क्या बिहार की राजनीति में तुरुप का इक्का साबित होगा कन्हैया
कांग्रेस में शामिल होने के बाद पहली बार पटना पहुंचे कन्हैया का जिस अंदाज में कांग्रेस के नेताओं ने स्वागत किया उससे संकेत साफ है कि आने वाले समय में गुजरात की तरह बिहार में भी कांग्रेस कन्हैया को बड़ी जिम्मेवारी दे सकती है।
वही कन्हैया जिस अंदाज में जातिवाद ,परिवारवाद और राजद के दिल्ली वाले एक नेता पर जिस तरीके से सीधा हमला बोला है उससे यह तय हो गया कि बिहार में अब कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलने का निर्णय ले लिया है। और इसका असर है कि लालू प्रसाद रविवार को पटना पहुंच रहे हैं।
1–कन्हैया को पहले कांग्रेसियों से लड़ना होगा
कन्हैया भले ही कांग्रेस में शामिल हुआ है लेकिन बिहार कांग्रेस के जो मठाधीश हैं उसको जब तक वो साथ लाने में कामयाब नहीं होंगे तब तक कन्हैया को बिहार की राजनीति में स्थापित होना बहुत ही मुश्किल है ।
कल सदाकत आश्रम में साफ दिख रहा था कि मंच पर बैठे अधिकांश नेता कन्हैया को लेकर असहज थे, इतना ही नहीं कई नेता तो इस काम में लगे हुए थे कि सदाकत आश्रम में कुछ ऐसा करा दिया जाये ताकि मीडिया में कन्हैया के स्वागत की खबर दब जाये ।
लेकिन कन्हैया के समर्थक को देख कर वो लोग साहस नहीं जुटा पाये फिर भी राहुल गांधी जिस तरीके से गुजरात में हार्दिक पटेल के साथ खड़े हैं ठीक उसी तरह से कन्हैया के साथ भी खड़े रहेंगे तभी कन्हैया कांग्रेस में कुछ जान फुक पायेगा ।
हालांकि बिहार कांग्रेस पूरी तौर पर टेबल पॉलिटिक्स तक सिमट कर रहा गया है साथ ही कोई भी ऐसा नेता नहीं बचा है जिससे कोई बड़ी उम्मीद लगायी जा सके, लेकिन ये सारे कांग्रेस के अंदर काफी प्रभावशाली हैं और तोड़ जोड़ के माहिर खिलाड़ी भी है साथ ही बिहार की राजनीति की समझ भी रखते हैं। ऐसे में कन्हैया के सामने पहली चुनौती है यही है कि ऐसे कांग्रेसियों का आर्शीवाद उन्हें कैसे प्राप्त हो।
क्यों कि सीपीआई में भी कन्हैया पार्टी के मठाधीश को साथ जोड़ने में कामयाब नहीं हुए थे और इस वजह से उन्हें लोकसभा चुनाव में बेगूसराय में पार्टी का उस तरह से साथ नहीं मिला,अगर साथ मिलता तो लड़ाई दिलचस्प हो जाता। हालांकि कन्हैया के साथ राहुल का आर्शीवाद है इसलिए मठाधीश को मनाना मुश्किल नहीं है फिर भी बड़ी चुनौती है क्यों कि कांग्रेस का जो भी संगठन बचा हुआ है उसमें नये लोगों को जोड़ कर ही कन्हैया बिहार कांग्रेस में धार पैदा कर सकता है ।
2–राजद के साथ कैसे रिश्ता रहता है इस पर भी कन्हैया का राजनीतिक भविष्य निर्भर करता है
कन्हैया के आने से बिहार कांग्रेस की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा ऐसा सम्भव नहीं है, बिहार में कांग्रेस को राजद या जदयू का साथ चाहिए ही तभी वह बिहार की राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है।
कन्हैया के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती यही है।
राजद के अंदर कन्हैया को लेकर जो छवि बनायी गयी है उससे तेजस्वी असहज है और यही वजह है कि राजद बिहार विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं देकर हैसियत दिखाना चाह रही है ताकि आने वाले चुनाव में कन्हैया का दबाव ना रहे साथ ही जैसे पहले कांग्रेस को हाथ उठा कर सीट दे देते थे वैसे ही दे दें।
लेकिन राजद के इस व्यवहार पर पहली बार आलाकमान ने लालू प्रसाद के परिवार को लेकर अपना रुख बदलते हुए पूरी मजबूती के साथ मैदान में उतरने का कहा ,इतना ही नहीं कांग्रेस लालू प्रसाद के परिवार को हैसियत दिखाने के लिए पप्पू यादव तक को साथ आने का न्यौता दे दिया वही कन्हैया को आते आते मैदान में उतर दिया और इतना ही नहीं पहली बार कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दिया कि राजद से मेरा रिश्ता समाप्त हो गया ।
हालांकि कांग्रेस ऐसा रुख अख्तियार कर लेगा इसकी उम्मीद राजद के सलाहकार को नहीं था और कहां जा रहा है कि कांग्रेस को लेकर राजद प्रवक्ता मनोज झा का जो बयान आया है उससे लालू प्रसाद खासे नाराज है और यही वजह है कि लालू प्रसाद जो पूरी तौर पर अभी भी स्वस्थ नहीं है भागे भागे रविवार को पटना पहुंच रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि कांग्रेस के साथ छुटने से राष्ट्रीय स्तर पर जो नुकसान होगा सो होगा ही बिहार में भी एक नये तरीके का गठबंधन बन सकता है जिसका नुकसान राजद को होगा।क्यों कि राजद की ताकत अब सिर्फ मुस्लिम वोटर रहा है एमवाई समीकरण दरका तो फिर राजद की वापसी बेहद मुश्किल हो जायेंगी ।
वही कन्हैया के आने से जदयू और कांग्रेस के बीच नजदीकियां बढ़ सकती है क्यों कि कन्हैया का नीतीश से बहुत ही अंतरंग रिश्ता है और नीतीश भी चाह रहे थे कि कांग्रेस में ऐसा कोई नेता हो जिसके सहारे सीधे राहुल तक पहुंचा जा सके। क्यों कि जदयू पिछली बार भी जब राजद से नाता तोड़ रहा था उस समय अंतिम क्षण तक नीतीश का यह प्रयास जारी रहा कि कांग्रेस लालू प्रसाद पर दबाव बनाये और तेजस्वी पद छोड़ दे राहुल उस समय भी नीतीश के साथ खड़े थे लेकिन अहमद पटेल लालू प्रसाद की बात में आ गये और फिर राहुल चुप हो गया ।
लेकिन कन्हैया के आने से इस बार स्थिति भिन्न है कमान राहुल के हाथ में है, वही देश की राजनीति जिस दिशा में बढ़ रही है ऐसे में नीतीश बीजेपी के साथ सहज नहीं है ।
ऐसे में कन्हैया के आने से नीतीश का गठबंधन से अलग होने का रास्ता मिल गया है क्यों कि कन्हैया जिस तरीके से राजद और लालू प्रसाद को लेकर हमलावर है ऐसे में कांग्रेस अगर कन्हैया को बिहार की जिम्मेवारी सौपता है तो नीतीश को राजद से साथ हाथ मिलाने में कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि इस बार कांग्रेस पहले कि स्थिति में ज्यादा मजबूत और निर्णय लेने की स्थिति में है इसलिए आने वाले समय में बिहार की राजनीति में कन्हैया तुरुप का इक्का साबित हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी ।