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क्या यह सच है कि पंचायती राज व्यवस्था भ्रष्टाचार के विकेन्द्रीकरण का जरिया बनकर रह गया है

बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के लागू होने के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई तो उस वक्त मैं दरभंगा से ईटीवी के लिए काम कर रहा था ।मैं व्यक्तिगत रूप से काफी उत्साहित था चलो आने वाले समय में गांव वालो की सरकार होगी कुछ बेहतर होगा । ऐसे में जैसे ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई सारी खबरों को छोड़कर पंचायत चुनाव से जुड़ी खबर पर टूट पड़े गजब का जुनून सवार हो गया था एक दिन रात को पूर्व विधायक उमाधर सिंह का फोन आया संतोष जी कहां रहते हैं कुछ अता पता नहीं चल रहा है ,सर पंचायत चुनाव में लगे हुए हैं अरे कहा फस हुए हैं कुछ होने वाला है, कल भेट होगी कुछ जरुरी बात करनी है ।
तीन घंटे तक जबरदस्त बहस हुई वर्तमान पंचायती राज व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया पर बहस का सार यही रहा कि वो इस बात पर अड़े रहे कि पंचायती राज व्यवस्था भ्रष्टाचार के विकेन्द्रीकरण के लिए बनाया गया है और मैं अड़ा रहा कि गांव की अपनी सरकार होगी गांव वाले अपने नजरिये से गांव का विकास करेंगे स्कूल और अन्य व्यवस्थाओं पर उनकी पकड़ होगी व्यवस्थाओ में सुधार होगा।
लेकिन तीसरे चुनाव का जो परिणाम आया है उसे देखने के बाद तो ऐसा ही लग रहा जो स्वर्गीय उमाधर सिंह कह रहे थे , पंचायती राज व्यवस्था ने भ्रष्टाचार को गांव गांव तक पहुंचा दिया और अब पंचायत का चुनाव बदलाव के लिए नहीं हो रहा है पैसे के लिए हो रहा है ।बदलाव लाने वाले पचास सौ चेहरे जरुर जीत कर आये हैं लेकिन उनका उद्देश्य भी पंचायत या गांव की मजबूती को लेकर नहीं है ऐसे लोगों का अपना ही उद्देश्य है जिसमें गांव और गांव के लोग कही नहीं है उनकी नजर दिल्ली के उस लुटियन जोन पर है जहां गांव और गरीब की बात के सहारे अपना स्थान बना सके खैर अब विषय वस्तु पर आते हैं 2021 का पंचायत चुनाव का परिणाम की हकीकत क्या है

1—70 फीसदी पुराने चेहरे इस बार चुनाव हार गये
2021 के पंचायत चुनाव का जो परिणाम आया है उसमें मुखिया और वार्ड पार्षद के 80 से 90 प्रतिशत पुराने चेहरे को जनता ने नकार दिया है वही बाकी पदों पर थोड़ी स्थिति बेहतर है । इसके पीछे दो तरह के तर्क सामने आ रहे हैं पहला तर्क है इस बार राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल किया और साथ ही वोकस वोटिंग ना हो इसके लिए बायोमेट्रिक व्यवस्था की गयी जहां आपके थम्म मिलने के बाद ही वोटिंग कर सकते थे।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि राज्य निर्वाचन आयोग के इस व्यवस्था से चुनाव में धांधली नहीं के बराबर हुई है और यही वजह है कि इस बार के चुनाव में अभी तक धांधली के सबसे कम शिकायत आयोग के पास आया है ।
वही दूसरा तर्क यह है कि हर घर जल नल योजना में जिस तरह से गांव गांव में लूट मचा था, उसी का असर रहा कि मुखिया और वार्ड सदस्य बड़ी संख्या में चुनाव हार गये मतलब सरकार के गलत नीति का खामियाजा वोट का चोट के रुप में मुखिया और वार्ड पार्षद को झेलना पड़ा लेकिन जो लोग जीत कर आये हैं वह इन दोनों तर्क को सवालों के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया है।

2—चुनाव जीतने वालों में शराब माफिया,ठेकेदार,बाहुबली और धनकुबेर की संख्या 50 प्रतिशत के करीब है

इस बार के पंचायत चुनाव में बड़ी संख्या में ऐसे लोग चुनाव लड़ने बिहार आये जिनका बिहार से बाहर अच्छा खासा बिजनेस और व्यापार था या फिर बड़े कॉरपोरेट हाउस में उच्च पदों पर काम कर रहे थे इसका असर यह हुआ कि अधिकांश पंचायत में मुखिया उम्मीदवार 20 से 25 लाख रुपया तक खर्च किये इतना ही नहीं इस बार वार्ड सदस्य को भी बिना पैसा दिये वोट नहीं मिला है ।पूराने मुखिया के हारने की एक वजह हर घर जल नल योजना जरुर है लेकिन इस योजना में कमाई को देख कर जो नये खेलाड़ी आये वो इतना पैसा खर्च किया है पूराने मुखिया जी कही टिक ही नहीं पाये वही दूसरी और शराबबंदी के आर में पिछले पांच वर्षो के दौरान हर गांव में एक नये वर्ग का उदय हुआ है जिसके पास पैसा है ताकत है यूथ है और यह वर्ग पंचायत चुनाव को सबसे अधिक प्रभावित किया है अभी तक जो सूचना मिली है दो सौ से अधिक मुखिया ऐसे लोग चुनाव जीत कर आये हैं जिनका पति या बेटा शराब के धंधे में जेल में बंद है या फिर फरार चल रहा है ।

3— जिला परिषद अध्यक्ष ,प्रमुख और उप मुखिया तक में बोली चल रही है

इस समय पूरे बिहार में जिला परिषद अध्यक्ष और प्रमुख का चुनाव चल रहा है हाल यह है कि चुनाव जीतने के समय से ही अधिकांश सदस्य बिहार से बाहर नेपाल ,झारखंड ,दिल्ली और कोलकाता में प्रमुख पद के उम्मीदवार का दाल गिला कर रहा है कई जगह जो बोली लगायी गयी है पांच लाख रुपया एक बुलेट मोटरसाइकिल स्थिति यह है कि इस बार उप मुखिया के चुनाव में भी वार्ड सदस्य डिमांड कर रहा है हालांकि जिला परिषद अध्यक्ष और प्रखंड प्रमुख में इस बार राजनीतिक दल ज्यादा सक्रिय दिख रहा है इस वजह से कई जगह पैसे का खेल कि जगह योजना का खेल चल रहा है ये है पंचायती राज का सच है ।फिर निराश होने कि जरूरत नहीं है बहुत सारे युवा चुनाव जीत कर आये हैं बहुत सारे ऐसे लोग भी चुनाव जीत कर आये हैं जिन्हें वोटर वोट के साथ साथ चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी दिया है फिर भी पंचायत कैसे मजबूत हो इस पर सोचने कि जरूरत है क्यों कि पंचायत मजबूत नहीं हुआ तो गांव कमजोर होगा और ऐसे में देश कमजोर होगा क्यों कि अभी भी भारत पूरी तौर पर गांव के अर्थ तंत्र पर भी खड़ी है ।

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