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क्या आपको पता था कि केंद्रीय सचिवालय में छह साल से प्रमोशन बंद है ?

क्या आपको पता था कि केंद्रीय सचिवालय में छह साल से प्रमोशन बंद है?
मोदी सरकार ने छह साल से केंद्रीय कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं दिया है। जिसके कारण प्रमोशन और बिना वेतन वृद्धि के ही कई कर्मचारी रिटायर होते रहे। अब ये कर्मचारी भी ट्विटर पर ट्रेंड करा रहे हैं और अपने लिए प्रमोशन मांग रहे हैं। हिन्दू की रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्रीय सचिवालयों में छह साल से प्रमोशन बंद है।

मैं जानना चाहूंगा कि बिना प्रमोशन के रिटायर हुए ऐसे अफसरों में कितने भक्त हो गए थे और मुस्लिम विरोधी राजनीति में आनंद प्राप्त कर रहे थे और अब जब उनके प्रमोशन का चांस ख़त्म हो गया है उन्हें इस नफरती राष्ट्रवाद से कितनी ऊर्जा मिलती है? ज़ाहिर है कर्मचारी झूठ ही बोलेंगे कि उनका काम देश की सेवा करना है, उन्हें राजनीति से मतलब नहीं। हा हा हा हा हा हा। इस नफरत की आग में आप ही नहीं जले हैं, आपका वो बच्चा भी जला है जो भर्ती नहीं निकलने से बेरोज़गार बैठा है। आपको प्रमोशन मिलता तो नीचे की सीट खाली होती। नीचे की सीट ख़ाली होती तो भर्ती निकलती। do you get my point.
हिन्दू की विजयिता सिंह की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय सचिवालय सेवा (CSS) फोरम के अनुसार प्रमोशन नहीं होने की वजह से तीस फीसदी पद ख़ाली हैं। इनके अनुसार अवर सचिव, उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव के 1839 पद ख़ाली हैं। जब सचिवालयों में संकट होने लगा तो 2020 में अस्थायी तौर पर 2770 पदों पर प्रमोशन दिया गया। इसके बाद भी 1800 पदों पर प्रमोशन होना है। भर्ती ख़ाली है। सोचिए 4400 अफसरों में से 60 फीसदी से अधिक अस्थायी रुप से प्रमोशन लेकर काम कर रहे हैं। यह हाल है खूब काम करने वाली मोदी सरकार का।

2014 से प्रमोशन नहीं हुआ है। छह साल निकल गए। इस दौरान प्रमोशन और अधिक सैलरी के इंतज़ार में कितने ही लोग रिटायर कर गए। प्रमोशन में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इसे जल्दी सुनने के लिए सरकार आग्रह कर सकती थी लेकिन लगता है इस मामले की आड़ में सरकार ने लोगों को बिना प्रमोशन दिए ही सेवा से बाहर कर दिया और उन्हें बढ़ा हुआ वेतन तक नहीं दिया। हिन्दू की रिपोर्ट में कर्मचारियों ने कहा है कि कई विभागों में कोर्ट के केस के बाद भी प्रमोशन हुए हैं। बस केंद्रीय सचिवालय की सेवा में प्रमोशन नहीं हुए हैं।

2014 से प्रमोशन न होने के कारण केंद्रीय सचिवालय ने एक और संकट को जन्म दिया होगा। बिना अवर सचिव, उप सचिव के काम कैसे होता होगा। इनकी विश्वसनियता और पारदर्शिता कैसी होती होगी? इसकी सच्चाई तो यही लोग बता सकते हैं। हम तो केवल अनुमान लगा सकते हैं। हमें यह समझ आ रहा है कि इतने सीनियर लेवल पर 30 प्रतिशत पद ख़ाली होने से IAS पर कितना दबाव पड़ता होगा। उसकी जान निकल जाती होगी काम करने में। राज्यों से केंद्र में न आने के एक कारण यह भी हो सकता है। वैसे इसका भी असली कारण IAS ही बताएंगे जिसे बताने की हिम्मत नहीं हैं। उन रहस्यों से अब भय होने लगा होगा कि पता नहीं कब और कौन से पेपर पर साइन करना पड़ जाए। मैं बस जानना चाहता हूं कि क्या ऐसा है? फाइल कहां से बन कर आती है और कहां चली जाती है, क्या उन्हें पता रहता है या केवल साइन करना पड़ता है ताकि जेल जाने के समय ये लोग उपलब्ध रहें। ये मेरी जिज्ञासा है।

तो यह उस सरकार का रिपोर्ट कार्ड है जो केवल काम करने का दंभ भरती है। केंद्रीय सचिवालयों में प्रमोशन के पद को खाली रख कर सरकार ने भारत के युवाओं को बेरोज़गार रखने में काफी मदद की है।अपना भविष्य संवारने के लिए यह एक बेहतर नौकरी थी।SSC के ज़रिए परीक्षा पास कर युवा इस नौकरी में जाते थे और अवर सचिव और उप सचिव के पद तक पहुंचते थे।अच्छा हुआ कि युवा मुस्लिम विरोधी राजनीति की आंधी में नफरत का नशा ले रहे थे। वर्ना ये सब पता चल जाता। ये ऐसा नशा है कि रोज़गार के लिए लाठी खाने पर भी नहीं जाएगा। इस पर मैं शर्त लगा सकता हूं। इसलिए युवाओं से दूर भी रहता हूं। मैंने लिखा भी है कि सांप्रदायिक युवाओं से गाली मिल जाए, गले लगा लूंगा, ताली नहीं चाहिए। ऐसा इस देश में केवल रवीश कुमार बोल सकता है।

तो छह साल के दौरान प्रमोशन के इंतज़ार में रिटायर हो गए केंद्रीय सचिवालय के उन कर्मचारियों के सपने इन दिनों किस तरह के हैं? काश इसके बारे में कोई सच सच बता देता, वैसे मैं जवाब जानता हूं लेकिन फिर भी। और अब जब प्रमोशन नहीं मिल रहा है तो मौजूदा कर्मचारियों को कैसा लग रहा है? आरक्षण से नफरत के नाम पर सबके लिए नौकरी और प्रमोशन दोनों बंद है। सरकार और राजनीति को फायदा है कि आप आरक्षण से नफरत कर अपने दिमाग़ की तर्क शक्ति को भोथरा कर दें ताकि उसकी आड़ में न भर्ती निकले और न प्रमोशन हो। मेरी यह बात अभी समझ नहीं आएगी लेकिन बीस साल बाद समझ आएगी।

अमित शाह को भी पता है कि बेरोज़गारी के बाद भी नौजवान उन्हीं को वोट करेंगे। तभी तो वे बेरोज़गारों से नहीं मिल रहे हैं। जाट नेताओं से मिल रहे हैं। इसकी ख़बर मोटी मोटी छपवाई जा रही है। अमित शाह को पता है कि जाट नाराज़ हैं और वोट नहीं कर सकते हैं। लोग जात के आधार पर नाराज़ होते हैं, जात के आधार पर ख़ुश हो जाते हैं। नौकरी के नाम पर कोई नाराज़ नहीं होता। ऐसा होता तो अमित शाह इलाहाबाद के उस लॉज का दौरा कर रहे थे जिसके कमरों से पुलिस ने खींच कर छात्रों को निकाला और वही सब किया जिसे पीटना कहते हैं। अमित शाह जानते हैं कि जिस नौजवान के खिलाफ पुलिस केस कर रही है वह भी वोट देगा और उसके परिवार के लोग भी वोट देंगे। बाकी आप समझदार तो है हीं।

लेखक–रवीश कुमार

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