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बालिकागृह जैसे मामलों में समग्रता से सोचने कि जरुरत है तभी बेहतर हो सकता है

कल दोपहर को एक फोन आया मैं पटना हाईकोर्ट में एडवोकेट हूं आपके फेसबुक से काफी दिनों से जुड़ा हुआ हूं और पढ़ता रहता हूं ।बालिकागृह मामले में आपसे कुछ बात करनी है , हाईकोर्ट ने जो स्वत संज्ञान लिया है उसमें गुड्डू बाबा के माध्यम से मैं भी अपना पक्ष रखना चाहता हूं आपके पास इसको लेकर जो भी जानकारी है वो मुझे चाहिए।

समय तय हुआ शाम में मिलना है उन्होंने बताया कि कृष्णापुरी पार्क के सामने मेरा आवास है आपका इन्तजार करेंगे। मैं नियत समय पर उनके आवास पर पहुंच गया बाहर से कॉल किया सर किधर आना है,मेरा पहले से कोई परिचय नहीं था, घर के बाहरी आवरण से लगा जनाब पटना हाईकोर्ट के बड़े वकील है,भव्य मकान फिर कैंपस में बागवानी का सलीका ,ड्राइंग रूम की भव्यता और फिर उनका ऑफिस मन ही मन में हो रहा था जनाब का रहन सहन ऐसा है तो वो खुद कैसे होगे ।

जैसे ही उनके ऑफिस में पहुंचा एक साधारण सा नाटा कद का व्यक्ति कुर्सी पर बैठा है और उनके सामने तीन चार लोग बैठे हुए है। चंद मिनट में ही पूर्व से बैठे लोगों का विदा कर दिया इस दौरान वो अपने क्लाइंट से जिस अंदाज में बात कर रहे थे मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि ये व्यक्ति अपनी कमाई से इस तरह का घर द्वारा बना सकता है ।

मुझे लगा बाप दादा का सम्पत्ति पर हाक रहा है मैं चुपचाप सुनता रहा , बाबू मैं बोरा छाप स्कूल से पढ़ कर यहां पहुंचा हूं तुम जब तक मुकदमे के बारे में मुझे संतुष्ट नहीं कर दोगे मैं जज साहब को कैसे संतुष्ट कर पाऊँगा । क्यों कि मेरी समझदारी थोड़ी गांव वाली है इसलिए समझने में थोड़ा वक्त लगता है लेकिन समझ गये तो फिर आपका केस बड़ी मजबूती से लड़ेंगे ।

खैर इन लोगों के जाने के बाद बातचीत शुरू हुई संतोष जी पहले आपको आज ही मेरे गांव से मिठाई आया है वो खिलाते हैं फिर भागलपुर के चूरा का भूजा खाना पसंद करेंगे वो खिलाते हैं।

पहले मिठाई आया काला काला गोला गोला मुझे लगा काला जाबुन होगा संतोष जी यह आरा में ठंड के समय खास तोड़ पर बनता है मैं समझ गया हाल ही में मेरी सासू माँ भी लेकर आयी थी।

कैसे चावल को पीसा जाता है और इसमें क्या क्या मिलाया जाता है एक स्वर में सब बता दिए संतोष जी इस मिठाई को सोईठ कहते हैं ठंड में बहुत फायदा करता है।

बातचीत चल ही रही थी तभी उनकी पत्नी आयी परिचय हुआ वो भी पटना हाईकोर्ट में वकील है,कहने लगी करिए करिए कुछ होने वाला नहीं है ।गायघाट बालिका गृह के अधीक्षक की क्या हैसियत होगी वो तो पटना में पोस्टिंग बनी रहे इसलिए अधिकारियों की गुलामी कर रही होगी ताकी किसी तरह बाल बच्चा को पढ़ा ले या फिर पति पटना में ही रहता होगा, या मायिका पटना होगा ,सास ससुर बिमार रहते होंगे इसलिए किसी तरह पटना में बनी रहना चाह रही होगी इससे ज्यादा वो सोच नहीं रही होगी संतोष जी यही सच्चाई है देख लीजिएगा मंत्री के घर लड़की पहुंचाना ये सब फालतु बात है कोई माँ ये काम नहीं कर सकती है कुछ ऐसी रहती है लेकिन सरकारी अधिकारी काहे को यह सब करेंगे जो होता है वह सब उपर लेबल पर होता है ये चुपचाप देखती रहती होगी इससे ज्यादा इसकी हैसियत नहीं होगी।

मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले में क्या हुआ बस आईवास कुछ बदलने वाला नहीं है आप लोगों के पेट की आग बुझी हुई है इसलिए ये सब कर रहे हैं कुछ होने वाला नहीं है।

वकील साहब चुपचाप मैंडम की बात सून रहे थे और फिर अंत में इतना ही कहा संतोष जी इस देश का आम आदमी इसी तरीके से सोचता है क्यों कि चारो तरफ घोर निराशा छाया हुआ है सारे सिस्टम ध्वस्त हो चुके हैं ।

याद करिए पहले किसी सरकारी दफ्तर में जाते होंगे और किसी कर्मचारी के बारे पता करते होंगे तो साथ काम करने वाला अधिकारी कहता था उसको खोज रहे हैं बिना पैसा लिये काम नहीं करेंगा बाहर चाय की दुकान पर बैठा होगा ।

और आज अड़े वो पगला है ना पैसा लेगा ना काम करेगा मतलब ईमानदारी पागलपन है फिर भी फाइट करते रहना है संतोष जी ।
आपसे जो जानकारी मिली है इसका यह मतलब है की बालिका और बालक के संरक्षण लिए कानूनी प्रावधान काफी सख्त है लेकिन कार्यान्वयन में समस्या है मैं इसी बिन्दु को हाईकोर्ट के सामने लाते हैं क्यों कि जो व्यवस्था बनायी गयी है इस तरह के गृह को चलाने का वो सही तरह से चल सके ।

बात खत्म हुई एक दूसरे से विदा लिये लेकिन उनकी और उनकी पत्नी की एक एक बात अभी भी मेरे जेहन में चल रहा है महिलाएं अक्सर प्रैक्टिकल होती है उनकी सोच प्रैक्टिकल होती है और हम लोग चीजों को ऊपर ऊपर सोचते हैं गायघाट की अधीक्षिका की सोच इतना ही होगी किसी तरह पटना में पोस्टिंग बनी रहे ताकि बच्चों को पढ़ा सके यही हाल अधिकांश सरकार कर्मी और अधिकारियों का है बस छोटी ही चाहत के लिए कितनीबड़ी से बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है सोचिए
इसलिए ऐसे मामलों में समग्रता में सोचने कि जरूरत है तभी कुछ सार्थक बदलाव सामने आ सकता है ।

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