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जातीय जनगणना से पिछड़ी जाति का सच आ जाता सामने; रोक से बिहार के राजनीतिक बदलाव पर फिर लगा ब्रेक

पूर्व मंत्री नरेन्द्र बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन जब भी मुलाकात होती थी तो मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलने को लेकर बहस हो ही जाती थी ।

मैं कहता था आप लोग सही नहीं किए बिहार की राजनीति का एक चक्र पूरा हो रहा था उसको आप लोगों ने बीच रास्ते में ही ब्रेक लगा दिया। जिस वजह से बिहार की राजनीति फिर उसी चक्र में वापस आ गया जिससे नीतीश कुमार थोड़ा बाहर निकाले थे। मतलब सत्ता की मलाई खाते खाते समाज में जो नये सामंती वर्ग पैदा लिये हैं उसके शोषण और अत्याचार के खिलाफ जैसे जैसे आक्रोश बढ़ा अन्य पिछड़ी जातियों उनके खिलाफ गोलबंद होने लगे इसी का लाभ नीतीश उठा रहे थे वही मांझी मुख्यमंत्री बने रह जाते तो बिहार की राजनीति से हमेशा हमेशा के लिए दबंग पिछड़ी जातियां राजनीति से बाहर हो जाती लेकिन आप लोग इस चक्र को पूरा नहीं होने दिए हालांकि नरेंद्र बाबू का कुछ और तर्क था लेकिन अंत में वो कहते थे संतोष जो बात गयी वो बीत गयी आगे फिर मौका आयेगा मिल बैठ कर बात करेंगे।

शायद आज वो जिंदा होते तो जातीय जनगणना को लेकर मेरे विचार से सहमत होते, बिहार में प्रभावशाली दबंग पिछड़ी जाति और दबंग दलित की कितनी संख्या है और उसका व्यापार ,संसाधन,नौकरी और जमीन पर उसका कितना कब्जा है यह डाटा जिस दिन सामने आ जाता बिहार की राजनीति दस वर्षो में पूरी तरह से बदल जाता। क्यों कि समाज में सवर्णो को लेकर जो घृणा था आक्रोश था वह अब दबंग पिछड़ी और दलित जाति में शिफ्ट कर गया है । वही पंचायत चुनाव इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया जिस वजह से गांव का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तौर पर बदल गया है ।

जातीय जनगणना जैसे ही प्रकाशित होता तीन चार पिछड़ी जाति और एक दो दलित जाति जिसका 90 प्रतिशत हिस्सेदारी व्यापार,नौकरी .जमीन और राजनीति में है वो सामने आ जाता । और जैसे ही सामने आता उसके खिलाफ एक अलग तरह का माहौल तैयार होने लगता जैसे किसी दौर में सवर्ण को लेकर था जिसके पास व्यापार नौकरी,जमीन और सत्ता सब कुछ था । उसी को दिखा दिखा कर लोहिया जैसे नेता पिछड़ा पावे सौ में साठ जैसे नारे का ईजाद किये थे ।

आज साठ क्या 90 प्रतिशत हिस्सेदारी जो सवर्ण से ट्रांसफर हुआ है उस पर चार पाच पिछड़ी और एक दो दलित जाति का आज कब्जा है। ये डाटा जैसे ही सामने आता वैसे ही पूरे बिहार का नैरेटिव ही बदल जाता ।सच यही है जातीय जनगणना के पक्ष में ना नीतीश हैं ना लालू हैं ना बीजेपी है। क्यों कि उन्हें पता है जैसे ही जाति जनगणना प्रकाशित होता बिहार की राजनीति से दबंग पिछड़ी जाति की पकड़ उसी दिन से कमजोर होनी शुरु हो जायेंगी । ये लोग सिर्फ नैरेटिव बनाये रखना चाहते हैं जैसे बीजेपी को हिन्दू के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है बस हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव कैसे बना रहे इसके जुगत में लगा रहता है ।

नीतीश कुमार की यात्राएँ सिर्फ फोटो सेशन और राजनीतिक पर्यटन: सुशील कुमार मोदी

पटना। पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि केवल चर्चा में बने रहने के लिए नीतीश कुमार एक ऐसे समय में विपक्षी एकता का प्रयास करते दिखते रहने चाहते हैं, जब शरद पवार अडाणी मुद्दे की हवा निकाल चुके हैं और यहाँ तक कह चुके कि महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन के कल का कोई ठिकाना नहीं है।

  • शरद पवार पहले ही निकाल चुके अडाणी मुद्दे की हवा
  • पश्चिम बंगाल में भाजपा शून्य से 64 विधायकों, 18 सांसदों की पार्टी बनी
  • क्या बंगाल में कांग्रेस, माकपा और टीएमसी एक मंच पर आ सकते हैं?
  • यूपी में सपा-कांग्रेस, बुआ-बबुआ मिल कर भी नहीं जीत पाए

श्री मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार की दिल्ली, कोलकाता या लखनऊ की यात्रा राजनीतिक पर्यटन और फोटो सेशन के सिवा कुछ नहीं है।

उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में भाजपा शून्य से 64 विधायकों और 18 सांसदों की पार्टी बन गई। अब नीतीश कुमार क्या बंगाल में कांग्रेस, माकपा और टीएमसी को एक मंच पर ला सकते हैं?

sushil modi vs nitish kumar

श्री मोदी ने कहा कि बिहार में टीएमसी नहीं और बंगाल में जब जदयू- राजद का कोई जनाधार नहीं है, तब नीतीश-ममता एक-दूसरे की क्या मदद कर सकते हैं? वे सिर्फ साथ में चाय पी सकते हैं और बयान दे सकते हैं।

उन्होंने कहा कि यूपी में एक बार दो लड़के ( राहुल-अखिलेश) मिलकर भाजपा को हराने में विफल रहे तो दूसरी बार बुआ-बबुआ ( बसपा-सपा) मिल कर लड़े। दोनों बार एकजुट विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सामने टिक नहीं पाया।

श्री मोदी ने कहा कि 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटें मिलीं, जबकि सपा मात्र 03 सीट पा सकी। बसपा को 10 सीट मिली, लेकिन चुनाव बाद बुआ ने बबुआ का साथ छोड़ दिया। क्या नीतीश कुमार काठ की यही जली हुई हांडी फिर से आग पर चढा पाएँगे?

उन्होंने कि आज के हालात न 1977 जैसे हैं, न भाजपा-विरोध के अलावा कोई राष्ट्रीय मुद्दा है और न विपक्ष के पास कोई सर्वमान्य नेता है।

श्री मोदी ने कहा कि यदि समय काटने के लिए कोई मेढक तौलने का मजा लेना चाहता है, तो उसे कोई नहीं रोक सकता।

राहुल गांधी ने किया पिछड़ों का अपमान, चौधरी को कमान देकर भाजपा ने किया सम्मान: सुशील कुमार मोदी

पटना। पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जब राहुल गाँधी और उनके समर्थक दल मोदी सरनेम मुद्दे पर पिछड़े समाज के करोड़ों लोगों का अपमान कर रहे हैैं, तब भाजपा ने सम्राट चौधरी को बिहार की कमान सौंप कर पिछड़ों के प्रति आदर और विश्वास प्रकट किया।

  • नये अध्यक्ष को बधाई, पार्टी ने उन पर सौंपा बड़ा दायित्व
  • लव-कुश वोट पर नीतीश कुमार का एकाधिकार खत्म

श्री मोदी ने सम्राट चौधरी को बधाई दी और कहा कि उनके ऊर्जावान नेतृत्व में भाजपा 2024 के संसदीय चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत प्रचंड बहुमत प्राप्त करेगी।

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उन्होंने कहा कि पार्टी ने लोकसभा चुनाव से मात्र 10 माह पहले सम्राट चौधरी को बड़ा दायित्व सौंपा है और भरोसा किया है कि वे कार्यकर्ताओं के सहयोग से पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल होंगे।

श्री मोदी ने कहा कि वर्ष 2022 में गोपालगंज और कुढनी के उपचुनाव में जदयू की हार ने उस लव-कुश वोट के भाजपा की ओर शिफ्ट होने की पुष्टि की, जिस पर नीतीश कुमार अपना एकाधिकार समझते थे।

उन्होंने कहा कि सम्राट चौधरी के अध्यक्ष बनने से भाजपा के पक्ष में पिछड़े समाज के ध्रुव्रीकरण की प्रक्रिया तेज होगी । इससे संगठन में नये उत्साह का संचार अनुभव किया जा रहा है।

लालू परिवार के परिसरों पर छापे से बहुत खुश हैं नीतीश कुमार: सुशील मोदी

पटना। पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि ” नौकरी के बदले जमीन ” घोटाले में लालू परिवार के परिसरों पर जांच एजेंसियों के छापे पर नीतीश कुमार चाहे जो बयान दें, लेकिन सबसे ज्यादा खुश भी वही हैं।

  • ताजा कार्रवाई से तेजस्वी यादव को सीएम बनाने का दबाव टला
  • जाँच में तेजी और जल्द सजा दिलाना चाहते हैं ललन सिंह
  • राजद नेताओं को सजा हुई तो 2025 तक निष्कंटक राज करेंगे नीतीश

श्री मोदी ने कहा कि जांच-पूछताछ की कार्रवाई के कारण तेजस्वी प्रसाद यादव को जल्द मुख्यमंत्री बनाने का राजद का दबाव टल गया है। यह जदयू के लिए राहत की बात है।

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उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के कहने पर ललन सिंह ने सीबीआई को सबूत के कागजात उपलब्ध कराये। उन्हें पता है कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव सहित सभी 16 अभियुक्तों का जेल जाना तय है।

श्री मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार जाँच की धीमी गति पर सवाल उठा रहे हैं। दरअसल, वे चाहते हैं कि जांच तेज हो, अभियुक्तों को सजा जल्द हो और वे 2025 तक निष्कंटक मुख्यमंत्री बने रहें।

पीएम मोदी अपनी ब्रांडिंग और राजनीतिक मार्केटिंग को लेकर अक्सर झूठ का सहारा लेते रहते हैं; एक और झूठ गंगा विलास क्रूज से जुड़ा है

13 जनवरी को पीएम मोदी ने गंगा विलास क्रूज को हरी झंडी दिखाते हुए कहा था कि ‘भारत में पर्यटन का बुलंद दौर शुरू हुआ और गंगा विलास क्रूज की शुरुआत होना साधारण घटना नहीं है ये सफर भारत में इनलैंड वाटर वे के विकास का उदाहरण हैं।

फिर क्या था इस योजना को लेकर मीडिया ने पुल बांधना शुरू कर दिया और अपने रिपोर्टर की पूरी फौज उतार दिया पीपली लाइव की तरह ।

शत्रुघ्न सिन्हा जिस समय जहाजरानी मंत्री थे उस समय ही इस प्रोजेक्ट पर काम होना शुरु हुआ था और कई वर्षो से बनारस और कोलकाता के बीच क्रूज चल रहा है।

मुझे याद है कि बनारस से कोलकाता तक जाने वाले इस क्रूज को लेकर मैंने दो तीन बार स्टोरी किया था लेकिन फाइल मेंं मिल नहीं रहा था, तभी देर रात मुझे याद आया कि इस क्रूज का तो पटना में दुर्घटना भी हो चुकी है जिसमें कई विदेशी यात्रा घायल हुए थे ।

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इतनी बड़ी खबर लेकिन कलाकारी देखिए गूगल पर से ये स्टोरी भी गायब करवा दिया था
लेकिन पूरी घटना मेरी आंखों के समाने तैर रहा था,तब मैं अपना फेसबुक पोस्ट पलटना शुरु किया क्यों कि मुझे याद था कि ऐसी घटना घटी थी और इसकी सूचना घटना के चंद मिनट बाद ही किसी व्यक्ति ने फोन करके दिया था और सबसे पहले मैंने ही खबर ब्रेक किया था ।

और उसके बाद पूरे प्रशासनिक महकमे में कोहराम मच गया था इतना ही नहीं कल पटना में मीडिया के हमारे कई बंधु तो तारीफ के पुल बॉध रहे थे ।

इस क्रूज से जुड़ी जो दुर्घटना हुई थी उसका वीडियो लेने मेरे दफ्तर में आये थे ।
3 दिसंबर 2019 को पटना के गंगा नदी में पीपा पुल से टकराया सैलानियों से भरा जहाज, कई घायल; बड़ा हादसा टला।
पूरी खबर ये था कि यही क्रूज विदेशी सैलानियों को बनारस से कोलकत्ता ले गये थे और फिर कोलकत्ता से बनारस लौट रहा था इसी दौरान कच्ची दरगाह के पास सैलानियों का जहाज गंगा नदी में पीपा पु‍ल से टकरा गया।जहाज पर सवार लोग दहशत में आ गए। कई सैलानियों को चोट लगी है। तैराकों का दल पहुंच गया है। तैराकों ने रेस्‍क्‍यू कर जहाज पर सवार यात्रियों की जान बचाई।

इन घायल सैनानी से जो बात हुई तो उन्होंने कहा था इस क्रूज पर य़ात्रा को लेकर विदेशी सैलानी इन्तजार करते हैं दिसम्बर माह का और इसमें कई ऐसे यात्रा भी मिले जो पांच वर्षो से लगातार आ रहे थे ।
देखिए उस दिन की वो तस्वीरें कैसा अफरातफरी का माहौल था।

सत्ता, संगठन और विचारधारा के बीच उलझते जा रहे हैं तेजस्वी यादव !

तेजस्वी सत्ता, संगठन और विचारधारा के बीच इस तरह उलझता जा रहा है कि वो तय नहीं कर पा रहा है कि करना क्या है और इस वजह से उनके पार्टी के अंदर भी और बाहर भी ऐसे लोग जिनको किसी से किसी विषय को लेकर व्यक्तिगत खुंदक रहा है वो साधना शुरु कर दिये हैं। और इसका असर यह हो रहा है कि सरकार अस्थिर होने वाली है ऐसा इमेज लगातार बढ़ता जा रहा है ऐसे में तेजस्वी को पार्टी के तमाम बड़े नेता और विधायक सांसद से मिल बैठ कर बात करनी चाहिए।

              यही स्थिति रही तो आने वाले समय में विवाद कम ने के बजाय बढ़ेगा और इसका असर पार्टी के जनाधार पर भी पड़ेगा,क्योंकि सरकार चलाने का जो नीतीश फार्मूला है उससे ना तो राजद के मंत्री संतुष्ट है और ना ही विधायक और ना ही गांव में मौजूद पार्टी का कार्यकर्ता। ऐसे में मिशन 2024 के सहारे लोकसभा चुनाव में बहुत बड़े बदलाव की जो बात महागठबंधन सोच रही है उसकी हवा निकल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि गवर्नेंस को लेकर गांव स्तर पर नाराजगी बढ़ती जा रही है जिसमें शराबबंदी कानून एक बड़ी वजह है बिहार के लगभग हर गांव में आठ से दस परिवार इस कानून से किसी ना किसी रूप में प्रभावित है जो वोट में परिणत होगा ये साफ दिख रहा है । वही ब्लांक और थाना स्तर पर जो खेल चल रहा है उससे सबसे अधिक प्रभावित लालू और नीतीश का ही वोटर है।      

 गठबंधन बदलने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है ऐसे में सरकार गठन के पांच माह ही हुए हैं राजद सहित महागठबंधन के तमाम विधायक ,मंत्री और कार्यकर्ताओं में आक्रोश बढ़ना शुरु हो गया है मंत्री को सचिव चलने नहीं देता है, विधायक का कोई सुनने वाला नहीं है, पार्टी कार्यकर्ताओं का हाल तो और भी बुरा है विपक्ष में था तो धरना प्रदर्शन भी कर लेता था अब तो कुछ कर भी नहीं पा रहा है।          

संकट इतना ही नहीं है तेजस्वी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि जदयू राजद नहीं है और फिर योजनाओं के सहारे सत्ता में बने रहने का थ्योरी पूरे देश में एक समय बाद फेल हुआ है यह भी सत्य है ।                  

क्यों कि बीजेपी,वामपंथी और कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का एक अपना तरीका रहा है समय समय पर कार्यक्रमों के सहारे उसको मजबूती देता रहता है लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ यह बड़ी समस्या है ।        

  

आज जदयू का क्या हश्र है पोलिंग एजेंट नहीं मिल रहा है कई गांव ऐसा मिल जाएगा जहां जदयू का कार्यकर्ता बचा ही नहीं है। स्थिति तो यह है कि पार्टी चलाने के लिए प्रखंड अध्यक्ष नहीं मिल रहा है समता पार्टी के समय के जो लोग बचे हुए है काम चलाने के लिए उनको पार्टी की जिम्मेवारी दे दी जा रही है हाल यह है कि कई जिलों में तो जिला अध्यक्ष विधायक या पूर्व सांसद है। यू कहे तो जदयू का पार्टी संगठन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है सरकार में रहने के कारण कही कही टिमटिमा रहा है। वजह नीतीश कुमार कि यह सोच योजनाओं और गवर्नेंस के सहारे पार्टी चला लेंगे । तेजस्वी राजद का जो टीम दिल्ली है उसके झांसे में आ गये हैं कि बस सरकार में बने रहना है और चुनाव के दौरान जो वादा किये थे उसको पूरा करते हुए दिखना है इसी के सहारे चुनाव निकाल लेगे।             

आज की राजनीति यही है इस टीम दिल्ली को यह भी देखना चाहिए कि 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान जो जीत हुई है उसमें चिराग की पार्टी का क्या योगदान रहा है क्यों कि लोकसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने वाली पार्टी रातो रात कैसे बिहार का नम्बर वन पार्टी बन गया।              

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संगठन की बात करे तो राजद की स्थिति बिहार में इस वक्त कुल मतदान केन्द्रों में मात्र 40 प्रतिशत मतदान केन्द्र तक ही सीमित है यह सच्चाई है ऐसे मेंं बिना विचार के सहारे मोदी को परास्त करना दिन में सपने देखने जैसा है क्यों कि विचार ही एक ऐसी कड़ी है जो जाति धर्म,मजहब और पार्टी सबके दायरे को तोड़ कर लोग मतदान केन्द्रों पर पहुंचते ही नहीं है लोगों को प्रेरित भी करते हैं, और उसमें सरकार की योजना अंतिम व्यक्ति तक पहुंच गयी तो  जीत का राह और आसान हो जाता है।

ऐसे में सिर्फ सत्ता में बने रहने से मोदी को हराना संभव नहीं है राहुल की तरह विचार के साथ सड़क पर उतरना होगा लोगों के बीच जाना होगा तेजस्वी इस दुविधा में फँस गये हैं करे तो करे क्या संगठन का अलग मांग है ,विचारधारा एक अलग तरह का तनाव दे रहा है विधायक और पार्टी के नेता एक अलग समस्या है वैसे राजनीति में जो विवादों का बेहतर समन्वय करता है वही आगे बढ़ता है ।

नीतीश कुमार भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े शतरंज के खिलाड़ी के रूप में याद किये जायेंगे

भारतीय लोकतंत्र में नीतीश कुमार को सबसे क्रूर और सिद्धांत विहीन शासक के रूप में याद किया जाएगा । उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में एक-एक भरोसेमंद लोगों को राजनीति में मौत मुकर्रर किया है। वही हाल उनके राजनीतिक शैली की भी रही कभी कोई सिद्धांत नहीं बस सत्ता में बने रहने के लिए जो सिद्धांत रास आया उसको अमल में लाया।

ताजा उदाहरण उपेन्द्र कुशवाहा का है,ज्यादा दिन नहीं हुआ है जब उपेन्द्र कुशवाहा अपनी पार्टी का विलय कर नीतीश के साथ आए थे और नीतीश कुमार ने इन्हें पार्टी को मजबूत करने के लिए बिहार यात्रा पर निकलने को कहां था उस समय आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे ।

उपेन्द्र कुशवाहा वाल्मीकि नगर से यात्रा की शुरुआत किये थे और लगभग दो माह तक पूरे बिहार के दौरे पर रहे इस दौरान उपेन्द्र कुशवाहा जिस जिले में गये वहां के जदयू के विधायक,पार्टी कार्यकर्ता के साथ साथ जिले के सीनियर अधिकारी उनके स्वागत में खड़े रहते थे जैसे नीतीश ही यात्रा में निकले हो । ऐसा भी नहीं है कि उपेन्द्र कुशवाहा के स्वागत में पार्टी के विधायक और कार्यकर्ता वैसे ही खड़े रहते थे बाजाब्ता जदयू के प्रदेश कार्यालय के साथ साथ सीएम हाउस से विधायक और जिले के वरिष्ठ नेता को फोन जाता था ।

यात्रा के दौरान यह साफ हो गया था कि उपेन्द्र कुशवाहा आरसीपी की जगह ले सकते हैं हुआ भी ऐसा ही जब आरसीपी सिंह को पार्टी से बाहर निकालने की रणनीति पर अमल करने का समय आया तो उपेन्द्र कुशवाहा को सामने खड़ा किया इस दौरान आये दिन ललन सिंह उपेंद्र कुशवाहा के घर मिलने जाते थे। उस समय आरसीपी सिंह जिस हैसियत में थे उस स्थिति में आरसीपी सिंह को हटाना ललन सिंह के बस में नहीं था लेकिन जैसे ही मिशन आरसीपी सिंह पूरा हुआ उपेन्द्र कुशवाहा को ठिकाने पर पहुंचाने का खेला शुरू हो गया। मुझे अच्छी तरह से याद है जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री के रूप में पूरे फर्म में थे नीतीश कुमार का हाल यह हो गया था कि विधायक की कौन कहे अधिकारी भी छुप छुपा कर मिलने आते थे संयोग से किसी बात को लेकर इनसे मुझे मिलना पड़ा ।

इतना निराश, उदास और हताश मैंने कभी नीतीश कुमार को नहीं दिखा और जहां तक मुझे याद है शरद यादव और लालू प्रसाद नहीं होते तो इनसे जीतन राम मांझी हटने वाले नहीं थे ।
इसी तरह आरसीपी सिंह को हटाने के लिए एक वर्ष से कोशिश कर रहे थे उपेन्द्र कुशवाहा नहीं होते तो आरसीपी सिंह को भी निकालना इनके लिए आसान नहीं होता।

नीतीश के राजनीतिक जीवन में उपेंद्र कुशवाहा कोई पहला व्यक्ति नहीं है जिसके साथ नीतीश का ये व्यवहार रहा है लम्बी सूची है दिग्विजय सिंह,प्रभुनाथ सिंह,जार्ज ,शरद,आरसीपी ,लालू प्रसाद।
लेकिन इन सबसे इतर जो बड़ा सवाल है इस बार नीतीश बीजेपी का साथ क्यों छोड़े क्या कह कर के छोड़े थे और चार माह बाद वो कहां खड़े हैं। बिहार की राजनीति का ककहरा समझने वाला भी जानता है कि ललन सिंह ,संजय झा और विजय चौधरी से कही अधिक मजबूत और वोट को प्रभावित करने की क्षमता उपेन्द्र कुशवाहा रखते हैं लेकिन उनको आप बाहर निकलने को मजबूर कर रहे हैं ।

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ऐसा नहीं है आरसीपी सिंह के जाने से जदयू कमजोर नहीं हुआ है कमजोर हुआ है और जो खबर आ रही है कि फरवरी में नालंदा में ही अमित शाह के मौजूदगी में आरसीपी सिंह भाजपा का दामन थाम सकते हैं मतलब बीजेपी इनको नालंदा में ही घेरने की रणनीति पर काम शुरु कर दिया है इतना ही नहीं आज भी आरसीपी सिंह का जदयू से जुड़े हुए अति पिछड़ा समाज के कार्यकर्ताओं में पकड़ बनी हुई है और आरसीपी मजबूत हुए तो नीतीश के कोर वोटर में भी सेंधमारी होगी ये तय है लेकिन आप बीजेपी का एजेंट घोषित करके उसे पार्टी से निकाल दिए लेकिन जिस व्यक्ति को लेकर घूम रहे हैं उनकी छवि तो सर्वविदित है कि वो बीजेपी के साथ ज्यादा कम्फर्ट महसूस करते हैं ।

देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन नीतीश जिस राह पर जा रहे हैं उससे उनका मिशन 2024 कमजोर पड़ रहा है ये अब साफ दिखने लगा है ।

नीतीश अभी भी बीजेपी वाली मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाये हैं

पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का राजद से निष्कासन तय हो गया है और किसी भी समय इन्हें छह वर्षों के लिए पार्टी से बाहर करने कि घोषणा हो सकती है ।

–नीतीश अभी भी बीजेपी वाली मानसिकता से नहीं निकल पाये हैं बाहर
–प्रशासनिक अधिकारियों को पोस्टिंग में एक बार फिर आया सामने
—तेजस्वी का मिशन 2024 में कार्यकर्ता साथ छोड़ दे तो कोई बड़ी बात नही्
–सुधाकर का पार्टी से निकालना आत्मघाती हो सकता है राजद के लिए
–रघुवंश सिंह का नुकसान समझ नहीं पा रहा हैं तेजस्वी
–तेजस्वी राहुल नहीं है ये उन्हें समझना चाहिए

नीतीश कैम्प की इक्छा है कि सुधाकर सिंंह को पार्टी से निकालने कि घोषणा राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के माध्यम से ही करायी जाए इस वजह से जो देरी हो जाए वैसे तेजस्वी ने मन बना लिया है कि सुधाकर सिंह को लालू प्रसाद के बातचीत करने कि स्थिति में आने से पहले निपटा दिया जाए क्यों कि सिंगापुर से जो लालू प्रसाद के स्वास्थ्य को लेकर खबर आ रही है वह संतोषजनक नहीं है।

कल जब छपरा में तेजस्वी कह रहे थे कि सुधाकर सिंह बीजेपी के ऐजेंडे पर काम कर रहे हैं और महागठबंधन का लक्ष्य है मोदी को सत्ता से बेदखल करना और इसमें जो भी बाधक बनेगा उसको बर्दास्त नहीं किया जायेंगा। ठीक उसी समय राजद का एक और विधायक मीडिया से उसी अंदाज में बात कर रहा था जिस अंदाज में सुधाकर सिंह पिछले कई दिनोंं से कह रहा है।ऐसा भी नहीं है कि नीतीश की शैली से सिर्फ राजद के दो चार विधायक ही असहज नहीं है लाखो कार्यकर्ता भी असहज है और यही स्थिति बनी रही तो राजद को बड़ा नुकसान होगा यह अब दिखने लगा है क्योंं कि जिस तरीके की अफरशाही थाना और प्रखंड स्तर पर अभी भी लूट मचा रखा है उससे राजद के विधायक और कार्यकर्ता असहज है।

यही स्थिति बनी रही तो 2024 में राजद मोदी से लड़ने कि स्थिति मे रहेंगा भी या नहीं कहना मुश्किल है क्यों कि राजद के विधायक ही परेशान नहीं है कार्यकर्ता भी परेशान है और हाल के दिनों में अधिकारियों का जिस तरीके से पोस्टिंग किया गया है उसमें अधिकांश अधिकारी भाजपा माइंडसेट का है जिस वजह से राजद का कार्यकर्ता और भी असहज हो गया है क्यों कि ऐसे अधिकारी ईमानदारी से काम करते हैं ऐसा भी नहीं है बल्कि बीजेपी के लाइन के साथ खड़े रहते हैं समस्या यह भी है ।
2015 में भी महागठबंधन जब बना था नीतीश इसी शैली में काम करते रहे जिससे राजद और कमजोर हुआ और उसी का नतीजा था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद का खाता तक नहीं खुला जो जनता दल और राजद के राजनीतिक सफर में कभी नहीं हुआ था.

ये कहने के लिए है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को ताकत मिलने से प्रशासनिक व्यवस्था धराशाही हो जाती है यह पूरी तौर पर सही नहीं है जबकि इसका असर यह पड़ता है कि स्थानीय प्रशासन पर दबाव रहता है कि गलत ना करे क्यों कि अधिकारी आते रहते हैं जाते रहते हैं लेकिन किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता और नेता को हमेशा वही रहना होता है ऐसे में बहुत ज्यादा दाये बाये करने कि गुनजाइस कम रहती है ।

NitishKumar

लालू के शासन काल को इसी आधार पर बदनाम किया जाता है कि राजद के कार्यकर्ता और नेता के कारण राज्य में प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गया ।

हां नीतीश के शासन काल में किसी भी पार्टी के कार्यकर्ताओं का कुछ भी नहीं तो क्या सरकारी काम के गुनवत्ता में सुधार हो गया ,भ्रष्टाचार कम हो गया ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है अराजक स्थिति है अमीर को नीतीश के शासन काल में लाभ मिल रहा है लेकिन एक भी गरीब को न्याय नहीं मिलता है ।

बिना पैसा लिए थाना हो या फिर प्रखंड हो काम ही नहीं हो सकता है आज कोई भी नेता यह कहने कि स्थिति में नहीं है कि थाना या फिर प्रखंड में कहने वाला नहीं है कि यह गरीब है इससे घूस मत लीजिए।

अगर ऐसा नहीं होगा तो पार्टी 2005 से सरकार में है मुख्यमंत्री उसका है वो पार्टी लगातार कमजोर क्यों होती जा रही है उन्हें आज भी सत्ता में बने रहने के लिए बैसाखी की जरुरत क्यों पड़ रही है कारण ये भी है कि अफसर के सहारे जो सरकार चलाने कि कोशिश हुई उससे पार्टी के साथ साथ लोकतांत्रिक संस्थान भी कमजोर हुआ और धीरे धीरे पूरी प्रशासनिक व्यवस्था एक व्यक्ति पर केन्द्रीत हो कर रह गया जिसका खामियाजा राज्य भुगत रहा है ।

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वैसे रघुवंश सिंह के जाने से गंगा के उस पार वाले इलाके में समाजवादी विचार से जुड़े लोग जो राजद के साथ खड़े थे वो राजद से दूर हुए और उसका नुकसान लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी राजद को भुगतना पड़ा और जगदानंद सिंंह कमजोर हुए तो शहाबाद और मगध के इलाके में जो गैर यादव और मुसलमान राजद से जुड़े हुए हैं राजद से दूर हो जाएगे ये खतरा है ।

नीतीश को सरकार चलाने कि जो जिद्द है वोट यादव और मुसलमान का लीजिएगा और सत्ता में भागादीरी बीजेपी मान्डसेट वाले लोगों को दीजिएगा 2024 तो छोड़िए 2023 का बजट वाला सत्र चलाना मुश्किल हो जाएगा यह दिखने लगा है ।

– संतोष सिंह के कलम से

अब बस करिए नीतीश जी

कुढ़नी विधानसभा उप चुनाव को कवर करने के दौरान पटना मुजफ्फरपुर मुख्य मार्ग स्थिति तुर्की फ्लाई ओभर के नीचे से बाये एक रास्ता जाती है जो आगे पताही वाली सड़क में मिल जाती है रास्ते में बीजेपी नेता सुरेश शर्मा का मेडिकल कॉलेज भी है सड़क के किनारे दोनों तरफ कई किलोमीटर में दलित जाति के लोग झोपड़ी बनाकर रहता है संयोग ऐसा रहा है जहां कहीं भी मतदाताओं का नब्ज़ टटोलने रुकते थे थोड़ी देर में जदयू के नेता महेश्वर हजारी भी पहुंच जाते थे शायद उन्हें इन इलाकों की जिम्मेदारी दी गयी थी महेश्वर हजारी को कोई जगह मतदाताओं के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा वो सब देखते लोगों से बात करते आगे बढ़ रहे थे ।   

इसी दौरान एक दरवाजे पर कुछ अलग तरह की भीड़ दिखाई दी गाड़ी रोका और कुछ समझने कि कोशिश कर ही रहा था कि मेरी नजर एक महिला के ऊपर पड़ जो किसी से लिपट कर जोड़ जोड़ से रो रही थी गाड़ी से उतरे और आगे बढ़ लोगों से पूछा क्या हुआ पता चला उस महिला का बेटा शराब मामले में तीन माह से जेल में बंद था और आज ही जेल से बाहर निकला है ।

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उत्सुकता बस मैं उस महिला के पास चला गया और पूछा क्या हुआ फिर उस महिला ने जो बताया सच कहिए तो मुझे नीतीश कुमार के जिद्द से नफरत हो गया उसका एक बेटा है जो दिल्ली में कमाता था दुर्गा पूजा में घर आया था ,मित्र के साथ शराब पीते पकड़ा गया पुलिस घर पर आयी सर्च के दौरान जो भी 15 से 20 हजार रुपया कमा कर लाया था वो राशी भी पुलिस वाले साथ लेकर चले गये ।                             

घर में अकेली एक माँ बेटे को जेल से बाहर निकालने में उसके पास ससुर का दिया एक कट्ठा जमीन बेचना पड़ा और 18 हजार रुपया बेल कराने में खर्च हुआ जिसमे उक्त महिला की माने तो 10 हजार रुपया जज साहब भी लिए और 8 हजार रुपया वकील इसमें कितनी सच्चाई है कहना मुश्किल है लेकिन कोर्ट कचहरी देखने वाले इसके एक दूर के रिश्तेदार ने इसी नाम पर पैसा लिया जमीन बेचने और और पैसा के व्यवस्था में करीब तीन माह लग गया तब तक उसका बेटा जेल में ही रहा ।   

जैसे जैसे उसे भरोसा हो रहा था कि सामने वाला पत्रकार मेरी बात को लोगों तक पहुंचाएगा वैसे वैसे वो खुल रही थी सर नीतीशवा मिल जाए तो झाड़ू से मरवाई ,भूमिहरवा सब शराब बेच भी रहा है और पी भी रहा है उसको पुलिस कुछ नहीं करता गरीब सब को पकड़ पकड़ कर जेल भेज रहा है नीतीशवा देखते देखते 25 से 30 महिला पहुंच गई और फिर क्या था सर शराबबंदी कानून के लिए लड़े हम लोग और उलटे हम्ही लोगों का बेटा भतार जेल जा रहा है और शराब का काम करने वाला मस्त है सर सामने में जो घर देख रहे हैं शराब बेच कर बनाया है, तीन ट्रक चल रहा है इसका और जेल जा रहे हैं हम लोग ई बार नीतीशवा के बता देवई गरीब के मार देलक ई शराबबंदी ।            

जहां भी गये जिस गांव में गये बस एक ही चर्चा शराबबंदी शराबबंदी बातचीत से तो ऐसा ही लगा भ्रष्टाचार और अफरशाही से जितना लोग परेशान नहीं हुआ उससे कहीं अधिक शराबबंदी कानून से आम लोग परेशान है जो हाल देखने को मिला है वो अगर वोट में परिणत हो गया तो नीतीश कुमार की सबसे बड़ी हार कुढ़नी में होगी ।

नीतीश का साख दाव पर

Bihar By Election: कुढ़नी विधानसभा चुनाव निलाभ और ओवैसी के बीच फंसा गया है । वैसे नीतीश कुमार की अलोकप्रियता और राजद के वोटर का आक्रामक ना होना बीजेपी को रेस में बनाये हुए हैं। वैसे तेजस्वी के सभा के बाद बदलाव जरूर हुआ है लेकिन स्थिति ऐसी नहीं है कि महागठबंधन की जीत तय हो।

कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव के बहाने काफी लम्बे अरसे बाद गांव के लोगों के बीच घंटों रहने का मौका मिला इस दौरान सभी वर्ग जाति और समुदाय से जुड़े लोगों से हर मुद्दे पर खुलकर चर्चा हुई, हैरान करने वाली बात यह रही कि चुनाव जदयू लड़ रही है लेकिन नीतीश कुमार कहीं चर्चा में नहीं है,नीतीश को लेकर एक अजीब तरह की बेरुखी देखने का मिला ,नीतीश पर चर्चा करने को तैयार नहीं है।

महिला वोटर नीतीश का नाम सुनते ही उसके चेहरे का भाव बदल जाता था और उनमें नीतीश के नाम के साथ एक अलग तरह का विश्वास झलकता था लेकिन उसके चेहरे से वो विश्वास और भरोसा खत्म हो गया है एक अजीब तरह का निराशा देखने को मिला ।

कुढ़नी के दलित बस्ती में लोगों से बात करने के बाद समझ में आया कि मांझी शराबबंदी को लेकर बार बार क्यों बयान दे रहे हैं भ्रष्टाचार और अफरशाही से कहीं अधिक लोग शराबबंदी के नाम पर उत्पाद विभाग और पुलिस के जुल्म से परेशान है जो शराब नहीं भी पीता है वह भी गुस्से में है गांव शराब माफिया के हवाले हो गया है और सब कुछ वही तय कर रहा है नीतीश की अलोकप्रियता के पीछे शराबबंदी एक बड़ी वजह है।

हालांकि कुढ़नी विधानसभा मुजफ्फरपुर शहर और पटना समस्तीपुर फोरलेन पर होने के कारण शहरीकरण काफी तेजी से हुआ है और उसका असर यहां रहने वाले लोगों के मानसिकता पर साफ दिखता है और इसका लाभ स्वाभाविक तौर पर बीजेपी को है लेकिन निलाफ अभी भी मैदान में बहुत ही मजबूती से डटा हुआ है और उसके साथ का भूमिहार का युवक अभी भी डटा हुआ और उसी अंदाज में साहनी वोटर भी निलाफ के साथ खड़ा है इस वजह से बहुत कुछ अभी भी स्पष्ट नहीं है।

वही मुसलमान का युवक ओवैसी के साथ है लेकिन इन सबके बीच नीतीश की अलोकप्रियता महागठबंधन के लिए भारी पड़ रहा है क्यों कि अति पिछड़ा वोटर भी नीतीश के साथ उस मजबूती के साथ खड़ा नहीं है महंगाई को लेकर जनता त्रस्त है और वो बोल भी रहा है कि मुफ्त में चावल गेहूं देकर दाल और खाने वाले तेल का दाम बढ़ा दिया है।

महंगाई बड़ा मुद्दा है और 2024 का चुनाव कुछ अलग होगा ऐसा महसूस हो रहा है लेकिन नीतीश महागठबंधन के लिए लायबिलिटी ना बन जाए इसका खतरा साफ दिख रहा है वैसे नीतीश इस तरह की स्थिति से बाहर निकलने के माहिर खिलाड़ी रहे हैं ।

आईजी विकास वैभव के दामन पर लगा दाग

ऐसी क्या मजबूरी है ,या फिर ये जरुरी है, जी है बात हम अभिषेक अग्रवाल की कर रहे हैं याद है वही अभिषेक अग्रवाल जिसने पटना हाईकोर्ट का मुख्य न्यायधीश बन कर बिहार के डीजीपी को फोन करके गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार का केस खत्म करवा लिया था।

याद आ गया ना वो अभी जेल में है ,कल इसका एक और कारनामा सामने आया है पटना सिटी स्थिति खाजेकलां थाना का एक अधिकारी कोर्ट में 13 मई 2021 को अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ दर्ज मामले में रिमांड पर लेने का आवेदन दिया है । आवेदन की सूचना पर आर्थिक अपराध इकाई में अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ दर्ज मामले का अनुसंधान कर रहे अधिकारी भागे भागे कोर्ट पहुंचा फिर जो मामले सामने आया है सुनकर हैरान रह जायेंगे।

ऐसा क्या है अभिषेक अग्रवाल में जो पुलिस महकमा इतना लाचार है । इसलिए मैंने सवाल खड़ा किया है बिहार के सीनियर आईपीएस अधिकारी अभिषेक अग्रवाल को लेकर ऐसी क्या मजबूरी था जो आंख पर पट्टी बांध लिया और उसके हर जुर्म को नजरअंदाज करता रहा। खाजेकला थाने में उस समय के थाना अध्यक्ष के बयान एक मामला अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ दर्ज किया गया था जिसमें लिखा है कि अभिषेक अग्रवाल गृह विभाग में पदस्थापित आईपीएस अधिकारी विकास वैभव बोल रहा हूं कह कर फोन किया था और दो दुकान को खाली कराने को कहा उस वक्त के पटना एसएसपी को थाना अध्यक्ष ने जानकारी दिया और उसके बाद इस मामले में थानाध्यक्ष के बयान पर अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई ।

अभिषेक अग्रवाल के फेसबुक पोस्ट को देखे तो इस प्राथमिकी के बावजूद भी वो विकास वैभव के साथ लगातार पुलिस मुख्यालय स्थित दफ्तर में मिलता रहा है इतना ही नहीं पटना एसएसपी उपेन्द्र शर्मा जिसके आदेश पर अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया था उनसे भी अभिषेक अग्रवाल आवास और गांधी मैदान स्थिति कार्यालय में जा कर मिलता रहा है ,और उस मुलाकात की तस्वीर वो सोशल मीडिया पर भी डालता रहा है ।

दिल्ली में 25 दिसंबर 2021 को अभिषेक अग्रवाल विकास वैभव के साथ एक कार्यक्रम के दौरान मंच शेयर करते दिखा है। अभिषेक अग्रवाल के फेसबुक पोस्ट को देखे तो 13 मई 2021 जिस दिन एफआईआर दर्ज हुआ है उसके बाद एक दर्जन से अधिक बार उसकी मुलाकात विकास वैभव से हुई है ।

विकास वैभव अभिषेक अग्रवाल के बेटे के जन्मदिन में, शादी के सालगिरह जैसे व्यक्तिगत फंक्शन में भी शामिल हुए हैं ऐसे में सवाल उठना लाजमी है ऐसा क्या रिश्ता था दोनों के बीच जो विकास वैभव जैसा अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी नजरअंदाज करते रहे ।

क्योंकि खाजेकला थाने में जो एफआईआर दर्ज हुई थी उसकी जानकारी विकास वैभव को भी दी गयी है क्यों कि अग्रवाल जिस नम्बर का इस्तेमाल कर रहा था उस नम्बर के डीपी में बिहार सरकार के गृह विभाग का लोगो लगा हुआ था ऐसे में सवाल तो बनता है ये मेहरबानी क्यों।

ये शराब बहुत जालीम है नीतीश जी

ये शराब बड़ी जालिम चीज है,चले थे गांधी बनने और आज वही शराब नीति नीतीश कुमार के गले का फास बन गया है। जी हां, 2020 में सरकार बनने के बाद से अभी तक किसी एक विभाग की सबसे अधिक समीक्षा नीतीश कुमार द्वारा किया गया है तो वह है उत्पाद विभाग और उसी का नतीजा था कि नीतीश कुमार ने शराबबंदी कानून में संशोधन करते हुए शराब पीकर पकड़े जाने पर 2-5 हजार रुपये के बीच जुर्माना लेकर छोड़ने की बात सामने आयी और जुर्माना नहीं देने पर एक महीने की जेल हो सकती है।

संशोधन के बावजूद पुलिस जुर्माना लेने के बजाय कोर्ट में भेज देती है इस दौरान शराब पीने वाले को भी परेशानी झेलनी पड़ती है ।आंकड़ा बता रहा है कि शराब पीकर पकड़े गये अभियुक्तों में 80 प्रतिशत से अधिक गरीब और कमजोर वर्ग के लोग हैं, पैसे वाले पकड़े भी जाते हैं तो वही के वही पुलिस पैसा वसूल कर छोड़ देता है ।इस वजह से गरीब लोगों में शराब कानून को लेकर एक अलग तरह का गुस्सा पैदा होता जा रहा है ।

महिला अब शराबबंदी पर बात करना नहीं चाहती है
मोकामा और गोपालगंज विधानसभा उप चुनाव के दौरान मोकामा में कुछ ज्यादा तो समझ में नहीं आया लेकिन गोपालगंज में महिलाओं में नीतीश कुमार को लेकर वह उत्साह देखने को नहीं मिला जो पहले देखने को मिलता था। बातचीत में पता चला कि शराबबंदी कानून को लेकर महिला नीतीश से निराश है और वो अब हार मान गयी है ।

इसका असर यह देखने को मिला कि वोट देने को लेकर महिलाओं में जो उत्साह पहले रहता था उसमें कमी आयी है । चुनाव के बाद मैंने इसके लिए अलग अलग जिलों में एक हजार महिलाओं से बात किये सभी के सभी शराबबंदी के पक्ष है लेकिन समस्या यह आ रही है कि गांव गांव में डोर टू डोर शराब पहुंचाने वालों का जो सिंडिकेट खड़ा हो गया है उस सिंडिकेट में कोई उसका देवर है तो कोई जाउत है तो कोई भैसुर है मतलब पीने वाला भी और शराब पहुंचाने वाला भी एक दूसरे का रिश्तेदार ही है ।

इस वजह से महिला अब उस अंदाज में विरोध नहीं कर पाती है क्यों कि विरोध करती है तो डोर तू डोर शराब पहुंचाने वालों का परिवार ही उसके लिए आगे आकर लड़ने लगती है इस वजह से महिलाओं में शराबबंदी को लेकर जो एकजुटता देखने को मिलता था वो पूरी तौर पर हर गांव में टूट गया है।

हालात यह है कि जीविका दीदी भी अब शराब पर चर्चा करने से डरती है क्यों कि चौकीदार से लेकर थानाध्यक्ष तक शराब कारोबारी और डोर टू डोर शराब पहुंचाने वालों के साथ खड़ी रहती है । वही जो शराब पहले सौ रुपया में मिलता था वो आज तीन सौ रुपया में मिल रहा है इस वजह से महिलाओं को घर चलाने में काफी परेशानी हो रही है इससे महिला खासा निराश है और इसका असर नीतीश कुमार के छवि पर पड़ रहा है।

Nitish Kumar and Liquor Ban

वही आकड़ा पर गौर करे तो अभी तक शराबबंदी के बाद जितनी भी गिरफ्तारी हुई है उसमें सबसे अधिक संख्या पिछड़े और दलित जाति के लोगों का है। वही इस काम में गांव स्तर पर काम करने वाला भी पिछड़ा और दलित वर्ग से ही आता है इस वजह से गांव आर्थिक व्यवस्था पूरी तौर पर बदल गया है।

डोर टू डोर शराब पहुंचाने वाले के घर कि स्थिति में बड़ा बदलाव आ रहा है इसको देखते हुए रोज नये नये लोग इस धंधे में शामिल हो रहे हैं। अब हालात यह है कि डोर टू डोर शराब पहुंचाने वालो की संख्या इतनी बढ़ गयी है कि शराब कारोबारी डोर टू डोर शराब पहुंचाने का काम देने से पहले 25 से 50 हजार रुपया लेता है उसके बाद उन्हें यह काम देता है और यह पैसा वापस नहीं मिलता है ।

एक तरह से डोर टू डोर शराब पहुंचाने का लाइसेंस निर्गत करता है जिसकी जानकारी गांव के चौकीदार से लेकर थानेदार तक को रहता है अब तो मुखिया भी इस खेल में हिस्सेदार बन गया है। इस तरह गांव स्तर पर शराबबंदी कानून पूरी तरह से फेल हो गया है । वही पुलिस को दिखाने के लिए जो कार्यवाही कर रही है उसके शिकार अधिकांश गरीब ,दलित और पिछड़ा हो रहा है इस वजह से एक नयी तरह की समस्या खड़ी होने लगी है जिसका राजनीतिक नुकसान कही ना कही नीतीश को हो रहा है और यही वजह है कि इन दिनों जदयू के नेता भी शराबबंदी कानून को लेकर बोलने लगे हैंं।

बिहार विधानसभा उप चुनाव का परिणाम तय करेगा बिहार किस दिशा में बढ़ रहा है

1991 में रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र से जनता दल से रामविलास पासवान और बीजेपी से कामेश्वर चौपाल चुनाव लड़ रहे थे ।कामेश्वर चौपाल राम जन्मभूमि का शिलान्यास किये थे इसलिए रोसड़ा लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण हो गया था क्यों कि उस समय मंडल और कमंडल की राजनीति चरम पर था।

कामेश्वर चौपाल के लिए संघ ,विहिप और बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक दिया था और इतनी महंगी चुनाव मैंने आज तक नहीं देखा है ,उस दौर में पहली बार करोड़ों रुपये खर्च किये गये थे ।रामविलास पासवान का चार गाड़ी तो कामेश्वर चौपाल का 10 गाड़ी प्रचार में लगा हुआ था ।संशाधन में इतना बड़ा फर्क था लेकिन परिणाम आया तो कामेश्वर चौपाल का जमानत जप्त हो गया ।

वो दौर था जब मैंं पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया था हालांकि उस राजनीति की उतनी समझ नहीं थी लेकिन चुनाव परिणाम आने बाद मुझे लगा कि संसाधन और सवर्ण के सहारे ही चुनाव नहीं जीता जा सकता है ।

1998 के लोकसभा चुनाव में पहली बार एक पत्रकार के रूप में चुनाव कवर करने का मौका मिला और फिर यह सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक चला आ रहा है। बीजेपी को लेकर अभी भी धारणा यही है कि यह पार्टी सवर्ण और बनिया की पार्टी है। हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव के बावजूद भी बिहार में बीजेपी अभी तक जातीय समीकरण में कोई बड़ी सेंधमारी नहीं कर पाई है ।वही 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा देखा गया कि बनिया वोटर बीजेपी से दूरी बनाने लगे और ऐसी सीट जहां राजद बनिया को टिकट दिया वहां राजद एनडीए के कोर वोटर बनिया के वोट मे सेंधमारी करने में कामयाब रहा था ।

ऐसे में कल मोकामा और गोपालगंज में जो उप चुनाव हुआ है उसमें राजद को बड़े मार्जिन से चुनाव जीतना चाहिए क्यों कि 2015 में जब नीतीश और लालू एक साथ चुनाव लड़ थे तो उस वक्त मोदी लहर के बावजूद बीजेपी का बिहार में सूपड़ा साफ हो गया था और इस बार तो सात सात पार्टी बीजेपी के खिलाफ एकजुट है।

इसलिए यह चुनाव नीतीश ,तेजस्वी और बीजेपी तीनों के लिए लिटमस टेस्ट है क्यों कि महागठबंधन के बाद जिस तरीके से नीतीश का #Body language और संवाद करने के तरीके में जो बदल आया है उसकी भी परीक्षा इस चुनाव में होने वाली है ।

इसी तरह राजद का यादव और मुसलमान समीकरण को साधु यादव और ओवैसी जैसे नेता सेंधमारी करने में कामयाब हो जाते हैं तो 2024 में ऐसे कई नेता के सहारे बीजेपी बिहार के इस मजबूत गठबंधन को ध्वस्त कर सकती है ।

इसी तरह बिहार का जो चुनावी गणित दिख रहा है उसी तरीके का परिणाम रहा तो फिर बीजेपी के लिए बिहार में वापसी करना नामुमकिन हो जायेगा देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन चुनाव भले ही दो विधानसभा में हो रहा है लेकिन बिहार किसी दिशा में बढ़ रहा है इन दो विधानसभा चुनाव के परिणाम से साफ हो जायेंगा।

डीजीपी भी बनाये जा सकते हैं अभियुक्त

पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बन कर आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार को दोष मुक्त करने का जो मामला सामने आया है यह मामला पूरी तौर पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था कैसे ध्वस्त हो गयी है इसके अध्ययन के लिए सबसे फिट केस है।

सरकार और सरकार का तंत्र कैसे काम कर रहा है ये तो आप पूर्व की स्टोरी में पढ़ ही चुके हैं आज हम आपको इतनी बड़ी घटना को लेकर विपक्ष क्या कर रहा है जरा ये दिखाते हैं। सुशील मोदी के इस ट्वीट के सहारे ही आज मैं तीन दिनों से चल रहे स्टोरी बिहार पुलिस का अपराधीकरण को आगे बढ़ाते हैं।

इतनी बड़ी बात हो गयी पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के फर्जी फोन काल के सहारे एक अपराधी आईपीएस अधिकारी को डीजीपी बचा ले गये लेकिन इतने गंभीर विषय पर नेता प्रतिपक्ष जो विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में अक्सर अफसरशाही पर बड़ी बड़ी बातें करते थे वही सुशील मोदी ,बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और सम्राट चौधरी जैसे नेता जो नीतीश सरकार पर हमला करने से चुकते नहीं है वो सारे के सारे खोमाश है जैसे लगता है कि राज्य में कुछ हुआ ही नहीं है ।

1.विपक्ष के खामोशी का राज क्या है
सुशील मोदी ट्वीट 17.10.2022नीतीश कुमार में हिम्मत हो तो पूर्व मंत्री सुधाकर को राजद से बाहर कराएं सुशील कुमार मोदी . जब भाजपा सरकार में थी, तब अपनी सीमा में रहते थे सीएम सुधाकर के बयान पर जदयू नेतृत्व की जुबान बंद क्यों ?

सुशील मोदी – ट्वीट18.10.2022माफी मांगने पर बची तेजस्वी की जमानत, हिम्मत हो तो फिर धमकाएँ सुशील कुमार मोदी
नीतीश कुमार ने जिससे घोटाले पर जवाब मांग कर गठबंधन तोड़ा था, उसके अभियुक्त बनने पर फिर हाथ क्यों मिलाया ?

ललन सिंह ने सीबीआई को दिये थे आइआरसीटीसी घोटाले के कागजात
इस मामले में गिरफ्तार अभिषेक अग्रवाल के पेज थ्री पार्टी में राज्य के कई पुलिस अधिकारी शामिल होते रहे हैं लेकिन मामले के खुलासे के बावजूद भी विपक्ष खामोश है आखिर इस खामोशी की वजह क्या है बिहार पूछता है क्यों कि आईपीएस अधिकारी संजीव कुमार (एस के) सिंघल को जब बिहार का डीजीपी नियुक्त किया गया था उस समय ये चर्चा जोड़ पर था कि जो व्यक्ति शहाबुद्दीन के खिलाफ गवाही देने का साहस नहीं जुटा पाया उसको नीतीश कुमार डीजीपी कैसे बना दिए खैर सिंघल जिसके भी कोटे से डीजीपी बने हो लेकिन विपक्ष की खामोशी पर सवाल तो बनता है इतने गंभीर मसले पर चुप्पी क्यों जबकि भ्रष्टाचार और बेलगाम अफसरशाही का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है ।यही राजनीति है और इसी राजनीति को समझने कि जरूरत है।

2. डीजीपी कब गिरफ्तार होंगे
एक और बात जो बेहद गंभीर है गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार के साथ शुरू से ही डीजीपी का साथ रहा है जब गया आईजी ने एसएसपी के शराब मामले अभियुक्त के खिलाफ हमदर्दी जताने पर सवाल खड़ा किया तो डीजीपी पूरी तौर पर एसएसपी के साथ खड़े हो गये थे इसलिए डीजीपी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के फोन कॉल की बात कही बहाना तो नहीं है ।

वैसे अभिषेक अग्रवाल (फर्जी मुख्य न्यायाधीश पटना हाईकोर्ट)और डीजीपी के बीच जो वाट्सएप संदेश है उसमें डीजीपी आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार से जुड़े मुकदमे में क्या क्या कार्यवाही हो रही है उस फाइल को फोटो खींचकर भेजते रहे हैं । मतलब दोष मुक्त करने का आधार फर्जी फोन कॉल था ऐसे में डीजीपी आईपीसी की धारा 212 का अभियुक्त है।

अब देखना यह है कि सरकार उनके रिटायर होने का इन्तजार करती है या फिर पहले ही कार्रवाई करने का आदेश देते हैं।

बिहार पुलिस का अपराधियों के साथ रिश्ता क्या कहलाता है

राजनीति का अपराधीकरण पर खुब चर्चा होती है लेकिन आज हम आपको पुलिस का अपराधीकरण पर चर्चा करने जा रहे हैं और यह चर्चा इतनी गंभीर है कि आज यह मसला किसी नेता या मंत्री से जुड़ा रहता तो अभी तक इस्तीफा हो गया रहता ।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनकर डीजीपी से बात करने वाले उस फर्जी व्यक्ति के बारे में जिसने गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार को बचाने के लिए डीजीपी को ही फोन नहीं किया मुख्यमंत्री को भी फोन किया था और जब मुख्यमंत्री सचिवालय को जब संदेह हुआ तो इसकी जांच आर्थिक अपराध इकाई द्वारा करायी गयी और फिर पूरे मामले का खुलासा हुआ।

लेकिन सवाल यह है कि अभिषेक अग्रवाल जिसने एसएसपी गया को बचाने के लिए इस स्तर का फर्जीवाड़ा किया वो पहले भी देश का गृहमंत्री बन कर फर्जीवाड़ा करने के एक मामले में दिल्ली पुलिस गिरफ्तार चुका है,इसी तरह के एक मामले में कोलकत्ता पुलिस इसको गिरफ्तार कर चुका है बिहार के आईपीएस अधिकारी सौरभ शाह के पिता से ठगी करने के मामले में भागलपुर में केस दर्ज है वहां की पुलिस इसे गिरफ्तार कर जेल भेजा है ,चार्जशीटेड है किसी भी समय इसे सज मिल सकती है।

इतने बड़े अपराधी होने का बावजूद पुलिस मुख्यालय जहां आम जन को छोड़िए पत्रकार को भी जाने की अनुमति नहीं है ।
वहां इस व्यक्ति को डीजीपी की और से छूट मिली हुई थी कि पुलिस मुख्लालय के अंदर आने के लिए किसी भी तरह के परिचय पत्र लेने कि जरुरत नहीं है ।आप समझ सकते हैं देश के गृहमंत्री के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाला व्यक्ति को इस तरह का छुट पुलिस का अपराधीकरण नहीं है।

इतना ही नहीं अभिषेक अग्रवाल के फेसबुक पेज को जब आप देखेंगे तो इसके व्यक्तिगत कार्यक्रम में बिहार के दो दर्जन से अधिक आईपीएस अधिकारी नियमित आते जाते रहे हैं क्या उन्हें पता नहीं था कि यह व्यक्ति देश के गृहमंत्री के नाम पर फर्जीवाड़ा करने के आरोप में महीनों तेहाड़ जेल में बंद रहा है इसे क्या कहेंगे आप यह पुलिस का अपराधीकरण नहीं है।

6 जून 2022 को अभिषेक अग्रवाल के बेटे का जन्मदिन था इस अवसर पर पटना के एक बड़े होटल में जन्मदिन समारोह का आयोजन किया गया जिसमें बिहार के कई आईपीएस अधिकारी मस्ती करते हुए दिख रहे हैं,बिहार के डीजीपी के साथ कई ऐसी तस्वीरे हैं जिसे देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता है।

31 मार्च 2022 को इन्होंने एक तस्वीर लगायी है जिसमें कई जिले के एसपी इसके साथ होटल में खाना खा रहा है एक आईपीएस अधिकारी जो महाराष्ट्र से पटना लौटता है उसके स्वागत में आईपीएस मेस में गुलदस्ता के साथ ये उपस्थित है क्या ऐसे सीनियर पुलिस अधिकारी को पता नहीं था कि इतने संगीन मामले में यह जेल जा चुका है और अगर नहीं पता था तो फिर ऐसे अधिकारियों के पुलिस में बने रहने का मतलब क्या है।

क्यों कि पुलिस एक ऐसी संस्था है जहां अधिकारियों का व्यक्तिगत चरित्र भी पूरे महकमा को प्रभावित करता है क्यों कि पुलिस राज्य के कानून का प्रमुख होता है जिसको कानून व्यवस्था बनाये रखने और कानून के राज को स्थापित करने की जिम्मेवारी होती है और वही जब अपराधियों से इस तरह गलबहियां करते दिखेंगे तो फिर क्या होगा कानून के राज का ।

इतनी तस्वीर आज किसी मंत्री और नेता के साथ इस तरह के गंभीर आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति के साथ होता तो अभी तक सरकारे हिल गयी होती राजनीतिक दल जगह जगह आन्दोलन शुरु कर दिया रहता है ऐसे में इन अधिकारियों पर कार्यवाही करने में सरकार कितना वक्त लगाती है सबकी नजर इस आ टिकी है।

पूर्णिया एसपी निकला लूटेरा 6 वर्ष के नौकरी में करोडों की कमाई

बिहार में ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर जो खेल चल रहा है पूर्णिया एसपी उसका एक प्यादा है और इस प्यादा के सहारे इस खेल को समझा जा सकता है, दयाशंकर 2014 बैच का आईपीएस अधिकारी है। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 2016 में उसकी पोस्टिंग अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के रूप में आरा जिला में हुआ और फिर वही से इसे शेखपुरा जिला का एसपी बनाया गया।

शेखपुरा जिला एक अनुमंडल और 9 थाने का जिला है लेकिन अवैध पहाड़ खनन के कारण बिहार का यह धनबाद है । तीन वर्ष से अधिक समय तक ये शेखपुरा का एसपी रहाइस दौरान एसपी के संरक्षण में अवैध खनन की लगातार शिकायतें पुलिस मुख्यालय को मिल रही थी ,हुआ क्या इस पर कार्यवाही होने के बजाय इन्हें 31 दिसम्बर 2021 को शेखपुर से सीधे उठा कर चार अनुमंडल 40 थाना और प्रमंडल मुख्यालय पूर्णिया जिला का एसपी बना दिया गया।

जबकि एसपी की पोस्टिंग करने के समय पटना,मुजफ्फरपुर, दरभंगा,भागलपुर,गया और पूर्णिया में जो सीनियर आईपीएस अधिकारी होते हैं जिनके पास तीन चार जिले में पुलिसिंग का अनुभव रहता है उन्हें पोस्ट किया जाता है । ऐसे में दयाशंकर को सीधे शेखपुरा से पूर्णिया का एसपी बनाये जाना साधारण बात नहीं है क्यों कि नीतीश कुमार के यहां ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर एक व्यवस्था है फाइल हमेशा डीजीपी के यहां से मूव होता है और उसमें डीजीपी को पूरी स्वतंत्रता रहती है किसको कहां पोस्ट करना है और उस अधिकारी का कार्यक्षमता कैसा है वो लिखनी पड़ती है इतना ही नहीं अगर किसी तरह की शिकायत है तो वह भी उस फाइल पर दर्ज करना है और पोस्टिंग से पहले खुल कर चर्चा होती है बहुत कम ऐसे मौके आये हैं जब सीधे सीएम के यहां से नाम डीजीपी को भेजा गया हो। फिर उस लिस्ट पर सीएम,मुख्य सचिव और डीजीपी के साथ साथ सीएम के प्रधान सचिव बैठ कर निर्णय लेते हैं जिसका पैरवी रहता है उस अधिकारी के नाम के सामने उस नेता का नाम लिखा रहता है ।

पैसा वाला खाता अलग रहता है जो पूरी तौर पर अधिकारी के स्तर पर ही चलता है और उसका अलग अलग तरीका है चाहे आरसीपी का ही जमाना क्यों ना रहा हो है। कौन किस कोटा से हैं इसकी जानकारी सीएम को जरूर रहती है । साथ ही एसपी और डीएसपी स्तर के अधिकारियों के तबादले में नीतीश कुमार डीजीपी के पसंद को नजरअंदाज नहीं करते हैं अभयानंद के बाद जो भी डीजीपी बने सीएम के इस शैली का खूब लाभ उठाया है और जमकर वसूली किया है।

जहां तक मेरी जानकारी है दयाशंकर मामले में नाम डीजीपी कार्यालय से ही आया था और इसके उपर खनन माफिया से साठगांठ और थाना बेचने का जो आरोप लगा था बैठक में इसकी चर्चा तक नहीं हुई ।कहा ये जा रहा है कि दयाशंकर को शेखपुरा से सीधे पूर्णिया पोस्टिंग पर सवाल भी उठे थे लेकिन बैठक में मौजूद अधिकारी दयाशंकर के साथ खड़े थे ।

दयाशंकर बिहार का रहने वाला है लेकिन इसकी कोई ऐसी राजनीतिक पैरवी नहीं है जिसके सहारे शेखपुरा से सीधे पूर्णिया पहुंच जाये हालांकि दयाशंकर के पूर्णिया एसपी बनने के कुछ ही दिनों के बाद सीएम तक यह खबर पहुंचने लगी थी कि पूर्णिया एसपी शराब माफिया से जुड़ कर डालखोला से ट्रक से शराब का तस्करी करावा रहा है और इस सूचना के बाद ही सीएम ने एसपी पूर्णिया पर एक्शन लेने को कहा ।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐसे अधिकारियों का फिल्ड में पोस्टिंग कैसे हो जा रहा है जबकि जिला जाने की स्थिति में सौ से ज्यादा आईपीएस अधिकारी सरकार के पास नहीं है कौन क्या है क्या कर सकता है बिहार का बच्चा बच्चा जानता है ऐसे में मुख्यमंत्री जिस विभाग के मंत्री हो वहां इस तरह का खेल हो तो सवाल उठना लाजमी है वैसे इस एक्शन से आईपीएस अधिकारियों में भय तो जरूर व्याप्त हुआ है और पुलिस मुख्यालय स्तर से इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर के फील्ड में भेजने से जुड़ी एक फाइल जो काफी तेजी से मूवमेन्ट कर रहा था कल सुबह ही रुक गया देखिए आगे आगे होता है क्या वैसे इस एक्शन के बाद तबादले नीति में बदलाव आएगा ऐसा दिख रहा है।

जगदानंद सिंंह को राजद का प्रदेश अध्यक्ष बने रहना चाहिए

केरल निकलने से एक दिन पहले कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का फोन आया था जिस दौरान विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और नीतीश कुमार की भूमिका पर को लेकर विस्तृत चर्चा हुई और उन्होंने कहा कि किस तरीके से मंत्री के आदेश के बावजूद विभाग से सचिव फाइल को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। मैंने उन्हें कहा डॉ. एन सरवन कुमार को मैं पटना डीएम के समय से देख रहा हूं और बिहार में कुछ अच्छे आईएएस अधिकारी हैं उसमें से एक डॉ. एन सरवन कुमार है लेकिन मंत्री जी इस पर सहमत नहीं थे ,और उनका मानना था कि सचिव ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। मैंने कहा हो सकता है आप मंत्री है करीब से देख रहे हैं ।

लेकिन आपको यह सोचना चाहिए कि ये जो सरकार बनी है उसका लक्ष्य क्या है, ठीक है आपके विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है और इसमें कही से कोई संदेह भी नहीं है लेकिन इस सरकार के मुखिया नीतीश कुमार है तेजस्वी नहीं इसलिए आपके नजर में सरकार की पॉलिसी कितनी भी गलत क्यों ना हो आपको उस पर सवाल उठाने का नैतिक अधिकार नहीं है क्यों कि आप उस मंत्रिमंडल के हिस्सा है जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं।

राजद और लालू परिवार के प्रति आपके पिताजी और आपकी प्रतिबद्धता को लालू जी समझते हैं नीतीश नहीं समझते हैं और इस बार जो दिख रहा है लालू प्रसाद कुछ भी ऐसा स्वीकार नहीं करेंगे जिससे गठबंधन को लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न हो और बेवजह बयानबाजी होता रहे ।

2015 की स्थिति अलग थी इसलिए लालू प्रसाद रघुवंश सिंह को रोक नहीं पाते थे और जहां तक मेरी जानकारी है नीतीश के खिलाफ रघुवंश सिंह जो भी बयान देते थे उसमें लालू प्रसाद की एक प्रतिशत भी सहमति नहीं रहती थी ।

लेकिन दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि लालू प्रसाद डाट कर नहीं बोल पा रहे थे और इस वजह से जो हुआ सब सामने है।
इस बार स्थिति साफ अलग है लालू प्रसाद के साथ तेजस्वी भी है जिन्हें आगे की राजनीति करनी है लक्ष्य 2024 है और उस लक्ष्य को लेकर नीतीश और लालू दोनों गंभीर है ऐसे में आपको बीच का रास्ता निकालना चाहिए और इसके लिए आप मीडिया से दूरी बनाये क्यों कि जब से नीतीश बीजेपी से अलग हुआ है हम लोग बीजेपी का लठैत बन गये हैं।

और सुबह से शाम तक लठैती ही करते रहते हैंं। और आप का बयान उसे लठैती करने मौका दे रहा है। भाई जी आइए केरल से तो बात करते हैं क्या करना चाहिए लेकिन केरल यात्रा के दौरान ही खबर आयी कि सुधाकर सिंह इस्तीफा दे दिए हैं मेरा मानना है कि उनके इस्तीफे से बिहार के किसान और कृषि विभाग को नुकसान हुआ है क्यों कि पहली बार ऐसा कोई व्यक्ति कृषि मंत्री बना था जो खुद खेती और खेती से जुड़े व्यापार को समझता था और खुद करता भी था ।इसलिए पदभार ग्रहण करने के साथ ही वो उन चीजों तक पहले ही दिन पहुंच गये जहां पहुंचने और समझने में मंत्री को वर्षो लग जाता है।

आप ईमानदार हैं या फिर राजनीति में ईमानदारी बनाये रखना चाहते हैं ये आपका व्यक्तिगत चरित्र हो सकता है जिस सरकार के आप अंग है या फिर जिस पार्टी से आप जुड़े हैं वो आपके इस विचार को आत्मसात कर ले ये जरुरी नहीं है ।

ऐसे में आपको तय करना है कि राजनीति में रहना है या नहीं रहना है क्यों कि राजनीति ही एक ऐसी विधा है जहां परिस्थिति के साथ सत्य और ईमानदारी की परिभाषा बदलती रहती है आज की राजनीति का सत्य यही है कि जो गलती सुधाकर सिंह ने की है वो गलती जगतानंद सिंह को नहीं करनी चाहिए।

लालू और तेजस्वी ने जिस भरोसे के साथ जगतानंद सिंह को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाया है उस भरोसा के लिए जगतानंद सिंह को अंतिम क्षण तक खड़े रहना चाहिए।बिहार की राजनीति में जितने भी चेहरे हैं उनमें से नीतीश कुमार के सबसे करीबी कभी जगतानंद सिंह रहे हैं।

रिश्ता इतना ही गहरा था कि जगतानंद सिंह नीतीश कुमार के बहन की शादी की बरतुहारी किए हुए हैं उनकी सहमति के बगैर किसी भी बहन की शादी नहीं हुई, जगदानंद सिंह लालू प्रसाद से कहीं अधिक करीब नीतीश कुमार के थे ।

लेकिन जब नीतीश कुमार लालू का साथ छोड़े तो जगतानंद सिंह नीतीश कुमार के साथ नहीं गये और उससे चिढ़ कर नीतीश ने उनके दोनों बेटे को अपनी और कर लिये ताकी जगतानंद सिंह झुक जाये लेकिन जगतानंद सिंह ने लालू प्रसाद का साथ नहीं छोड़ा और नीतीश के कहने पर ही बीजेपी सुधाकर सिंह को रामगढ़ से टिकट दिया इसके बावजूद जगदानंद सिंह राजद उम्मीदवार के साथ खड़े रहे और इस वजह से सुधाकर सिंह को हार का सामना करना पड़ा था ।

देश की राजनीति में इस तरह के उदाहरण बहुत ही कम है ऐसे में जगदानंद सिंह को नीतीश कुमार के उन कृत्य को भूल जाना चाहिए जिसमें नीतीश कुमार अहंकार में जगतानंद सिंह के परिवार तक को तोड़ने के स्तर तक पहुंच गये थे। कुछ इसी तरह का व्यक्तिगत द्वेष नीतीश कुमार और रघुवंश सिंह के बीच भी था लेकिन जब लालू प्रसाद साथ आने का फैसला कर लिया तो रघुवंश सिंह को लालू प्रसाद के उस फैसले का सम्मान करते हुए अपने अनुभव का इस्तेमाल बिहार सरकार के कामकाज में करना चाहिए था लेकिन उन्होंने उसको तोड़ा इसलिए राजद और लालू प्रसाद के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा देने के बावजूद आज उनकी राजनीति घेरे में है।

ऐसे में यह सर्वविदित होने के बावजूद भी कि नीतीश कुमार जगतानंद सिंह को झुकाने के लिए सभी तरह का दावा 2005 से ही खेल रहे हैं आज तक वो सफल नहीं हुए ।

लेकिन एक राजनीतिक चूक ने जगतानंद सिंह को आज बैंक फुट पर लाकर खड़ा कर दिया है और कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का जाना नीतीश का जगदानंद सिंह को मिट्टी में मिला देगे का जो प्रण लिया था उसमें नीतीश कुमार को पहली बार सफल हो गये, क्यों कि जिस लक्ष्य और विचार को लेकर नीतीश कुमार लालू के साथ आये हैं वो नीतीश और जगतानंद सिंह की व्यक्तिगत लड़ाई से कहीं ऊपर है ऐसे में सुधाकर सिंह को भी और जगदानंद सिंह को भी राजनीति की जो धारा अभी चल रही है उसमें मूल्य सिद्धांत और व्यक्तिगत दोष को छोड़कर साथ साथ चलने कि जरूरत थी।

याद करिए महाभारत को भीष्म सहित हस्तिनापुर के सारे योद्धा यह जानते हुए कि दुर्योधन गलत है फिर भी सारे लोग दुर्योधन के साथ खड़े रहे यही राजनीति का उसूल है आप जिसके साथ खड़े हैं अंतिम दम तक उसके साथ खड़े रहे। यही नैतिकता रही है राजनीति और सत्ता की और जनता भी इसी नैतिकता को स्वीकार करती है।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के चुनाव में ऋषि सुनक अंतिम समय में इसलिए भी पिछड़ गये कि जनता उनसे सवाल करने लगी कि जिस बाइडेन ने आपको यहां तक पहुंचाया उसका साथ आप छोड़ दिए तो फिर आप पर भरोसा के लायक नहीं है।

ऐसे में जगदानंद सिंह को राजद के प्रदेश अध्यक्ष बने रहते हुए नीतीश के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चलना ही आज की राजनीति का तकाजा है और इसी राजनीति के सहारे आप नीतीश की राजनीति को विफल कर सकते हैं ।

क्या नीतीश वीपी सिंह के नक्शे कदम पर बढ़ रहे हैं?

क्या देश नीतीश में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह वाली छवि देख रही है!
मीडिया के एक सवाल के जवाब में ललन सिंह ने कहा था कि नीतीश कुमार को फूलपुर और मिर्जापुर के साथ साथ कई जगह से चुनाव लड़ने का संदेशा आया है लेकिन लोकसभा चुनाव में अभी बहुत वक्त है और नीतीश जी चुनाव लड़ेंगे इस पर अभी तक कोई विचार नहीं हुआ है इसलिए इस तरह के सवाल का कोई मतलब नहीं है।

लेकिन मीडिया ने इस खबर को ऐसा परोसा मानो ललन सिंह ने फूलपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दिया खबर ब्रेक होते ही राष्ट्रीय मीडिया में भूचाल आ गया शाम का सारा प्राइम डिबेट फूलपुर पर आकर ठहर गया देखते देखते सारा राष्ट्रीय चैनल फुलपूर की और प्रस्थान कर गया और गांव गांव ,चौक चौक पर लोगों से सवाल करने लगा नीतीश चुनाव लड़ने आ रहे हैं, आपकी क्या राय है।

खबरे भले ही 2024 का नब्ज टोटलने को लेकर जदयू द्वारा प्रायोजित किया गया था लेकिन मीडिया जब फूलपुर पहुंची तो ऐसे लगा जैसे उनके पहुंचने से पहले गांव गांव मे नीतीश के चुनाव लड़ने की चर्चा शुरु हो गयी है, सारे चैनल के रिपोर्ट को देखे तो बिहार से कही ज्यादा यूपी वाले इस खबर को लेकर उत्साहित हैं।

एक राष्ट्रीय चैनस का पत्रकार चलते चलते एक दरवाजे पर रुकता है और वहां बैठे लोगोंं से सवाल करता है नीतीश आ रहे हैं क्उया कहना है आपका उस व्यक्ति ने नीतीश के सहारे जो बाते कही रिपोर्टर साहब सोच में पड़ गये, गांव वालों ने गठबंधन अभी हुआ भी नहीं है लेकिन नाम भी रख दिया संयुक्त मोर्चा के उम्मीदवार नीतीश जी आय़ेंगे तो मोदी जी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा । जिस अंदाज में वहां बैठे लोग बोल रहे थे कि रिपोर्टर को रहा नहीं गया और उक्त व्यक्ति की जाति जानने के लिए नाम पुंछ डाला वहां बैठे सारे के सारे व्यक्ति ब्राह्मण थे रिपोर्टर हैरान आप लोग नीतीश की तारीफ कर रहे हैं मतलब नीतीश के नाम की चर्चा के साथ ही यूपी की राजनीति में भी एक अलग तरह माहौल अभी से ही बनना शुरू हो गया । इस खबर को जिस तरीके से राष्ट्रीय मीडिया ने कवर किया है अगर लड़ाई आमने सामने हुई तो मोदी का मीडिया मैनेजमेंट बहुत प्रभावित नहीं कर सकता है ऐसा नीतीश के बिहार से बाहर निकलने के बाद दिखने लगा है ।

Nitish Kumar

वैसे अधिकांश मीडिया हाउस के टॉप लेवल पर कोई ना कोई है जिनसे नीतीश कुमार को बेहतर रिश्ता रहा हैं साथ ही मोदी से जो प्रताड़ित वर्ग है वो पूरी तौर पर नीतीश के साथ होते जा रहा है जिस वजह से नीतीश को राष्ट्रीय स्तर पर फंड से लेकर अन्य स्रोतों तक पहुंच काफी तेजी से बढ़ती जा रही है फिर भी नीतीश काफी सावधान है और इस इमेज से बचना चाह रहे हैं कि नीतीश कुमार 2024 के पीएम उम्मीदवार है क्योंकि उनको पता है जब तक विपक्ष अलग अलग रहेंगा इसका कोई मतलब नहीं है।

इसलिए नीतीश कुमार की कोशिश यह है कि वीपी सिंह के नेतृत्व में जिस तरीके से 1989 में देश के सभी विपक्षी पार्टियां एक साथ मिलाकर जनता दल बनाया था ठीक उसी तरह से पहले देश स्तर पर बिखरे सारे विपक्ष को एक दल में विलय करा जाए ताकि टुकड़े टुकड़े में जीत कर आने के बाद पीएम पद की दावेदारी में वो मजबूती नहीं रहेंंगी जैसे विलय के बाद एक दल के रूप में जीत कर आने के बाद वो मजबूती नहीं रहेंगी इसलिए मीडिया जब फूलपुर से चुनाव लड़ने की बात कि तो नीतीश सिरे से खारिज कर दिया और कहां कि मेरी प्राथमिकता विपक्ष को पहले एक करना है ।

हालांकि जो खबर आ रही है राजद,जेडीएस और ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी से सहमति दे दी है और सपा से बातचीत चल रही है वैसे कल युवा चेहरे को आगे करने की बात कर नीतीश ने एक बड़ा दाव खेल दिया है वैसे 25 सितंबर को देवीलाल के जयंती के मौके पर आयोजित रैली में विपक्षी एकता को लेकर बड़ी घोषणा हो सकती है।

शाह ने नीतीश की घेरेबंदी शुरु की

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सीमांचल के सहारे लोकसभा 2024 का आगाज करने 23 और 24 सितंबर को पूर्णिया और किशनगंज के दौरा पर आ रहे हैं स्वाभाविक है यह इलाका बीजेपी के हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव में पूरी तरह से फिट बैठता है।
ऐसे में नीतीश कुमार के अलग होने के बाद बिहार की राजनीति में बने रहने के लिए अभी से ही यूपी की तरह यहां भी कैराना की खोज बीजेपी ने शुरु कर दी है हालांकि सीमांचल के अररिया, किशनगंज कटिहार और पूर्णिया इलाके में बीजेपी की पकड़ मजबूत हो इसके लिए संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद 1981 से ही कोशिश कर रहा है लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली है।

वैसे बीजेपी का कोई बड़ा नेता पहली बार बिहार के इन इलाकों में सेंधमारी करने की मुहिम शुरू करने जा रहा है कितना सफल होगा कहना मुश्किल है लेकिन पहली बार बड़ी कोशिश शुरु होने वाली है ये जरूर दिख रहा है और निशाने पर नीतीश है । क्यों कि इस इलाके में अभी भी नीतीश की पकड़ मजबूत है पिछले विधानसभा चुनाव में इन्ही इलाकों मेंं चिराग फैक्टर भी प्रभावी नहीं रहा था। सीमांचल के चुनावी समीकरण की बात करे तो यहां चार लोकसभा क्षेत्र हैंं जहां बिहार का सर्वाधिक मुस्लिम वोटर है ।किशनगंज यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 67 फीसदी है, कटिहार जहां मुस्लिम वोटर की संख्या 38 फीसदी, अररिया जहां 32 फीसदी है और पूर्णिया जहां 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है।

इन लोकसभा क्षेत्र की बात करे तो एनडीए के साथ जब जब नीतीश साथ रहे 2009 के लोकसभा चुनाव में और 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए जीत हासिल की है । नीतीश अकेले चुनाव लड़े तो 2014 के मोदी लहर में भी ये सारी सीटें बीजेपी हार गयी थी ,मतलब इन इलाको में मुस्लिम वोटर के अलावे बड़ी संख्या में अति पिछड़ा वोटर है और जब तक अति पिछड़ा वोटर को साधने में बीजेपी कामयाब नहीं हो जाती है तब तक बहुत मुश्किल है इन इलाकों में बीजेपी की वापस । वैसे ये जो इलाका है पूरी तौर पर कृषि आधारित इलाका है और शहरीकरण नहीं के बड़ाबड़ हुआ है ।वहीं यादव जो हिन्दू में मजबूत तबका है उसमें अभी भी लालू परिवार का तिलिस्म पूरी तौर पर खत्म नहीं हुआ है यू कहे तो अभी भी मजबूत स्थिति में है ऐसे में इन इलाकों में हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव को आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल है साथ ही इन इलाकों में बीजेपी का वैसा जमीनी नेता पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति में नहीं है जो माहौल बना सके ।

अररिया के सांसद जरुर अति पिछड़ी जाति से आते हैं लेकिन वो उतने प्रभावी नहीं हैं और क्षेत्र से भी बाहर ही रहते हैं ।वैसे यह इलाका कभी राजद का गढ़ माना जाता था लेकिन नीतीश कुमार यादव के खिलाफ अति पिछड़ों की राजनीति करके राजद को इन इलाकों से सफाया कर दिया था और अभी भी जदयू का सबसे मजबूत किला यही इलाका है, कटिहार और पूर्णिया में जदयू का सांसद है और आज भी जदयू का सबसे अधिक विधायक इन्ही इलाकों से जीत कर आया है ।इसलिए बीजेपी के लिए और भी बड़ा चुनौती है क्यों कि नीतीश कुमार के साथ जो वोटर है उसको हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव में बांटना यादव की तुलना में मुश्किल है वैसे अमित शाह की यात्रा को लेकर जदयू कुछ ज्यादा ही सचेत है क्योंकि उन्हें पता है कि इस इलाके में नीतीश की पकड़ कमजोर हुई तो नीतीश की सियासत ही खत्म हो जायेंगी और यही वजह है कि अमित शाह के दौरा के बाद महागठबंधन इन इलाकों में गांव गांव में सम्मेलन करने का निर्णय लिया है।

मिशन 2024 की सफलता के लिए नीतीश को अपनी छवि बनाए रखनी होगी

मिशन 2024 की सफलता बिहार के कानून व्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करेगा ।
—–बेगूसराय की घटना सरकार के साख पर सवाल है—–

बेगूसराय फायरिंग मामले की जांच के दौरान बिहार पुलिस मेंं प्रोफेशनलिज्म की कमी साफ देखने को मिला,ऐसे में मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जो बिहार की पुलिसिंग पर खास नजर रखती है बेहद चिंता का विषय है।इस घटना के जांच के दौरान पुलिस की जो प्रवृत्ति देखी गयी है उससे आने वाले समय में अब हर घटना को जाति के चश्मे से देखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और इसका प्रभाव राज्य के कानून व्यवस्था पर पड़ेगा यह तय है।

बेगूसराय फायरिंग मामले मेंं गिरफ्तार अपराधियों के खिलाफ साक्ष्य है लेकिन उस साक्ष्य को लेकर जिस स्तर तक पुलिस को काम करने कि जरुरत थी उसमें साफ कमी देखने को मिल रही है और इसका असर यह हुआ कि पुलिस बेगुनाह लोगों को जेल भेज दिया है ऐसी बात चर्चा में आनी शुरु हो गयी है और इस घटना में जो अपराधी शामिल है उसको पुलिस बचा रही है।

घटना 13 तारीख के शाम की है बेगूसराय पुलिस का हाल यह था कि 24 घंटे तक वो अंधेरे में ही तीर चला रहा था ,14 तारीख की शाम को पुलिस ने दो तस्वीर जारी किया और कहा कि यही वो चार अपराधी जो दो मोटरसाइकिल पर सवार होकर इस घटना को अंजाम दिया है। इतने महत्वपूर्ण केस में 15 तारीख की शाम मीडिया में खबर आने लगी कि इस कांड में शामिल अपराधी पकड़े गये और इस घटना में शामिल अपराधियों का नाम क्या है यह भी मीडिया में चलने लगा जबकि उस समय तक सभी कि गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी उन अपराधियों का नाम कैसे बाहर आ गया बड़ा सवाल है।

फिर 16 तारीख के अहले सुबह बेगूसराय पुलिस के इनपुट पर झाझा रेलवे स्टेशन पर तैनात जीआरपी ने केशव उर्फ नागा को पकड़ा जो इस मामले की सबसे बड़ी गिरफ्तारी थी क्यों कि उससे पूछताछ के दौरान इस घटना के पीछे का खेल सामने आ सकता था लेकिन हुआ क्या जीआरपी थाना के प्रभारी फोटो खिंचवा कर 5 बजे सुबह में ही मीडिया को तस्वीर के साथ उसके गिरफ्तारी को सार्वजनिक कर दिया और मीडिया को फोनिंग देने लगा इसका असर यह हुआ कि 10 बजे नागा गैंग से जुड़े लोग बिहट चौक पर स्थित कुणाल लाइन होटल के सीसीटीव का फुटेज जारी कर बेगूसराय पुलिस की पूरी कार्रवाई पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

देखिए जिसको पुलिस सूटर बता रही है वो घटना के समय लाइन होटल पर बैठा हुआ है जैसे ही यह खबर मीडिया में आयी बेगूसराय पुलिस सकते में आ गया और फिर पूछताछ छोड़ कर कितनी जल्दी इसको जेल भेजा जाए इस पर काम करना शुरू कर दिया ।

इसका असर यह हुआ कि केस का पूरी तौर पर खुलासा नहीं हो पाया बहुत सारी बाते सामने नहीं आ सकी और इस वजह से एसपी के सामने प्रेस रिलीज पढ़ने के अलावे को दूसरा चारा नहीं था । क्यों कि उनके पास क्रॉस क्यूसचन का जवाब नहीं था यही स्थिति एडीजीपी मुख्यालय का रहा मीडिया वाले सवाल करते रहे गिरफ्तार अपराधियों में गोली चलाने वाला कौन था नाम तक बताने कि स्थिति में वो नहीं थे ,केशव उर्फ नागा के होटल में बैठे होने कि बात सीसीटीवी में कैद होने पर सवाल किया गया तो कहां गया ये सब घटना की साजिश में शामिल थे, साजिश क्या है तो यह अनुसंधान का मसला है इस तरह से सवाल जवाब ने पुलिस के कार्रवाई को और भी संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया और सुशील मोदी और गिरिराज सिंह जैसे नेताओं को इस मामले की सीबीआई और एनआईए से जांच की मांग करने का मौका मिल गया।

इतने संवेदनशील मामले में इससे पहले कभी भी इस तरह की बाते देखने को नहीं मिली है पुलिस वाले सूचना लीक कर रहे थे और झाझा जीआरपी ने तो हद कर दी तस्वीर तक जारी कर दिया जो दिखाता है कि बिहार पुलिस की कार्य प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है।

याद करिए 1995 से 2005 का दौर राज्य में जो भी आपराधिक घटना घटित होता था सरकार उसको जाति से जोड़ देता था इस वजह से बिहार की पुलिसिंग धीरे धीरे कमजोर होती चली गयी वही सरकार के इस प्रवृत्ति का लाभ उठाते हुए अपराधियों ने भी अपने अपराध को छुपाने के लिए पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए जाति से जोड़ना शुरू कर दिया और धीरे धीरे पूरी व्यवस्था जाति के आधार पर एक दूसरे के साथ खड़े होने लगी और उसी का असर था कि बिहार की कानून व्यवस्था पटरी से उतर गया।

नीतीश कुमार इसी व्यवस्था पर चोट करके राज्य में कानून का राज्य स्थापित करने में कामयाब रहे थे लेकिन पहली बार वो किसी घटना को जातिवादी आधार से जोड़ते हुए बयान दिया और इसका असर बेगूसराय फायरिंग मामले में पुलिस के कार्यशैली पर साफ दिखाई दिया है।

हालांकि इसके लिए सिर्फ लालू प्रसाद या नीतीश कुमार ही जिम्मेवार नहीं है सुशील मोदी और गिरिराज सिंह जैसे नेता के साथ साथ यहां के सवर्णवादी मानसिकता वाले जो लोग है वो भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि उनको भी इसी तरह की राजनीति सूट करता है ।

बेगूसराय की घटना पूरी तरह से अपराधिक घटना है और सरकार या फिर किसी जिले में एसपी बदलने के बाद अपराधियों की यह प्रवृत्ति रही है कि इस तरह की घटना करके वह देखना चाहता है कि सरकार और पुलिस प्रशासन की सोच क्या है ।
याद करिए नीतीश कुमार 2005 में जब सत्ता में आये थे तो शुरुआती एक वर्ष तक किस तरीके से अपराधी सरकार को लगातार चुनौती दे रहे थे लेकिन जैसे ही अपराधियों को यह समझ में आ गया कि सरकार,कोर्ट और सत्ता में बैठे अपनी जाति वाले अधिकारियों से अब मदद मिलने वाली नहीं है स्थिति धीरे धीरे सुधरने लगी।

लेकिन बेगूसराय की घटना के बाद अपराधी और असामाजिक तत्व एक बार फिर से सिस्टम में बैठे अधिकारियों और नेताओं पर दबाव बनाना शुरु कर सकते हैं इस उदाहरण के साथ की मेरे साथ जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है हालांकि इस सोच को कितना बल मिलेगा यह कहना मुश्किल है लेकिन इन नेताओं की यही कोशिश होगी कि इस आधार पर समाज को बांटा जाये।