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बिहार विधानसभा उप चुनाव का परिणाम तय करेगा बिहार किस दिशा में बढ़ रहा है

1991 में रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र से जनता दल से रामविलास पासवान और बीजेपी से कामेश्वर चौपाल चुनाव लड़ रहे थे ।कामेश्वर चौपाल राम जन्मभूमि का शिलान्यास किये थे इसलिए रोसड़ा लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण हो गया था क्यों कि उस समय मंडल और कमंडल की राजनीति चरम पर था।

कामेश्वर चौपाल के लिए संघ ,विहिप और बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक दिया था और इतनी महंगी चुनाव मैंने आज तक नहीं देखा है ,उस दौर में पहली बार करोड़ों रुपये खर्च किये गये थे ।रामविलास पासवान का चार गाड़ी तो कामेश्वर चौपाल का 10 गाड़ी प्रचार में लगा हुआ था ।संशाधन में इतना बड़ा फर्क था लेकिन परिणाम आया तो कामेश्वर चौपाल का जमानत जप्त हो गया ।

वो दौर था जब मैंं पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया था हालांकि उस राजनीति की उतनी समझ नहीं थी लेकिन चुनाव परिणाम आने बाद मुझे लगा कि संसाधन और सवर्ण के सहारे ही चुनाव नहीं जीता जा सकता है ।

1998 के लोकसभा चुनाव में पहली बार एक पत्रकार के रूप में चुनाव कवर करने का मौका मिला और फिर यह सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक चला आ रहा है। बीजेपी को लेकर अभी भी धारणा यही है कि यह पार्टी सवर्ण और बनिया की पार्टी है। हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव के बावजूद भी बिहार में बीजेपी अभी तक जातीय समीकरण में कोई बड़ी सेंधमारी नहीं कर पाई है ।वही 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा देखा गया कि बनिया वोटर बीजेपी से दूरी बनाने लगे और ऐसी सीट जहां राजद बनिया को टिकट दिया वहां राजद एनडीए के कोर वोटर बनिया के वोट मे सेंधमारी करने में कामयाब रहा था ।

ऐसे में कल मोकामा और गोपालगंज में जो उप चुनाव हुआ है उसमें राजद को बड़े मार्जिन से चुनाव जीतना चाहिए क्यों कि 2015 में जब नीतीश और लालू एक साथ चुनाव लड़ थे तो उस वक्त मोदी लहर के बावजूद बीजेपी का बिहार में सूपड़ा साफ हो गया था और इस बार तो सात सात पार्टी बीजेपी के खिलाफ एकजुट है।

इसलिए यह चुनाव नीतीश ,तेजस्वी और बीजेपी तीनों के लिए लिटमस टेस्ट है क्यों कि महागठबंधन के बाद जिस तरीके से नीतीश का #Body language और संवाद करने के तरीके में जो बदल आया है उसकी भी परीक्षा इस चुनाव में होने वाली है ।

इसी तरह राजद का यादव और मुसलमान समीकरण को साधु यादव और ओवैसी जैसे नेता सेंधमारी करने में कामयाब हो जाते हैं तो 2024 में ऐसे कई नेता के सहारे बीजेपी बिहार के इस मजबूत गठबंधन को ध्वस्त कर सकती है ।

इसी तरह बिहार का जो चुनावी गणित दिख रहा है उसी तरीके का परिणाम रहा तो फिर बीजेपी के लिए बिहार में वापसी करना नामुमकिन हो जायेगा देखिए आगे आगे होता है क्या लेकिन चुनाव भले ही दो विधानसभा में हो रहा है लेकिन बिहार किसी दिशा में बढ़ रहा है इन दो विधानसभा चुनाव के परिणाम से साफ हो जायेंगा।

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