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उजड़ता बिहार : बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है

काफी लम्बे अंतराल के बाद हाल में ही 20 दिनों से अधिक समय तक गांव और गांव के लोगों के बीच रहने का मौका मिला वैसे गांव में अब पहले वाली बात नहीं रही युवा तो दिखता ही नहीं है कुछ बच्चे दिखते हैं उन्हें भी खेलकुद से ज्यादा वास्ता नहीं है। फिर भी गांव मुझे बहुत आकर्षित करता है वजह गांव के लोगों में एक अलग तरह का विश्वास और समझदारी आज भी देखने को मिलता है ।

दरभंगा बाजार समिति से कोई दस किलोमीटर पर एक गांव है गांव के मुखिया जी रिश्तेदारी में आते हैं उनसे मिलने उसके घर गये थे ,पूरानी हवेली कब गिर जाए कहना मुश्किल है ,दरवाजे पर दो दो ट्रैक्टर देखने से लगता था कि वर्षो से बंद पड़ा है,दरवाजे के ठीक सामने लम्बा सा घर जिसमें सौ से अधिक मवेशी को बांधने वाला खूंटा औरमवेशी के खाना खाने वाला नाद बना है लेकिन बहुत दूर एक गाय बंधी हुई दिखायी दी ।ठीक उसके सामने बहुत बड़ा खलिहान था जिसके बीचो बीच अभी भी एक बांस गड़ा हुआ दिख रहा था जहां कभी दर्जनों बैल धान का दौनी करता होगा ऐसा एहसास आज भी हो रहा था।

खलिहान के ठीक बाजू में अनाज रखने के लिए बड़ा बड़ा घर बना हुआ था मिथिलांचल में इसे बखाड़ी कहते हैं बखाड़ी का हाल यह था कि ऊपर का छज्जा कब उड़ गया अनुमान लगाना मुश्किल है एक आकृति बची हुई है जो एहसास दिलाती है कि किसी जमाने में हजार क्विंटल अनाज रहता होगा।दरवाजे पर जो कुर्सी लगी हुई थी ऐसा लग रहा था वर्षो से उसका रंग रोगन नहीं हुआ है शीशम और सखुआ जैसे लकड़ी का बना हुआ है इसलिए अभी टूटा नहीं है ।यह सब मैं देख ही रहा था कि भूंजा आ गया लगा चलो बहुत दिनों बाद गाँव के कनसार(जहाँ भुजा बनाता था) का भूंजा खाने का मौका मिला लेकिन देख कर बड़ी निराशा हुई वही शहर वाला भूंजा चूड़ा और चना अलग से नमक ,प्याज और मिर्च।

भूंजा खत्म होते होते चाय आ गया वैसे मैं चाय पीता नहीं हूं फिर भी दो घुट ले लिए चाय के स्वाद से लग गया कि इस घर का हाल क्या है मुखिया बनते आ रहे हैं क्यों कि इसके दादा जी भी मुखिया थे और गांव के लोगों में आज भी धारणा है कि मालिक का परिवार है इनके बच्चों में वो ईमान धर्म बचा हुआ है और परिवार वाले उसी ईमान धर्म को बनाये रखने में इस बार भी मुखिया बनने में दो बीघा जमीन बेचना पड़ा है। यह हाल किसी एक गांव के किसानों का नहीं है यह हाल बिहार के हर गांव का है जिनके पास जमीन है वो आज सबसे अधिक गरीब है उनके पास जरूरतें पूरी करने लाइक भी पैसे घर में नहीं है शादी हो या फिर कोई बीमार पड़ गया तो जमीन बेचने के अलावे उसके पास कोई चारा नहीं रह गया है यही हाल छोटे किसान और खेतिहर मजदूर का है यू कहे तो पूरी कृषि व्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है मुफ्त में अनाज योजना का कितना बड़ा असर कृषि पर पड़ा है जरा गांव में जाकर देखिए ।

इतना ही नहीं पहले हर गांव में आपको सौ दो सौ भैंस गाय मिल जाता था आज गरीब के घर भी एक दो मवेशी मिल जाये तो बड़ी बात है हालांकि अभी भी गांव का यह कृषक समाज हार नहीं माना है संघर्ष कर रहा है अभी मुर्गी पालन और मछली पालन के सहारे किसानी को किसी तरह खींच रहा है ,लेकिन अब यह साफ दिखने लगा है कि गांव का कृषि व्यवस्था अंतिम सांसे ले रही है ।इस हालात को समझने के लिए मैं छोटे और बड़े किसानों से जहां गया जिस गांव में गया काफी बातचीत किया जो स्थिति बनती जा रही है उसमें यह कह सकते हैं कि भारत भी श्रीलंका की और बढ़ चला है ।

किसानों से खेती ना करने कि वजह जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि खेती में पांच वर्ष पहले जहां पांच हजार रुपया बीघा खर्च होता था आज वो खर्च 25 हजार रुपया बीघा हो गया है लागत मूल्य पांच गुना बढ़ गया है लेकिन अनाज का दाम में मामूली वृद्धि हुई है, पांच वर्ष पहले खेत के जोत में नौ फाड़ा ,कल्टी और रोटावेटर का रेट था 25–35–50 रुपये प्रति कट्टा था वो आज बढ़कर नौ फाड़ा 50 रुपया ,कल्टी 70 रुपया और रोटावेटर 100 रुपया कट्टा हो गया है ।

लेकिन अभी हाल यह है कि दूध का उत्पादन घट कर रोजाना दो लाख से ढाई लाख प्रति लीटर हो गया है ,दूध का पाउडर बनाने वाली मशीन महीनों से बंद है,दूध उत्पादन में कमी को लेकर जब किसान से बात किये तो पता चला कि जर्सी और फ्रीजियन गाय के पालने में उसके खाना और दवा में इतना खर्च बढ़ गया कि अब किसान को गाय पालना घाटे का सौदा हो गया है। समस्तीपुर के किसी भी गांव में चले जाये जहां कभी हर किसान के दरवाजे पर दस से बीस गाय रहता था आज घटकर दो चार बच गया है छोटे किसान भी गाय पालना लगभग छोड़ दिया है ।

यह उजड़ा बिहार की वो तस्वीर है जिसके सहारे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पुचका बेचने बिहारी कश्मीर क्यों जा रहा है , पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुका है एक और बदलाव आया है पहले बिहारी जो बिहार से बाहर काम करता था गांव में जमीन और घर बनाने में निवेश करता था लेकिन यह प्रवृति भी काफी तेजी से घट रहा है इसका असर भी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था पर बहुत ही गहरा पड़ा है ।

इतना ही नहीं बहेरी ,बिरौल और कुशेश्वर स्थान जैसे छोटे छोटे बाजार में भी माँल खुल गया है इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि छोटे छोटे दुकान के सहारे वर्षो से रोजगार करने वाले दुकानदारों का दुकान बंद होने के कगार परआ गया है यू कहे तो पूरी ग्रामीण अर्थ व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है फिर भी लोग खामोश है । ऐसे तमाम उजड़े हुए चमन के घर पर आपको मोदी और भगवा झंडा जरुर मिल जायेंगा जिसके पास अपनी बदहाली पर बात करने कि फुर्सत तक नहीं है।

अब देखना यह है कि हिन्दू मुसलमान ,जय श्री राम और पांच किलो अनाज के सहारे कितने दिनों तक सरकार इस बवंडर को रोक पाती है वैसे अंदर अंदर आग तो सुलगनी शुरु हो गयी है बस एक माचिस की जरूरत है।

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