CM योगी के शपथ समारोह की एक तस्वीर वायरल है। मोदी के आगे 145 डिग्री तक झुक आए शख़्स का नाम है नीतीश कुमार। ये वही नीतीश हैं जिन्होंने साल 2013 में मोदी को लेकर NDA(भाजपा) से गठबंधन तोड़ लिया था। अब आगे की कहानी पढ़िए।
जून 2013 में मोदी को BJP की चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया गया तो इन्हीं नीतीश ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। इसके बाद नीतीश ने खुद को धार्मिक तटस्थता के पैरोकार के रूप में पेश किया।
बिहार भाजपा टीम ने महीनों तैयारी कर बिहार में मोदी की पहली रैली करवाई। नाम था- हुंकार रैली। बड़े बड़े पत्रकार दिल्ली से बिहार निर्यात किए गए। पूरे पटना को मोदी के पोस्टरों से आट दिया गया। इस रैली में मोदी ने नीतीश को ‘मौकापरस्त’ और ‘बगुलाभगत’ तक कहा।
अपनी एक किताब में राजदीप सरदेसाई बताते हैं- कुछ साल पहले एक रात्रि भोज पर मैंने नीतीश से पूछा था कि मोदी के बारे में ऐसा क्या था कि वह इतना आहत हो गए। इस पर नीतीश का जवाब था, ‘यह विचारधारा की लड़ाई है…यह देश सेक्यूलर है और सेक्यूलर रहेगा…कुछ लोगों को यह पता होना चाहिए।
हालाँकि नीतीश Secularism का फ़र्ज़ी यूज करते रहे हैं, गुजरात दंगों के बाद पासवान ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया था। लेकिन तब रेलवे मंत्री नीतीश ने कुछ नहीं किया। बल्कि उन्होंने गुजरात जाकर एक कार्यक्रम में मंच भी साझा किया। उन्होंने मुसलमानों को सिर्फ़ छला है।
2010 में बिहार चुनाव हुए। कुछ पर्सेंट मुस्लिम वोट राजद से शिफ़्ट होकर नीतीश की तरफ़ चले गए। इससे नीतीश की फ़ुल Majority के साथ सरकार आई। वे समझ गए लंबी राजनीति के लिए सबका वोट चाहिए। इसलिए उन्होंने भाजपा गठबंधन में रहते हुए भी मोदी से दूरी बनाना शुरू कर दिया।
नीतीश BJP में जेटली और सुशील मोदी से काम चलाते रहे। साल 2009 का समय था। भाजपा के PM पद के उम्मीदवार थे आडवाणी। भाजपा ने शक्तिप्रदर्शन के लिए लुधियाना में संयुक्त रैली रखी और नीतीश को बुलाया। नीतीश ने आने में अनिच्छा ज़ाहिर की क्योंकि उन्हें मालूम था वहाँ मोदी आएँगे।
जेटली ने उन्हें कहा कि ये आडवाणी का कार्यक्रम है इसलिए उनका होना ज़रूरी है। नीतीश के आडवाणी से अच्छे सम्बन्ध थे। इसलिए वहां जाने के लिए राज़ी हो गए। लेकिन मोदी बड़े राजनीतिक खिलाड़ी हैं। नीतीश के मंच पर पहुंचते ही वे अभिवादन करने के लिए पहुँच गए और नीतीश का हाथ पकड़ लिया।
ये ऐसा सीन था जिसे TV और अख़बारों की हेडलाइनों ने लपक लिया। नीतीश इसपर लाल-पीले हो गए। उन्होंने मोदी के हाथ पकड़ने की घटना को खुद के साथ विश्वासघात कहा। राजदीप की किताब के अनुसार नीतीश ने बाद में जेटली से कहा, ‘आपने अपना वायदा नहीं निभाया। साल 2010 में पटना में, BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक थी। पूरे पटना में मोदी के बड़े-बडे़ पोस्टर लगाए गए। जिसमें कोसी के बाढ़ पीड़ितों के लिए मोदी के योगदान का आभार व्यक्त किया गया था। दरअसल गुजरात सरकार ने बाढ़ पीडितों के लिए 5 करोड़ रुपए दिए थे।
नीतीश ने पटना में आए भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को अपने यहां डिनर पर बुलाया हुआ था। नीतीश ने जब समाचार पत्रों में मोदी के दान वाले विज्ञापन देखे तो ग़ुस्सा हो गए। उन्होंने डिनर कार्यक्रम तक रद्द कर दिया। और बाद में दान के पैसे लेने से भी इंकार कर दिया।
इस बात पर मोदी भी गुस्सा हो गए। राजदीप की किताब के अनुसार मोदी ने BJP अध्यक्ष गडकरी से कहा, ‘आप नीतीश को मेरे साथ ऐसा आचरण की अनुमति कैसे दे रहे हैं?’ नीतीश की आत्मकथा लिखने वाले संकर्षण के अनुसार, ‘यह वह दिन था जब नीतीश-मोदी की लड़ाई ने व्यक्तिगत स्तर पर एक भद्दी शक्ल ले ली“।
राजदीप सरदेसाई की किताब के अनुसार- 2010 की घटना पर नीतीश ने अपने एक सहयोगी से कहा ‘हम उनके (मोदी-भाजपा) बगैर भी चल सकते हैं।’
2010 के बाद भाजपा में मोदी का क़द बढ़ने लगा। 2013 तक वे भाजपा के निर्विवादित शीर्ष नेता बन गए। 2013 में नीतीश ने भी BJP गठबंधन से रिश्ता तोड़ लिया।
एक वक्त था, जब सार्वजनिक मंच पर मोदी के गले मिलने पर नीतीश लाल-पीले हो गए और एक वक्त अब है, जब वो ही नीतीश तीर-कमान की तरह मोदी के पैरों में लटक रहे हैं। वे एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं लेकिन आचरण उस राज्यपाल की तरह कर रहे हैं जिसका कार्यकाल PM की दया पर आश्रित होता है।