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MLC चुनाव को जारी एनडीए में बनी सहमति 12 -11-1 के फार्मूले पर बनी सहमति

MLC चुनाव को लेकर NDA में जारी खींचतान आज खत्म हो गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर NDA की ओर से सीटों का ऐलान किया गया। इससे पहले आज सुबह 11 बजे BJP नेता भूपेंद्र यादव और डिप्टी CM तारकिशोर प्रसाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर पहुंचे। उन्होंने एक घंटे तक साथ में बैठक की।

हालांकि, बैठक खत्म होने के बाद जब वह बाहर निकले तो उन्होंने पत्रकारों से कोई बात नहीं की। वहीं, डिप्टी CM ने बताया, ‘NDA में BJP-JDU के बीच सब ठीक है। दोनों पार्टियों के बीच सहमति पहले से बनी हुई थी। आज भी विचार-विमर्श किया गया।’

24 सीटों पर होना है चुनाव
विधान परिषद की 24 सीटों पर चुनाव होना है। इसको लेकर दोनों पार्टियों के बीच तनातनी चल रही थी। UP में जब से दोनों पार्टियों के बीच सीट का बंटवारा नहीं हुआ तब से दोनों ओर से बयानबाजी जारी है। इसको लेकर सभी की नजर विधान परिषद चुनाव को लेकर NDA के सीट बंटवारे पर थी।

बीजेपी को 12 सीटें
रोहतास
औरंगाबाद
सारण
सीवान
दरभंगा
पूर्वी चंपारण
किसनगंज
कटिहार
सहरसा
गोपालगंज
बेगूसराय
समस्तीपुर
RLJP
वैशाली
JDU की 11 सीटें
पटना
भोजपुर
गया
नालंदा
मुजफ्फरपुर
पश्चिमी चंपारण
सीतामढ़ी
भागलपुर
मुंगेर
नवादा
मधुबनी

देश को चाणक्य जैसे शिक्षक की जरुरत है

बच्चा जब होश सम्भालता है तो परिवार और समाज से बाहर किसी एक व्यक्ति से उसकी सबसे पहली मुलाकात होती है तो वह है शिक्षक और उस शिक्षक को लेकर बच्चों के मन में सम्मान और आदर का भाव ता उम्र बना रहता है और यही वजह है कि बच्चा जब माँ के आंचल से बाहर निकलता है तो हर अभिभावक की कोशिश होती है कि एक ऐसा शिक्षक मिले जो हमारे बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सके ताकी इसका लाभ आने वाले समय में परिवार ,समाज और राष्ट्र को मिल सके।


मतलब किसी भी परिवार ,समाज और राष्ट्र के मजबूती के लिए बेहतर शिक्षा और समझदार शिक्षक का होना बहुत ही जरूरी है लेकिन किसी की भी सरकार हो उसकी प्राथमिकता शिक्षा नहीं रही ,शिक्षक नहीं रहा है और इस वजह से आज किसी भी अभिभावक का सबसे अधिक खर्च कही हो रहा है तो वह है शिक्षा, पूरी कमाई लगा देने के बावजूद भी बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने में देश की 90 प्रतिशत आबादी वंचित रह रहा है।

हमारी पीढ़ी जितना खर्च पूरे पढ़ाई काल में किया होगा आज उस स्तर की शिक्षा अपने बच्चों को भी मिले इसके लिए यूकेजी में नाम लिखाने और किताब खरीदने में ही खर्च हो जा रहा है, इतनी महंगी हो गयी है शिक्षा, बिहार सरकार का शिक्षा विभाग कल एक आदेश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि अब शिक्षक शराब माफिया और शराब कारोबारी की खबर सरकार तक पहुचाएंगा इस आदेश को लेकर हंगामा मचा हुआ है कल शाम से देर रात तक कई शिक्षक नेता का फोन आ चुका है संतोष जी क्या हो रहा है इस प्रदेश में कुछ करिए अब शिक्षक बच्चों को पढ़ाना छोड़कर शराब माफिया का पता लगायेगा ।

इस पर एक अच्छा डिवेट करवाईएं बहुत जरुरी है हालांकि मुझे इस आदेश से कोई अचरज नहीं हुआ मास्टर साहब तो पहले से ही इस तरह का काम करते ही रहे हैं कभी मानव का गणना करते हैं ,कभी वोटर का गणना करते हैं,कभी पशु का गणना करते हैं और इस सबसे जब समय बचता है तो बच्चों को भोजन बनाकर खिलाते हैं ।

आज की तारीख में सरकार मास्टर साहब से पढ़ाने का काम कम दूसरा काम ज्यादा करवाने में भरोसा करता है ।किसी भी स्कूल में चले जाये दो तीन शिक्षक स्कूल से बाहर ही रहता है किसी न किसी सरकारी काम को लेकर और यह सब गांव के उस अभिभावक के सामने हो रहा है जिसके बच्चे का भविष्य दांव पर है।

वजह आज भी चुनाव का मुद्दा बेहतर शिक्षा और शिक्षक नहीं है कभी मैंने नहीं सूना है कि गांव के किसी स्कूल में शिक्षक नहीं है या फिर शिक्षक पढ़ाने नहीं आ रहा है तो गांव वाले वोट का बहिष्कार किये हो या फिर गांव वाले सड़क पर उतरे हो कभी नहीं सुना ।

ऐसा भी नहीं है कि यह समझदारी जनता को नहीं है अनपढ़ से अनपढ़ अभिभावक भी शिक्षा के महत्व को समझते हैं लेकिन गांव की शिक्षा व्यवस्था कैसे मजबूत हो इसकी समझ नही बन पा रही है।गांव के अभिभावक का यही सोच है कि सरकारी शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था सही नहीं है तो बच्चों को निजी स्कूल में नाम लिखा दो । सरकार भी यही चाहती है किसी तरह शिक्षा के जिम्मेवारी में मुक्त हो जाये और इसी सोच के तहत सरकार काम भी कर रही है ।

बिहार में शिक्षक के नियोजन को लेकर जब गांव गांव में सवाल खड़े होने लगे कि सरकार सिपाही की बहाली प्रतियोगिता परीक्षा लेकर कर रही है और मास्टर की बहाली नम्बर पर कर रहा है ।

सरकार दबाव में आ गयी और फिर सरकार प्रदेश स्तर पर परीक्षा आयोजित कर बहाल करने कि घोषणा कर दी, देखने में सब कुछ वैसा ही लगा भी कि चलिए इस बार अच्छे लड़के लड़कियां शिक्षक बनेंगे लेकिन हुआ क्या पद से कई गुना अधिक रिजल्ट निकाल दिया और नौकरी पर रखने का अधिकार उसी नियोजन इकाई को दे दिया जो पैसा लेकर अंगूठा छाप मास्टर को पूरे प्रदेश में बहाल कर दिया था।

परिणाम क्या हुआ इस समय पूरे बिहार में पंचायत का मुखिया और सचिव वही खेला शुरु किये हुए हैं चार से लाख पांच लाख दीजिए मेरिट लिस्ट में आप कहां है उससे कोई मतलब नहीं है आपकी नौकरी पक्की। मतलब शिक्षक बहाली में फिर से वही खेला चल रहा है जिसको लेकर सरकार की किरकिरी हुई थी। ऐसी स्थिति में शिक्षक को समाज का सहयोग कैसे मिलेगा वही आज के शिक्षकों का जो चेहरा समाज के सामने है वह बहुत विकृत चेहरा है ऐसी चर्चा आम है कि शिक्षक पढ़ाई छोड़कर सारे काम करते हैं ।

हालांकि इस तरह के इमेज बनाने में सरकार की बड़ी भूमिका है फिर भी आज शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ऐसा कुछ करे जिससे समाज का,परिवार का और बच्चों का एक बार फिर से सरकारी स्कूलों पर भरोसा हो तभी तो सम्मान मिल पायेगा ।

वैसे आज तक अपका चाल चरित्र और चेहरा खान सर से अलग नहीं रहा है अपने लिए तो सब लड़ता है चाणक्य
की तरह समाज और देश के लिए निकले तब तो जाने।

रेलवे बहाली को लेकर गैर जिम्मेवार है -अभयानंद पूर्व डीजीपी बिहार

रेलवे के परीक्षा परिणाम को लेकर नराज छात्र के मामले में बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने रेलवे बोर्ड को आड़े हाथ लेते हुए पूरी बहाली प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया है अपने फेसबुक पेज पर लिखे हैं है कि किसी भी बहाली के साफ़ नीयत और पारदर्शी प्रक्रिया जरुरी है जिसका घोर अभाव देखा जा रहा है।
बिहार पुलिस में सिपाही की नियुक्ति होनी थी। संख्या हज़ारों में थी। लाखों में आवेदन प्राप्त हुए थे। परीक्षा केवल शारीरिक क्षमता की थी यानी लम्बी दौड़, लम्बी कूद, ऊंची कूद, गोला फ़ेंक, इत्यादि।
सरकार ने मुझे इस प्रतियोगिता के संचालन का ज़िम्मा दिया। पूरा कार्यक्रम किसी यज्ञ से कम नहीं था। कार्यक्रम के दौरान माननीय मुख्यमंत्री ने गंभीर आवाज़ में पूछा, “कैसा चल रहा है बहाली?” मैंने उत्तर दिया, “जनता दरबार में असंख्य लोग शिकायत लेकर आते हैं। कोई बहाली की शिकायत के साथ आपसे मिलने आया है?” उन्होंने कहा, “नहीं”। मैंने तुरंत कहा, “तब मान लीजिए कि बहाली ठीक हो रही है।”
पूरी प्रक्रिया के हर पल का वीडियो बनाया गया था।
मुझे दो वाकया स्मरण हैं। एक प्रत्याशी ने दावा किया कि उसने लम्बी कूद पूरी की थी पर उसे निकाल दिया गया था। उसकी वीडियो निकाल कर उसके अंतिम फ्रेम को फ्रीज करके दिखाया गया कि उसका पैर लाइन के पीछे ही रह गया था। यह देखने के बाद वह संतुष्ट होकर चला गया।
दूसरा प्रत्याशी अपने एक मील की दौड़ पर दावा कर रहा था। उसे भी पूरा वीडियो दिखा दिया गया। वह जब संतुष्ट हुआ कि उसके साथ अन्याय नहीं हुआ है तब वह भी चला गया।
मात्र तीन महीनों में बहाली पूरी हुई। किसी कोर्ट का चक्कर नहीं लगा न ही कोई आंदोलन हुआ जैसा आज-कल प्रत्येक सार्वजनिक प्रतियोगिता में हो रहा है।
अंतर केवल एक था “साफ़ नीयत और पारदर्शी प्रक्रिया”।

बिहार कोकिला शारदा सिन्हा की व्यथा ये अंधेरा कब तक

ये अंधेर कब तक ?????
Dr. Isha Sinha , मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं । LNMU , दरभंगा में पीजी हेड से रिटायर की थीं । जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं।

आज वो हमें अकेला छोड़ गईं । 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं , अंतिम समय में उनके दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी , उनके पतिदेव श्री सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को उनकी पत्नी के हालत भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी ।

पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में !!!!!!श्री सच्चिदानंद जी !
ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें।
मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं , और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही !!!!
साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं । (इसका फर्क हर सेवा निवृत को गहरा ही पड़ता है)
क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का ???
क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में ।

ये अंधेर कब तक ?????
Dr. Isha Sinha , मेरी संगिनी ही नहीं बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर मेरे साथ मेरे कार्य काल में रहीं । LNMU , दरभंगा में पीजी हेड से रिटायर की थीं । जबसे मैंने कॉलेज का शिक्षण कार्य शुरु किया था तब से मेरे साथ सखी सहेली और न जाने कितने रूप में मेरा साथ देती रहीं।
आज वो हमें अकेला छोड़ गईं । 2 साल अपने शारीरिक कष्ट , व्याधि और मानसिक पीड़ा से लड़ती रहीं , अंतिम समय में उनके दिमाग पर अपने परिवार को अकेला छोड़ जाने की पीड़ा का एक बहुत बड़ा कारण था कि उनकी पेंशन की राशि पिछले 4-5 महीनो से नही मिली थी , उनके पतिदेव श्री सच्चिदानंद जी ने कई पत्र लिखे सरकार के नाम , सरकार को उनकी पत्नी के हालत भी बताया पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी ।
पटना से समस्तीपुर और समस्तीपुर से पटना इलाज के दौरान दौड़ते रहे, पैसों के इंतजाम में !!!!!!श्री सच्चिदानंद जी !
ताकि उनकी जीवन संगिनी कुछ पल और उनके साथ जीवित रह सकें।
मेरी सखी ईशा जी तो चली गईं , और न जाने कितने बाकी हैं इस परेशानी को झेलने के लिए बस अब यही पता नही !!!!
साथ ही यह बता दूं कि मैं भी पिछले 4 महीनो से बिना पेंशन ही हूं । (इसका फर्क हर सेवा निवृत को गहरा ही पड़ता है)
क्या यही न्याय है बिहार सरकार या विश्वविद्यालय नियमों का ???
क्या मैं इसी राज्य का प्रतिनिधित्व करती हूं ? शर्मसार ही महसूस करती हूं इस तरह की व्यवस्था में ।

लेखक–शारदा सिन्हा

छात्र आंदोलन का क्या मतलब है

बिहार से एक बार फिर छात्र आंदोलन की शुरुआत हो गई है’, एक नेता ने उत्साह से घोषणा की. एक नौजवान ने माइक में चीखते हुए कहा, ‘क्रांति की चिंगारी दिल्ली तक पहुंचेगी.’ इन दोनों में ही जो जनतांत्रिक आशा है, उसका तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए लेकिन दोनों बस आशा की ही अभिव्यक्ति हैं और अतिशयोक्ति हैं. इस पर हम आगे बात करेंगे.
बिहार और उत्तर प्रदेश में रेलवे लाइनों पर और सड़कों पर नौजवानों के क्षोभ का विस्फोट हुआ. क्षोभ से भी ज़्यादा इसे हताशा कहा जाना चाहिए. रेलगाड़ियों में आग लगा दी गई, पटरियों को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई.
‘सार्वजनिक संपत्ति’ का नुकसान हुआ, यह कहकर कई लोग नौजवानों को हिंसा से बचकर शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन चलाने को कह रहे हैं. वे किसान आंदोलन का उदाहरण दे रहे हैं. देखिए, उन्होंने कितने अहिंसापूर्ण तरीके से और धीरज से अपना आंदोलन चलाया और सरकार को झुका दिया.
जो यह सुझाव देते हैं वे नहीं बतलाते कि उस आंदोलन को शांतिपूर्ण होने के बाद भी हिंदी जनसंचार माध्यम का समर्थन तो नहीं ही मिला था, उसने यह प्रचार भी किया था कि किसान शांति का ढोंग कर रहे हैं, वे मूलतः हिंसक हैं. उनके भीतर खालिस्तानी, माओवादी और जिहादी छिपकर बैठे हैं और वे हिंसक ही नहीं राष्ट्रद्रोही भी हैं.
उस आंदोलन ने इन सारे आरोपों को झेलते हुए अपना रास्ता तय किया. आंदोलन शांतिपूर्ण हो तो सरकार सुन लेती है, यह बात किसान आंदोलन से गलत साबित हुई और उसके पहले नागरिकता के संशोधित कानून का विरोध कर रहे आंदोलन के प्रति सरकार और जनसंचार माध्यमों के रवैये से भी गलत साबित होती है.
लोगों का कहना है कि किसान आंदोलन की मांगे भी तभी आंशिक रूप से मानी गईं जब भारतीय जनता पार्टी को भय हुआ कि उत्तर प्रदेश और पंजाब में उसे भारी हानि होगी. किसान अगर उसके संभावित मतदाता न होते तो भाजपा को उनके हितों की भी कोई परवाह न होती.
यह बात साबित होती है नागरिकता के कानून के विरोध में हुए आंदोलन के प्रति उसके बेहिस और हिंसक रुख से. भाजपा को मालूम है कि मुसलमान उसके मतदाता नहीं हैं बल्कि वह अपने मतदाता को मुसलमान और ईसाई विरोधी हिंदू ही बनाना चाहती है. इसलिए उसने उस आंदोलन पर कान नहीं दिया.
न सिर्फ यह उसने उस आंदोलन का भारी दमन किया जिसका चरम दिल्ली में फरवरी 2020 में की गई हिंसा थी. ऐसा करके उसने हिंदुओं के एक हिस्से में पैठी मुसलमान विरोधी हिंसा को तुष्ट किया.
आपने ध्यान दिया होगा कि ट्रेनों में आगजनी और तोड़फोड़ के बाद भी सरकार और अखबारों और टीवी चैनलों की तरफ से आंदोलनकारियों पर वैसा हमला नहीं किया गया जैसा नागरिकता कानून या किसानों से जुड़े कानूनों के विरोध में हुए आंदोलनों पर किया गया था.
किसी ने नहीं कहा कि सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का बदला लिया जाएगा हालांकि ऐसा कहने वाले आज भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. इसके उलट रेलवे मंत्री ने आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का आश्वासन दिया.
मंत्री ने आंदोलनकारियों से सार्वजनिक संपत्ति को अपनी संपत्ति समझने का अनुरोध किया और तोड़फोड़ से बचने की अपील की. रेल मंत्रालय ने कहा कि वह आंदोलन की मांग पर विचार करेगी. यह सब कुछ बहुत नया है और इस सरकार के स्वभाव के उलट है.
इलाहाबाद में पुलिस ने जो हिंसा की, उसे जायज ठहराने की जगह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ने हिंसा में लिप्त पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई का भरोसा दिलाया और आंदोलनकारियों से संयम की अपील की. यह भी उनके और उनकी सरकार के स्वभाव के विपरीत है.
जो उनका तरीका है उसके मुताबिक़ अब तक इन आंदोलनकारी नौजवानों के नाम और तस्वीरों वाले पोस्टर शहर में लग जाने चाहिए थे और इनके घर कुर्की-जब्ती शुरू हो जानी थी.
बिहार और उत्तर प्रदेश में, खासकर इलाहाबाद में जिस तरह आंदोलनकारी नौजवानों को उनके छात्रावास में घुसकर मारा गया, उससे कुछ लोगों को जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिस की भीषण हिंसा की याद आ गई.
पुलिस की इस हिंसा पर कुछ बात करना ज़रूरी है इसके पहले कि हम अभी के नौजवानों के आंदोलन पर बात करें.
आंदोलनों में पुलिस का काम कठिन होता है. आंदोलनकारी जोश में और कई बार इरादतन व्यवस्था भंग करते हैं. पुलिस का काम व्यवस्था बनाए रखने का होता है. इसलिए दोनों के बीच खींचतान होना स्वाभाविक है. पुलिस बल का प्रयोग करेगी, यह भी सब जानते हैं.
पहले के आंदोलनों में यह होता रहा है. लेकिन पिछले सात साल में यह बदल गया है. अब पुलिस बलप्रयोग से स्थिति को नियंत्रित नहीं करती. वह इरादतन हिंसा करती है.
जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस की कार्रवाई को इरादतन हिंसा के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता. अमूमन पुलिस दुश्मनों की तरह बर्ताव नहीं करती. लेकिन 2019 दिसंबर में नागरिकता के कानून के खिलाफ आंदोलनकारियों के साथ पुलिस का बर्ताव ऐसा था जैसे उसकी इनसे ज़ाती दुश्मनी हो.
यही बात 2 अप्रैल, 2018 को दलित संगठनों की तरफ से किए गए बंद के दौरान पुलिस की हिंसा में दिखलाई दी. उसने कथित ऊंची जाति के गुंडों के साथ मिलकर दलितों पर हिंसा की.
पुलिस और शासक दल के गुंडों के गठजोड़ का प्रमाण इस नारे से बेहतर और कोई नहीं हो सकता, ‘दिल्ली पुलिस लट्ठ चलाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.’ पुलिस का सक्रिय हिंसक बल में बदल जाना जनतंत्र और गणतंत्र दोनों के लिए घातक है.
उत्तर प्रदेश और अब असम या अन्य राज्यों में पुलिस को सरकार विरोधियों के साथ हिंसा की जो छूट दी जा रही है, उसका ही परिणाम इलाहाबाद में पुलिस की अवाक् कर देने वाली हिंसा थी. वह छात्रावास में घुसकर जिस तरह बंदूक के कुंदों से दरवाजे तोड़ने की कोशिश कर रही थी, जिस तरह पुलिसवाले बार-बार दरवाज़े तोड़ने में हांफ रहे थे, उससे लग रहा था, यह उनका व्यक्तिगत क्रोध है.
पुलिस के चरित्र में इस परिवर्तन पर हमें सोचने की ज़रूरत है. पुलिस को जनता का मालिक बना देने के नतीजे भयानक हो सकते हैं.
इन बातों से आगे हम इस पर विचार करें कि क्या छात्र आंदोलन की शुरुआत हो गई है? ऐसी कल्पना के पहले यह समझना आवश्यक है कि जो भी अभी सड़क पर थे, वे छात्र नहीं रह गए हैं.
यह भारत की पिछले दो दशकों की बड़ी दुर्घटना है जो चुपचाप हुई और जिससे हम सबने आंखें चुरा रखी हैं. ख़ासकर, उत्तर भारत में छात्र की जगह अब परीक्षार्थी या ‘टेस्टार्थी’ ने ले ली है. यह एक ऐसी प्रजाति विकसित की गई है जो सालोंसाल एक के बाद दूसरे टेस्ट देती रहती है.
जैसा इस रेलवे भर्ती परीक्षा के मामले से ही पता चलता है, इन सारे ‘टेस्टों’ को इतना जटिल बना दिया गया है और इन्हें इतना लंबा खींचा जाता है कि इनमें शामिल होने वालों की सारी युवा ऊर्जा उसी भूलभुलैया में बाहर का रास्ता खोजने को भागते हुए चुक जाती है.
वे एक नौकरी के टेस्ट से दूसरी नौकरी के टेस्ट के फॉर्म भरते रहते हैं, टेस्ट की तैयारी में कोचिंग करते हैं और गाइड में सिर खपाते रहते हैं. उनका खासा वक्त कोचिंग में गुजरता है. अपने समाज और राजनीति के बारे में विचार करने के लिए उनके पास वक्त नहीं होता जिसने उन्हें इस जाल में फंसा रखा है.
धीरे-धीरे वे इतना झुका दिए जाते हैं कि कम से कम पर समझौते को तैयार हो जाते हैं. उनकी आत्म छवि भी छात्र से ज़्यादा ‘प्रिपरेशनकारी’ की होती है. कॉलेज और विश्वविद्यालय के परिसर से ज़्यादा वक्त उनका कोचिंग सेंटर में बीतता है. यहां उन्हें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखने को कहा जाता है और फालतू की बहस से दूर रहने की शिक्षा दी जाती है.
गांवों और छोटे क़स्बों में एक दूसरी तैयारी या कोचिंग चलती है. सुबह-सुबह आप नौजवानों को दौड़ लगाते देख सकते हैं. वे दौड़ते रहते हैं कि सेना, बीएसएफ या किसी राज्य की पुलिस में उनकी बहाली हो जाए. फिर उसके साथ वे घूस का इंतजाम भी करते हैं.
ये छात्र नहीं रह जाते. इसमें इनका कोई कसूर नहीं. लेकिन यह सच्चाई है कि भारत में, विशेषकर उत्तर भारत में छात्रों की जगह अब टेस्टार्थियों ने ले ली है. उनके पास आंदोलन का समय नहीं.
यह बात मेरी समझ में आई 2016 में संसद भवन थाने में ऐसे ही परीक्षार्थियों के एक झुंड से बात करके. ये सब ऊंचे स्तर के टेस्टार्थी थे. वे संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले थे. किसी मसले पर वे आंदोलन कर रहे थे और अपनी मांग लेकर भाजपा के दफ्तर गए थे. वहां उनकी पिटाई हुई और पुलिस पकड़कर उन्हें थाने ले आई.
उनमें से एक ने मुझसे कहा कि पुलिस ने उन पर कितना जुल्म किया है. यह फरवरी 2016 की बात है. अभी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उमर खालिद, कन्हैया, अनिर्बान आदि की गिरफ्तारी हुई थी. मैंने उनसे कहा कि पुलिस ने जेएनयू में भी छात्रों के साथ जुल्म किया है. इतना सुनना था कि वे छात्र बिदक उठे.
उन्होंने कहा कि हमें उनसे मत मिलाइए. हमारा मामला अलग है. मैं समझ गया कि इन सबने खुद को छात्रों की श्रेणी से अलग कर लिया है. ये प्रिपरेशन करने वाले टेस्टार्थी समुदाय के सदस्य हैं. ये छात्रों से किसी तरह का कोई लगाव महसूस करें, इसका कारण नहीं है.
जैसा पहले लिखा, इसके लिए ये दोषी नहीं हैं. यह जमात हमने पैदा की है. राज्यों के विश्वविद्यालयों को ध्वस्त करके उनकी जगह कोचिंग सेंटर खड़े करने में राज्य सरकारों को शर्म नहीं आती.
नीतीश कुमार के सत्तासीन होने के बाद पटना में बड़ा बैनर देखा था, ‘पटना को कोटा बनाना है.’ पटना की यह महत्त्वाकांक्षा देखकर सिर झुक गया. पटना विश्वविद्यालय ढह चुका है. चारों तरफ छोटे बड़े कोचिंग सेंटर उग आए हैं. छात्र समुदाय की मृत्यु हो चुकी है. उसकी जगह टेस्टार्थियों की भीड़ खड़ी हो गई है. भीड़ का गुस्सा ज़रूर फूट सकता है. वह आंदोलन नहीं कर सकती.

देश के प्रथम राष्ट्रपति के स्मारक की दर्दाशा को लेकर आज भी हुई सुनवाई सरकार को लगी फटकार

पटना हाईकोर्ट ने देश के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई और वहां उनके स्मारक की दुर्दशा के मामलें पर सुनवाई की।चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने केंद्र सरकार ( आर्केलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) व राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे असन्तोषजनक करार दिया।

हाईकोर्ट ने सिवान के डी एम को इस जनहित याचिका में उठाए गए सभी मुद्दों पर हलफनामा दायर कर जवाब देने को निर्देश दिया।साथ ही कोर्ट ने पटना के जिलाधिकारी को पटना स्थित बांस घाट और बिहार विद्यापीठ के सम्बन्ध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया हैं।

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार, आर्किओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया समेत अन्य सभी पक्षों को निश्चित रूप से जवाब दायर करने का आदेश दिया था।लेकिन आज आर्किओलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया व राज्य सरकार के द्वारा जो हलफनामा दायर कर जवाब दिया गया,उन्हें हाईकोर्ट ने असन्तोषजनक बताया।

इससे पूर्व कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से जवाब दायर किया गया था।कोर्ट को इसमें जानकारी दी गई कि राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 10 जनवरी,2022 को एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी।इसमें सम्बंधित विभाग के अपर प्रधान सचिव सहित अन्य वरीय अधिकारी बैठक में उपस्थित थे, जिनमें पटना और सीवान के डी एम भी सम्मिलित थे।
इसमें कई तरह के जीरादेई में विकास कार्य के साथ पटना में स्थित बांसघाट स्थित डा राजेंद्र प्रसाद की समाधि स्थल और सदाकत आश्रम की स्थिति सुधारें जाने पर विचार तथा निर्णय लिया गया।
इस बैठक में जीरादेई गांव से दो किलोमीटर दूर रेलवे क्रासिंग के ऊपर फ्लाईओवर निर्माण पर कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया।
साथ ही राजेंद्र बाबू के पैतृक घर और उसके आस पास के क्षेत्र के विकास और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कार्रवाई करने का निर्णय हुआ।

हाईकोर्ट ने इससे पहले अधिवक्ता निर्विकार की अध्यक्षता में अधिवक्ताओं की तीन सदस्यीय कमिटी गठित की थी।कोर्ट ने इस समिति को इन स्मारकों के हालात का जायजा ले कर कोर्ट को रिपोर्ट करने का आदेश दिया था।

अधिवक्ताओं की कमिटी ने जीरादेई के डा राजेंद्र प्रसाद की पुश्तैनी घर का जर्जर हालत, वहां बुनियादी सुविधाओं की कमी और विकास में काफी पीछे होने की बात अपनी रिपोर्ट में कहा।

साथ ही पटना के बांसघाट स्थित उनके समाधि स्थल पर गन्दगी और रखरखाव की स्थिति को भी असंतोषजनक बताया।वहां काफी गन्दगी पायी गई और सफाई व्यवस्था, रोशनी आदि की भी बेहद कमी थी।
साथ ही पटना के सदाकत आश्रम की हालत को भी वकीलों की कमिटी ने दुर्दशापूर्ण स्थिति करार दिया।

जनहित याचिका में अधिवक्ता विकास कुमार ने बताया कि जीरादेई गांव व वहां डाक्टर राजेंद्र प्रसाद के पुश्तैनी घर और स्मारकों की हालत काफी खराब हो चुकी है। जीरादेई में बुनियादी सुविधाएं न के बराबर है।वहां न तो पहुँचने के लिए सड़क की हालत सही है।साथ ही गांव में स्थित उनके घर और स्मारकों स्थिति और भी खराब हैं,जिसकी लगातार उपेक्षा की जा रही है।

उन्होंने कहा कि इन स्मृतियों और स्मारकों को सुरक्षित रखने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 3 फरवरी,2022 को होगी।

सोशल मीडिया का इस्तेमाल मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा की तरह हो रहा है

हिटलर जनता द्वारा चुनी गयी सरकार का मुखिया था कोई राजा नहीं था राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने एक नये मंत्रालय का गठन किया जिसका नाम रखा मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा यह मंत्रालय ना पहले किसी शासक ने बनाया था ना ही बाद के दिनों में किसी शासक ने यह साहस जुटाया।

हिटलर ने इस मंत्रालय की जिम्मेवारी डॉ जोसेफ गोएबल्स को सौंपा था जिसका मूल मंत्र था “एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है.”मंत्रालय का काम संभालने के बाद उन्होंने सबसे पहले काम यह किया कि रेडियो निर्माण में लगी कंपनी को सरकार की और से सब्सिडी देना शुरू किया ताकि रेडियो को जन जन तक पहुंचाया जा सके उनका मानना था कि रेडियो सिर्फ 19वीं सदी में ही नहीं बल्कि 20वीं सदी में भी सबसे असरदार माध्यम रहेगा और यह आठवीं महान शक्ति है बाद के दिनों में प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए जर्मन सरकार रेडियों का जबरदस्त इस्तेमाल किया ।
आज अधिकारिक तौर पर सरकार में मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा जैसा कोई विभाग नहीं है लेकिन पूरी सरकार और उसका मंत्र 24 घंटे इसी काम में लगा रहता है हिटलर के दौर में भी सरकार का प्रोपेगेंडा फैलाने में नाजी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओ का फौज हमेशा सक्रिय रहता था जैसे आज सक्रिय है ।

यह एक छद्म युद्ध है और इसका शिकार पढ़े लिखे लोग भी होते हैं रेलवे बहाली को लेकर जारी आन्दोलन का आग जैसे ही दूसरे दिन यूपी पहुंचा संघ और उससे जुड़ी जो भी संस्थान है या फिर नाजी टाइप जो समर्थक है वो मोर्चा संभाल लिये और सोशल मीडिया पर कई छद्म नाम से पोस्ट होने लगा हिंसा सही नहीं है,यह सब कोचिंग वालों का खेल है सात लाख बच्चों का पीटी हो जायेगा तो कोचिंग संस्थानों को 15 करोड़ की कमाई होगी। और इस तर्क को सही साबित करने के लिए एक से एक पोस्ट गिरने लगा पूरी कोशिश हुई कि सोशल मीडिया पर रेलवे परीक्षा को लेकर जो आंदोलन चल रहा है उस आंदोलन के औचित्य पर इस तरह सवाल खड़े किये जाये कि पूरा आन्दोलन ही संदेह के घेरे में आ जाए जैसे किसान आन्दोलन का लेकर चल रहा था ।

दूसरी और सरकार आन्दोलन को कमजोर करने के लिए खान सहित 6 से अधिक कोचिंग संस्थानों के प्रबंधक सहित एक हजार से अधिक छात्रों पर मुकदमा दर्ज कर दिया और सुबह होते होते गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गयी।
वही मीडिया शाम होते होते मिस्टर खान को भगौड़ा तक घोषित कर दिया लेकिन विपक्ष की गोलबंदी और बिहार बंद की घोषणा से प्रोपेगेंडा मंत्रालय थोड़ा असहज हुआ तो फिर पोलिटिकल बिंग जो 72 घंटे से चुपचाप इस पूरे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे हुए था वो आगे आकर मोर्चा संभाल लिये ।

सुशील मोदी का एक वीडियो जारी हुआ जिसमें रेल मंत्री से हुई बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि रेल मंत्री सारी बात मान गये हैं पीटी में 3 लाख 50 हजार रिजल्ट और जारी किया जायेगा, वहीं मोदी उस वीडियो में पुलिस से आग्रह करते दिखे हैं कि छात्रों के साथ संयम बरते ।

देर शाम जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का खान को लेकर एक ट्वीट आया और उस ट्वीट में ललन सिंह खान को गरीबों का मसीहा कहते हुए जमकर तारीफ किये हैं और रेल पुलिस से मुकदमा वापस लेने कि मांग किये हैं।इस ट्टीट के कुछ घंटे बाद खान सोशल मीडिया पर प्रकट हुए और सरकार की तारीफ करते हुए छात्रों से आज के बंदी से अलग रहने का संदेश जारी किये ।

इस पूरे खेल पर गौर करिए तब आपको समझ में आयेगा कि इसके पीछे की रणनीति क्या है वैसे इन्तजार करिए सुशील मोदी और ललन सिंह ने जो भरोसा दिलाया है वो कब अमल में आता है क्यों कि सरकारी नौकरी को लेकर जो खेल चल रहा है उसके पीछे केन्द्र की सरकार है ये साफ दिख रहा है ।

स्टेशन पर झाड़ू-पोछा देने वाले के लिए तीन तीन परीक्षा पास करनी पड़ेगी तब नौकरी मिलेगा, इससे सरकार की नियत क्या है वो साफ समझ में आ रहा है वैकेंसी निकालो लेकिन इस तरह निकालो की नौकरी देनी ही नही पड़े बस छात्रों को उलझा कर रखना है।

रेलवे की जिस परीक्षा को लेकर बवाल हुआ था उस परीक्षा को लेकर रेलवे ने 71 पेज का नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें छात्रों को नौकरी नहीं देनी पड़ी इसकी पूरी व्यवस्था है और उसी का नतीजा था यह हंगामा । जरा आप भी देखिए 2019 की वैकेंसी 2022 में पीटी का रिजल्ट और उसके बाद अभी मुख्य परीक्षा होनी है मतलब 2019 के वैकेंसी को पूरा करने में सरकार पांच वर्ष वर्ष का समय ले रही है ये जो पांच वर्ष एक परीक्षा पास करने के लिए छात्र लगा रहे हैं ये बर्बादी किसकी है यह समझने कि जरूरत नहीं है क्यों कि मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा इस स्तर तक सक्रिय है कि बहुत मुश्किल है सरकार के नियत को समझना ।

सोशल मीडिया कानून से ऊपर नहीं है – हाईकोर्ट

पटना हाई कोर्ट में साइबर क्राइम से जुड़े मामले पर सुनवाई हुई। गूगल एल एल सी अमेरिका की ओर से वरीय अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव कोर्ट के समक्ष पक्ष रखा।सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी फेसबुक की ओर से उपस्थित हुए।

व्हाट्सएप का पक्ष वरीय अधिवक्ता अरविंद दातर ने रखा। इन सभी वरीय अधिवक्ताओं ने कहा कि वे अनुसंधान में पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार हैं, कही कोई अड़चन नहीं आएगी।

इसपर कोर्ट ने पूछा कि फिर अभी तक आपत्तिजनक पोस्ट को यूट्यूब से क्यों नहीं हटाया गया है, जोकि गूगल की कंपनी है। इस मामले में उनके वरीय अधिवक्ता का कहना था कि प्रावधान के मुताबिक जबतक कोर्ट का आदेश नहीं होता है, तबतक वे नहीं हटा सकते हैं।

इसपर कोर्ट ने कहा कि कोर्ट आदेश करने को तैयार है। जस्टिस संदीप कुमार शिव कुमार व अन्य के मामले पर सुनवाई की। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने साइबर क्राइम से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए बैंक से जवाब तलब किया था।

साथ ही साथ हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में कोर्ट ने फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल व यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के स्थानीय हेड को नोटिस जारी करने का आदेश दिया था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को आर्थिक अपराध इकाई द्वारा किये जा रहे अनुसंधान में सहयोग करने को कहा गया है था।

कोर्ट के समक्ष हलफनामा दाखिल कर बताया गया था कि फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल व यूट्यूब जैसे मीडिया प्लेटफॉर्म आर्थिक अपराध इकाई के साथ अनुसंधान में सहयोग नहीं कर रही है।

कोर्ट का कहना था सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस तरह का व्यवहार सहन नहीं किया जाएगा क्योंकि उन्हें पुलिस को अनुसंधान में सहयोग करना होगा।

इसलिए, कोर्ट ने इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म के स्थानीय हेड को भी जवाब देने को कहा था। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि ये जवाब नहीं देते हैं, तो कार्रवाई की जाएगी।

इस मामले में आगे की सुनवाई आगामी 1 फरवरी को की जाएगी।

बिहार में प्रशासन न करे कोई दमनात्मक कार्रवाई

रेलवे ग्रुप डी की दो की जगह एक परीक्षा लेगा, एनटीपीसी के परिणाम ‘एक छात्र-यूनिक रिजल्ट’ फार्मूले पर।
रेल मंत्री वैष्णव ने सुशील मोदी को दिलाया भरोसा।

– बिहार में प्रशासन न करे कोई दमनात्मक कार्रवाई

नई दिल्ली। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तथा राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी को आश्वस्त किया कि ग्रुप-डी की दो की बजाय एक परीक्षा होगी और एनटीपीसी की परीक्षा के 3.5 लाख अतिरिक्त परिणाम “एक छात्र-यूनिक रिजल्ट” के आधार पर घोषित किये जाएंगे।

रेलमंत्री ने श्री मोदी को भरोसा दिलाया कि सरकार छात्रों से सहमत है और उनकी मांग के अनुरूप ही निर्णय जल्द किया जाएगा।

श्री सुशील मोदी ने लाखों अभ्यर्थियों की परेशानी और उनकी मांगों से रेल मंत्री वैष्णव को विस्तार से अवगत कराया।
श्री मोदी ने रेल मंत्री से आग्रह किया कि एनटीपीसी के मामले में “वन कैंडीडेट-वन रिजल्ट” के सिद्धांत पर निर्णय किया जाना चाहिए।

सुशील मोदी ने कहॉ रेल मंत्री ने समस्या का क्या समाधान

उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड ने यदि फैसला अचानक लेने से परहेज किया होता और समय रहते छात्रों के भ्रम दूर किये होते, तो बिहार में ऐसी अप्रिय स्थिति नहीं पैदा होती।

पूर्व उप-मुख्यमंत्री मोदी ने राज्य के पुलिस प्रशासन से अपील की कि छात्रों पर कोई दमनात्मक कार्रवाई न की जाए। छात्र कोई अपराधी नहीं हैं।

उन्होंने छात्रों से संयम बरतने की अपील की ताकि रेलवे बोर्ड मामले के सभी पहलुओं की जांच पूरी कर परीक्षार्थियों के हित में फैसला कर सके।

एनएच के मरम्मती को लेकर हाईकोर्ट सख्त कहां मरम्मती के मामले में विभाग का रवैया सही नहीं

पटना हाईकोर्ट ने राज्य में राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, विकास और मरम्मती की मॉनिटरिंग करते विभिन्न राजमार्गो के कार्य प्रगति की सुनवाई की। चीफ जस्टिस संजय करोल की डिवीजन बेंच ने इन मामलों पर सुनवाई की।

हाईकोर्ट ने एन एच 2 औरंगाबाद वाराणसी मामलें पर सुनवाई करते हुए एमिकस क्यूरी अधिवक्ता के.मणि और एन एच ए आई के अधिवक्ता को स्थल निरीक्षण कर अगली सुनवाई में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।कोर्ट को बताया गया कि एन एच निर्माण के लिए 2011 में ठेका दिया गया था और राजमार्ग निर्माण का कार्य 2014 में पूरा किया जाना था।
एन एच ए आई की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इस मार्ग कहीं कहीं बाधाएं हैं,जिन्हें हटाए जाना की आवश्यकता हैं। एन एच 2पर मोहनियां के पास टोल प्लाजा का निर्माण होना था।

इस सम्बन्ध में मुख्य सचिव ने दो बार 28 नवंबर,2017 और 15 मई, 2018 सम्बंधित अधिकारियों के साथ बैठकें की।इनमें टोल प्लाजा के निर्माण के लिए भूमि देने का निर्णय लिया गया था।इस मामलें में कोर्ट ने कैमूर के जिलाधिकारी।और वाणिज्य कर विभाग को स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया। इस मामलें पर अगली सुनवाई फरवरी माह के पहले सप्ताह मै की जाएगी।

एक अन्य एन एच 31बख्तियारपुर रजौली राजमार्ग के सम्बन्ध में कोर्ट ने राज्य के विकास आयुक्त को एक बैठक कर स्थिति के सम्बन्ध में रिपोर्ट करने का निर्देश देने का निर्देश दिया था।लेकिन इस सम्बन्ध में हाईकोर्ट को अबतक कोई जानकारी नहीं दी गई।कोर्ट ने विकास आयुक्त को सभी सम्बंधित पक्षों के साथ बैठक कर राजमार्ग के निर्माण पूरा किये जाने के बारे में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।इस मामले पर अगली सुनवाई 15 फरवरी,2022 को होगी।

राजमार्ग संख्या 131जी शेरपुर दिघवारा section के निर्माण के मामलें पर हाईकोर्ट में सुनवाई की गई।चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य के विकास आयुक्त को सभी सम्बंधित पक्षों के साथ बैठक कर इस सम्बन्ध में की गई कारवाइयों का ब्यौरा हलफनामा दायर कर देने का निर्देश दिया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 31जनवरी, 2022 को होगी।

मगध विश्वविधालय के कुलपति पर कार्रवाई पर राजभवन और सरकार आमने सामने, राजभवन ने कहा सरकार राजभवन के अधिकारी क्षेत्र पर हमला कर रही है

मगध विश्वविधालय के कुलपति पर कार्रवाई को लेकर कुलाधिपति सह राज्यपाल फागू चौहान भड़क गये हैं और स्पेशल विजिलेंस यूनिट की कार्रवाई को अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण मानते हुए कहा है कि यह कानून का उल्लंघन ही नहीं है यह राज्यपाल के अधिकारी क्षेत्र पर हमला है ।राज्यपाल के प्रधान सचिव आर एल चोंगथु ने इसको लेकर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को पत्र लिख है.

प्रधान सचिव ने पत्र में साफ लिखा है कि विश्विद्यालयों के मामले में सक्षम प्राधिकार कुलाधिपति हैं. ऐसे में कुलाधिपति की अनुमति के बिना विश्वविद्यालयों में स्पेशल विजिलेंस यूनिट की कार्रवाई पूरी तरह से कानून का उल्लंघन है. ऐसे में इस कार्रवाई को तत्काल रोकें।

राजभवन ने यहां तक कहा है कि इस कार्रवाई से विश्विद्यालयों की स्वायत्तता पर कुठाराघात है. प्रधान सचिव के पत्र में साफ है कि यह पत्र भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के सेक्शन 17A में उल्लिखित प्रावधानों का अक्षरशः पालन करने को लेकर लिखा जा रहा है. राजभवन ने कहा है कि ऐसी कार्रवाई से विश्विद्यालयों में अनावश्यक भय का वातावरण बन रहा। इस कार्रवाई से पदाधिकारियों और कर्मचारियों पर मानसिक दवाब भी पड़ रहा है।

मालूम हो कि मगध विश्वविधालय के कुलपति पर 30 करोड़ से अधिक के राशी के गबन का आरोप है और इस मामले में विशेष निगरानी की टीम ने विश्वविधालय से जुड़े कई अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया है और लगातार दबाव के बाद पिछले दिनों ही कुलपति विशेष निगरानी के अधिकारी के सामने उपस्थिति हुए थे ।

वही इस मामले में निगरानी कोर्ट ने कुलपति प्रो राजेंद्र प्रसाद की अग्रिम जमानत रद्द कर चुका है राज्यपाल के इस पत्र से यह साफ हो गया है कि कुलपति मामले में नीतीश कुमार और राज्यपाल के बीच दूरिया बढ़ सकती है ।

क्या आपको पता था कि केंद्रीय सचिवालय में छह साल से प्रमोशन बंद है ?

क्या आपको पता था कि केंद्रीय सचिवालय में छह साल से प्रमोशन बंद है?
मोदी सरकार ने छह साल से केंद्रीय कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं दिया है। जिसके कारण प्रमोशन और बिना वेतन वृद्धि के ही कई कर्मचारी रिटायर होते रहे। अब ये कर्मचारी भी ट्विटर पर ट्रेंड करा रहे हैं और अपने लिए प्रमोशन मांग रहे हैं। हिन्दू की रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्रीय सचिवालयों में छह साल से प्रमोशन बंद है।

मैं जानना चाहूंगा कि बिना प्रमोशन के रिटायर हुए ऐसे अफसरों में कितने भक्त हो गए थे और मुस्लिम विरोधी राजनीति में आनंद प्राप्त कर रहे थे और अब जब उनके प्रमोशन का चांस ख़त्म हो गया है उन्हें इस नफरती राष्ट्रवाद से कितनी ऊर्जा मिलती है? ज़ाहिर है कर्मचारी झूठ ही बोलेंगे कि उनका काम देश की सेवा करना है, उन्हें राजनीति से मतलब नहीं। हा हा हा हा हा हा। इस नफरत की आग में आप ही नहीं जले हैं, आपका वो बच्चा भी जला है जो भर्ती नहीं निकलने से बेरोज़गार बैठा है। आपको प्रमोशन मिलता तो नीचे की सीट खाली होती। नीचे की सीट ख़ाली होती तो भर्ती निकलती। do you get my point.
हिन्दू की विजयिता सिंह की रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय सचिवालय सेवा (CSS) फोरम के अनुसार प्रमोशन नहीं होने की वजह से तीस फीसदी पद ख़ाली हैं। इनके अनुसार अवर सचिव, उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव के 1839 पद ख़ाली हैं। जब सचिवालयों में संकट होने लगा तो 2020 में अस्थायी तौर पर 2770 पदों पर प्रमोशन दिया गया। इसके बाद भी 1800 पदों पर प्रमोशन होना है। भर्ती ख़ाली है। सोचिए 4400 अफसरों में से 60 फीसदी से अधिक अस्थायी रुप से प्रमोशन लेकर काम कर रहे हैं। यह हाल है खूब काम करने वाली मोदी सरकार का।

2014 से प्रमोशन नहीं हुआ है। छह साल निकल गए। इस दौरान प्रमोशन और अधिक सैलरी के इंतज़ार में कितने ही लोग रिटायर कर गए। प्रमोशन में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इसे जल्दी सुनने के लिए सरकार आग्रह कर सकती थी लेकिन लगता है इस मामले की आड़ में सरकार ने लोगों को बिना प्रमोशन दिए ही सेवा से बाहर कर दिया और उन्हें बढ़ा हुआ वेतन तक नहीं दिया। हिन्दू की रिपोर्ट में कर्मचारियों ने कहा है कि कई विभागों में कोर्ट के केस के बाद भी प्रमोशन हुए हैं। बस केंद्रीय सचिवालय की सेवा में प्रमोशन नहीं हुए हैं।

2014 से प्रमोशन न होने के कारण केंद्रीय सचिवालय ने एक और संकट को जन्म दिया होगा। बिना अवर सचिव, उप सचिव के काम कैसे होता होगा। इनकी विश्वसनियता और पारदर्शिता कैसी होती होगी? इसकी सच्चाई तो यही लोग बता सकते हैं। हम तो केवल अनुमान लगा सकते हैं। हमें यह समझ आ रहा है कि इतने सीनियर लेवल पर 30 प्रतिशत पद ख़ाली होने से IAS पर कितना दबाव पड़ता होगा। उसकी जान निकल जाती होगी काम करने में। राज्यों से केंद्र में न आने के एक कारण यह भी हो सकता है। वैसे इसका भी असली कारण IAS ही बताएंगे जिसे बताने की हिम्मत नहीं हैं। उन रहस्यों से अब भय होने लगा होगा कि पता नहीं कब और कौन से पेपर पर साइन करना पड़ जाए। मैं बस जानना चाहता हूं कि क्या ऐसा है? फाइल कहां से बन कर आती है और कहां चली जाती है, क्या उन्हें पता रहता है या केवल साइन करना पड़ता है ताकि जेल जाने के समय ये लोग उपलब्ध रहें। ये मेरी जिज्ञासा है।

तो यह उस सरकार का रिपोर्ट कार्ड है जो केवल काम करने का दंभ भरती है। केंद्रीय सचिवालयों में प्रमोशन के पद को खाली रख कर सरकार ने भारत के युवाओं को बेरोज़गार रखने में काफी मदद की है।अपना भविष्य संवारने के लिए यह एक बेहतर नौकरी थी।SSC के ज़रिए परीक्षा पास कर युवा इस नौकरी में जाते थे और अवर सचिव और उप सचिव के पद तक पहुंचते थे।अच्छा हुआ कि युवा मुस्लिम विरोधी राजनीति की आंधी में नफरत का नशा ले रहे थे। वर्ना ये सब पता चल जाता। ये ऐसा नशा है कि रोज़गार के लिए लाठी खाने पर भी नहीं जाएगा। इस पर मैं शर्त लगा सकता हूं। इसलिए युवाओं से दूर भी रहता हूं। मैंने लिखा भी है कि सांप्रदायिक युवाओं से गाली मिल जाए, गले लगा लूंगा, ताली नहीं चाहिए। ऐसा इस देश में केवल रवीश कुमार बोल सकता है।

तो छह साल के दौरान प्रमोशन के इंतज़ार में रिटायर हो गए केंद्रीय सचिवालय के उन कर्मचारियों के सपने इन दिनों किस तरह के हैं? काश इसके बारे में कोई सच सच बता देता, वैसे मैं जवाब जानता हूं लेकिन फिर भी। और अब जब प्रमोशन नहीं मिल रहा है तो मौजूदा कर्मचारियों को कैसा लग रहा है? आरक्षण से नफरत के नाम पर सबके लिए नौकरी और प्रमोशन दोनों बंद है। सरकार और राजनीति को फायदा है कि आप आरक्षण से नफरत कर अपने दिमाग़ की तर्क शक्ति को भोथरा कर दें ताकि उसकी आड़ में न भर्ती निकले और न प्रमोशन हो। मेरी यह बात अभी समझ नहीं आएगी लेकिन बीस साल बाद समझ आएगी।

अमित शाह को भी पता है कि बेरोज़गारी के बाद भी नौजवान उन्हीं को वोट करेंगे। तभी तो वे बेरोज़गारों से नहीं मिल रहे हैं। जाट नेताओं से मिल रहे हैं। इसकी ख़बर मोटी मोटी छपवाई जा रही है। अमित शाह को पता है कि जाट नाराज़ हैं और वोट नहीं कर सकते हैं। लोग जात के आधार पर नाराज़ होते हैं, जात के आधार पर ख़ुश हो जाते हैं। नौकरी के नाम पर कोई नाराज़ नहीं होता। ऐसा होता तो अमित शाह इलाहाबाद के उस लॉज का दौरा कर रहे थे जिसके कमरों से पुलिस ने खींच कर छात्रों को निकाला और वही सब किया जिसे पीटना कहते हैं। अमित शाह जानते हैं कि जिस नौजवान के खिलाफ पुलिस केस कर रही है वह भी वोट देगा और उसके परिवार के लोग भी वोट देंगे। बाकी आप समझदार तो है हीं।

लेखक–रवीश कुमार

देश 1974 के छात्र आंदोलन की तरफ तो नहीं बढ़ रहा है

हिंसक आन्दोलन का जो हश्र होता है ठीक उसी दिशा में RRB-NTPC परीक्षा धांधली को लेकर जारी आन्दोलन बढ़ चला है और इस आंदोलन को लेकर चर्चा में आये खान कल से ही सफाई दे रहे हैं कि छात्रों के हिंसा में मेरा कोई वास्ता नहीं है और मैं छात्रों से अपील कर रहा हूं कि हिंसा न करे फिर भी छात्र हिंसा कर रहे हैं तो मैं क्या करु।

वैसे कल देर रात पटना के पत्रकार नगर थाने में कोचिंग संचालक खान समेत प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराने वाले छह शिक्षक एसके झा, नवीन, अमरनाथ, गगन प्रताप और गोपाल वर्मा समेत बाजार समिति के कई कोचिंग संचालकों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है इन पर छात्रों को भड़काने और हिंसा फैलाने की साजिश रचने का आरोप है, आज NSUI दिल्ली में रेल भवन का घेराव करेंगे। वही छात्र संगठन आइसा व नौजवान संगठन इनौस ने आरआरबी एनटीपीसी की परीक्षा के रिजल्ट में धांधली तथा ग्रुप डी की परीक्षा में एक की जगह दो परीक्षाएं लेने के खिलाफ 28 जनवरी को बिहार बंद का आह्वान किया है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि रोजगार जैसे मुद्दों को सरकार हिन्दू मुसलमान .नेहरू,सुभाष और भारत पाकिस्तान से सहारे कब तक टालती रहेगी क्यों कि आज ना कल भूख और पेट की आग का सवाल उठेगा ही और उस दिन देश जलने से कोई रोक नहीं सकता है ।

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं का मूड जानने के लिए मैं गांव गांव घूम रहा था इसी दौरान मैं नवादा शहर को कोई 20 किलोमीटर दूर उस लोकसभा क्षेत्र के सबसे बड़े महादलित गांव में मतदाताओं का मूड जानने पहुंचा था उस गांव में पासी जाति के लोग रहते थे नीतीश कुमार के शराबबंदी कानून को लेकर लोग काफी खफा थे बिहार में पासी समाज शराब के धंधे में पीढ़ी दर पीढ़ी से लगे हुए उस गांव के दो दर्जन से अधिक महिला और पुरुष जेल में था बात शुरु हुई नहीं कि महिला और पुरुष नीतीश कुमार पर टूट परा नांन स्टांप गाली देता रहा यह सिलसिला 30 मिनट तक चलता रहा इस दौरान मेरी कोशिश ये रही की वोट किसको दे रहे हैं ये स्पष्ट हो सके सावल दर सवाल चलता रहा लेकिन कोई खुल कर बोलने को तैयार नहीं था तभी एक युवा कैमरे के सामने आया और कहां सर मेरा नाम संदीप चौधरी है ये मेरे पिता जी है और ये प्लंबर मिस्त्री का काम करते हैं और ये मेरी माँ है आंगनवाड़ी सेविका है मैं पांच वर्ष से पटना में रह कर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं और ये सही है की मोदी के राज में सरकारी नौकरी की वेकेंसी नहीं आ रही है पहले 1500 रुपया में काम चल जाता था लेकिन महंगाई इतनी बढ़ गयी है कि अब चार हजार रुपया महिना खर्च हो रहा है मतलब मेरे माँ पिता के आमदनी का बड़ा हिस्सा मेरे पढ़ने पर खर्च हो रहा है बहन की शादी करनी है मेरी वजह से पैसा नहीं बच पा रहा है लेकिन सर सवाल देह(शरीर) का नहीं है देश का है।

मोदी की नीति के कारण सरकारी नौकरी जरूर कम हो गयी लेकिन पेट से बड़ा सवाल देश हैं और इस बार देश के लिए वोट करेंगे देश रहेगा तब ना पेट की चिंता करेंगे, इसलिए इस बार मोदी को ही वोट देंगे ।

मतलब भारत पाकिस्तान का मुद्दा इस स्तर पर गांव गांव में पहुंच गया था और इस मुद्दा के आगे दो जून की रोटी का मुद्दा भी गौण पड़ गया था हालांकि रोजगार का मुद्दा बिहार विधानसभा में बड़ा मुद्दा बन गया था और 10 लाख लोगों को रोजगार देने कि घोषणा की वजह से ही रातो रात तेजस्वी बिहार के युवाओं का चहेता बन गया था और बड़ी मुश्किल से नीतीश और मोदी के सरकार की वापसी हो पाई थी ,जबकि बिहार में जाति और सामाजिक समीकरण अभी भी तेजस्वी के अनुकूल नहीं है फिर भी उसकी पार्टी इस तरह से फाइट दिया था मोदी और नीतीश को ।

लेकिन अब भावनात्मक मुद्दे भारत पाकिस्तान ,हिन्दू मुसलमान और नेहरू सुभाष पर बेरोजगारी और रोजगार का सवाल भारी पड़ता जा रहा है और RRB-NTPC परीक्षा धांधली को लेकर छात्रों का जो उग्र प्रदर्शन हो रहा है वो उसी फ्रस्टेशन (हताशा) का प्रकटीकरण है क्यों कि जहां जहां यह हंगामा चल रहा है बिहार का वो जगह पटना ,नालंदा ,गया ,आरा ,बक्सर ,सासाराम,जहानाबाद कोचिंग संस्थानों का हब है जहां वर्षो से हजारों छात्र सरकारी वैकेंसी के इन्तजार में लाखो लाख रुपया कोचिंग और घर से बाहर रहने पर खर्च कर रहा है और अब उनका धैर्य जवाब देने लगा है इसलिए सरकार इस आंदोलन को पुलिस के बल पर रोक ले ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है यू कहे तो बारूद के ढेर सरकार बैठी है और कभी भी बड़ा विस्फोट हो सकता है और 1974 जैसा छात्र आन्दोलन पूरे देश में फैल जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।

मालेगांव कांड के मुख्य आरोपी को जदयू ने दिया टिकट

आपको एक ऐसी खबर से रुबरु करा रहे हैं जिसे पढ़कर आप हैरान रह जायेंगे । जी हां यूपी विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने मालेगांव कांड के मुख्य आरोपी रमेश चंद्र उपाध्याय को बलिया के बैरिया विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया है, 5 साल पहले मुंबई हाईकोर्ट से मिली थी जमानत ।

2008 में हुए मालेगांव बम धमाके के आरोपी मेजर रमेश चंद्र उपाध्याय मुंबई हाई कोर्ट से जमानत पर है। 5 साल पहले उन्हें कोर्ट ने जमानत दी थी। रमेश चंद्र उपाध्याय 2020 में जदयू में शामिल हुए थे। उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्व सैनिकों की सेल का राज्य संयोजक भी बनाया गया था।

मालेगांव मामले में कथित भूमिका के लिए महाराष्ट्र ATS ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित के साथ रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय को गिरफ्तार किया था। उन्हें 2017 में जमानत पर रिहा किया गया था।

इस मामले पर स्पेशल NIA कोर्ट में ट्रायल जारी है। हालांकि मीडिया में खबर चलने के अब नई लिस्ट में बैरिया विधानसभा को फिलहाल छोड़ दिया गया है। इसकी जगह पर औरैया से मीरा दीवाकर को टिकट दिया गया है।

RRB-NTPC के रिजल्ट में धांधली को आज दूसरे दिन भी बिहार के छात्रों ने जमकर किया हंगामा कई ट्रेनों का परिचान हुआ प्रभावित

RRB-NTPC के रिजल्ट में धांधली का आरोप लगाते हुए आज दूसरे दिन भी बिहार के छात्रों ने जमकर हंगामा किया ,मिली जानकारी के अनुसार पटना, नालंदा, नवादा, सीतामढ़ी, बक्सर, आरा और मुजफ्फरपुर में उम्मीदवारों ने रेलवे ट्रैक पर जोरदार प्रदर्शन किया। इसकी वजह से नालंदा में आउटर पर दिल्ली जा रही श्रमजीवी और दिल्ली से आने वाली श्रमजीवी ट्रेन रुकी रही। वहीं, बक्सर में अहमदाबाद-बरौनी एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेन का परिचालन बाधित रहा। इधर, मुजफ्फरपुर जंक्शन पर भी आक्रोशित छात्रों ने ट्रेनें रोक दी। नवादा में भी पुलिस पर रोड़ेबाजी की गई और मेंटेनेंस ट्रेन में आग लगा दी गई। वहीं वैशाली में हावड़ा- काठगोदाम एक्सप्रेस 45 मिनट तक रुकी रही। छात्रों ने सीतामढ़ी में जमकर बवाल काटा। पुलिस समझाने गई तो उनपर पथराव कर दिया। छात्रों पर काबू पाने के लिए पुलिस ने 25 राउंड फायरिंग भी की। आरा में पथराव कर रहे छात्रों पर काबू पाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी छोड़े।

नवादा में आक्रोशित छात्र रेलवे ट्रैक पर उतरे
वहीं, नवादा में भी अभ्यर्थियों का आंदोलन शुरू हो गया है। 2000 से अधिक हजार से अधिक अभ्यर्थियों ने नवादा रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर रेल ट्रैक को जाम कर नारेबाजी की। छात्रों ने नवादा रेलवे स्टेशन पर पथराव किया। रेलवे ट्रैक मेंटेनेंस इंजन में आग लगाई दी। रेलवे ट्रैक पर लगे पेंडू क्लिप को कबाड़ दिया। इतना ही नहीं छात्रों ने रेलवे ट्रैक को भी नुकसान पहुंचाया और रेल थाना हमला कर दिया। छात्रों के पथराव में जिला पुलिस बल का जवान रविंद्र सिंह जख्मी हुए हैं। स्टेशन प्रबंधक AK सुमन के मुताबिक, रेल परिचालन शुरू करा पाना मुश्किल है। कामाख्या, जमालपुर पैसेंजर गया स्टेशन पर खड़ी है। एक मालगाड़ी तिलैया स्टेशन पर खड़ी है।

छात्र संघ के जिला अध्यक्ष कुंदन राज ने बताया कि परीक्षा के बाद बोर्ड नियमों में परिवर्तन करके रिजल्ट जारी करता है। इसके कारण मेधावी छात्रों का रिजल्ट नहीं हो पाता है। बोर्ड जो भी नियम बनाए परीक्षा के पहले बनाए। ताकि हम लोग उसी तरह से तैयारी करें। इस बार के रिजल्ट में रुपए का खेल चला है। इसके कारण रिजल्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। अब रेलवे भर्ती बोर्ड ग्रुप डी के परीक्षा में गड़बड़ी कर रहा है।

मुजफ्फरपुर जंक्शन पर छात्रों ने रोकी ट्रेनें
मुजफ्फरपुर में परीक्षार्थियों ने जमकर बवाल किया। मुजफ्फरपुर जंक्शन पर बरौनी-गोंदिया एक्सप्रेस समेत दो ट्रेनों को रोक दिया। जमकर प्रदर्शन और हंगामा करने लगे। ट्रेन रोके जाने की सूचना पर RPF और GRP के अधिकारी और जवान पहुंचे। परीक्षार्थियों को समझाने का प्रयास कर रेलवे ट्रैक से हटने को कहा गया। ताकि ट्रेनों का परिचालन हो सके, लेकिन परीक्षार्थियों ने किसी की नहीं सुनी। इसे लेकर RPF और GRP जवानों के साथ जमकर नोकझोंक हुई। फिलहाल ट्रैक पर परीक्षार्थियों के कब्जा है। ट्रेनों का परिचालन ठप है।

आरा में मालगाड़ी को छात्रों ने रोका
इधर, आरा भी छात्रों का उग्र रूप देखने को मिला। ग्रुप D के परीक्षा में बदलाव से नाराज परिक्षार्थियों ने आरा रेलवे स्टेशन के पश्चिमी छोर पर मालगाड़ी को रोक दिया। सैकड़ों छात्र रेलवे ट्रैक पर उतर आए और हंगामा किया। इससे रेलवे परिचालन पूरी तरह बाधित हो गई। यहां सोमवार को भी छात्रों ने प्रदर्शन किया था। छात्रों का जमकर पथराव किया। पथराव में मालगाड़ी का इंजन भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। हालात को काबू करने के लिए पुलिस ने बचाव में आंसू गैस के गोले भी छोड़े।
पटना के भिखना पहाड़ी पर धरने पर बैठे छात्र

राजधानी पटना के भिखना पहाड़ी पर सुबह से ही छात्र जमा हो गए थे। इस कारण कई घंटों तक भिखना पहाड़ी मार्ग जाम रहा। छात्रों ने ऐलान किया है कि अभी तो यह शुरुआत हुई है आगे और भी उग्र तरीके से आंदोलन होगा अगर सरकार हमारी बात को नहीं सुनती है तो आगे भी आंदोलन होगा। वहीं राजद नेत्री ऋतु जयसवाल ने कहा कि RJD इन अभ्यर्थियों के साथ है। यही नहीं बिहार में जितने भी अभ्यर्थी हैं। इनके ऊपर पुलिस लाठी डंडे बरसा रही है। हम सब उनके साथ हैं और उनके हक दिलाने के लिए पूरी लड़ाई लड़ेंगे। एनडीए के सरकार ने 19 लाख रोजगार देने का वादा किया था उन्हें रोजगार देना पड़ेगा।

मेहसौल रेलवे ओवर ब्रिज के पास छात्रों का हंगामा

रेलवे भर्ती बोर्ड के एनटीपीसी रिजल्ट में धांधली के आरोप को लेकर उम्मीदवारों ने मंगलवार को जिले के मेहसौल रेलवे ओवर ब्रिज के पास सैकड़ों की संख्या में पहुंचे उम्मीदवारों ने सड़क जाम कर प्रदर्शन करने लगे। सड़क जाम की सूचना पर स्थानीय मेहसौल ओपी पुलिस, नगर थाना पुलिस के साथ सीओ घटना स्थल पर पहुंचे। वहीं छात्रों को समझाने की कोशिश की गई। लेकिन छात्र काफी उग्र दिख रहे थे जिसको लेकर मौके पर मौजूद पुलिस अपने वरीय अधिकारी को सूचना दी। इसके बाद घटनास्थल पर डीएसपी रामाकांत उपाध्याय घटनास्थल पर पहुंचे। इस दौरान छात्रों के द्वारा सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन परिसर को चारों तरफ से घेर लिया गया। वही करीब एक हजार की संख्या में छात्र जमकर रोड़ेबाजी भी की गई। काफी समझाने के बाद जब छात्र नहीं माने तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। पुलिस ने करीब 25 राउंड फायरिंग किया। छात्रों की पत्थरबाजी में दर्जनों पुलिसकर्मी वह पत्रकार गंभीर रूप से जख्मी हो गए। जख्मी हालत में सभी पुलिसकर्मी और पत्रकार को सदर अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है।

फतुहा और बक्सर स्टेशन पर प्रदर्शन के कारण ट्रेन परिचालन में बदलाव
दानापुर मंडल के फतुहा और बक्सर स्टेशन पर हो रहे प्रदर्शन के कारण कुछ ट्रेनों के परिचालन में निम्नानुसार बदलाव किया गया है।

परिवर्तित मार्ग से चलायी जाने वाली ट्रेन:
25.01.2022 को पटना से खुलने वाली 12568 पटना-सहरसा राज्यरानी एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया पाटलिपुत्र-हाजीपुर-बरौनी के रास्ते।
25.01.2022 को पटना से खुलने वाली 15714 पटना-कटिहार इंटरसिटी एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया पाटलिपुत्र-हाजीपुर-बरौनी के रास्ते ।
25.01.2022 को राजगीर से खुल चुकी 12391 राजगीर-नई दिल्ली श्रमजीवी एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया आरा-सासाराम-पंडित दीन दयाल उपाध्याय जं. के रास्ते।
25.01.2022 को पटना से खुल चुकी 13237 पटना-कोटा एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया दानापुर-पाटलिपुत्र-छपरा ग्रामीण-वाराणसी के रास्ते।
25.01.2022 को दानापुर से खुल चुकी 12792 दानापुर-सिकंदराबाद एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया नेउरा-सासाराम-पंडित दीन दयाल उपाध्याय जं. के रास्ते।
25.01.2022 को हावड़ा से खुल चुकी 12303 हावड़ा-नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया किऊल-गया-पंडित दीन दयाल उपाध्याय जं. के रास्ते।
25.01.2022 को मधुपुर से खुलने वाली 22459 मधुपुर-आनंद विहार टर्मिनल हमसफर एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया किऊल-गया-पंडित दीन दयाल उपाध्याय जं. के रास्ते।
आंशिक समापन / प्रारंभ कर चलायी जाने वाली ट्रेन:-
24.01.2022 को नई दिल्ली से प्रस्थान कर 25.01.2022 को इसलामपुर पहुंचने वाली 20802 नई दिल्ली-इसलामपुर मगध एक्सप्रेस का समापन पटना जंक्शन पर किया गया।
25.01.2022 को इसलामपुर से प्रस्थान करने वाली 18623 इसलामपुर-हटिया एक्सप्रेस इसलामपुर के बदले पटना जंक्शन से हटिया के लिए प्रस्थान करेगी।
परिचालन रद्द की गई ट्रेन
दिनांक 26.01.2022 को दुर्ग से खुलने वाली 13287 दुर्ग-राजेंद्र नगर टर्मिनल साउथ बिहार एक्सप्रेस का परिचालन रेक की अनुपलब्धता के कारण रद्द रहेगा।

गणतंत्र दिवस के मौके पर बिहार के 16 पुलिसकर्मियों होगे सम्मानित

इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर बिहार पुलिस के 16 पुलिसकर्मियों को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जायेंगा । केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी सूची में बिहार के एडीजी ऑपरेशन सुशील मानसिंह खोपरे और एडीजी स्पेशल सुनील कुमार को विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक और 14 अन्य पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को सराहनीय सेवा के लिए पुलिस पदक दिया जाएगा ।

दो एडीजी के साथ इस लिस्ट में एसआई लक्ष्मण कुमार सिन्हा,एसआई दिनेश कुमार मिश्रा,पटना पुलिस,एसआई शुभकान्त चौधरी, डेहरी में तैनात बिहार सशस्त्र पुलिस बल के हवलदार उदय प्रताप सिंह और हवलदार मोहम्मद नसीम,पटना बिहार सशस्त्र पुलिस बल के हवलदार मदन तिवारी,बांका के कांस्टेबल भरत प्रसाद यादव,बोधगया स्थित बिहार सशस्त्र पुलिस बल के रमेश प्रसाद और सीआईडी पटना के ड्राइवर विजय कुमार समेत कई अन्य नाम हैं।

इन सभी पुलिसकर्मी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गणतंत्र दिवस के अवसर पर पुलिस पदक से सम्मानित करेंगे ।

युवाओं के भविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ कर रही है सरकार

इस कड़ाके के ठंड में कल पटना और आरा में छात्र रेलवे ट्रैक को दस घंटों तक जमा रखा था जिस दौरान रेलवे को राजधानी सहित 5 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और 30 ट्रेनें घंटे जहां तहां फंसी रही है ।
आज सुबह से ही नालंदा सहित बिहार के कई जिलों से छात्रों द्वारा आज दूसरे दिन भी रेलवे ट्रैक को जाम करने कि खबर आ रही है, वजह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेल मंत्रालय द्वारा 2019 में जो बहाली निकाली गई थी उस वेकेंसी में हेराफेरा का है ।
1–हंगामा की वजह क्या है
2019 में रेल मंत्रालय ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेलवे के 21 बोर्ड के लिए ग्रेजुएट (स्नातक) स्तर पर बड़ी वेकेंसी जारी किया गया था जिसमें स्टेशन मास्टर ,गार्ड,टीसी,सहित सात पदों के लिए 35,277 लोगों को बहाल करना था ,वेकेंसी के एक वर्ष बाद 28-12–2020 को पहला परीक्षा हुआ और उसके बाद कोरोना की वजह से यह परीक्षा टल गया और 31 -07 -2012 तक चला , रेलवे बोर्ड 14 जनवरी 2022 को पीटी का रिजल्ट दिया है।
परीक्षा का जो मानक पहले से निर्धारित रहा है उसमें पीटी में कुल पद का 20 गुना रिजल्ट जारी किया जाता था लेकिन इस बार बोर्ड ने वेकेंसी के अनुसार पीटी में 7 लाख की जगह मात्र 2 लाख 76 हजार के करीब रिजल्ट जारी किया है और इस रिजल्ट में ही छात्रों का कैडर निर्धारित कर दिया है ऐसा कभी किसी परीक्षा में नहीं हुआ है मतलब पीटी में ही आपको कैडर गार्ड निर्धारित है तो आप को गार्ड की ही नौकरी मिलेगी चाहे फाइनल परीक्षा का आप टाँपर ही क्यों ना हो अगर रेलवे स्टेशन मास्टर का कैडर मिला तो आपको रेलवे स्टेशन के लिए जो वेकेंसी है उसी आधार पर आपको नौकरी मिलेगी ।
रेलवे का तर्क है कि जो वैकेंसी निकाली गयी है उसके अनुसार हम लोग पीटी में 20 गुना रिजल्ट जारी किये हैं रेलवे बोर्ड सही कह रहा है लेकिन इसके पीछे का खेल क्या है जरा आप भी समझ लीजिए।रेलवे बोर्ड जिन सात पदों पर बहाली कर रहा है हर पद के अनुसार 20 गुना रिजल्ट जारी कर दिया है उसमें चार लाख से अधिक ऐसे छात्र है जिसका रिजल्ट किसी का दो पद पर तो किसी का सातों पदों पर है इस वजह से मात्र 2 लाख 76 हजार छात्र पीटी पास किये हैं जबकि पीटी का रिजल्ट कम से कम सात लाख होना चाहिए खेला यही है क्यों कि बोर्ड कही ना कही जितनी वेकेंसी निकाला था उतना बहाल नहीं करना है इस खेल को छात्र समझ गये हैं और इसलिए आक्रोशित है ।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस तरह का खेल देश के युवा के साथ सरकार क्यों खेल रही है रेलवे को निजी हाथों में सौपना है तो एक बार सरकार निर्णय सुना दे गुप्त एजेंडा की जरुरत क्या है वैसे भी मोदी के सात वर्षो के कार्यकाल को देखे तो सरकारी नौकरी आधे से भी कम हो गया है जिसका हुआ भी है तो उसकी नियुक्ति प्रक्रिया वर्षो से बाधित है यूपीएससी तक में सीट की संख्या आधी कर दी गयी है और बाहर से भरा जा रहा है।

एनटीपीसी परीक्षा में धाधली को लेकर छात्रों का हंगामा

राजेंद्र नगर टर्मिनल स्टेशन पर प्रदर्शन के कारण ट्रेन परिचालन में बदलाव

आज दिनांक 24.01.2022 को दानापुर मंडल के राजेंद्र नगर टर्मिनल स्टेशन पर हो रहे प्रदर्शन के कारण कुछ ट्रेनों के परिचालन में निम्नानुसार बदलाव किया गया है:

🔸 24.01.2022 को राजेंद्रनगर टर्मिनल/पटना से प्रस्थान करने वाली ट्रेन जिनका परिचालन रद्द किया गया है:

  1. 12309 राजेंद्र नगर टर्मिनल-नई दिल्ली तेजस राजधानी एक्सप्रेस।
  2. 12393 राजेंद्र नगर टर्मिनल-नई दिल्ली संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस ।
  3. 13288 राजेंद्र नगर टर्मिनल-दुर्ग साउथ बिहार एक्सप्रेस ।
  4. 12352 राजेंद्र नगर टर्मिनल-हावड़ा एक्सप्रेस ।
  5. 13201 पटना-लोकमान्य तिलक टर्मिनस एक्सप्रेस ।

🔸 परिवर्तित मार्ग से चलायी जाने वाली ट्रेन:-

NTPC परीक्षा में धांधली को लेकर हंगामा
  1. 24.01.2022 को भागलपुर से प्रस्थान करने वाली 12367 भागलपुर-आनंद विहार टर्मिनस विक्रमशिला एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया किउल-गया-पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन के रास्ते ।
  2. 24.01.2022 को दानापुर से प्रस्थान करने वाली 13402 दानापुर-भागलपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया पटना-पाटलिपुत्र-शाहपुर पटोरी-बरौनी-मुंगेर के रास्ते ।
  3. 24.01.2022 को हटिया से प्रस्थान करने वाली 18626 हटिया-पूर्णिया कोर्ट एक्सप्रेस का परिचालन परिवर्तित मार्ग वाया पटना-पाटलिपुत्र-शाहपुर पटोरी-बरौनी-मानसी के रास्ते ।

🔸 आंशिक समापन/प्रारंभ कर चलायी जाने वाली ट्रेन:-

  1. 23.01.2022 को नई दिल्ली से प्रस्थान कर 24.01.2022 को इसलामपुर पहुंचने वाली 20802 नई दिल्ली-इसलामपुर मगध एक्सप्रेस का आंशिक समापन पटना जंक्श्न में किया गया ।
  2. 24.01.2022 को इसलामपुर से प्रस्थान करने वाली 18623 इसलामपुर-हटिया एक्सप्रेस इसलामपुर के बदले पटना जंक्श्न से रांची के लिए प्रस्थान करेगी ।

मंडल और कमंडल के पाटन में फसा है देश

बात कोई 1991- 92 की है उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हुआ करते थे ठीक उसी समय मेरा दाखिला एलएस कॉलेज(मुजफ्फरपुर)में हुआ था जहां तक मुझे याद है लालू प्रसाद एमडीडीएम कॉलेज के पास जुब्बा सहनी पार्क का उद्घाटन करने आये हुए थे ।वह पार्क एक से दो माह में बन कर तैयार हो गया था और इस दौरान उस पार्क के अंदर बड़ा बड़ा पेड़ भी लगा दिया गया था मेरे लिए कौतूहल का विषय यही था कि इतना हरा भरा पेड़ कैसे पार्क में रातो रात लगा दिया गया ।

खैर उस तरह का पार्क पहली बार देखने को मिला था बहुत अच्छा लगा बाद में जितेन्द्र सर के यहां छोटी कल्याणी पढ़ने जाते थे तो जब मौका मिलता था घूम लेते थे ।उद्घाटन के दूसरे दिन अखबार के मुख्य पृष्ठ पर लालू प्रसाद का भाषण छपा था उसमें लिखा था देश की आजादी हम पिछड़ों ने दिलाई लेकिन इतिहास लिखने वाला सारे सवर्ण थे बड़े लोग थे इसलिए आजादी के आन्दोलन में गरीब पिछड़ा और दलित के योगदान की चर्चा तक नहीं है जुब्बा सहनी शहीद हुए थे थाने पर चढ़कर थानेदार को मार दिया था और उस वजह से उन्हें फांसी दी गयी लेकिन कही इसकी चर्चा तक भी है यह पार्क आजादी के आन्दोलन में पिछड़ों का प्रतीक है।

कुछ दिनों के बाद अचानक कॉलेज में ही थे तो पता चला कि सरकार बिहार विश्वविद्यालय का नाम बदल कर बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय कर दिया है ,बड़ी हंगामा हुआ कई दिनों कर कॉलेज बंद रहा , उस समय भी सरकार का यही तर्क था कि बिहार के सारे शैक्षणिक संस्थान अगड़ी जाति के नाम पर है ऐसे में दलित नेता को सम्मान दिया गया तो अगड़ी जाति को नागवार गुजर रहा है बाद के दिनों में इस तरह के तर्क के सहारे बिहार में बहुत सारे काम हुए ,यहां तक की नरसंहार को भी सही साबित करने की कोशिश हुई ।

सामाजिक न्याय के नाम पर लालू 15 वर्षों तक बिहार के सत्ता पर काबिज रहे और पांच वर्षों तक केंद्र में रहे लेकिन सामाजिक न्याय से जुड़ी जो बुनियादी सवाल थे रोटी सरोजी और रोजगार वहां बिहार पिछड़ता चला गया शुरुआती दिनों में सामाजिक न्याय के नाम पर अगड़े को जरुर निशाना बनाया गया है लेकिन धीरे धीरे यह गांव के उस वर्ग तक पहुंच गया जो सामाजिक न्याय के हकदार थे जिनके सहारे लालू की सरकार चल रही थी ।बाद में यह वर्ग अपने को ठगा ठगा सा महसूस करने लगा और समाज में सामाजिक न्याय के नाम पर जो गुंडागर्दी शुरू हुई थी उसका शिकार कुछ दिनों के बाद छोटी पिछड़ी जाति होने लगी ,और उसी का परिणाम है कि लालू परिवार 20 वर्षो से सत्ता से बाहर है ।

वही आज नीतीश कमजोर हुए हैं उसकी भी वही वजह है अति पिछड़ा और महादलित की राजनीति के सहारे 15 वर्षो से अधिक समय से बिहार के मुख्यमंत्री जरुर बने हुए हैं लेकिन सामाजिक न्याय का जो बुनियादी सवाल है जिससे हर बिहारी हर दिन आज भी सामना कर रहा है रोजी ,रोटी और रोजगार के सवाल पर नीतीश भी पूरी तरह फेल हैं।

गोलगप्पा बेचने के लिए बिहारी काश्मीर जा रहा है समझ सकते हैं बिहार अभी भी कहां खड़ा है।यही हाल पिछले आठ वर्षो से मोदी सरकार की है इनके कार्यकाल को गौर से देखिए बिहार जैसे तीस वर्षो से जाति जाति का खेल चल रहा है ठीक उसी तरीके से मोदी हिन्दू मुस्लिम, भारत पाकिस्तान ,नेहरू ,सुभाष और पटेल जैसे भावनात्मक मुद्दों को लेकर खेल रहे हैं ,इस खेल के सहारे मोदी और बीजेपी आज पूरे देश पर राज कर रहा है और ये कब तक चलेगा कहना मुश्किल है लेकिन देश की जो बुनियादी सवाल है रोजी ,रोटी और रोजगार को लेकर मोदी भी पूरी तरह से फेल है।

देश की अर्थ व्यवस्था का हाल दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है सरकार चलाने के लिए सरकारी उपक्रमों को बेचा जा रहा है कब तक ये चलेगा वही इस तरह के भावनात्मक मुद्दों के सहारे कब तक चुनाव जीतते रहेंगे कल सुभाष चन्द्र बोस के प्रतिमा के अनावरण के दौरान मोदी जो बोल रहे थे आजादी के बाद अनेक महान लोगों के योगदान को मिटाने की कोशिश हुई लेकिन आज देश उन गलतियों को ठीक रहा है ।

मोदी जिस अंदाज में बोल रहे थे वो अंदाज लालू प्रसाद द्वारा गांधी मैदान में बुलाये गये गरीब रैला की याद को ताजा कर दिया लालू भी अगड़े और पिछड़े के नाम पर कुछ इसी अंदाज में भाषण दे रहे थे।

ऐसा नहीं है कि सामाजिक न्याय की सरकार में सब कुछ गड़बड़ ही नहीं हुआ इस सरकार की देन है कि आज बिहार के समाज में उच्च नीच और अगड़े पिछड़े की सोच में बड़ा बदलाव आया है ।

इसी तरह से मोदी जिस नारे के सहारे राज कर रहे हैं उससे भी देश को लाभ हुआ है अब देश में तुष्टीकरण की राजनीति नहीं चलेगी जो भारत के सर्वधर्म समभाव के नारे को कही ना कही प्रभावित कर रहा था। इसलिए हमारे आपके लिए 30 वर्ष बहुत मायने रखता है लेकिन किसी देश के निर्माण के लिए ये 30 वर्ष कोई मायने नहीं रखता है बदलाव होगा और जरूर होगा झूठे नारे और भावनात्मक मुद्दे ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस तरीके से जनता लालू और नीतीश से सवाल कर रहे हैं मोदी से सवाल नहीं कर पा रहे हैं समस्या यही है नहीं तो जिस तरीके सरकारी उपक्रम को मोदी बेच रहे हैं रोजगार के अवसर धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं लेकिन कहीं से भी सवाल खड़े नहीं हो रहे हैं खड़े भी हो रहे हैं तो वोट में नही बदल रहा है।

इस प्रवति के कारण भले ही देश को ऐसा नुकसान हो रहा है जिसकी भरपाई करना मुश्किल है फिर भी सोच में बदलाव दिख रहा है दास और भक्त जितनी गाली देते थे और मोदी को लेकर जितनी भक्ति दिखाया करते थे इतना तो शर्म अब दिख रहा है कि ऐसे लोग अपना सोशल मीडिया के पेज को लाँक कर लिया है या फिर पेज फर्जी है मतलब अब घर परिवार में भी भक्ति को लेकर सवाल खड़े होने लगे है और महंगाई,बेरोजगारी और रोजगार के मसले पर दास(भक्त) घर में भी घिरने लगा है इसलिए निराश होने कि जरुरत नहीं है देश करवट ले रहा है वो साफ दिख रहा है ।

नीतीश की खामोशी उनकी बेचारगी है -शिवानंद

बिहार में सरकार डवांडोल हैं । गठबंधन के नेता आपस में मुँह लड़ा रहे हैं । नीतीश जी ने मौन साध लिया है. गठबंधन पर उनकी पकड़ पहले जैसी नहीं रही । सरकार पाँच वर्ष की अवधि पुरा कर पाएगी, इस पर लोग संदेह करने लगे हैं ।

सरकार की डवांडोल स्थिति की वजह से प्रशासन भी उहापोह की स्थिति में है. अपराधियों का मनोबल बढ़ गया है. बाकरगंज जैसे भीड़भाड़ वाले बाज़ार में कल अपराधियों जिस तरह का तांडव मचाया वह इसके पहले राजधानी में कभी नहीं हुआ था ।

आए दिन व्यापारियों को धमका कर उनसे रंगदारी माँगी जा रही है. जो नहीं दबते हैं उनपर गोली चलती है. पटना सरकार की नहीं बल्कि अपराध की राजधानी के रूप में तब्दील होता जा रहा है. नीतीश जी पर शराबबंदी का नशा सवार है. इसके अलावा बाक़ी सबकुछ उपेक्षित है ।

बिहार में भयंकर गैर बराबरी बढ़ी है.उसी अनुपात में ग़रीबी और बेरोज़गारी भी बढ़ी है. लाखों लोग अवैध और अपराध जनित कर्मों से अपना परिवार चला रहे हैं । हर ओर, चाहे जैसे हो, लखपति-करोड़पति बनने की होड़ मची हुई है. दिल्ली और पटना की सरकारों की नीतियों का यह नतीजा है । नीतीश जी की सरकार की विकास नीति ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर करने के बदले बढ़ा रही है. यह विकास नीति ही अपराध को भी बढ़ा रही है. इसीलिए अपराध के ख़िलाफ़ सरकार की सारी कार्रवाइयाँ पानी में लाठी पीटने के समान साबित हो रही हैं ।

लेखक – शिवानंद तिवारी