बच्चा जब होश सम्भालता है तो परिवार और समाज से बाहर किसी एक व्यक्ति से उसकी सबसे पहली मुलाकात होती है तो वह है शिक्षक और उस शिक्षक को लेकर बच्चों के मन में सम्मान और आदर का भाव ता उम्र बना रहता है और यही वजह है कि बच्चा जब माँ के आंचल से बाहर निकलता है तो हर अभिभावक की कोशिश होती है कि एक ऐसा शिक्षक मिले जो हमारे बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सके ताकी इसका लाभ आने वाले समय में परिवार ,समाज और राष्ट्र को मिल सके।
मतलब किसी भी परिवार ,समाज और राष्ट्र के मजबूती के लिए बेहतर शिक्षा और समझदार शिक्षक का होना बहुत ही जरूरी है लेकिन किसी की भी सरकार हो उसकी प्राथमिकता शिक्षा नहीं रही ,शिक्षक नहीं रहा है और इस वजह से आज किसी भी अभिभावक का सबसे अधिक खर्च कही हो रहा है तो वह है शिक्षा, पूरी कमाई लगा देने के बावजूद भी बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने में देश की 90 प्रतिशत आबादी वंचित रह रहा है।
हमारी पीढ़ी जितना खर्च पूरे पढ़ाई काल में किया होगा आज उस स्तर की शिक्षा अपने बच्चों को भी मिले इसके लिए यूकेजी में नाम लिखाने और किताब खरीदने में ही खर्च हो जा रहा है, इतनी महंगी हो गयी है शिक्षा, बिहार सरकार का शिक्षा विभाग कल एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि अब शिक्षक शराब माफिया और शराब कारोबारी की खबर सरकार तक पहुचाएंगा इस आदेश को लेकर हंगामा मचा हुआ है कल शाम से देर रात तक कई शिक्षक नेता का फोन आ चुका है संतोष जी क्या हो रहा है इस प्रदेश में कुछ करिए अब शिक्षक बच्चों को पढ़ाना छोड़कर शराब माफिया का पता लगायेगा ।
इस पर एक अच्छा डिवेट करवाईएं बहुत जरुरी है हालांकि मुझे इस आदेश से कोई अचरज नहीं हुआ मास्टर साहब तो पहले से ही इस तरह का काम करते ही रहे हैं कभी मानव का गणना करते हैं ,कभी वोटर का गणना करते हैं,कभी पशु का गणना करते हैं और इस सबसे जब समय बचता है तो बच्चों को भोजन बनाकर खिलाते हैं ।
आज की तारीख में सरकार मास्टर साहब से पढ़ाने का काम कम दूसरा काम ज्यादा करवाने में भरोसा करता है ।किसी भी स्कूल में चले जाये दो तीन शिक्षक स्कूल से बाहर ही रहता है किसी न किसी सरकारी काम को लेकर और यह सब गांव के उस अभिभावक के सामने हो रहा है जिसके बच्चे का भविष्य दांव पर है।
वजह आज भी चुनाव का मुद्दा बेहतर शिक्षा और शिक्षक नहीं है कभी मैंने नहीं सूना है कि गांव के किसी स्कूल में शिक्षक नहीं है या फिर शिक्षक पढ़ाने नहीं आ रहा है तो गांव वाले वोट का बहिष्कार किये हो या फिर गांव वाले सड़क पर उतरे हो कभी नहीं सुना ।
ऐसा भी नहीं है कि यह समझदारी जनता को नहीं है अनपढ़ से अनपढ़ अभिभावक भी शिक्षा के महत्व को समझते हैं लेकिन गांव की शिक्षा व्यवस्था कैसे मजबूत हो इसकी समझ नही बन पा रही है।गांव के अभिभावक का यही सोच है कि सरकारी शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था सही नहीं है तो बच्चों को निजी स्कूल में नाम लिखा दो । सरकार भी यही चाहती है किसी तरह शिक्षा के जिम्मेवारी में मुक्त हो जाये और इसी सोच के तहत सरकार काम भी कर रही है ।
बिहार में शिक्षक के नियोजन को लेकर जब गांव गांव में सवाल खड़े होने लगे कि सरकार सिपाही की बहाली प्रतियोगिता परीक्षा लेकर कर रही है और मास्टर की बहाली नम्बर पर कर रहा है ।
सरकार दबाव में आ गयी और फिर सरकार प्रदेश स्तर पर परीक्षा आयोजित कर बहाल करने कि घोषणा कर दी, देखने में सब कुछ वैसा ही लगा भी कि चलिए इस बार अच्छे लड़के लड़कियां शिक्षक बनेंगे लेकिन हुआ क्या पद से कई गुना अधिक रिजल्ट निकाल दिया और नौकरी पर रखने का अधिकार उसी नियोजन इकाई को दे दिया जो पैसा लेकर अंगूठा छाप मास्टर को पूरे प्रदेश में बहाल कर दिया था।
परिणाम क्या हुआ इस समय पूरे बिहार में पंचायत का मुखिया और सचिव वही खेला शुरु किये हुए हैं चार से लाख पांच लाख दीजिए मेरिट लिस्ट में आप कहां है उससे कोई मतलब नहीं है आपकी नौकरी पक्की। मतलब शिक्षक बहाली में फिर से वही खेला चल रहा है जिसको लेकर सरकार की किरकिरी हुई थी। ऐसी स्थिति में शिक्षक को समाज का सहयोग कैसे मिलेगा वही आज के शिक्षकों का जो चेहरा समाज के सामने है वह बहुत विकृत चेहरा है ऐसी चर्चा आम है कि शिक्षक पढ़ाई छोड़कर सारे काम करते हैं ।
हालांकि इस तरह के इमेज बनाने में सरकार की बड़ी भूमिका है फिर भी आज शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ऐसा कुछ करे जिससे समाज का,परिवार का और बच्चों का एक बार फिर से सरकारी स्कूलों पर भरोसा हो तभी तो सम्मान मिल पायेगा ।
वैसे आज तक अपका चाल चरित्र और चेहरा खान सर से अलग नहीं रहा है अपने लिए तो सब लड़ता है चाणक्य
की तरह समाज और देश के लिए निकले तब तो जाने।