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सुशासन का सच

मोतिहारी से एक फोन आया सर जय भीभ फिल्म देखे, मैंने कहां नहीं अरे सर जरुर देखिए आपको बहुत पसंद आयेगा आपके मिजाज से बहुत मेल खाता है। ऑफिस से लौटने के बाद फिल्म देखना शुरु किये पता नहीं क्यों यह फिल्म मुझे उत्साहित नहीं कर पाया ,बार बार मेरे जेहन में एक ही सवाल उठ रहा था कि जिस अत्याचार को लेकर फिल्म बनी है आज उस तरह के अत्याचार को लेकर मीडिया ,कोर्ट और पुलिस महकमे में कही से भी न्याय के साथ खड़े होने की एक छोटी सी भी किरण दिखायी दे रही है ।

मुझे तो नहीं दिखायी दे रही है तो फिर इस तरह के फिल्म का मतलब क्या है , अंबेडकर का जयकारा लगाइए और अपना पीठ आप खुद थपथपाइए ।क्यों कि ये जो सुशासन की सरकार है ना एक एक करके उन तमाम सिविल राइट्स के लिए लड़ने वाले और संरक्षण देने वाली संस्थान को खत्म कर दिया जिसके सहारे आप इस तरह की जुल्म के खिलाफ आवाज उठा सकते थे ।

शुरुआत मीडिया पर नियंत्रण से हुई और जैसे ही मीडिया का जुबान बंद करने में सुशासन की सरकार कामयाब हो गयी ,फिर सामाजिक बदलाव और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वालो की जुबान बंद करने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाये जाने लगे और अंत में जिस पर भरोसा था कि ऐसे जुल्म करने वालों पर कारवाई कर कोर्ट लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने का काम करेगा उसका हाल तो और बुरा हो गया है ।

किसके भरोसे इस तरह की लड़ाई लड़ी जाए जनता ना बाबा ना ऐसा समझदार तो कोई है ही नहीं । फिल्म जय भीम में पुलिस के जिस तरह के जुल्म को देख कर आप आक्रोशित है वैसा जुल्म आज पुलिस नहीं कर रही ऐसा नहीं है फिल्म में जो दिखाया गया है उससे भी बड़ी बड़ी जुल्म पुलिस आज भी कर रही है ।कल की ही बात ले लीजिए घटना मेरे रोसड़ा से जुड़ा हुआ है कई माह से वेतन नहीं मिलने के कारण नगर परिषद के सफाई कर्मचारी आक्रोशित हो गये और कार्यपालक पदाधिकारी पर हाथ चला दिया।

पदाधिकारी पर हाथ चला देने की खबर जैसे ही सामने आयी सवाल सिस्टम के पुरुषार्थ से जुड़ गया और देखते देखते डीएम से लेकर एसपी तक की भौहें तन गयी और फिर क्या था बेचारा दलित सफाई कर्मचारी पर वो तमाम धाराएं लगी दी गयी जिससे उस दलित कर्मचारी को जल्द जमानत नहीं मिले। किसी ने यह सवाल उस कार्यपालक पदाधिकारी से नहीं किया कि पर्व का समय है चार माह से इन सफाई कर्मचारियों को वेतन क्यों नहीं मिल रहा है।

बस इतने से सकून नहीं मिला पुलिस शहर के शराब माफिया के साथ उस सफाई कर्मचारी के घर पहुंचा और उसे पीटते हुए थाना लाया ताकि आगे कोई साहस नहीं कर सके, पुलिस इतनी पिटाई किया गया कि कल उसकी पीएमसीएच में इलाज के दौरान मौत हो गयी उससे पहले सफाई कर्मचारी की पिटाई को लेकर स्थानीय लोग इतने गुस्से में आ गये कि थाना पर हमला बोल दिया रोसड़ा मेरा घर है और मैं पटना में पत्रकार हूं स्वाभाविक है रोसड़ा से फोन आने लगा मामला बिगड़ रहा है जरा उपर बोलिए और सफाई कर्मचारी का बेहतर इलाज हो इसकी कोई व्यवस्था करा दीजिए ।

मैं पुलिस मुख्यालय के एक सीनियर अधिकारी को फोन किया थोड़ी देर में एसपी पहुंचा और हंगामा कर रही महिलाओं से बात करने के बजाय पिटवाना शुरू करवा दिया पुलिस थाना पर हमला करने के मामले में एक दर्जन से अधिक महिलाओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया ,कई पत्रकारों को भी अभियुक्त बनाया गया उन पर आरोप है कि ये लोग भीड़ को भड़का रहे थे ।

कल रोसड़ा से ही फोन आया सफाई कर्मचारी की मौत हो गयी है और उसके बेटे के साथ पुलिस मारपीट करके पीएमसीएच में कुछ लिखवाना चाह रही है मैं अपने रिपोर्टर को तुरंत पीएमसीएच भेजा आजकल पीएमसीएच में एक अलग खेला शुरु है कैमरा लेकर आप अस्पताल परिसर में भी नहीं जा सकते हैं खैर उसके बेटे से मेरा टीम मिला पूरी खबर बनाये और फिर पुलिस मुख्यालय से आग्रह किया कि उस सफाई कर्मचारी का मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवा दीजिए और उसके बेटे के साथ जो रोसड़ा पुलिस व्यवहार कर रही है ये सही नहीं है। खैर प्रक्रिया शुरु हो गयी है लेकिन मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं कि इस सिस्टम में उस दलित को न्याय मिलने कि बात करना भी बेमानी है ।

रोसड़ा का विधायक दलित है सांसद भी दलित है रोसड़ा से जिसका भी फोन आया मैंने यही कहां सांसद और विधायक से बात करिए विधायक बीजेपी से हैं और सांसद पारस गुट लोजपा से हैं सरकार के खासमखास है वही से कुछ हो सकता है सोचिए एक पत्रकार जो खुद खबर के सहारे सिस्टम का ईट से ईट बजा सकता है वह आज विधायक और सांसद से बात करने की सलाह दे रहा है क्यों जरा आप भी सोचिए। इस तरह की घटना कोई नयी बात नहीं है पूरे बिहार में रोजाना इस तरह की घटनाए घट रही है लेकिन जिसे आवाज उठानी चाहिए थी जी है मीडिया उसकी जुबान बंद कर दी गयी है तो फिर इस तरह के जुल्म की खबर आप तक पहुंचेगी कैसे याद करिए मीडिया खबर चला रही थी

तब तो आप शहाबुद्दीन से लड़ने वाले चंदा बाबू को जान रहे हैं लेकिन आज चंदा बाबू से भी बड़ी लड़ाई लड़ने वाला मोतिहारी का आरटीआई कार्यकर्ता बिपिन अग्रवाल की सरेआम हत्या कर दी जाती है उसकी पत्नी पुलिस के रवैये से तंग आकर आत्महत्या का प्रयास करती है बाप अन्न त्याग दिया है लेकिन सिस्टम को कोई मतलब नहीं है क्यों कि हत्यारो का रिश्ता सत्ता रुढ़ दल से जुड़ा है जंगलराज में क्या यह सम्भव था पुलिस कारवाई नहीं करती तो रोजोना अखबार में लीड खबर छपती आज क्या हो रहा है ,इसी तरह मुजफ्फरपुर के एक आरटीआई कार्यकर्ता दो वर्ष से जेल में इसलिए है कि वो सूबे के पूर्व डीजीपी के खिलाफ आवाज उठाता रहता था मामला जो भी हो लेकिन जिस तरीके से जेल में रहते हुए

उस आरटीआई कार्यकर्ता में पांच मुकदमा जेल से फो कर के रंगदारी मांगने और हत्या की साजिश रचने का मुकदमा दर्ज किया गया ये तो नाइंसाफी है कही किसी कोनो से कोई आवाज सुनाई दी है नहीं ना मुझे पता है पोस्ट जैसे ही पब्लिक होगा मेरे फोन की घंटी बजने लगेंगी क्यों ऐसा लिख दिए। ये स्थिति है आप जुल्म के खिलाफ खबर नहीं लिख सकते हैं आवाज उठानी तो बड़ी बात है आज की तारीख में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि बिना पैसा लिए थाने और प्रखंड मुख्यालय में एक काम नहीं हो सकता है मोबाइल खोने का सनहा भी करने जाएगा ना तो पांच सौ रुपया देना पड़ता है यही सुशासन है।

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