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हाईकोर्ट के फैसले पर आक्रामक मूड में बीजेपी, जहानाबाद में सीएम और डिप्टी सीएम का फूंका पुतला

आज जहानाबाद में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राज्यव्यापी आंदोलन के तहत अस्पताल मोड़ चौराहा पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव का पुतला फूंका।

बीजेपी के लोगों का कहना है कि सीएम नीतीश कुमार ने पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को अपने वोट बैंक के रूप में उपयोग करने के चक्कर में बिहार में नगर निकाय के चुनाव को खत्म करवा दिया।

जिस तरह से बिना किसी प्रक्रिया पूरा किए हुए सरकार चुनाव में गई। इससे आम लोगों को काफी परेशानी झेलना पड़ा। ऐसे में जब कोर्ट ने इस पर रोक लगा दिया, तो इसके लिए सीधे बिहार सरकार जिम्मेदार है।

बीजेपी जिला अध्यक्ष ने यह मांग की है कि उम्मीदवारों के जो खर्च हुए हैं उन्हें सीएम नीतीश कुमार के द्वारा दिया जाना चाहिए।

2017 में भारतीय जनता पार्टी के साथ जाना गलती थी: नीतीश कुमार

04 सितंबर 2022। आज नेशनल काउंसिल की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने संबोधित करते हुए इस बात को स्वीकार किया कि 2017 में भारतीय जनता पार्टी के साथ जाना गलती थी।

nitish kumar

हमारे भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने से कई हमारे लोग थे वो अलग हो गए अब हम फिर वापस आ गए हैं तो सभी लोगों ने हमारे फैसले को सराहा है।

स्वास्तिक हमारी संस्कृति का हिस्सा, विवाद खड़ा करना अनावश्यक: सुशील कुमार मोदी

स्वास्तिक शुभ चिह्न हमारी हजारों वर्ष पुरानी वैदिक सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा है, इसलिए इस पर राजनीति करना अनावश्यक और दुर्भाग्यपूर्ण है।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ देश के बड़े वर्ग की आस्था, परम्परा और प्रतीक चिह्न से अनादरपूर्वक दूरी बनाना नहीं होता।

हम जब विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलित कर या नारियल फोड़ कर भी करते हैं, तब देश की सांस्कृतिक परम्परा का ही पालन करते हैं, लेकिन फीता काटने की रवायत बंद नहीं की गई है।

बिहार विधानसभा के स्मृति चिह्न में अशोक चक्र के साथ स्वास्तिक चिह्न भी रहे, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
विधानसभा के आधिकारिक लेटरहेड पर भी स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग होता है।

जिनके पास जनहित के मुद्दे नहीं हैं, वे कभी वंदेमातरम् गायन का विरोध करते हैं तो कभी स्वास्तिक चिन्ह का विरोध करने लगते हैं।

इनलोगों को यह भी नहीं मालूम है कि भारत का स्वास्तिक चिन्ह हिटलर के चिन्ह से बिल्कुल भिन्न है।

सदियों से भारत में शुभ अवसरों पर स्वास्तिक चिह्न बनाये जाते रहे हैं, लेकिन जिनकी समझ अपने मनीषियों के ग्रंथों की उपेक्षा और भारत-विरोधी लेखकों की चंद किताबें पढ़ाने से बनी हो, केवल वे ही स्वास्तिक से दुराग्रह प्रकट कर सकते हैं।