बात कोई 1991- 92 की है उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद हुआ करते थे ठीक उसी समय मेरा दाखिला एलएस कॉलेज(मुजफ्फरपुर)में हुआ था जहां तक मुझे याद है लालू प्रसाद एमडीडीएम कॉलेज के पास जुब्बा सहनी पार्क का उद्घाटन करने आये हुए थे ।वह पार्क एक से दो माह में बन कर तैयार हो गया था और इस दौरान उस पार्क के अंदर बड़ा बड़ा पेड़ भी लगा दिया गया था मेरे लिए कौतूहल का विषय यही था कि इतना हरा भरा पेड़ कैसे पार्क में रातो रात लगा दिया गया ।
खैर उस तरह का पार्क पहली बार देखने को मिला था बहुत अच्छा लगा बाद में जितेन्द्र सर के यहां छोटी कल्याणी पढ़ने जाते थे तो जब मौका मिलता था घूम लेते थे ।उद्घाटन के दूसरे दिन अखबार के मुख्य पृष्ठ पर लालू प्रसाद का भाषण छपा था उसमें लिखा था देश की आजादी हम पिछड़ों ने दिलाई लेकिन इतिहास लिखने वाला सारे सवर्ण थे बड़े लोग थे इसलिए आजादी के आन्दोलन में गरीब पिछड़ा और दलित के योगदान की चर्चा तक नहीं है जुब्बा सहनी शहीद हुए थे थाने पर चढ़कर थानेदार को मार दिया था और उस वजह से उन्हें फांसी दी गयी लेकिन कही इसकी चर्चा तक भी है यह पार्क आजादी के आन्दोलन में पिछड़ों का प्रतीक है।
कुछ दिनों के बाद अचानक कॉलेज में ही थे तो पता चला कि सरकार बिहार विश्वविद्यालय का नाम बदल कर बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर विश्वविद्यालय कर दिया है ,बड़ी हंगामा हुआ कई दिनों कर कॉलेज बंद रहा , उस समय भी सरकार का यही तर्क था कि बिहार के सारे शैक्षणिक संस्थान अगड़ी जाति के नाम पर है ऐसे में दलित नेता को सम्मान दिया गया तो अगड़ी जाति को नागवार गुजर रहा है बाद के दिनों में इस तरह के तर्क के सहारे बिहार में बहुत सारे काम हुए ,यहां तक की नरसंहार को भी सही साबित करने की कोशिश हुई ।
सामाजिक न्याय के नाम पर लालू 15 वर्षों तक बिहार के सत्ता पर काबिज रहे और पांच वर्षों तक केंद्र में रहे लेकिन सामाजिक न्याय से जुड़ी जो बुनियादी सवाल थे रोटी सरोजी और रोजगार वहां बिहार पिछड़ता चला गया शुरुआती दिनों में सामाजिक न्याय के नाम पर अगड़े को जरुर निशाना बनाया गया है लेकिन धीरे धीरे यह गांव के उस वर्ग तक पहुंच गया जो सामाजिक न्याय के हकदार थे जिनके सहारे लालू की सरकार चल रही थी ।बाद में यह वर्ग अपने को ठगा ठगा सा महसूस करने लगा और समाज में सामाजिक न्याय के नाम पर जो गुंडागर्दी शुरू हुई थी उसका शिकार कुछ दिनों के बाद छोटी पिछड़ी जाति होने लगी ,और उसी का परिणाम है कि लालू परिवार 20 वर्षो से सत्ता से बाहर है ।
वही आज नीतीश कमजोर हुए हैं उसकी भी वही वजह है अति पिछड़ा और महादलित की राजनीति के सहारे 15 वर्षो से अधिक समय से बिहार के मुख्यमंत्री जरुर बने हुए हैं लेकिन सामाजिक न्याय का जो बुनियादी सवाल है जिससे हर बिहारी हर दिन आज भी सामना कर रहा है रोजी ,रोटी और रोजगार के सवाल पर नीतीश भी पूरी तरह फेल हैं।
गोलगप्पा बेचने के लिए बिहारी काश्मीर जा रहा है समझ सकते हैं बिहार अभी भी कहां खड़ा है।यही हाल पिछले आठ वर्षो से मोदी सरकार की है इनके कार्यकाल को गौर से देखिए बिहार जैसे तीस वर्षो से जाति जाति का खेल चल रहा है ठीक उसी तरीके से मोदी हिन्दू मुस्लिम, भारत पाकिस्तान ,नेहरू ,सुभाष और पटेल जैसे भावनात्मक मुद्दों को लेकर खेल रहे हैं ,इस खेल के सहारे मोदी और बीजेपी आज पूरे देश पर राज कर रहा है और ये कब तक चलेगा कहना मुश्किल है लेकिन देश की जो बुनियादी सवाल है रोजी ,रोटी और रोजगार को लेकर मोदी भी पूरी तरह से फेल है।
देश की अर्थ व्यवस्था का हाल दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है सरकार चलाने के लिए सरकारी उपक्रमों को बेचा जा रहा है कब तक ये चलेगा वही इस तरह के भावनात्मक मुद्दों के सहारे कब तक चुनाव जीतते रहेंगे कल सुभाष चन्द्र बोस के प्रतिमा के अनावरण के दौरान मोदी जो बोल रहे थे आजादी के बाद अनेक महान लोगों के योगदान को मिटाने की कोशिश हुई लेकिन आज देश उन गलतियों को ठीक रहा है ।
मोदी जिस अंदाज में बोल रहे थे वो अंदाज लालू प्रसाद द्वारा गांधी मैदान में बुलाये गये गरीब रैला की याद को ताजा कर दिया लालू भी अगड़े और पिछड़े के नाम पर कुछ इसी अंदाज में भाषण दे रहे थे।
ऐसा नहीं है कि सामाजिक न्याय की सरकार में सब कुछ गड़बड़ ही नहीं हुआ इस सरकार की देन है कि आज बिहार के समाज में उच्च नीच और अगड़े पिछड़े की सोच में बड़ा बदलाव आया है ।
इसी तरह से मोदी जिस नारे के सहारे राज कर रहे हैं उससे भी देश को लाभ हुआ है अब देश में तुष्टीकरण की राजनीति नहीं चलेगी जो भारत के सर्वधर्म समभाव के नारे को कही ना कही प्रभावित कर रहा था। इसलिए हमारे आपके लिए 30 वर्ष बहुत मायने रखता है लेकिन किसी देश के निर्माण के लिए ये 30 वर्ष कोई मायने नहीं रखता है बदलाव होगा और जरूर होगा झूठे नारे और भावनात्मक मुद्दे ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस तरीके से जनता लालू और नीतीश से सवाल कर रहे हैं मोदी से सवाल नहीं कर पा रहे हैं समस्या यही है नहीं तो जिस तरीके सरकारी उपक्रम को मोदी बेच रहे हैं रोजगार के अवसर धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं लेकिन कहीं से भी सवाल खड़े नहीं हो रहे हैं खड़े भी हो रहे हैं तो वोट में नही बदल रहा है।
इस प्रवति के कारण भले ही देश को ऐसा नुकसान हो रहा है जिसकी भरपाई करना मुश्किल है फिर भी सोच में बदलाव दिख रहा है दास और भक्त जितनी गाली देते थे और मोदी को लेकर जितनी भक्ति दिखाया करते थे इतना तो शर्म अब दिख रहा है कि ऐसे लोग अपना सोशल मीडिया के पेज को लाँक कर लिया है या फिर पेज फर्जी है मतलब अब घर परिवार में भी भक्ति को लेकर सवाल खड़े होने लगे है और महंगाई,बेरोजगारी और रोजगार के मसले पर दास(भक्त) घर में भी घिरने लगा है इसलिए निराश होने कि जरुरत नहीं है देश करवट ले रहा है वो साफ दिख रहा है ।