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नीतीश हारी हुई बाजी को पलटने के माहिर खेलाड़ी रहे हैं

नीतीश हारी हुई बाजी को पलटने के माहिर खेलाड़ी रहे हैं।
बिहार विधानसभा भवन के शताब्दी समारोह के दौरान नीतीश कुमार का बर्डी लेंगुएज (Bird Language)
देख कर हमलोग हैरान थे पहली बार नीतीश कुमार ऐसे बैठे थे मानो इस कार्यक्रम से उनका कोई वास्ता ही ना हो। नीतीश कुमार के चेहरे का वह तेज नहीं दिख रहा था जो उनकी पहचान रही है ।

नीतीश जब भी मंच रहते हैं हमेशा टाइट बैठते हैं लेकिन उस दिन एकदन ढ़ीला ढ़ीला कुर्सी पर पसर कर बैठे हुए थे अमूमन कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार मंच से उतरते नहीं हैं लेकिन उस दिन दो दो बार मंच से उतर कर बाथरुम गये ऐसा लग रहा था जैसे वो कोरम पूरा करने के लिए मंच पर आ गये हैं।

नीतीश कुमार के बर्डी लेंगुएज को लेकर हमलोग हैरान थे मेरे साथ ही बिहार के एक सीनियर पत्रकार बैठे थे वो भी नीतीश के बर्डी लेंगुएज देख कर हैरान थे ,संतोष देख रहे हो नीतीश अब बूढ़ा लगने लगा है, वो तेज खत्म हो गया बात चल ही रही थी कि नीतीश भाषण के लिए डेस पर पहुंच गये पहली बार भाषण में भी वो प्रभाव नहीं दिख रहा था ।

ये बात हो रही थी कि हद तो तब हो गयी जब बिहार विधानसभा से जुड़े पूर्व के कार्यक्रम की चर्चा करते हुए अरुण जेटली का नाम ही वो भूल गये पहले वो अरुण कुमार बोले फिर अरुण पटेल बोले फिर बोले नहीं नहीं हम बात कर रहे हैं अरुण जेटली जी का । हमलोग आपस में बात करने लगे लगता है जार्ज और वाजपेयी जी की तरह ये भी अलजाइमर के शिकार तो नहीं हो रहे हैं।

बात आयी चली गयी लेकिन कल एक खबर दिल्ली से ब्रेक हुई नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के प्रत्याशी हो सकते हैं बीजेपी से उनका रिश्ता लगातार बिगड़ रहा है और वो कभी भी बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं ।

खबर इंडियन एक्सप्रेस के gossip column में छपी थी और वही से इस खबर को एवीपी न्यूज उठाया है, समझ में नहीं आ रहा था कि इस खबर का इस समय क्या महत्व है 10 मार्च तक का इन्तजार किया जा सकता था क्यों कि विपक्ष का राष्ट्रपति तभी बन सकता है जब यूपी ने बीजेपी की सरकार नहीं बनेगी।

वैसे राजनीति में gossip में भी कही गयी बात के पीछे कुछ ना कुछ संदेश जरुर छुपा रहता है इसी संदेश तक पहुंचने के लिए पटना , लखनऊ से दिल्ली तक राजनीति की समझ रखने वाले लोगों से मैं लगातार बात कर रहा हूं ।

दिल्ली में अधिकांश पत्रकारोंं का मानना है कि इंडियन एक्सप्रेस gossip column की writer Coomi Kapoor है जो बीजेपी का प्रवक्ता मानी जाती है यह खबर कहीं ना कहीं बीजेपी के द्वारा ही प्लांट करवाया गया है।

लम्बी बहस हुई इस खबर से बीजेपी को क्या फायदा है चुनाव बिहार में तो है नहीं विचार विर्मश के दौरान इस बात पर सहमति बनी कि मसला यूपी चुनाव है क्यों कि फेज 4 से लेकर फेज 7 वाले इलाके में जहां अब चुनाव होने वाला है उस इलाके में कुर्मी का वोट अच्छा खासा है और यूपी में पिछड़ी जाति की बात करे तो कुर्मी ही है जो अभी बीजेपी के साथ खड़ी दिख रही है ।फिर सवाल हुआ नीतीश को लेकर यूपी का कुर्मी क्यों प्रभावित होगा मैंने कहना जैसे वीपी सिंह के समय बिहार में पहली बार कांग्रेस राजपूत को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन 1989 के लोकसभा चुनाव में राजपूत कांग्रेस को वोट नहीं किया।

राष्ट्रपति पद पर कोई कुर्मी बैठ सकता है यह कुर्मी के स्वाभिमान से जुड़ा है मसला है और यूपी में जिसकी सरकार बनेगी वो राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करेगा यह सर्वविदित है। ऐसे में यह कार्ड एक रणनीति के तहत खेला गया है ऐसा लग रहा है क्यों कि यूपी का चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं है यह साफ दिखने लगा है ऐसे में कुर्मी भी साथ छोड़ दिया तो बीजेपी का हाल बहुत बूरा हो सकता है ।

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