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Posts published in “संपादकीय”

बेगूसराय की घटना बड़ी साजिश का नतीजा है

2014 के बाद अपराध और अपराधियों को लेकर सरकार कभी गंभीर नहीं रही है ।
बिहार पुलिस भले ही बेगूसराय की घटना को किसी सिरफिरे का कार्य बता रही है लेकिन घटना स्थल और प्रत्यक्षदर्शियों का जो कहना है उसके अनुसार घटना को पूरी रणनीति के तहत अंजाम दिया गया है, अपराधी पिस्टल और कट्टा दोनों तरह के हथियार का इस्तेमाल किया है।

घायल 11 में जिस एक की मौत हुई है उसे भी कट्टा से ही मारा है और जिन तीन लोगों की स्थिति गंभीर है उन सभी को भी कट्टा से ही मारा है मतलब अपराधी गोली लोड करता था फिर फायर करता था इसके अलावे दहशत फैलाने के लिए पिस्टल का इस्तेमाल किया है ये किसी सिरफिरे का काम नहीं हो सकता है क्यों कि गोली चलाने वाला अपनी पहचान छुपाने के लिए गमछा का इस्तेमाल किया है और गाड़ी चलाने वाला हेलमेट पहने हुए हैं वही जिस गाड़ी का इस्तेमाल किया है उस पर नम्बर प्लेट सही नहीं है मतलब जिसने भी इस घटना को अंजाम दिया है वो दिमाग से काम लिया है ,साथ जिस तरीके से फायरिंग करते हुए 50 किलोमीटर तक एनएच पर चलता रहा ये किसी साधारण अपराधी का काम हो ही नहीं सकता है ये समझते हुए कि एनएच पर चार थाना और दो ओपी है फिर भी इस तरह दिन दहाड़े गोली चलाना बड़े बड़े अपराधियों के बूते के बाहर है क्यों कि पुलिस सोयी नहीं रहती तो आमने सामने तय था ।

वैसे पुलिस के आपराधिक रेकर्ड पर गौर करे तो इस तरह के अपराधियों में मोहद्दीनगर का वो तीन भाई है जो बैंक लूट मामले में कई वर्षों से जेल में था जो हाल ही में बाढ़ हाजत से फरार हो गया है, समस्तीपुर ,पटना ,वैशाली और बेगूसराय पुलिस रात से ही इसके ठिकाने पर लगातार छापेमारी कर रही है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आज मीडिया ,बीजेपी के नेता और सोशल मीडिया पर जंगल राज के वापसी की बात कर रहे हैं वो सरकार में रहते सजग रहते तो ये स्थिति नहीं बनती बेगूसराय का अपराधिक इतिहास उठा ले 2005 से 2022 के बीच 100 से 125 के बीच हर वर्ष हत्याएं होती रही है।

लालू प्रसाद के शासन काल में भी कभी भी बेगूसराय में कमजोर एसपी नहीं रहा लेकिन इस सरकार में विनय कुमार के बाद बेगूसराय जिले को कोई भी मजबूत एसपी मिला ही नहीं भगवान का शुक्र कहिए जो बेगूसराय के अपराधियों का मति मार गया था नहीं था क्या क्या होता सोच नहीं सकते है। आज बीजेपी सड़क पर है सवाल इनसे भी है 2005 में बिहार की जनता एनडीए पर भरोसा इसलिए जताया था कि बिहार अपराध मुक्त होनी चाहिए आंकड़ों पर गौर कीजिएगा तो हैरान रह जायेंगे अपहरण भले ही रुक गया लेकिन व्यापारियों की हत्या और रंगदारी जैसी घटनाओं में कोई कमी नहीं आयी।

वही पुलिस अपराध और अपराधियों पर काम करने के बजाय दूसरे काम में लगी रहती है बिहार पुलिस की स्थिति यह है कि कोई बड़ी आपराधिक घटना हो जाये तो ये सारे पहले अपने आपको सुरक्षित करेंगे तब कही अपराधियों के खोज में निकलेंगे बहुत ही बूरा हाल है कह सकते हैं कि बिहार अपराधियों रहमो करम पर है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी

सफेद हीरे की लूट की काली कहानी

चलिए आज हम आपको बताते है सफेद हीरे की लूट की कहानी।
चौकिए मत बिहार में झारखंड के अलग होने के बाद भले ही काले हीरे की लूट बंद हो गयी लेकिन सफेद हीरे की लूट बदस्तूर जारी है ।
क्या है सफेद हीरे की लूट की कहानी देखिए हमारी खास रिपोर्ट :-

कब तक हम लोग बुनियादी सवालों से मुख मोड़ते रहेंगे पिछले कई दिनों से यूरिया खाद को लेकर बिहार के किसान परेशान है सुबह तीन बजे लाइन में खड़े हो जाते हैं इस उम्मीद से कि एक बोरा भी यूरिया मिल जाये यह कहानी किसी एक जिले का नहीं है यह पूरे बिहार का मसला है और यह कोई इसी वर्ष का मसला नहीं है हर वर्ष जब किसान को धान और गेहूं के लिए यूरिया की जरूरत महसूस होती है तो कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है ।

हम मीडिया वाले भी इस खबर को बस रूटीन खबर मानते हुए जब तक हंगामा चलता रहता है खबर किसी बुलेटिन में चला कर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ अखबार वाले भी करते हैं और कही किसी पेज पर छोटी सी तस्वीर के साथ खबर लगाकर गंगा स्नान कर लेते हैं।

लेकिन यह समस्या क्यों है इस पर कभी उस तरीके से ध्यान नहीं दिये संयोग से खाद को लेकर बिहार के अलग अलग हिस्सों में हो रहे हंगामे की खबर पर बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का एक बयान आया कि सरकार फेल है दुकानदार किसान को एक बोरा खाद लेने के लिए छाता और मछरदानी खरीदने का शर्त लगा रहा है केन्द्र सरकार की और से बिहार को प्रयाप्त खाद दी गयी है फिर भी खाद के लिए किसान परेशान है कालाबाजारी हो रहा है और हजार रुपया में एक बोरा खाद लेने को मजबूर है किसान।

बीजेपी नीतीश कुमार के साथ 2005 से लेकर 2022 (चार वर्ष छोड़कर)तक सरकार में साथ रही है सुशील मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेता नैनो यूरिया लाने को बड़ी उपलब्धि मानते हुए बड़ी बड़ी बातें करते रहे हैं बरौनी में खाद कारखाना खोलने का श्रेय बीजेपी ले ही रही है तो फिर खाद किसानों को मिल क्यों नहीं रहा है ।

मेरे लिए ये बड़ा सवाल था क्यों कि मेरे गांव के जो छोटे छोटे किसान हैं वो कल भी यूरिया के लिए मुझे फोन कर रहे थे हालांकि इस तरह का फोन गेहूं और धान के हर सीजन में आता है और ये कोई पहली बार नहीं आया था ।

#स्वराज पर मैंने ये पूरी खबर पोस्ट करते हुए बीजेपी से भी सवाल किया कि सरकार से निकले जुम्मे जुम्मे एक माह भी नहीं हुआ है और आप सरकार से सवाल कर रहे हैं ये कोई इस बार की तो समस्या तो है नहीं । पता नहीं कैसे #स्वराज के इस खबर पर कृषि मंत्री सुधाकर सिंह की नजर पड़ गयी और उन्होंने मिलने की इच्छा व्यक्त की निर्धारित समय पर मैं पहुंच गया लेकिन मंत्री जी को आने में थोड़ा वक्त लगा, लेकिन आने के साथ ही करीब चार घंटे का समय उन्होंने मुझे दिया और इस दौरान बिहार में खाद के नाम पर हो रहे खेल को समझने का मौका मिला जहां कहीं भी लगता था ये क्या है और सवाल करते तो मंत्री जी मुझसे आग्रह करते थे कि यह सच जनता के सामने आना चाहिए।

अब जरा सफेद सोना के इस लूट को आप भी समझिए यूरिया के उठाव और वितरण की पूरी प्रक्रिया क्या है पहले ये समझिए। बिहार में धान का कटोरा रोहतास से आरा तक माना जाता है जहां सोन नहर के कारण धान की जबरदस्त खेती होती है और बात उत्तर बिहार की करे तो बड़े स्तर पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के साथ साथ दरभंगा और मधुबनी है जहां धान मुख्य फसल है।

लेकिन यूरिया की आपूर्ति मांग के अनुरूप 90 प्रतिशत से अधिक कटिहार ,जमुई ,किशनगंज, सहरसा ,सुपौल,मधेपुरा और पूर्णिया जिले को अभी तक मिल चुका है इतना ही नहीं जिन जिलों में मौसम विभाग का डाटा है कि बरसात सबसे कब हुई है और पूरे जिले में सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी है और कृषि विभाग मान रही है कि यहां 10 से 15 प्रतिशत ही धान की खेती हुई है उन जिलों में भी मांग के अनुसार 60 से 70 प्रतिशत यूरिया किसानों के बीच वितरण चुका है वहीं भोजपुर,बक्सर ,रोहतास और कैमूर को मांग के अनुरूप मात्र 50 प्रतिशत यूरिया ही मुहैया कराया गया है ।

यही स्थिति उत्तर बिहार के धान वाले इलाके की है दरभंगा और मधुबनी को भी मांग के अनुरूप 54 से 56 प्रतिशत ही यूरिया मुहैया कराया गया है। डाटा देख कर मैं हैरान रह और मंत्री जी से मैंने सवाल किया ये क्या खेल है नेपाल और बांग्लादेश से सटे बॉर्डर वाले जिलों में सबसे ज्यादा खाद की आपूर्ति हो रही है जबकि यहां उस तरह के खेती का इलाका भी नहीं है ।संतोष जी ये डाटा मेरा नहीं है पूर्व मंत्री जी के कार्यकाल का है बस इस डाटा के सहारे आप खेल को समझ सकते हैं ।

मतलब इस सफेद सोना के खेल में ऊपर से नीचे तक सबके सब शामिल है नेपाल और बांग्लादेश में यूरिया की कीमत 1200 से 1500 सौ रुपया प्रति बोरा है और अपने यहां 250 से 300 रुपया के बीच है ,अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की यूरिया से कहां का धान और गेहूं लहलहा रहा है।

बात यहीं खत्म नहीं होती है बिहार में यूरिया जो भारत सरकार के कारखाने से चलती है उसके रैक प्वाइंट की सूची जहां खाद रखा जाता है इस सूची को देखकर आप हैरान रह जायेंगे।

खाद कंपनी धान वाले इलाकों में स्थित रैक प्वाइंट पर रैक कम भेज रहा है और उन इलाकों में ज्यादा भेज रहा है जहां धान की खेती कम होती लेकिन वो नेपाल और बांग्लादेश के बॉर्डर के करीब है। जैसे जैसे मैं इस खबर पर बढ़ रहा था तो मुझे लगा कहां हम लोग एक मरे दो घायल और पांच करोड़ कैश के साथ इंनजियर पकड़े जाने वाली खबर के चक्कर में पड़े रहते हैं यहां तो एक सीजन में बैठे बिठाए 10 हजार करोड़ का खेल एक माह में हो जा रहा है ।

ये है भ्रष्टाचार का संस्थागत खेल जहां बस यू ही चलता रहता है किसान और गरीबी मिटाने के नाम पर और हम लोग बात करते रहते हैं थाना वाला चोर है,सीओ चोर है, ब्लांक और थाने में भ्रष्टाचार चरम पर है ।

बीजेपी का बिहार मिशन कैराना बनाने में जुटा

किशनगंज को कैराना बनाने की तैयारी है क्या? क्यों कि बिहार में सत्ता से जैसे ही बीजेपी बाहर हुई है अचानक उसका फोकस सीमांचल के जिलों में बढ़ गया है खुद अमित शाह इस अभियान की शुरुआत करने वाले हैं जेपी नड्डा भी आ रहे हैं और जो जानकारी मिल रही है इस माह के अंत में किशनगंज में बीजेपी नेताओं का बड़ा जमावड़ा लगने वाला है, तो फिर यह माना जाए कि किशनगंज के सहारे बीजेपी बिहार साधने की तैयारी शुरु कर रही है।

वैसे बात किशनगंज कि करे तो देश और दुनिया का यह पहला इलाका है जहां समतल भूमि पर हजारों एकड़ में चाय की खेती हो रही है वो भी बढ़िया क्वालिटी की ,इतना ही नहीं बड़े स्तर पर अनानास की खेती होती है कई किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती करके इन इलाकों में एक अलग तरह की अर्थतंत्र स्थापित किया है ।

इसी तरह हल्दी सहित कई मशाले और सब्जी की खेती बड़े स्तर हो रहा है जिसके पीछे मुस्लिम मजदूरों की बड़ी भूमिका है ।मेरा जो अनुभव रहा है बिहार में खेती की बात करे तो किशनगंज के टक्कर में बिहार का कोई जिला दूर दूर तक नहीं है नालंदा और समस्तीपुर सब्जी के मामले में बेहतर उत्पादक जिला जरुर है लेकिन इन दोनों जिला के पास बाजार नहीं है । लेकिन किशनगंज के साथ बड़ा लाभ यह है कि उसके खेत की सब्जी कोलकाता ,दार्जिलिंग और सिलीगुड़ी सुबह सुबह पहुंच जाता है ,और इस वजह से बढ़िया दाम भी मिल जाता है । इतना खुशहाल किसान बिहार के दूसरे जिले में नहीं है अनानास की खेती करने वाले किसानों का पैदावार खेत में ही लगा रहता है कि पंजाब के बड़े से बड़े कारोबारी पहले ही खरीद लेते हैं और यहां पहली बार मैंने देखा कि व्यापारी नहीं किसान अपने उपज का कीमत खुद तय करता है क्यों कि खरीददार की कोई कमी नहीं है इस वजह से दूर से भले ही हिन्दू मुसलमान और किशनगंज जिले के डेमोग्राफी बदलने की नैरेटिव बनाया जा रहा है लेकिन एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि बांग्लादेशी मुसलमानों की वजह से इन इलाकों में हुनरमंद और शारीरिक रूप से मजबूत मजदूर की कोई कमी नहीं है।

बात लॉ इन ऑर्डर की करे तो उससे बुरी स्थिति सिवान और दूसरे मुस्लिम इलाके का है बॉर्डर होने के कारण काम का अवसर काफी ज्यादा है फिर यहां आपको अफगान,ईरान सहित कई मुस्लिम देश के लोग आपको मिल जायेंगे जो घोड़ा का कारोबार करने किशनगंज आता था। वही मुसलमान भी कई भागों में बंटा हुआ और वो भी बांग्लादेशी मुसलमानों से दूरी रखते हैं और कभी तनाव बढ़ता है तो बांग्लादेशी मुसलमानों के खिलाफ हिन्दू के साथ यहां के स्थायी मुसलमान भी खड़े हो जाते हैं यहां उस तरह की स्थिति नहीं है जैसा कटिहार के कुछ इलाको में है हालांकि संघ का इस इलाके में अच्छी पकड़ रही है और हिन्दू एकता को लेकर एक फोर्स जरुर तैयार कर दिया है लेकिन जब से तस्लीमुद्दीन के परिवार का वर्चस्व कमा है चीजे काफी बदल गयी है ।

वही पैसा हिन्दू के पास संपत्ति हिन्दू के पास है इसलिए इन इलाके हिन्दू उस तरह से अपने आपको असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं पटना के बाद होटल इंडस्ट्रीज भी किशनगंज में काफी बड़ा है। इसलिए बीजेपी के लिए किशनगंज के सहारे हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव को साधना बहुत बड़ा टास्क होगा क्यों कि संघ भी अब पहले जैसे मजबूत स्थिति में इन इलाकों में नहीं रहा व्यापार और वाणिज्य के फैलाव के कारण पहले से स्थिति काफी बदल गयी है और लॉ इन ऑर्डर की स्थिति भी पहले से काफी बेहतर है हां ये बात हो सकती है कि किशनगंज मॉडल के सहारे बिहार के अन्य जिलों में मुसलमानों के खिलाफ एक माहौल बनाया जा सकता देखिए आगे आगे होता है क्या यह बिहार है बहुत मुश्किल है इस तरह से सियासी दाव को साधना

संघ के तर्ज पर काम करता है PFI

“PFI संघ के तर्ज पर काम करती है “
“एसडीपीआई की वजह से कर्नाटक में बाजेपी की सरकार बनी है”
रुपया लगातार गिर रहा है 80 के करीब पहुंच गया मेन स्ट्रीम मीडिया या फिर सोशल मीडिया पर इस खबर को लेकर कहीं कोई चर्चा है ,सरकार की और से कोई बयान आया है।

जबकि जैसे जैसे रुपया कमजोर होगा देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी महंगाई आसमान छुएगा ।
इसी तरह बिहार की बात करे तो इतना बड़ा मेधा घोटाला हुआ है तीस हजार से अधिक बहाली जांच के घेरे में है मुख्य मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक कहीं कोई चर्चा भी है ।

मतलब हर सुबह मेरे जेब पर डाका डाला जा रहा है मेधावी छात्र लूटे जा रहे हैं लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया ,और सोशल मीडिया पर चर्चा तक नहीं होती है ।

होता क्या है मुसलमान ऐसा, मुसलमान ऐसा, जैसे मुसलमान ही देश की सबसे बड़ी समस्या है और इस खबर से आप बाहर ना निकले इसके लिए रोजाना सुबह से ही मेन स्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया लगा रहता है।

झारखंड में जहां 70 प्रतिशत से अधिक मुसलमान है वहां शुक्रवार को स्कूल बंद हो रहा है कोई ये पुछने वाला नहीं है कि झारखंड गठन के बाद से लगातार बीजेपी की सरकार रही है क्या बीजेपी के शासन में रविवार को स्कूल बंद होता था, स्कूल में मुस्लिम बच्चे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते थे,कौवा कान ले गया बस सबके सब कौवा के पीछे भाग चलते हैं कोई अपना कान नहीं देखता है ।

चलिए मुद्दे पर आते हैं फुलवारी शरीफ मामले में दो संगठन चर्चा में है एक पीएफआई और दूसरा एसडीपीआई है जिसके सदस्य गिरफ्तार हुए हैं ।

यह संगठन जब देश विरोधी काम करता है तो इस संगठन को प्रतिबन्धित क्यों नहीं किया जा रहा है ।
इसके पीछे बड़ा खेल जब आप समझेंगे तो हैरान रह जाएंगे ।

1—क्या है पीएफआई
पटना के एसएसपी डाँ मानवजीत सिंह ने पीएफआई के कार्यशैली को संघ के कार्यशैली के सहारे समझाने का प्रयास किया क्या हंगामा खड़ा हो गया मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर मानो बादल फट गया हो। देखते देखते एसएसपी को खालिस्तानी धोषित कर दिया गया ,फुलवारी से गिरफ्तारी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर दिया इससे भी खून गर्म नहीं हुआ तो बिहार दौरे के दौरान पीएम को निशाने पर लेने की तैयारी में जुटे थे आतंकी यहां तक लिख डाला गया लेकिन किसी ने यह समझने कि कोशिश नहीं किया कि पीएफआई है क्या ।

पीएफआई संघ के तर्ज पर बना एक ऐसा स्वयंसेवी संगठन है जो भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है 2006 में यह संगठन बना है और इसका पूरा नाम है पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (Popular Front of India; संक्षिप्त: PFI) यह संस्था अपने आप को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है।मिश्रा आयोग (राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग) की रिपोर्ट के अनुरूप मुस्लिम आरक्षण के लिए अभियान चलाता है।

संघ की तरह ही ये भी शाखा लगाता है जहां लाठी डंडे चलाने की ट्रेनिंग देते हैं संघ की तरह ही इस संगठन का राजनीतिक मंच एसडीपीआई है जिसका गठन 2009 में किया गया था,सीएफआई इसका छात्र संगठन इसी तरह SDTU (Social Democratic Trade Union)इसका मजदूर संगठन है। स्कूली छात्रों के लिए भी इसका अलग संगठन है।
ये सारे संगठन सार्वजनिक तौर पर काम कर रहे हैं और इनमें से अधिकांश का मुख्यालय दिल्ली है कई राज्य सरकारे इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने का पत्र केन्द्र सरकार को भेजा चुका है लेकिन वजह जो भी हो अभी तक प्रतिबंध नहीं लगा है ।


2—एसडीपीआई राजनीतिक पार्टी का लक्ष्य 2047 तक भारत इस्लामिक शासन स्थापित करना है।
जिस तरीके से संघ का राजनीतिक मंच बीजेपी है वैसे ही पीएफआई का यह राजनीतिक मंच है जैसे संघ हिन्दू राष्ट्र की बात करता है वैसे ही यह इस्लामिक राष्ट्र की बात करता है ।

इस पार्टी के संविधान में जिस लक्ष्य को प्राप्त करने कि बात लिखा है उसमें लिखा है कि 2047 तक भारत में इस्लामिक राष्ट्र स्थापित करना है इस पार्टी के हर कार्यक्रम में सार्वजनिक मंच से इस बात की चर्चा होती है।यह पार्टी चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त है।याद करिए बिहार विधानसभा चुनाव 2020 पप्पू यादव ने इसी पार्टी से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के नारे के साथ राजनीति करने वाली पार्टियों पर केन्द्र सरकार प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रही ही चुनाव आयोग खामोश क्यों है इसकी वजह है इस तरह के पार्टियों की वजह से बीजेपी को फायदा पहुंचता है।

3–कर्नाटक में बीजेपी के सत्ता में पहुंचने में एसडीपीआई की बड़ी भूमिका रही है
जी है एसडीपीआई का कर्नाटक में बड़ा जनाधार है 2018 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक के तीन विधानसभा सीट- नरसिम्हाराजा (मैसुरू), चिकपेट (बेंगलुरू) और गुलबर्गा सिटी पर एसडीपीआई ने कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाया था नरसिम्हाराजा सीट पर 38 हजार वोट लेकर यह दूसरे स्थान पर रही थी. वहीं चिकपेट सीट पर इसे 15 हजार वोट मिले थे. इस वजह से बीजेपी यहां जीत गई थी.राज्य में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही एसडीपीआई ने ऐलान कर दिया था कि वह तीन सीटों को छोड़ कर हर जगह सेक्युलर ताकतों का समर्थन करेगी क्योंकि यह वक्त की मांग है. इसके ऐलान की वजह से पूरे तटवर्ती इलाके में बीजेपी भारी बहुमत से जीत गई।

इसी राजनीति को समझने कि जरूरत है आज दुनिया में लोकतांत्रिक सरकार जिस तरीके से ताश के पत्तों की तरह ध्वस्त हो रही है इसकी वजह यही है सत्ता के लिए किसी भी हद तक पहुंचना ।

श्रीलंका और अब ब्रिटेन में जो कुछ हो रहा है उससे भारत को सीख लेने कि जरूरत है नहीं तो फिर श्रीलंका और ब्रिटेन से भी बुरा हाल भारत का हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।

इतिहास मिटाने की प्रवृति हर तानाशाह का रहा है

दिल्ली को आज से पहले मैंने कभी भी इतना निराश उदास और यथास्थितिवादी नहीं देखा है दिल्ली तो दिल वालो का शहर था, हर किसी को अपने अंदाज में जीने का अवसर देता था, हमेशा नयी सोच के साथ हर बदलाव का स्वागत करता था ।

लेकिन इस बार पता नहीं क्यों दिल्ली में एक अजीब तरह का ठहराव दिख रहा था चेहरे पर एक अजीब सी उदासी दिख रही थी लग ही नहीं रहा था कि मैं दिल्ली के मेट्रो में सफर कर रहा हूं,जनपथ का भी हाल कुछ ऐसा ही था, मालवीय नगर और सरोजनी नगर मानो किसी उजाड़ वाले इलाके में आ गया हूं।

वसंत कुंज जैसे पाँस इलाके का हाल शब्दों में बया नहीं कर सकते प्रिया सिनेमा हॉल ,जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय लगता ही नहीं था कि ये वही जगह है जहां एक अलग तरह की खूबसूरती और स्वच्छंदता देखने को मिलती थी सब गायब है ।
ऐसे ही एक निराश हताश और यथावादी समूह द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मुझे भी आमंत्रित किया गया था संतोष दिल्ली हो तो आओ आज साथ बैठते हैं पहुंचे तो वही पत्रकार ,वकील और सिविल सोसाइटी के लोग जिसे वर्षो बरस से झेल रहे हैं ,लेकिन पहली बार में इन सबों से मिलकर घबरा गया वो जज्बा ही नहीं रहा मैं खुद इतना घबरा गया कि सोचा किसी बहाने निकल चले लेकिन इसी बीच एक महिला मित्र की ओर से प्रस्ताव आया कि संतोष भी आज के हालात पर अपनी राय रखे जमीन पर क्या हो रहा है यह बेहतर महसूस करता है ।ऐसे निराश और हताश लोगों के सामने कहां से शुरु करु मुझे समझ में नहीं आ रहा था फिर मैंने अपनी ही कहानी शुरू किया ,मित्रों पारिवारिक बटवारे के बाद मुझे जो घर मिला उस घर में मेरे तमाम भाई बहन रिश्तेदार नातेदार का आना जाना रहा था मेरा खुद का बचपन उसी घर में गुजरा था हर एक जगह से कुछ ना कुछ यादें जुड़ी हुई थी अंधेरे में भी कहां बिजली का स्विच है कहां निकलने का रास्ता है कहां बाथरूम है सब कुछ मन की आंखों से दिख जाता था।कहां दादी बैठकर खाती थी कहां मुझे स्नान कराती थी छठ कहां होता था रसोई कहाँ बनती थी।

लेकिन मकान का हालत इतना जर्जर हो गया था कि उसे बनाये बगैर रहना मुश्किल था तय हुआ घर बनाया जाए ।निर्माण का कार्य शुरु हुआ तो मेरी कोशिश रही कि जो यादें इस मकान से जुड़ी है उसको अधिक से अधिक कैसे बनाये रखा जाए इस वजह से खर्च भी ज्यादा हुआ लेकिन पुराने ढांचा को बचाने में कामयाब हो गया ।

संयोग से एक घर का बिजली का बोर्ड का जगह बदल गया पांच वर्ष से अधिक समय हो गया मकान बने लेकिन जब कभी रहते हैं और पंखा या लाइट जलानी रहती है सबसे पहले बिजली का बोर्ड जिस पूरानी जगह लगी हुई थी वहीं पहले पहुंच जाते हैं अभी भी नहीं भूल पाए हैं । अब आप कहेंगे देश के हलाता का मेरे घर से क्या वास्ता मित्रों वास्ता है आज हमारे सामने जितने भी लोग बैठे हैं जहां तक मुझे याद है सारे के सारे घोर कांग्रेस विरोधी रहे हैं बात बात पर क्रांति करने निकलते जाते थे जिसके बाप और नाना के नाम पर बने विश्वविद्यालय में मुफ्त में पढ़ते थे उसी का खा कर दिन भर उसी को गाली देते थे और ये वंदना ,सरोज अमित कुछ हुआ नहीं कैंडल मार्च लेकर चल देते थे याद है ना ।

याद करिए यही देश है ना ज्यादा वक्त भी नहीं गुजरा है हम तमाम साथी उस समय कॉलेज मेंं आ गये थे विज्ञान भवन में अस्थायी जेल बना था याद है अमित हम लोग देखने भी गये थे कैसा बना है अस्थायी जेल । कितना आनंद ले रहे थे देश का पीएम नरसिम्हा राव भ्रष्टाचार के मामले में जेल जा रहा है पानी पी पी कर हम लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचारी होने पर कोश रहे थे और आज सत्ताधारी दल के प्रवक्ता की गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के तल्ख टिप्पणी के बावजूद नहीं हो पा रही है जूबैर की गिरफ्तारी पर इतना विचलित क्यों हो भाई ।

मोदी ने आठ वर्षो के अपने शासन काल में क्या किया है जनता की लड़ाई लड़ने वाली एक एक संस्था को प्रभावहीन कर दिया है चाहे वो आरटीआई हो ,मानवाधिकार आयोग हो ,लोकायुक्त हो या फिर मीडिया हो और अब सुप्रीम कोर्ट भी कुछ उसी दिशा की और बढ़ चला है।

इन संस्थानों के पास कौन जाता है सत्ता और सरकार के गलत निर्णय या जुल्म के खिलाफ जनता ही जाती है ना अगर ये तमाम संस्थान न्याय करना बंद कर दे तो किसका नुकसान होगा ।

इसलिए आप लोग परेशान ना हो आज देश कांग्रेस के हाथों में नहीं है ,एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में है जिसे रातो रात मुख्यमंत्री बन दिया गया और फिर देश का पीएम बन गया उन्हें संवैधानिक संस्थाओं का महत्व का क्या पता है लोकतंत्र में लोक लज्जा भी होता है इसे कहां पता है।

भाई ये देश को ही नहीं मिटा रहा है जिस पार्टी और संगठन ने इसे सीएम और पीएम बनने में सहयोग किया उसको भी मिटा रहा है ।

कभी आप लोगों ने सोचा कि बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यालय को क्यों नये भवन में शिफ्ट किया गया ,इस पर जब आप गौर करेंगे तो आप समझ जायेंगे कि मोदी और शाह का नजरिया क्या है हर वैसे इतिहास को बदल डालों जहां मोदी और शाह से अलग कोई इतिहास रहा है दिल्ली क्या देश के हर जिला मुख्यालय में बीजेपी और संघ का नया दफ्तर बन गया है जहां अब कोई ये बात नहीं करता है कि ये वही जगह है जहां वाजपेयी जी रात में रुके थे ये वही जगह है जहां आडवाणी रथ यात्रा के दौरान कुछ देर के लिए आये थे ये वहीं कमरा है जहां संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया और मोहन भागवत बिहार में जब प्रचारक थे तो रहते थे ।
मतलब उन तमाम इतिहास को मिटा दो जो मोदी और शाह के सिवा दूसरा कुछ भी चर्चा करने और सोचने का स्पेस देता हो। देश के साथ भी यही कर रहा है, संसद भवन बदल दिया ।मैं अभी इंडिया गेट होकर ही आ रहा हूं सैकड़ों लोग बाहर खड़े होकर देख रहे थे इंडिया गेट के पास जाना मना है ।

याद है शाम से लेकर आंधी रात तक पूरी दिल्ली इंडिया गेट पर अपने परिवार के साथ मौज मस्ती करता था देखिए उस इतिहास को भी ये खत्म कर दिया। अब मैं जहां से बात की शुरुआत की थी उस पर आते हैं जिसका बचपन चाय की दुकान पर गुजरा हो( ये खुद कहते हैं) जिसने कभी स्कूल कॉलेज नहीं देखा है शादी किया पत्नी को छोड़ दिया मतलब जिसे परिवार चलाने के जिम्मेवारी का भी एहसास नहीं है उससे आप क्या उम्मीद करते हैं देश के निर्माण की प्रक्रिया में कोई योगदान रहता तब तो ।

इन्हें कौन समझाये कि मीडिया ,न्यायपालिका, मानवाधिकार आयोग ,आरटीआई और सिविल सोसाइटी जैसी संस्था लोकतंत्र के प्रति जनता की आस्था को बचा कर रखती है।कालीदास कोई कहानी थोड़े ही है उस दौर के समाज का चित्रण है।
ऐसी स्थिति में निराश होने कि जरूरत नहीं है आपके सामने ऐसा व्यक्ति खड़ा है जिसे संवैधानिक मूल्यों से देश के कानून से कोई वास्ता नहीं है ,आपके सामने ऐसा व्यक्ति खड़ा है जिसको देश के संस्कृति और इतिहास से कोई वास्ता नहीं है ऐसे लोगों से आप कैसे लड़ सकते हैं इस पर सोचिए ।

आज गांधी भी होते तो सफल नहीं होते यह मुझे लगता है ऐसे में भारत पाकिस्तान और इराक ना बने इस पर सोचने कि जरूरत है क्यों कि देश को जिस दिशा में ले जाया जा रहा है कोई रोक नहीं सकता है इराक और पाकिस्तान बनने में।
धन्यवाद बहुत हुआ उम्मीद है आप तनाव मुक्त हुए होंगे और उम्मीद है निराशा के उस दौर से बाहर निकलने में मेरी ये बातें आपको मदद करेंगी ।

बिहार के युवा को दिग्विजय सिंह और नरेन्द्र सिंह की राजनीति से सीख लेनी चाहिए

बिहार की राजनीति में दिग्विजय सिंह ‘दादा’ और नरेन्द्र सिंह दो ऐसे शख्सियत हुए हैं जो अपनी राजनीतिक शैली के सहारे लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को सीधी चुनौती ही नहीं दी उनके मांद में घुसकर उन्हें हराया है।

दादा तो कई वर्ष पहले इस दुनिया से चले गये और नरेन्द्र सिंह भी अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन बिहार के ऐसे युवा जो राजनीति में कदम रखना चाहते हैं उनके लिए बिहार की राजनीति का ये दो चाणक्य एक ऐसा मूल मंत्र छोड़ कर गये हैं ,जिसके सहारे बिहार जैसे राज्य में भी जहां जाति और समाजिक समीकरण के मजबूत राजनीतिक ताना बाना के बावजूद भी सुचिता के साथ सत्ता में हिस्सेदारी कैसे प्राप्त किया जा सकता है इनके राजनीतिक शैली से आप सीख सकते हैं ।

संयोग ऐसा रहा है कि इन दोनों शख्सियत की राजनीति को नुझे करीब से देखने और समझने का मौका मिला है 2009 के लोकसभा चुनाव में दादा बांका से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन नीतीश कुमार उनका टिकट काट दिया याद करिए नीतीश कुमार की छवि उस समय बिहार में मिस्टर क्लीन और सुशासन बाबू के रूप में था और नीतीश कुमार की राजनीति परवान पर था ऐसी स्थिति में एक तरफ नीतीश कुमार का उम्मीदवार तो दूसरी तरफ लालू प्रसाद का उम्मीदवार चुनावी मैदान में था,और उस स्थिति में दादा नीतीश कुमार की चुनौती को स्वीकार करते हुए नीतीश कुमार को बांका लोकसभा चुनाव में ऐसी पटखनी दिया कि उस हार से फिर नीतीश कुमार उबर नहीं पाये और जदयू का जुमई और बांका में जो गढ़ 2009 में टूटा उस पर आज जदयू की वापसी नहीं हो पाई है।

क्यों कि नीतीश कुमार इन इलाकों में बड़ी मजबूती के साथ यादव राजनीति के खिलाफ अति पिछड़ों की राजनीति को खड़ा किया था और उसके सहारे लालू प्रसाद के गढ़ को पूरी तरह से तबाह कर दिया था लेकिन नीतीश की इसी राजनीति के सहारे दादा ने नीतीश कुमार द्वारा अति पिछड़ा उम्मीदवार देने के बावजूद भी जदयू को भी और राजद के उम्मीदवार को भी हरा दिया । मुझे याद है बिहार में लोकसभा 2009 के चुनाव में जदयू और भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बावजूद भी नीतीश कुमार बांका के हार से इतने विचलित थे कि मीडिया से बात करने तक के लिए बाहर नहीं निकले।

2009 का लोकसभा चुनाव दादा कैसे जीते यह समझने कि जरूरत है नीतीश कुमार दादा के खिलाफ उनके ही सबसे करीबी अति पिछड़ा समाज से आने वाले दामोदर राउत को चुनावी मैदान में उतारा था और प्रदेश के सारे मंत्री को बांका में उतार दिया लेकिन दादा का साफ-सुथरी छवि के साथ साथ अपनी राजनीति शैली की वजह से नीतीश कुमार के पूरी ताकत लगाने के बावजूद अति पिछड़ा, महादलित,सवर्ण और बड़ी संख्या में मुसलमान वोटर मजबूती के साथ दादा के साथ खड़ा रहा और दादा ने राजद और जदयू को के प्रत्याशी को लाखों वोट से हरा दिया ।मतलब आपकी छवि साफ-सुथरी है और बिहार के सामाजिक और जातिगत राजनीति की समझ है तो आपके पास अपनी जाति का वोट हो या ना हो आप बिहार में राजनीति भी कर सकते हैं और विधायक सांसद भी बन सकते हैं। इसी तरह 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नरेन्द्र सिंह भले ही नीतीश के साथ आ गये थे लेकिन विधानसभा चुनाव में चकाई विधानसभा क्षेत्र से उनके बेटे का नीतीश कुमार ने टिकट काट दिया और नरेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत खत्म हो जाये इसके लिए सुशील मोदी के साथ मिल कर दादा की बेटी श्रेयसी सिंह को जमुई से टिकट दे दिलवा दिया ताकी राजपूत वोटर नरेन्द्र सिंह के परिवार का टिकट काटने से एग्रेसिव ना हो ।

नीतीश के इस फैसले के पीछे भी वही सोच थी कि इस बार दादा की तरह नरेंद्र सिंह के राजनीतिक विरासत को भी खत्म कर देना है ।इसी चुनाव के दौरान नरेन्द्र सिंह से प्रचार अभियान के दौरान एक गाँव में मुलाकात हो गयी जबकि पहले से कोई तय नहीं था लेकिन मुलाकात हो गयी तो तीन घंटा उसी गाँव में रुक गये वो गाँव मुसलमान और अति पिछड़ा वोटर का था ।

गांव के ही एक दरवाजे पर मुसलमान और अति पिछड़ा दोनों वर्ग के वोटर साथ बैठे थे मेरा परिचय उन मतदाताओं से कराया गया ये संतोष जी है बिहार के प्रखंर पत्रकार हैं मुजफ्फरपुर बालिकागृह वाला मामला यही निकाले थे । ऐ मौलाना सुनो बिहार के एक मात्र यही पत्रकार हैं जो तुम्हारे साथ हमेशा खड़े रहते हैं इन्हें लोग बिहार का रवीश कुमार कहते हैं रवीश कुमार इनके बहुत अच्छे मित्र है । मैं असहज महसूस कर रहा था कि ये मेरा राजनीतिक इस्तमाल करे रहे है मैं निकलना चाह रहा था लेकिन नरेन्द्र सिंह छोड़ने को तैयार नहीं थे तभी वो अपने बॉडीगार्ड से मोबाइल मंगवाये ये देखो संतोष जी का हर खबर पढ़ते हैं देखो कैसे लिखते हैं तुम लोगों के बारे में । ये मेरी तारीफ नहीं कर रहे थे मेरे सहारे ही अपने वोटर को संदेश देना चाहते थे कि मैं धर्मनिरपेक्षता वाली राजनीति में विश्वास करते हैं और परिणाम क्या हुआ नरेंद्र सिंह के पुत्र निर्दलीय चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचा और नीतीश को मंत्री भी बनाना पड़ा इतना ही नहीं हाल ही में विधान परिषद का जो चुनाव हुआ उसमें ललन सिंह के उम्मीदवार को जमानत जब्त करवा कर संदेश दे दिया कि इस इलाके का चाणाक्य मैं ही हूं । दादा से तो उस तरह बातचीत करने का मौका नहीं मिला लेकिन नरेन्द्र सिंह से तो तीन चार दिन में एक बार बातचीत हो ही जाती थी बिहार की राजनीति को लेकर उनका स्पष्ट राय था संतोष जी बिहार का सर्वण का हाल और भी बुरा होने वाला है देखते रहिएगा गिनती का विधायक सांसद आने वाले दिनों में नहीं मिलेगा ।

ये जो बीजेपी है ना जिसको लेकर सब छोरा सब पगलाया हुआ है संतोष जी बीजेपी जो राजनीति करती है वो धर्म और धंधा (बनिया)की राजनीति करती है जो बिहार के सवर्ण के लिए बहुत ही घातक है। बिहार का सवर्ण समाज खेतिहर समाज है मेहनत करने वाला समाज है जिसके कारण उसका रोजना का सम्बन्ध गांव के दलित.अति पिछड़ा और मुसलमानों के साथ रहता है और ये सम्बन्ध पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही है इसके सहारे राजनीति करना सर्वण को सूट भी करेगा और यही समाजवाद का मूल मंत्र भी है ।देखिए लालू प्रसाद के शासन काल में बिहार में सवर्ण राजनीति कहां खड़ा था और नीतीश और सुशील मोदी के साथ जब से आया है कहां चला गया सारे स्थापित नेताओं को नीतीश और मोदी चुन चुन कर समाप्त कर दिया है ।

कोई बचा है देखिए मुझे कम तबाह किया है वजह क्या है बिहार का सर्वण वोटर हिन्दू मुसलमान में इस तरह उलझ गया कि वो राजनीति ही भूल गया बताइए संतोष जी रघुवंश बाबू जैसे लोगों को वैशाली में राजपूत वोट नहीं दिया इससे बड़ा अनर्थ और क्या हो सकता है । दो घंटे से हम लोग साथ बैठे हैं देख ही रहे हैं पदाधिकारी और समाज के लोग क्या क्या फरियाद लेकर आ रहे है इन मूर्खों को कौन समझाये बिहार में पदाधिकारियों का तबादला और पोस्टिंग कैसे होता है संतोष जी आपसे छुपा है । दिन भर ऑफिस में बैठकर हिन्दू मुसलमान करेंगा और शाम में मेरे पास पहुंच जायेंगा सर चार वर्ष से सचिवालय में सड़ रहे हैं देखिए सीओ परेशान किये हुए है देखिए थाना प्रभारी परेशान किये हैं कौन इसको समझाये कि जब आपको अपने नेता को ताकत देना का समय रहता है तो आप देश की बात करने लगते हैं हिन्दू मुसलमान की बात करने लगते हैं । संतोष जी हम लोग तो पूरी मजबूती के साथ अपनी पारी खेल लिये कोई अफसोस नहीं है आने दीजिए समय यही समझदारी रही ना तो विधायक और सांसद की कौन कहे ये लोग मुखिया तक बन नहीं पाएगा ।

समस्तीपुर पुलिस बलात्कारी बाप के साथ खड़ा है

एसपी ,समस्तीपुर
आप यंग हैं ऊर्जावान है ये अलग बात है कि आपको मनपसंद कैडर नहीं मिला लेकिन आईएस से बड़ी जिम्मेवारी आपको मिला है ,आपकी पोस्टिंग समस्तीपुर कैसे हुई है मुझे पता है।

कभी मौका मिले तो आपके पीछे आप से पूर्व जो भी एसपी बने है उस सूची पर गौर करेगें 1991 से लेकर 2021 के दौरान गिनती के चार पाँच डाइरेक्ट आईपीएस अधिकारी की पोस्टिंग हुई है उसमें आप सौभाग्यशाली है कि एसपी के रूप में आपका दूसरा पोस्टिंग समस्तीपुर है बहुत टफ टास्क आपको मिला है ।

अब विषय पर आते हैं रोसड़ा रेप मामले की जानकारी आपको है ही मुझे नहीं पता क्यों लेकिन आपकी रोसड़ा पुलिस पीड़ित लड़की को सहयोग करने वाले के खिलाफ हाथ धोकर पीछा पड़ गया है और पुलिस उसको भी अभियुक्त बना दिया है ।

आप उस पीड़िता की मन:स्थिति को समझ सकते हैं छह वर्ष से उसका बाप उसको हवस का शिकार बना रहा है इसकी जानकारी माँ ,नाते रिश्तेदार सबको था लेकिन किसी ने लड़की का साथ नहीं दिया अंत में लड़की महिला हेल्प लाइन में शिकायत की रोसड़ा पुलिस कार्यवाही करने के बजाय उसके बाप से ही मिल गया ऐसे में लड़की वो कदम उठायी जो कोई सोच नहीं सकता है ।

Editorial

बाप द्वारा रेप करने का वीडियो खुद बनाती है कैमरा छुपा कर और फिर उस वीडियो को अपने ममेरा भाई को भेजती है और मदद की गुहार लगाती है , उसका भाई पोर्टल में काम करने वाले पत्रकार से मदद मांगता है ।

पोर्टल वालो को जो समझ में आया उस तरीके से खबर को चलाया ये अलग बात है कि रोसड़ा पुलिस के संज्ञाण में आने के बावजूद तीन दिनों तक रोसड़ा पुलिस पीड़िता से सम्पर्क करने के बजाय उसके बाप से सौदाबाजी करता रहा ।

मामला जब पटना के मीडिया के पास आयी उसके बाद पुलिस एक्सन में आयी ।

लेकिन सवाल यह है कि लड़की के भाई को पोस्को एक्ट में कैसे जेल भेज दिए लड़की अभी बालिक है वीडियो एक सप्ताह पहले बना है उसका बाप छह वर्ष से रेप कर रहा था उस समय लड़की नबालिक थी तो बाप पर पोस्को एक्ट लगा लेकिन लड़की के भाई पर पोस्को एक्ट लगा समझ से पड़े है।

फिर जो पत्रकार खबर चलाया उस पर रंगदारी मांगने का मुकदमा कर दिया पुलिस का यह एक्सन दिखता है कि पुलिस अभी भी अपराधी के साथ खड़ा है ,पुलिस इस मामले में लड़की को सहयोग करने वाले लोगों को डरा रही है ताकी कोई न्याय के साथ खड़ा ना हो।

हो सकता है लड़की कल कोर्ट में अपना बयान भी बदल दे क्यों कि समाज और परिवार का एक बड़ा तबका लड़की के बाप को बचाने में लगा है फिर भी एक पुलिस अधिकारी की जिम्मेवारी बनती है कि न्याय में सहयोग करने वाले के साथ खड़े हो वैसे भी अब लोग इस तरह के मामले में बचता है ।

नफरत फैलाने वाले एक दिन वो खुद उसका शिकार बन जाता है

नफरत कैसे हमारी आपकी जिंदगी को तबाह कर रहा है उसकी एक बानगी आपको सूनाते हैं कोई छह वर्ष पहले शाम के समय एक कॉल आया उस समय मैं बस में था आवाज सही से नहीं आ रहा था मैंने यह कहते हुए फोन रख दिया कि आवाज नहीं आ रही है नेटवर्क में आते ही फोन करते हैं।

घर पहुंचने के बाद उस नम्बर पर काॅल किये बात हुई तो पता चला फोन करने वाली उस इलाके से आती थी जहां आज भी नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती है और आये दिन नक्सली हमला भी होता रहता था किसी और को लगा रही थी गलती से मेरे नम्बर पर काॅल कर दी। बात आयी चली गयी लेकिन कुछ ही दिनों बाद उस इलाके में एक बड़ी नक्सली घटना घटी घटना के चंद मिनट बाद है उसका फोन आया उस समय रात के कोई एक बज रहे होगा संतोष सर अभी अभी बड़ी घटना घटी है नक्सली तीन लोगों को मार दिया है और कई लोगों का साथ लेकर चला गया।वैसे मेरे इलाके में ये समान्य घटना है लेकिन आपके लिए खबर है इस घटना के बाद उससे हमारी बातचीत होने लगी और यू कहे तो नक्सली से जुड़ी खबर के लिए मेरा वो सबसे बड़ा सूत्र बन गयी। एक दिन उसका फोन आया सर पटना आये हैं मुलाकात होगी क्यों नहीं आओं ऑफिस में है काफी देर बातचीत हुई और पटना आने का प्रयोजन पूछा तो पता चला ये पटना में ही रहते थे दो वर्ष पहले बेबी हुई थी इसलिए अपने मायके में रह रही थी, पति अमेरिका में आईटी फील्ड से जुड़ा है बेटी दो वर्ष की हो गयी है अब फिर से पटना रहने आ रहे हैं बेटी बड़ी हो रही है ।

कुछ दिनों के बाद वो अपनी बेबी के साथ पटना सिफ्ट कर गयी पटना में ही पढ़ाई लिखाई हुई थी इसलिए पटना से उसका पुराना रिश्ता था एक दिन उसका फोन आया सर बच्चा का कोई बढ़िया डॉक्टर जो हो उससे जरा दिखवा देते बेबी का तबियत बहुत खराब है बोरिंग रोड में बच्चों का अच्छा डॉक्टर है उसके यहां नम्बर लगवा दिये और फिर जिस समय डॉक्टर समय दिये थे मैं भी पहुंच गया बेबी को देख कर मैं हैरान रह गया क्या हो गया खैर डॉक्टर पूछना शुरु किये क्या हुआ क्या क्या दवा दिए हैं पता चला इनके पति देव वही से पतंजलि का दवा बता रहे थे और वही दवा खिला रही थी स्थिति यह हो गया कि बेबी निमोनिया से इतनी संक्रमित हो गयी थी कि डाँक्टर परेशान हो गया इसी दौरान उसका घर जाना हुआ घर में प्रवेश करने के बाद मुझे पता नहीं क्यों बड़ा अटपटा लगा। अजीब अजीब सी आकृति उसके घर के अलग अलग हिस्से में बना हुआ था पहली बार मुझे एहसास हुआ कि इसका व्यवहार सामान्य नहीं है दो घंटे उसके घर पर रहे होंगे इस दौरान कई बात उसके पति का फोन आया और वो बार बार बेबी को डॉक्टर से दिखाने वाली बात छुपाती रही मैं हैरान था बेबी का हाल इतना बूरा है और ये डॉक्टर के पास ले जाने कि बात क्यों छुपा रही । बाद के दिनों मेंं उससे खुलकर बातचीत होने लगी एक दिन वो बताया कि मेरा पति का गजब का सोच है बेबी को डाँ से मत दिखाओं पटना में ये वैद्य है उससे दिखाओं पतंजलि के दवा का इस्तेमाल करो ।

Editorial
Editorial

महिलाओं को लेकर अजीब तरह का सोच है इस तरह का कपड़ा मत पहनो वो मत करो शाम होते होते कमरे पर आ जाओ हर समय विडियो काॅल करता है जैसे मुझ पर उसे भरोसा ही नहीं है।मैं खुद नौकरी करता था इतना तंग किया कि नौकरी छोड़ना पड़ा ये सब बताती रहती थी फिर बेबी के स्कूल में नाम लिखाने की बात हुई तो पति का आदेश हुआ कि बेबी का नाम ऐसे स्कूल में लिखाना जहां सिर्फ लड़किया पढ़ती हो पटना के सबसे बेस्ट स्कूल में नाम लिखाई एक दिन पता चला कि बेबी के नाम लिखाने को लेकर बड़ा बवाल हुआ है क्यों कि जिस स्कूल में नाम लिखाई है वहां क्रिस्चन शिक्षिका है और उसका प्रबंधक भी क्रिस्चन है इसलिए आज के आज उसे वहां से हटाओं मेरी बेबी का संस्कार खराब हो जाएगा इतना हंगामा किया कि अंत में उसको बेबी को स्कूल जाना बंद करना पड़ा और फिर उसे कहा कि देखो पटना में कही सरस्वती शिशु मंदिर है वहां बेबी का नाम लिखाओं वो ढूढती रही एक स्कूल मिला भी तो वो उसको पसंद नहीं आया फिर एक स्कूल में नाम लिखायी हालांकि उसका नाम भी क्रिस्चन जैसा ही था फिर वो वीडिओ कांल से पहले स्कूल को देखा स्कूल में क्या क्या है पत्नी उसको दिखायी की देखिए सरस्वती वंदना लिखा है ये देखिए माँ सरस्वती का फोटो लगा हुआ है ये देखिए शिक्षिका के मांग में सिंदूर लगा है गले में मंगल सूत्र है नाम भेल ही क्रिस्चन वाला है लेकिन यहां एक भी शिक्षिका क्रिस्चन नहीं है तब ठीक है यहां नाम लिखा लो ।

एक सप्ताह पहले उसका फोन आया संंतोष सर एक गांड़ी लेना है लेकिन जो गाड़ी मुझे पसंद है वो कह रहा है कि एक माह बाद देंगे एजेंसी वाले को फोन करवाये तो बड़ी मुश्किल है तैयार हुआ तीन अगस्त को अक्षय तृतीया उस दिन गाड़ी लेगे सारा पैसा भुगतान भी कर दिया अभी थोड़ी देर पहले उसका फोन आया संतोष सर गाड़ी आज नहीं दे देगा मैंने पुंछा क्यों रात में उसका फोन आया था कह रहा था तीन मई को ईद भी है इसलिए उस दिन गाड़ी मत निकालो। हद है तीन मई को तो अक्षय तृतीया है उस दिन शुभ माना जाता है ईद है तो क्या हुआ अपना शुभ दिन लोग छोड़ दे संतोष सर आप तो समझते ही किस दिमाग का है आज ही गाड़ी दे दे बोल दीजिए ना गाड़ी आ गया है आज कल खामखां विवाद से मैं बचना चाहता हूं उसको तो कुछ नहीं होगा मेरा तबियत खराब हो जाएगा प्लीज सर आप बोल दीजिएगा तो गांड़ी दे देगा ।


सॉरी सर एक और बात गाड़ी का नम्बर अपने पसंद का मिल सकता है कह रहा था ऐसा नंबर लो जो जोड़ने पर 18 आये शुभ होता है। मैं चुपचाप उसकी बातों को सुनता रहा और मुस्कुराता रहा घृणा और नफरत कभी भी एकतरफा नहीं होता है उसका असर अपने परिवार और आस पास के लोगों को भी होता है पता है वो अपने बेबी को क्या पढ़ता है नानी नाना मौसी पराई होती है वो हमेशा गलत बात समझती है उससे दूरी रखो। दादा दादी जो कहे वो करो मम्मा पूरे दिन किस किस से फोन पर बात करती है कहां कहां जाती है उस पर नजर रखा करो और चुपके से मुझको बताया करो आ रहे हैं अक्टूबर में इस बार साथ लेकर आयेंगे पासपोर्ट अप्लाई कर दिये हैं।

मुसलमानों से नफरत क्यों?

मैं रोसड़ा का रहने वाला हूं मेरा मोहल्ला नागपुर का रेशिमबाग है मतलब संघ का दूसरा मुख्यालय हालांकि अब पहले वाली बात नहीं रही फिर भी संघ और भाजपा को लेकर वैसा ही जुनून है।

दो दिन पहले भाई की शादी में जाने का मौका मिला सबके सब वही थे दरबाजा लग गया था हम सब लोग वरमाला का इन्तजार कर रहे थे मेरे चारों ओर हाफ पेंट तभी हमारे मधु चाचा चिल्लाते हैं टुनटुन योगी तो कमाल कर दिया क्या हुआ  लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगा दिया है ठीक बगल में दया चाचा बैठे हुए थे धीरे से बोलते हैं टूनटून योगा तो कमाल कर दिया मैंने कहा ठीक तो किया है लेकिन आप लोग जो रात के बारह बजने को है धमाल मचाये हुए हैं दो दो डीजे बज रहा है महफिल सजा है यहां गीत चल रहा है कानून बना है तो आप पर भी लागू होना चाहिए मुसलमान नहीं बजाये और आप नवाह करिए और 24 घंटे लोगों का जीना हराम किये रहिए ये कहां तक सही है इतना कहना था कि चचा जान फर्म में आ गये । खैर चचा जान मुझसे इतना प्यार करते हैं कि छोड़ो बेटा  ये धोती कुर्ता तुम पर बहुत जच रहा है कभी टीवी पर भी इस ड्रेस में आओ बहुत अच्छा लगेगा ।            

चाचा जी आपके पार्टी को मेरा चेहरा पसंद नहीं है,आपका पार्टी चाहता है कि मैं पत्रकारिता छोड़ दूं नहीं बेटा ऐसा क्या है तुम सही हो लड़ते रहना है हिम्मत नहीं हारना अरे ऐसा क्या है विचार अलग अलग नहीं हुआ तो फिर समाज मर जायेंगा लेकिन चचा जान हालात अब पहले जैसा नहीं रहा पत्रकारिता लोगो को पसंद नहीं है उन्हें बस तारीफ सुनना पसंद है चाचा जी आप लोग तो देश बटवारा के तीन चार वर्ष बाद ही पैदा लिए होंगे कहां आप लोगों को कभी हिन्दू मुसलमान करते हुए देखे बताइए।                     

भारत पाकिस्तान  बंटवारे के समय ना जाना कितने लोग बेघर हुए थे , कितने लोग मारे गये ,कितनी महिलाओं का अस्मत लूटा गया, कितने लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया ।धर्म के नाम पर देश को दो टुकड़े मे बटा गया ,गांधी की हत्या हुई हत्या के बाद पूरे देश में संघ से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी हुई  बाबा दो वर्ष तक जेल में रहे। 

संघ का शाखा लगता था जिसका नाम था अभिमन्यु शाखा नागपुर से संघ के जो भी बड़े पदाधिकारी बिहार आते थे उनका प्रवास  यहां पहले से तय रहता था रज्जू भैया जो बाद में संघ के सरसंघचालक बने दो वर्ष तक मेरे यहां ही उनका रहना होता था फिर भी दादा जी का सबसे जिगरी दोस्त मुसलमान था वो किसी गांव का मुखिया था याद है ना वो अक्सर सुबह सुबह आते थे और घंटों दोनों दोस्त में बातचीत होती थी और साथ पहलवानी भी करते थे ।

Editorial

चाचा जी जो संघ से सबसे तेज तर्रार स्वयंसेवक माने जाते थे 1983 -84 में जहां तक मुझे याद है  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा कश्मीर के लाल चौक पर झंडा फहराने वालों में एक थे उनका सबसे अंतरंग मित्र मुसलमान है ,पहली बार इन्ही के घर सेवई खाने का मौका मिला था महताव चाचा की पत्नी से मिले तो पता ही नहीं चला ये अपनी नहीं है हां एक बात अटपटा लगा था चाची का मायके सड़क के उस पार आमने सामने ही था बार बार मैं यही सवाल कर रहा था ये कैसे हो सकता है।

याद करिए हर वर्ष दरवाजे पर  दुर्गा जी का प्रतिमा आता था पूरे सम्मान के साथ रखा जाता था दादी और माँ दुर्गा जी का खोइछा भरती थी फिर जयकारा के साथ नदी की और चल जाता था, ठीक उसी तरह मोहर्रम मेंं मुस्लिम युवा नाचते गाते हथियार लहराते हुए दरवाजा पर आता था दादी या फिर माँ चावल और पैसा उसी श्रद्धा के साथ चढ़ाती थी ।रोसड़ा से पांच किलोमीटर दूर दरगाह पर हर वर्ष  मेला लगता है कितनी बार सब भाई बहन कंधे पर बैठ कर गये होगे याद नही है आप भी मिल जाते थे।                 

प्रख्यात गांधीवादी बलदेव नारायण दादा जी के अच्छे मित्र थे और रोसड़ा में मुसहर को समाज में जगह मिले इस आंदोलन में  दादा जी बलदेव नारायण जी के साथ खड़े थे जबकि उस इलाके के अधिकांश ब्राह्मणउनके खिलाफ थे बलदेव नारायण लाहौर में भगत सिंंह के साथ पढ़ते थे आजादी के आन्दोलन में बड़ी भूमिका रही है गांधी जी इन्हें दलितों में भी महादलित मुसहर जाति को पढ़ाने और समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए इन्हें रोसड़ा भेजे थे और रोसड़ा आने के बाद डाँ राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर मुसहर जाति के लिए इन्होंने स्कूल खोला ।               

दादा जी संघ के होने के बावजूद पूरी तौर पर इनके साथ रहे जबकि वो उस समय संघ के बड़े चेहरे थे पूरा नागपुर रोसड़ा में ही बसता था फिर भी कभी भी गांधी और मुसलमान को लेकर नफरत नहीं देखा इतना ही नहीं उस समय के लोहियावादी और समाजवादी नेताओं का भी परिवार पर उतना ही अधिकार था। मेरी दादी भले ही कर्पूरी ठाकुर को गाली देती रहती थी फिर भी जब वो आते थे सबसे पहले करैला का रस निकाल कर देती थी शायद उनको शुगर की बीमारी थी । कर्पूरी ठाकुर मेरे बड़े दादा जी के ससुराल के रहने वाले थे इसलिए हम लोगों के परिवार से उनका साला जीजा वाला ही  रिश्ता था। कहां हमारे दादा संघ के बड़े अधिकारी थे और जनसंघ के लिए पूरी तौर पर समर्पित थे ।जो सुनते हैं उस समय जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीया छाप होता था और बिहार में पहली बार जनसंघ जहां से चुनाव जीता 1972 में उसमें रोसड़ा विधानसभा भी था ।आपको लोगों को तो खुब याद होगा फिर भी सभी विचारधाराओं के लोगों के लिए दरवाजे खुले रहते थे ।              

व्यक्तिगत रिश्ते इतने मधुर थे कि आप लोग जो गवाह रहे हैं सोच नहीं सकते हैं धर्म और जाति के नाम पर कभी  विभेद देखा ही नहीं जबकि भारत से पाकिस्तान का अलग हुए 25 वर्ष हुए होंगे धर्म के नाम पर दंगा होने वाले राज्यों में बिहार सबसे आगे था फिर भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच आज जो दिख रहा है वो उस समय नहीं दिख रहा था  ऐसा क्यों कभी सोचे हैं सोचिए हम लोग कहां जा रहे हैं यहां तो कभी भी मुसलमान और हिन्दू जैसा कभी नहीं रहा आज ऐसा क्या हुआ जो आप योगी के इस निर्णय से खुश हैं ।रोसड़ा में मुसलमान को आबादी तो ना के बराबर है हां तीन वर्ष पहले  चैती दुर्गा पूजा में बवाल हुआ एक तरफा  मस्जिद पर आप लोग तिरंगा फहराये मस्जिद में रखे धार्मिक ग्रंथ को जला दिये इतना गुस्सा किस बात का आज तक  यहां हिंदू मुसलमान के नाम पर इससे पहले एक ईट भी नहीं चला था सोचिए कहां जा रहे हैं या फिर आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ जो हमारे आपके दिल में इतना नफरत भर गया है ।

क्रमशः– – —

बिहार बीजेपी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है

नरेन्द्र मोदी 2014में देश के प्रधानमंत्री बने और साथ में अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष इसके बावजूद भी बिहार बीजेपी मोदी और शाह के एजेंडे के साथ खड़ा नहीं था।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी और शाह पूरी ताकत लगा दिये बिहार बीजेपी पर कब्जा करने के लिए लेकिन इतनी बूरी हार हुई की दोनों को समझ में आ गया कि बिहार को साधना इनके बस में नहीं है,और फिर सुशील मोदी के हाथ बिहार बीजेपी का कमान सौप दोनों शांत बैठ गये।

सुशील मोदी अरुण जेटली के साथ मिलकर 2017 में नीतीश कुमार को फिर से अपने साथ लाने में कामयाब हो गये और 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 के लोकसभा में जीती हुई पाँच सीट देकर नीतीश कुमार के साथ गठबंधन करने को मजबूर हुए ।
मतलब भारत की राजनीति में आप दोनों की जोड़ी भले ही महानायक वाली क्यों ना हो बिहार में चलेगी तो नीतीश और सुशील मोदी की ही चलेगी ।

ऐसा ही 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी हुआ नीतीश बिहार में मोदी और शाह किस लाइन पर बोलेगे ये भी नीतीश तय किये।
चिराग के साथ गठबंधन टूटने की वजह नीतीश खुद थे या फिर चिराग के पीछे बीजेपी खड़ी थी इसलिए गठबंधन नहीं हो सका यह अभी भी स्पष्ट नहीं है ।

लेकिन गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी जिस तरीके से चिराग को मदद कर रहा था उससे यह संदेश जाने लगा था कि जदयू को कमजोर करने में बीजेपी शामिल है। हालांकि दूसरे चरण के बाद बीजेपी को लगा की यह दाव उलटा पड़ सकता है और राजद की सरकार बन जायेंगी तो फिर तीसरे चरण में चिराग को जो मदद मिल रहा था वह बंद हुआ और फिर पीएम मोदी चिराग के खिलाफ पहली बार दरभंगा की सभा में बोले तब तक बहुत देर हो चुकी थी,और फिर जो परिणाम आया उसमें पहली बार नीतीश बिहार में तीसरे नम्बर पर पहुँच गये ।

मोदी और शाह को जैसे ही मौका मिला सबसे पहले सुशील मोदी को बिहार से बाहर का रास्ता दिखाया, संगठन मंत्री नागेन्द्र जी को बिहार से बाहर किया और ऐसे विधायक को मंत्री बनाया जो नीतीश और सुशील मोदी के गुड बुक में नहीं थे और समय आने पर इन दोनों पर हमला भी कर सके ,उसी कड़ी में नितिन नवीन,सम्राट चौधरी और शहनवाज जैसे को मंत्री बनाया और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को नीतीश के खिलाफ बयान देने की खुली छुट दी गयी ।

बिहार विधानसभा के अध्यक्ष को सरकार को नीचे दिखाने को लेकर प्रेरित किया गया और संघ के एजेंडे को लागू करने को लेकर नीतीश पर दबाव बनाने को कहॉ गया।
पहली बार विधानसभा सत्र के दौरान जन गन मन की जगह वंदे मातरम गाया गया,विधानसभा के स्मृति स्तम्भ से अशोक चक्र को हटाया गया, इस तरह के कई काम हुए जो नीतीश को पसंद नहीं था।
2021में यानी 7 वर्ष बाद मोदी और शाह का बिहार भाजपा पर पूरी तरह कब्जा हो गया ।

वही नीतीश मोदी और शाह के रणनीति को भाप गये और चुनाव परिणाम आने के एक माह बाद ही वो चुपचाप पार्टी को मजबूत करने में लग गये गाँव गाँव तक संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरु हुई ,उपेन्द्र कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर कुर्मी कोयरी गठजोड़ को मजबूत किया फिर नाराज सवर्ण नेता को मिलाना शुरु किया।

दोनों उप चुनाव जीते फिर विधान परिषद के सीट बटवारे में भी बड़े भाई की भूमिका में बने रहे विधान परिषद चुनाव में मधुबनी में बीजेपी वाले साथ नहीं दिये तो बेगूसराय में बदला ले लिये और बोचहा का रिजल्ट तो बता दिया कि बिहार में मोदी शाह की जोड़ी चलने वाला नहीं है।

यह बात जैसे ही सामने आया सुशील मोदी अपने अंदाज में हमला शुरु कर दिये और संकेत भी दे दिये कि नीतीश कमजोर होगे तो फिर 2024 का लोकसभा चुनाव में बिहार में हाल बूरा हो सकता है ।

ऐसे में आने वाले समय में नीतीश गठबंधन का साथ कब छोड़ते हैं ये तो नीतीश तय करेंगे लेकिन बिहार बीजेपी मोदी और शाह के नीति के साथ सहज नहीं है ये साफ दिखने लगा है और 60 से अधिक ऐसे बीजेपी विधायक है जो किसी भी समय चुनौती दे सकते हैं,ऐसे में वीर कुंवर सिंह के विज्योउत्सव कार्यक्रम की सफलता से मोदी और शाह के चेहते खुश हैं लेकिन सुशील मोदी की ट्टीट ने पलीता लगाने का काम कर दिया है यह साफ दिखने लगा है ।

पटेल की तरह वीर कुंवर सिंह के सहारे राजपूत नेताओं को साधने की तैयारी में तो नहीं जुटा है बीजेपी

आरा में वीर कुंवर सिंह की जयंती के मौके पर 78 हजार 25 लोगों ने तिरंगा फहराकर पाकिस्तान के एक साथ 75 हजार लोगों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया है और अब जल्द ही यह रिकॉर्ड ग्रीनिज बुक में भारत के नाम दर्ज होगा ।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस आयोजन के सहारे बीजेपी राजनीति के किस नैरेटिव का साधना चाह रही है। हालांकि जो नैरेटिव दिख रहा है वो यह था कि वीर कुंवर सिंह को जाति से बाहर निकाला जाये और उन्हें राष्ट्रवाद के नैरेटिव में फिट किया जाये।

इसके पीछे मोदी और शाह की यह सोच है कि पटेल की तरह ही वीर कुंवर सिंह ऐसे स्वतंत्रता सेनानी है जिनका जातीय आधार राष्ट्रीय फलक पर काफी मजबूत है लेकिन इनके जाति के कई ऐसे नेता है जो उन्हें आने वाले समय में चुनौती दे सकते हैं ऐसे में वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व को राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह से स्थापित किया जाये जिससे उनके विरादरी के नेता का प्रभाव कम हो ।

इसके लिए आने वाले समय बाबू साहब अंग्रेज के साथ लड़ाई के दौरान 22 अप्रैल 1858 को जब बलिया के शिवपुर घाट पर गंगा पार कर रहे थे तब उनकी भुजा में गोली लगी जिसे काटकर गंगा में फेंक दिया था उस स्थान पर पटेल से भी बड़ी मूर्ति और शौर्य पार्क बनाने की योजना है जिसकी चर्चा आज अमित शाह अपने भाषण के दौरान किये हैं ।

साथ ही वीर कुंवर सिंह के 80 वर्ष मे हथियार उठाने और अंग्रेज का हराने का जो शौर्यगाथा रहा है उसका इस्तमाल मोदी के लिए आने वाले समय में किया जा सका ये भी रणनीति का हिस्सा है ताकी मोदी ने मार्गदर्शक मंडल के सहारे जिस तरीके आडवाणी सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं को एक साथ साध दिये थे वैसे कोई मोदी को ना साधे।

क्यों कि वीर कुंवर सिंह की जो छवि रही है वो कही से भी बीजेपी के नैरेटिव में फिट नहीं बैठता है ये अलग बात है कि आजादी के आन्दोलन के दौरान सावरकर कई बार वीर कुंवर सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ हिन्दू चेहरा के रूप में स्थापित कोशिश की जरूर किया था लेकिन उस तरीके से आगे नहीं बढ़ पाया था वैसे आज शाह कह गये हैं कि वीर कुंवर सिंह के बारे में सही इतिहास नहीं लिखा गया है ऐसे में आने वाले समय में वीर कुंवर सिंह की अलग छवि देखने को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी देखिए आगे आगे होता है क्यों कि जाति इस देश का यथार्थ है और पटेल की तरह राजपूतों का शहरीकरण नहीं हो पाया है अभी भी बड़ी आबादी गांव में रहता है कृषि उसका मुख्य पेशा है ।

ऐसे में मोदी और शाह इस खेल में कहां तक कामयाब होते हैं कहना मुश्किल है लेकिन देश की राजनीति को बदलने की एक बड़ी कोशिश जरुर है।

वीर कुंवर सिंह की जंयती पर खास

कालिदास तुम सही थे ! तुम्हारा वह कथानक चित्र जिसमें तुम पेड़ के एक डाल पर बैठे हो और उसी डाल को काट रहे हो यह बिना सोचे कि डाली जब कट के गिरेगी तो तुम भी उसी डाली के साथ गिर जाओगे।

कालिदास तुम अलग नहीं हो । सदियों से मनुष्य जाति यही तो करती आई है ।
आज बुलडोजर चलाने पर जो खुश है वो तुम्हारे कथानक चित्र को वो पात्र है, जिसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि कानून है तो तुम हो, संविधान है तो तुम हो ।शासन और सत्ता तो चाहती ही है कि कानून और संविधान पर से लोगों का भरोसा उठ जाये ।
आज जिस रहमान के घर बुलडोजर चलने पर खुश हो, वह सिर्फ रहमान का घर नहीं है वह घर भारतीय संविधान और न्याय संहिता का घर है जिसके बुनियाद पर भारत बसा हुआ है ।सत्ता और सरकार तो चाहती ही कि कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर कानून और संविधान को धत्ता बताते रहे । कल तुम रहमान का घर टूटने पर खुशी मना रहे थे आज रमन झा और विवेक गुप्ता के घर बुलडोजर चला तो कागज दिखा रहे हो ।

तेरी हंसी कब तरे घर मातम लेकर पहुंच जाये किसी ने नहीं देखा है सत्ता और सरकार को इतनी छूट दिये तो फिर बहु बेटी को घर से उठा कर ले जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।

Editorial

देखो सत्ता का चरित्र आज जरुरत पड़ी तो वीर कुंउर सिंह के परिवार वाले की हत्या मामले में एक माह बाद डाँक्टर पर कार्यवाही हो रही है ।इससे पहले सूना था बिहार में इलाज में लापरवाही बरतने पर किसी डाँक्टर पर कार्यवाही हुई हो ।वैसे 23 अप्रैल के बाद डाँक्टर साहब को मनचाही जगह मिल जायेंगी ये भी तय है काली हो सकता है इस कथा में तुम्हारे नाम को जोड़कर उस ज़माने के तुझे नापसंद करने वालों ने तेरी फिरकी ली हो ।फिर भी एक बात तो है, तुम मिथक कथा के पात्र ही सही पर जीवंत बिंब हो मनुष्य जाति के एक पहलू के ।

भाई भाई को लड़ा रहा है सत्ता के लिए और ससुरे को समझ में नहीं आ रहा है नौकरी और रोजगार हाथ से जा रहा है शहर दर शहर उजर रहा है 35 रुपया का पेट्रोल 120 रुपया में बेच रहा है अपनी ऐयाशी के लिए फिर भी समझ में नहीं आ रहा है।
काली मेरा मानना है कि तुम ये कहानी मनुष्य को संचेत करने के लिए गढ़ा था लेकिन दुर्भाग्य है काली 1500 सौ वर्ष बाद भी समझ में नहीं आया है क्या करोगे मनुष्य समझदार ही हो जाता तो फिर ऐसे लोगों की दुकाने कैसे चलती है।

संघ को अब भंग कर देना चाहिए – संघ का पूर्व प्रचारक

हाल ही में संघ के एक पूर्व प्रचारक से मुलाकात हो गयी आज कल वो विधायक भी हैंं लम्बे अवधि तक इनका मेरे यहां आना जाना रहा है इसलिए मुलाकात के साथ ही पुरानी यादें ताजी हो गयी । कोई चार घंटा का साथ रहा ऐसे में स्वाभाविक था कि संघ और बीजेपी को लेकर इनसे लम्बी बातचीत हुई अभी जो देश में चल रहा है उसको लेकर ये काफी दुखी है,एक बात है संघ का प्रचारक अभी भी लाग लपेट में विश्वास नहीं करता है और जो सच है उस सच को स्वीकार करने में तनिक भी देर भी नहीं करता है ।

1–संघ को अब भंग कर देना चाहिए बातचीत को लब्बोलुआब यही था कि संघ का सौ वर्ष पूरे होने वाला है अब इस संस्था को भंग कर देना चाहिए संतोष बाबू जिस समय मैं प्रचारक बना था उस समय पूरे देश में 3487 प्रचारक हुआ करता था(अविवाहित फुल टाइम संघ के लिए काम करने वाले ) पिछले वर्ष मैं बाहर निकला हूं उस समय मात्र 709 प्रचारक बच गये और हाल यह है कि नये लोग अब संघ के प्रचारक के रूप में काम करने नहीं आ रहे हैं यही स्थिति रही तो दो तीन वर्ष में सौ के नीचे हो जायेगा और आप जानते ही है कि संघ जो यहां तक पहुंचा है उसके पीछे हजारों प्रचारक का 24 घंटे का श्रम है वैसे भी संघ का लक्ष्य क्या था राम मंदिर ,धारा 370 और कॉमन सिविल कोड।

राम मंदिर और धारा 370 हो ही गया और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कॉमन सिविल कोड लागू हो ही जाएगा उसके बाद संघ के पास बचेगा क्या ।वैसे भी जब से सरकार में बीजेपी आयी है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हाल देख लीजिए अब पहले वाला तेज रहा है ,मजदूर संगठन.स्वदेशी जागरण मंच, और सरस्वती शिशु मंदिर का अब कोई मतलब रह गया संघ के सभी अनुषांगिक संस्थान का यही हाल है कोई भी संगठन कार्यक्रम और आन्दोलन से चलता है ।

सरकार में आने के बाद अब ये सब करने का गुंजाइश ही नहीं रह गया है ऐसे में संगठन कमजोर पड़ेगा संतोष बाबू विवेकानंद भी कहे थे किसी भी संस्था पर उर्म सौ वर्ष होता है और अभी जो देश मेंं हो रहा है वो संघ को स्वीकार्य नहीं है हिन्दु जागरण का यह मतलब नहीं है कि मुसलमान को तंग करे इससे संगठन को और नुकसान ही हो रहा बताइए संतोष बाबू आप तो देखे हैं ना एक साइकिल और साथ में झौला सुबह का नास्ता किसी के यहां दोपहर का भोजना किसी और के यहां,शाम का नास्ता मिला तो ठीक नहीं तो रात का भोजन किसी स्वयंसेवक के यहां होता था कोई डर भय नहीं आज ना भाजपा सत्ता में है बीस वर्ष पहले गांव में भाजपा और संघ कहां था फिर भी जो संघ का स्वयंसेवक नहीं भी था उसके दरवाजे पर भी चले जाते थे तो सम्मान के साथ बैठाते थे हमलोग को देख कर गांव की महिलाए भी हिन्दी में बात करने लगती थी हाफ पेंट वाला सर जी नाम ही था हम लोगों का लेकिन अब जो स्थिति बनते जा रहा है कोई प्रचारक सोच भी सकता है कि दूसरे विचार धारा वाले के यहां बैठ भी सकता है।

Editorial
Editorial

बताइए ना संतोष बाबू हम ठहरे प्रचारक मोटरसाइकिल से चलते हैं तो पार्टी वाला हल्ला करने लगता है आप विधायक है मोटरसाइकिल से चलिएगा बताइए तीन चार लोगों के यहां चले गये हजार रुपया का तेल लग जाता है गाड़ी रखिए तो ड्राइवर रखिए कहां से उसको पैसा देंगे विधायक फंड है तो कार्यकर्ता सबका अलगे हिसाब है संतोष बाबू यहां हमको मन नहीं लग रहा है बताइए कहता है भीड़ जुटाइए कहां से जुटाए और अगर जुट भी गया तो उसको लाने ले जाने में जो खर्च होगा कहां से लायेंगे ये सब जब पार्टी में सवाल करते हैं तो ऐसे देखता है जैसे मैं इस दुनिया के इंसान ही नहीं है बहुत मुश्किल है इसके लिए थोड़े ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिये हैं संघ में अब लौट सकते नहीं है और राजनीति हम लोगों से होने वाला नहीं है दिन भर झूठ बोलिए क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।

चलिए बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई और चाचा जी लोग ठीक है ना माँ कुशल हैं बच्चा सबका पढ़ाई लिखाई चल रहा है एक बात संतोष बाबू आपका पूरा परिवार संघ का स्तम्भ रहा है आप ऐसे मत लिखा करिए सीधा हमला बोल देते हैं तो फिर विधायक जी क्या चाहते हैं कलम गिरवी लगा दे ना ना संतोष बाबू कांलेज जीवन से ही इंडिया टुडे नियमित पढ़ते थे उसमें भी तवलीन सिंह का लेख जरुर पढ़ते थे पत्रकार को स्वतंत्र जो जरुर होना। तभी जिनके कार्यक्रम में हम दोनों पहुंचे थे वो दौरे दौरे आये और बोले विधायक भी संतोष जी से क्या बतिया रहे हैं सब बात मीडिया में आ जाएगा, नहीं नहीं हम लोग इनके घर में पले बढ़े हैं पता है अपने मिजाज से पत्रकारिता करते हैं वैसे संघ को अब भंग कर देना चाहिए ये मैं अब मंच से भी बोलने वाला हूं ।

उजड़ता बिहार : बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है

काफी लम्बे अंतराल के बाद हाल में ही 20 दिनों से अधिक समय तक गांव और गांव के लोगों के बीच रहने का मौका मिला वैसे गांव में अब पहले वाली बात नहीं रही युवा तो दिखता ही नहीं है कुछ बच्चे दिखते हैं उन्हें भी खेलकुद से ज्यादा वास्ता नहीं है। फिर भी गांव मुझे बहुत आकर्षित करता है वजह गांव के लोगों में एक अलग तरह का विश्वास और समझदारी आज भी देखने को मिलता है ।

दरभंगा बाजार समिति से कोई दस किलोमीटर पर एक गांव है गांव के मुखिया जी रिश्तेदारी में आते हैं उनसे मिलने उसके घर गये थे ,पूरानी हवेली कब गिर जाए कहना मुश्किल है ,दरवाजे पर दो दो ट्रैक्टर देखने से लगता था कि वर्षो से बंद पड़ा है,दरवाजे के ठीक सामने लम्बा सा घर जिसमें सौ से अधिक मवेशी को बांधने वाला खूंटा औरमवेशी के खाना खाने वाला नाद बना है लेकिन बहुत दूर एक गाय बंधी हुई दिखायी दी ।ठीक उसके सामने बहुत बड़ा खलिहान था जिसके बीचो बीच अभी भी एक बांस गड़ा हुआ दिख रहा था जहां कभी दर्जनों बैल धान का दौनी करता होगा ऐसा एहसास आज भी हो रहा था।

खलिहान के ठीक बाजू में अनाज रखने के लिए बड़ा बड़ा घर बना हुआ था मिथिलांचल में इसे बखाड़ी कहते हैं बखाड़ी का हाल यह था कि ऊपर का छज्जा कब उड़ गया अनुमान लगाना मुश्किल है एक आकृति बची हुई है जो एहसास दिलाती है कि किसी जमाने में हजार क्विंटल अनाज रहता होगा।दरवाजे पर जो कुर्सी लगी हुई थी ऐसा लग रहा था वर्षो से उसका रंग रोगन नहीं हुआ है शीशम और सखुआ जैसे लकड़ी का बना हुआ है इसलिए अभी टूटा नहीं है ।यह सब मैं देख ही रहा था कि भूंजा आ गया लगा चलो बहुत दिनों बाद गाँव के कनसार(जहाँ भुजा बनाता था) का भूंजा खाने का मौका मिला लेकिन देख कर बड़ी निराशा हुई वही शहर वाला भूंजा चूड़ा और चना अलग से नमक ,प्याज और मिर्च।

भूंजा खत्म होते होते चाय आ गया वैसे मैं चाय पीता नहीं हूं फिर भी दो घुट ले लिए चाय के स्वाद से लग गया कि इस घर का हाल क्या है मुखिया बनते आ रहे हैं क्यों कि इसके दादा जी भी मुखिया थे और गांव के लोगों में आज भी धारणा है कि मालिक का परिवार है इनके बच्चों में वो ईमान धर्म बचा हुआ है और परिवार वाले उसी ईमान धर्म को बनाये रखने में इस बार भी मुखिया बनने में दो बीघा जमीन बेचना पड़ा है। यह हाल किसी एक गांव के किसानों का नहीं है यह हाल बिहार के हर गांव का है जिनके पास जमीन है वो आज सबसे अधिक गरीब है उनके पास जरूरतें पूरी करने लाइक भी पैसे घर में नहीं है शादी हो या फिर कोई बीमार पड़ गया तो जमीन बेचने के अलावे उसके पास कोई चारा नहीं रह गया है यही हाल छोटे किसान और खेतिहर मजदूर का है यू कहे तो पूरी कृषि व्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है मुफ्त में अनाज योजना का कितना बड़ा असर कृषि पर पड़ा है जरा गांव में जाकर देखिए ।

इतना ही नहीं पहले हर गांव में आपको सौ दो सौ भैंस गाय मिल जाता था आज गरीब के घर भी एक दो मवेशी मिल जाये तो बड़ी बात है हालांकि अभी भी गांव का यह कृषक समाज हार नहीं माना है संघर्ष कर रहा है अभी मुर्गी पालन और मछली पालन के सहारे किसानी को किसी तरह खींच रहा है ,लेकिन अब यह साफ दिखने लगा है कि गांव का कृषि व्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है ।इस हालात को समझने के लिए मैं छोटे और बड़े किसानों से जहां गया जिस गांव में गया काफी बातचीत किया जो स्थिति बनती जा रही है उसमें यह कह सकते हैं कि भारत भी श्रीलंका की और बढ़ चला है ।

किसानों से खेती ना करने कि वजह जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि खेती में पांच वर्ष पहले जहां पांच हजार रुपया बीघा खर्च होता था आज वो खर्च 25 हजार रुपया बीघा हो गया है लागत मूल्य पांच गुना बढ़ गया है लेकिन अनाज का दाम में मामूली वृद्धि हुई है, पांच वर्ष पहले खेत के जोत में नौ फाड़ा ,कल्टी और रोटावेटर का रेट था 25–35–50 रुपये प्रति कट्टा था वो आज बढ़कर नौ फाड़ा 50 रुपया ,कल्टी 70 रुपया और रोटावेटर 100 रुपया कट्टा हो गया है ।

लेकिन अभी हाल यह है कि दूध का उत्पादन घट कर रोजाना दो लाख से ढाई लाख प्रति लीटर हो गया है ,दूध का पाउडर बनाने वाली मशीन महीनों से बंद है,दूध उत्पादन में कमी को लेकर जब किसान से बात किये तो पता चला कि जर्सी और फ्रीजियन गाय के पालने में उसके खाना और दवा में इतना खर्च बढ़ गया कि अब किसान को गाय पालना घाटे का सौदा हो गया है। समस्तीपुर के किसी भी गांव में चले जाये जहां कभी हर किसान के दरवाजे पर दस से बीस गाय रहता था आज घटकर दो चार बच गया है छोटे किसान भी गाय पालना लगभग छोड़ दिया है ।

यह उजड़ा बिहार की वो तस्वीर है जिसके सहारे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पुचका बेचने बिहारी कश्मीर क्यों जा रहा है , पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुका है एक और बदलाव आया है पहले बिहारी जो बिहार से बाहर काम करता था गांव में जमीन और घर बनाने में निवेश करता था लेकिन यह प्रवृति भी काफी तेजी से घट रहा है इसका असर भी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था पर बहुत ही गहरा पड़ा है ।

इतना ही नहीं बहेरी ,बिरौल और कुशेश्वर स्थान जैसे छोटे छोटे बाजार में भी माँल खुल गया है इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि छोटे छोटे दुकान के सहारे वर्षो से रोजगार करने वाले दुकानदारों का दुकान बंद होने के कगार परआ गया है यू कहे तो पूरी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है फिर भी लोग खामोश है । ऐसे तमाम उजड़े हुए चमन के घर पर आपको मोदी और भगवा झंडा जरुर मिल जायेंगा जिसके पास अपनी बदहाली पर बात करने कि फुर्सत तक नहीं है।

अब देखना यह है कि हिन्दू मुसलमान ,जय श्री राम और पांच किलो अनाज के सहारे कितने दिनों तक सरकार इस बवंडर को रोक पाती है वैसे अंदर अंदर आग तो सुलगनी शुरु हो गयी है बस एक माचिस की जरूरत है।

अनुपम खैर कब से मौका परस्त हो गये

अक्सर मेरी दादी कहती थी कि जो जितना पढ़ा है वो उतना भ्रष्ट है ।दादी से मैं अक्सर भ्रष्ट का मतलब समझना चाहते थे वैसे उनकी नजर में पढ़ा लिखा लोग(व्यक्ति) में लोक लज्जा नहीं होता है सही को सही और गलत को गलत कहने की ताकत नहीं होती है साथ ही मौका परस्त होता । तो फिर मेरा सवाल होता था कि हम लोगों को क्यों पढ़ा रही हो,दादी पूरे विश्वास के साथ कहती थी तुम लोग भी पढ़ के यही करेगा फिर भी पढ़ा रहे हैं लोक(मनुष्य) तो बन जायेगा ।

आज एक बार फिर मुझे दादी की कही वो बात याद आ गयी द कश्मीर फाइल्स फिल्म के मुख्य किरदार अनुपम खेर ने कश्मीर समस्या को लेकर 2010–2011-2012 और 2013 में ट्वीट किया है उस ट्वीट में क्या लिखा है जरा आप भी पढ़ लीजिए –
1—2010 में कश्मीर के मसले पर अनुपम खेर ने एक ट्वीट किया था, इसमें वो लिखते हैं-
”कश्मीर के लिए मेरा दिल रोता है. राजनीति और आतंकवाद ने वहां के लोगों के लिए इस जन्नत को जहन्नुम बनाकर छोड़ दिया है. हिंदु और मुस्लिम दोनों के लिए.”

2——2011 में अनुपम खेर ने एक इमाद नजीर नाम के एक ट्विटर यूजर को जवाब देते हुए लिखा-
”समस्या कश्मीरी पंडितों और मुस्लिमों के साथ नहीं है. हम सालों तक शांति से एक-दूसरे के साथ रहे हैं. ये सब पॉलिटिशियन का किया धरा है दोस्त.”


3————-2012 में अनुपम खेर का कश्मीर, कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों पर किया एक ट्वीट नीचे पढ़िए-
”न भूलिए. न माफ करिए. हमें कश्मीरी मुस्लिमों के साथ पंडित महिलाओं के बारे में नहीं भूलना चाहिए. दोनों कमोबेश एक समान दुख से गुज़रे हैं.”


4———2013 में किया अनुपम खेर का ये ट्वीट ‘द कश्मीर फाइल्स’ की रिलीज के बाद सबसे ज्यादा वायरल हो रहा है. इसके पीछे की वजह आप ये ट्वीट पढ़कर समझ जाएंगे-
”मैं देख रहा हूं कि कुछ लोग विस्थापन को लेकर कश्मीरी पंडितों के हाहाकार को धार्मिक रंग दे रहे हैं. ये धर्म के बारे में नहीं है. मानवीय पीड़ा के बारे में है, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों गुज़रे.”

5—-द कश्मीर फाइल्स की रिलीज के बाद अनुपम खेर ने लिखा-
”लोगों का प्यार, कश्मीरी हिंदुओं के आंसू, विवेक अग्निहोत्री का धैर्य/साहस, द कश्मीर फाइल्स की पूरी टीम की मेहनत और सबसे ऊपर बाबा भोलेनाथ का आशीर्वाद. सच की जीत कभी ना कभी तो होनी थी. 32 साल बाद ही सही. कश्मीर को लेकर अनुपम खेर या तो पहले झूठ बोल रहे थे या फिर अब झूठ बोल रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अनुपम खेर जैसी शख्सियत को ये करने कि जरूरत क्यों पड़ी जिसके अभिनय ने देश के यूथ को ईमानदारी और राष्ट्र प्रेम के लिए प्रेरित किया लेकिन इस ट्वीट के पढ़ने के बाद तो यही लगता है कि अनुपम खेर कर्मा वाला डॉक्टर डैंग ही हैं बाकी सब ढोंग है ।