कानून बनाने की प्रक्रिया में पर बिना व्यापक विचार विमर्श किए कानून बनाने पर कानून में कमियां रह जाती है।भारत के चीफ जस्टिस पी बी रमना ने इस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बिहार में शराब बंदी कानून लागू करना इसका एक उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि पूरी तरह विचार नहीं कर कानून नहीं बनाने का नतीजा है कि पटना हाई कोर्ट लाखों के तादाद में मुकदमें सुनवाई के लिए लंबित हैं।
इस मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता योगेश चन्द्र वर्मा ने कहा कि कानून बनाने के पूर्व पूरा विचार विमर्श होना चाहिए,सम्बंधित समूह या व्यक्तियों से बात करना जरूरी होता हैं।लेकिन शराबबंदी कानून के मामलें में ऐसा नहीं करने के परिणाम सामने आ रहे हैं।
जहां शराबबंदी से सम्बंधित बड़ी तादाद में मुकदमें कोर्ट
सुनवाई के लिए लंबित हैं, वहीं एक जमानत याचिका की सुनवाई में काफी समय लग रहा हैं।
उन्होंने कहा कि अभी इस कानून पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हैं।जहां एक ओर सरकार को राजस्व की क्षति बड़े पैमाने पर हो रही है,वहीं गैरकानूनी रूप से शराब का कारोबार चल रहा हैं।
इस पर पुलिस को कानून व्यवस्था बनाए रखने की बुनियादी जिम्मेदारी की जगह शराबबंदी कानून को लागू करने में समय और शक्ति लग रही।उन्होंने कहा कि इसके आम आदमी को जागरूक बनाने की आवश्यकता हैं और साथ ही इसमें परिवार, समाज, मीडिया और सरकार की भूमिका अहम् होगी।