सम्राट अशोक को लेकर जारी सियासी घमासान थमने का नाम नहीं है आज जदयू ने एक बार फिर दया प्रकाश सिन्हा पर हमला करते हुए सरकार से साहित्य अकादमी वापस लेने की मांग की है।
जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि सम्राट अशोक के संदर्भ में उपजे तथाकथित विवाद का राजनैतिक संदर्भ से महत्वपूर्ण वैचारिक संदर्भ है ।
विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह व भारतीयों के आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ मसला है ।
पुस्तक के लेखक ने इतिहास को मिथक और मिथक को इतिहास बनाने की जो साजिश की है, उसके बचाव में आना विचारधारा की लड़ाई का अंग हो सकता है लेकिन राजनैतिक गठबंधन का नहीं ।
सम्राट अशोक पर आधारित नाट्य के भूमिका को पृष्ठ संख्या- 25 में ‘‘कामाशोक, चंडाशोक और धम्माशोक एक के बाद एक नहीं आये । वे तीनों, उसके शरीर में एक साथ, लगातार, जीवनपर्यन्त जीवित रहे । वह कामाशोक केवल नवायु में ही नहीं था । देवी के बाद उसके अन्त:पुर में पांच सौ स्त्रियाँ, फिर उसकी घोषित पत्नियाँ-असंधमित्ता, पद्मावती और कारुवाकी ! फिर वृद्धावस्था में तिष्यरक्षिता ! वह आजीवन काम से मुक्ति नहीं पा सका’’ (संदर्भ ‘सम्राट अशोक’ )
साथ ही साथ नाट्य के दृश्य-10 ‘अशोक-तिष्यरक्षित’ संदर्भ में जिसरूप में पेश किया गया है, वह किसी रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है । (संदर्भ ‘सम्राट अशोक’)
ऐसे लिखने वाले को सम्राट अशोक के नाम पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार 2021’ दिया जाना ही सम्राट अशोक के प्रति अपमान एवं तिरस्कार का भाव दिखाता है ।
राजनैतिक बयान से महत्वूपर्ण यह है कि जिस लेखक ने सम्राट अशोक की गरिमा पर अपने नाट्क के माध्यम से अपमान किया है उस व्यक्ति से विभिन्न अवार्ड वापसी मुहिम में साथ दें ।
हालांकि कल बीजेपी के पूर्व उप मुख्यमंत्री ट्टीट करके सम्राट अशोक को लेकर जारी सियासत को बंद करने का आग्रह किया था और एनडीए के घटक दलों से बयानबाजी बंद करने को कहा था उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक पर आधारित उस पुरस्कृत नाटक में उनकी महानता की चर्चा भरी पड़ी है, औरंगजेब का कहीं जिक्र तक नहीं, लेकिन दुर्भाग्यवश, इस मुद्दे को तूल दिया जा रहा है। 86 वर्षीय लेखक दया प्रकाश सिन्हा 2010 से किसी राजनीतिक दल में नहीं हैं।उनके एक इंटरव्यू को गलत ढंग से प्रचारित कर एनडीए को तोड़ने की कोशिश की गई।
दया प्रकाश सिन्हा ने एक हिंदी दैनिक से ताजा इंटरव्यू मेंं जब सम्राट अशोक के प्रति आदर भाव प्रकट करते हुए सारी स्थिति स्पष्ट कर दी, तब एनडीए के दलों को इस विषय का यहीं पटाक्षेप कर परस्पर बयानबाजी बंद करनी चाहिए।
दया प्रकाश सिन्हा के गंभीर नाट्य लेखन और सम्राट अशोक की महानता को नई दृष्टि से प्रस्तुत करने के लिए उन्हें साहित्य अकादमी जैसी स्वायत्त संस्था ने पुरस्कृत किया। यही अकादमी दिनकर, अज्ञेय तक को पुरस्कृत कर चुकी है। साहित्य अकादमी के निर्णय को किसी सरकार से जोड़ कर देखना उचित नहीं।
सम्राट अशोक का भाजपा सदा सम्मान करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया था। 2015 में भाजपा ने बिहार में पहली बार सम्राट अशोक की 2320 वीं जयंती बड़े स्तर पर मनायी और हमारी पहल पर बिहार सरकार ने अप्रैल में उनकी जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की।
हम अहिंसा और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक सम्राट अशोक की कोई भी तुलना मंदिरों को तोड़ने और लूटने वाले औरंगजेब से कभी नहीं कर सकते।
अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकार किया, लेकिन उनके राज्य में जबरन धर्मान्तरण की एक भी घटना नहीं हुई।
वे दूसरे धर्मों का सम्मान करने वाले उदार सम्राट थे, इसलिए अशोक स्तम्भ आज भी हमारा राष्ट्रीय गौरव प्रतीक है।
सुशील मोदी के सफाई के बावजूद आज जदयू ने बयान जारी कर नया सियासी बवाल खड़ा कर दिया है ।