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साजिश के पीछे हिन्दू संगठन का हाथ तो नहीं है

पत्रकारिता कोई रॉकेट साइंस नहीं है सब कुछ समझदारी और अनुभव पर ही चलता है कभी कभी बड़ी भूल भी हो जाती है लेकिन आज की पत्रकारिता तो ऐजेंडे पर केन्द्रीत हो गयी हैं और अधिकांश राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल के संपादक अपने रिपोर्टर को रोजाना सुबह सुबह टास्क देते हैं कि हिन्दू और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने वाली खबर करके लाए और कुछ भी नहीं मिल रहा है तो ऐसे नेता से बात करे जो हिन्दू मुसलमान के मसले पर भड़काऊ बयान देता हो।

ऐसे में धीरे धीरे पत्रकारिता खत्म होती जा रही है ,वही अब जिला और प्रखंड स्तर पर पत्रकारिता करना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है वही जो लोग फिल्ड में है उनका दिमाग इस तरह से बदल गया है कि अब आपके पास अनुभव और समझदारी है तभी आप घटना की वजह के आस पास पहुंच सकते हैंं।

कल देर शाम से एक खबर आ रही है कि सीतामंढ़ी में निपुर शर्मा मामले में बहस के दौरान मुस्लिम युवक ने एक हिन्दू युवक को चाकू मार दिया है,हालांकि सीतामंढ़ी एसपी से बात हुई तो वो खबर का खंडन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि निपुरु शर्मा वाला मामला नहीं है नशेड़ी गैंग के बीच आपसी सर्घष का मामला है और इस मामले में नामजद दो आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।

पत्रकारिता का अनुभव और समझदारी यही कहता है कि मामला नशेड़ी गैंग के बीच का हो सकता है लेकिन तात्कालिक कारण निपुरु शर्मा होगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता है क्यों कि मुसलमानों के हिंसक स्वभाव से कभी इनकार नहीं किया जा सकता है। जैसे हिन्दूओं में भी कुछ खास जाति है जो विवाद होने पर मुसलमानों की तरह हिंसक तरीके से वारदात को अंजाम देता रहता है लेकिन इन जातियों से इतर अगर कोई दूसरे जाति से जुड़े लोगों द्वारा हिंसा करने कि खबर आती है तो बहुत सोच समझ कर खबर लिखना पड़ता है और बहुत तहकीकात करना पड़ता है।

इसी तरह हाल के दिनों में बिहार और यूपी में मंदिर में गाय का मांस फेकने, मस्जिद में सूउर का मांस फेके जाने की खबर इन दिनों लगातार आ रही है ऐसे में पत्रकारिता का अनुभव और समझदारी यही कहता है इसके पीछे जरुर गहरी साजिश है और बाद में सच सामने आ ही जाता है कि धार्मिक भावना भड़काने के लिए इस तरह की घटना को प्लान्ट किया गया था। अधिकांश मामलों में ये देखा गया है कि मुसलमान आमने सामने मरने मारने में भरोसा रखता है। लेकिन षड्यंत्र और साजिश करने वाली प्रवृति कई मौके पर हिन्दुओं में देख गया है इसलिए जहां कही से भी साजिश जैसी बात सामने आती है तो सबसे पहले हिन्दू संगठन पर ही ध्यान जाता है और अधिकांश मामले में पत्रकारिता का यह फर्मूला सही भी साबित हुआ है।

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इसी तरह कही से दंगा की कोई खबरआती है तो शुरुआती दौर में समझना मुश्किल होता है कि यह साजिश है या फिर अचानक भड़का है देर लगता है स्थिति को समझने में। इसी तरह दंगा लम्बा खींचता है और मुस्लिम आबादी पर हमला तेज होने की खबर आती है तो सबसे पहले पत्रकारिता का अनुभव और समझदारी यही कहता है पता करिए आस पास के इलाके में किस जाति के लोग रहते हैं और जैसे ही जाति के बारे में पता चलता है समझ में आने लगता है कि यह दंगा कहां जा कर खत्म होगा ।

इसी तरह उदयपुर की घटना हो या फिर लखनऊ की घटना हो जिस तरीके से मुसलमानों ने निर्ममता पूर्वक हत्या किया है ,कौन हैं ये लोग इनके जाति का चरित्र क्या रहा है जबतक आप इस दृष्टिकोण से चीजों को नहीं देखेगे बहुत कुछ समझ में नहीं आयेंगा ।

अभी भी ग्रामीण समाज में बहुत कुछ नहीं बदला है जिस जाति का जो चरित्र रहा है उससे अभी भी वो बाहर नहीं निकल पाये हैं इसलिए जाति आज भी एक ऐसा सत्य है जिसके सहारे आप बहुत कुछ समझ सकते हैं।लेकिन जब बड़े शहर में इस तरह की घटनायें घटित होती है तो समझना बहुत मुश्किल है क्यों कि वहां की आबादी मिली जुली होती लेकिन अगर दंगा लम्बा खीचा तो फिर वही जाति वाला फर्मूिला के सहारे ही समझा जा सकता है।

आज भी क्राइम रिपोर्टिंग और पुलिसिंग का यही पैमाना है और इसी आधार पर पुलिस भी कानून व्यवस्था और दंगा जैसे माहौल को नियंत्रित करता है।

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