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सोशल मीडिया का इस्तेमाल मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा की तरह हो रहा है

हिटलर जनता द्वारा चुनी गयी सरकार का मुखिया था कोई राजा नहीं था राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक नये मंत्रालय का गठन किया जिसका नाम रखा मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा यह मंत्रालय ना पहले किसी शासक ने बनाया था ना ही बाद के दिनों में किसी शासक ने यह साहस जुटाया।

हिटलर ने इस मंत्रालय की जिम्मेवारी डॉ जोसेफ गोएबल्स को सौंपा था जिसका मूल मंत्र था “एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है.”मंत्रालय का काम संभालने के बाद उन्होंने सबसे पहले काम यह किया कि रेडियो निर्माण में लगी कंपनी को सरकार की और से सब्सिडी देना शुरू किया ताकि रेडियो को जन जन तक पहुंचाया जा सके उनका मानना था कि रेडियो सिर्फ 19वीं सदी में ही नहीं बल्कि 20वीं सदी में भी सबसे असरदार माध्यम रहेगा और यह आठवीं महान शक्ति है बाद के दिनों में प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए जर्मन सरकार रेडियों का जबरदस्त इस्तेमाल किया ।
आज अधिकारिक तौर पर सरकार में मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा जैसा कोई विभाग नहीं है लेकिन पूरी सरकार और उसका मंत्र 24 घंटे इसी काम में लगा रहता है हिटलर के दौर में भी सरकार का प्रोपेगेंडा फैलाने में नाजी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओ का फौज हमेशा सक्रिय रहता था जैसे आज सक्रिय है ।

यह एक छद्म युद्ध है और इसका शिकार पढ़े लिखे लोग भी होते हैं रेलवे बहाली को लेकर जारी आन्दोलन का आग जैसे ही दूसरे दिन यूपी पहुंचा संघ और उससे जुड़ी जो भी संस्थान है या फिर नाजी टाइप जो समर्थक है वो मोर्चा संभाल लिये और सोशल मीडिया पर कई छद्म नाम से पोस्ट होने लगा हिंसा सही नहीं है,यह सब कोचिंग वालों का खेल है सात लाख बच्चों का पीटी हो जायेगा तो कोचिंग संस्थानों को 15 करोड़ की कमाई होगी। और इस तर्क को सही साबित करने के लिए एक से एक पोस्ट गिरने लगा पूरी कोशिश हुई कि सोशल मीडिया पर रेलवे परीक्षा को लेकर जो आंदोलन चल रहा है उस आंदोलन के औचित्य पर इस तरह सवाल खड़े किये जाये कि पूरा आन्दोलन ही संदेह के घेरे में आ जाए जैसे किसान आन्दोलन का लेकर चल रहा था ।

दूसरी और सरकार आन्दोलन को कमजोर करने के लिए खान सहित 6 से अधिक कोचिंग संस्थानों के प्रबंधक सहित एक हजार से अधिक छात्रों पर मुकदमा दर्ज कर दिया और सुबह होते होते गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गयी।
वही मीडिया शाम होते होते मिस्टर खान को भगौड़ा तक घोषित कर दिया लेकिन विपक्ष की गोलबंदी और बिहार बंद की घोषणा से प्रोपेगेंडा मंत्रालय थोड़ा असहज हुआ तो फिर पोलिटिकल बिंग जो 72 घंटे से चुपचाप इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे हुए था वो आगे आकर मोर्चा संभाल लिये ।

सुशील मोदी का एक वीडियो जारी हुआ जिसमें रेल मंत्री से हुई बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि रेल मंत्री सारी बात मान गये हैं पीटी में 3 लाख 50 हजार रिजल्ट और जारी किया जायेगा, वहीं मोदी उस वीडियो में पुलिस से आग्रह करते दिखे हैं कि छात्रों के साथ संयम बरते ।

देर शाम जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का खान को लेकर एक ट्वीट आया और उस ट्वीट में ललन सिंह खान को गरीबों का मसीहा कहते हुए जमकर तारीफ किये हैं और रेल पुलिस से मुकदमा वापस लेने कि मांग किये हैं।इस ट्टीट के कुछ घंटे बाद खान सोशल मीडिया पर प्रकट हुए और सरकार की तारीफ करते हुए छात्रों से आज के बंदी से अलग रहने का संदेश जारी किये ।

इस पूरे खेल पर गौर करिए तब आपको समझ में आयेगा कि इसके पीछे की रणनीति क्या है वैसे इन्तजार करिए सुशील मोदी और ललन सिंह ने जो भरोसा दिलाया है वो कब अमल में आता है क्यों कि सरकारी नौकरी को लेकर जो खेल चल रहा है उसके पीछे केन्द्र की सरकार है ये साफ दिख रहा है ।

स्टेशन पर झाड़ू-पोछा देने वाले के लिए तीन तीन परीक्षा पास करनी पड़ेगी तब नौकरी मिलेगा, इससे सरकार की नियत क्या है वो साफ समझ में आ रहा है वैकेंसी निकालो लेकिन इस तरह निकालो की नौकरी देनी ही नही पड़े बस छात्रों को उलझा कर रखना है।

रेलवे की जिस परीक्षा को लेकर बवाल हुआ था उस परीक्षा को लेकर रेलवे ने 71 पेज का नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें छात्रों को नौकरी नहीं देनी पड़ी इसकी पूरी व्यवस्था है और उसी का नतीजा था यह हंगामा । जरा आप भी देखिए 2019 की वैकेंसी 2022 में पीटी का रिजल्ट और उसके बाद अभी मुख्य परीक्षा होनी है मतलब 2019 के वैकेंसी को पूरा करने में सरकार पांच वर्ष वर्ष का समय ले रही है ये जो पांच वर्ष एक परीक्षा पास करने के लिए छात्र लगा रहे हैं ये बर्बादी किसकी है यह समझने कि जरूरत नहीं है क्यों कि मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा इस स्तर तक सक्रिय है कि बहुत मुश्किल है सरकार के नियत को समझना ।

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