बिहार विधान परिषद के बने रहने का औचित्य क्या है
सवाल लोकतंत्र का है ,सवाल जनता के मेहनत के पैसे का है ,ऐसे में सवाल तो बनता है कि बिहार में बिहार विधान परिषद के गठन का मतलब क्या है, जी है बिहार विधान परिषद में कुल सदस्यों की संख्या 75 है जिसमें 27 सदस्यों को बिहार विधान सभा के सदस्य चुनते हैं। 24 सदस्य स्थानीय निकायों(पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा चूने जाते हैं,शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों से 6 और स्नातक क्षेत्र से 6 चुनाव जीत करके आते हैं और राज्यपाल कोटा से 12 लोगों का मनोनयन होता है।
काम क्या है विधानसभा में जो बिल पास होगा उस पर चर्चा करना और उस पर मोहर लगाना,विधानसभा में जिसका बहुमत होगा स्वाभाविक है विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने गये 27 सदस्यों में से अधिक संख्या उन्हीं का होगा फिर राज्यपाल द्वारा जिन 12 विशिष्ठ व्यक्तियों का मनोनयन होता है वह भी सरकार जिसका नाम राज्यपाल को भेजता है उसी पर राज्यपाल को मोहर लगाना है ।मतलब सरकार का हमेशा बहुमत बना रहता है ।
संविधान कहता है कि राज्य के साहित्य, कला, सहकारिता, विज्ञान और समाज सेवा का विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखते हैं उनको विधान परिषद में भेजना है, हो क्या रहा है इस बार राज्यपाल जिन 12 लोगों को मनोनीत क्या है उसमें कौन से ऐसे लोग हैं जिसकी योग्यता संविधान द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खड़े उतर रहा है। इस बार बिहार में राज्यपाल कोटे से जिन्हें मनोनीत किया है उनमें दो राज्य सरकार के कैबिनेट में मंत्री हैं. बीजेपी ने जिन छह चेहरों को विधान परिषद सदस्य बनाया है उनमें प्रमोद कुमार, घनश्याम ठाकुर, जनक राम, राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, देवेश कुमार और निवेदिता सिंह बीजेपी पार्टी से सक्रिय तोड़ पर जुड़ी हुई हैं।
वहीं जेडीयू ने उपेंद्र कुशवाहा, संजय गांधी, ललन सर्राफ, रामबचन राय, अशोक चौधरी और संजय सिंह को विधान परिषद सदस्य बनाया है ये सारे के सारे चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे हैं मतलब संविधान में राज्यपाल कोटा से मनोनयन का लेकर जो विचार रखा गया उस विचार पर कहीं से कोई खड़ा नहीं उतर रहा है।
बात स्थानीय निकायों(पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा),चुने गये 24 सदस्यों का कर लेते हैं इनका क्या काम है ये पंचायत चुनाव जीत कर आये प्रतिनिधियों का विधान परिषद में प्रतिनिधित्व करते हैं इन महाशय के कार्यकाल पर गौर करेंगे तो ब-मुश्किल पूरे कार्यकाल के दौरान एक दो सवाल पंचायत सरकार से जुड़ा हुआ है और फिर कैसे लोग चुन कर आ रहे हैं देख ही रहे हैं किस तरह से पैसे का खेल चलता है ,ऐसे में इन 24 सदस्यों के चुने जाने के मतलब क्या है जबकि पंचायत अपने आप में स्वतंत्र इकाई है ।
बिहार में स्नातक पास वोटर द्वारा चुने गये 6 प्रतिनिधियों की बात कर तो ये किसके प्रति जिम्मेवार है कभी तो नहीं देखा की बेरोजगारी ,नौकरी और पढ़ाई व्यवस्था पर ये लोग अलग से अपनी बात सदन में रखते हो इसके लिए सरकार पर दबाव बनाते हो ।
इसी तरह 6 प्रतिनिधि शिक्षक द्वारा चुन कर आते हैं इनका क्या काम है पिछले 30 वर्षो का सदन का इतिहास देख लीजिए ये जो प्रतिनिधि हैं अपने वोटर के साथ कभी खड़े दिखे हैं इनकी हैसियत यही है कि सरकार के साथ हां में हां मिलाये नहीं तो कोई पुछने वाला नहीं है जब सब कुछ सरकार के अनुसार ही चलनी है तो फिर विधान परिषद और विधान परिषद के कमिटी का मतलब क्या है ।
हर वर्ष विधानपरिषद सदस्यों के वेतन ,भत्ता ,इलाज ,यात्रा और अन्य सुख सुविधा के अलावे इस्टेब्लिश्मन्ट और विधान पार्षद विकास निधि की बात करे तो हर वर्ष तीन करौड़ के करीब खर्च होता है, इस खर्च का मतलब क्या है ।
वही विधान परिषद सदस्य बनने को लेकर जो खेल चलता है ऐसे में आप अपर हाउस से क्या उम्मीद कर सकते हैं अपर हाउस का गठन लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के मनमानी को रोकने के लिए किया गया था वहां पढ़े लिखे लोग चुन कर जायेंगे तो विधानसभा के कामकाज का समीक्षा करेंगे लेकिन हो क्या रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि इस संस्थान के रहने का मतलब क्या है जनता के पैसे पर मौज मस्ती और जनप्रतिनिधि के रुप जो विशेषाधिकार मिला हुआ है उसका दुरउपयोग करना ।