मैं रोसड़ा का रहने वाला हूं मेरा मोहल्ला नागपुर का रेशिमबाग है मतलब संघ का दूसरा मुख्यालय हालांकि अब पहले वाली बात नहीं रही फिर भी संघ और भाजपा को लेकर वैसा ही जुनून है।
दो दिन पहले भाई की शादी में जाने का मौका मिला सबके सब वही थे दरबाजा लग गया था हम सब लोग वरमाला का इन्तजार कर रहे थे मेरे चारों ओर हाफ पेंट तभी हमारे मधु चाचा चिल्लाते हैं टुनटुन योगी तो कमाल कर दिया क्या हुआ लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगा दिया है ठीक बगल में दया चाचा बैठे हुए थे धीरे से बोलते हैं टूनटून योगा तो कमाल कर दिया मैंने कहा ठीक तो किया है लेकिन आप लोग जो रात के बारह बजने को है धमाल मचाये हुए हैं दो दो डीजे बज रहा है महफिल सजा है यहां गीत चल रहा है कानून बना है तो आप पर भी लागू होना चाहिए मुसलमान नहीं बजाये और आप नवाह करिए और 24 घंटे लोगों का जीना हराम किये रहिए ये कहां तक सही है इतना कहना था कि चचा जान फर्म में आ गये । खैर चचा जान मुझसे इतना प्यार करते हैं कि छोड़ो बेटा ये धोती कुर्ता तुम पर बहुत जच रहा है कभी टीवी पर भी इस ड्रेस में आओ बहुत अच्छा लगेगा ।
चाचा जी आपके पार्टी को मेरा चेहरा पसंद नहीं है,आपका पार्टी चाहता है कि मैं पत्रकारिता छोड़ दूं नहीं बेटा ऐसा क्या है तुम सही हो लड़ते रहना है हिम्मत नहीं हारना अरे ऐसा क्या है विचार अलग अलग नहीं हुआ तो फिर समाज मर जायेंगा लेकिन चचा जान हालात अब पहले जैसा नहीं रहा पत्रकारिता लोगो को पसंद नहीं है उन्हें बस तारीफ सुनना पसंद है चाचा जी आप लोग तो देश बटवारा के तीन चार वर्ष बाद ही पैदा लिए होंगे कहां आप लोगों को कभी हिन्दू मुसलमान करते हुए देखे बताइए।
भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय ना जाना कितने लोग बेघर हुए थे , कितने लोग मारे गये ,कितनी महिलाओं का अस्मत लूटा गया, कितने लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया ।धर्म के नाम पर देश को दो टुकड़े मे बटा गया ,गांधी की हत्या हुई हत्या के बाद पूरे देश में संघ से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी हुई बाबा दो वर्ष तक जेल में रहे।
संघ का शाखा लगता था जिसका नाम था अभिमन्यु शाखा नागपुर से संघ के जो भी बड़े पदाधिकारी बिहार आते थे उनका प्रवास यहां पहले से तय रहता था रज्जू भैया जो बाद में संघ के सरसंघचालक बने दो वर्ष तक मेरे यहां ही उनका रहना होता था फिर भी दादा जी का सबसे जिगरी दोस्त मुसलमान था वो किसी गांव का मुखिया था याद है ना वो अक्सर सुबह सुबह आते थे और घंटों दोनों दोस्त में बातचीत होती थी और साथ पहलवानी भी करते थे ।
चाचा जी जो संघ से सबसे तेज तर्रार स्वयंसेवक माने जाते थे 1983 -84 में जहां तक मुझे याद है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा कश्मीर के लाल चौक पर झंडा फहराने वालों में एक थे उनका सबसे अंतरंग मित्र मुसलमान है ,पहली बार इन्ही के घर सेवई खाने का मौका मिला था महताव चाचा की पत्नी से मिले तो पता ही नहीं चला ये अपनी नहीं है हां एक बात अटपटा लगा था चाची का मायके सड़क के उस पार आमने सामने ही था बार बार मैं यही सवाल कर रहा था ये कैसे हो सकता है।
याद करिए हर वर्ष दरवाजे पर दुर्गा जी का प्रतिमा आता था पूरे सम्मान के साथ रखा जाता था दादी और माँ दुर्गा जी का खोइछा भरती थी फिर जयकारा के साथ नदी की और चल जाता था, ठीक उसी तरह मोहर्रम मेंं मुस्लिम युवा नाचते गाते हथियार लहराते हुए दरवाजा पर आता था दादी या फिर माँ चावल और पैसा उसी श्रद्धा के साथ चढ़ाती थी ।रोसड़ा से पांच किलोमीटर दूर दरगाह पर हर वर्ष मेला लगता है कितनी बार सब भाई बहन कंधे पर बैठ कर गये होगे याद नही है आप भी मिल जाते थे।
प्रख्यात गांधीवादी बलदेव नारायण दादा जी के अच्छे मित्र थे और रोसड़ा में मुसहर को समाज में जगह मिले इस आंदोलन में दादा जी बलदेव नारायण जी के साथ खड़े थे जबकि उस इलाके के अधिकांश ब्राह्मणउनके खिलाफ थे बलदेव नारायण लाहौर में भगत सिंंह के साथ पढ़ते थे आजादी के आन्दोलन में बड़ी भूमिका रही है गांधी जी इन्हें दलितों में भी महादलित मुसहर जाति को पढ़ाने और समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए इन्हें रोसड़ा भेजे थे और रोसड़ा आने के बाद डाँ राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर मुसहर जाति के लिए इन्होंने स्कूल खोला ।
दादा जी संघ के होने के बावजूद पूरी तौर पर इनके साथ रहे जबकि वो उस समय संघ के बड़े चेहरे थे पूरा नागपुर रोसड़ा में ही बसता था फिर भी कभी भी गांधी और मुसलमान को लेकर नफरत नहीं देखा इतना ही नहीं उस समय के लोहियावादी और समाजवादी नेताओं का भी परिवार पर उतना ही अधिकार था। मेरी दादी भले ही कर्पूरी ठाकुर को गाली देती रहती थी फिर भी जब वो आते थे सबसे पहले करैला का रस निकाल कर देती थी शायद उनको शुगर की बीमारी थी । कर्पूरी ठाकुर मेरे बड़े दादा जी के ससुराल के रहने वाले थे इसलिए हम लोगों के परिवार से उनका साला जीजा वाला ही रिश्ता था। कहां हमारे दादा संघ के बड़े अधिकारी थे और जनसंघ के लिए पूरी तौर पर समर्पित थे ।जो सुनते हैं उस समय जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीया छाप होता था और बिहार में पहली बार जनसंघ जहां से चुनाव जीता 1972 में उसमें रोसड़ा विधानसभा भी था ।आपको लोगों को तो खुब याद होगा फिर भी सभी विचारधाराओं के लोगों के लिए दरवाजे खुले रहते थे ।
व्यक्तिगत रिश्ते इतने मधुर थे कि आप लोग जो गवाह रहे हैं सोच नहीं सकते हैं धर्म और जाति के नाम पर कभी विभेद देखा ही नहीं जबकि भारत से पाकिस्तान का अलग हुए 25 वर्ष हुए होंगे धर्म के नाम पर दंगा होने वाले राज्यों में बिहार सबसे आगे था फिर भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच आज जो दिख रहा है वो उस समय नहीं दिख रहा था ऐसा क्यों कभी सोचे हैं सोचिए हम लोग कहां जा रहे हैं यहां तो कभी भी मुसलमान और हिन्दू जैसा कभी नहीं रहा आज ऐसा क्या हुआ जो आप योगी के इस निर्णय से खुश हैं ।रोसड़ा में मुसलमान को आबादी तो ना के बराबर है हां तीन वर्ष पहले चैती दुर्गा पूजा में बवाल हुआ एक तरफा मस्जिद पर आप लोग तिरंगा फहराये मस्जिद में रखे धार्मिक ग्रंथ को जला दिये इतना गुस्सा किस बात का आज तक यहां हिंदू मुसलमान के नाम पर इससे पहले एक ईट भी नहीं चला था सोचिए कहां जा रहे हैं या फिर आजादी के बाद ऐसा क्या हुआ जो हमारे आपके दिल में इतना नफरत भर गया है ।
क्रमशः– – —