नई दिल्ली: आरटीआई का समर्थन करने वाली एक राष्ट्रीय संस्था ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर मांग की है कि आरटीआई कार्यकर्ता बिपिन अग्रवाल की हत्या और उसके बाद उनके 14 वर्षीय बेटे की आत्महत्या के मामले में जांच के आदेश दिए जाएं.
‘नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टू इंफोर्मेशन’ (एनसीपीआरआई) ने 8 अप्रैल को भेजे पत्र में कहा है कि बिपिन अग्रवाल की सितंबर 2021 में दिन-दहाड़े हत्या की गई थी और हत्यारा अभी भी पुलिस के पकड़ से बाहर है ।
मोतीहारी के हरसिद्धि इलाके के 47 वर्षीय आरटीआई कार्यकर्ता बिपिन अग्रवाल की 2012 में 24 सितंबर को अज्ञात मोटरसाइकिल सवार हमलावरों ने सीओ के दफ्तर के सामवे गोली मारकर हत्या कर दी थी. अग्रवाल के परिवार ने हत्या के लिए बीजेपी के पूर्व जिला अध्यक्ष सहित स्थानीय भू-माफिया को जिम्मेदार ठहराते हुए हमलावरों का पता लगाने के लिए निष्पक्ष जांच की मांग की थी.
एनसीपीआरआई ने लिखा, उनकी हत्या के बाद परिवार न्याय के लिए संघर्ष कर रहा था और उनका बड़ा बेटा पुलिस हत्या में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करवाने के लिए प्रयासरत था.
पत्र में आगे लिखा गया है, पुलिस द्वारा मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी न किए जाने से क्षुब्ध होकर बिहार के पूर्वी चंपारण के मोतीहारी में बेटे ने आत्महत्या करके जान दे दी.
हालांकि, पत्र में बेटे का नाम लिखा है लेकिन द वायर नाम का उल्लेख नहीं कर रहा है क्योंकि वह नाबालिग था.
एनसीपीआरआई ने लिखा, ’24 मार्च 2022 को, (लड़के का नाम) के दादा द्वारा जारी वीडियो के अनुसार, (वह) मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एक ज्ञापन सौंपने पुलिस स्टेशन गया था और उसने कथित तौर पर वहां कई घंटों तक वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने की कोशिश में इंतजार किया.’
इसमें आगे कहा गया है कि लड़के के दादा के अनुसार पुलिस परिवार पर यह कहने के लिए दबाव बना रही थी कि उसने निजी कारणों के चलते आत्महत्या की है.
‘बिपिन की हत्या और उनके बेटे की मौत… व्हिसलब्लोअर और उनके परिवारों की रक्षा करने में राज्य मशीनरी की घोर विफलता की ओर इशारा करते हैं. पुलिस और प्रशासन की भूमिका की जांच करने की जरूरत है और सबसे पहले बिपिन अग्रवाल को बचाने और उनकी मृत्यु के बाद मुख्य आरोपी की समयबद्ध तरीके से जांच और मुकदमा चलाने में विफलता के लिए जवाबदेही तय करने की जरूरत है.
संस्था ने यह भी आरोप लगाया है कि राज्य (सरकार) ने न्याय की तलाश में भटकते परिवार की सहायता नहीं की.
संस्था ने पत्र में कहा है, ‘राज्य की उदासीनता का परिणाम (लड़के की) मौत के रूप में निकला. आरटीआई उपोगकर्ताओं पर हमले और उनकी हत्याओं की घटनाएं बिहार में बिना किसी भय के निरंतर जारी हैं.’
पत्र पर प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, निखिल डे, वेंकटेश नायक, पंक्ति जोग, डॉ. शेख, प्रदीप प्रधान, राकेश दुब्बुडू, आशीष रंजन, शैलेश गांधी, अमृता जौहरी, कात्यायनी चामराज, विपुल मुद्गल, भास्कर प्रभु, अजय जांगिड़, करुणा एम., चक्रधर, अभय जॉर्ज, रोली शिवहरे और अशोक कुमार के हस्ताक्षर हैं.
हस्ताक्षरकर्ताओं ने नीतीश कुमार से एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराने का आह्वान किया है.
उन्होंने कहा है कि पुलिस और अधिकारियों की भूमिका की ठीक से जांच की जानी चाहिए और परिवार को तुरंत उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए.
एनसीपीआरआई ने बिहार सरकार से राज्य स्तरीय व्हिसलब्लोअर्स सुरक्षा क़ानून अपनाकर व्हिसलब्लोअर को सुरक्षा प्रदान करने की भी मांग की है.
उसने कहा कि क्योंकि केंद्र सरकार 2014 में संसद द्वारा पारित व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट को लागू करने में विफल रही है और अब तक क़ानून के तहत नियमों का ऐलान नहीं किया है, इसलिए जरूरी है कि राज्य सरकार पहल करे।