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जमीन माफिया से लेन देन की वजह से पुजारी की हुई है हत्या पुलिस इस बिन्दू पर शुरु की जांच

मीडिया वाले और कसाई पर अब कोर्ई फर्क नहीं रह गया है – दरभंगा के ऐतिहासिक कंकाली मंदिर में आज सुबह जिस तरीके से अंधाधुध फायरिंग करके मुख्य पुजारी की हत्या कर दी गयी उससे पूरा मिथिलांचल हतप्रभ है। क्यों कि दुर्गा पूजा के दौरान पूरे मिथिलांचल में एक अलग तरह का भक्तिमय माहौल रहता है उपवास और पूजा पाठ में घर के सभी सदस्य लगे रहते हैं।

ऐसे में आस्था के केन्द्र माने जाने वाले कंकाली मंदिर के मुख्य पुजारी जिनके बारे में कहां जाता है कि वो पूरे दुर्गा पूजा के दौरान सिर्फ पानी पीकर रहते हैं उनके साथ इस तरह की घटना महज मोबाइल विवाद को लेकर घटित हो जाये किसी को भी भरोसा नहीं हो रहा है।

परिवार वाले मोबाइल विवाद को ही वजह बता रहे हैं हलांकि जिन चार अपराधियों ने इस घटना को अंजाम दिया है उसमें से तीन अपराधियों को मंदिर के पास मौजूद लोगों ने पकड़ लिया और जमकर पिटाई शुरु कर दिया जिस दौरान एक अपराधी पुलकित कुमार सिंह की घटना स्थल पर ही मौत हो गयी ।

पुलकित कुमार सिंह के पिता विश्वविधालय में कर्मचारी है और ये चकिया मोतिहारी का रहने वाला है घटना स्थल से जो कार बरामद हुआ है वो कार पुलकित कुमार सिंह के पिता के नाम पर ही है ।दो और अपराधी जिसका इलाज चल रहा है अभिजित श्रीवास्तवऔर अभिषेक राज दरभंगा का ही रहने वाला है चौथा जो अपराधी भाग गया वो अंशु ठाकुर है जो कटरा मुजफ्फरपुर का रहने वाला है।

पुजारी की हत्या पर दरभंगा एसएसपी क्या कह रहे हैं जरा आप भी सुनिए

इन चारों अपराधी को मुख्य पुजारी के परिवार वाले पहचान रहे हैं और उनकी माने तो इन्हीं लोगों से विवाद हुआ था हलाकि पुलिस के रिकार्ड में इन लोगों के खिलाफ कोई अपराधिक मामला दर्ज नहीं है लेकिन पर्दे के पीछे जो तथ्य सामने आ रहा है वह पूरा मामला मंदिर के करोड़ो के जमीन से जुड़ा हुआ है जिसका डील ये चारों कर रहा था और इन चारों का सम्बन्ध संतोष झा गैग से रहा है हलाकि पुलिस फिलहाल कुछ भी बोलने से बच रहा लेकिन इस घटना दूसरा पहलु इस घटना से भी घिनौना है ।

पुजारी की हत्या पर उनके पड़ोसी का क्या कहना है

मीडियाकर्मी और राजनीतिज्ञ इस घटना में सांप्रदायिक एंगल ढूढ़ते दिखे

जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर ब्रेक हुआ पांच मिनट के अंदर दिल्ली और पटना से जुड़े मीडियाकर्मियों और राजनीतिज्ञों का फोन आना शुरु हो गया कैसे हुआ संतोष जी क्या मामला है, मेरी संगति राइट और लेफ्ट दोनों से है और दोनों की सियासत को भी समझते हैं ।

फोन की घंटी से ही समझ जाते थे कि इस खबर में जबाव ढूंढ क्या रहे हैं, मंदिर में पुजारी की कैसे हत्या हुई उसको लेकर को गम्भीर नहीं थे बल्कि हत्यारा कौन है ये जानने के लिए ज्यादा उत्साहित थे ।

चलिए राजनीतिज्ञों की तो आज कल इसी से दुकान चल रही है लेकिन मीडिया वाले हमारे बंधु का व्यवहार हैरान करने वाला था। राजनीतिज्ञ तो थोड़ा धैर्य से घटना क्यों हुई वो सून भी रहे थे हमारे मीडिया वाले भाइयों का सीधा सवाल था मिया मारा है क्या,मैंने कहां नहीं तो उसके बाद ऐसा लगा जैसे वो बेहोश हो कर गिर गया उसके आवाज में जो खनक थी वो समाप्त हो गयी ठीक है संतोष रखते हैं।

एक बंधु इतना उत्साहित थे कि संतोष कुछ तो इनसाइड स्टोरी रहा होगा दरभंगा है वहां इस तरह का खेल पर्दे के पीछे चलता रहता है ,जरा पता करो ना मोबाइल के लिए इस तरह हत्या नहीं हो सकती है मैंने कहां ठीक है पता करते हैं वैसे एक स्टोरी है दरभंगा एसएसपी को लेकर मंदिर में जाने से रोक रहे थे एसएसपी दलित है कुछ एंगल बना सकते हैं तो बना लीजिए ये भी बिकने वाला एंगल है ,बाईट मिलेगा संतोष मैं तो पटना हूं दरभंगा आपके चैनल का भी स्ट्रिगर होगा ही मंगवा लीजिए देने में कोई दिक्कत नहीं होगा वैसे कोई नहीं कोई मिलेगा तो माले वाला है ही ।

पूर्व डीजीपी अभयानंद ने नीतीश के सलाहकार पर साधा निशाना कहां ऐसे लोग सलाहकार नहीं दलाल है।

सलाहकारों की फ़ौज **
नौकरी जब शुरू की थी तब जानकारी दी गई थी कि सरकार के मुख्य सलाहकार मुख्य सचिव हुआ करते हैं।
जैसे-जैसे समय बीता, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री ने अपने चारों तरफ सलाहकारों की सेना खड़ी कर ली।

यह तथाकथित विशेष्य माने जाने लगे, विभिन्न विधाओं के। कोई ऊर्जा तो कोई विधि-व्यवस्था, आदि आदि।
यह सभी सलाहकार जन-सेवक की तरह वेतन लेते हैं और सरकारी सुख-सुविधाओं का उपभोग भी करते हैं।

मैं भी जब DGP था, तब एक चर्चा सुनने को मिली कि पुलिस विभाग के लिए भी सलाहकार नियुक्त किए जाएँगे। मैंने अनौपचारिक रूप से अपनी भावना राज्य प्रमुख तक पहुँचा दी कि जो सलाह दें, वे ही क्रियान्वित भी करें।

यह नहीं होगा कि सलाहकार सलाह देकर किनारे हो जाएँगे और क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी कोई और लेगा। अगर अच्छा हुआ तो सलाहकार महोदय की वाह-वाह और खेल बिगड़ा तो ठीकरा किसी और के सर।
लगता है यह बात राज्य प्रमुख को सही लगी और पुलिस में कोई सलाहकार नियुक्त नहीं हुआ।

अन्य विभागों में हुआ।
नीतिगत रूप से भी जो व्यक्ति सरकारी वेतन पर सलाह देता है, उसको अपने सलाह की पूरी जवाबदेही लेनी चाहिए। अगर यह नहीं होता है, तो सलाहकार और दलाल में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।

लेखक–अभयानंद (बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी)

कोरोना का टीका लेने से छूटे हुए लोगों के लिए विशेष टीकाकरण 22 अक्टूबर को

छूटे हुए लाभाथिर्यों का विशेष टीकाकरण 22 अक्टूबर कोः मंगल पांडेय
आशा एवं आंगनबाड़ी सेविका को इस कार्ययोजना में लगाया गया

पटना। स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडेय ने कहा कि राज्य में छूटे हुए लाभाथिर्यों का विशेष टीकाकरण 22 अक्टूबर को होगा। स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना से बचाव के लिए चल रहे टीकाकरण अभियान को और गति देते हुए निर्णय लिया है कि राज्य में जिन लोगों ने अब तक टीकाकरण नहीं करवाया है, उनका अब आशा व आंगनबाड़ी वर्कर्स घर-घर जाकर सर्वे करेंगी और इससे संबंधित रिपोर्ट सौंपेगी। उस आधार पर विभाग उनके लिए विशेष अभियान के तहत उनका टीकाकरण सुनिश्चित करवाएगी।

श्री पांडेय ने कहा कि जिन लोगों ने अब तक टीका नहीं लिया है, उनका सर्वे वोटर लिस्ट के आधार पर पूरे राज्य के अलग-अलग पंचायत व वार्डों में 18 से 20 अक्टूबर तक करवाया जायेगा। यह कार्य संबंधित क्षेत्र के आशा फैसिलिटेटर एवं बीसीएम की देख-रेख में किया जाएगा।

इसके साथ ही इस कार्य में सभी संबंधित सहयोगी संस्थाओं का अनिवार्य रुप से सहयोग लेना सुनिश्चित किया गया है। सर्वे के उपरांत प्रखंड द्वारा आशा से प्राप्त लाभार्थी सूची के अनुसार टीकाकरण सत्र स्थल, टीकाकरण कर्मी एवं संबंधित सामग्री आदि को सूक्ष्म कार्ययोजना में समाहित कर जिला को उपलब्ध कराया जाएगा।

श्री पांडेय ने ये भी कहा कि टीकाकरण की सफलता के लिए दुर्गापूजा के अवसर पर सभी पूजा पंडालों में कोविड -19 टीकाकरण से संबंधित प्रचार-प्रसार सामग्रियों को प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है, ताकि टीकाकरण के प्रति जागरुकता में और तेजी आ सके।

पाकिस्तानी आतंकी का तार बिहार से जोड़े जाने को लेकर उठने लगे सवाल है

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के हत्थे चढ़े पाकिस्तानी आतंकी अशरफ की गिरफ्तारी मामले में जिस तरीके से बिहार से तार जोड़ा जा रहा है उसको लेकर बिहार पुलिस के आलधिकारियों ने गहरी नराजगी व्यक्त किया है ।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल द्वारा जो मीडिया को बताया गया है उसको लेकर अभी तक दिल्ली पुलिस ने बिहार पुलिस मुख्यालय के किसी भी अधिकारी से इस संदर्भ में बात नहीं किया है और ना ही किशनगंज एसपी से।

दिल्ली पुलिस के हवाले से जो मीडिया रिपोर्ट आयी है उसके अनुसार आतंकी अशरफ ने पुल‍िस को पूछताछ के दौरान बताया क‍ि पहली बार साल 2004 में पाकिस्तान से बांग्लादेश और कोलकाता होते हुए भारत में दाखिल हुआ था और उसके बाद वह सीधे अजमेर शरीफ गया।

अजमेर शरीफ में उसकी मुलाकात बिहार के कुछ लोगों से हुई, और उन्हीं लोगों के साथ बिहार चला गया । बिहार में जाकर उसने एक गांव में शरण ली और वहां पर कुछ समय रहकर सरपंच का विश्वास जीता और सरपंच से कागज में लिखवाकर गांव का निवासी होने की आइडेंटिटी बनवाई.
कथ‍ित आतंकी अशरफ ने पुल‍िस को पूछताछ के दौरान बताया क‍ि बाद में वह दिल्ली आया और उसी आईडी के सहारे दिल्ली में पहले राशनकार्ड बनवाया और फिर वोटर आईडी कार्ड और उसके बाद 2014 में पासपोर्ट बनवा लिया ।

राशन कार्ड कैसे बनता है —
राशन कार्ड बनाने की एक पूरी प्रक्रिया है जिसमें पंचायत से लेकर प्रखंड स्तर तक पूरा महकमा शामिल होता है बिहार में सरपंच या मुखिया को ये अधिकार नहीं है किसी के नागरिक होने का प्रमाण पत्र दे, इतना ही नहीं सरपंच और मुखिया अगर ऐसा कोई प्रमाण देता भी है तो उसके आधार पर राशन कार्ड बन ही नहीं सकता है क्यों कि इसके साथ वोटर आईडी कार्ड के अलावा कई और दस्तावेज चाहिए तभी आपको राशन कार्ड बन सकता है ।

इसलिए ये जांच का विषय है कि बिहार के किसी सरपंच के पत्र के आधार पर दिल्ली या यूपी में कैसे राशन कार्ड बन गया जाचं तो यहां से शुरु होनी चाहिए कि इस खेल में कौन लोग शामिल है

कैसे बनता है पासपोर्ट–
पासपोर्ट बनाने के लिए आपको मौजूदा एड्रेस प्रूफ के लिए जरूरी डॉक्यूमेंट्स पानी का बिल टेलीफोन/मोबाइल का बिल बिजली का बिल इनकम टैक्स असेसमेंट ऑर्डर आईडी-कार्ड के साथ साथ जहां आपका स्थायी पता है उसकी भी जानकारी देनी पड़ती है ।

दोनों जगह पुलिस सत्यापन करती है उसके बाद ही पासपोर्ट बन सकता है ।इतना ही नहीं जन्मतिथि के लिए जरूरी प्रमाण-पत्र नगर निगम की ओर से मिला जन्म प्रमाण-पत्र स्कूल लिविंग या ट्रांसफर लेटर की कॉपी पॉलिसी बॉन्ड या फिर पैन कार्ड होना अनिवार्य है ।

ऐसे में अशरफ का पासपोर्ट कैसे बन गया। जन्म प्रमाण पत्र से जुड़े कागजात किस संस्थान द्वारा निर्गत किया गया है कई ऐसे सवाल हैं जो दिल्ली पुलिस के कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर रहा है क्यों कि 2004 में वो भारत में आता है मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट के सामने हुए ब्लास्ट से पहले रेकी की थी और उस रेकी में वह कई बार वहां पर आया था, लेकिन उसने बम धमाके में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

पुलिस ने धमाकों की साजिश में शामिल एक शख्स की फोटो उसे दिखाई है, जिसके बाद उसने उसे पहचाना लेकिन सही कहा कि उसने सिर्फ रेकी की थी धमाका किसी और ने किया था. स्पेशल सेल अब उसके इस दावे को वेरिफाई करेगी.

कथ‍ित आतंकी अशरफ के जम्मू कश्मीर में भी बम धमाके और हथियार सप्लाई करने का खुलासा हुआ है. सूत्रों के मुताबिक वह काफी समय जम्मू कश्मीर में रहा है, जिसके बाद बुधवार को एनआईए, जम्‍मू कश्‍मीर पुलिस और आर्मी इंटेलिजेंस स्पेशल सेल के दफ्तर में आतंकी से पूछताछ करने आएंगी और उसके जम्मू कश्मीर में जाने के साथ ही वहां पर साजिश का पता लगाएगी.

इस तरह के वारदात में वो शामिल रहा है वह भी दिल्ला में रहते हुए ऐसे में ये सवाल तो बनता ही है कि दिल्ली में राशन कार्ड बनवाने में से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक में किसने सहयोग किया इस संदर्भ में बिहार के एक पूर्व सीनियर पुलिस अधिकारी का कहना है कि दिल्ली और मुबंई पुलिस अक्सर इस तरह का दाव खेलते रहती है ताकि उसके सिस्टम के फेलियर पर लोगों का ध्यान ना जाये ।

सीएम नीतीश कुमार ने की माँ दुर्गा की पूजा

सीएम नीतीश कुमार आज माँ दुर्गा का दर्शन किया और मीडिया से बात करते हुए कहां कि आज का दिन मॉ का दिन है माँ से बस एक ही आर्शीवाद चाहिए ।राज्य खुशहाली रहे समृद्धि रहे।

बच्चों के संदर्भ में कोरोना को लेकर देश का स्वास्थ्य व्यवस्था निपटने में सक्षम।

“बच्चों के संदर्भ में प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने में देश की मौजूदा निगरानी व्यवस्था से काफी मदद मिली”
डॉ. एन के अरोड़ा राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड-19 कार्यकारी समूह के अध्यक्ष

कोविड-19 टास्क फोर्स के प्रमुख सदस्य डॉ. एन के अरोड़ा ने कोविड-19 वैक्सीन की अब तक की यात्रा और भारत के लिए वर्तमान तथा भविष्य में इसके मायने पर बातचीत की।

देश ने 10 महीने से भी कम समय में 100 करोड़ टीकाकरण की उपलब्धि हासिल कर ली है। यह देश में महामारी की स्थिति में क्या बदलाव लाएगा?
यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। वैक्सीन आत्मनिर्भरता ने इस रिकॉर्ड को हासिल करने में सबसे अधिक सहायता की है। हम इतनी बड़ी आबादी का टीकाकरण कर पाए, क्योंकि हम देश में वैक्सीन का विकास और उत्पादन करने में सफल रहे।
यह उपलब्धि रातोंरात हासिल नहीं की गयी है; यह डेढ़ साल की रणनीतिक सोच, इसके कार्यान्वयन और कड़ी मेहनत का परिणाम है।

हमारे देश में, 94 करोड़ से अधिक वयस्क हैं, जो टीकाकरण के पात्र हैं। कई राज्यों में, 100 प्रतिशत वयस्क आबादी को वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है। भारत की वर्तमान वैक्सीन वितरण क्षमता, वैक्सीन उत्पादन और उपलब्धता की स्थिति को देखते हुए हम अगले तीन महीनों में वैक्सीन की 70 से 80 करोड़ खुराकें और दे सकते हैं।

भविष्य में हमारे देश में महामारी की स्थिति पांच बातों पर निर्भर रहेगी। एक, लोग कितने प्रभावी ढंग से कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन करते हैं? दूसरा, वैक्सीन की उपलब्धता। तीसरा, महामारी की दूसरी लहर के दौरान प्राकृतिक रूप से संक्रमित होने वाली आबादी का प्रतिशत। चौथा, आने वाले सप्ताहों और महीनों में वायरस के किसी नए रूप (वैरिएंट) का सामने आना और पांचवां, भविष्य में मामलों में वृद्धि के निदान के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था की तैयारी।

दूसरी लहर के दौरान, देश भर में 70 से 85 प्रतिशत लोग संक्रमित हुए। इसके अलावा, पिछले चार महीनों में कोई नया रूप (वैरिएंट) सामने नहीं आया है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से आईसीयू बेड की संख्या, ऑक्सीजन की आपूर्ति व जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता को बढ़ाने और नैदानिक सुविधाओं को मजबूत करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए गए हैं। अब, यह देशवासियों पर निर्भर है कि वे कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन, विशेष रूप से आने वाले त्योहारों के दौरान भी जारी रखें। मुझे दृढ़ विश्वास है कि कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन करने और अनुशासन बनाए रखने से मामलों को कम रखने तथा सामान्य स्थिति की ओर लौटने में काफी मदद मिलेगी।

हालांकि भारत बच्चों की वैक्सीन (टीका) का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है, लेकिन इसे वैक्‍सीन (टीका) विकसित करने के लिए नहीं जाना जाता था। महामारी के दौरान, हालांकि इसने अनेक वैक्सीन विकसित की। ऐसा कैसे संभव हुआ?
पिछले दो दशकों में, देश ने आधारभूत विज्ञान अनुसंधान के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करने के क्षेत्र में बड़ी उन्‍नति की है।

वास्तविक बदलाव तब शुरू हुआ जब पिछले साल नए टीकों के बुनियादी अनुसंधान और विकास को उत्प्रेरित करने एवं प्रोत्साहित करने का निर्णय किया गया। मार्च 2020 में, बड़ी धनराशि का निवेश किया गया, और एक अनुकूल वातावरण तैयार किया गया। इसने वैज्ञानिकों के साथ-साथ उद्यमियों को भी नए टीकों के विकास के लिए सहयोग करने और एक जगह पर आने के लिए प्रोत्साहित किया। अंतरराष्ट्रीय भागीदारों, स्थानीय निर्माताओं, वैज्ञानिकों और विभिन्न विज्ञान प्रयोगशालाओं के बीच सहयोग के परिणामस्वरूप नई प्रौद्योगिकी का विकास और हस्तांतरण हुआ।

इसके परिणामस्‍वरूप, भारत महामारी की शुरुआत के 10 महीने से भी कम समय में अपना राष्ट्रव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू कर सका। आज, इसके पास कोविड टीकों की एक मजबूत पाइपलाइन-निष्क्रिय वैक्सीन, सब-यूनिट वैक्सीन, वेक्टर्ड वैक्सीन, डीएनए वैक्सीन, आरएनए वैक्सीन है- जो वयस्कों के साथ-साथ देश के और अनेक अन्‍य देशों के बच्चों के लिए उपलब्ध होगी।

इन टीकों को बहुत कम समय में विकसित किया गया और इन्हें आपातकालीन उपयोग का अधिकार दिया गया, जिसका अर्थ है कि उनके दीर्घकालिक प्रभाव का अध्ययन करने से पहले उन्हें लोगों के लिए उपलब्ध कराया गया। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या अन्‍य उपाय किए गए?

जून-जुलाई, 2020 के महीनों से ही, दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने टीकों के संभावित प्रभावों और दुष्प्रभावों पर चर्चा शुरू कर दी थी। सितम्‍बर-अक्टूबर तक, भारत में, एक विस्तारित विशेषज्ञ पैनल स्थापित किया गया जो वयस्क टीकाकरण के कारण उत्पन्न हो सकने वाली समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक टीकाकरण के बाद प्रतिकूल स्थिति (एईएफआई) पर नजर रख सके। इस पैनल में अन्‍य लोगों के अलावा सामान्य चिकित्सक, पल्मोनोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, हेपेटोलॉजिस्ट शामिल थे। एईएफआई सदस्यों के लिए देश भर में जांच, कारण और प्रभाव प्रशिक्षण अक्टूबर-नवम्‍बर में आयोजित किया गया था और दिसम्‍बर तक उनमें से अधिकांश को प्रशिक्षित किया जा चुका था।

देश ने उन नैदानिक स्थितियों को शामिल करने के लिए एक सूची तैयार की जिनकी परम्‍परागत रूप से प्रतिकूल घटनाओं के रूप में जानकारी दी जा रही थी, लेकिन अतिरिक्त स्थितियों को सूची में जोड़ा गया जो सैद्धांतिक रूप से किसी भी नए टीके के साथ उत्‍पन्‍न हो सकती हैं – इन्हें एईएसआई भी कहा जाता है, यानी विशेष रुचि की प्रतिकूल घटनाएं।

आसपास के अस्पतालों या जिला अस्पतालों में कार्यरत टीके लगाने वालों, नर्सों और डॉक्टरों को इस बारे में जागरूक किया गया कि कैसे किसी भी साधारण प्रतिक्रिया से होने वाली प्रतिकूल घटना, जहां अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता है, उसे प्रबंधित और रिपोर्ट किया जा सकता है।

बच्चों के मामले में प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से निपटने में देश के मौजूदा निगरानी अनुभव ने काफी मदद की।
डब्‍ल्‍यूएचओ ने इस कार्य को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके राष्ट्रीय कार्यालय में एक वैक्सीन-सुरक्षा प्रभाग है जो तकनीकी सहायता के साथ-साथ लॉजिस्टिक सहयोग प्रदान करता है।

प्रत्येक टीकाकरण केन्‍द्र में टीकाकरण के बाद 30 मिनट निगरानी रखने के लिए बैठने के स्‍थान की व्‍यवस्‍था है। इसका उद्देश्य किसी भी गंभीर प्रतिक्रिया जैसे कि एनाफिलेक्सिस को तुरंत प्रबंधित करना और फिर उन्हें निकटतम स्वास्थ्य सुविधा में भेजना है। इस दृष्टिकोण ने कई सौ लोगों की जान बचाई है। टीके की एक खुराक देने के 28 दिन के भीतर होने वाली किसी भी नैदानिक घटना या बीमारी को आगे जांच और यह निर्धारित करने के लिए कि क्या यह टीके और टीकाकरण से संबंधित है, इसकी जानकारी एईएफआई के रूप में दी जानी चाहिए। नियमित पूरक निगरानी की जानकारी के लिए देश भर में 20 से 25 स्‍थानों पर अस्पतालों और सामुदायिक स्थलों पर सक्रिय निगरानी स्थापित की गई। इससे हमें टीकों के किसी भी संभावित दीर्घकालिक प्रभाव को खारिज करने में भी मदद मिलेगी।

टीके की सुरक्षा के बारे में लोगों को समझाना कितना मुश्किल था?
पोलियो उन्मूलन के लिए चलाए गए एक लंबे अभियान, जिसने टीके को लेकर संदेह को दूर किया, की वजह से देश कोविड-19 टीकों के बारे में गलत सूचनाओं, अफवाहों से निपटने के लिए पहले से ही तैयार था। सरकार ने टीकाकरण अभियान शुरू होने से पहले ही पिछले साल अक्टूबर में सामाजिक जागरुकता कार्यक्रम शुरू कर दिया था। इस प्रणाली ने टेलीविजन चैनलों, प्रिंट मीडिया, वेबिनार, रेडियो कार्यक्रमों, आमने-सामने के संवाद के माध्यम से तथ्य-आधारित, वैज्ञानिक जानकारी के प्रसार के लिए समग्र दृष्टिकोण को अपनाया। इसके अलावा, कई प्रतिष्ठित व्यक्ति, धार्मिक नेता, सामुदायिक नेता जागरूकता कार्यक्रमों में शामिल थे क्योंकि उनका जनता के साथ एक मजबूत जुड़ाव है।

पहली बार, सोशल मीडिया स्कैनिंग एक व्यवस्थित तरीके से की जा रही है ताकि अफवाहों और गलत सूचनाओं पर बहुत बारीकी से नजर रखी जा सके, उनकी निगरानी की जा सके, उनका विश्लेषण किया जा सके और व्यवस्थित तरीके से उनका मुकाबला किया जा सके। मेरा यह मानना है कि टीके (वैक्सीन) को लेकर शंका भी एक संक्रामक बीमारी की तरह है, यह तेजी से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्रों में फैलती है यदि इसे खत्म करने के लिए त्वरित कार्रवाई नहीं की जाती है।

आपको क्या लगता है कि देश के लिए बाकी आबादी का टीकाकरण करना कितना आसान या मुश्किल होगा?
भारत में 94 करोड़ वयस्क हैं और इस आबादी को पूरी तरह से प्रतिरक्षित करने के लिए लगभग 190 करोड़ खुराक की आवश्यकता है। जहां तक टीके की आपूर्ति और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का सवाल है, हमें पूरा भरोसा है। वास्तव में, हम अभी लोगों में टीका लगवाने को लेकर उत्साह का माहौल देख रहे हैं, उनमें अब टीके को लेकर कोई शंका नहीं है। आगे मुश्किलें आ सकती हैं, लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि प्रासंगिक कारणों को दूर करने के ठोस प्रयासों से देश को पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

ये बिहार पुलिस का मानवीय चेहरा है जिसके सहारे सरकार कानून का राज स्थापित करने की दावा करती है

पुलिस यूपी की हो या दिल्ली की या फिर बिहार की मिजाज एक ही रहता है यह तस्वीर बिहार की राजधानी पटना की है जहां अतिक्रमण हटाने के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज में घायल युवक की मौत हो गयी ,इस घटना के विरोध में जब लोग सड़क पर उतरे तो फिर पुलिस पुरुष क्या क्या महिला देखिए किस तरीके से मार रहा है ।

हलाकि इस मामले में पटना एसएसपी से सवाल किया गया गया कहां कि वीडिओ की जांच करवाते हैं जो भी दोषी होगा उस पर कारवाई होगी लेकिन सवाल कारवाई का नहीं है जिस तरीके से पुलिस को ट्रेनिंग दी जाती है उसमें पुलिस को इसी तरह की कारवाई करना सिखाया ही जाता है ।

जेपी सम्मान पेंशन राशि में सम्मानजनक वृद्धि के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद।-सुशील कुमार मोदी

  1. जेपी सेनानी सम्मान पेंशन योजना की दोनों श्रेणियों के कुल 2681 सुपात्रों की पेंशन राशि में वृद्धि करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद।
    अब पांच हजार रुपये मासिक पाने वालों को 7.5 हजार रुपये और 10 हजार पाने वालों को 15 हजार रुपये मासिक मिलेंगे।
    बिहार पहला राज्य है, जिसने 2009-10 में जेपी सेनानियों के लिए सम्मान पेंशन शुरू की।
  1. बिहार 1974 के ऐतिहासिक जेपी आंदोलन का एपिक सेंटर था और यहीं के युवाओं ने इसमें सबसे ज्यादा बड़ी भूमिका निभायी।
    इनके योगदान को राजकीय प्रतिष्ठा देने के लिए एनडीए सरकार ने पहले साल पेंशन मद में 1.31 करोड़ रुपये खर्च किये थे वहीं 2020-21 में 23.90 करोड़ खर्च किये गए।
    सम्मान पेंशन राशि में सरकार ने छह साल बाद दूसरी बार वृद्धि की है।
    अब तक इस योजना पर कुल 193.77 करोड़ रुपये खर्च हुए।
  2. राज्य सरकार ने सेनानियों की विधवा का भी ख्याल रखा। 182 ऐसी बुजुर्ग महिलाओं को वही पेंशन राशि दी जा रही है, जो उनके सेनानी पति को मिलती थी।
    इस मामले में पति के बाद विधवा की पेंशन आधी नहीं की गई है।
    सरकार सेनानी परिवार के प्रति संवेदनशील रही।

दिल्ली में गिरफ्तार आतंकी का तार बिहार से जुड़ा

2013 के बाद पहली बार बिहार का किसी बड़े आतंकी से तार जुड़ा है जिसका रिश्ता ISI हो, जी है 2013 में बिहार पुलिस की टीम ने इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी यासीन भटकल व अब्दुल असगर उर्फ हड्डी को नेपाल की सीमा से गिरफ्तार किया था । पूछताछ के दौरान बिहार में  उसके नेटवर्क का भी खुलासा हुआ था उस पर काफी कुछ काम बिहार पुलिस और केंद्रीय एजेंसी ने किया था ,हालांकि भटकल की गिरफ्तारी के बाद देश स्तर पर कोई बड़ी आतंकी घटना नहीं घटी है ।

 लेकिन हाल के दिनों में दरभंगा में ट्रेन ब्लास्ट की साजिश रचने के मामले में NIA ने यूपी और हैदराबाद में बड़ी कारवाई किया है फिर भी ऐसा कुछ भी NIA को हाथ नहीं लगा जिसके सहारे कहां जा सके कि दरभंगा  मॉड्यूल एक बार फिर  सक्रिय हो गया है ।

दिल्ली में जिस आतंकी की गिरफ्तारी हुई है उसके बारे में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस प्रमोद कुशवाहा का कहना है कि असरफ को सोमवार रात 9.20 बजे अरेस्ट किया गया। शुरुआती जांच में पता चला है कि असरफ स्लीपर सेल की तरह काम करके कोई बड़ी साजिश रच रहा था।

वह दिल्ली में रहकर अपनी पहचान पीर मौलाना के तौर पर बना रहा था।उसने जाली दस्तावेजों के जरिए भारतीय पहचान पत्र हासिल किया था जो बिहार में बनवाया गया था। अशरफ के पास कई फर्जी आईडी मिले हैं। इनमें से एक अहमद नूरी नाम से बनवाया गया था। दस्तावेज के लिए उसने गाजियाबाद की महिला से शादी भी की थी।

पुलिस ने उसके पास से एक AK-47 राइफल, इसकी एक मैगजीन, एक हैंड ग्रेनेड और 50 राउंड गोलियों के साथ दो पिस्टल बरामद किया है । वह करीब 15 साल से भारतीय नागरिक के तौर पर रह रहा था।दिल्ली और उसके आसपास अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए वह ‘पीर मौलाना’ का वेश भी बना रहा था।उसने अली अहमद नूरी के नाम से शास्त्री नगर का एक फर्जी आईडी कार्ड बनवा लिया था।

उसके पास से पुलिस ने फर्जी आईडी, बैग और दो मोबाइल फोन बरामद किए हैं।तुर्कमान गेट इलाके से एक भारतीय पासपोर्ट भी उसने बरामद करवाया है। वो पासपोर्ट  2014 में बिहार के किशनगंज से बनवाया था।

सरफ पहली बार बांग्लादेश के रास्ते सिलीगुड़ी बॉर्डर से भारत आया था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने उसे ट्रेनिंग दी है। इसके बाद से वह पाकिस्तान के हैंडलर के संपर्क में था। उसे भर्ती करने वाले हैंडलर का कोड नेम नासिर था। नासिर ही अशरफ को निर्देश दे रहा था।

हालांकि इस सम्बन्ध में पुलिस मुख्यालय में बैठे आलाधिकारी ,एटीएस चीफ और किशनगंज एसपी फिलहाल कुछ भी बोलने से बच रहे हैं लेकिन जो खबर आ रही है उसके अनुसार बिहार पुलिस किशनगंज और उत्तर बिहार से जुड़े नेपाल पर चौकसी बढ़ा दी  है ।

एस एस बी की बड़ी कारवाई हथियार के साथ तस्कर गिरफ्तार

गुप्त सूचना के आधार पर विशेष गस्ती करते हुए एस एस बी जवानों ने 02 हथियारों के साथ 03 कारोबारी और एक मोटर साइकल को किया जब्त

सोमवार की संध्यकालीन बेला मे एस एस बी 45वी बटालियन बीरपुर की सीमा चौकी नरपटपट्टी ने गुप्त सूचना के आधार पर विशेष गस्ती करते हुए एक 09 इंच लंबा सिक्सर, 7.65 एम एम की पाँच जिंदा कारतूस और एक 09 इंच की एयरगन , एक मोटर साइकल (हीरो स्प्लेंदर संख्या BR 11 K 4424) 03 मोबाइल फोन को जब्त करते हुए तीन कारोबारी को गिरफ्तार किया है।

भारत-नेपाल सीमा स्तम्भ संख्या 220 के समीप छोतही अंसारी टोला, वार्ड संख्या 10, जिला अररिया मे कुछ आपराधिक तत्वों द्वारा अवैध हथियारों का मामला संज्ञान मे आया था। कार्यवाही को अंजाम देते हुए सीमा चौकी नरपटपट्टी से सब इंस्पेक्टर सुदर्शन भट्ट के नेतृत्व मे चिन्हित स्थान के लिए विशेष गस्ती दल को भेजा गया। चिन्हित स्थान पर पहुँचकर भारतीय प्रभाग मे छोतही अंसारी टोला, वार्ड संख्या 10 के समीप सूचना के आधार पर जाने पर देखा गया कि तीन व्यक्ति बैठे हुए हैं और गस्ती दल को देखते हुए भागने लगे ।

जिसे दौड़ते हुए गस्ती दल द्वारा घेर लिया गया और पकड़ लिया गया। जब उनसे पूछताछ के दौरान तीनों की तलाशी ली गई तो उन तीनों मे एक व्यक्ति के समीप से 02 कट्टे और कारतूस बरामद बरामद हुए जिसे जब्त कर तीनों कारोबारी को गिरफ्तार कर लिया गया। तीनों के पास से एक एक मोबाइल भी बरामद हुई। दोनों हथियार, बरामद कारतूस, एक बाइक के साथ कारोबारी को भापटियाही थाना के सुपुर्द किया गया। वहीं कारोबारी की पहचान मो अफ़रोज, मो असलम जो थाना नरपतगंज जिला अररिया का निवासी है और अन्य एक अरविंद कुमार मेहता जो थाना भापटियाही जिला सुपौल का निवासी है।

डेढ़ सौ साल पहले पत्रकारिता की स्वायत्तता को गढ़ते हुए एक पत्रकार नगेंद्रनाथ का बाइस्कोप

डेढ़ सौ साल पहले पत्रकारिता की स्वायत्तता को गढ़ते हुए एक पत्रकार नगेंद्रनाथ का बाइस्कोप
“हालांकि तब सिन्ध में किसी तरह का जनमत न था।”

मैं इस पंक्ति पर ठिठक गया। यह पंक्ति आज से कोई 130-35 साल पुरानी होगी। बिहार में पले-बढ़े पत्रकार नगेंद्रनाथ गुप्त कोलकाता के सार्वजनिक जीवन को जीने के बाद जब पत्रकारिता के लिए सिन्ध जाते हैं तब की पंक्ति है। यह पंक्ति 1884 से लेकर 1891 के बीच की है। आज जब जनमत का निर्माण कई तरह के हथकंडों से होने लगा है एक सदी से पहले के दौर में जनमत की उपस्थिति, अनुपस्थिति और निर्माण की प्रक्रिया की झलक इस किताब में मिलती है। किताब का नाम पुरखा पत्रकार का बाइस्कोप है। पत्रकार उस दौर में सार्वजनिकता को किस तरह से देख रहे हैं इसकी एक मिसाल उनकी ही लिखी यह पंक्ति है।

“1878 तक, जब मैंने बिहार छोड़ा, यहां सार्वजनिक जीवन का कोई हिसाब न था। पैसे वाले लगभग सभी को लौण्डेबाज़ी का शौक़ था। राजा, महाराजाओं में,उनमें से कई से मैं भी मिला था, औसत से भी कम दर्जे की बुद्धि रखते थे।”

नगेंद्रनाथ का देखना और लिखना दोनों ही बेहद संक्षिप्त और संयमित है। प्रभाव में प्रवाहित नहीं होते न फिज़ूल की बात दर्ज करते हैं। उस वक्त की पत्रकारिता की शैली जितना ज़रूरी हो, उतना ही लिखा जाए की रही होगी।सूचनाओं को दर्ज करने का कालक्रम में विकास होता है और यहां तक पहुंचते पहुंचते उसका रुप पूरी तरह बदल चुका है। पुरखा पत्रकार के इस संस्मरण में न जाने कितनी ऐसी हस्तियां हैं जो सामान्य से लेकर विशिष्ट के रुप में दर्ज हैं जिन्हें हम महापुरुष और ऐतिहासिक पुरुष कहते हैं। इनमें से कइयों के साथ पत्रकार का पत्र व्यवहार है, मित्रता है और संपर्क है। कइयों को उन्होंने देखा है। बंकिम चंद्र चटर्जी, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, सत्येंद्र नाथ बनर्जी, रवींद्रनाथ टगोर, दादा भाई नौरोजी और कई गवनर्र, कलक्टर। रवींद्रनाथ टगौर बीस साल की उम्र से उनके मित्र रहे थे लेकिन पत्रकार नगेंद्र नाथ गुप्त ने कोई किताब नहीं लिखी, अपनी किताब में बेहद कम लिखा। जितना लिखा है वही शानदार है।

नगेंद्रनाथ गुप्त पत्रकारों की पहली पीढ़ी के पत्रकार रहे होंगे। उनके संस्मण में चल रहे अनेक धारा प्रवाह प्रसंगों में पत्रकारिता के बन रहे मानकों की भी झलक मिलती है। ग़ुलाम भारत में भी पत्रकार अपने पेशे की स्वायत्तता को बचाना जानता है जबकि आज़ाद भारत में ग़ुलाम हो चुका गोदी मीडिया कब का पत्रकार होने का मतलब भूल चुका है। कई प्रसंग मिलते हैं जिससे पता चलता है कि ब्रिटिश भारत की नौकरशाही का पत्रकारिता के साथ क्या रिश्ता था, ख़बरों को लेकर किस तरह की नाराज़गियां थीं।


1878 में जब वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पास हुआ तब के बारे में नगेंद्रनाथ गुप्त लिखते हैं कि “बंगाल के गवर्नर सर एश्ले इडेन को हिन्दुस्तानी प्रेस में सरकार की आलोचना पसंद नहीं थी। सबसे ज़्यादा तकलीफ अमृत बाज़ार पत्रकारिता से थी जो तब आधा अंग्रेज़ी और आधा बांग्ला में निकलता था। उन्होंने पत्रकारिता के संपादक शिशिर कुमार घोष को बुलवाया और कहा कि हिन्दुस्तानी अख़बारों में सरकार की आलोचना बंद होनी चाहिए। उन्होंने कहा मुझे कृष्टो दास पाल( हिन्दू पैट्रियट के संपादक) से कोई तकलीफ नहीं है। अगर आपको कोई तकलीफ है तो आप कभी भी मुझसे मुलाकात कर सकते हैं। मैं आपकी सारी मुश्किलें दूर करूंगा। लेकिन सरकार बार-बार अपने अधिकारियों पर हमले बर्दाश्त नहीं कर सकती।”


शिशिर कुमार घोष के नहीं झुकने पर वर्नाकुलर प्रेस एक्ट पास हो गया। अमृतबाज़ार पत्रिका ने इस कानून के ख़िलाफ़ दमदार अभियान चलाया। जिस हफ्ते कानून का प्रस्ताव आया उस हफ्ते अखबार वर्नाकुलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए पूरी तरह अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने लगा और कानून के दायरे से बाहर हो गया। एस्ले इडेन का ख़ूब मज़ाक उड़ा। इस कानून के ख़िलाफ सत्येंद्र नाथ बनर्जी ने ख़ूब बहस की थी। पत्रकार नगेंद्रनाथ गुप्त लिखते हैं कि मैंने एक मीटिंग में कृष्टो दास पाल को बोलते सुना और मैं उनके तर्क करने की शक्ति का कायल हुआ। न ज़ोर-ज़ोर से बोलना, न तालियों की गड़गड़ाहट, न परिचित जुमले थे। लेकिन तर्क और तथ्यों के आधार पर की जाने वाली बात सुनते हुए लोग एकदम से जादू के असर में दिखे। एकदम संतुलित भाषण, पूरी गरिमा और शालीनता से भरा था।


कोलकाता से सिन्ध टाइम्स में काम करने सिन्ध आ गए। जब नगेंद्रनाथ जी को पता चला कि स्वामित्व में बदलाव हुआ है लेकिन जब उन्हें बताए प्रकाशन में बदलाव हुआ तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद एक नया अखबार शुरू किया फिनिक्स। इस अखबार के बारे में लिखते हुए नगेंद्रनाथ गुप्त कहते हैं कि कुछ समय के लिए तो इस नये अख़बार ने मेरी काफी जान खायी क्योंकि उसके सारे ही काम मुझे करने होते थे। मैं रोज़ चौदह से सोलह घंटे काम करता था। अपनी याद आ गई।
“जैसे ही मैंने मिलने के लिए अपना कार्ड भिजवाया वे तुरन्त निकल कर आ गये।”


उन्नीसवीं सदी में पत्रकार विज़िटिंग कार्ड का इस्तमाल करने लगे थे।पत्रकारों को ब्रिटिश हुकूमत के कार्यक्रमों और निजी पार्टियों में बुलाया जाने लगा था।उसमें भारतीय पत्रकार भी होते थे। इसके लिए पास जारी होता था। इसी के साथ भारतीय पत्रकारिता में ऑफ रिकार्ड बनने का भी एक लाजवाब प्रसंग है जो उस समय तो नहीं लीक होता है लेकिन बाद में सबको पता चल जाता है। पत्रकार नगेंद्रनाथ गुप्त ने पत्रकारों के हीरो बनने और फिर बाद में ज़ीरो बन जाने के प्रसंग को भी अपनी शैली में क्या ख़ूब दर्ज किया है।1886 के इस किस्से में ऑफ रिकार्ड, पत्रकार के हीरो बनने और ज़ीरो बनने के प्रसंग मिलते हैं।
नगेंद्रनाथ गुप्त लिखते हैं कि कोलकाता में कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन हुआ था। अधिवेशन के बाद प्रतिनिधिमंडल बंगाल के गवर्नर लार्ड डफरिन से मिलने पहुंचा। उनके साथ इण्डियण मिरर के संपादक नरेंद्रनाथ सेन भी थे। डफरिन ने ग़ुस्से में कहा कि “जेण्टलमैन, मैं आपसे पूछता हूं कि क्या वायसराय के निजी पत्राचार तक आपकी पहुंच हो तो उसको अख़बारी लेख का विषय बनाना उचित है?” कुछ पल की खामोशी के बाद नरेंद्रनाथ सेन ने बहुत मज़बूती के साथ कहा, “माई लार्ड, मुझे अगर ज़रा भी अन्दाज़ा होता कि आप अपने घर के अन्दर मुझे इस तरह अपमानित करेंगे तो मैं यहां कभी न आता। “ गवर्नर के सचिव ने समझा दिया कि कुछ गड़बड़ हो गई है. गवर्नर से उनसे माफी मांगी और सभी से कहा कि ये बात यहां से बाहर नहीं जानी चाहिए।


नगेंद्रनाथ ने आगे लिखा है कि “लार्ड डफरिन की कही बातों का काफी समय तक सम्मान रहा और वर्षों तक प्रेस में कुछ नहीं छपा। पर इतनी बड़ी बात को कब तक दबाये रखा जा सकता था। उस दिन पूरे कोलकाता में इसकी चर्चा होने लगी और कांग्रेस अधिवेशन में आए लोग जान गए। नरेंद्र नाथ सेन अचानक से हीरो बन गए। लेकिन उनका यह अक्खड़पन और आज़ाद स्वभाव अन्त तक नहीं बन सका। उन्हें बाद में रायबहादुर की उपाधि मिली और देसी भाषा में ‘निष्ठावान’ पत्रकारिता के लिए सरकारी सब्सिडी भी मिली।”


उम्मीद है आपने ‘निष्ठावान’ पत्रकारिता पर ग़ौर किया होगा। इसी तरह के कई प्रसंग हैं जब नगेंद्रनाथ गुप्त अधिकारी को ख़बर का सोर्स बताने से इंकार करते हैं और एक प्रसंग में कराची के ज़िला पुलिस सुप्रिटेणडेण्ट कर्नल सिम्पसन से कहताे हैं कि “ मैं किसी एक मामले में आपके समन के लिए यहां आया हूं और अगर फ़ौजदार या किसी को भी अख़बार से शिकायत है तो वह अपने पक्ष में जो चाहे करने को आज़ाद है। फ़ौजदार यह सब देखकर स्तब्ध था और मुझे घूरे जा रहा था।”

“बाहर आने के बाद मैंने इस विषय पर ख़ूब तीखा लिखा और इस मसले को सिन्ध के बाहर के प्रेस वालों ने भी उठाया। शायद किसी ने उन्हें सलाह दी कि समन भेजना ग़लत था और उन्होंने फिर मुझे समन की जगह काफ़ी लल्लो-चप्पो वाला पत्र भेजा। इसके बाद मेरी सिम्पसन से मुलाक़ात नहीं हुई।”


यह प्रसंग शानदार है। बताता है कि एक पत्रकार अपने पेशे की स्वायत्ता के लिए आरंभिक दिनों में किस तरह की लक्ष्मण रेखाएं खींच रहा था। वह अधिकारी की धमकी से नहीं डरता है और न ही ख़ुशामद से झुक जाता है। नरेंद्रनाथ सेन के ज़रिए नगेंद्रनाथ गुप्त ने बता ही दिया कि कैसे एक पत्रकार कैसे गवर्नर को जवाब देकर हीरो बनता है और वही पत्रकार रायबहादुर का ख़िताब लेकर निष्ठावान बन जाता है। नगेंद्रनाथ जी नेअंग्रेज़ी हुकूमत की कार्यप्रणाली को शोषक या मास्टर के खाँचे में बाँट कर नहीं देखा है।

बल्कि जैसा है वैसा ही लिखने के आधार पर दर्ज किया है। ऐसा नहीं है कि वे आज़ादी की चेतना से प्रभावित हैं। कांग्रेस के लिए चंदा कर रहे हैं लेकिन लिखते वक्त उनके प्रसंगों में ब्रिटिश हुकूमत आततायी की तरह नही है। बल्कि वे उसकी व्यवस्था को अपने समय की वस्तुनिष्ठता के साथ दर्ज कर रहे हैं।

इस किताब का कई तरह से पाठ किया जा सकता है। नगेंद्रनाथ गुप्त के जीवन के बहाने हम उस समय के शहरों और कस्बों के जीवन में झांक सकते हैं। बंगाल के नैहट्टी रेलवे स्टेशन के बाहर कई साल पहले बंगाली दुकानदारों का जलवा था अब वहां बिहारी दुकानदारों ने कब्जा कर लिया। आप नगेंद्रनाथ गुप्त के ज़रिए उन्नीसवीं सदी के भारत में लोगों को आइसक्रीम खाते देख सकते हैं। घर में गाउन और पजामा पहने देख सकते हैं जो पत्रकार को पसंद नहीं है। जब वे किसी भारतीय जज या अधिकारी को नोट करते हैं तो उनके इलाके के कपड़े,पगड़ी और चप्पल का ज़िक्र करते हैं। इस आधार पर वे उस अधिकारी को बाकी अधिकारियों से फैसला करते हैं। ब्रिटिश अफसरों में घूस और ईमानदारी के द्वंद के भी कई किस्से हैं। जातिगत पूर्वाग्रह भी हैं। चूँकि इसे बारे में बहुत प्रसंग नहीं है लेकिन इसे आधार बना कर अच्छा ख़ासा अध्ययन हो सकता है। वे एक दो जगहों पर ऊंचा ललाट और खास तरह के चेहरे की पहचान को ब्राह्मणों से जोड़ते हैं। कई तरह के शब्द हैं जो अब प्रचलन में नहीं हैं। कई तरह की मस्तियां हैं जो अब भी हैं।


“जब पण्डित जी क्लास में आते थे तो हमारे कुछ शरारती साथी हाथ जोड़ कर सिर तक ले जाते थे और ज़ोर से कहते थे ‘ पण्‍डित जी प्रोनाउन (प्रणाम की जगह) और उधर से तुन्त जवाब आता था, ‘ बेंचोपरी’( बेंच के ऊपर खड़े हो जाओ)”
यह छपरा का प्रसंग है। प्रणाम का मज़ाक उड़ते-उड़ते प्रोनाउन हो गया है। शरारत प्रयोगधर्मिता को जन्म देती है। ऐसी मौलिकता तो आज के बच्चों की शरारत में कहां होगी। तब लेखक की उम्र बहुत कम थी। वे छपरा के सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे और यह कितना शानदार है कि बच्चे उस समय भी मास्टरों को छेड़ा करते थे। पुरखा पत्रकार ने बंकिम को भी करीब से देखा है और रवींद्रनाथ टगोर से तो दोस्ती ही थी। उनके बारे में लिखते हैं कि “कई महीनों तक वे कमीज़ नहीं पहनते थे और हमारे घर भी सिर्फ धोती पहने आ जाते थे।”

मुझे नगेंद्रनाथ गुप्त जी का देखना बहुत पसंद आया। वे कितनी चीज़ें देख रहे होते हैं। लिखा बहुत कम लेकिन जिस तरह से लिखा है अंदाज़ा हो जाता है कि कितना कुछ देखा है। एक आख़िरी प्रसंग।

“मैंने बाद में एक बार वाजिद अली शाह को कलकत्ता में देखा था। वह दुर्गा पूजा का आख़िरी दिन था और नवाब देवी की प्रतिमा का विसर्जन देखने के लिए अपने एकान्तवास से बाहर आए थे। वे अनपी भारी-भरमक चार पहिये वाली बग्गी पर थे और उनके आगे-पीछे उनके बाडीगार्ड चल रहे थे जो न ख़ुद चुस्त-दुरुस्त दिख रहे थे न उनके घोड़े। वाजिद अली शाह ख़ामोशी से हुक्का पी रहे थे और उनका साइस की सीट पर उनका हुक्काबरदार बैठा हुक्के को संभाल रहा था। नवाब काफी बूढ़े हो गये थे लेकिन उनके चेहरे से उनका नूर टपक रहा था और मैं बांग्ला मुहावरा इस्तमाल करूं तो वे भी तुरन्त टपकने वाले आम की तरह लग रहे थे। उनको देखने के साथ ही मुझे काल के क्रूर चक्र की भी याद आयी। “

शानदार विवरण है। ऐसा लग रहा है जैसे सत्यजीत रे वाजिद अली शाह के आख़िरी पलों को शूट कर रहे हों। इतने छोटे से पैराग्राफ़ में कितना कुछ दर्ज कर दिया है।

अरविन्द मोहन जी शुक्रिया। अनुवाद को साकार करने के लिए और मुझ तक पहुंचाने के लिए। अरविन्द मोहन एक संयोग से इस पुरखा पत्रकार को याद करते हैं कि दोनों का ताल्लुक मोतिहारी से है। मेरी भी है उस ज़िले से। शहर से भले न हो। हमने वाकई एक शानदार किताब पढ़ी है। एक पत्रकार के देखने को देखा है जो हमसे कोई करीब डेढ़ सौ साल पहले इस पेशे में आए थे। ग़ुलाम भारत में पत्रकारिता की स्वायत्ता गढ़ रहे थे। ग़ुलाम भारत में उभर रही आज़ादी की चाह की रेखाओं को दर्ज कर रहे थे।

ध्वस्त हो चुकी है बिहार की नौकरशाही

क्या ये मान लिया जाये कि बिहार में नौकरशाही पूरी तरह से ध्वस्त हो गया या फिर नौकरशाही में आने की जो प्रक्रिया है उस प्रक्रिया में बड़े बदलाव की जरूरत है । यह सवाल आज मैं इसलिए कर रहा हूं कि पांच वर्ष बाद एक बार फिर शुरू हुए जनता के दरबार में सीएम कार्यक्रम के दौरान जिस तरीके की शिकायत आ रही हैं उससे तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार की नौकरशाही पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है । 

 जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम 2007 से  2014 के दौरान शायद ही ऐसा कोई दरबार रहा हो जिसमें मैं एक पत्रकार के रूप में शामिल नहीं हुआ हूं।उस कानून का भी मैं साक्षी हूं जिसके आधार पर जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया था । जी है मैं बात कर रहा हूं राइट टू सर्विस एक्ट की जिसका रोजाना आज भी सूचना भवन में 50 से अधिक कर्मचारी हर शिकायत और उसके फैसले पर नजर रखते हैं ।

लेकिन यहां भी समस्या वहीं है जनता की शिकायत पर अधिकारी जो फैसला सुनाते हैं उन फैसलों को लागू करने वाले अधिकारी लागू नहीं कराते हैं ऐसे लाखों आदेश की कॉपी पंचायत से लेकर प्रखंड और जिला के दफ्तर में धूल फांक रहा है यह एक्ट भी नौकरशाही का भेट चढ़ गया ।

 इस बार जब से जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम का आयोजन किया गया है देखिए किस तरह की शिकायत आ रही है ।   कल अल्पसंख्यक कल्याण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, कला संस्कृति एवं युवा, वित्त, श्रम संसाधन व सामान्य प्रशासन पिछड़ा एवं अति पिछड़ा कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण के साथ मुख्य रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य व समाज कल्याण विभाग से जुड़े 147 मामलों आया हुआ था जिसमें   समस्तीपुर से आये एक छात्र ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाते हुए कहा कि वर्ष 2017 में ही मैट्रिक की परीक्षा पास की लेकिन 10 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि नहीं दी गई है।

इसी तरह पिछले दरबार में  नवादा से चलकर आई 17 वर्षीय ईशु कुमारी कहती हैं, “हम मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन राशि को लेकर यहां आए हैं. हम साल 2019 में मैट्रिक और साल 2021 में इंटर फर्स्ट डिविजन से पास किए लेकिन प्रोत्साहन राशि नहीं मिली।प्रोत्साहन राशि का पैसा हर जिले में उपलब्ध है लेकिन सरकार के इस योजना का लाभ बच्चों को नहीं मिल रहा है।     इसी तरह शिवहर से आए एक युवक ने मुख्यमंत्री से फरियाद करते हुए कहा कि मैंने वर्ष 2016 में मैट्रिक की परीक्षा पास की लेकिन मेरे सर्टिफिकेट पर मेरी तस्वीर की बजाए एक लड़की की तस्वीर लगा दी गई है।

सर्टिफिकेट पर फोटाे सुधार के लिए बिहार बोर्ड में आवेदन भी किया, लेकिन अबतक सुधार नहीं हुआ जिस वजह से इसकी पढ़ाई बाधित हो गयी है।अंक पत्र में सुधार ,नाम में सुधार जैसी समस्या आम है लेकिन इसमें सुधार हो इसके लिए आपको वर्षो बोर्ड के दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ेगा ।हर जिला में आंगनबाड़ी केंद्र में काम करने वाली सेविका और सहायिका के मानदेय के लिए राशि उपलब्ध है लेकिन दो वर्ष से मानदेय नहीं मिल रहा है ।

पीडीएस से अनाज नहीं मिल रहा है ,डॉक्टर अस्पताल नहीं आ रहे हैं  इसी तरह सीएम नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘सात निश्चय योजना में काम की गुणवत्ता और सात निश्चय योजना का काम पूरा नहीं होने साथ ही ‘स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना का लाभ मिलने वाले छात्रों को बैंक द्वारा परेशान किये जाना और प्रधानमंत्री आवास योजना के निर्माण में गड़बड़ी और आवंटन को लेकर हेराफेरी, उद्योग विभाग से अनुदान समय पर नहीं मिल रहा है, बिजली बिल में सुधार नहीं हो रहा है जैसे मामले आ रहे हैं ,जमीन और पुलिस से जुड़े से जुड़े मामले पर चर्चा करना ही बेमानी है वहां तो और स्थिति खराब है हर दिन नये प्रयोग हो रहे हैं और उस प्रयोग का पलीता लगाने के लिए पूरा सिस्टम मानो इन्तजार करता रहता है।

   ये ऐसी समस्या है जिसका समाधान ऑन स्पॉट हो सकता है  लेकिन इसके लिए लोगों को सीएम से मिलना पड़ रहा। मतलब सिस्टम गैर जवाबदेह है किसकी क्या जिम्मेदारी है या तो तय नहीं है या फिर तय है तो उसका कोई हिसाब लेने वाला नहीं है । इस विफलता को आप क्या कहेंगे जबकि सबको पता है कि बीमारी क्या है, ऐसे में आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र का स्वरूप क्या होगा कहना मुश्किल है क्यों कि पब्लिक अब पहले से ज्यादा सजग हो गया है अधिकार क्या है ये समझ में आने लगा है, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत बढ़ती जा रही है । बस समस्या यह है कि हम अपना प्रतिनिधि कैसे चुने इसको लेकर समझ अभी भी 20वीं सदी वाला ही है ।

जेपी के सम्पूर्ण क्रांति के सपने को मैं हमेशा याद रखता हूं – नीतीश कुमार

श्री नीतीश कुमार लोक नायक जयप्रकाश नारायण जी की जीवनी पर अधारित पुस्तक “द ड्रीम ऑफ़ रेवोल्यूशन ” का विमोचन करते हुए कहा कि जेपी में गांधी और लोहिया दोनों के विचार को साथ लेकर चलते थे उनके सम्पर्ण क्रांति के उदघोष को देखते हुए ही मैंने दिल्ली से पटना आने वाली ट्रेन का नाम सम्पूर्ण क्रांति दिया था ताकि लोग जान सके कि सम्पूर्ण क्रांति नाम के पीछे वजह क्या है।

इसी तरह नीतीश ने कहा कि मैं जो भी काम करता हूं उसके पीछे जेपी का दर्शन होता है जेपी ने गांधी के बाद देश को आन्दोलन करने कि ताकत दी ।

जेपी के याद में जुटे जेपी सेनानी

जेपी के सपनों का देश बना रहे हैं पीएम मोदी, सिताबदियारा में जेपी की मूर्ति पर किया माल्यार्पण – सुशील मोदी

पटना 11.10.2021
पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जेपी के सपनों का बिहार और देश बना रहे हैं। राष्ट्रीय फलक पर भ्रष्टाचार मुक्त देश की दुनिया भर में सराहना हो रही है।

श्री मोदी आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली सिताब दियारा में उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण किया। श्री मोदी ने कहा कि जेपी का नारा था भ्रष्टाचार मिटायेंगे, नया बिहार बनायेंगे। लेकिन अपने को जेपी का वारिस कहने वाले राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे रहे और जेल की हवा खाई। यही नहीं चार घोटाला, अलकतरा सहित कई घोटाले के मामलों में इनके कई मंत्रियों को जेल जाना पड़ा।

श्री मोदी ने जेपी के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करते हुए कहा कि बिहार और देश में एनडीए की सरकार बनने के बाद से अब तक किसी पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। पीएम मोदी पर तो उंगली तक नहीं उठी।

आज पूरी दुनिया में पीएम मोदी के विकास का डंका बज रहा है। लेकिन जेपी के साथ विश्वासघात करने वाले राजद के लोगों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार को देश की जनता कभी माफ करने वाली नहीं।

जनता दरबार में बच्चे अपना शैक्षणिक प्रमाण पत्र ठीक कराने आ रहा है ।

जनता दरबार में बिहार के मुख्यमंत्री कार्यक्रम के दौरान आज अल्पसंख्यक कल्याण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौधोगिकी, कला संस्कृति एवं युवा, वित्त, श्रम संसाधन व सामान्य प्रशासन पिछड़ा एवं अति पिछड़ा कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण के साथ मुख्य रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य व समाज कल्याण विभाग से जुड़े 147 मामलों को मुख्यमंत्री ने सुना।

इस दौरान बिहार विधालय परीक्षा समिति के कारनामे से परेशान शिवहर के एक युवक ने कहा कि वह पुरुष है और उसके मैट्रिक के सर्टिफिकेट में लड़की की तस्वीर लगा दी गई।

युवक नीतीश से बोला सर इसकी वजह से मुझे काफी परेशानी हो रही है, कृपया समस्या का समाधान करें तीन वर्ष से बोर्ड का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन इसका समाधान नहीं निकल पाया है सीएम तत्तकाल बोर्ड के अध्यक्ष को समाधान निकालने का निर्देश दिया ।

कैमूर से आए एक युवक ने जब अपना नाम नीतीश कुमार बताया तो मुख्यमंत्री मुस्कुरा दिए। सीएम ने कहा कि आप भी मेरा नाम रख लिए। युवक ने भी जवाब दिया, सर मैंने नहीं माता-पिता ने मेरा नाम नीतीश कुमार रखा था। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज कल नीतीश नाम पड़ा लोग रख रहे हैं। बाद में सीएम ने युवक की समस्या सुनी और अधिकारियों से निदान करवाया।

आपातकाल से जुड़ी भूली विसरी यादें (भाग -1)

जेपी के जयंती के मौके पर आज से जेपी आंदोलन से जुड़ी ऐसी दास्तान से आपको रूबरू कराएंगे जिसनें इंदिरा जैसी मजबूत शासक को धूल चटा दिया था ।

लेखक — फूलेन्द्र कुमार सिंह आंसू
(जेपी आंदोलन के अग्रगी छात्र नेता थे)

आपातकाल के जमाने की भूली विसरी यादें (भाग -1)
आपातकाल( २६ जून)
26 जून 1975 ,याद करके रोंगटे खड़े हो रहे हैं,एक दिन पहले शाम में आंदोलन के साथियों के साथ बैठकर दिल्ली में हुए जे पी के सभा के संभावित नतीजों पर चर्चा की थी ।इस बात की संभावना तो बिलकुल नहीं थी की इंदिरा जी जे पी के मांग पर इस्तीफा देंगी लेकिन बदले राजनैतिक हालात में इंदिरा जी ,आंदोलन के हक़ में कुछ राजनैतिक फैसला करेंगी ।

अहले सुबह हमारे आंदोलन के साथी स्वर्गीय कुमार प्रियदर्शी हमारे हॉस्टल( एम आई टी ,मुज़फ्फर पुर ) आये ।प्रिय दर्शी हमारे छोटे भाई सदृश्य थे ,मालीघाट (मुज़फ्फर पुर जेल के पास ) रहते थे ,सायकिल से आये थे ।सुबह- सुबह वे कभी मिलने नहीं आते थे ,मैं कुछ पूछता ,उन्हों ने जे पी की गिरफ्तारी की सुचना देकर धमाका कर दिया ,मैं सकते में था ,थोड़ा नर्भस भी हुआ ,अपने को सम्हाल नहीं पा रहा था ,आपातकाल घोषित होना ,बिपक्ष के सभी बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी ,अखबारों के सेंशरशिप की बातें धीरे -धीरे उनहोंने मुझे बताई ।

धीरे -धीरे अपने भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश की ।कालेज के कुछेक
विश्वशनीय आंदोलन के साथियों की बैठक बुलाई और तुरंत की प्रतिक्रिया स्वरुप शहर में मौन जुलुश (मूँह पर काला पट्टी बांधकर ) निकालने का निर्णय लिया ।मै खुद इंजिनीरिंग के अंतिम वर्ष का छात्र था ,कालेज के सभी आंदोलन के साथयों को गुप्त सुचना (समय और स्थान के साथ ) भिजवा दी । प्रकाश (मेरा बैचमेट और अभिन्न मित्र ) और प्रियदर्शी ने लगभग दो घंटे के अंदर काली पट्टी और स्टिकर( इमरजेंसी वापस लो ,जे पी को रिहा करो जैसे नारे लिखवाकर ) कालेज केम्पस आ गए ।

हमारे कुछ अन्य अभिन्न मित्र जी आंदोलन का नैतिक समर्थन करते थे लेकिन आंदोलन में सक्रिय नहीं थे ,उन्हें किसी प्रकार मेरी योजना की भनक लग गयी मुझे समझाने आ गए ,मुझे गिरफ्तार होने का भय दिखाया , अपने समेत बांकी छात्रों के कैरियर ख़राब हो जाने का भय दिखाया गया ।

एक पल के लिए मुझे लगा की कालेज छात्र संघ के महासचिव के हैसियत से अपने समर्थक छात्रों के गिरफ्तार होने और कैरियर से खिलवाड़ करने का ख़तरा मुझे उठाना चाहिए था या नहीं । Instant reaction देने के पक्ष में
अपने निर्णय पर अडिग रहा चाहे खतरा जो भी हो ।

प्रकाश और प्रियदर्शी के आने तक हमने प्रशाशन को देने हेतु एक मेमोरंडम भी तैयार कर लिया ।
हमें उम्मीद नहीं थी कि मेरी सुचना पर 150से 200 छात्र बताएं स्थान,लक्ष्मी चौक पर आ जायेंगे ,मूँह पर काली पट्टी बांध कर और हांथों में नारे वाले स्टिकर लेकर ,मेरे पीछे निकल पड़ेंगे ।

संभव है उन्हें मौन जुलुश, सामान्य जुलुश लगा हो ,गिरफ्तारी भी हो सकती है जिसपर उनहोंने सोचा ही ना हो या फिर अपने प्रिय एवम सम्मानित नेता जे पी की गिरफ्तारी की अप्रत्याशित सुचना उनके अंदर भी गुस्सा भर दिया हो ,एक तथ्य यह भी था कि उसके पहले पुलिश ,आंदोलन के क्रम में अन्य कालेज या उसके छात्रावाश से छात्रों को गिरफ्तार किया करती थी लेकिन एम आई टी या इसके किसी छात्रावास से किसी छात्र की गिरफ्ता7री नहीं की थी ,एक तरह से एम आई टी छात्र अपनेआपको privileged समझते थे ।

हमलोग 11 बजे निकल पड़े ,ब्रह्मपुरा चौक -जुरंनछपडा -सरैयागंज टावर -गरीब स्थान -प्रभात टाकीज –दीपक टाकीज -छोटी कल्याणी -कल्याणी चौक -मोतीझील होते हुए हमलोग बी बी कॉलेजिएट के गेट पर जुलुश रोक दिए ।
मैं आश्चर्यचकित था कि कहीं से पुलिश का हस्तक्षेप नहीं हुआ ,जुलुश के रास्ते शहर के लोग हमारे पास आते थे ,हमारे स्टिकर पर लगे नारों को पढ़ते थे ,आँखों में आश्चर्य ,भय लेकिन अपनापन का भाव दिखता था ,कुछ बोलते नहीं थे क्योंकि हमारे मूँह पर पट्टी बंधी थी लेकिन चेहरे के भाव स्पष्ट थे कि हमारी गिरफ्तारी निश्चित थी ।

बी बी कॉलेजिएट गेट पर हमने आपसी विमर्श से यह निर्णय लिया कि, इतने छात्रों के गिरफ्तारी का खतरा अब ना उठाया जाए ,मैं खुद ,प्रकाश और प्रियदर्शी सामने टाउन थाना जाकर डी एस पी से मिलकर अपना मेमोरंडम सौंपें अगर गिरफ्तारी हुई ,सभी छात्र अपने -अपने हॉस्टल लौट जायेंगे ,अन्यथा वहीँ पर इन्तजार करेंगे ।

हमलोग डी एस पी से उनके कार्यालय कक्ष में मिले ,वे हमें देखकर भौचक हो गए , उन्हें सूझ नहीं रहा था कि हमारे साथ क्या व्यवहार किया जाय ,हमने उन्हें बताया था हमलोग करीब 200 छात्र इमरजेंसी का और जे पी के गिरफ्तारी का विरोध स्वरूप मूँह पर पट्टी बांधकर अपना मेमोरंडम सौंपने आये हैं ताकि आपके माध्यम से अपना विरोध सरकार को बता सकें ,उन्होंने हमें हड़काया ,गिरफ्तारी की धमकी दी लेकिन हमलोग अपना मेमोरंडम उन्हें प्राप्त कराकर ही माना ,मुझे लगा कि इतने छात्रों की गिरफ्तारी से उत्पन्न संभावित प्रतिक्रिया से वे घबरा गए थे
या शायद बड़े नेताओं के गिरफ्तारी का ही आदेश उन्हें प्राप्त हो ,हमें टालना ही उन्हें भला लगा हो ।
हमलोग वहां से शहीद खुदीराम बोस स्मारक आ गए ,आपातकाल और जे पी के गिरफ्तारी के विरोध में अपनी बातें रखी, वहां से अपने अपने हॉस्टल वापस हो गए ।

लगभग 3 बजे दिन में मेरे रूम को नोक किया गया ,मैं खाना खाकर सो गया था ,मैंने गेट खोला तो पाया कि हमारे प्राचार्य श्री एस प्रसाद ,हमारे टीचर श्री एम ऍन पि वर्मा और डी एस पी साहेब गेट पर थे ,मुझे लगा कि मेरी गिरफ्तारी तय है ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ ,वे हमें समझाने आये थे ,हमसे आश्वासन चाहते थे कि केम्पस में ऐसी गतिविधि फिर से ना हो ,हम अपना और लड़कों के भविष्य से ना खेलें ।काफी बातें हुई ,हम इतना आश्वासन अवश्य दिए कि मेरे निजी तौर पर सक्रीय नहीं होने का आश्वासन मैं नहीं दे पाऊंगा लेकिन अन्य छात्रों की सक्रियता में मेरी कोई भूमिका नहीं होगी ।मैंने यह भी स्पष्ट किया कि जे पी की गिरफ्तारी जैसी बड़ी सुचना मिलने की स्थिति में मेरी क्या प्रतिक्रया होगी ,इस संबंध में आज कोई आश्वासन नहीं दे पाऊंगा ।

लेखक — फूलेन्द्र कुमार सिंह आंसू
(जेपी आंदोलन के अग्रगी छात्र नेता थे)

बाढ़ प्रभालित इलाकों में दिसम्बर तक स्थिति समान्य हो जायेंगी

बिहार के बाढ़ प्रभावित इलकों में जन जीवन जल्द जल्द से बहाल हो सके इसके लिए सीएम खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं,मीडिया से बात करते हुए सीएम ने कहा कि बाढ़ से राज्य में क्या नुकासान हुआ है

उसका मूल्यांकन चल रहा है जिले के सारे अधिकारी इस काम में लगे हुए हैं जल्द ही केंद्र को रिपोर्ट भेजी जाएगी कि कितना नुकसान हुआ है कल तक रिपोर्ट आ जानी चाहिए और हम जिले के अधिकारियों से लगातार सम्पर्क में हैं ।दिसम्बर तक स्थिति समान्य हो जायेंगी ।