जीवेश मिश्रा मंत्री हैं. दूसरी दफ़ा चुनाव जीते हैं. और मंत्री बन गए. यह सौभाग्य सब को नहीं मिलता है. बहुत लोगों की ज़िंदगी राजनीति में गुज़र जाती है. कुछ नहीं मिलता है. सबका सौभाग्य जीवेश जी जैसा कहाँ होता है!
पहली मर्तबा मंत्री बनने वालों में ताव ज़्यादा होता है. उनको लगता है हम सरकार हैं. सरकार तो सरकार है. उसके ऊपर कौन! भला देखिए ! ट्रैफ़िक सिपाही की जुर्रत. सरकार की गाड़ी को रोक दिया ! और सरकार के मुलाजिम कलक्टर और एसपी की गाड़ी को आगे बढ़ा दिया. यह तो सरासर सरकार का अपमान है !
इसी भावना से जीवेश जी ने बहुत रोष में इस मामले को विधानसभा में उठाया. विरोधी पक्ष के विधायकों को बढ़िया मौक़ा मिल गया. उन्होंने भी इस पर खूब लहर काटा. जो पुराने लोग हैं उनके साथ अगर इस तरह की घटना हुई होती तो शायद उसको पचा गए होते.
अब क्या होगा ? गौर से देखिए. कलक्टर और एसपी इस मामले में कहाँ क़सूरवार ठहरते हैं. ट्रैफ़िक के सिपाही ने उनको आगे बढ़ने का सिग्नल दिया और वे बढ़ गए. इस पूरे प्रकरण में जीवेश के रोष का शिकार तो गरीब ट्रैफ़िक का सिपाही बन रहा है.
जबकि जीवेश जी को ताव आया होगा कलक्टर और एसपी के लिए उनकी गाड़ी को रोक दिये जाने पर.
जीवेश जी धीरे धीरे पकठा जाएँगे. उनको समझ में आ जाएगा कि वे तो टेम्परोरी हैं. कलक्टर, एसपी परमानेन्ट हैं. इसलिए बेचारा सिपाही टेम्परोरी को देखे या परमानेन्ट को !
राजनीति में बहुत दिनों से सत्ता के केंद्र को लेकर इंदिरा जी के नाम से एक कहावत चलती है. कहा जाता है कि कभी उन्होंने कहा था कि इस सिस्टम में सत्ता के तीन ही केंद्र हैं. पीएम, सीएम और डीएम. पता नहीं इंदिरा जी ने सचमुच कभी ऐसा कहा था या नहीं. लेकिन बात तो सत्य है.