“PFI संघ के तर्ज पर काम करती है “
“एसडीपीआई की वजह से कर्नाटक में बाजेपी की सरकार बनी है”
रुपया लगातार गिर रहा है 80 के करीब पहुंच गया मेन स्ट्रीम मीडिया या फिर सोशल मीडिया पर इस खबर को लेकर कहीं कोई चर्चा है ,सरकार की और से कोई बयान आया है।
जबकि जैसे जैसे रुपया कमजोर होगा देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी महंगाई आसमान छुएगा ।
इसी तरह बिहार की बात करे तो इतना बड़ा मेधा घोटाला हुआ है तीस हजार से अधिक बहाली जांच के घेरे में है मुख्य मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक कहीं कोई चर्चा भी है ।
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मतलब हर सुबह मेरे जेब पर डाका डाला जा रहा है मेधावी छात्र लूटे जा रहे हैं लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया ,और सोशल मीडिया पर चर्चा तक नहीं होती है ।
होता क्या है मुसलमान ऐसा, मुसलमान ऐसा, जैसे मुसलमान ही देश की सबसे बड़ी समस्या है और इस खबर से आप बाहर ना निकले इसके लिए रोजाना सुबह से ही मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया लगा रहता है।
झारखंड में जहां 70 प्रतिशत से अधिक मुसलमान है वहां शुक्रवार को स्कूल बंद हो रहा है कोई ये पुछने वाला नहीं है कि झारखंड गठन के बाद से लगातार बीजेपी की सरकार रही है क्या बीजेपी के शासन में रविवार को स्कूल बंद होता था, स्कूल में मुस्लिम बच्चे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते थे,कौवा कान ले गया बस सबके सब कौवा के पीछे भाग चलते हैं कोई अपना कान नहीं देखता है ।
चलिए मुद्दे पर आते हैं फुलवारी शरीफ मामले में दो संगठन चर्चा में है एक पीएफआई और दूसरा एसडीपीआई है जिसके सदस्य गिरफ्तार हुए हैं ।
यह संगठन जब देश विरोधी काम करता है तो इस संगठन को प्रतिबन्धित क्यों नहीं किया जा रहा है ।
इसके पीछे बड़ा खेल जब आप समझेंगे तो हैरान रह जाएंगे ।
1—क्या है पीएफआई
पटना के एसएसपी डाँ मानवजीत सिंह ने पीएफआई के कार्यशैली को संघ के कार्यशैली के सहारे समझाने का प्रयास किया क्या हंगामा खड़ा हो गया मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर मानो बादल फट गया हो। देखते देखते एसएसपी को खालिस्तानी धोषित कर दिया गया ,फुलवारी से गिरफ्तारी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर दिया इससे भी खून गर्म नहीं हुआ तो बिहार दौरे के दौरान पीएम को निशाने पर लेने की तैयारी में जुटे थे आतंकी यहां तक लिख डाला गया लेकिन किसी ने यह समझने कि कोशिश नहीं किया कि पीएफआई है क्या ।
पीएफआई संघ के तर्ज पर बना एक ऐसा स्वयंसेवी संगठन है जो भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है 2006 में यह संगठन बना है और इसका पूरा नाम है पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (Popular Front of India; संक्षिप्त: PFI) यह संस्था अपने आप को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है।मिश्रा आयोग (राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग) की रिपोर्ट के अनुरूप मुस्लिम आरक्षण के लिए अभियान चलाता है।
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संघ की तरह ही ये भी शाखा लगाता है जहां लाठी डंडे चलाने की ट्रेनिंग देते हैं संघ की तरह ही इस संगठन का राजनीतिक मंच एसडीपीआई है जिसका गठन 2009 में किया गया था,सीएफआई इसका छात्र संगठन इसी तरह SDTU (Social Democratic Trade Union)इसका मजदूर संगठन है। स्कूली छात्रों के लिए भी इसका अलग संगठन है।
ये सारे संगठन सार्वजनिक तौर पर काम कर रहे हैं और इनमें से अधिकांश का मुख्यालय दिल्ली है कई राज्य सरकारे इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने का पत्र केन्द्र सरकार को भेजा चुका है लेकिन वजह जो भी हो अभी तक प्रतिबंध नहीं लगा है ।
2—एसडीपीआई राजनीतिक पार्टी का लक्ष्य 2047 तक भारत इस्लामिक शासन स्थापित करना है।
जिस तरीके से संघ का राजनीतिक मंच बीजेपी है वैसे ही पीएफआई का यह राजनीतिक मंच है जैसे संघ हिन्दू राष्ट्र की बात करता है वैसे ही यह इस्लामिक राष्ट्र की बात करता है ।
इस पार्टी के संविधान में जिस लक्ष्य को प्राप्त करने कि बात लिखा है उसमें लिखा है कि 2047 तक भारत में इस्लामिक राष्ट्र स्थापित करना है इस पार्टी के हर कार्यक्रम में सार्वजनिक मंच से इस बात की चर्चा होती है।यह पार्टी चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त है।याद करिए बिहार विधानसभा चुनाव 2020 पप्पू यादव ने इसी पार्टी से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के नारे के साथ राजनीति करने वाली पार्टियों पर केन्द्र सरकार प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रही ही चुनाव आयोग खामोश क्यों है इसकी वजह है इस तरह के पार्टियों की वजह से बीजेपी को फायदा पहुंचता है।
3–कर्नाटक में बीजेपी के सत्ता में पहुंचने में एसडीपीआई की बड़ी भूमिका रही है
जी है एसडीपीआई का कर्नाटक में बड़ा जनाधार है 2018 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक के तीन विधानसभा सीट- नरसिम्हाराजा (मैसुरू), चिकपेट (बेंगलुरू) और गुलबर्गा सिटी पर एसडीपीआई ने कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया था नरसिम्हाराजा सीट पर 38 हजार वोट लेकर यह दूसरे स्थान पर रही थी. वहीं चिकपेट सीट पर इसे 15 हजार वोट मिले थे. इस वजह से बीजेपी यहां जीत गई थी.राज्य में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही एसडीपीआई ने ऐलान कर दिया था कि वह तीन सीटों को छोड़ कर हर जगह सेक्युलर ताकतों का समर्थन करेगी क्योंकि यह वक्त की मांग है. इसके ऐलान की वजह से पूरे तटवर्ती इलाके में बीजेपी भारी बहुमत से जीत गई।
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इसी राजनीति को समझने कि जरूरत है आज दुनिया में लोकतांत्रिक सरकार जिस तरीके से ताश के पत्तों की तरह ध्वस्त हो रही है इसकी वजह यही है सत्ता के लिए किसी भी हद तक पहुंचना ।
श्रीलंका और अब ब्रिटेन में जो कुछ हो रहा है उससे भारत को सीख लेने कि जरूरत है नहीं तो फिर श्रीलंका और ब्रिटेन से भी बुरा हाल भारत का हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।