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बिहार कोकिला शारदा सिन्हा की व्यथा ये अंधेरा कब तक

ये अंधेर कब तक ?????
Dr. Isha Sinha , मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं । LNMU , दरभंगा में पीजी हेड से रिटायर की थीं । जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं।

आज वो हमें अकेला छोड़ गईं । 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं , अंतिम समय में उनके दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी , उनके पतिदेव श्री सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को उनकी पत्नी के हालत भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी ।

पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में !!!!!!श्री सच्चिदानंद जी !
ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें।
मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं , और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही !!!!
साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं । (इसका फर्क हर सेवा निवृत को गहरा ही पड़ता है)
क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का ???
क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में ।

ये अंधेर कब तक ?????
Dr. Isha Sinha , मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं । LNMU , दरभंगा में पीजी हेड से रिटायर की थीं । जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं।
आज वो हमें अकेला छोड़ गईं । 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं , अंतिम समय में उनके दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी , उनके पतिदेव श्री सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को उनकी पत्नी के हालत भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी ।
पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में !!!!!!श्री सच्चिदानंद जी !
ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें।
मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं , और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही !!!!
साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं । (इसका फर्क हर सेवा निवृत को गहरा ही पड़ता है)
क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का ???
क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में ।

लेखक–शारदा सिन्हा

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