बिहार का सुधा राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांड कैसे बन गया यह सवाल बार बार मुझे परेशान करता है, पटना आने के बाद इस रहस्य को समझने के लिए कई बार सुधा से जुड़े लोगों से मैं मिला भी लेकिन इस ऊंचाई पर पहुंचने राज वो बता नहीं पाये ।
दरभंगा प्रवास के दौरान दरभंगा बहेड़ी मुख्य मार्ग पर जोरजा एक गांव हैं वहां चैती दुर्गा पूजा पूरे धूमधाम से मनाया जाता है इस गांव से मेरा पुराना रिश्ता रहा है पूजा कमेटी के लोगों ने मुझे पूजा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया दरभंगा जिला घूम ही रहे थे इसी क्रम में जोरजा पहुंच गये पूजा में शामिल होने के बाद वैसे ही बात हो रही थी तो मेरी नजर दुर्गा स्थान के पीछे स्थित बगीचा पर पड़ा गया पता चला बहुत बड़े कृषि वैज्ञानिक हैं। रिटायर होने के बाद पिछले 15 वर्षो से गांव में ही रह रहे हैं इनको दो बेटा है दोनों आईआईटीएन है और अमेरिका में रहता है ये यहां अकेले रहते हैं गांव में पर्यावरण पर काम करते रहते हैं।
चले गये उनसे मिलने एक घंटा का साथ मिला बात चलते चलते पता चला कि 1990 के दशक में डेयरी के क्षेत्र में काम करने वाले कई बड़े बिहार के रहने वाले वैज्ञानिक जो अमूल,राजस्थान और पंजाब हरियाणा डेयरी में काम करते थे उन्हें बिहार सरकार ने बिहार में काम करने के लिए आमंत्रित किया इसी कड़ी में राजस्थान डेयरी से डाँ धीरेन्द्र कुमार सिन्हा बिहार आये और ये फिर अलग अलग राज्यों में डेयरी के फील्ड में काम करने वाले बिहारी का बिहार आने का न्यौता दिया और फिर एक ऐसा टीम तैयार हुआ जिसके बुनियाद पर आज सूधा अमूल को चुनौती दे रहा है इन्होंने दूध का बायप्रोडक्ट पर काफी काम किये साथ ही जिस समय बिहार में दूध काफी होता है उस दूध को पाउडर के रूप में परिणत कैसे किया जाये इस तकनीक को भी बिहार में लाये।
इनके एमडी के कार्यकाल को आज भी सुधा से जुड़े लोग याद करते हैं इन्होंने एक ऐसा चैन खड़ा कर दिया कि आज सुधा की पहचान देश स्तर पर पहुंच गया है ।80 वर्ष इनका उम्र है, बीस और जीना चाहते हैं ताकी अपने गांव को एक ऐसा आदर्श गांव बना सके जिसकी पहचान देश स्तर पर औषधीय और ऑर्गेनिक खेती के रूप में हो सके। ये अपने बगान में बहुत सारे ऐसे फल सब्जी और अनाज पैदा कर रहे हैं जो हमारे फूड चैन से खत्म होते जा रहा है । पोस्ट के साथ कुछ तस्वीर लगा है पहचानिए इसमें से एक बथुआ का साग है जो हमारे आपके खेत में वैसे ही उगता रहता है इनका मानना है कि इससे पोस्टिंग साग दूसरा कोई भी नहीं है इस साग को कोई लगाता नहीं है लेकिन हर किसी के खेत में देखने को मिल जायेगा इस साग के खाने से बहुत सारे बीमारी से बचा जा सकता है ।
ऐसे कई फल , फूल और साग सब्जी इनके बगान में आपको मिल जायेगा जिसे देख आप हैरान रह जायेंगे मुझे लगता है कि ऐसे बिहारी जो पटना ,दिल्ली ,मुंबई में अपार्टमेंट की जिंदगी जी रहे हैं उन्हें गांव लौटना चाहिए क्यों आज भी जितने बिहारी ऊंचाई पर है उनकी पढ़ाई लिखाई और परवरिश कही ना कही किसी ना किसी बिहार के गांव से ही हुआ है गांव को आज आप जैसे लोगों की जरूरत है बिहार में बदलाव की अभी भी अपार सम्भावना है ।