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रामसर साइट में शामिल कावर झील के विकास का मुद्दा एक बार फिर राज्यसभा में उठा

अंतरराष्ट्रीय महत्व के बेगूसराय के रामसर साइट में शामिल कावर झील के विकास का मुद्दा एक बार फिर राज्यसभा में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने सवाल उठाया है।

कावर झील के विकास को लेकर राज्यसभा में उठा मामला

एशिया का सबसे बड़ा झील कहा जाने वाला कावर झील के विकास के लिए राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा ने राज्यसभा में सवाल उठाते हुए विकास करने की मांग की है। कावर झील की महत्व को देखते हुए उसका विकास करने की मांग की है। राज्य सभा में सांसद ने कहा कि रामसर साइट में शामिल कावर झील 24 सौ एकड़ में फैला हुआ है उसके पास में भगवान बुध का ऐतिहासिक स्तुप स्थल भी है लेकिन आज तक इसका विकास नहीं हुआ है।

कावर झील में 59 प्रकार के विदेशी और 107 प्रकार के देसी पक्षी रहते और हर वर्ष आते हैं लेकिन कावर झील का आज तक विकास नहीं हो पाया है। खासकर जमीन को सही से चिहिंत तक नहीं किया जा सका है जिससे किसान यहां ना तो सही से खेती कर पाते हैं ना ही अपनी जमीन को बेच पाते हैं ऐसे में सरकार इस कावर झील को विकसित करने के लिए कारगर कदम उठाए ताकि पर्यावरण और सांस्कृतिक स्तर पर यह विकसित हो सके।
क्या महत्व है कावर झील है

कावर झील एशिया का सबसे बड़ी शुद्ध जल की झील है और यह पक्षी अभयारण्य (बर्ड संचुरी) भी है। इस बर्ड संचुरी मे ५९ तरह के विदेशी पक्षी और १०७ तरह के देसी पक्षी ठंडे के मौसम मे देखे जा सकते है। यह बिहार राज्य के बेगूसराय में है। पुरातत्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप इसी क्षेत्र में स्थित है।काबर झील अथवा कावर झील जिसे स्थानीय रूप से काबर ताल, कनवार ताल या कावर ताल भी कहते हैं यह बिहार के बेगूसराय जिले में मीठे पानी[3] की एक उथली झील है। यह झील जिला मुख्यालय बेगूसराय से तकरीबन 22 किलोमीटर उत्तर में और बिहार के राजधानी नगर पटना से 100 किलोमीटर पूरब में स्थित है। इस झील और आसपास की नमभूमि (वेटलैंड) को पक्षी विहार का दर्जा प्राप्त है।

बिहार सरकार के वन विभाग के आँकड़ों के मुताबिक़ इसे पक्षी विहार का दर्जा 1989 में दिया गया और यह कुल 63.11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है ।यहाँ जाड़ों में काफी प्रवासी पक्षी आते हैं जिनमें विदेशी पक्षी भी शामिल हैं, हालाँकि, हाल के समय में यह झील पानी की कमी से जूझ रही है और सरकारी योजनाओं के पारित होने के बावज़ूद उपेक्षा के चलते संकटपूर्ण स्थिति में है। झील पर निर्भर स्थानीय मछुआरे (मल्लाह) भी इसके कारण संकट झेल रहे हैं।

झील के नजदीक ही जय मंगल गढ़ के नाम से एक प्रसिद्ध एक मंदिर भी है जिसे पाल वंश के काल में स्थापित माना जाता है और यह भी अनुमान है कि यह एक किले के रूप में था ।

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