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डोरंडा ट्रैजरी से 139 करोड़ रु. की अवैध निकासी से जुड़े 5 वे केस में लालू को 5 वर्ष की मिली सजा

रांची चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले (डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ रुपए की अवैध निकासी) में बिहार के पूर्व CM और RJD सुप्रीमो लालू यादव को आज 5 साल की सजा सुनाई गई है साथ ही उन्हें 60 लाख का जुर्माना भी भरना होगा।

रांची में CBI के विशेष जज एसके शशि ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सजा का ऐलान किया। फिलहाल लालू रिम्स के पेइंग वार्ड में भर्ती हैं।

लालू समेत 78 लोगों को दोषी ठहराया था जिसमें तीन वर्ष की भी सजा दी गयी थी वही लालू समेत 38 दोषियों को इस केस में कोर्ट ने 15 फरवरी को दोषी करार देने के बाद सजा कि तिथि आज मुकरर किया था ।

लालू प्रसाद को सजा मिलने पर क्या कह रहे हैं उपमुख्यमंत्री तारकेश्वर प्रसाद

अधिवक्ता का कहना है कि सजा की आधी अवधि पूरी हो गई है इसलिए लालू को हाईकोर्ट से जमानत मिलने की उम्मीद है।
कैसे अंजाम दिया गया था डोरंडा ट्रेजरी घोटाला

लालू प्रसाद के सजा मिलने पर नीतीश कुमार ने कहा सजा दिलाने वाले तो आज उनके साथ ही है

डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के इस मामले में पशुओं को फर्जी रूप से स्कूटर पर ढोने की कहानी है। यह उस वक्त का देश का पहला मामला माना गया जब बाइक और स्कूटर पर पशुओं को ढोया गया हो। यह पूरा मामला 1990-92 के बीच का है।

लालू प्रसाद के सजा मिलने पर उपमुख्यमंत्री रेणू देवी बोली जैसी करनी वैसी भरनी

CBI ने जांच में पाया कि अफसरों और नेताओं ने मिलकर फर्जीवाड़े का अनोखा फॉमूर्ला तैयार किया। 400 सांड़ को हरियाणा और दिल्ली से कथित तौर पर स्कूटर और मोटरसाइकिल पर रांची तक ढोया गया, ताकि बिहार में अच्छी नस्ल की गाय और भैंसें पैदा की जा सकें।

लालू प्रसाद के सजा मिलने पर क्या कह रहे हैं लालू प्रसाद के वकील

पशुपालन विभाग ने 1990-92 के दौरान 2,35, 250 रुपए में 50 सांड़, 14, 04,825 रुपए में 163 सांड़ और 65 बछिया खरीदीं।

उत्पाद कोर्ट के सहारे हाईकोर्ट ने सरकार की खिंचाई

पटना हाईकोर्ट ने राज्य में उत्पाद कोर्ट के आधारभूत संरचना के सम्बन्ध में राज्य सरकार को हलफनामा दायर कर अगली सुनवाई में विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया।जस्टिस राजन गुप्ता और जस्टिस मोहित कुमार शाह की खंडपीठ ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए कहा कि इन कोर्ट के गठन में विलम्ब क्यों हो रहा हैं।

राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में एडवोकेट जनरल ललित किशोर ने कोर्ट को बताया कि सभी 74 उत्पाद कोर्ट के लिए जजों की बहाली हो चुकी हैं।साथ ही 666 सहायक कर्मचारियों की बहाली के लिए स्वीकृति दे दी गई हैं।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार इन उत्पाद कोर्ट के सही ढंग से के लिए आधारभूत ढांचे के विकास के लिए लगातार कार्रवाई कर रही है।


कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि सीबीआई, श्रम न्यायलयों व अन्य कोर्ट के लिए अलग अलग भवन की व्यवस्था है,तो उत्पाद कोर्ट के लिए अलग भवन की व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है।


एडवोकेट जनरल ललित किशोर ने कोर्ट के द्वारा उठाए गए इन मुद्दों पर जवाब देने के लिए कुछ समय की माँग की।कोर्ट ने अनुरोध को मानते हुए अगली सुनवाई की तिथि 28 फरवरी,2022 तय की है।

संघ सविधान के अनुसार नहीं मनुस्मृति के अनुसार देश चलाना चाहता है

किसी भी देश के लिए 75 वर्ष का समय शैशवा काल (babyhood) ही कहां जाता है और भारतीय लोकतंत्र फिलहाल इसी दौर से गुजर रहा है क्यों कि इससे पहले के भारत की बात करे तो शासक वर्ग धर्म,संस्कृति और समाजिक मान्यताओं से छेड़छाड़ करने से बचते रहते थे उन्हे लगान और सिंघासन से आगे कोई वास्ता नहीं था,धर्म ,संस्कृति और समाजिक मान्यताओं से बस इतना ही वास्ता था कि उन्हें शासन व्यवस्था चलाने में समस्या ना हो।

लेकिन आजादी के बाद शासन और सत्ता चलाने के लिए जिस संविधान का निर्माण किया गया वो धर्म ,संस्कृति और समाजिक मान्यताओं से जुड़ी उन तमाम बातों को अस्वीकार किया जो बदलाव में बाधक था,और 1950 से लेकर 2022 तक देश उसी संविधान के सहारे आगे बढ़ रहा है ।

लेकिन उस दौर में भी ऐसे लोग थे ऐसी राजनैतिक पार्टिया थी जो धर्म,संस्कृति और समाजिक मान्यताओं में बदलाव के पक्षधर नहीं थे औऱ इनका मानना था कि भारत की जो परम्परा रही है वो महान है उसमें बदलाव की बात सोचना भारत के आत्मा पर हमला है।

इस तरह के विचार रखने वालों में हिन्दू महासभा जो बाद में जनसंघ बना और इस समय भाजपा के नाम से जाना जाता है सन 1947 के संविधान सभा में जिन सवालों को लेकर हिन्दू महासभा राजनीति कर रही थी आज भी बीजेपी उन्ही सवालो के सहारे राजनीति कर रही है।

हिन्दू महासभा संविधानसभा के बैठक के दौरान सम्राट अशोक ,राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा,राष्ट्रगान ,कॉमन सिविल कोड,धारा 370 और हिंदू कोड बिल को लेकर जबरदस्त हंगामा किया था और कहां था कि संविधानसभा हिन्दू के मान्यताओं के खिलाफ निर्णय ले रही है और आज भी भाजपा इन्ही मुद्दों के सहारे राजनीति कर रही है।
ये अलग बात है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों की तुष्टीकरण की राजनीति ने इन्हें सत्ता तक पहुंचा दिया लेकिन जिन बुनियादी सवाल को लेकर संघ संविधान में बदलाव चाहता है वो बदलाव भारत को उस दौर में लौटा सकता है जिससे बड़ी मुश्किल से बाहर निकला था।

1—संघ पुरुषों के बहु विवाह प्रथा और महिलाओं को नीच का दर्जा जारी रहे का पक्षधर था
जिस समय भारत आजाद हुआ उस समय हिंदू समाज में पुरुष और महिलाओं को तलाक का अधिकार नहीं था. पुरूषों को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी लेकिन विधवाएं दोबारा शादी नहीं कर सकती थी. विधवाओं को संपत्ति से भी वंचित रखा गया था.
आजादी के बाद भारत का संविधान बनाने में जुटी संविधान सभा के सामने 11 अप्रैल 1947 को डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस बिल में बिना वसीयत किए मृत्यु को प्राप्त हो जाने वाले हिंदू पुरुषों और महिलाओंं की संपत्ति के बंटवारे के संबंध में कानूनों को संहिताबद्ध किए जाने का प्रस्ताव था.
यह विधेयक मृतक की विधवा, पुत्री और पुत्र को उसकी संपत्ति में बराबर का अधिकार देता था. इसके अतिरिक्त, पुत्रियों को उनके पिता की संपत्ति में अपने भाईयों से आधा हिस्सा प्राप्त होता साथ ही
इस विधेयक में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव किया गया था। यह दो प्रकार के विवाहों को मान्यता देता था-सांस्कारिक व सिविल. इसमें हिंदू पुरूषों द्वारा एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध और अलगाव संबंधी प्रावधान भी बनाये गये थे और इस बिल के पास होने पर हिंदू महिलाओं को तलाक का अधिकार मिल जाता ।

विवाह विच्छेद के लिए सात आधारों का प्रावधान था. परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग, असाध्य व संक्रामक कुष्ठ रोग, संक्रामक यौन रोग व क्रूरता जैसे आधार पर कोई भी व्यक्ति तलाक ले सकता था.
लेकिन इस बिल का संघ और हिन्दूमहासभा और कुछ कांग्रेसी सदस्यों ने सड़क से लेकर संविधानसभा की बैठक तक में जबरदस्त विरोध किया इस वजह से आंबेडकर के तमाम तर्क और नेहरू का समर्थन भी बेअसर साबित हुआ और अंत में. इस बिल को 9 अप्रैल 1948 को सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया।

30 नवंबर 1949 को संविधान का अंतिम मसौदा डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा को सौंपा था। उस दिन आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर का संपादकीय संविधान पर ही केंद्रित था। इसमें लिखा गया-
‘भारत के नए संविधान की सबसे ख़राब बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है।… यह प्राचीन भारतीय सांविधानिक क़ानूनों, संस्थाओं शब्दावली और मुहावरों की कोई बात नहीं करता। प्राचीन भारत की अद्वितीय सांविधानिक विकास यात्रा के भी कोई निशान यहाँ नहीं हैं। स्पार्टा के लाइकर्जस या फारस के सोलन से भी काफ़ी पहले मनु का क़ानून लिखा जा चुका था। आज भी मनुस्मृति की दुनिया तारीफ़ करती है। भारतीय हिंदुओं के लिए तो वह सर्वमान्य व सहज स्वीकार्य है, मगर हमारे सांविधानिक पंडितों के लिए इस सब का कोई अर्थ नहीं है।’
वही नेहरु ने संविधान सभा की बैठक में कहा था, ‘इस कानून को हम इतनी अहमियत देते हैं कि हमारी सरकार बिना इसे पास कराए सत्ता में रह ही नहीं सकती।
हालांकि सविधानसभा में शामिल महिला सदस्यों ने इसको लेकर गहरी आपत्ति दर्ज की थी और सदन के बाहर भी संघ और हिन्दूमहासभा के इस आचरण को लेकर प्रगतिशील महिलाएं और पुरुषों ने खुल कर आलोचना किया था।

और फिर जैसे ही लोकसभा चुनाव के बाद नेहरु के नेतृत्व में सरकार बनी सदन के पहले ही सत्र में आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल को संसद में पेश किया. इसको लेकर संसद के अंदर और बाहर एक बार फिर विद्रोह मच गया लेकिन उस समय की मीडिया और प्रगतिशील महिलाएं और पुरुष ने संघ और जनसंघ के विरोध का खुल कर प्रतिवाद किया तो जनसंघ इस मुद्दे को लेकर सदन में दूसरा रुख अख्तियार कर लिया

1951 में जनसंध से तीन सांसद चुन कर आये थे संसद में तीन दिनों तक बहस चली.हिंदू कोड बिल का विरोध करने वाले, जनसंघ के सांसदों ने पैतरा बदलते हुए कहा कि सिर्फ हिंदुओं के लिए कानून क्यों लाया जा रहा है, बहुविवाह की परंपरा तो दूसरे धर्मों में भी है. इस कानून को सभी पर लागू किया जाना चाहिए. यानी समान नागरिक आचार संहिता सदन में लाया जाये लेकिन कांग्रेस ने सदन से लेकर सड़क तक जो विरोध चल रहा था उसको खारिज करते हुए हिन्दू कोड बिल को पास करवा लिया ।

सदन में और संविधानसभा में हिन्दू कोड बिल को लेकर हुए बहस थे उस दौरान नागरिक आचार संहिता को लेकर सबसे मुखर विरोध सिख ने किया उनका कहना था कि इसको लागू करना सिख धर्म के मूल आधार पर हमला है ।

लेकिन बाद के दिनों में जनसंघ और फिर बीजेपी ने एक रणनीति के तहत नागरिक आचार संहिता को मुसलिम से जोड़ कर सियासी हवा का रुख बदल दिया लेकिन मूल यही है कि संघ और भाजपा महिला के आजादी को लेकर अभी भी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पायी है जिसको लेकर इस देश में समाजिक सुधार को लेकर बड़ा आन्दोलन हुआ था वही संघ सिख बौद्ध और जैन धर्म को लेकर भी सहज नहीं है जैसे अभी साई बाबा को लेकर संघ और हिन्दू संगठन सहज नही है।
अब देखना यह है कि बीजेपी सत्ता के सहारे इसको कहाँ तक आगे ले जाता है क्यों कि मुस्लिम विरोध तक चलेगा लेकिन इससे आगे जैसे ही बढ़ेगे बहुत मुश्किल होगा देश को सम्भालना।

आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है

आज ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ है। आधुनिकता और तेज वैश्वीकरण की भागदौड़ में लगातार पिछड़ती और विस्मृत होती जा रही अपनी मातृभाषा को याद करने और उसकी पहचान, उसकी अस्मिता को बनाए रखने का संकल्प लेने का दिन।

मेरी अपनी मातृभाषा भोजपुरी है। दुर्भाग्य से दुनिया की एक बड़ी आबादी द्वारा बोली जानेवाली यह बेहद समृद्ध भाषा आज अश्लीलता की गंभीर चुनौतियों से दो-चार है। बाज़ार के दबाव में फूहड़, बेहूदा, मातृद्रोही सिनेमा से जुड़े लोगों और असंख्य गायक-गायिकाओं ने इसे अश्लीलता का पर्याय बनाने का जैसे अभियान चला रखा हैं।

हालत यह है कि कोई भी सुसंस्कृत व्यक्ति इस भाषा का सिनेमा देखने या गीत सुनने में अब शर्म महसूस करने लगा है। हां, इस निराशाजनक समय में उम्मीद जगाते हैं कुछ ऐसे कलाकार और गायक-गायिकाएं जो अपनी भाषा के सम्मान के लिए सतत संघर्ष कर रहे हैं।

#भोजपुरी
#भोजपुरी

इस आशा के साथ कि भोजपुरी अपसंस्कृति के चंगुल से निकलकर एक बार फिर अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त करेगी, सभी भोजपुरी भाषियों को मातृभाषा दिवस की मेरी शुभकामनाएं,मेरी अपनी एक भोजपुरी कविता ‘आस’ के साथ !

केहू ना कहेला बाकि
बिहान होते चिरई हांक लगा जालि
ओस नहाली दूब
उछाह से बहेली नदी
अगरा जाला गाछ-बिरिछ
सुरूज के पहिलका किरिन के संगे
केहू ना देखेला बाकि
चुपे अंखुआ जालि फसल
कोंपल फेंक डेला पौधा
पतईंन में उतर जाला हरियरी
फल में रस
फूल में गंध
अंखियन में नेह
केहू ना जानेला बाकि
बाबू जी के मन में बारी-बारी से
काहे धुंधुआत चल जाला
एक-एक गो नेह-नाता
साच्छात उतरे लागेले जमराज
माई के भोरे के सपना में
कइसनो मौसम में
बचा के राख लेलि भौजी
भिंडी आ करइला के बिया
मेहरारू गुल्लक में पईसा
बचवा सब आंखि में नींद
केहू ना बचावेला बाकि
घोर से घोर दुरदिन में भी
बाचल रहेला जरूर कौनो आस
तबे त हमनी
सहेज के राखेनी ओकर पाती
जेकरा से मिले के
कौनो आस ना बाचल रहेला।


लेखक — ध्रुव गुप्त(पूर्व आईपीएस अधिकारी)

स्वास्तिक हमारी संस्कृति का हिस्सा, विवाद खड़ा करना अनावश्यक: सुशील कुमार मोदी

स्वास्तिक शुभ चिह्न हमारी हजारों वर्ष पुरानी वैदिक सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा है, इसलिए इस पर राजनीति करना अनावश्यक और दुर्भाग्यपूर्ण है।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ देश के बड़े वर्ग की आस्था, परम्परा और प्रतीक चिह्न से अनादरपूर्वक दूरी बनाना नहीं होता।

हम जब विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलित कर या नारियल फोड़ कर भी करते हैं, तब देश की सांस्कृतिक परम्परा का ही पालन करते हैं, लेकिन फीता काटने की रवायत बंद नहीं की गई है।

बिहार विधानसभा के स्मृति चिह्न में अशोक चक्र के साथ स्वास्तिक चिह्न भी रहे, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
विधानसभा के आधिकारिक लेटरहेड पर भी स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग होता है।

जिनके पास जनहित के मुद्दे नहीं हैं, वे कभी वंदेमातरम् गायन का विरोध करते हैं तो कभी स्वास्तिक चिन्ह का विरोध करने लगते हैं।

इनलोगों को यह भी नहीं मालूम है कि भारत का स्वास्तिक चिन्ह हिटलर के चिन्ह से बिल्कुल भिन्न है।

सदियों से भारत में शुभ अवसरों पर स्वास्तिक चिह्न बनाये जाते रहे हैं, लेकिन जिनकी समझ अपने मनीषियों के ग्रंथों की उपेक्षा और भारत-विरोधी लेखकों की चंद किताबें पढ़ाने से बनी हो, केवल वे ही स्वास्तिक से दुराग्रह प्रकट कर सकते हैं।

बेहद सादगी से सम्पन्न हुआ सुशील मोदी के पुत्र की शादी

बिहार के पूर्व डिप्टी CM व भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी के छोटे बेटे अक्षय अमृतांशु की शादी नोएडा में संपन्न हो गई है। इस हाईप्रोफाइल शादी समारोह को सादगी के साथ ही संपन्न कराया गया है।

कार्यक्रम स्थल पर CM नीतीश कुमार भी पहुंचे। साथ ही सांसद रविशंकर प्रसाद और बिहार सरकार में मंत्री मंगल पांडेय, शाहनवाज हुसैन, संजय झा भी वर-वधू को आशीर्वाद देने आए। इनके अलावा अधिकतर मेहमान ऑनलाइन शामिल हुए।

नोएडा के सेक्टर 121 में हो रहे इस समारोह में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच फेरे लिए गए। साथ ही शादी की अन्य रस्में भी पूरी हुई हैं। इससे पहले दूल्हा अक्षय और दुल्हन स्वाति ने एकदूसरे को वरमाला पहनाकर जयमाला की रस्म पूरी की। स्वाति के माता-पिता पुष्पा और सुधीर घिल्डियाल हैं। 

संघ सम्राट अशोक को औरंगजेब क्यों मानता है

संघ सम्राट अशोक को लेकर असहज क्यों है इस सवाल का जवाब तलाशने कि कोशिश में मैं पिछले कई दिनों से संघ से जुड़े लोगों से बातचीत कर रहा हूँ, इतना ही नहीं अशोक की तुलना औरंगजेब से करने वाले नौकरशाह दया प्रकाश सिन्हा से भी मेरी बात हुई लेकिन सम्राट अशोक को लेकर संघ की ऐसा सोच क्यों है उसको लेकर स्पष्टता नहीं हो पायी ।

फिर दिल्ली विश्वविधालय और जेएनयू से जुड़े मित्रों से इस सम्बन्ध में लंबी बातचीत हुई और इस दौरान इस विषय से जुड़े कई आलेख को भी पढ़ने का मौका मिला ।

मोटा मोटी तौर पर जो मेरी समझ में आयी है वो बौद्ध धर्म को लेकर संघ की जो सोच रही है सम्राट अशोक के विरोध की वजह यही है ऐसा प्रतीत होता है।

गोलवलकर अपनी पुस्तक ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता की परिभाषा’ में बुद्ध और बौद्ध धर्म को लेकर विस्तृत चर्चा किये हैं ।
जिसमें उनका मानना था कि ‘बुद्ध के बाद उनके अनुयायी पतित हो गए. उन्होंने इस देश की युगों प्राचीन परंपराओं का उन्मूलन आरंभ कर दिया. हमारे समाज में पोषित महान सांस्कृतिक सद्गुणों का विनाश किया जाने लगा. अतीत के साथ के संबंध-सूत्रों को भंग कर दिया गया. धर्म की दुर्गति हो गई. संपूर्ण समाज-व्यवस्था छिन्न-विच्छिन्न हो गयी ।

भारत माँ के प्रति श्रद्धा इतने निम्न तल तक पहुंच गई कि धर्मांध बौद्धों ने बौद्ध धर्म का चेहरा लगाए हुए विदेशी आक्रांताओं को आमंत्रित किया तथा उनकी सहायता की उनका आचरण देशद्रोही जैसा हो गया था ।

वही बौद्ध धर्म के अहिंसा का पाठ ने भारतवंशी को कायर बना दिया ।
क्यों कि अशोक धम्म के सहारे बौद्ध धर्म को पूरे विश्व में फैलाये इसलिए माना जा रहा है कि संघ अशोक का इसलिए विरोध कर रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सम्राट अशोक के बाद भारत गुलामी के दास्ता से बाहर क्यों नहीं निकल पाया ,सम्राट अशोक भारतवंशी को अहिंसा का पाठ पढ़ा कर कायर बना दिया ये संघ का मानना है। अगर ऐसा था तो बाद के दिनों में शंकराचार्य के नेतृत्व में हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान हुआ फिर भी भारतवंशी गुलामी की दास्ता से बाहर क्यों नहीं निकल पायी जब कि इस देश पर सबसे ज्यादा हमला शंकराचार्य के हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान काल के बाद ही शुरू है ।

इस सवाल पर संघ के विचारक स्पष्टता के साथ कुछ भी नहीं लिखे हैं और ना ही इस विषय पर संघ स्पष्टता के साथ बोलता है ।
इसकी वजह है संघ हमेशा भारत को एक राष्ट्र के रूप में देखता है जबकि भारत अशोक के काल को छोड़ दे तो राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से कभी एक राष्ट्र नहीं रहा है हां सांस्कृतिक रूप से आज जो भारत है वो जरूर आपस में एक दूसरे से जुड़े रहा है, ऐसा नहीं होता तो दक्षिण का एक संत पूरे भारत में चार पीठ स्थापित नहीं कर पाते।

दूसरी बात राष्ट्र आधुनिक विचार है इस विचार के सहारे भारत के इतिहास को ना देखा जा सकता है ना समझा जा सकता है । यू कहे तो 1947 में भारत का उदय एक राष्ट्र के रूप में हुआ जिसके निर्माण में कई ऐसी बुनियादी बाते निहित है जो राष्ट्र के आधुनिक विचार से मेल नहीं खाता है ।

इसलिए हमारे पुरखों ने भारत को यूनियन ऑफ स्टेट कहा जहां तमाम तरह के विवादित मसले का एक हल निकालने कि कोशिश हुई। जिसको लेकर आज संघ और भाजपा ताना मार रही है।

संघ और भाजपा जिस दिशा में भारत को ले जाना चाह रही है संभव है आने वाले समय में भारत एक बार फिर ऐसी समस्याओं में घिरने लगा है जिसके समाधान को लेकर गांधी को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी।

इंदिरा गांधी भी इसी तरह की छेड़छाड़ की कोशिश शुरू की थी देश को क्या नुकसान हुआ समाने हैं सच यही है कि भारत को राष्ट्र के रूप में नहीं संस्कृति के रूप में देखने कि जरूरत है ।

बिहार का लाल क्रिकेट की दुनिया में स्थापित किया नया कीर्तिमान

बिहार के रणजी क्रिकेटर सकिबुल गनी ने इतिहास रच दिया है। सकिबुल गनी फर्स्ट क्लास डेब्यू पर तिहरा शतक बनाने वाले पहले क्रिकेटर बने, मिजोरम के खिलाफ बिहार की शुरुआत कुछ खास नहीं रही थी, लेकिन सकीबुल और बाबुल कुमार ने मिलकर टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया।

साल्ट लेक के जेयू कैंपस मैदान पर खेले जा रहे इस मैच में बिहार ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 71 रनों तक तीन विकेट गंवा दिए थे। इसके बाद सकीबुल और बाबुल ने कोई विकेट नहीं गिरने दिया और स्कोर को 600 रनों के पार पहुंचा दिया। सकीबुल ने जहां तेज तर्रार ट्रिपल हंड्रेड जड़ा, वहीं बाबुल भी डबल सेंचुरी ठोक चुके हैं। सकीबुल 341 रन बनाकर आउट हुए।

इस पारी के दौरान उन्होंने 405 गेंदों का सामना किया और 84.20 के स्ट्राइक रेट से ये रन बनाए। सकीबुल ने 56 चौके और दो छक्के जड़े। दोनों बल्लेबाजों ने मिलकर चौथे विकेट के लिए 532 रनों की साझेदारी निभाई।

डेब्यू फर्स्ट क्लास में सबसे ज्यादा स्कोर का रिकॉर्ड इससे पहले अजय रोहेरा के नाम दर्ज था। मध्य प्रदेश के रोहेरा ने हैदराबाद के खिलाफ रणजी ट्रॉफी 2018-19 में नॉटआउट 267 रनों की पारी खेली थी।

जिलाधिकारी मोतिहारी शीर्षत कपिल ने सकीबुल को सम्मानित करने की घोषणा की।उन्होंने कहा कि सकीबुल ने पूरे विश्व के रिकॉर्ड को तोड़ा है,आज तक किसी भी खिलाड़ी ने रणजी के डेब्यू मैच में 341 का स्कोर नही किया है।यह जिले के लिए गौरव का क्षण है।

हिन्दुत्व के रास्ते पर बिहार

बीजेपी देश को हिन्दुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ाने में लगी है
बिहार विधानसभा के स्थापना दिवस के अवसर पर विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए कल प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।प्रथम सत्र के समापन पर मंच से घोषणा किया गया कि सभी लोग खड़े हो जाये राष्ट्रगीत गाया जाएगा और फिर शुरू हुआ

वन्दे मातरम् गीत
बिहार विधानसभा में पहले यह परम्परा कभी नहीं रही है हां इस बार बीजेपी और जदयू की जो सरकार बनी है उसके बाद से बिहार विधानसभा के पहले सत्र के समापन के दौरान पहली बार राष्ट्र गीत के साथ सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया था। बिहार विधानसभा भवन के शताब्दी समारोह के याद में बिहार विधानसभा के मुख्य द्वार के सामने एकस्तम्भ बन रहा है कल उस स्तम्भ का स्वरूप क्या होगा इसका लोकार्पण लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला ने किया इस स्तम्भ का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी करेंगे ।

आजादी के बाद देश का यह पहला ऐसा स्तम्भ होगा जिसमें अशोक चक्र नहीं है अशोक चक्र की जगह स्वस्तिक चिन्ह को लगाया है संदेश साफ है देश की जो धर्मनिरपेक्षता वाली छवि रही है उस छवि से देश को बाहर निकालने कि कोशिश शुरु हो गयी है ।

इसी तरह दिल्ली पुलिस के लोगों पर अब अशोक स्तम्भ की जगह पर इंडियागेट रहेंगा साथ ही दिल्ली पुलिस लोगो के बीचों बीच लिखा गया संदेश ‘शांति, सेवा न्याय’ को हटा कर ‘फॉर द नेशन कैपिटल’ लिखा गया है ।

इससे पहले दिल्ली में जो नया संसद भवन बना है उस भवन में भी आजादी के साथ जिस परम्परा की शुरुआत की गयी थी कि महत्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति के पीछे अशोक स्तम्भ रहेगा उस परंपरा को भी खत्म कर दिया गया है अब नये संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के पीछे अशोक स्तम्भ की जगह तिरंगा लहरेगा इस तरह के बदलाव का सिलसिला कहां जाकर रुकेगा कहना मुश्किल है क्यों कि संघ भारतीय संस्कृति,शासन व्यवस्था,अर्थनीति और सामाजिक मूल्यों को लेकर क्या सोचती है उसका कोई स्पष्ट रुप रेखा नहीं है।

संघ के अधिकृत विचार की बात करे तो उनकी एक मात्र अधिकृत विचार है एकात्म मानववाद जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्गदर्शक या दर्शन कहा जाता है। इस दर्शन को भारतीय जनसंघ ने 1965 के विजयवाड़ा अधिवेशन में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने करतल ध्वनि से इस दर्शन को स्वीकार किया था और वचन लिया था कि जब भी हमारी सरकार बनेगी तो एकात्म मानववाद में जो विचार लिखे गये हैं उसका अनुपालन करेंगे ।

हालांकि इस पुस्तक में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आज बीजेपी शासित राज्यों में हो रहा है या फिर जो मोदी कर रहे हैं हां यह जरूर है कि समय समय पर हिन्दूवादी सोच से जुड़े लेखक भारतीय चिंतन और सामाजिक मूल्यों को लेकर समय समय पर जो लिखा गया है संघ बीजेपी के सहारे हिन्दुत्व को थोपने कि कोशिश जरूर कर रही है हाल ही में पूर्व आईएएस अधिकारी दया प्रकाश सिन्हा द्वारा लिखी गयी पुस्तक में सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से करने के मामले में भले ही बीजेपी पल्ला झाड़ लिया लेकिन सम्राट अशोक को लेकर जो चल रहा है वो दया प्रकाश सिन्हा की सोच के अनुसार ही आगे बढ़ाया जा रहा है

1–लव जिहाद और हिजाब तो बहना है निशाने पर तो बहुसंख्यक हिन्दू लड़की है
संघ और बीजेपी जिस सोच की तरफ बढ़ रहा है उस सोच के पीछे वही हिन्दुत्व का वो तालिबानी चेहरा है जिससे ज्योतिबा फुले ,राजा राम मोहन राय ,विवेकानंद,गांधी और भगत सिंह लड़े थे जी है विरोध लव जेहाद को लेकर नहीं है विरोध प्रेम विवाह से है ,विरोध हिजाब से नहीं है विरोध हिन्दू लड़कियों के जीन्स और टॉप पहने से हैं विरोध लड़कियों के आधुनिक सोच है ,क्यों कि आज भी संघ मानती है कि हिंदुत्व मेरा सर्वश्रेष्ठ है वो दिन दूर नहीं है जब आपको विज्ञान की जगह वेद और उपनिषद पढ़ने पर मजबूर किया जायेगा वो दिन दूर नहीं है जब आपको जेनुउ और भगवा ड्रेस पहनना होगा लड़कियों को साड़ी पहन कर स्कूल जाना होगा ।

2—संघ आजादी की सारी मान्यताओं को बदलना चाहता है जी है संघ भारत के आजादी को लेकर जो मान्यता रही है उसको बदलना चाहता है तिरंगा की जगह राष्ट्र ध्वज भगवा चाहता हैं,संघ देश के वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के बदले पुरानी व्यवस्था चाहता है ,संघ वर्ण व्यवस्था को फिर से लागू करना चाहता है ,संघ जातीय आरक्षण को खत्म करना चाहता है संघ, भारत के संघीय ढांचा के खिलाफ है,संघ महिलाओं को लेकर पुरातन सोच रखता है और ये सब जो देश में चल रहा है इसके पीछे संघ का यही सोच है ।

लोकतंत्र खतरे में है

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने ‘देश में लोकतंत्र को कैसे काम करना चाहिए’ विषय पर आयोजित बहस पर चर्चा करते हुए कहां कि ‘ज्यादातर देश उच्च आदर्शों और महान मूल्यों के आधार पर स्थापित होते हैं और शुरू होते हैं, लेकिन अक्सर संस्थापक नेताओं और अग्रणी पीढ़ी के बाद दशकों और पीढ़ियों में धीरे-धीरे चीजें बदल जाती हैं।

‘स्वतंत्रता के लिए लड़ने और जीतने वाले नेता अक्सर महान साहस, अपार संस्कृति और उत्कृष्ट क्षमता वाले असाधारण व्यक्ति होते हैं। वे आग में तपकर आए और लोगों और राष्ट्रों के नेताओं के रूप में उभरे। वे डेविड बेन-गुरियन्स हैं, जवाहरलाल नेहरू हैं, और हमारे अपने भी हैं।

‘लेकिन आज नेहरू के भारत की बात करे तो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लोकसभा में लगभग आधे सांसदों के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या के आरोपों सहित आपराधिक मामले लंबित हैं। हालांकि यह भी कहा जाता है कि इनमें से कई आरोप राजनीति से प्रेरित हैं।’ लेकिन सवाल तो है ऐसे में लोकतंत्र कैसे बचेगा जब चुन कर आने वाले प्रतिनिधियों का चरित्र दागदार हो भ्रष्ट हो ।

वही दूसरी और आज बिहार विधानसभा के स्थापना दिवस के अवसर पर विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए आज प्रबोधन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर बिहार सरकार के संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़े किये जाने पर कहा कि आज हर कोई हमलोग पर अंगुली उठाने के लिए तैयार बैठा रहता है। मौका मिला नहीं कि हम लोगों पर उंगली उठा दी जाती है। आज शराबबंदी पर एक संस्था की तरफ से अंगुली उठाई जा रही है।

बिहार विधानसभा स्थापना दिवस
Bihar Assembly Foundation Day

मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष पूरे देश के विधायिका के कस्टोडियन हैं। आज बिहार की शऱाबबंदी कानून पर सवाल खड़े किये गये और कहा गया कि बिना समझ के कानून बना दिया गया। जबकि भारत का संविधान इसी विधायिका ने बनाया है ऐसे में आप विधायिका को बचाने के लिए आगे आयें। उन्होंने कहा कि गाहे-बगाहे शराबबंदी कानून को उदाहरण के तौर पर बताया गया और कहा गया कि विधायिका ने बिना सोचे-समझे कानून बना दिया। विजय चौधरी ने इस पर गहरी आपत्ति जताई और लोकसभा अध्यक्ष को आगे आने को कहा।

बिहार विधानसभा

मुझे लगता है विजय चौधरी के सवाल का जवाब सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग के भाषण में निहित है और आने वाले समय में खास करके भारत में जिस तरीके के प्रतिनिधि चुनाव जीत कर आ रहे हैं क्या होगा भारतीय लोकतंत्र कर सोच कर मन सिहर जाता है इसके लिए कोई और नहीं राजनीतिक दल ही जिम्मेदार है जो सत्ता में बने रहने के लिए हर क्षण अलोकतांत्रिक निर्णय लेते रहते हैं और ऐसे ऐसे लोगों को सांसद और विधायक का टिकट देते हैं जिन्हें लोकतंत्र से कोई वास्ता नहीं है ना समझदारी है ये सब पहले जाति के नाम पर चला और अब राष्ट्रवाद के आड़ में चल रहा है गौर से सोचिए आजादी के आन्दोलन वाली पीढ़ी के जाने के बाद भारतीय लोकतंत्र राजनीतिक दल किसी दिशा में ले गये हैं कैसे लोगों को वो टिकट दे रहे हैं ।

यह तर्क कि अपराधी को जनता वोट देती है तो पार्टी मजबूरी हो जाती है ऐसे लोगों को टिकट दे सही है लेकिन ऐसे लोगों के सदन में आने से लोकतांत्रिक मूल्य कैसे स्थापित होगा ये कौन सोचेंगा बिहार में विधान परिषद का चुनाव होने वाला है पार्टियां कैसे कैसे लोगों को टिकट दे रही है ऐसे में सवाल उठना लाजमी है खुद सरकार नहीं चाहती है कि सदन चले जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस हो ।नारों और व्यक्तिगत लाभ से जुड़ी योजनाओं के सहारे कब तक लोकतंत्र के पहिया को खींच सकते हैं

युक्रेन में फंसे बिहारी छात्रों के परिजन युद्धा की आशंका को लेकर है परेशान

रुस और यूक्रेन के बीच जैसे जैसे युद्ध स्थिति बनती जा रही है यूर्केन में पढ़ाई कर रहे हजारों बिहारी छात्रों के परिजन किसी अनहोनी की आशंका से बैचेन है ।

युक्रेस से जो खबर आ रही है उसके अनुसार बिहार के करीब 800 छात्र मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए हुए हैं। युक्रेन में रह रहे बिहार के विभिन्न जिलों के रहने वाले छात्र काफी डरे-सहमे हैं। ये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी जान की रक्षा की जाए।
एयर टिकट मिलने में हो रही परेशानी

युक्रेन स्थित ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे बिहार के छात्र काफी परेशान हैं। ये छात्र अब भारत लौटना चाह रहे हैं। लेकिन इनके सामने एक परेशानी ये है कि वहां एयर टिकट मिलने में काफी दिक्कत हो रही है, जिसके कारण उनकी चिंता बढ़ती जा रही है। अब ये गुहार लगा रहे हैं कि उनकी जान की रक्षा एयरलिफ्ट कराकर करें, क्योकि यहां टिकट महंगा हो गया है।

UkraineRussiaCrisis

लगातार बढ़ रही चिंता
बिहार के पूर्णिया के रहने वाले राकिब रहमान बताते हैं कि मो. नसीम, शकिब खान, राकेश, सूरज यादव, आलोक यादव सहित कई छात्र यूक्रेन के ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में MBBS कर रहे हैं। ये सभी साथ रहते हैं। छात्रों का कहना है कि ‘वैसे शहर के अंदर किसी प्रकार की दिक्कत नहीं है। पर हालात नाजुक होते जा रहे हैं। इससे इनकी चिंता बढ़ती जा रही है। बिहार सरकार और भारत सरकार विशेष पहल कर यहां से हमें निकाले। छात्र अपील कर रहे हैं कि सरकार चाहे तो हमें एयरलिफ्ट करा सकती है।’

उधर, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का बिगुल कभी भी बज सकता है। रूस ने अपने एक लाख से ज्यादा सैनिक सीमा पर तैनात कर रखा है। सभी देशों ने अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की एडवाइजरी जारी की है।

यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार स्कूल संचालक को बिहार के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी के दिलायी थी रुम

बोध गया से यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार स्कूल संचालक के खुलासे से बिहार पुलिस में हड़कम्प मच गया है। जी हां दिल्ली स्थित सीआरपीएफ के जिस गेस्ट हाउस में मनीष रुखरियार ने लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाया था उस गेस्ट हाउस में मनीष रुखरियार के लिए बिहार के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने रुम बुक करवाया था ।

मालूम हो कि मनीष रूखैयार के खिलाफ दिल्ली के लाजपत नगर थाना में एक युवती ने इसी माह 07 फरवरी 22 को प्राथमिकी दर्ज करायी थी जिसमें युवती ने मनीष रुखरियार पर शादी का झासा देकर यौन शोषण करने का आरोप लगाया है। थाने में दर्ज कांड संख्या 167-22 की जांच के दौरान दिल्ली पुलिस ने युवती द्वारा दर्ज करायी गयी प्राथमिकी को सत्य पाया है।

जिस दिन की घटना का जिक्र युवती अपने प्राथमिकी में की है उस रात मनीष और युवती दोनों का मोबाइल लोकेसन सीआरपीएस गेस्ट हाउस ही दिखा रहा है साथ ही गेस्ट हाउस में दोनों ठहरे हैं इसका साक्ष्य भी दिल्ली पुलिस को मिला है इस कारण से मनीष के खिलाफ 376 व 328 के तहत दर्ज मामले को सत्य मानते हुए डीसीपी ने मनीष को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था।

युवती प्राथमिकी में लिखी है कि मनीष शादी डाट काम पर अपना एक प्रोफाइल डाला था। इसमें कहा था कि 10 साल पहले पत्नी से तलाक हो गया है। इसलिए शादी करना चाहते हैं।शादी डाट काॅम पर लिखा था कि मनीष को बोधगया और गया में सीबीएसई मान्यता प्राप्त स्कूल है, दो पट्रोल टंकी और कई व्यवसाय है।

करीब दो सौ करोड़ का टर्न ओवर है। इस प्रोफाइल के बाद पीड़िता ने मनीष से संपर्क किया फिर दोनों एक दूसरे से बात करने लगे इस दौरान युवती गया भी आयी थी और गया के एक होटल में कई दिनों तक ठहरी भी थी इसी दौरान मनीष उस युवती को लेकर पटना भी आया था जहां राज्य के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी से मुलाकात भी कराया था ।


तीन जनवरी को मुकेश दिल्ली पहुंचा और दोनों सीआरपीएफ के गेस्ट हाउस में तीन दिनों तक ठहरा था गेस्ट हाउस बिहार के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने बुक करवाया था युवती का कहना है कि सीआरपीएफ गेस्ट हाऊस के बाद से मनीष से सम्पर्क करने की बहुत कोशिश कि लेकिन सम्पर्क नहीं हो पा रहा था दो तीन बार बातचीत हुई भी तो मनीष डांटते हुए सभी वादे से मुकर गया ।

इस कारण से पीड़िता द्वारा दिल्ली के लाजपत नगर थाना में मनीष पर प्राथमिकी दर्ज करायी । दिल्ली पुलिस 9 फरवरी को मुकेश को उसके हंसराज स्कूल से गिरफ्तार किया है हालांकि इस दौरान भी मनीष दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के साथ अभद्र व्यवहार भी किया और देश के कई सीनियर आईपीएस अधिकारी के रिश्तेदार और दोस्त होने का रौब दिखाते हुए दिल्ली पुलिस को डराने की कोशिश किया लेकिन दिल्ली पुलिस गिरफ्तारी पर अड़ गया तो मनीष ने दिल्ली पुलिस के एक जवान पर हाथ चला दिया लेकिन दिल्ली पुलिस इसके धौस से डरा नहीं और गिरफ्तार करके दिल्ली ले गया ।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजगीर जू सफारी राज्य को किया समर्पित

राजगीर की पहाड़‍ियों पर जंगल में दिखेंगे बंगाल के बाघ और गुजरात के शेर, बंद जीप से पास जाकर कर सकेंगे दीदार जी है आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजगीर सफारी जू का उदघाटन किया इस मौके पर विभागीय मंत्री के साथ साथ कई विधायक और सांसद मौजूद थे बिहार का यह पहला इस तरह का सफारी है जहां जू को जंगल का रुप दिया गया है इसके लिए पार्क की साढ़े चार किमी लंबी है चहारदीवारी

बनायी गयी हो जो सोनागिरी की तराई, जरासंध अखाड़ा से जेठियन मार्ग तक साढे चार किलोमीटर है। वहीं मांसाहारी जू सफारी के जीव-जंतु में शामिल शेर, बाघ, भालू व तेंदूआ के लिए इन्क्लोजर यानि बड़े-बड़े घेरान में रहेगा।

23 फुट ऊंची घेरान में लोहे की जाली व फेंसिंग लगाया गया है गई, इस इंक्‍लोजर में नाइट शेल्टर यानी जानवरों के लिए विश्राम स्थल बनाए गए हैं। इसमें पेयजल, बीमार पशुओं के इलाज, टहलने, प्रजनन, साफ- सफाई तथा भोजन की व्यवस्था है। इधर, हर्वीवारस यानी शाकाहारी जू सफारी में हिरण, चीतल, काला हिरण, सांभर रखे जाने हैं। इनके लिए भी नाइट शेल्टर बनाया गया है। जू सफारी में जानवरों को डबल प्रोटेक्शन में रखा जाएगा।

बिहार में जमीन को लेकर गांव गांव में मचा है महाभारत, डांक्टर शकुनी मामा की भूमिका में

दरभंगा में जमीन विवाद को लेकर भूमाफिया ने भाई बहन को जिंदा जलाकर मारा।मोतिहारी में जमीन रजिस्ट्री कराने आये एक युवक की रजिस्ट्री ऑफिस में घूस कर गोली से छलनी कर दिया।मोतिहारी में ही कांग्रेस नेता शाश्वत गौतम के जमीन पर कब्जा करने को लेकर उनकी हत्या की साजिश रची गयी।

मोतिहारी में ही जमीन माफिया ने आरटीआई कार्यकर्ता विपिन अग्रवाल की सीओ के दफ्तर के सामने गोली से छलनी कर मार दिया ।आये दिन बिहार के अलग अलग हिस्सों से इस तरह की घटनाएं घटती रहती है।

बिहार में आज जिनके पास जमीन है वो सबसे ज्यादा असुरक्षित है गांव गांव में जमीन पर कब्जा को लेकर पुलिस और अंचल ऑफिस के मिली भगत से सिडिकेंट चल रहा है और बिहार में हो रही हत्या के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो 80 फीसदी हत्या और मारपीट की घटना जमीन के विवाद की वजह से हो रही है ।

1—बिहार में 15 वर्षो में जमीन के दाम में 20 से 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है

2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जब बिहार में सरकार बनी तो अपराध मुक्त समाज का माहौल बना ।वही बिहार के विकास को लेकर बड़ी बड़ी परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ गांव गांव में सड़क का जाल बिछने लगा और इसका प्रभाव यह हुआ कि गांव के छोटे छोटे चौक चौराहे से लेकर फोरलेन और स्टेट हाईवे और ग्रामीण सड़कों के किनारे व्यावसायिक कार्यों में काफी तेजी।

और इस वजह से रातो रात जमीन का दाम आसमान छूने लगा स्थिति यह हो गया है कि अब गांव में भी सड़क के किनारे जो जमीन है उसकी कीमत दो लाख से पांच लाख रुपया कट्ठा हो गया है। इसका असर यह हुआ कि वर्षों पहले बिहार छोड़ चुके ऐसे बिहारी जो अपने हिस्से का जमीन भाई भतीजा को खेती करने के लिए छोड़ दिये थे ऐसे लोग रातो रात जमीन देख अपने हिस्से का जमीन बेचने के जुगत में लग गये हैं ।

वही जमीन के मालिकाना हक की बात करे तो कागजात पीढ़ी दर पीढ़ी से दादा परदादा के नाम से मौखिक बटवारे में चला आ रहा है इस वजह से जमीन बेचने में परेशानी हो रही है ऐसे भी गांव गांव भू माफिया खड़ा हो गया है जो इस तरह के जमीन बेचने वाले को निशाने पर लेता है इस वजह से गांव गांव में खून खराबा बढ़ गया है।

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2–जमीन विवाद को खत्म करने का सरकारी प्रयास विफल है
जमीन को लेकर विवाद को देखते हुए नीतीश कुमार ने जमीन के खरीद बिक्री से लेकर मोटेशन (दाखिल खारिज) तक में बड़ा बदलाव किया गया है।

ऐसे जमीन मालिक जिसका जमीन पीढ़ी दर पीढ़ी से एक ही नाम से चला आ रहा है उसके लिए राज्य सरकार ने एक रुपया में रजिस्ट्री का नियमावली बनाया लेकिन ब्यूरोक्रेसी ने सरकार के फैसले को जमीन पर लागू नहीं होने दिया जिस वजह से मामला पेचीदा होता जा रहा है वही कोर्ट का हाल तो और भी बूरा है जिसका जमीन है अगर धोखे से किसी ने लिखा कर कब्जा कर लिया तो फिर उस जमीन को हासिल करने में कितना जमीन बेचना पड़ेगा कह नहीं सकते ।

3–बिहार में जमीन के खेल में डॉक्टर शामिल है
जी है बिहार में जमीन बिक्री को लेकर जो खेल चल रहा है उस खेल के तह में जायेंगे तो पता चलेगा कि अधिकांश मामले में डॉक्टर शामिल है दरभंगा में भी जमीन के लिए जिस तरीके से भाई बहन को जिंदा जला दिया गया है उस मामले में भी हकीकत यही है कि जो जमीन खरीदा है उसके पीछे डॉक्टर खड़ा है डॉक्टर ने ही पैसा लगाया है सामने वाले का सिर्फ नाम है पूरे बिहार में आप अपने आस पास जमीन खरीद बिक्री को लेकर जो खेल चल रहा है उप गौर करिए बड़े खरीदारों में 80 फीसदी डॉक्टर है ।

पटना से लेकर बिहार के अनुमंडल स्तर के शहर में आप चले जाये बड़ा मकान, बड़ा मार्केट कम्पलेक्स जमीन का बड़ा प्लोट ,बड़ा स्कूल ,बड़ा होटल पता कीजिए किसका है तो पता चलेगा डॉक्टर का है इस समय बिहार में काले धन का सबसे बड़ा निवेशक डॉक्टर है। दरभंगा से समस्तीपुर और दरभंगा से मुजफ्फरपुर चले जाये सड़क किनारे बीस बीस एकड़ में आपको बोन्ड्री देखने को मिलेगा सारे के सारे जमीन का मालिक डाँक्टर है ।
जमीन को लेकर जहां कही भी विवाद हो रहा है फसके पीछे कही ना कही आपको डाँक्टर मिलेगा।
यू कहे तो आज बिहार का सबसे बड़ा भूमाफिया कोई है तो डॉक्टर है।

4—जमीन विवाद के समाधान पर नये सिरे से काम करने की जरुरत है
बिहार में इन दिनों सर्वे का काम चल रहा है ,रजिस्टर टू को डिजिटल बनाया गया है थोड़ी सावधानी बरते तो आने वाले पीढ़ी को बिहार में जमीन को लेकर जारी खेल से राहत पहुंचा सकते हैं ।

थोड़ा समय देने कि जरूरत है और पीढ़ी दर पीढ़ी से जो जमीन दादा परदादा के नाम से चला आ रहा है उस पर आपस में बैठकर सुलझाने की कोशिश करिए ।ऐसे कानून बने है जो जमीन के शांतिपूर्ण बंटवारे और बिना खर्च के आपको मदद पहुंचा सकता है वक्त जो लगे मिल बैठ कर समाधान निकालने कि कोशिश करिए नहीं तो बिहार में आने वाले समय में घर घर में महाभारत होना तय है ।

आरोग्य दिवस सत्रों पर लोगों को मिलेगी टेलीमेडिसीन से चिकित्सकीय सुविधाः मंगल पांडेय

पटना। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि राज्य के ग्रामीण एवं दूर-दराज क्षेत्रों के व्यक्तियों को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस हेतु राज्य में ई.संजीवनी के माध्यम से टेलीमेडिसीन से चिकित्सकीय परामर्श प्रदान किया जा रहा है। अब 18 फरवरी से ई-संजीवनी के माध्यम से सभी आरोग्य सत्र दिवसों (विलेज हेल्थ सेनिटेशन एंड न्यूट्रीशन डे) पर पूर्व से दिए जाने वाले सेवाओं के अतिरिक्त चिकित्सकीय परामर्श की सुविधा उपलब्ध होगी।

श्री पांडेय ने कहा कि इसके लिए सभी आरोग्य दिवस सत्रों को चिन्हित कर जिला स्तरीय हब के साथ संबद्ध किया जा रहा है। स्पोक के रूप में यह सेवा प्रत्येक आरोग्य दिवस के सत्रों अर्थात बुधवार और शुक्रवार को दिए जाएगें, जो जिलास्तरीय हब से संबद्ध होंगे। आरोग्य दिवस सत्रों पर चिकित्सकीय परामर्श सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक लिया जा सकेगा। इस कार्यक्रम के संचालन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें प्रखंड स्तर पर टेलीमेडिसीन हेतु चिह्नित चिकित्सा पदाधिकारी, एएनएम, जीएनएम, सीएचओ, बीएम एंड ई, बीएचएम, बीसीएम और हेल्थ एडुकेटर्स को प्रशिक्षित प्रशिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

श्री पांडेय ने बताया कि टेलीमेडिसीन के माध्यम से उपचारित मरीजों को चिकित्सकीय परामर्श के अनुरूप निशुल्क दवा उपलब्ध करायी जाएगी। ई-संजीवनी के तहत 37 तरह की जरूरत की दवा उपलब्ध है। यह दवा आरोग्य सत्र दिवसों पर नियमित टीकाकरण के अंतर्गत कार्यरत अल्टरनेट वैक्सीन डिलीवरी के द्वारा भेजा जाएगा। वहीं इस सेवा के शुभारंभ के लिए व्यापक रूप से प्रचार .प्रसार भी होगा। दूसरी ओर आरोग्य दिवस सत्रों पर टेलीकाउंसलिंग के दौरान उच्च जोखिम वाले केसेस जैसे गर्भवती महिलाएं एवं अतिकुपोषित बच्चों इत्यादि के लिए उपर्युक्त रेफरल व्यवस्था कराया जाना है। आवश्यकतानुसार पैथेलॉजिकल सुविधाएं तथा एम्बुलेंस की सुविधा भी उपलब्ध करायी जाएगी।

सीबीआई की विशेष न्यायलय ने चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले में लालू प्रसाद सहित 75 आरोपी को दोषी ठहराया

रांची. राजद सुप्रीमो लालू यादव को सीबीआई की विशेष अदालत ने आज चारा घोटाले के सबसे बड़े मामले डोरंडा कोषागार से 139.5 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के मामले में लालू को दोषी करार दिया गया है।मंगलवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने इस मामले में लालू प्रसाद सहित 99 आरोपी में 75 आरोपी को दोषी करार दिया गया और 24 को कोर्ट ने बरी कर दिया है ।सजा पर बिन्दूवार 18 फरवरी को फैसला आयेंगा।

चारा घोटाले से जुड़ा यह पांचवा मामला है. चारा घोटाले में लालू यादव वर्ष 1997 से ही जेल का चक्कर लगा रहे हैं. 30 जुलाई 1997 को पहली बार लालू प्रसाद 135 दिन जेल में रहे. 28 अक्टूबर, 1998 को दूसरी बार 73 दिन जेल में रहे. 5 अप्रैल 2000 तीसरी बार 11 दिन जेल रहे. 28 नवंबर 2000 को आय से अधिक संपत्ति मामले में एक दिन जेल में रहे. 3 अक्टूबर 2013 चारा घोटाले के दूसरे मामले दोषी करार दिए जाने पर 70 दिन जेल में कटा. 23 दिसंबर 2017 को चारा घोटाले से तीसरे मामले में सजा हुई. 24मार्च 2018 को दुमका कोषागार से जुड़े चौथे मामले में सजा हुई, जिसके बाद करीब तीन साल बाद पिछले साल अप्रैल में जेल से बाहर आए.

लोहियावाद जातिवादी राजनीति के कारण संकट में है

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी यूपी चुनाव के सहारे ही सही परिवारवाद पर बड़ा हमला बोला है और कहा कि राजनीति में परिवारवाद एक बड़ा खतरा है और यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है। इससे राजनीति में आने वाली प्रतिभा को गंभीर रूप से समझौता करना पड़ता है।

पीएम मोदी राम मनहोर लोहिया और जार्ज फर्नांडीस के नाम की चर्चा करते हुए कहा था कि क्या उन्होंने कभी अपने परिवारों पर कभी जोर नहीं दिया और इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को समाजवादी नेता कहा ।

कल नीतीश कुमार जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। इसी दौरान पत्रकारों ने समाजवाद को लेकर पीएम मोदी की टिप्पणी पर सवाल किया इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी तो कृपा है कि उन्होंने यह बात बोल दी।

हम सब लोग लोहिया जी के ही शिष्य हैं। समाजवाद का निर्माण उन्होंने ही किया और उसे चलाया। हमलोग छात्र जीवन से समाजवाद में हैं। समाजवाद से उसी समय से प्रभावित हैं। राजनीति में परिवारवाद से समाजवाद को खतरा उत्पन्न हो गया है आगे सीएम ने कहा कि कुछ लोगों को समाजवाद से मतलब नहीं है, परिवारवाद से मतलब है और इसका असर समाजवादी विचारधारा पर पड़ रहा है ।

बात बिहार की करे तो लोहियावाद के सहारे लालू और नीतीश कुमार 30 वर्षो से बिहार में शासन कर रहे हैं ।बात लालू के 15 वर्षो के शासन काल की करे तो साधु और सुभाष के कारण सरकार की छवि को जितना नुकसान नहीं पहुंचा उससे कही अधिक नुकसान यादववाद और मुस्लिम तुष्टीकरण से हुआ और इसका असर राज्य के विकास और कानून व्यवस्था पर पड़ा और उसका खामियाजा आज भी लालू परिवार को उठाना पड़ रहा है।2021 के विधानसभा चुनाव में सत्ता के करीब आते आते लालू परिवार इसलिए फिसल गया कि अंतिम चरण में जंगल राज को इस तरह से याद दिलाया गया कि नीतीश कुमार के कुशासन को लोग भूल गये।

यूपी में भी अखिलेश के सत्ता में वापसी को लेकर जो संशय दिख रहा है उसकी वजह भी मुलायम और अखिलेश के शासनकाल का यादववाद और मुस्लिम तुष्टीकरण है जिसके कारण राज्य का कानून व्यवस्था बेपटरी हुआ और इसी को साधने के लिए मोदी कानून व्यवस्था और परिवारवाद के सहारे अखिलेश पर हमला बोल रहे हैं ।

वही बात नीतीश के शासनकाल की करे तो भले ही नीतीश के परिवार के लोग शासन व्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिख रहा है, लेकिन याद करिए 2005 से हाल के दिनों तक पटना का डीएम कुर्मी ही होता था, देश स्तर पर अलग अलग राज्यों में जितने भी कुर्मी अधिकारी थे वो बिहार बुलाया गया और उन्हें अच्छी पोस्टिंग दी गयी ।

इसी तरह नीतीश के शासनकाल में जीतनी भी बहाली हुई आकड़ा बताता है कि नालंदा का प्रतिनिधुत्व हर बहाली में राज्य के अन्य जिलों की तुलना में ज्यादा रहा है इसी तरह नीतीश कुमार के 15 वर्षो के शासन काल में राज्य सरकार में जितने भी महत्वपूर्ण पद हैं वहां कुर्मी का प्रमुखता दी गयी है ।इतना ही नहीं हर सवर्ग में कुर्मी अधिकारियों को प्राइम पोस्टिंग मिली है किसी भी जिले में चले जाये अगर कुर्मी दरोगा या इंस्पेक्टर है देख लीजिए उसकी पोस्टिंग कहां है।

ये अलग बात है कि कुर्मी अधिकारी यादव अधिकारी की तरह बदमिजाज नहीं है बल्कि मिजाज से सरल और सहज हैं इसलिए नीतीश कुमार के जाति आधारित पोस्टिंग को लेकर ज्यादा उबाल नहीं है लेकिन इसका असर गवर्नेंस पर जरुर पड़ा है और नीतीश कुमार के सुशासन के दावे अब हस्यास्पद लगने लगा है।

याद करिए 28 अगस्त 2021 की सुबह मुजफ्फरपुर-पटना मार्ग एनएच-77 पर कुढऩी थाना के फकुली ओपी के निकट वाहन जांच के दौरान ग्रामीण कार्य विभाग, दरभंगा के तत्कालीन प्रभारी अधीक्षण अभियंता (कार्यपालक अभियंता) अनिल कुमार के पास के 67 लाख रुपया बरामद हुआ था सत्ता की हनक देखिए थाने से ही उन्हें जमानत दे दी गयी।

पिछले विधानसभा सत्र के दौरान सत्ता पक्ष के विधायक ही सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस के वादे पर सवाल खड़े करते हुए जमकर हंगामा किया था फिर भी सरकारी तंत्र उसे बचाने में लगी रही लेकिन कल देर शाम मुजफ्फरपुर पुलिस अनिल कुमार को गिरफ्तार कर लिया। कहा ये जा रहा है कि 25 फरवरी से जो विधानसभा सत्र शुरु हो रहा है उसमें एक बार फिर यह मुद्दा उठने वाला था क्यों कि विधानसभा द्वारा जो जांच कमिटी बनायी गयी थी उसको विभाग सहयोग नहीं कर रही थी और इसको लेकर कमिटी के सदस्य काफी आक्रोशित थे ।

ये उदाहरण है वैसे भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश कुमार के जीरो टाँलरेंस के वादे की पड़ताल करेंगे तो 2005 से 2022 तक भ्रष्टाचार को लेकर निगरानी,आर्थिक अपराध इकाई और विशेष निगरानी विभाग के अधिकारियों पर जो कार्रवाई हुई है उसकी सूची पर गौर करेंगे तो उसमें सबसे कम कुर्मी जाति से आते हैं।

आसीपी सिंह क्या है नीतीश की पार्टी में नम्बर दो की हैसियत रखते हैं और आज डीएम एसपी से लेकर डीएसपी और एसडीओ की पोसिंटग में पैसे उगाही का जो आरोप लगता है निशाने में आरसीपी सिंह है और इससे नीतीश की छवि धुमिल हुई ।चर्या सरेआम है गया के पूर्व डीएम अभिषेक सिंह पर आरसीपी का हाथ था और जब एक्शन की बात आयी तो रातो रात उसे त्रिपुरा विरमित करवा दिया ।

इसलिए लोहिया का समाजवाद परिवाद के कारण संकट में नहीं है जातिवाद के कारण संकट में है ।
लोहिया सर्वण थे कोई पिछड़ी जाति से नहीं आते थे मात्र 23 साल की उम्र में जर्मनी से पीएचडी करने के बाद वे आज़ादी की जंग में कूद गये थे। 60 के दशक में लोहिया ने कांग्रेस और ‘हिंदुस्तानी वामपंथ’ के ब्राह्मणवादी चरित्र पर सवाल करते हुए पहली दफा पिछड़ों के आरक्षण की मांग करते हुए नारा दिया था ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ’ वो तो मिल गया लेकिन इसके पीछे जो लोहिया का विचार था वो विचार शासन में आते ही धीरे धीरे खत्म हो गया आज लोहिवाद पूरी तरह से जातिवाद में बदल गया है ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के शासनकाल में जातिवाद नहीं था कांग्रेस भी सत्ता और शासन में बने रहने के लिए जमकर जातिवाद किया।

बीजेपी में परिवारवाद नहीं है राजनाथ सिंह से लेकर बीजेपी के जिला स्तर तक पहुंच जाये ढ़ेर सारे ऐसे नेता मिल जायेंगे जो परिवारवाद की वजह से पार्टी में बने हुए हैं वजह परिवार नहीं है वजह जातिगत पहचान है जो परिवारवाद से ज्यादा मजबूत है और इससे राजनीति में आने वाली प्रतिभा को गंभीर रूप से समझौता करना पड़ रहा है।

घर बैठे अपने जमीन का हाल देख सकते हैं

एनआरआई बिहारी इन जमिनी बातें

अपनी जमीन और अपनी माटी से लगाव क्या होता है यह उन लोगों से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है जो अपनी धरती से हजारों किमी दूर परदेष में रह रहे हैं। रोजी-रोटी और नाम कमाने के लिए बाहर निकले और विदेषों में अपने दम पर कामयाबी की नित नई दास्तान लिख रहे बिहारी अप्रवासी किस तरह अपने पुरखों की धरोहर को बचाकर रखने के लिए चिंतित है यह जमीनी बातें सीरीज- 5 में देखने को मिली।

जमीनी बातें सीरीज- 5 का आयोजन एन0आर0आई0 बिहारियों की सुविधा के लिए बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के बिहार फाउंडेषन के साथ मिलकर किया गया। इसमें अमेरिका के विभिन्न प्रांतों में रह रहे बिहार और झारखंड के लोगों के एक दर्जन से अधिक संगठनों से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया। बिहार फाउंडेषन के अलावा, बजाना, बजाव, बुजु और उत्तरी अमेरिका के मैथिली मंच ने इसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लिया।

2 घंटे तक चले इस कार्यक्रम में 125 से अधिक एन0आर0आई0 बिहारियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में भाग लेने को लेकर अप्रवासियों में इस कदर उत्साह था कि क्षमता से अधिक प्रतिभागी होने की वजह से सिर्फ 75 लोग ही एक्टिव रूप से जुड़ पाए जबकि 50 से अधिक अप्रवासियों को पैसिव रूप से जोड़ना पड़ा। इस कार्यक्रम में अमेरिका के विभिन्न शहरों से अप्रवासियों ने हिस्सा लिया।

कार्यक्रम को वर्चुअली आयोजित करने की जिम्मेदारी एन0आई0सी को दी गई थी। राज्य सूचना विज्ञान पदाधिकारी श्री राजेष कुमार सिंह के नेतृत्व में एन0आई0सी0 की टीम ने स्वदेषी एप भारत वी0सी0 के जरिए शास्त्रीनगर स्थित सर्वे प्रषिक्षण संस्थान में बैठे अधिकारियों को अमेरिकी अतिथियों को जोड़ा। अपर मुख्य सचिव श्री विवेक कुमार सिंह मसूरी से और सर्वे निदेषक श्री जय सिंह चंडीगढ़ से इस कार्यक्रम में जुड़े हुए थे।

कार्यक्रम का आयोजन रात 10 बजे शुरू हुआ जो रात 12 बजे तक चला। कार्यक्रम की शुरूआत बिहार फाउंडेषन के ईस्ट कोस्ट चैप्टर के चेयरमैन और दरभंगा के मूल निवासी श्री आलोक कुमार के स्वागत भाषण से हुआ। श्री आलोक कुमार ने राजस्व विभाग द्वारा हाल के वर्षों में शुरू की गई ऑनलाइन सेवाओं की तारीफ की और इसके लिए राज्य सरकार और विभाग को धन्यवाद दिया।

बिहार में भूमि राजस्व प्रषासन के ऐतिहासिक पहलुओं खासकर स्थायी बंदोबस्त के संदर्भ पर अपर मुख्य सचिव श्री विवेक कुमार सिंह ने जानकारी दी। बिहार में चल रहे विषेष सर्वेक्षण के मुख्य-मुख्य बातों की जानकारी निदेषक, श्री जय सिंह द्वारा दी गई। ऑनलाइन सेवाओं के बारे में आई0टी0 मैनेजर श्री आनंद शंकर ने संक्षेप में बताया। आखिर में ऑनलाइन सेवाओं और सर्वे पर बनी शॉर्ट डॉक्यूमेंटरी को दिखाया गया।

इंटरएक्षन सेषन में अप्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से म्युटेषन, लगान भुगतान, परिमार्जन, सीलिंग, लगान निर्धारण से संबंधित सवाल पूछे गए। कईयों को अपनी जमीन का अता-पता लेना था। सभी का सवाल लेना संभव नहीं था इसलिए आयोजकों द्वारा सीमित अप्रवासियों को ही अपनी बात रखने का मौका दिया गया। कार्यक्रम में 12 अप्रवासियों ने खुलकर अपनी समस्या और सुझाव रखे।

पटना के पोस्टल पार्क इलाके से जाकर अमेरिका के न्यू जर्सी में अपनी आई0टी0 कंपनी चलाने वाले श्री राजेष कुमार का सुझाव था कि ऑनलाइन भुगतान के लिए दिए गए निदेषों में हर जगह हिंदी और इंग्लिष का विकल्प नहीं दिया गया है, खासकर ड्रॉप डाउन में। कहीं हिंदी है तो कहीं अंग्रजी। जिससे उनलोगों को जिन्हेें हिंदी नहीं आती है, लगान भुगतान में दिक्कत होती है।

गोपालगंज के कुचायकोट के रहनेवाले और ऑस्टन शहर निवासी श्री विनय दुबे ने बताया कि म्युटेषन के लिए ऑनलाईन अप्लाई किया था लेकिन अंचल अधिकारी ने रिजेक्ट कर दिया है। गया के अतरी अंचल के रहनेवाले संजीव सिंह की समस्या थी कि दादा ने 1930 में 48 बीघा जमीन खरीदी थी जिसपर लोगों ने कब्जा कर लिया है।

जहानाबाद के काको थाना के श्री अनिल कुमार शर्मा की षिकायत थी कि पुष्तैनी बेलगानी जमीन है जो लगान निर्धारण के लिए भूमि सुधार उपसमाहर्ता के लिए पिछले 2 साल से लंबित है। सीवान निवासी सुनीत कुमार की षिकायत है कि चचेरे दादाजी के नाम से संयुक्त संपत्ति है, अपने नाम पर कैसे चढ़वाया जाए। मधेपुरा के निवासी हर्ष सिंह को आलमनगर के अंचल अधिकारी से षिकायत थी जो उनकी जमीन से स्थानीय लोगों के कब्जे का खाली नहीं करा रहे हैं।

अररिया की मूल निवासी अपराजिता झा को फारबिसगंज अंचल से षिकायत थी कि जमीन खरीदने के समय सब ठीक था, दाखिल-खारिज भी हो गया, अब रसीद नहीं कट रहा है, बताया जा रहा है कि जमीन लालकार्ड का है। विक्रम मिश्रा की समस्या यह थी कि जमाबंदी को ऑनलाइन कराने के लिए पिछले साल ही परिमार्जन में आवेदन लिए थे जो आजतक नहीं हुई है।
बैठक में डेनबर्ग से डॉ अजय झा, प्रख्यात कॉर्डियोलाजिस्ट डॉ अविनाष गुप्ता, न्यू हैंपषायर से मनीष कुमार, नार्थ कैरोलीना से संजय राय, टेक्सॉस से साकेत कुमार, बिहार फाउंडेषन के वेस्ट कोस्ट चैप्टर के अध्यक्ष श्री रंजीत कुमार समेत बड़ी संख्या में अप्रवासियों ने हिस्सा लिया।

जिन लोगों को अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल पाया उन्हें सलाह दी गई कि विभाग के ई-मेल पर अपनी समस्या को विस्तार से लिखकर भेजें ताकि विभाग उनको संबंधित अधिकारियों को भेजकर उनका निष्पादन करा सके।

इससे पहले कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अतिथियों का निबंधन कराया गया था। 4 सौ से अधिक अप्रवासियों ने निबंधन कराया था। कुछ लोगों ने अपनी समस्या भी भेजी जिसे सुलझा दिया गया। मुजफ्फरपुर के मुषहरी अंचल के मूल निवासी रूस्तम अली ने दाखिल-खारिज के लिए सितंबर, 21 को आवेदन दिया था जो कर्मचारी के स्तर पर लंबित था। अंचल अधिकारी ने पूछने पर बताया कि कर्मचारी रिपोर्ट मिल गया है, नोटिस पीरियड में है, 25 फरवरी को समय पूरा होते ही वाद का निष्पादन कर दिया जाएगा।

कार्यक्रम के आखिर में अपर मुख्य सचिव ने कहा कि भूमि विवाद में दो पक्ष होते हैं। एक पक्ष आप हैं, लेकिन दूसरे का पक्ष सुने बगैर निर्णय नहीं लिया जा सकता है। अपनी जमीन और अपनी संपत्ति के संरक्षण की प्राथमिक जिम्मेदारी आपकी है। तकनीक की मदद से इस काम में सहूलियत हो रही है। इसका फायदा उठाएं।

बिहार फाउंडेषन ने गुजारिष की इस तरह के कार्यक्रम भविष्य में भी आयोजित किए जाएं। ताकि और लोगों की समस्या भी रखी जा सके। सहमति बनी कि अप्रवासियों की भूमि संबंधी समस्या को लेकर जमीनी बातें की श्रृंखला आगे भी आयोजित की जाएगी। आनेवाले अप्रैल/मई में अगली श्रृंखला का आयोजन किया जा सकता है।

बिहार फाउंडेषन अमेरिका में कार्यरत बिहारियों की ऐसा संगठन है जो सरकार के माध्यम से वहां के लोगों की समस्या का समाधान करता है। अध्यक्ष, आलोक कुमार ने बताया कि बिहार के किसी विभाग से बात कर अपने लोगों की समस्या का समाधान निकालने का पहला प्रयास है। जल्द ही फाउंडेषन और विभागों से बात करके अमेरिकी बिहारियों की समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करेगा।

अमेरिका में रह रहे बिहारी अप्रवासियों ने षनिवार की देर रात राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अधिकारियों से संवाद किया। इसमें अमेरिका में रह रहे बिहार और झारखंड के वैसे लोगों ने हिस्सा लिया जिनकी यहां जमीन है और जिनको अपनी जमीन के बारे में जानकारी हासिल करनी है। कुछ लोगों ने अपने बिहार दौरे में जमीन से संबंधित समस्या के समाधान के लिए आवेदन दिया था, उन्हें अपनी समस्या का समाधान जानना था।

बैठक में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री विवेक कुमार सिंह, सर्वे निदेषक श्री जय सिंह, भू अर्जन निदेषक श्री सुषील कुमार, चकबंदी के संयुक्त निदेषक श्री नवल किषोर, संयुक्त सचिव कंचन कपूर और श्री चंद्रषेखर प्रसाद विद्यार्थी समेत विभाग के सभी अधिकारी और तकनीकी शाखा के कर्मी उपस्थित थे। इस वर्चुअल बैठक में कोई परेषानी नहीं हो इसके लिए एन0आई0सी0 की पूरी टीम बैठक में उपस्थित थी।

प्रेम एक सुखद अहसास है

प्रेम
एक सुखद अहसास, पर
जिस तक पहुँचने के लिए
पीड़ा एवं वेदना की घाटियों से पड़ता है गुजरना;
फिर भी मुमकिन है
कि यात्रा अधूरी रह जाए,
जिसके अधूरेपन में ही है
उसकी पराकाष्ठा,
उसका उत्कर्ष।

प्रेम नहीं है परीक्षा;
प्रेम है
सम्पूर्ण आनत समर्पण,
सन्देह से परे।

प्रेम नहीं है
पाने का नाम,
प्रेम है
सब कुछ की तथता,
और सब कुछ की तथता का
सम्पूर्ण समर्पण,
उसे दे देने का नाम।

प्रेम है
वेदना की अनुभूति,
उस अनुभूति को भी बार-बार जीने की चाह,
और उन अनुभूतियों को बार-बार जीते हुए
सुख एवं संतुष्टि का अहसास।

प्रेम नहीं है शरीर की चाह,
प्रेम नहीं है उन्नत उरोजों का आकर्षण, और
प्रेम नहीं है
योनि की गहराइयों को मापने वाली कामजन्य वासना!

प्रेम है मस्तक पर चुम्बन,
हाँ, निर्द्वन्द्व, वरद, दीर्घ चुम्बन
जो हमें आश्वस्त करता है!

प्रेम है उरोजों की थाप,
जो बहा ले जाती है हमें
माँ की थपकियों की तरह,
वर्तमान के उस विषम ताप से कहीं दूर
उस दुनिया की ओर,
जिसमें हम विचरण करना चाहते हैं,
जिसमें हम खोना चाहते हैं,
जिसमें हम समा जाना चाहते हैं।

प्रेम है
अपनी सुध-बुध को खोना,
प्रेम है
मुश्किल से मिलने वाला खिलौना।

प्रेम है
खुद को परखना,
प्रेम है
खुद को सिरजना।

प्रेम है
म्यान की तलवार,
प्रेम है
अवलम्ब की पुकार।

प्रेम है
आश्रय की तलाश, और
प्रेम है
आश्रय बन जाने की चाह!

प्रेम है
आँखों के रास्ते दिल में उतर जाना,
प्रेम है
खुरदरे हाथों को सहलाना।

प्रेम है
नि:शब्द होंठों का कम्पन,
प्रेम है
अस्तित्व का विसर्जन।

प्रेम है
असीम में विलीन होने की चाह,
प्रेम है
सामने वाले की परवाह!

जब आँखें बोलने लगतीं,
तो प्रेम है;
जब नज़रें झुकने लगतीं,
तो प्रेम है।

प्रेम है
शून्य में खो जाना,
प्रेम है
आहों में रो जाना।

प्रेम है
आकर्षण में खिंचता चला जाना,
प्रेम है
बँधता चला जाना।

जो बाँध ले
वो प्रेम है,
जो मुक्त कर दे,
वो प्रेम है।

प्रेम है
अनन्त में लीन हो जाना,
प्रेम है
भावों, अनुभूतियों और शब्दों में लीयमान हो जाना;
प्रेम है
नि:शब्द समर्पण,
प्रेम है
नि:शर्त समर्पण!

निःशब्द हो जाना ही
प्रेम है,
निर्वाक हो जाना ही
प्रेम है।

प्रेम है
‘प्रेम’ का मान,
प्रेम है
प्रेमिका का सम्मान!

अगर ऐसा नहीं, तो
प्रेम अधूरा है।

प्रेम #Prem

पुलवामा अटैक का मुख्य आरोपी अभी पकड़ से बाहर है

आज 14 फरवरी है प्यार को पाने का दिन वो प्यार जिसमें घृणा की कोई जगह नहीं है और इंसान अपने प्यार को पाने के लिए सब कुछ दाव पर लगा देता है । वही दूसरी और आज पुलवामा अटैक की तीसरी पुण्यतिथि भी है जो जताता है कि इंसान किस हद तक पागल हो गया है धर्म के नाम पर ,कौम के नाम ,और छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर।

कल से सोशल मीडिया पर  एक मीम चल रहा है  सेना की वर्दी में खड़ा एक नौजवान वैलेंटाइन डे के मौके पर गिफ्ट खरीद रही लड़कियों से पूछ रहा है आज क्या है लड़की कह रही है वैलेंटाइन डे, सैनिक उदास हो जाता है बहना याद करो आज क्या हुआ था ,इस मीम के सहारे क्या याद दिलाना चाह रहे हैं यही ना कि आज हमारे  40 सपूत शहीद हो गये लेकिन अच्छा होता कि आप यह मीम बनाते कि पुलवामा अटैक  के पीछे कौन है , किसने रची थी ये साजिश, कहां से आया था आरडीएक्स अगर मास्टरमाइंड मौलाना मसूद अजहर  ही था तो पुलवामा अटैक के तीन वर्ष हो गये मौलाना मसूद अजहर को इसकी सजा मिले इसके लिए तीन वर्ष के दौरान क्या कार्रवाई हुई है जो कौम सवाल करना करना छोड़ देता है उस कौम के होने का कोई मतलब नहीं है ।

 आज भेल ही सुबह से हमारे उन 40 शहीद जवानों के मंजार पर आसू बहाने लोग पहुंच रहे हैं लेकिन सच्चाई यही है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पुलवामा आतंकी अटैक केस में जो 13,500 पन्नों का जो चार्जशीट दायर किया गया है वो सिर्फ कोरी कहानी है ,उस पन्ने में अटैक से जुड़ी कई सवालों का जवाब नहीं है मसलन इतनी बड़ी साजिश के पीछे देश में कौन बैठा हुआ था जम्मू से जब हमारे जवान का काफिला श्रीनगर के लिए चला तो पल पल की जानकारी आतंकी को कौन मुहैया करा रहा था ,छोटे मोटे दुकान चलाने वाले ,कार मिस्त्री देहारी का काम करने वाला इतनी बड़ी साजिश को अंजाम कैसे दे सकता है ।

आरडीएक्स कहां से आया, गाड़ियों के काफिला को सुरक्षित ले जाने को लेकर जो रणनीति बनायी गयी उस रणनीति में कहां चूक हुई और फिर इतनी बड़ी साजिश बिना विभीषण  के सम्भव है क्या। 

ऐसे कई सवाल है इस मामले एनआईए ने 19 आरोपी को बनाया है इनमें से 6 आतंकियों की मौत हो चुकी है इस आतंकी हमले को आदिल अहमद डार नाम के आत्मघाती आतंकी ने अंजाम दिया था. जो मारा गया था. आदिल के साथ मिलकर हमले के लिए आईईडी बनाने वाला उमर फारूक भी मारा गया है

1—-सात  पाकिस्तानी को भी आरोपी बनाया गया है

जैश-ए मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को एनआईए ने अपनी चार्जशीट में सबसे पहला आरोपी बनाया है. मसूद के अलावा  उसके भाई अब्दुल राउफ और मौलाना अम्मार को भी आरोपी बनाया गया है. मौलाना अम्मार बालाकोट में जैश के आतंकियों को ट्रेनिंग देता है,इनके अलावा इस्माइल, उमर फारूक, कामरान अली और कारी यासिर के नाम भी चार्जशीट में हैं. ये चारों भी पाकिस्तानी हैं. इनमें से उमर, यासिर और कामरान  मारे जा चुके हैं।

12 कश्मीरी हैं. कश्मीरी आतंकियों में आदिल डार, सज्जाद अहमद भट्ट और मुदस्सिर अहमद खान मारे जा चुके हैं.

 शाकिर ने हमले के लिए कार उपलब्ध कराई थी, साथ ही विस्फोटक, आईईडी भी उपलब्ध कराया था. अब्बास राथर ने ऑनलाइन शॉपिंग के जरिए हमले में मदद की थी बस इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने वालो की यही सूची है घटना के पीछे जो भी वजह हो सकती है वह सब पाकिस्तान में बैठे मसूद अजहर पर थोप दिया गया है मसलन आरडीएक्स मसूद ने उपलब्ध कराया ,ट्रेनिंग मसूद ने ही करवाया ।