कालिदास तुम सही थे ! तुम्हारा वह कथानक चित्र जिसमें तुम पेड़ के एक डाल पर बैठे हो और उसी डाल को काट रहे हो यह बिना सोचे कि डाली जब कट के गिरेगी तो तुम भी उसी डाली के साथ गिर जाओगे।
कालिदास तुम अलग नहीं हो । सदियों से मनुष्य जाति यही तो करती आई है ।
आज बुलडोजर चलाने पर जो खुश है वो तुम्हारे कथानक चित्र को वो पात्र है, जिसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि कानून है तो तुम हो, संविधान है तो तुम हो ।शासन और सत्ता तो चाहती ही है कि कानून और संविधान पर से लोगों का भरोसा उठ जाये ।
आज जिस रहमान के घर बुलडोजर चलने पर खुश हो, वह सिर्फ रहमान का घर नहीं है वह घर भारतीय संविधान और न्याय संहिता का घर है जिसके बुनियाद पर भारत बसा हुआ है ।सत्ता और सरकार तो चाहती ही कि कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर कानून और संविधान को धत्ता बताते रहे । कल तुम रहमान का घर टूटने पर खुशी मना रहे थे आज रमन झा और विवेक गुप्ता के घर बुलडोजर चला तो कागज दिखा रहे हो ।
तेरी हंसी कब तरे घर मातम लेकर पहुंच जाये किसी ने नहीं देखा है सत्ता और सरकार को इतनी छूट दिये तो फिर बहु बेटी को घर से उठा कर ले जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।
देखो सत्ता का चरित्र आज जरुरत पड़ी तो वीर कुंउर सिंह के परिवार वाले की हत्या मामले में एक माह बाद डाँक्टर पर कार्यवाही हो रही है ।इससे पहले सूना था बिहार में इलाज में लापरवाही बरतने पर किसी डाँक्टर पर कार्यवाही हुई हो ।वैसे 23 अप्रैल के बाद डाँक्टर साहब को मनचाही जगह मिल जायेंगी ये भी तय है काली हो सकता है इस कथा में तुम्हारे नाम को जोड़कर उस ज़माने के तुझे नापसंद करने वालों ने तेरी फिरकी ली हो ।फिर भी एक बात तो है, तुम मिथक कथा के पात्र ही सही पर जीवंत बिंब हो मनुष्य जाति के एक पहलू के ।
भाई भाई को लड़ा रहा है सत्ता के लिए और ससुरे को समझ में नहीं आ रहा है नौकरी और रोजगार हाथ से जा रहा है शहर दर शहर उजर रहा है 35 रुपया का पेट्रोल 120 रुपया में बेच रहा है अपनी ऐयाशी के लिए फिर भी समझ में नहीं आ रहा है।
काली मेरा मानना है कि तुम ये कहानी मनुष्य को संचेत करने के लिए गढ़ा था लेकिन दुर्भाग्य है काली 1500 सौ वर्ष बाद भी समझ में नहीं आया है क्या करोगे मनुष्य समझदार ही हो जाता तो फिर ऐसे लोगों की दुकाने कैसे चलती है।