मोदी जी आठ वर्षों के शासन काल में आठ बड़े नीतिगत फैसले लिए हैं हस्र क्या हुआ आप बेहतर समझ सकते हैं
- मेक इन इंडिया – स्वच्छ भारत
- नोटबंदी
- जीएसटी
- नीति आयोग
- कृषि क़ानून
- आयुष्मान भारत
- कोविड लॉकडाउन और टीकाकरण
- अग्निपथ योजना
सेना बहाली को लेकर आज के अखबार में भारत सरकार की और से फुल पेज विज्ञापन दिया गया है जिसके शुरुआत में ही लिखा है अग्निपथ योजना इस योजना की विशेषताएं क्या है उसके बगल में लिखा है और अंत में लिखा है मौका जिंदगी जिंदादिली से जीने का आओ बनें हम भारत से अग्निवीर थल सेना ,वायुसेना और नौसेना में। मतलब हमारे देश की सीमा की रक्षा करने वाले जवान अब “स्वयं से पहले सेवा” का शपथ नहीं लेंगे अब वो जिंदादिली से जीने के भाव के साथ दुश्मनों से लड़ेंगे इसी शपथ लेंगे, ठीक उसी तरीके से जैसे हमारे शिक्षक शिक्षा मित्र हो गये डाक्टर चरक संहिता की शपथ लेने के बजाय अस्पताल को कैसे फायदा पहुंचाया जाए इसका शपथ लेने लगे,कॉलेज में पढ़ाने वाले प्रोफेसर की जगह गेस्ट फैकल्टी ले लिया।
वैसे कल जैसे ही इस योजना को भारत सरकार ने लांच किया मानो आईटी सेल पहले से ही तैयार बैठा था और इस योजना के क्या फायदे हैं इस पर एक से एक लेख सोशल मीडिया में आना शुरु हो गया।चंद मिनटों बाद टीवी पर बहस भी शुरू हो गयी लेकिन पूर्व सैन्य अधिकारियों द्वारा विरोध जताने पर रात होते होते इस बहस से सेना के पूर्व अधिकारियों को चैनल वालों ने बहस से बाहर कर दिया।
1–अमेरिका इजरायल जैसे देश में इस तरह की सेना है
इस योजना को लेकर जो सबसे बड़े तर्क दिये जा रहे हैं वो है अमेरिका और इजराइल जैसे देश में भी यही व्यवस्था है बात सही है लेकिन अमेरिका और इजराइल जैसे देश में सेना आमने सामने कभी कभी लड़ता है अधिकांश लड़ाई वो तकनीक से लड़ता है, इन दोनों देशों के पास जो सैन्य तकनीक है उस में भारत कहां खड़ा उतरता है।
वही इन देशों में राष्ट्रपति भी देश की रक्षा के लिए लड़ने जाता है किसान हो ,नेता हो ,अभिनेता है ,दुकानदार हो या फिर उद्योगपति हो हर किसी को सेना में योगदान देना है यह अनिवार्य है लेकिन अग्निवीर योजना में ऐसी तो कोई बात नहीं है नेता और दुकानदार,व्यापारी और उद्योगपति का बेटा भी चार वर्ष देश को देगा ऐसा तो प्रावधान कहीं नहीं है लिखा है ।
मतलब जैसे पहले गांव का किसान और मजदूर का बेटा ही बॉर्डर पर लड़ने जाता था वही अभी भी जायेगा जिसके लिए लड़ाई में भाग लेना मजबूरी है क्यों कि परिवार को पालना है जबकि अमेरिका और इजरायल में शौक और कानूनी प्रावधान की वजह से सेना में जाता है ।
ऐसे में हमारे गांव के बच्चे जो परिवार के परवरिश के लिए सेना के नौकरी में जाता है वो चार वर्ष के लिए किस मानसिकता के साथ युद्ध के मैदान में जायेंगा। फिर हमारी सीमा चीन और पाकिस्तान से लगा है उनकी सैन्य तैयारी क्या है उसमें हमारे छह माह का ट्रेड जवान कहां तक टिकेगा। साथ ही जब से कश्मीर और नॉर्थ ईस्ट में आतंकवाद पनपा है हमारी सेना बैरक में नहीं लौटी है ऐसे में छह माह के छोटे से प्रशिक्षण प्राप्त अग्निवीर इस युद्ध में कहां तक खड़ा उतर पाएंगे इसको लेकर सेना के अधिकारियों ने अभी से ही चिंता जाहिर करने लगे हैं ।
2—भारत दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना में चौथे स्थान पर है अमेरिका की सेना दुनिया की सबसे ताकतवर है, रूस दूसरे स्थान पर ,चीन तीसरे स्थान पर और भारत चौथे स्थान है अमेरिका को छोड़ दे तो सभी देश मेंं स्थायी सेना है वही दूसरी और सच्चाई यह भी है कि अमेरिका 70 वर्षो में एक भी युद्ध नहीं जीता है हर युद्ध उसे छोड़ कर भागना पड़ा है जबकि अमेरिकन नागरिक के सामने हम भारतीय का नैतिक बल में कही दूर दूर तक खड़े नहीं उतरते हैं अमेरिका का पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने किसी सैन्य ऑपरेशन को लेकर कुछ बयान दिया था जो गलत था तुरंत पेंटागन के राष्ट्रपति के बयान को खारिज कर दिया था अभी जो ट्रंप को लेकर सुनवाई हो रही है उसमें ट्रंप की बेटी ने गवाही दिया है कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं इतना सर्वोच्च नैतिक बल होने के बावजूद अमेरिकन सेना जमीनी युद्ध में जहां गया वहां फसा है जबकि भारत के सेना की पहचान ही दुनिया में थल सेना की वजह से ही है जहां कही भी भारतीय सेना शांति सेना के रूप में गयी है वहां अपनी एक अलग पहचान छोड़ कर आयी है ।
3–भारत लोकतंत्र के बाल्यावस्था से गुजर रहा है भारत आधुनिक लोकतंत्रात्रिक व्यवस्था में 75 वर्ष कोई मायने नहीं रखता है यह लोकतंत्र के लिए बाल्यावस्था ही माना जाता है लोकतंत्र का यह कोई मतलब नहीं है कि चुनी हुई सरकार सुप्रीम है लेकिन आज कल देश में चल कुछ ऐसा ही रहा है जबकि अमेरिका में चुनी हुई सरकार सैन्य ,न्याय व्यवस्था और प्रेस के काम में किसी भी तरह से दखल नहीं दे सकता है सभी की जिम्मेवारी तय है क्षेत्राधिकार तय है लेकिन अपने यहां चुनी हुई सरकार किसी भी हद को पार करने को तैयार है राजा से भी आगे ऐसी स्थिति में भारतीय लोकतंत्र के जो स्तंभ है उसे बनाये रखने की जिम्मेवारी जनता को है क्यों कि मीडिया की तो बात ही खत्म हो गयी है ,न्यायपालिका चुनी हुई सरकार के सामने हाफ रही है ब्यूरोक्रेसी तो रखैल ही बन गया ।
पूर्व सैन्य अधिकारियों का मानना है कि एक सेना ही बची हुई थी जिसके सहारे हमारे देश की सीमाएं सुरक्षित था उसमें भी सेंधमारी शुरु हो गया है यह फैसला देश हित में कभी नहीं हो सकता है इसका बहुत ही दूरगामी प्रभाव पड़ेगा वैसे भी मोदी सरकार ने जो भी निर्णय लिए हैं क्या हुआ नोटबंदी ,जीएसटी जो कहा गया उसके आसपास भी कही खड़े हैं ।