जस्टिस ए एम बदर की खंडपीठ ने भोजपुर के रहने वाले एक व्यक्ति की अपील याचिका को ख़ारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की ।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का ज़िक्र करते हुए कहा कि भारत में शायद ही कोई लड़की या महिला यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप लगाती है अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, 14 नवंबर, 2007 को उसके और अपीलकर्ता के बीच लगातार झगड़ों के कारण उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी।
उसकी मौत के तुरंत बाद, आरोपी ने अपनी बड़ी बेटी का यौन उत्पीड़न करना शुरू कर दिया, जो उस समय नाबालिग थी। यौन शोषण लड़की के लिए एक दिनचर्या बन गया और चूंकि अपीलकर्ता उसका पिता था, उसने उसके बारे में किसी से शिकायत नहीं की।
जब वह व्यक्ति अपनी छोटी बेटी को भी गाली देने लगा, तो बड़ी बेटी ने इसकी जानकारी अपने मामा को दी।
हालांकि, लड़कियों ने 30 जुलाई, 2013 को साहस दिखाया और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत बलात्कार (376) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
इस मामले पर निचली अदालत ने आरोपी को उम्रक़ैद की सजा सुनाई थी जिसके विरुद्ध उसने हाईकोर्ट में अपील दायर की,जिस पर हाईकोर्ट ने कोई राहत नहीं दी।