलित बजट पेश करने के लिये मैं केन्द्र सरकार को बधाई देता हॅू। केन्द्र सरकार के द्वारा देश में बड़े पैमाने पर आधारभूत संरचना के निर्माण का निर्णय भी स्वागत योग्य है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा अपने संसाधनों से गंगा के दोनों किनारों के 13 जिलों में जैविक कोरिडोर विकसित किया जा रहा है। इस वर्ष केन्द्रीय बजट में गंगा के किनारे 5 किलो मीटर के स्ट्रेच में प्राकृतिक खेती का कोरिडोर विकसित करने का निर्णय लिया गया है। केन्द्र सरकार का यह कदम सराहनीय है।

उन्होंने कहा कि इस बजट में धान एवं गेंहूँ की अधिप्राप्ति को बढ़ाने का निर्णय लिया । इससे किसानों को काफी लाभ मिलेगा।उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत 80 लाख नये आवास बनाने की घोषणा हुयी है। यह स्वागत योग्य है ।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों को केन्द्रीय करों की हिस्सेदारी के रूप में इस वर्ष एवं अगले वर्ष अधिक राशि प्राप्त होगी। इससे राज्य सरकारों की वित्तीय कठिनाइयां कम होंगी और राज्यों को राहत मिलेगी।

पटना हाई कोर्ट ने नारायणपुर – मनहारी- पूर्णिया हाईवे के निर्माण के दौरान पेड़ों की कटाई पर हुई सुनवाई

पटना हाई कोर्ट ने नारायणपुर – मनहारी- पूर्णिया हाईवे के निर्माण के दौरान पेड़ों की कटाई को रोकने के लिये दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई की।चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए एन एच ए आई को विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।

इसके पूर्व कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पूरक हलफनामा दायर करने को कहा था, जिसमें याचिकाकर्ता को बताने को कहा गया है कि कार्बन के उत्सर्जन को कैसे कम किया जा सकता है। कोर्ट ने पेड़ो को ट्रांसलोकेट करने की अनुमति पूर्व में ही दे दी थी।

इस बीच एन एच ए आई द्वारा दायर जवाबी हलफनामा में कहा गया था कि पेडों को ट्रांसलोकेट करने की कार्रवाई की जा रही है। यह भी बताया गया था कि पेड़ों को गिराने व ट्रांसलोकेट करने की कार्रवाई 3 फरवरी, 2021 और 23 फरवरी, 2021 को जिला वन अधिकारी द्वारा दिये गए आदेश के आलोक में किया जा रहा है।

कोर्ट को जानकारी दी गई कि 8340 पेड़ों को गिराया गया था और 2045 पेड़ों को ट्रांसलोकेट किया जा रहा है। यह भी कहा गया है कि 90 सेंटीमीटर से अधिक घेरा वाले पेड़ों को गिराया जा रहा है और इससे नीचे के घेरा वाले पेड़ों को ट्रांसलोकेट किया जा रहा है।

याचिकाकर्ता शाश्वत ने पूर्व में ही कोर्ट को बताया था कि विकास व निर्माण के दौरान पेड़ो की कटाई पर रोक को लेकर 26 जुलाई, 19 को राज्य सरकार के पर्यावरण, वन व मौसम विभाग द्वारा भी कार्यालय आदेश भी जारी किया गया है।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका के जरिये संबंधित विभागों से विस्तृत योजना रिपोर्ट , क्लेरेन्स सर्टिफिकेट, योजना पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर रिपोर्ट उपलब्ध करवाने को लेकर भी आग्रह किया है।

साथ ही याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका के जरिये काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या, पेड़ों की उम्र, इसका पर्यावरण के लिए महत्व व पेड़ो की कटाई से आसपास के पशु- पक्षियों पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन करने को लेकर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाने हेतु आदेश देने का आग्रह भी किया है। याचिका में इस प्रकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट व पटना हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में दिये गए आदेशो का भी जिक्र किया गया है।

अब इस माामले पर आगेे की सुनवाई 22 फरवरी,2022 को की जाएगी।

देश में रिमांड होम लड़कियों के व्यापार का संस्थागत रुपरुप धारण कर लिया है

रविवार की शाम जदयू से जुड़ी एक नेत्री का फोन आया संतोष भैया गायघाट रिमांड होम को लेकर एक खबर आ रही है जरा देखिए ना एक लिंक भेजे हैं । कोई तीन चार घंटा पहले ही किसी ने इस खबर के बारे में विस्तृत रुप से मुझसे चर्चा किया था इसी दौरान बहुत सारी बाते समझ में आ गयी थी बातचीत चल ही रही थी तो पता चला महिलाओं का एक संगठन एसएसपी से मिला कर इसकी शिकायत भी कर दी है ,साथ ही समाज कल्याण विभाग के सीनियर अधिकारी तक ये बात पहुंचा दी गयी है।
एसएसपी पीड़िता को महिला थाना भेज दिया है और थाना प्रभारी को जांच कर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है ।वही कल इस मामले में समाज कल्याण विभाग और पटना जिला प्रशासन द्वारा भी एक जांच टीम गठित कि गयी है वो टीम लड़की के आरोप में कितना दम इसकी जांच करेगी हालांकि वह जांच कमिटी लड़की के आरोप को खारिज कर दिया है ऐसी जानकारी मुझे मिल रही है।
लड़की के पीछे कौन खड़ी है उसका उदेश्य क्या है उस पर जितना सवाल करना है कर सकते हैं लेकिन जहां तक गायघाट रिमांड होम का सवाल है तो लड़की जो बयान दे रही है उसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है ।
कोई छह सात वर्ष पहले की बात है मुझे यह जानकारी मिली कि गायघाट रिमांड होम में रात के समय बड़ी बड़ी गाड़ियां आती जाती रहती है एक दिन तय हुआ रात में स्टिंग किया जाये इसी कड़ी में मुझे पता चला है कि महिला रिमांड होम में हो क्या रहा है ।
संयोग से उस समाज कल्याण विभाग में एक बेहद संवेदनशील अधिकारी पोस्टेंड थे उनसे हमारी मुलाकात 26 जनवरी के कार्यक्रम के दौरान राजभवन में हो गयी हालांकि तीन चार रात कोशिश करने के बावजूद मेरी स्टोरी एस्टेब्लिश नहीं हो पा रही थी इसलिए खबर नहीं चला पा रहे थे ।
लेकिन जो थोड़ी सी भी जानकारी मेरे पास थी वो मैं उस अधिकारी को बता दिया उन्होंने एक सप्ताह का समय मुझसे मांगा और उसके एक माह के अंदर उक्त अधिकारी ने गायघाट रिमांड होम में बड़ा ऑपरेशन चलाया गया और वहां पोस्टेंड अधिकांश कर्मियों के हटा दिया गया कई पर एक्शन भी लिया।
हुआ ऐसा कि उक्त अधिकारी ने एक ट्रेनी आईएएस अधिकारी के साथ साथ समाज कल्याण विभाग से जुड़ी यंग महिला पदाधिकारी के नेतृत्व में एक जांच कमिटी गठित कर दिया था दो दिनों तक दिन दिन भर जांच चलती रही लेकिन रिमांड होम के कर्मी और रिमांड होम में ही रहने वाले कुछ लड़कियों ऐसा माहौल बना दी थी कि जांच टीम की कोशिश के बावजूद भी लड़कियां जुबान नहीं खोल रही थी जांच टीम निराश होकर लौट गयी जांच टीम को भी लड़कियों से बातचीत के दौरान कुछ लग रहा था लेकिन कोई साक्ष्य नहीं मिला। शाम को उस आईएएस अधिकारी का फोन आया संतोष जी वहां ऐसा कुछ भी नहीं था सब ठीक ठाक चल रहा है ।
मुझे जो सूचना दे रही थी उसको कांल किये तो वो बोली लड़की वैसे मुंह नहीं खोलेगी जांच टीम को कहिए उसका अलमीरा और बक्सा में रखे कपड़ा को चेक करे सब पता चल जाएगा ।मैंने तुरंत उक्त अधिकारी को फोन करके कहा जानकारी पक्की है लड़की का कपड़ा चेक करवाईए सब पता चल जायेगा तीन चार दिन बाद जांच टीम अचानक रिमांड होम पहुंची और लड़कियों का अलमारी और बक्सा चेक करना शुरू कर दी ।
मुझे जो सूचना दे रही है उसने जो जानकारी दी थी वो सही साबित हुई लड़कियों के पास से बहुत ही मंहगी मंहगी ब्रा,अंडर गारमेंट्स और परफ्यूम मिला और फिर जो तथ्य सामने आया आप कल्पना में भी नहीं सोच सकते हैं । वैसे यही से मुझे बिहार के महिला रिमांड होम में क्या क्या होता है यह जानकारी मिल गयी थी साथ ही इसके पीछे कितना बड़ा Nexus काम कर रहा है इसकी भी जानकारी मिल गयी थी ।
ऐसा नहीं है कि मुजफ्फरपुर रिमांड होम मामले में एक्शन होने के बाद यह खेल बंद हो गया है बल्कि अब तो खेल और भी बड़े स्तर पर चल रहा है पहले रिमांड होम में मानसिक रूप से कमजोर ,परिवार द्वारा तिरस्कृत लड़किया रहा करती थी लेकिन हाल के दिनों में प्रेम विवाह मामले में नाबालिग लड़कियां बहुत ज्यादा रिमांड होम में आने लगी है जिसमें लड़का जेल चला जाता है और लड़की अपने माँ बाप के पास नहीं जाना चाहती है उसको कोर्ट महिला रिमांड होम भेज देती है।
इस तरह की लड़कियां जिस तरह के खेल में शामिल है कह नहीं सकते ये लड़कियां किसी तरह से अपने प्रेमी को जेल से बाहर निकलवाना चाहती है, उसके साथ रहना चाहती है ,इसका लाभ रिमांड होम और उससे जुड़ा सिडिकेंड संस्थागत रुर से उठा रहा है ।रिमांड होम से लेकर कोर्ट परिसर तक इस सिडिकेंड का तार जुड़ा हुआ है जिसके सहारे बड़े स्तर पर यह खेल चल रहा है।
बिहार में एक बड़ा बाजार खड़ा हो गया है और इस खेल में बड़े बड़े लोग शामिल है और इस तरह की लड़कियों की बोली भी अच्छी लगती है गायघाट रिमांड होम में ही इस समय पांच सौ से अधिक लड़कियां हैं जिसमें से तीन सौ से अधिक लड़कियाँ प्रेम विवाह से जुड़े मामले में रिमांड होम में रह रही है।
ऐसे में इस तरह के खेल पर ब्रेक लगाना है तो बड़े स्तर पर काम करने कि जरूरत है जिसमें सरकार के साथ साथ महिला और लड़कियों पर काम करने वाली संस्था को जोड़ा जाना चाहिए क्यों कि सरकार और न्यायालय स्तर पर जो हो सकता है उसका प्रावधान जरुर है जैसे इस तरह के होम का अभिभावक कोर्ट है और इसी जिम्मेवारी के तहत जज इस तरह के रिमांड होम का भिजिट भी करते हैं लेकिन यह सब बस एक प्रक्रिया के तहत होता है जिसके सहारे इस तरह के खेल को रोका नहीं जा सकता है ।आप जानकर हैरान रह जायेंगे कि देश में इस तरह की जितनी भी महिला रिमांड होम है उसका आपस में तार जुड़ा हुआ है और अब लड़कियों का भी आदान प्रदान होता है ये तो एक अलग तरह का खेल है ठीक से जांच हो जाये तो पूरी व्यवस्था हिल जायेंगी
वैसे गायघाट रिमांड होम में जिस स्तर पर खेल चल रहा है ऐसे में उक्त लड़की के बयान को खारिज कर देना किसी बड़े सच को छुपाने जैसा ही है इसलिए इसकी समग्रता में जांच होना चाहिए ।

सड़क निर्माण के दौरान पेड़ कटाई पर रोक को लेकर याचिका दायर

पटना हाईकोर्ट में नारायणपुर – मनहारी- पूर्णिया हाईवे के निर्माण के दौरान पेड़ों की कटाई को रोकने के लिये दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कल तक के लिए टल गई है। चीफ जस्टिस संजय करोल की डिवीजन बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को रिजॉइंडर दायर करने का निर्देश दिया है।इसमें कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह बताने को कहा था कि कार्बन के उत्सर्जन को कैसे कम किया जा सकता है।
साथ ही कोर्ट ने पेडों को एक स्थान से हटा कर दूसरे स्थान पर लगाने की अनुमति दे दी थी।इससे पहले की सुनवाई में कोर्ट में एन एच ए आई (नेशनल हाईवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया) ने हलफनामा दायर कर बताया था कि पेडों को ट्रांसलोकेट करने की कार्रवाई की जा रही है।

कोर्ट को बताया गया कि पेड़ों को गिराने व ट्रांसलोकेट करने की कार्रवाई 3 फरवरी, 2021 और 23 फरवरी, 2021 को जिला वन अधिकारी द्वारा दिये गए आदेश के आलोक में किया जा रहा है।

उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि अब तक 8340 पेड़ों को गिराया गया था और 2045 पेड़ों को ट्रांसलोकेट किया जा रहा है।याचिकाकर्ता शाश्वत ने पूर्व में कोर्ट को जानकारी दी थी कि विकास व निर्माण के दौरान पेड़ो की कटाई पर रोक को लेकर 26 जुलाई, 19 को राज्य सरकार के पर्यावरण, वन व मौसम विभाग द्वारा भी कार्यालय आदेश भी जारी किया गया था।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह भी माँग की थी कि काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या, पेड़ों की उम्र, इसका पर्यावरण के लिए महत्व व पेड़ो की कटाई से आसपास के पशु- पक्षियों पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन करने को लेकर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनायीं जाए।

इस मामले अगली सुनवाई 1फरवरी,2022 को की जाएगी

सवाल नहीं सलाम कीजिए 21 सदी का भारत

मेरी एक बहुत ही खूबसूरत महिला मित्र है जो गुजरात रहती है खूबसूरत का मतलब चेहरे से नहीं है विचार ,सोच और समझदारी से है ।वो यही कोई 9 वर्ष पूरानी मेरी दोस्ती है ,पहले घंटो बात होती थी लेकिन जब से उसके ऊपर राजनीति का भूत सवार हुआ है उसके अंदर की वो सारी खूबसूरती जिसका मैं कायल रहता था वो अब दिखाई नहीं देती है फिर भी हमेशा उस पर नजर बनी रहती है लेकिन पहले जैसे घंटो बात नहीं होती है।
कल उसका एक पोस्ट आया जिसमें वो लिखी थी—मैं लिखने के लिए राजनीति पर पूरा ग्रंथ लिख दूँ क्योंकि पिछले बीस साल की राजनीति की पंक्ति – पंक्ति मुझे समझ है । मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री नहीं वर्ल्ड बैंक का स्टाफ थें। उनको मैं नेता ही नहीं मानती। देश का सारा महत्वपूर्ण सम्पत्ति बेचकर मैडम की झोली भर दी।लेकिन मुझे बहस नहीं करना क्योंकि जमीन पर कुछ सकारात्मक करने का सपना अभी भी मुझमें मरा नहीं है । सोशल मीडिया पर दिन भर दरी बिछाकर लेट नहीं सकती कि सबको जवाब दे सकूं।
मेरा मानना है कि राजनीति की समझ आज भी सबसे कठिन विषय है इसी संदर्भ को ध्यान में रखते हुए उसके राजनीति से जुड़े इस पोस्ट पर लंबे अंतराल के बाद एक छोटी सी प्रतिक्रिया लिख डाली, मोदी को भी यही भ्रम है ,इस छोटी सी प्रतिक्रिया पर उसकी प्रतिक्रिया आयी ,आप लोग लगे रहिए । जब तक आप लोग लगे रहेंगे मोदी को वोट की कमी नहीं होगी। जिस दिन सज्जन पत्रकार लोग मोदी के लिए नफ़रत फैलाना छोड़कर , लोग तक सही सूचना पहुँचाना शुरू कर देगे तभी बदलाव हो सकेगा।
जहां तक मैं इसे समझता हूं इसके अंदर साहित्य ,संगीत और स्त्री पुरुष के बीच के रिश्ते को लेकर जो समझ है वह विरले मिलता है इस तरह की समझ रखने वाली महिलाएं हिन्दू मुसलमान और भारत पाकिस्तान को लेकर इस तरह जुनूनी हो गयी है कि इसके अंदर का इंसान मर गया है जो इसकी पहचान थी।
खैर अब संदर्भ पर आते हैं ये वही देश है जहां किसी भी राजनीतिक दल या राजनीतिज्ञों की आलोचनाओं को इस तरह से दिल पर नहीं लेते थे । एक दिन की बात है लाल किला पर कवि सम्मेलन आयोजित था उस वक्त नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और उस कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि नेहरु थे ,नेहरू आये और मंच पर चढ़ने लगे पीछे रामधारी सिंह दिनकर चल रहे थे तभी नेहरू सीढ़ियां चढ़ते हुए उनके पैर लड़खड़ा गए तो दिनकर ने उन्हें संभाला. नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा तो इस पर दिनकर ने कहा – ‘जब जब सत्ता लड़खड़ाती है तो सदैव साहित्य ही उसे संभालती है।
इतनी बड़ी बात वो कह गये लेकिन नेहरु उनके बात को दिल पर नहीं लिए और उन्हें फिर से राज्यसभा भेज दिया। आज कोई ऐसा सोच भी सकता है नेहा सिंह राठौर हाल ही में यूपी में क्या बा एक गीत गायी बवाल मच गया और लोग उसके चरित्र तक पर सवाल खड़े कर दिये इतनी असहिष्णु हो गये हैं हमलोग आलोचना बर्दाश्त नहीं है ।
मतलब सवाल नहीं करना है सवाल किये तो फिर आपकी खैर नहीं है हमारी महिला मित्र सज्जन पत्रकार कह कर जिन पत्रकारों पर कटाक्ष की है वो कौन है रवीश कुमार. पुण्य प्रसून बाजपेयी ,अजीत अंजुम ,अभिसार शर्मा जैसे दर्जनों पत्रकार जो सरकार से सवाल कर रहे थे इस वजह से उन्हें नौकरी से निकलवा दिया गया।जबकि इस तरह के सवाल सरकार से पहले भी ये पत्रकार करते थे।
लेकिन अब देश बदल गया है ,देश की सोच बदल गयी है,समझदारी बदल गयी है सवाल नहीं सलाम कीजिए ,21 सदी के भारत को इसी दिशा में ले जाने कि कोशिश चल रही है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि देश सवाल करने वालो से ही बनता है और बढ़ता भी है। इसलिए सवाल करना मत छोड़िए।भले ही आज के इस पोस्ट से गुजरात वाली महिला मित्र नराज ही क्यों ना हो जाये जोखिम उठाते रहना हां इतिहास सवाल करने वालों को ही याद रखता है।

बिहार में नहीं थम रहा है सोना लूट

बिहार में नहीं थम रहा है सोना लूट, आज इस बार सीवान और छपरा की बॉर्डर पर बदमाशों ने एक ज्वेलरी शॉप को निशाना बनाया है। बदमाशों ने शनिवार को सोनी ज्वेलर्स पर 5 लाख रुपए से ज्यादा की लूट की वारदात की है। मामला रसूलपुर थाने के चनचौरा डिब्बी बाजार का है। तीन बाइक पर आए 6 बदमाशों ने वारदात को अंजाम दिया। इसके बाद फायरिंग करते हुए भाग निकले।

लक्ष्मी ज्वेलर्स दुकान में लूट रहे और .फायरिंग का LIVE शॉट है..

बदमाश अचानक चनचौरा गांव निवासी शिवकुमार साह उर्फ मिठु सोनी की डिब्बी बाजार स्थित सोनी ज्वेलर्स पर पहुंचे। इसके बाद बम ब्लास्ट करने लगे और फायरिंग कर स्थानीय लोगों को दहशत में डाल दिया। स्थानीय लोग जब तक मामले को समझ पाते, बदमाशों ने गोलियों की तड़तड़ाहट और देशी बम के धमाकों के बीच 5 लाख से भी अधिक कीमत की ज्वेलरी लूट ली। पुलिस ने घटनास्थल से बम भी बरामद किया है।

MLC चुनाव को जारी एनडीए में बनी सहमति 12 -11-1 के फार्मूले पर बनी सहमति

MLC चुनाव को लेकर NDA में जारी खींचतान आज खत्म हो गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर NDA की ओर से सीटों का ऐलान किया गया। इससे पहले आज सुबह 11 बजे BJP नेता भूपेंद्र यादव और डिप्टी CM तारकिशोर प्रसाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर पहुंचे। उन्होंने एक घंटे तक साथ में बैठक की।

हालांकि, बैठक खत्म होने के बाद जब वह बाहर निकले तो उन्होंने पत्रकारों से कोई बात नहीं की। वहीं, डिप्टी CM ने बताया, ‘NDA में BJP-JDU के बीच सब ठीक है। दोनों पार्टियों के बीच सहमति पहले से बनी हुई थी। आज भी विचार-विमर्श किया गया।’

24 सीटों पर होना है चुनाव
विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव होना है। इसको लेकर दोनों पार्टियों के बीच तनातनी चल रही थी। UP में जब से दोनों पार्टियों के बीच सीट का बंटवारा नहीं हुआ तब से दोनों ओर से बयानबाजी जारी है। इसको लेकर सभी की नजर विधान परिषद चुनाव को लेकर NDA के सीट बंटवारे पर थी।

बीजेपी को 12 सीटें
रोहतास
औरंगाबाद
सारण
सीवान
दरभंगा
पूर्वी चंपारण
किसनगंज
कटिहार
सहरसा
गोपालगंज
बेगूसराय
समस्तीपुर
RLJP
वैशाली
JDU की 11 सीटें
पटना
भोजपुर
गया
नालंदा
मुजफ्फरपुर
पश्चिमी चंपारण
सीतामढ़ी
भागलपुर
मुंगेर
नवादा
मधुबनी

देश को चाणक्य जैसे शिक्षक की जरुरत है

बच्चा जब होश सम्भालता है तो परिवार और समाज से बाहर किसी एक व्यक्ति से उसकी सबसे पहली मुलाकात होती है तो वह है शिक्षक और उस शिक्षक को लेकर बच्चों के मन में सम्मान और आदर का भाव ता उम्र बना रहता है और यही वजह है कि बच्चा जब माँ के आंचल से बाहर निकलता है तो हर अभिभावक की कोशिश होती है कि एक ऐसा शिक्षक मिले जो हमारे बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सके ताकी इसका लाभ आने वाले समय में परिवार ,समाज और राष्ट्र को मिल सके।


मतलब किसी भी परिवार ,समाज और राष्ट्र के मजबूती के लिए बेहतर शिक्षा और समझदार शिक्षक का होना बहुत ही जरूरी है लेकिन किसी की भी सरकार हो उसकी प्राथमिकता शिक्षा नहीं रही ,शिक्षक नहीं रहा है और इस वजह से आज किसी भी अभिभावक का सबसे अधिक खर्च कही हो रहा है तो वह है शिक्षा, पूरी कमाई लगा देने के बावजूद भी बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने में देश की 90 प्रतिशत आबादी वंचित रह रहा है।

हमारी पीढ़ी जितना खर्च पूरे पढ़ाई काल में किया होगा आज उस स्तर की शिक्षा अपने बच्चों को भी मिले इसके लिए यूकेजी में नाम लिखाने और किताब खरीदने में ही खर्च हो जा रहा है, इतनी महंगी हो गयी है शिक्षा, बिहार सरकार का शिक्षा विभाग कल एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि अब शिक्षक शराब माफिया और शराब कारोबारी की खबर सरकार तक पहुचाएंगा इस आदेश को लेकर हंगामा मचा हुआ है कल शाम से देर रात तक कई शिक्षक नेता का फोन आ चुका है संतोष जी क्या हो रहा है इस प्रदेश में कुछ करिए अब शिक्षक बच्चों को पढ़ाना छोड़कर शराब माफिया का पता लगायेगा ।

इस पर एक अच्छा डिवेट करवाईएं बहुत जरुरी है हालांकि मुझे इस आदेश से कोई अचरज नहीं हुआ मास्टर साहब तो पहले से ही इस तरह का काम करते ही रहे हैं कभी मानव का गणना करते हैं ,कभी वोटर का गणना करते हैं,कभी पशु का गणना करते हैं और इस सबसे जब समय बचता है तो बच्चों को भोजन बनाकर खिलाते हैं ।

आज की तारीख में सरकार मास्टर साहब से पढ़ाने का काम कम दूसरा काम ज्यादा करवाने में भरोसा करता है ।किसी भी स्कूल में चले जाये दो तीन शिक्षक स्कूल से बाहर ही रहता है किसी न किसी सरकारी काम को लेकर और यह सब गांव के उस अभिभावक के सामने हो रहा है जिसके बच्चे का भविष्य दांव पर है।

वजह आज भी चुनाव का मुद्दा बेहतर शिक्षा और शिक्षक नहीं है कभी मैंने नहीं सूना है कि गांव के किसी स्कूल में शिक्षक नहीं है या फिर शिक्षक पढ़ाने नहीं आ रहा है तो गांव वाले वोट का बहिष्कार किये हो या फिर गांव वाले सड़क पर उतरे हो कभी नहीं सुना ।

ऐसा भी नहीं है कि यह समझदारी जनता को नहीं है अनपढ़ से अनपढ़ अभिभावक भी शिक्षा के महत्व को समझते हैं लेकिन गांव की शिक्षा व्यवस्था कैसे मजबूत हो इसकी समझ नही बन पा रही है।गांव के अभिभावक का यही सोच है कि सरकारी शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था सही नहीं है तो बच्चों को निजी स्कूल में नाम लिखा दो । सरकार भी यही चाहती है किसी तरह शिक्षा के जिम्मेवारी में मुक्त हो जाये और इसी सोच के तहत सरकार काम भी कर रही है ।

बिहार में शिक्षक के नियोजन को लेकर जब गांव गांव में सवाल खड़े होने लगे कि सरकार सिपाही की बहाली प्रतियोगिता परीक्षा लेकर कर रही है और मास्टर की बहाली नम्बर पर कर रहा है ।

सरकार दबाव में आ गयी और फिर सरकार प्रदेश स्तर पर परीक्षा आयोजित कर बहाल करने कि घोषणा कर दी, देखने में सब कुछ वैसा ही लगा भी कि चलिए इस बार अच्छे लड़के लड़कियां शिक्षक बनेंगे लेकिन हुआ क्या पद से कई गुना अधिक रिजल्ट निकाल दिया और नौकरी पर रखने का अधिकार उसी नियोजन इकाई को दे दिया जो पैसा लेकर अंगूठा छाप मास्टर को पूरे प्रदेश में बहाल कर दिया था।

परिणाम क्या हुआ इस समय पूरे बिहार में पंचायत का मुखिया और सचिव वही खेला शुरु किये हुए हैं चार से लाख पांच लाख दीजिए मेरिट लिस्ट में आप कहां है उससे कोई मतलब नहीं है आपकी नौकरी पक्की। मतलब शिक्षक बहाली में फिर से वही खेला चल रहा है जिसको लेकर सरकार की किरकिरी हुई थी। ऐसी स्थिति में शिक्षक को समाज का सहयोग कैसे मिलेगा वही आज के शिक्षकों का जो चेहरा समाज के सामने है वह बहुत विकृत चेहरा है ऐसी चर्चा आम है कि शिक्षक पढ़ाई छोड़कर सारे काम करते हैं ।

हालांकि इस तरह के इमेज बनाने में सरकार की बड़ी भूमिका है फिर भी आज शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ऐसा कुछ करे जिससे समाज का,परिवार का और बच्चों का एक बार फिर से सरकारी स्कूलों पर भरोसा हो तभी तो सम्मान मिल पायेगा ।

वैसे आज तक अपका चाल चरित्र और चेहरा खान सर से अलग नहीं रहा है अपने लिए तो सब लड़ता है चाणक्य
की तरह समाज और देश के लिए निकले तब तो जाने।

रेलवे बहाली को लेकर गैर जिम्मेवार है -अभयानंद पूर्व डीजीपी बिहार

रेलवे के परीक्षा परिणाम को लेकर नराज छात्र के मामले में बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने रेलवे बोर्ड को आड़े हाथ लेते हुए पूरी बहाली प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया है अपने फेसबुक पेज पर लिखे हैं है कि किसी भी बहाली के साफ़ नीयत और पारदर्शी प्रक्रिया जरुरी है जिसका घोर अभाव देखा जा रहा है।
बिहार पुलिस में सिपाही की नियुक्ति होनी थी। संख्या हज़ारों में थी। लाखों में आवेदन प्राप्त हुए थे। परीक्षा केवल शारीरिक क्षमता की थी यानी लम्बी दौड़, लम्बी कूद, ऊंची कूद, गोला फ़ेंक, इत्यादि।
सरकार ने मुझे इस प्रतियोगिता के संचालन का ज़िम्मा दिया। पूरा कार्यक्रम किसी यज्ञ से कम नहीं था। कार्यक्रम के दौरान माननीय मुख्यमंत्री ने गंभीर आवाज़ में पूछा, “कैसा चल रहा है बहाली?” मैंने उत्तर दिया, “जनता दरबार में असंख्य लोग शिकायत लेकर आते हैं। कोई बहाली की शिकायत के साथ आपसे मिलने आया है?” उन्होंने कहा, “नहीं”। मैंने तुरंत कहा, “तब मान लीजिए कि बहाली ठीक हो रही है।”
पूरी प्रक्रिया के हर पल का वीडियो बनाया गया था।
मुझे दो वाकया स्मरण हैं। एक प्रत्याशी ने दावा किया कि उसने लम्बी कूद पूरी की थी पर उसे निकाल दिया गया था। उसकी वीडियो निकाल कर उसके अंतिम फ्रेम को फ्रीज करके दिखाया गया कि उसका पैर लाइन के पीछे ही रह गया था। यह देखने के बाद वह संतुष्ट होकर चला गया।
दूसरा प्रत्याशी अपने एक मील की दौड़ पर दावा कर रहा था। उसे भी पूरा वीडियो दिखा दिया गया। वह जब संतुष्ट हुआ कि उसके साथ अन्याय नहीं हुआ है तब वह भी चला गया।
मात्र तीन महीनों में बहाली पूरी हुई। किसी कोर्ट का चक्कर नहीं लगा न ही कोई आंदोलन हुआ जैसा आज-कल प्रत्येक सार्वजनिक प्रतियोगिता में हो रहा है।
अंतर केवल एक था “साफ़ नीयत और पारदर्शी प्रक्रिया”।

बिहार कोकिला शारदा सिन्हा की व्यथा ये अंधेरा कब तक

ये अंधेर कब तक ?????
Dr. Isha Sinha , मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं । LNMU , दरभंगा में पीजी हेड से रिटायर की थीं । जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं।

आज वो हमें अकेला छोड़ गईं । 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं , अंतिम समय में उनके दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी , उनके पतिदेव श्री सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को उनकी पत्नी के हालत भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी ।

पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में !!!!!!श्री सच्चिदानंद जी !
ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें।
मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं , और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही !!!!
साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं । (इसका फर्क हर सेवा निवृत को गहरा ही पड़ता है)
क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का ???
क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में ।

ये अंधेर कब तक ?????
Dr. Isha Sinha , मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं । LNMU , दरभंगा में पीजी हेड से रिटायर की थीं । जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं।
आज वो हमें अकेला छोड़ गईं । 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं , अंतिम समय में उनके दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी , उनके पतिदेव श्री सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को उनकी पत्नी के हालत भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी ।
पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में !!!!!!श्री सच्चिदानंद जी !
ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें।
मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं , और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही !!!!
साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं । (इसका फर्क हर सेवा निवृत को गहरा ही पड़ता है)
क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का ???
क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में ।

लेखक–शारदा सिन्हा

छात्र आंदोलन का क्या मतलब है

बिहार से एक बार फिर छात्र आंदोलन की शुरुआत हो गई है’, एक नेता ने उत्साह से घोषणा की. एक नौजवान ने माइक में चीखते हुए कहा, ‘क्रांति की चिंगारी दिल्ली तक पहुंचेगी.’ इन दोनों में ही जो जनतांत्रिक आशा है, उसका तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए लेकिन दोनों बस आशा की ही अभिव्यक्ति हैं और अतिशयोक्ति हैं. इस पर हम आगे बात करेंगे.
बिहार और उत्तर प्रदेश में रेलवे लाइनों पर और सड़कों पर नौजवानों के क्षोभ का विस्फोट हुआ. क्षोभ से भी ज़्यादा इसे हताशा कहा जाना चाहिए. रेलगाड़ियों में आग लगा दी गई, पटरियों को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई.
‘सार्वजनिक संपत्ति’ का नुकसान हुआ, यह कहकर कई लोग नौजवानों को हिंसा से बचकर शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन चलाने को कह रहे हैं. वे किसान आंदोलन का उदाहरण दे रहे हैं. देखिए, उन्होंने कितने अहिंसापूर्ण तरीके से और धीरज से अपना आंदोलन चलाया और सरकार को झुका दिया.
जो यह सुझाव देते हैं वे नहीं बतलाते कि उस आंदोलन को शांतिपूर्ण होने के बाद भी हिंदी जनसंचार माध्यम का समर्थन तो नहीं ही मिला था, उसने यह प्रचार भी किया था कि किसान शांति का ढोंग कर रहे हैं, वे मूलतः हिंसक हैं. उनके भीतर खालिस्तानी, माओवादी और जिहादी छिपकर बैठे हैं और वे हिंसक ही नहीं राष्ट्रद्रोही भी हैं.
उस आंदोलन ने इन सारे आरोपों को झेलते हुए अपना रास्ता तय किया. आंदोलन शांतिपूर्ण हो तो सरकार सुन लेती है, यह बात किसान आंदोलन से गलत साबित हुई और उसके पहले नागरिकता के संशोधित कानून का विरोध कर रहे आंदोलन के प्रति सरकार और जनसंचार माध्यमों के रवैये से भी गलत साबित होती है.
लोगों का कहना है कि किसान आंदोलन की मांगे भी तभी आंशिक रूप से मानी गईं जब भारतीय जनता पार्टी को भय हुआ कि उत्तर प्रदेश और पंजाब में उसे भारी हानि होगी. किसान अगर उसके संभावित मतदाता न होते तो भाजपा को उनके हितों की भी कोई परवाह न होती.
यह बात साबित होती है नागरिकता के कानून के विरोध में हुए आंदोलन के प्रति उसके बेहिस और हिंसक रुख से. भाजपा को मालूम है कि मुसलमान उसके मतदाता नहीं हैं बल्कि वह अपने मतदाता को मुसलमान और ईसाई विरोधी हिंदू ही बनाना चाहती है. इसलिए उसने उस आंदोलन पर कान नहीं दिया.
न सिर्फ यह उसने उस आंदोलन का भारी दमन किया जिसका चरम दिल्ली में फरवरी 2020 में की गई हिंसा थी. ऐसा करके उसने हिंदुओं के एक हिस्से में पैठी मुसलमान विरोधी हिंसा को तुष्ट किया.
आपने ध्यान दिया होगा कि ट्रेनों में आगजनी और तोड़फोड़ के बाद भी सरकार और अखबारों और टीवी चैनलों की तरफ से आंदोलनकारियों पर वैसा हमला नहीं किया गया जैसा नागरिकता कानून या किसानों से जुड़े कानूनों के विरोध में हुए आंदोलनों पर किया गया था.
किसी ने नहीं कहा कि सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का बदला लिया जाएगा हालांकि ऐसा कहने वाले आज भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. इसके उलट रेलवे मंत्री ने आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया.
मंत्री ने आंदोलनकारियों से सार्वजनिक संपत्ति को अपनी संपत्ति समझने का अनुरोध किया और तोड़फोड़ से बचने की अपील की. रेल मंत्रालय ने कहा कि वह आंदोलन की मांग पर विचार करेगी. यह सब कुछ बहुत नया है और इस सरकार के स्वभाव के उलट है.
इलाहाबाद में पुलिस ने जो हिंसा की, उसे जायज ठहराने की जगह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ने हिंसा में लिप्त पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई का भरोसा दिलाया और आंदोलनकारियों से संयम की अपील की. यह भी उनके और उनकी सरकार के स्वभाव के विपरीत है.
जो उनका तरीका है उसके मुताबिक़ अब तक इन आंदोलनकारी नौजवानों के नाम और तस्वीरों वाले पोस्टर शहर में लग जाने चाहिए थे और इनके घर कुर्की-जब्ती शुरू हो जानी थी.
बिहार और उत्तर प्रदेश में, खासकर इलाहाबाद में जिस तरह आंदोलनकारी नौजवानों को उनके छात्रावास में घुसकर मारा गया, उससे कुछ लोगों को जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस की भीषण हिंसा की याद आ गई.
पुलिस की इस हिंसा पर कुछ बात करना ज़रूरी है इसके पहले कि हम अभी के नौजवानों के आंदोलन पर बात करें.
आंदोलनों में पुलिस का काम कठिन होता है. आंदोलनकारी जोश में और कई बार इरादतन व्यवस्था भंग करते हैं. पुलिस का काम व्यवस्था बनाए रखने का होता है. इसलिए दोनों के बीच खींचतान होना स्वाभाविक है. पुलिस बल का प्रयोग करेगी, यह भी सब जानते हैं.
पहले के आंदोलनों में यह होता रहा है. लेकिन पिछले सात साल में यह बदल गया है. अब पुलिस बलप्रयोग से स्थिति को नियंत्रित नहीं करती. वह इरादतन हिंसा करती है.
जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस की कार्रवाई को इरादतन हिंसा के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता. अमूमन पुलिस दुश्मनों की तरह बर्ताव नहीं करती. लेकिन 2019 दिसंबर में नागरिकता के कानून के खिलाफ आंदोलनकारियों के साथ पुलिस का बर्ताव ऐसा था जैसे उसकी इनसे ज़ाती दुश्मनी हो.
यही बात 2 अप्रैल, 2018 को दलित संगठनों की तरफ से किए गए बंद के दौरान पुलिस की हिंसा में दिखलाई दी. उसने कथित ऊंची जाति के गुंडों के साथ मिलकर दलितों पर हिंसा की.
पुलिस और शासक दल के गुंडों के गठजोड़ का प्रमाण इस नारे से बेहतर और कोई नहीं हो सकता, ‘दिल्ली पुलिस लट्ठ चलाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.’ पुलिस का सक्रिय हिंसक बल में बदल जाना जनतंत्र और गणतंत्र दोनों के लिए घातक है.
उत्तर प्रदेश और अब असम या अन्य राज्यों में पुलिस को सरकार विरोधियों के साथ हिंसा की जो छूट दी जा रही है, उसका ही परिणाम इलाहाबाद में पुलिस की अवाक् कर देने वाली हिंसा थी. वह छात्रावास में घुसकर जिस तरह बंदूक के कुंदों से दरवाजे तोड़ने की कोशिश कर रही थी, जिस तरह पुलिसवाले बार-बार दरवाज़े तोड़ने में हांफ रहे थे, उससे लग रहा था, यह उनका व्यक्तिगत क्रोध है.
पुलिस के चरित्र में इस परिवर्तन पर हमें सोचने की ज़रूरत है. पुलिस को जनता का मालिक बना देने के नतीजे भयानक हो सकते हैं.
इन बातों से आगे हम इस पर विचार करें कि क्या छात्र आंदोलन की शुरुआत हो गई है? ऐसी कल्पना के पहले यह समझना आवश्यक है कि जो भी अभी सड़क पर थे, वे छात्र नहीं रह गए हैं.
यह भारत की पिछले दो दशकों की बड़ी दुर्घटना है जो चुपचाप हुई और जिससे हम सबने आंखें चुरा रखी हैं. ख़ासकर, उत्तर भारत में छात्र की जगह अब परीक्षार्थी या ‘टेस्टार्थी’ ने ले ली है. यह एक ऐसी प्रजाति विकसित की गई है जो सालोंसाल एक के बाद दूसरे टेस्ट देती रहती है.
जैसा इस रेलवे भर्ती परीक्षा के मामले से ही पता चलता है, इन सारे ‘टेस्टों’ को इतना जटिल बना दिया गया है और इन्हें इतना लंबा खींचा जाता है कि इनमें शामिल होने वालों की सारी युवा ऊर्जा उसी भूलभुलैया में बाहर का रास्ता खोजने को भागते हुए चुक जाती है.
वे एक नौकरी के टेस्ट से दूसरी नौकरी के टेस्ट के फॉर्म भरते रहते हैं, टेस्ट की तैयारी में कोचिंग करते हैं और गाइड में सिर खपाते रहते हैं. उनका खासा वक्त कोचिंग में गुजरता है. अपने समाज और राजनीति के बारे में विचार करने के लिए उनके पास वक्त नहीं होता जिसने उन्हें इस जाल में फंसा रखा है.
धीरे-धीरे वे इतना झुका दिए जाते हैं कि कम से कम पर समझौते को तैयार हो जाते हैं. उनकी आत्म छवि भी छात्र से ज़्यादा ‘प्रिपरेशनकारी’ की होती है. कॉलेज और विश्वविद्यालय के परिसर से ज़्यादा वक्त उनका कोचिंग सेंटर में बीतता है. यहां उन्हें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखने को कहा जाता है और फालतू की बहस से दूर रहने की शिक्षा दी जाती है.
गांवों और छोटे क़स्बों में एक दूसरी तैयारी या कोचिंग चलती है. सुबह-सुबह आप नौजवानों को दौड़ लगाते देख सकते हैं. वे दौड़ते रहते हैं कि सेना, बीएसएफ या किसी राज्य की पुलिस में उनकी बहाली हो जाए. फिर उसके साथ वे घूस का इंतजाम भी करते हैं.
ये छात्र नहीं रह जाते. इसमें इनका कोई कसूर नहीं. लेकिन यह सच्चाई है कि भारत में, विशेषकर उत्तर भारत में छात्रों की जगह अब टेस्टार्थियों ने ले ली है. उनके पास आंदोलन का समय नहीं.
यह बात मेरी समझ में आई 2016 में संसद भवन थाने में ऐसे ही परीक्षार्थियों के एक झुंड से बात करके. ये सब ऊंचे स्तर के टेस्टार्थी थे. वे संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले थे. किसी मसले पर वे आंदोलन कर रहे थे और अपनी मांग लेकर भाजपा के दफ्तर गए थे. वहां उनकी पिटाई हुई और पुलिस पकड़कर उन्हें थाने ले आई.
उनमें से एक ने मुझसे कहा कि पुलिस ने उन पर कितना जुल्म किया है. यह फरवरी 2016 की बात है. अभी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उमर खालिद, कन्हैया, अनिर्बान आदि की गिरफ्तारी हुई थी. मैंने उनसे कहा कि पुलिस ने जेएनयू में भी छात्रों के साथ जुल्म किया है. इतना सुनना था कि वे छात्र बिदक उठे.
उन्होंने कहा कि हमें उनसे मत मिलाइए. हमारा मामला अलग है. मैं समझ गया कि इन सबने खुद को छात्रों की श्रेणी से अलग कर लिया है. ये प्रिपरेशन करने वाले टेस्टार्थी समुदाय के सदस्य हैं. ये छात्रों से किसी तरह का कोई लगाव महसूस करें, इसका कारण नहीं है.
जैसा पहले लिखा, इसके लिए ये दोषी नहीं हैं. यह जमात हमने पैदा की है. राज्यों के विश्वविद्यालयों को ध्वस्त करके उनकी जगह कोचिंग सेंटर खड़े करने में राज्य सरकारों को शर्म नहीं आती.
नीतीश कुमार के सत्तासीन होने के बाद पटना में बड़ा बैनर देखा था, ‘पटना को कोटा बनाना है.’ पटना की यह महत्त्वाकांक्षा देखकर सिर झुक गया. पटना विश्वविद्यालय ढह चुका है. चारों तरफ छोटे बड़े कोचिंग सेंटर उग आए हैं. छात्र समुदाय की मृत्यु हो चुकी है. उसकी जगह टेस्टार्थियों की भीड़ खड़ी हो गई है. भीड़ का गुस्सा ज़रूर फूट सकता है. वह आंदोलन नहीं कर सकती.

देश के प्रथम राष्ट्रपति के स्मारक की दर्दाशा को लेकर आज भी हुई सुनवाई सरकार को लगी फटकार

पटना हाईकोर्ट ने देश के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई और वहां उनके स्मारक की दुर्दशा के मामलें पर सुनवाई की।चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने केंद्र सरकार ( आर्केलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) व राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे असन्तोषजनक करार दिया।

हाईकोर्ट ने सिवान के डी एम को इस जनहित याचिका में उठाए गए सभी मुद्दों पर हलफनामा दायर कर जवाब देने को निर्देश दिया।साथ ही कोर्ट ने पटना के जिलाधिकारी को पटना स्थित बांस घाट और बिहार विद्यापीठ के सम्बन्ध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया हैं।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार, आर्किओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया समेत अन्य सभी पक्षों को निश्चित रूप से जवाब दायर करने का आदेश दिया था।लेकिन आज आर्किओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया व राज्य सरकार के द्वारा जो हलफनामा दायर कर जवाब दिया गया,उन्हें हाईकोर्ट ने असन्तोषजनक बताया।

इससे पूर्व कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से जवाब दायर किया गया था।कोर्ट को इसमें जानकारी दी गई कि राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 10 जनवरी,2022 को एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी।इसमें सम्बंधित विभाग के अपर प्रधान सचिव सहित अन्य वरीय अधिकारी बैठक में उपस्थित थे, जिनमें पटना और सीवान के डी एम भी सम्मिलित थे।
इसमें कई तरह के जीरादेई में विकास कार्य के साथ पटना में स्थित बांसघाट स्थित डा राजेंद्र प्रसाद की समाधि स्थल और सदाकत आश्रम की स्थिति सुधारें जाने पर विचार तथा निर्णय लिया गया।
इस बैठक में जीरादेई गांव से दो किलोमीटर दूर रेलवे क्रासिंग के ऊपर फ्लाईओवर निर्माण पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया।
साथ ही राजेंद्र बाबू के पैतृक घर और उसके आस पास के क्षेत्र के विकास और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कार्रवाई करने का निर्णय हुआ।

हाईकोर्ट ने इससे पहले अधिवक्ता निर्विकार की अध्यक्षता में अधिवक्ताओं की तीन सदस्यीय कमिटी गठित की थी।कोर्ट ने इस समिति को इन स्मारकों के हालात का जायजा ले कर कोर्ट को रिपोर्ट करने का आदेश दिया था।

अधिवक्ताओं की कमिटी ने जीरादेई के डा राजेंद्र प्रसाद की पुश्तैनी घर का जर्जर हालत, वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी और विकास में काफी पीछे होने की बात अपनी रिपोर्ट में कहा।

साथ ही पटना के बांसघाट स्थित उनके समाधि स्थल पर गन्दगी और रखरखाव की स्थिति को भी असंतोषजनक बताया।वहां काफी गन्दगी पायी गई और सफाई व्यवस्था, रोशनी आदि की भी बेहद कमी थी।
साथ ही पटना के सदाकत आश्रम की हालत को भी वकीलों की कमिटी ने दुर्दशापूर्ण स्थिति करार दिया।

जनहित याचिका में अधिवक्ता विकास कुमार ने बताया कि जीरादेई गांव व वहां डाक्टर राजेंद्र प्रसाद के पुश्तैनी घर और स्मारकों की हालत काफी खराब हो चुकी है। जीरादेई में बुनियादी सुविधाएं न के बराबर है।वहां न तो पहुँचने के लिए सड़क की हालत सही है।साथ ही गांव में स्थित उनके घर और स्मारकों स्थिति और भी खराब हैं,जिसकी लगातार उपेक्षा की जा रही है।

उन्होंने कहा कि इन स्मृतियों और स्मारकों को सुरक्षित रखने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 3 फरवरी,2022 को होगी।

सोशल मीडिया का इस्तेमाल मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा की तरह हो रहा है

हिटलर जनता द्वारा चुनी गयी सरकार का मुखिया था कोई राजा नहीं था राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक नये मंत्रालय का गठन किया जिसका नाम रखा मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा यह मंत्रालय ना पहले किसी शासक ने बनाया था ना ही बाद के दिनों में किसी शासक ने यह साहस जुटाया।

हिटलर ने इस मंत्रालय की जिम्मेवारी डॉ जोसेफ गोएबल्स को सौंपा था जिसका मूल मंत्र था “एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है.”मंत्रालय का काम संभालने के बाद उन्होंने सबसे पहले काम यह किया कि रेडियो निर्माण में लगी कंपनी को सरकार की और से सब्सिडी देना शुरू किया ताकि रेडियो को जन जन तक पहुंचाया जा सके उनका मानना था कि रेडियो सिर्फ 19वीं सदी में ही नहीं बल्कि 20वीं सदी में भी सबसे असरदार माध्यम रहेगा और यह आठवीं महान शक्ति है बाद के दिनों में प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए जर्मन सरकार रेडियों का जबरदस्त इस्तेमाल किया ।
आज अधिकारिक तौर पर सरकार में मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा जैसा कोई विभाग नहीं है लेकिन पूरी सरकार और उसका मंत्र 24 घंटे इसी काम में लगा रहता है हिटलर के दौर में भी सरकार का प्रोपेगेंडा फैलाने में नाजी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओ का फौज हमेशा सक्रिय रहता था जैसे आज सक्रिय है ।

यह एक छद्म युद्ध है और इसका शिकार पढ़े लिखे लोग भी होते हैं रेलवे बहाली को लेकर जारी आन्दोलन का आग जैसे ही दूसरे दिन यूपी पहुंचा संघ और उससे जुड़ी जो भी संस्थान है या फिर नाजी टाइप जो समर्थक है वो मोर्चा संभाल लिये और सोशल मीडिया पर कई छद्म नाम से पोस्ट होने लगा हिंसा सही नहीं है,यह सब कोचिंग वालों का खेल है सात लाख बच्चों का पीटी हो जायेगा तो कोचिंग संस्थानों को 15 करोड़ की कमाई होगी। और इस तर्क को सही साबित करने के लिए एक से एक पोस्ट गिरने लगा पूरी कोशिश हुई कि सोशल मीडिया पर रेलवे परीक्षा को लेकर जो आंदोलन चल रहा है उस आंदोलन के औचित्य पर इस तरह सवाल खड़े किये जाये कि पूरा आन्दोलन ही संदेह के घेरे में आ जाए जैसे किसान आन्दोलन का लेकर चल रहा था ।

दूसरी और सरकार आन्दोलन को कमजोर करने के लिए खान सहित 6 से अधिक कोचिंग संस्थानों के प्रबंधक सहित एक हजार से अधिक छात्रों पर मुकदमा दर्ज कर दिया और सुबह होते होते गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गयी।
वही मीडिया शाम होते होते मिस्टर खान को भगौड़ा तक घोषित कर दिया लेकिन विपक्ष की गोलबंदी और बिहार बंद की घोषणा से प्रोपेगेंडा मंत्रालय थोड़ा असहज हुआ तो फिर पोलिटिकल बिंग जो 72 घंटे से चुपचाप इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे हुए था वो आगे आकर मोर्चा संभाल लिये ।

सुशील मोदी का एक वीडियो जारी हुआ जिसमें रेल मंत्री से हुई बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि रेल मंत्री सारी बात मान गये हैं पीटी में 3 लाख 50 हजार रिजल्ट और जारी किया जायेगा, वहीं मोदी उस वीडियो में पुलिस से आग्रह करते दिखे हैं कि छात्रों के साथ संयम बरते ।

देर शाम जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का खान को लेकर एक ट्वीट आया और उस ट्वीट में ललन सिंह खान को गरीबों का मसीहा कहते हुए जमकर तारीफ किये हैं और रेल पुलिस से मुकदमा वापस लेने कि मांग किये हैं।इस ट्टीट के कुछ घंटे बाद खान सोशल मीडिया पर प्रकट हुए और सरकार की तारीफ करते हुए छात्रों से आज के बंदी से अलग रहने का संदेश जारी किये ।

इस पूरे खेल पर गौर करिए तब आपको समझ में आयेगा कि इसके पीछे की रणनीति क्या है वैसे इन्तजार करिए सुशील मोदी और ललन सिंह ने जो भरोसा दिलाया है वो कब अमल में आता है क्यों कि सरकारी नौकरी को लेकर जो खेल चल रहा है उसके पीछे केन्द्र की सरकार है ये साफ दिख रहा है ।

स्टेशन पर झाड़ू-पोछा देने वाले के लिए तीन तीन परीक्षा पास करनी पड़ेगी तब नौकरी मिलेगा, इससे सरकार की नियत क्या है वो साफ समझ में आ रहा है वैकेंसी निकालो लेकिन इस तरह निकालो की नौकरी देनी ही नही पड़े बस छात्रों को उलझा कर रखना है।

रेलवे की जिस परीक्षा को लेकर बवाल हुआ था उस परीक्षा को लेकर रेलवे ने 71 पेज का नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें छात्रों को नौकरी नहीं देनी पड़ी इसकी पूरी व्यवस्था है और उसी का नतीजा था यह हंगामा । जरा आप भी देखिए 2019 की वैकेंसी 2022 में पीटी का रिजल्ट और उसके बाद अभी मुख्य परीक्षा होनी है मतलब 2019 के वैकेंसी को पूरा करने में सरकार पांच वर्ष वर्ष का समय ले रही है ये जो पांच वर्ष एक परीक्षा पास करने के लिए छात्र लगा रहे हैं ये बर्बादी किसकी है यह समझने कि जरूरत नहीं है क्यों कि मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा इस स्तर तक सक्रिय है कि बहुत मुश्किल है सरकार के नियत को समझना ।

सोशल मीडिया कानून से ऊपर नहीं है – हाईकोर्ट

पटना हाई कोर्ट में साइबर क्राइम से जुड़े मामले पर सुनवाई हुई। गूगल एल एल सी अमेरिका की ओर से वरीय अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव कोर्ट के समक्ष पक्ष रखा।सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी फेसबुक की ओर से उपस्थित हुए।

व्हाट्सएप का पक्ष वरीय अधिवक्ता अरविंद दातर ने रखा। इन सभी वरीय अधिवक्ताओं ने कहा कि वे अनुसंधान में पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार हैं, कही कोई अड़चन नहीं आएगी।

इसपर कोर्ट ने पूछा कि फिर अभी तक आपत्तिजनक पोस्ट को यूट्यूब से क्यों नहीं हटाया गया है, जोकि गूगल की कंपनी है। इस मामले में उनके वरीय अधिवक्ता का कहना था कि प्रावधान के मुताबिक जबतक कोर्ट का आदेश नहीं होता है, तबतक वे नहीं हटा सकते हैं।

इसपर कोर्ट ने कहा कि कोर्ट आदेश करने को तैयार है। जस्टिस संदीप कुमार शिव कुमार व अन्य के मामले पर सुनवाई की। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए बैंक से जवाब तलब किया था।

साथ ही साथ हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में कोर्ट ने फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल व यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के स्थानीय हेड को नोटिस जारी करने का आदेश दिया था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को आर्थिक अपराध इकाई द्वारा किये जा रहे अनुसंधान में सहयोग करने को कहा गया है था।

कोर्ट के समक्ष हलफनामा दाखिल कर बताया गया था कि फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल व यूट्यूब जैसे मीडिया प्लेटफॉर्म आर्थिक अपराध इकाई के साथ अनुसंधान में सहयोग नहीं कर रही है।

कोर्ट का कहना था सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस तरह का व्यवहार सहन नहीं किया जाएगा क्योंकि उन्हें पुलिस को अनुसंधान में सहयोग करना होगा।

इसलिए, कोर्ट ने इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म के स्थानीय हेड को भी जवाब देने को कहा था। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि ये जवाब नहीं देते हैं, तो कार्रवाई की जाएगी।

इस मामले में आगे की सुनवाई आगामी 1 फरवरी को की जाएगी।

बिहार में प्रशासन न करे कोई दमनात्मक कार्रवाई

रेलवे ग्रुप डी की दो की जगह एक परीक्षा लेगा, एनटीपीसी के परिणाम ‘एक छात्र-यूनिक रिजल्ट’ फार्मूले पर।
रेल मंत्री वैष्णव ने सुशील मोदी को दिलाया भरोसा।

– बिहार में प्रशासन न करे कोई दमनात्मक कार्रवाई

नई दिल्ली। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तथा राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी को आश्वस्त किया कि ग्रुप-डी की दो की बजाय एक परीक्षा होगी और एनटीपीसी की परीक्षा के 3.5 लाख अतिरिक्त परिणाम “एक छात्र-यूनिक रिजल्ट” के आधार पर घोषित किये जाएंगे।

रेलमंत्री ने श्री मोदी को भरोसा दिलाया कि सरकार छात्रों से सहमत है और उनकी मांग के अनुरूप ही निर्णय जल्द किया जाएगा।

श्री सुशील मोदी ने लाखों अभ्यर्थियों की परेशानी और उनकी मांगों से रेल मंत्री वैष्णव को विस्तार से अवगत कराया।
श्री मोदी ने रेल मंत्री से आग्रह किया कि एनटीपीसी के मामले में “वन कैंडीडेट-वन रिजल्ट” के सिद्धांत पर निर्णय किया जाना चाहिए।

सुशील मोदी ने कहॉ रेल मंत्री ने समस्या का क्या समाधान

उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड ने यदि फैसला अचानक लेने से परहेज किया होता और समय रहते छात्रों के भ्रम दूर किये होते, तो बिहार में ऐसी अप्रिय स्थिति नहीं पैदा होती।

पूर्व उप-मुख्यमंत्री मोदी ने राज्य के पुलिस प्रशासन से अपील की कि छात्रों पर कोई दमनात्मक कार्रवाई न की जाए। छात्र कोई अपराधी नहीं हैं।

उन्होंने छात्रों से संयम बरतने की अपील की ताकि रेलवे बोर्ड मामले के सभी पहलुओं की जांच पूरी कर परीक्षार्थियों के हित में फैसला कर सके।

एनएच के मरम्मती को लेकर हाईकोर्ट सख्त कहां मरम्मती के मामले में विभाग का रवैया सही नहीं

पटना हाईकोर्ट ने राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, विकास और मरम्मती की मॉनिटरिंग करते विभिन्न राजमार्गो के कार्य प्रगति की सुनवाई की। चीफ जस्टिस संजय करोल की डिवीजन बेंच ने इन मामलों पर सुनवाई की।

हाईकोर्ट ने एन एच 2 औरंगाबाद वाराणसी मामलें पर सुनवाई करते हुए एमिकस क्यूरी अधिवक्ता के.मणि और एन एच ए आई के अधिवक्ता को स्थल निरीक्षण कर अगली सुनवाई में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।कोर्ट को बताया गया कि एन एच निर्माण के लिए 2011 में ठेका दिया गया था और राजमार्ग निर्माण का कार्य 2014 में पूरा किया जाना था।
एन एच ए आई की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इस मार्ग कहीं कहीं बाधाएं हैं,जिन्हें हटाए जाना की आवश्यकता हैं। एन एच 2पर मोहनियां के पास टोल प्लाजा का निर्माण होना था।

इस सम्बन्ध में मुख्य सचिव ने दो बार 28 नवंबर,2017 और 15 मई, 2018 सम्बंधित अधिकारियों के साथ बैठकें की।इनमें टोल प्लाजा के निर्माण के लिए भूमि देने का निर्णय लिया गया था।इस मामलें में कोर्ट ने कैमूर के जिलाधिकारी।और वाणिज्य कर विभाग को स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया। इस मामलें पर अगली सुनवाई फरवरी माह के पहले सप्ताह मै की जाएगी।

एक अन्य एन एच 31बख्तियारपुर रजौली राजमार्ग के सम्बन्ध में कोर्ट ने राज्य के विकास आयुक्त को एक बैठक कर स्थिति के सम्बन्ध में रिपोर्ट करने का निर्देश देने का निर्देश दिया था।लेकिन इस सम्बन्ध में हाईकोर्ट को अबतक कोई जानकारी नहीं दी गई।कोर्ट ने विकास आयुक्त को सभी सम्बंधित पक्षों के साथ बैठक कर राजमार्ग के निर्माण पूरा किये जाने के बारे में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।इस मामले पर अगली सुनवाई 15 फरवरी,2022 को होगी।

राजमार्ग संख्या 131जी शेरपुर दिघवारा section के निर्माण के मामलें पर हाईकोर्ट में सुनवाई की गई।चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य के विकास आयुक्त को सभी सम्बंधित पक्षों के साथ बैठक कर इस सम्बन्ध में की गई कारवाइयों का ब्यौरा हलफनामा दायर कर देने का निर्देश दिया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 31जनवरी, 2022 को होगी।

मगध विश्वविधालय के कुलपति पर कार्रवाई पर राजभवन और सरकार आमने सामने, राजभवन ने कहा सरकार राजभवन के अधिकारी क्षेत्र पर हमला कर रही है

मगध विश्वविधालय के कुलपति पर कार्रवाई को लेकर कुलाधिपति सह राज्यपाल फागू चौहान भड़क गये हैं और स्पेशल विजिलेंस यूनिट की कार्रवाई को अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण मानते हुए कहा है कि यह कानून का उल्लंघन ही नहीं है यह राज्यपाल के अधिकारी क्षेत्र पर हमला है ।राज्यपाल के प्रधान सचिव आर एल चोंगथु ने इसको लेकर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को पत्र लिख है.

प्रधान सचिव ने पत्र में साफ लिखा है कि विश्विद्यालयों के मामले में सक्षम प्राधिकार कुलाधिपति हैं. ऐसे में कुलाधिपति की अनुमति के बिना विश्वविद्यालयों में स्पेशल विजिलेंस यूनिट की कार्रवाई पूरी तरह से कानून का उल्लंघन है. ऐसे में इस कार्रवाई को तत्काल रोकें।

राजभवन ने यहां तक कहा है कि इस कार्रवाई से विश्विद्यालयों की स्वायत्तता पर कुठाराघात है. प्रधान सचिव के पत्र में साफ है कि यह पत्र भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के सेक्शन 17A में उल्लिखित प्रावधानों का अक्षरशः पालन करने को लेकर लिखा जा रहा है. राजभवन ने कहा है कि ऐसी कार्रवाई से विश्विद्यालयों में अनावश्यक भय का वातावरण बन रहा। इस कार्रवाई से पदाधिकारियों और कर्मचारियों पर मानसिक दवाब भी पड़ रहा है।

मालूम हो कि मगध विश्वविधालय के कुलपति पर 30 करोड़ से अधिक के राशी के गबन का आरोप है और इस मामले में विशेष निगरानी की टीम ने विश्वविधालय से जुड़े कई अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया है और लगातार दबाव के बाद पिछले दिनों ही कुलपति विशेष निगरानी के अधिकारी के सामने उपस्थिति हुए थे ।

वही इस मामले में निगरानी कोर्ट ने कुलपति प्रो राजेंद्र प्रसाद की अग्रिम जमानत रद्द कर चुका है राज्यपाल के इस पत्र से यह साफ हो गया है कि कुलपति मामले में नीतीश कुमार और राज्यपाल के बीच दूरिया बढ़ सकती है ।

क्या आपको पता था कि केंद्रीय सचिवालय में छह साल से प्रमोशन बंद है ?

क्या आपको पता था कि केंद्रीय सचिवालय में छह साल से प्रमोशन बंद है?
मोदी सरकार ने छह साल से केंद्रीय कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं दिया है। जिसके कारण प्रमोशन और बिना वेतन वृद्धि के ही कई कर्मचारी रिटायर होते रहे। अब ये कर्मचारी भी ट्विटर पर ट्रेंड करा रहे हैं और अपने लिए प्रमोशन मांग रहे हैं। हिन्दू की रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्रीय सचिवालयों में छह साल से प्रमोशन बंद है।

मैं जानना चाहूंगा कि बिना प्रमोशन के रिटायर हुए ऐसे अफसरों में कितने भक्त हो गए थे और मुस्लिम विरोधी राजनीति में आनंद प्राप्त कर रहे थे और अब जब उनके प्रमोशन का चांस ख़त्म हो गया है उन्हें इस नफरती राष्ट्रवाद से कितनी ऊर्जा मिलती है? ज़ाहिर है कर्मचारी झूठ ही बोलेंगे कि उनका काम देश की सेवा करना है, उन्हें राजनीति से मतलब नहीं। हा हा हा हा हा हा। इस नफरत की आग में आप ही नहीं जले हैं, आपका वो बच्चा भी जला है जो भर्ती नहीं निकलने से बेरोज़गार बैठा है। आपको प्रमोशन मिलता तो नीचे की सीट खाली होती। नीचे की सीट ख़ाली होती तो भर्ती निकलती। do you get my point.
हिन्दू की विजयिता सिंह की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय सचिवालय सेवा (CSS) फोरम के अनुसार प्रमोशन नहीं होने की वजह से तीस फीसदी पद ख़ाली हैं। इनके अनुसार अवर सचिव, उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव के 1839 पद ख़ाली हैं। जब सचिवालयों में संकट होने लगा तो 2020 में अस्थायी तौर पर 2770 पदों पर प्रमोशन दिया गया। इसके बाद भी 1800 पदों पर प्रमोशन होना है। भर्ती ख़ाली है। सोचिए 4400 अफसरों में से 60 फीसदी से अधिक अस्थायी रुप से प्रमोशन लेकर काम कर रहे हैं। यह हाल है खूब काम करने वाली मोदी सरकार का।

2014 से प्रमोशन नहीं हुआ है। छह साल निकल गए। इस दौरान प्रमोशन और अधिक सैलरी के इंतज़ार में कितने ही लोग रिटायर कर गए। प्रमोशन में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इसे जल्दी सुनने के लिए सरकार आग्रह कर सकती थी लेकिन लगता है इस मामले की आड़ में सरकार ने लोगों को बिना प्रमोशन दिए ही सेवा से बाहर कर दिया और उन्हें बढ़ा हुआ वेतन तक नहीं दिया। हिन्दू की रिपोर्ट में कर्मचारियों ने कहा है कि कई विभागों में कोर्ट के केस के बाद भी प्रमोशन हुए हैं। बस केंद्रीय सचिवालय की सेवा में प्रमोशन नहीं हुए हैं।

2014 से प्रमोशन न होने के कारण केंद्रीय सचिवालय ने एक और संकट को जन्म दिया होगा। बिना अवर सचिव, उप सचिव के काम कैसे होता होगा। इनकी विश्वसनियता और पारदर्शिता कैसी होती होगी? इसकी सच्चाई तो यही लोग बता सकते हैं। हम तो केवल अनुमान लगा सकते हैं। हमें यह समझ आ रहा है कि इतने सीनियर लेवल पर 30 प्रतिशत पद ख़ाली होने से IAS पर कितना दबाव पड़ता होगा। उसकी जान निकल जाती होगी काम करने में। राज्यों से केंद्र में न आने के एक कारण यह भी हो सकता है। वैसे इसका भी असली कारण IAS ही बताएंगे जिसे बताने की हिम्मत नहीं हैं। उन रहस्यों से अब भय होने लगा होगा कि पता नहीं कब और कौन से पेपर पर साइन करना पड़ जाए। मैं बस जानना चाहता हूं कि क्या ऐसा है? फाइल कहां से बन कर आती है और कहां चली जाती है, क्या उन्हें पता रहता है या केवल साइन करना पड़ता है ताकि जेल जाने के समय ये लोग उपलब्ध रहें। ये मेरी जिज्ञासा है।

तो यह उस सरकार का रिपोर्ट कार्ड है जो केवल काम करने का दंभ भरती है। केंद्रीय सचिवालयों में प्रमोशन के पद को खाली रख कर सरकार ने भारत के युवाओं को बेरोज़गार रखने में काफी मदद की है।अपना भविष्य संवारने के लिए यह एक बेहतर नौकरी थी।SSC के ज़रिए परीक्षा पास कर युवा इस नौकरी में जाते थे और अवर सचिव और उप सचिव के पद तक पहुंचते थे।अच्छा हुआ कि युवा मुस्लिम विरोधी राजनीति की आंधी में नफरत का नशा ले रहे थे। वर्ना ये सब पता चल जाता। ये ऐसा नशा है कि रोज़गार के लिए लाठी खाने पर भी नहीं जाएगा। इस पर मैं शर्त लगा सकता हूं। इसलिए युवाओं से दूर भी रहता हूं। मैंने लिखा भी है कि सांप्रदायिक युवाओं से गाली मिल जाए, गले लगा लूंगा, ताली नहीं चाहिए। ऐसा इस देश में केवल रवीश कुमार बोल सकता है।

तो छह साल के दौरान प्रमोशन के इंतज़ार में रिटायर हो गए केंद्रीय सचिवालय के उन कर्मचारियों के सपने इन दिनों किस तरह के हैं? काश इसके बारे में कोई सच सच बता देता, वैसे मैं जवाब जानता हूं लेकिन फिर भी। और अब जब प्रमोशन नहीं मिल रहा है तो मौजूदा कर्मचारियों को कैसा लग रहा है? आरक्षण से नफरत के नाम पर सबके लिए नौकरी और प्रमोशन दोनों बंद है। सरकार और राजनीति को फायदा है कि आप आरक्षण से नफरत कर अपने दिमाग़ की तर्क शक्ति को भोथरा कर दें ताकि उसकी आड़ में न भर्ती निकले और न प्रमोशन हो। मेरी यह बात अभी समझ नहीं आएगी लेकिन बीस साल बाद समझ आएगी।

अमित शाह को भी पता है कि बेरोज़गारी के बाद भी नौजवान उन्हीं को वोट करेंगे। तभी तो वे बेरोज़गारों से नहीं मिल रहे हैं। जाट नेताओं से मिल रहे हैं। इसकी ख़बर मोटी मोटी छपवाई जा रही है। अमित शाह को पता है कि जाट नाराज़ हैं और वोट नहीं कर सकते हैं। लोग जात के आधार पर नाराज़ होते हैं, जात के आधार पर ख़ुश हो जाते हैं। नौकरी के नाम पर कोई नाराज़ नहीं होता। ऐसा होता तो अमित शाह इलाहाबाद के उस लॉज का दौरा कर रहे थे जिसके कमरों से पुलिस ने खींच कर छात्रों को निकाला और वही सब किया जिसे पीटना कहते हैं। अमित शाह जानते हैं कि जिस नौजवान के खिलाफ पुलिस केस कर रही है वह भी वोट देगा और उसके परिवार के लोग भी वोट देंगे। बाकी आप समझदार तो है हीं।

लेखक–रवीश कुमार