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दलितों के साथ कुछ रिश्ते ऐसे रहे हैं जो आज भी सामंत और दलित को जोड़े हुए है

नव वर्ष के मौके पर पिछले पांच छह वर्षो से पप्पू मांझी का सुबह सुबह फोन जरूर आता है पप्पू मांझी के साथ एक दौर था जब न्यूज़ में इसके ड्रायविंग का आनंद लेते थे ।पत्रकारों के साथ रहने की वजह से इसकी अच्छी खासी राजनीतिक समझ भी है ।

जीतन राम मांझी के बयान पर क्या सोचता है मांझी समाज


इस बार भी फोन आया लम्बी बातचीत हुई यही पटना के पास का रहने वाला है और इसके इलाके में मुसहर समाज की बड़ी आबादी रहती है ।नव वर्ष की शुभकामना के बाद मैंने पप्पू से पूछा जीतन राम मांझी के बयान को लेकर मांझी समाज क्या सोचता है 9 मिनट के करीब बातचीत हुई है सुनिए जरूर राजनीति समझ में आ जायेंगी। पप्पू पूजा पाठ करने के बाद पंडित के घर पर नहीं खाने को लेकर निराश जरुर है लेकिन इन इलाकों से जुड़ी एक ऐसी परम्परा की चर्चा उन्होंने कि जो हैरान करने वाला था। पालीगंज और विक्रम के इलाके में बेटी की शादी के दौरान घर वाले बारात को भोजन करने से पहले मांझी समाज को विशेष तौर पर आमंत्रित करके भोजन कराता है मैंने पुंछा यह आज भी चल रहा है क्या पप्पू बोला हां सर इस बार भी गये थे भोज खाने गये थे। मतलब समाज में कई ऐसी परम्परा भी रही है जो दलित और खेतिहर समाज को जोड़ने का काम करता रहा है इस तरह के रिश्तों को गहराई से समझने कि जरूरत है क्यों कि दक्षिण भारत में ‘ब्राह्मण के खिलाफ जिस तरह का आंदोलन हुआ उत्तर भारत में आज भी वो स्थिति नहीं है हो सकता है ऐसे ही कुछ रिश्ते रहे हैं जो दक्षिण की तरह उत्तर भारत के समाज को उस स्तर तक उद्वेलित नहीं कर पाया ।

ब्राह्मणवाद को लेकर संवाद


वैसे जब से खेती से जुड़े लोगों का आर्थिक स्थिति कमजोर हुआ है गांव के स्तर पर बहुत सारी चीजें बदल गयी है। 50 प्रतिशत भूमि का स्वामित्व बदल गया है 90 प्रतिशत खेतिहर समाज खेती करना छोड़ दिया है ऐसे में खेती की वजह से जो रिश्ता चला आ रहा था उसकी डोर टूट चुकी है गांव का सारा सामाजिक समीकरण बदल गया है ऐसे में अब दलित पिछड़ा और सवर्ण का वो गणित नहीं रहा जिसकी चर्चा फिल्मों और किताबों में कि जाती रही है।
इस पोस्ट के साथ दूसरा संवाद भी टैक है वो संवाद है जीतनराम मांझी के बयान को लेकर ब्राह्मणजाति के युवा क्या सोचते हैं और इसको लेकर शिवानंद तिवारी के साथ जो बहस हुई है जरा आप भी सुनिए बहुत ही रोचक है मुझे लगता है कि ये संवाद आज के बिहार को समझने के लिए काफी है क्यों कि शिवानंद तिवारी उस जातीय राजनीति के साथ रहे हैं जो राजनीति सीधे सीधे ‘ब्राह्मणवादी मानसिकता को चुनौती दिया है शिवानंद तिवारी उस युवक को उसी अंदाज में समझा रहे हैं जिस अंदाज में समाजवादी सोच के लोग कर्पूरी ठाकुर और जेपी के जमाने में समझाते थे ये आपकी जिम्मेवारी है दलितों के प्रति समाज का जो नजरिया है उसको बदलने के लिए आगे आइए ।

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