हरिहरक्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा
आज कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक माह तक चलने वाले बिहार के विश्वप्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र मेले या सोनपुर मेले की शुरुआत होती है। हालांकि कोविड के चलते सरकार द्वारा इस साल भी मेले की अनुमति नहीं दी गई है, मगर कोविड प्रोटोकॉल के तहत यहां श्रद्धालुओं को गंगा और गंडक नदियों में स्नान और हरिहरनाथ मंदिर में पूजा करने की अनुमति है। फलतः नदियों के किनारे और हरिहरनाथ मंदिर में जुटी साधु-संतों और आम श्रद्धालुओं की भीड़ ने यहां मेले जैसा दृश्य तो उपस्थित कर ही दिया है।
इस मेले के पीछे की पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन काल में यहां गंडक के तट पर गज और ग्राह के बीच लंबी लड़ाई चली थी। गज की फ़रियाद पर विष्णु या हरि और शिव या हर ने बीच-बचाव कर इस लड़ाई का अंत कराया था। कथा प्रतीकात्मक है। प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों के बीच सदियों तक चलने वाली लड़ाई का साक्षी रहा था। अपने आराध्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के इस संघर्ष ने हजारों लोगों की बलि ली थी। इसकी समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर के गंडक तट पर आयोजित किया गया। यह सम्मेलन दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय की विराट कोशिश साबित हुई जिसमें विष्णु और शिव दोनों को ईश्वर के ही दो रूप मानकर विवाद का सदा के लिए अंत कर दिया गया। उसी दिन की स्मृति में यहां पहली बार विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियों के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना हुई थी। उसी काल में यहां एशिया के सबसे बड़े पशु मेले की भी शुरुआत हुई थी जिसने कालांतर में एक बड़े व्यावसायिक मेले का भी रूप धर लिया।
पिछले लगभग डेढ़ हजार सालों से हरिहरक्षेत्र मेला एक ऐसी जगह रही है जहां ग्रामीण बिहार की सभ्यता और संस्कृति को निकट से देखा, जाना और महसूस किया जा सकता है।