पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर पटना में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था उस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में मुझे भी आमंत्रित किया गया था।हमारे सामने पूरे देश से आये 40 से अधिक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता बैठे हुए थे जो सामाजिक सरोकार से जुड़े सर्वश्रेष्ठ कार्यों के लिए जाने जाते हैं, इसमें गोवा और मुंबई पुलिस का वह सिपाही भी मौजूद था जो अनाथ बच्चों के बीच काम करने की वजह से उन्हें लोग गांधी कहते हैं।अपनी बात रखने से पहले मैंने इनसे ही सवाल किया कि मीडिया से आप क्या चाहते हैं और मुझे मुख्य वक्ता के रूप में क्यों बुलाया गया है सभी एकमत थे कि सामाजिक कार्यों से जुड़े मसलों पर मुख्यधारा की मीडिया से अब पहले जैसे खबर को लेकर सहयोग नहीं करती है वही भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों पर भी पहले जैसी गर्मजोशी नहीं देखने को मिलता है जिस वजह से लड़ाई मुकाम तक नहीं पहुंच पा रही है सरकार और सिस्टम बेलगाम होता जा रहा है सोशल मीडिया शुरुआती दौर में काफी प्रभावी था लेकिन उसका भी धार अब कमजोर पड़ता जा रहा है इसकी क्या वजह है यह हम लोग जानना चाहते हैं ।
सवाल मौजू भी था और मुझसे ताल्लुक भी रखता है और सामने बैठा श्रोता सच सुनने को तैयार भी था ऐसे में दिल के अंदर जो चल रहा था वो सारी बातें जुबान पर आ गयी ।दोस्तों पहली बात मीडिया अब आपका दोस्त नहीं रहा और जब से केजरीवाल राजनीति में आये हैं मुख्यधारा की राजनीति करने वाली पार्टियां आपको संदेह की दृष्टि से देखने लगा है, कही ये भी सामाजिक काम करते करते राजनीति में तो नहीं आ जायेगा मतलब आपके सामने अब दोहरी चुनौती है मीडिया साथ नहीं है और राजनीति करने वाले अब आपको अपना प्रतिभागी समझने लगा है ऐसे में आपके सामने पहले से कही चुनौती बढ़ गयी है वही अच्छे कार्य करने वाले को वहां से संरक्षण मिलता था कोर्ट आज कल इनकी स्थिति क्या है देख ही रहे हैं।
बिहार के मुजफ्फरपुर में शेल्टर होम में लड़कियों के साथ यौन शोषण होता है यह खबर मैंने ब्रेक किया देश भर में हंगामा खड़ा हो गया पटना हाईकोर्ट ने क्या किया मुजफ्फरपुर शेल्टर होम से जुड़ी खबरें चलाने और लिखने पर ही रोक लगा दिया ये स्थिति है ।
बात पत्रकारिता कि करे तो पहले जो पत्रकार सत्ता और सिस्टम से सवाल करता था तो लोग उन्हें पत्रकार कहते थे लेकिन आज ऐसे पत्रकार को क्या कहते हैं देशद्रोही ,पाकिस्तान परस्त इससे भी बात नहीं बनी तो कह देते हैं प्रधानमंत्री से ये लोग नफरत करते हैं जो पहले कभी नहीं होता है सरकार और सत्ता के कामकाज पर जब मीडिया सवाल उठाता था तो लोग सूनते है मीडिया से जुड़े लोगों को उत्साहित करते थे लेकिन आज बिहार में मुझे बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर व्यंग्य करते हुए लिखते हैं ये जनाव रवीश कुमार बनना चाहता है ये जनाब बिहार के रवीश कुमार हैं बात यही तक रहता है जब सत्ता से थोड़ी कड़वे अंदाज में सवाल करते हैं तो गाली की भाषा में उतर जाते हैं ।
ये चरित्र पहले नहीं था और ऐसा भी नहीं है कि 2014 से पहले सोशल मीडिया नहीं था लेकिन कभी भी सत्ता से सवाल करने वाले पत्रकारों से इस तरह का सवाल नहीं होता था। नुकसान किसका हो रहा है सत्ता और सिस्टम तो यही चाहता था ना कि मीडिया को समाज में डिस क्रेडिट कर दीजिए और उसमें वो कामयाब हो गया इसलिए अब समाज या फिर आप जैसे सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगों को मीडिया से सत्ता और सरकार से सवाल करने की उम्मीद छोड़ दीजिए क्यों कि मीडिया को डिस क्रेडिट करने में आप भी शामिल है और जनता भी शामिल है ।
ये तो हमारी बात हुई दो दिन पहले भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एन वी रमण (NV Ramana) ने कहा कि मीडिया को अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है. रक्षकों की भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं की सामूहिक विफलताओं को मीडिया द्वारा उजागर करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि लोगों को इस प्रक्रिया में कमियों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है और यह एक ऐसा काम है जो केवल मीडिया ही कर सकता है. एक पत्रकार के तौर पर अपनी पहली नौकरी करने वाले प्रधान न्यायाधीश ने वर्तमान मीडिया पर अपने विचार साझा किए और कहा कि खोजी पत्रकारिता की अवधारणा दुर्भाग्य से मीडिया के कैनवास (परिदृश्य) से गायब हो रही है.प्रधान न्यायाधीश ने कहा, यह कम से कम भारतीय संदर्भ में सच है. जब हम बड़े हो रहे थे तो बड़े-बड़े घोटालों को उजागर करने वाले समाचार पत्रों का बेसब्री से इंतजार करते थे. समाचार पत्रों ने हमें कभी निराश नहीं किया. अतीत में, हमने घोटालों और कदाचार के बारे में समाचार पत्रों की रिपोर्ट देखी हैं जिनके गंभीर परिणाम सामने आए हैं. एक या दो को छोड़कर, मुझे हाल के वर्षों में इतनी महत्ता की कोई खबर याद नहीं है हमारे बगीचे में सब कुछ गुलाबी प्रतीत होता है।सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की चिंता स्वाभाविक है लेकिन मेरी चिंता ये नहीं है कि हो क्या रहा है मेरी चिंता यह है कि जिस दिन सत्ता दूसरी पार्टी के हाथों में गयी उस दिन पत्रकारिता का क्या होगा कौन खड़ा होगा मशाल लेके यह सोच कर मैं घबरा रहा हूं ।