हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी यूपी चुनाव के सहारे ही सही परिवारवाद पर बड़ा हमला बोला है और कहा कि राजनीति में परिवारवाद एक बड़ा खतरा है और यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है। इससे राजनीति में आने वाली प्रतिभा को गंभीर रूप से समझौता करना पड़ता है।
पीएम मोदी राम मनहोर लोहिया और जार्ज फर्नांडीस के नाम की चर्चा करते हुए कहा था कि क्या उन्होंने कभी अपने परिवारों पर कभी जोर नहीं दिया और इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को समाजवादी नेता कहा ।
कल नीतीश कुमार जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। इसी दौरान पत्रकारों ने समाजवाद को लेकर पीएम मोदी की टिप्पणी पर सवाल किया इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी तो कृपा है कि उन्होंने यह बात बोल दी।
हम सब लोग लोहिया जी के ही शिष्य हैं। समाजवाद का निर्माण उन्होंने ही किया और उसे चलाया। हमलोग छात्र जीवन से समाजवाद में हैं। समाजवाद से उसी समय से प्रभावित हैं। राजनीति में परिवारवाद से समाजवाद को खतरा उत्पन्न हो गया है आगे सीएम ने कहा कि कुछ लोगों को समाजवाद से मतलब नहीं है, परिवारवाद से मतलब है और इसका असर समाजवादी विचारधारा पर पड़ रहा है ।
बात बिहार की करे तो लोहियावाद के सहारे लालू और नीतीश कुमार 30 वर्षो से बिहार में शासन कर रहे हैं ।बात लालू के 15 वर्षो के शासन काल की करे तो साधु और सुभाष के कारण सरकार की छवि को जितना नुकसान नहीं पहुंचा उससे कही अधिक नुकसान यादववाद और मुस्लिम तुष्टीकरण से हुआ और इसका असर राज्य के विकास और कानून व्यवस्था पर पड़ा और उसका खामियाजा आज भी लालू परिवार को उठाना पड़ रहा है।2021 के विधानसभा चुनाव में सत्ता के करीब आते आते लालू परिवार इसलिए फिसल गया कि अंतिम चरण में जंगल राज को इस तरह से याद दिलाया गया कि नीतीश कुमार के कुशासन को लोग भूल गये।
यूपी में भी अखिलेश के सत्ता में वापसी को लेकर जो संशय दिख रहा है उसकी वजह भी मुलायम और अखिलेश के शासनकाल का यादववाद और मुस्लिम तुष्टीकरण है जिसके कारण राज्य का कानून व्यवस्था बेपटरी हुआ और इसी को साधने के लिए मोदी कानून व्यवस्था और परिवारवाद के सहारे अखिलेश पर हमला बोल रहे हैं ।
वही बात नीतीश के शासनकाल की करे तो भले ही नीतीश के परिवार के लोग शासन व्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिख रहा है, लेकिन याद करिए 2005 से हाल के दिनों तक पटना का डीएम कुर्मी ही होता था, देश स्तर पर अलग अलग राज्यों में जितने भी कुर्मी अधिकारी थे वो बिहार बुलाया गया और उन्हें अच्छी पोस्टिंग दी गयी ।
इसी तरह नीतीश के शासनकाल में जीतनी भी बहाली हुई आकड़ा बताता है कि नालंदा का प्रतिनिधुत्व हर बहाली में राज्य के अन्य जिलों की तुलना में ज्यादा रहा है इसी तरह नीतीश कुमार के 15 वर्षो के शासन काल में राज्य सरकार में जितने भी महत्वपूर्ण पद हैं वहां कुर्मी का प्रमुखता दी गयी है ।इतना ही नहीं हर सवर्ग में कुर्मी अधिकारियों को प्राइम पोस्टिंग मिली है किसी भी जिले में चले जाये अगर कुर्मी दरोगा या इंस्पेक्टर है देख लीजिए उसकी पोस्टिंग कहां है।
ये अलग बात है कि कुर्मी अधिकारी यादव अधिकारी की तरह बदमिजाज नहीं है बल्कि मिजाज से सरल और सहज हैं इसलिए नीतीश कुमार के जाति आधारित पोस्टिंग को लेकर ज्यादा उबाल नहीं है लेकिन इसका असर गवर्नेंस पर जरुर पड़ा है और नीतीश कुमार के सुशासन के दावे अब हस्यास्पद लगने लगा है।
याद करिए 28 अगस्त 2021 की सुबह मुजफ्फरपुर-पटना मार्ग एनएच-77 पर कुढऩी थाना के फकुली ओपी के निकट वाहन जांच के दौरान ग्रामीण कार्य विभाग, दरभंगा के तत्कालीन प्रभारी अधीक्षण अभियंता (कार्यपालक अभियंता) अनिल कुमार के पास के 67 लाख रुपया बरामद हुआ था सत्ता की हनक देखिए थाने से ही उन्हें जमानत दे दी गयी।
पिछले विधानसभा सत्र के दौरान सत्ता पक्ष के विधायक ही सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस के वादे पर सवाल खड़े करते हुए जमकर हंगामा किया था फिर भी सरकारी तंत्र उसे बचाने में लगी रही लेकिन कल देर शाम मुजफ्फरपुर पुलिस अनिल कुमार को गिरफ्तार कर लिया। कहा ये जा रहा है कि 25 फरवरी से जो विधानसभा सत्र शुरु हो रहा है उसमें एक बार फिर यह मुद्दा उठने वाला था क्यों कि विधानसभा द्वारा जो जांच कमिटी बनायी गयी थी उसको विभाग सहयोग नहीं कर रही थी और इसको लेकर कमिटी के सदस्य काफी आक्रोशित थे ।
ये उदाहरण है वैसे भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश कुमार के जीरो टाँलरेंस के वादे की पड़ताल करेंगे तो 2005 से 2022 तक भ्रष्टाचार को लेकर निगरानी,आर्थिक अपराध इकाई और विशेष निगरानी विभाग के अधिकारियों पर जो कार्रवाई हुई है उसकी सूची पर गौर करेंगे तो उसमें सबसे कम कुर्मी जाति से आते हैं।
आसीपी सिंह क्या है नीतीश की पार्टी में नम्बर दो की हैसियत रखते हैं और आज डीएम एसपी से लेकर डीएसपी और एसडीओ की पोसिंटग में पैसे उगाही का जो आरोप लगता है निशाने में आरसीपी सिंह है और इससे नीतीश की छवि धुमिल हुई ।चर्या सरेआम है गया के पूर्व डीएम अभिषेक सिंह पर आरसीपी का हाथ था और जब एक्शन की बात आयी तो रातो रात उसे त्रिपुरा विरमित करवा दिया ।
इसलिए लोहिया का समाजवाद परिवाद के कारण संकट में नहीं है जातिवाद के कारण संकट में है ।
लोहिया सर्वण थे कोई पिछड़ी जाति से नहीं आते थे मात्र 23 साल की उम्र में जर्मनी से पीएचडी करने के बाद वे आज़ादी की जंग में कूद गये थे। 60 के दशक में लोहिया ने कांग्रेस और ‘हिंदुस्तानी वामपंथ’ के ब्राह्मणवादी चरित्र पर सवाल करते हुए पहली दफा पिछड़ों के आरक्षण की मांग करते हुए नारा दिया था ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ’ वो तो मिल गया लेकिन इसके पीछे जो लोहिया का विचार था वो विचार शासन में आते ही धीरे धीरे खत्म हो गया आज लोहिवाद पूरी तरह से जातिवाद में बदल गया है ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के शासनकाल में जातिवाद नहीं था कांग्रेस भी सत्ता और शासन में बने रहने के लिए जमकर जातिवाद किया।
बीजेपी में परिवारवाद नहीं है राजनाथ सिंह से लेकर बीजेपी के जिला स्तर तक पहुंच जाये ढ़ेर सारे ऐसे नेता मिल जायेंगे जो परिवारवाद की वजह से पार्टी में बने हुए हैं वजह परिवार नहीं है वजह जातिगत पहचान है जो परिवारवाद से ज्यादा मजबूत है और इससे राजनीति में आने वाली प्रतिभा को गंभीर रूप से समझौता करना पड़ रहा है।