स्वास्तिक शुभ चिह्न हमारी हजारों वर्ष पुरानी वैदिक सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा है, इसलिए इस पर राजनीति करना अनावश्यक और दुर्भाग्यपूर्ण है।
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ देश के बड़े वर्ग की आस्था, परम्परा और प्रतीक चिह्न से अनादरपूर्वक दूरी बनाना नहीं होता।
हम जब विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलित कर या नारियल फोड़ कर भी करते हैं, तब देश की सांस्कृतिक परम्परा का ही पालन करते हैं, लेकिन फीता काटने की रवायत बंद नहीं की गई है।
बिहार विधानसभा के स्मृति चिह्न में अशोक चक्र के साथ स्वास्तिक चिह्न भी रहे, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
विधानसभा के आधिकारिक लेटरहेड पर भी स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जिनके पास जनहित के मुद्दे नहीं हैं, वे कभी वंदेमातरम् गायन का विरोध करते हैं तो कभी स्वास्तिक चिन्ह का विरोध करने लगते हैं।
इनलोगों को यह भी नहीं मालूम है कि भारत का स्वास्तिक चिन्ह हिटलर के चिन्ह से बिल्कुल भिन्न है।
सदियों से भारत में शुभ अवसरों पर स्वास्तिक चिह्न बनाये जाते रहे हैं, लेकिन जिनकी समझ अपने मनीषियों के ग्रंथों की उपेक्षा और भारत-विरोधी लेखकों की चंद किताबें पढ़ाने से बनी हो, केवल वे ही स्वास्तिक से दुराग्रह प्रकट कर सकते हैं।