पटना हाईकोर्ट ने राज्य की चिकित्सा व्यवस्था पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाना राज्य सरकार का दायित्व है । निजी क्लीनिकों एवम अस्पतालों के जरिए सभी लोगों को बेहतर स्वास्थ सेवा मिले ,इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
साथ ही उन निजी अस्पतालों और क्लिनिको पर भी नियंत्रण हेतु ही राज्य में 2007 से ही क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट कानून लागू है।लेकिन इसे प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है।
कोर्ट के सामने ऐसे मामले आ रहे हैं, जिनमे अनाधिकृत डाक्टर, जिन्हे झोला छाप डॉक्टर भी कहा जाता है , द्वारा क्लिनिक चलाने की बात उजागर हो रही है ।
स्वाभाविक हैं कि राज्य के अंदर क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट कानून के अंतर्गत ऐसे अनधिकृत डाक्टरों पर कार्यवाही नही हो रही है ।
जस्टिस संदीप कुमार ने संतोष ठाकुर उर्फ देवेंद्र ठाकुर की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जिलावार गैरनिबंधित क्लीनिकों के आंकड़े तलब किये।साथ ही उन पर की गई कानूनी कार्यवाहियों का भी ब्यौरा कोर्ट ने माँगा।
अग्रिम जमानत के अर्जीदार बिहियां स्थित एक प्राइवेट क्लिनिक चलाते हैं । उन पर आरोप है कि उन्होंने झोला छाप डाक्टरों से एक महिला का ऑपरेशन करवाया, जिससे इस महिला मरीज की मौत हो गई ।
अपर लोक अभियोजक झारखंडी उपाध्याय ने कोर्ट से एक सप्ताह समय की मांग कि ताकि जिलावार विस्तृत आंकड़े कोर्ट मे पेश किए जा सके । इस मामले पर अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी ।